1. इतनी ज़ुर्रत कहाँ ग़ुलाम में है (ग़ज़ल) शहर हर शै से इंतकाम में है लोग बचने के इंतज़ाम में हैं एक दीवाना गिन रहा है हुज़ूम लोग मशग़ूल अप...
1. इतनी ज़ुर्रत कहाँ ग़ुलाम में है (ग़ज़ल)
शहर हर शै से इंतकाम में है
लोग बचने के इंतज़ाम में हैं
एक दीवाना गिन रहा है हुज़ूम
लोग मशग़ूल अपने काम में है
कुछ लहू नफ़रतों से सींचा है
कुछ लहू रिसता हुआ इंज़माम में है
और क्या होगा सियासत का मज़ाक
एक बहरा भी इस कोहराम में है
आदमी को है आदमी का सुराग
आग फैली हुई आवाम में है
हर हंसी में है तगादे की बू
कर्ज़ की चोट हर सलाम में है
दिल में बैठा है मौत का अज़गर
वरना ये ज़िंदग़ी आराम में है
आपके होते हम भी मुस्काएं
इतनी ज़ुर्रत कहाँ ग़ुलाम में है
2. हम अँधेरों के सताए हैं (ग़ज़ल)
हम अँधेरों के सताए हैं
आज तिनकों में छुपाए हैं
कांपता जी है उनको सुनकर
रास्ते में वो अंतर्कथाएं हैं
पीठ पर हर शख़्स के है ज़ख़्म
तीर जो अपनों ने चलाए हैं
ज़हन में पलने लगे आसेब
हर तरफ़ मनहूस साए हैं
बंद गलियों में मत चलो यारों
आगे और भी संभावनाएं हैं
3. अपना ज़मीर (ग़ज़ल)
हमसे पत्थर भी अग़र खोता है
मुद्दतों तक ज़मीर रोता है
हमने ख़्वाबों में घर लुटा डाला
ऐसे ख़्वाबों में कौन जीता है
रोज़ हम धूल पहन लेते हैं
रोज़ आईना हमें धोता है
अपने होने को है खुशी फ़िर भी
अपने होने पे ख़ौफ़ होता है
चोट खाकर जो बने हैं पूछो
रश्क़ क्या टूटने में होता है
4. वर्जनाएं (ग़ज़ल)
हश्र बचपन के वर्जनाओं से लड़ते-लड़ते
फिर बची उम्र जटिलताओं से लड़ते-लड़ते
मुझसे पूछो मेरी कथा असहमतियों की
अंत होना था व्यवस्थाओं से लड़ते-लड़ते
आईना रखकर सच दूरियाँ कुछ तो कर लीं
कुछ अनायास आई निकटताओं से लड़ते-लड़ते
मर न जाता 'ग़र घायल न जो हुआ होता
सीख पाया न जीना घावों से लड़ते-लड़ते
5. आईना पलटके देख (ग़ज़ल)
झुठलाते हुए सच के किस्से कपट के देख
हर आईने के पीछे आईना पलट के देख
अख़बारों की नक्काशियाँ कर देंगी नज़रअंदाज़
भींगे हुए लहू से ये पन्ने रपट के देख
पाई हैं उन्होंने जो मशक्कत की नेमते
मिलती है क्या तुझे भी ज़िंदग़ी में खट के देख
उनके भी हैं दो हाथ औ' तेरे भी हैं दो हाथ
आ ज़ंग में इस बार ज़रा तूं भी डट के देख
नेपथ्य में रखा गया है तुझको इसीलिए
कुछ इनकी अदावत औ' कुछ उनके घट के देख
चलकर कि किनारों से अब आएं हैं लहर में
खाती है कैसे नाव सियासी झटके देख
नक्शे में कल जहाँ थे हम हैं अब भी वहीं पर
जाते हैं कितनी दूर तक ये लोग भटक के देख
सुनते थे कि जनता को न छुए है सती की आँच
चमके हुए हैं वे तो उसी से लिपट के देख
6. चौक-रास्ते स्याह हुए (नवगीत)
दिन पर कैसा जाला छाया
चौक-रास्ते स्याह हुए
वे जिनको चलना था आगे
पहले ही ग़ुमराह हुए
तूफ़ानों से लड़ने का
देखो! अंज़ाम मिला लोगों
जितनी जर्ज़र नाव हुई
उतने हम बेथाह हुए
जंज़ीरों में कसी ज़िंदग़ी
गर्क हुई फूलों की चाह
हम वादों के दश्त में भटके
और वहीं तबाह हुए
कल न झुके थे हम तो
पत्थर माथे से टकराए थे
आज झुका है घायल माथा
पत्थर वे दरग़ाह हुए
हमको शाप मिली हैं
राहें ही राहों के बाद
और जो थे साथी मंजिल पर
अपनी-अपनी राह हुए
7. यह कैसा अनुवर्तन?
