समर्पण दिवंगत माता-पिता की पावन स्मृति को जिनकी स्नेहिल छत्र –छाया में आज भी मेरा जीवन उपवन सा खिलता मुस्कराता है....! देवी नागरा...
समर्पण
दिवंगत माता-पिता की पावन स्मृति को
जिनकी
स्नेहिल छत्र –छाया में आज भी
मेरा जीवन उपवन सा
खिलता मुस्कराता है....!
देवी नागरानी
अनूप जलोटा के दो शब्द
देवी जी,
भजन महिमा में आपने सुंदर भजनों को समाहित किया है-
‘ राम रहीम करीम तुम्हें हो
तुम ही हो घनश्याम…’
आपकी लेखनी में सर्व धर्म की भावना मन को छू लेती है.
ईश्वर से प्रार्थना है’ भजन महिमा’ की महिमा घर घर आनंद बांटे.
आपका ही-
अनूप जलोटा
देवी नागरानी की ‘भजन महिमा’
- माया गोविंद
देवी नागरानी को मैंने सर्वप्रथम एक गोष्ठी में सुना. मुलाकात हुई और उनकी काव्य प्रतिभा से मेरा परिचय हुआ. देवी जी की ग़ज़लों में मुझे काफी प्रभावित किया. किताबें भी पढ़ी, उर्दू तथा हिंदी पर इनका समान अधिकार है.
अब उन्होंने ‘भजन महिमा’ नामक पुस्तक लिखी है, उसके काफी भजन मैंने पढ़े हैं. बहुत ही सरल और भावभीने हैं तथा प्रभु समर्पण की एक सीधी सच्ची भावना जिसमें निहित है एवं मन आत्मा की पवित्रता को दर्शाती है और प्रभु समर्पण की प्रेरणा देती है.
गजल-गीत में कल्पना का भी समावेश होता है, पर भजन लिखना ईश्वर को बिना किसी आडंबर के सीधा समर्पण करना है, जो पाठकों को स्वयं चिंतन में डुबोकर भाव विभोर कर देता है. अधिकतर भजन श्री साईं नाथ पर लिखे गए हैं. सीधा सच्चा रास्ता बताया है-
जब भी मन घबराए, तुम प्रार्थना करो
राह नजर न आए तुम प्रार्थना करो...
अगर सामने घोर प्रलय हो
चाहे कितना कठिन समय हो
सब को प्रभु बचाए, तुम प्रार्थना करो...
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कितनी सरल राह है- वास्तव में कर्ताधर्ता तो वही है. उसकी प्रार्थना करने से ही बल मिलता है.
भजन केवल अपना मन ही सुखी नहीं करता बल्कि जो पढ़ता है या गुनगुनाता है, उसके मन, अंतस का आंगन स्वच्छ कर देता है. दुख को सुख में बदलने की क्षमता भजनों में ही होती है.
कुछ पंक्तियां जिनसे मैं बहुत प्रभावित हुई, निम्नलिखित हैं-
इस क्षणभंगुर जीवन बगिया का
कुछ भी नहीं ठिकाना है
किस पर किसकी हरियाली है
किसको किस पल मुरझाना है
तेरी अद्भुत लीलाओं को हे नाथ कहां लिख पाऊं
तेरा ही ध्यान लगाऊं…
हर भजन मोती की तरह पिरोया है देवी जी ने. मुझे पूर्ण विश्वास है कि ये भजन गाए जाएंगे और साईं सिमरन की प्रेरणा देंगे.
मेरी शुभकामनाएं देवी जी के साथ हैं. इस पुस्तक को सारे सुधी पाठकों तथा जन जन का प्यार मिलेगा. इस आपाधापी की दुनिया में मन को सुकून मिलेगा. देवी जी को बहुत बधाई
माया गोविंद
3, शेल्टन, दसवां रास्ता
जे वी पी डी स्कीम
मुंबई 400049
भजन महिमा..
- गीतकार हरिश्चंद्र
देवी नागरानी के गजलें तो कई बार सुनने का अवसर मिला है परंतु उनके भजनों की कोई सांगितिक प्रस्तुति या सस्वर पाठ से अभी तक वंचित ही रहा हूँ.