माँ ने कहा था
'चलते, चलते ही जाना
कांटों से होकर क्षितिज के पार
जहाँ मिलेगा तुम्हें फूलों का मखमली सेज'
माँ ने कहा था
'चीरकर निकल जाना
प्रलयंकारी लहरों के पार
वहीं मिलेगा तुमको श्रांत तीर'
माँ ने कहा था
'चढ़ते ही जाना
ऊबड़-खाबड़ टेढ़े-मेढ़े पथरीले
पर्वत-शृंगों के प्रांशु शिखरों के पार
मिलेगा तुमको ऊर्ध्वगत आरामग़ाह'
फिर, आह्वान किया था माँ ने मुझसे
'कि कूद जाना आग की ज्वाल लपटों में
मिलेगा तुमको जीवन का शीतोष्ण स्पंदन...'
मैंने वैसा ही किया जैसा माँ ने कहा था
चलता गया कांटों पर अनंतर मैं!
अनवरत शूल भेंदते रहे
मेरी शरीरात्मा को,
उफ़्फ़ तक नहीं किया
और चलता रहा
अविराम-अथक!
और मैं भीष्म बन गया
मैंने ठीक वैसा ही किया
जैसा माँ ने कहा था
अदम्य-अबाध लड़ता रहा
भीषण लहरों के थपेड़ों से,
एक योद्धा की भाँति
संघर्ष चलता रहा मेरा
लहरों के बाहर
लहरों के अंदर
और पलभर को नहीं रुकने दी
संघर्ष की गति
इस संकल्प के साथ
कि रहूंगा अटल
बन ही जाऊंगा अजेय
क्योंकि माँ ने कहा था,
पर, यह क्या
मैं तो भँवर बन गया
रुकना नहीं था स्वीकार्य
और मैं चढ़ता गया-
हिमाद्रितुंगवेणि शृंगों पर निष्कंटक
असंख्य क्रीट-शंख-वलय चुभते गए मेरे ज़िस्म में
तो भी बढ़ता रहा, चढ़ता रहा मैं
निडर! निर्विकल्प!! करिष्यमणि!!!
और मैं देवदार बन गया
मैं ठीक वैसा ही करता रहा
जैसा माँ ने कहा था,
आग के वलयाकार-सर्पाकार लपटों की ओर
बढ़ता गया क्षण-प्रति क्षण
अनगिनत ज्वाल लपटों को रोकता रहा
अपनी वल्गा से
उनके साथ तांडवरत रहा,
हाँ, जलता रहा तो क्या
माँ ने ही तो कहा था
फिर मैं अडिग और अमर्त्य रहा
और मैं चिता बन गया
8. तुम आए ऐसे
ईप्सित-तृषित
इस जीवन में तुम आए
बनकर गुलमुहर-बेल
आई सुगंध निर्निमेष
शमित हुए सारे-द्वंद्व-प्रतिद्वंद्व
मिला भावों को रस-छंद
मन हुआ अकिंचित शांत-निश्छल
सार्थक हुई अकिंचन की प्रतीक्षा
हम अनंग
रहे अभिशप्त-उपेक्षित
पीड़ित-अवगुंठित
हाँ, भष्मित और कुपित भी
पर, तुम आए ऐसे
मिला सब कुछ जैसे
तब हम हो गए निवेदनरत कि--
हमें रूप दो !
हमें रंग दो !!
हमें प्राण दो !!!
9. मेरे प्रियवर
आज अमावस के अंधकार में
नहीं सूझेगा हाथ को हाथ
और खोएगा पथ
भटककर जाऊंगा कहाँ
शायद जहाँ जाऊँ
हो जाएगा श्मशान वह
भुतहा और भयावह...
जीना है अब भी वर्षों
कर्तव्यबोध में
क्योंकि अब भी शेष हैं कर्तव्य मेरे
पर, श्रेय नहीं किसी बात का मुझे
और श्रेय नहीं है
मरने की कलुषित इच्छा का भी
भले ही जीवन दूषित हो
यह आराम हराम है
ठहरना व्यर्थ है कहीं
अब देर मत करो
चलते ही चलो
ओ मेरे प्रियवर !
10. यादों की संदली महक
तोड़कर सब बंधन
चल पड़े थे तुम पल-छिन!