इसी बीच खन्ना मुजफ्फरपुरी जी की मध्यस्तता से देवी जी के भजनों को पुस्तकीय स्वरूप देने का प्रस्ताव आया क्योंकि मैं ऐसे कार्यों से जुड़ा हूँ. मेरे लिए सबसे बड़ी कौतूहल की बात थी देवी नागरानी के द्वारा भजनों का लिखा जाना. क्योंकि भजनों की रचना संपूर्णत: सांगितिक तत्वों पर आधारित होती है जिनके लिए रचनाकार की रुझान संगीत के धरातल की ओर आवश्यक है.
देवी जी ने अपने कई भजनों को जब गुनगुना कर सुनाया तो उनकी स्वयं –स्फूर्ति रागात्मकता की जानकारी प्राप्त कर प्रसन्नता हुई. परमात्मा के प्रति अनुराग वह भावप्रवनता ही तो किसी रचनाकार को ईश्वरीय गुणगान की ओर खींच ले जाती है.
आपके और कोई भी हो सकते हैं. देवी के आराध्य शिर्डी के साईं बाबा है. अधिकांश भजनों को उन्होंने साईं बाबा को समर्पित किया है बड़ी ही अच्छी खुशी की बात है.
अब बात रही भजनों को संशोधन की तो यह काम थोड़ा सा जोखिम भरा होता है. भजनों की मौलिकता को खोने का खतरा बना रहता है क्योंकि संशोधक अपनी योग्यता की पराकाष्ठा लगा देना चाहता है. वस्तुत: यह उनकी ईमानदारी एवं रचना के प्रति संपूर्ण निष्ठा भाव का परिचायक होता है.
प्रस्तुत भजनों के लिए देवी जी प्रशंसा के पात्र तो हैं जिसके भाषा का लालित्य एवं शब्द-सौष्ठव की गरिमा निर्वाह सर्वोपरि होता है. बाकी कोई कुछ भी गाये-गुनगुनाए, जी के लड्डू टेढ़ो भला. देवी जी की लेखनी निरंतर आगे बढ़े, बड़े सत्य का संधान करें, मेरी मंगलकामनायें.
गीतकार हरिश्चंद्र
मुंबई 13.6.2012,
मेरी तरफ से --
-देवी नागरानी
मिट्टी मन है, मिट्टी तन है, क्या खोना क्या पाना है
उम्र के खाली पैमाने को आंखों में भर जाना है
हर दिन नए सूर्योदय के साथ हमारा आज शुरू होता है. मेहरबान मालिक के दिए हुए सांसों के अनमोल रत्न हमारी झोली को खाली होने के पहले ही भर देते हैं. यह सिलसिला हमें अपने अस्तित्व से जोड़ने में, आस्था को बरकरार रखने में मददगार होता है, और हम उस परमपिता के प्रति आभार प्रकट करते हैं-
ऐ बुलबुलो, फिजाओं में भी शुक्रे खुदा करो
तिनके कहाँ से लाओगी मौसमे-बहार में
पर प्रार्थना क्या सिर्फ कुछ पाने या हासिल करने की संभावना के साथ जुड़ी है? हमें प्रार्थना इसके लिए नहीं करनी चाहिए कि दुखों से बचे रह सकें, पर इसलिए कि हम निडरता से जीवन-पथ के सिपाही बनकर हर संघर्ष का सामना करें.
वैसे लेखन क्रिया के लिए मन में भावना की उत्तल पुथल हो और साथ में मंथन, तो सच स्वयं सामने आ जाता है. अज्ञानता में आंख ढक लेने से सूर्य की रोशनी लुप्त नहीं हो जाती. सत्य खुद-ब-खुद निखरकर अपने आप को अभिव्यक्त करता है, चाहे वह संसार का सत्य हो या परमार्थ का सत्य. वही सत्य जो जीवन को संचारित करते हुए जीवन पथ पर हमारी राहें रोशन करता है और हमें खुद से जोड़ता है, उसी आराध्य के सामने मेरी अनकही अनछुई भावनाएं इन भजनों के रूप में बतियाते हुए आपके सामने हैं-
तन रुपी गुलशन में मन रूपी सुमन को गीत बनाकर उस आराध्य के आगे अपने भावों का अध्र्य चढ़ाते हुए मैं तो यही कहूंगी-
आरती का दिया जला होगा
भाव पूजा का जब जगा होगा
इस संग्रह के लिए आदरणीय कवित्री माया गोविंद जी ने भी अपने सम्मति के लिए समय निकाल कर मेरे इस प्रयास’ भजन महिमा’ को गौरवान्वित किया है. मैं उनकी शुक्रगुजार हूँ. आदरणीय भजन सम्राट अनूप जलोटा जी ने अपने दो शब्द का योग देकर मुझे प्रोत्साहित किया है उनके प्रति मेरा दिली शुक्रगुजारी का भाव बना रहेगा. गीतकार श्री हरिश्चंद्र जी के प्रति भी अत्यंत कृतज्ञता ज्ञापित करती हूँ, जो इस भजन संग्रह को आपके सामने लाने में नितांत मेरे प्रयास में शामिल रहे हैं. आपकी भावनाएं मेरी भावनाओं में सम्मिलित होकर इन भजनों को कोई नया स्वर दे, इन्हीं आकांक्षाओं के साथ-
आपकी अपनी,
देवी नागरानी
अनुक्रमणिका:
1-जब जब मन घबराए, तुम प्रार्थना करो
२-हे नाथ क्रपा करके, मुझको ऐसा वर दे
३-दया कर दयालू साईं नाथ मेरे
४- दिन जोगी संग गुजार
5- दीन बंधू नाथ मेरे, दुख में जब घबराऊं मैं
6- क्या करता है मेरा मेरा,
7- साईं नाम बोलो, साईं नाम बोलो
8- सांसों में समा जाओ, ऐसे जैसे सरगम
9- मन साँईं के गुन गा
10- साईं दे दे दान दया का
11- तुमको जो भाए हे स्वामी
12- सहारा आज भी तेरा, सहारा कल भी तेरा ही
13- शरण में आए हैं साईं, चरण में तुम जगह देना
14- आओ साँई, आओ साँई, मन में मेरे कब आओगे
15- साँई शरण में आना प्यारे, भवसागर तर जाएगा
16- गुरू चरनन में प्रीत लगा ले, भवसागर तर जाएगा
17- नाम भजो मन बाँवरे, वक्त न वापस आएगा
18- तुम आदि हो तुम अँत हो, मेरी कल्पना के मयूर हो
19- बहता पानी ही तो इक नदिया कहलाए
20- सत्यम शिवँ सुंदरम साँई नाम है...मौला
21- जप मन साँई राम, सदा साँई राम
22- जय-जय साईं नाथ हमारे
23- सुन नाथ अरज अब मोरी
24- साँईं भजो मन साँईं भजो मन
25- शिरडी का साँई राम बोलो
26- जप मन साँई राम, सदा साँई राम
27- मिले जो धूल चरणों की मुझे साँई तो तर जाऊँ
28- विनती सुन लो हे कृपाल
29- ओम मौला साँई, ओम बाबा साँई
30- करुणा सुनो हे नाथ हमारी
31- तन का त्याग गुमान रे बंदे
32- करुणा सुनो श्री परम कृपालू
33- ओ मेरे साँई ओ मेरे ..आन
34- रे मन जाग के जप हरी नाम
35- सतगुरू दाता दुखडे अपने कैसे तुम्हें सुनाऊँ
36- सतगुरु अब घर आओ
37- हर साँस सुमर इक नाम,
38- राम रहीम करीम तुम्ही हो,
39- पल पल तेरी याद सताए, बतियां तेरी भूल न पाए
40- ओ रसना जप नाऽऽम,
41- दया कर दयालू दयावान साँई
42- साँस की पूँजी नहीं टक्साल ये है
43- तुम्हारा दर मेरे साँई मैं छोडूँ तो किधर जाऊँ