नहीं पूछोगे क्या गुजरी थी
मुझ पर उस दिन
निर्झर झर-झर झरता
तुम्हारा अश्रुजल
छुआ था मैंने मन की आँखों से
देखा था मैंने अपनी हथेलियों से
पर, समय के कुछ कदम आगे जाते ही
यह क्या हो गया
उफ़्फ़ ! क्या हो गया
अब, कैसे कह दूं कि
वे मेरे अपने हैं
जिन्हें संजोए रखता हूँ
दिन-रात सुबह-शाम
मंदिर में चढ़े फूल की
संदली महक-सी
उर के अंदर
कभी-कभी होता है
मुझे ऐसा अहसास कि
भटक रहा है मेरा बावरा मन
कब से तुम्हारे आस-पास
तब, क्यों अपना-सा लगने लगता हूँ
ख्यालों में आबद्ध कर तुमको अनायास
और उस सुखानुभूति में
ओढ़ लेता हूँ चँदहली चादर
तुम्हारी यादों की बिंदास,
तुम्हारे पास आकर
तुम्हें भर-बटोरने की
कोशिश करने लगता हूँ
हाँ, अंजुरी में भर लेना चाहता हूँ
तुम्हारी भावनाएं और विश्वास
गंगाजल की
पावन अर्ध्य की तरह
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जीवन चरित
(और उपलब्धियों/विभिन्न गतिविधियों का विवरण)
नाम: प्रतीक श्री अनुराग
जन्म-तिथि : 30-10-1978
पिता : (स्वर्गीय)श्री एल0 पी0 श्रीवास्तव (सेवा-निवृत प्रधानाचार्य)
माता : (स्वर्गीया) श्रीमती विद्या श्रीवास्तव
शैक्षिक योग्यता : एम. ए. (अंग्रेज़ी साहित्य), काशी हिंदू विश्वविद्यालय,
वाराणसी (उ0प्र0)
अनुभव : पत्र-पत्रिकाओं में लेखन, संपादन, प्रकाशन आदि का दीर्घकालीन अनुभव
पुस्तकें : “चलो, रेत निचोड़ी जाए” (डॉ. मनोज मोक्षेंद्र के संपादन में प्रकाशित कविताएं)
(क): वाराणसी टाइम्स में भूतपूर्व सह-संपादक;
(ख): वाराणसी टाइम्स, जनवार्ता, गाण्डीव एवं भारतदूत आदि दैनिक पत्रों में संपादकीय अंश और मुख्य संपादकीय लेखों का लेखन;
(ग): हिंदुस्तान, दैनिक जागरण, आज, राष्ट्रीय सहारा, गाण्डीव, एवं जनवार्ता के साहित्यिक परिशिष्टों के लिए कविता, कहानी, निबंध, व्यंग्य आदि का लेखन;
(घ): नवभारत के 'एकदा' स्तंभ हेतु लेखन;
(ङ): विभिन्न दैनिक पत्रों के लिए संवाद-लेखन तथा समय-समय पर विशेष संवाददाता के रूप में महत्त्वपूर्ण समाचार तैयार करना और उनका तत्वर प्रकाशन;
(च): अंग्रेज़ी अख़बारों और ख़ासतौर से नार्दर्न इंडिया पत्रिका के लिए एजूकेशन कवरेज़
(छ): 'बिहारी ख़बर' (राष्ट्रीय साप्ताहिक समाचार पत्र) के लिए नियमित लेखन;
(ज): 'बिहारी ख़बर' के ब्यूरो प्रमुख रहे;
(झ): मासिक राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय पत्रिका--'वी विटनेस' का स्वयं के स्वामित्व में नियमित प्रकाशन;
संप्रति : स्वयं के स्वामित्व में राष्ट्रीय पत्रिका--'वी विटनेस' के प्रधान संपादक
सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक आदि क्षेत्रों में सक्रियता संबंधी अनुभव का ब्योरा
(i) वाराणसी के अनेक साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थाओं की गतिविधियों में सक्रिय भागीदारी तथा इन विषयों पर आयोजित गोष्ठियों, बैठकों, सम्मेलनों और सेमीनारों में कार्यक्रमों का संचालन, निर्देशन, दिग्दर्शन तथा कार्यक्रमों की कार्यसूचियां एवं कार्यवृत्त तैयार करना;
(ii) व्यापक स्तर पर कवि गोष्ठियों/कवि सम्मेलनों/मेहफ़िले मुशायरों में काव्य पाठ;
(iii) विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक आदि मंचों का संयोजन;
(iv) सामाजिक उन्नयन के लिए विद्याश्री फाउंडेशन की स्थापना एवं संचालन;
(v) शैक्षिक/शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक संस्था--'पगडंडियाँ' की स्थापना एवं संचालन;
(vi) राष्ट्रीय स्तर पर साहित्यिक, सामाजिक, राजनीतिक आदि ग्रंथों के प्रकाशन हेतु विद्याश्री पब्लिकेशन्स की स्थापना और संचालन; इस बाबत पांडुलिपियों का संपादन;
(vii) समाज के सारभूत उन्नयन में समग्र भागीदारी हेतु राष्ट्रीय मंच--राष्ट्रीय समाज कल्याण परिषद का संचालन;
(viii) माइनॅारिटी एजूकेशन एण्ड वेलफ़ेयर सोसायटी, वाराणसी की स्थापना और संचालन।
(xi) सदस्य हैं/रहे : 1. बर्टेड रसेल सोसायटी, अमरीका, 2. रसराज; 3. अभिमत; 4. टेम्पुल आफ़ अंडरस्टैंडिंग, 5. कृतिकार, 6.कहानीकार और 7. सद्भावनापीठ।
(प्रतीक श्री अनुराग)
संपर्क सूत्र :
प्रतीक श्री अनुराग
(पत्रकार, लेखक एवं समाज सुधारक)
द्वारा डॉ मनोज श्रीवास्तव "मोक्षेंद्र",
सी66, विद्या विहार, नई पंचवटी, जी टी रोड,
ग़ाज़ियाबाद, उ प्र
पिन कोड--201001
इ-मेल पता wewitnesshindimag@gmail.com
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