44- हे कृपाल हे दयाल
45- रैन दिवस मन सुमरो नाम
46- साँई साईं भजन तू गा ले रे, ओ भोले प्राणी
47- ओ मन जाग के जप हरी नाम,
48- मनमत मूरख करम कमाओ
49- साँईं के गुण गाले रेऽऽ ओ भोले प्राणी-
50- आए हैं शरण तेरी, ले फूल श्रधा के हम
51- तू ही मेरा चारागार
52- ख़ुशी लेकर जहाँ में तुम, ख़ुशी दोगे, रहोगे खुश
53- सतगुरु अब घर आओ
54- संसार समंदर सींप ये मन, अंदर इसके इक मोती है
55- मिटटी को समझे सोना है
56- चला है किधर तू, कहाँ तुझको जाना
57- दर दुआओं के अगर जाके सर को झुकाओगे
58- आँनंद दीजे आंनद दीजे
59- जीवन की अंधियारी राहें, पास खड़ी फैलाकर बाहें
60- रहमत तेरी अपारऽऽऽऽदाता
61- खुशी दो गर तो खुश रहना, जो गम दो तो वही सहना
62- इन्सान की दिल अँबर भी है
63- सिमरन कर क्यों पूँजी खोवै
64- पिँजरे की मैना बोल राम राम
65- आई बरिया आई, जागन की है आई
66- तू ही मेरा पालनहार , सच्चा सतगुरु तू करतार
67- जिंदजी की राह पर, दौडकर थक जाऊं मैं
68- ओ मेरे साँई ओ मेरे साँई
1
प्रार्थना
जब जब मन घबराए, तुम प्रार्थना करो
तुम प्रार्थना करो, आराधना करो ॥
कोई राह नजर ना आए, तुम प्रार्थना करो ॥॥
मन मैला और काया उजली
बुधी नहीं है जो है अँधुली
उसे प्रभू ही पाक बनाए.....तुम प्रार्थना करो ॥
जग में अकेला खुद को पाए
कोई न तेरा साथ निभाए
तब प्रभू ही पास में आए.....तुम प्रार्थना करो ॥
मेरा मेरा कर भरमाए
कुछ न किसी का भी हो पाए
जब तक न शरण में आए.....तुम प्रार्थना करो ॥
नाम गुरू का ग्रँथ व गीता
जप जप मन हो जाए पुनीता
तब सच के दरशन पाए.....तुम प्रार्थना करो ॥
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ओम राम साँई -प्रार्थना
जब जब मन घबराए, तुम प्रार्थना करो,
तुम प्रार्थना करो, आराधना कारो ॥
कोई राह नजर ना आए, तुम प्रार्थना करो ॥॥
पल पल छिन छिन नाम जपो तुम
ओम राम साँई राम नाम जपो तुम
मन निरमल पाक हो जाए.....तुम प्रार्थना करो ॥
मीत सखा सब साँई तेरा
क्या करता है मेरा मेरा
कुछ सँग न तेरे जाए.....तुम प्रार्थना करो ॥
दुख सुख आनी जानी छाया
यही है दुनियाँ यही है माया
जब मन इसमें भरमाए.....तुम प्रार्थना करो ॥
दिलबर को दम दूर न समझो
पास में अपने उसको समझो
हर मुशकिल हल हो जाए......तुम प्रार्थना करो ॥
साँई राम..साँई राम..राम राम..साँई राम..
मौला साँई..बाबा साँई..साँई राम..साँई राम..
ओम साँई..ओम साँई..मौला साँई..मौला साँई.
साँई साँई..ओम साँई..मौला साँई..बाबा साँई.॥
देवी नागरानी
*
भजन 2 ॥तर्ज = होंटों को छूलो तुम ॥
हे नाथ क्रपा करके, मुझको ऐसा वर दे
जैसा भी भाए तुझे, मुझको ऐसा वर दे ॥॥
सुनती हूँ बहुत तेरी, महिमा मैं औरों से
अब पास तेरे आकर मैं देखूं नयनों से
हे नाथ नारायण अब, चरणों में जगह दे दे ॥
है राम रहीम भी तू, नर नारायण भी तू
है मीत सखा बंधू, दीनन का नाथ भी तू
मेरे दिल में बस जाओ, बस ऐसी क्रपा कर दे ॥
नित नित तेरा ध्यान धरूं, आंखों में आस लिये
मैं पलकें बंद करूं, दर्शन की प्यास लिये
हे सांई नाथ मुझे, दर्शन का वर दे दे ॥
हे नाथ क्रपा करके, मुझको ऐसा वर दे
जैसा भी भाए तुझे, मुझको ऐसा वर दे ॥॥
*
भजन 3 ॥तर्ज = दया कर दयालू ॥
दया कर दयालू साईं नाथ मेरे
मुसीबत में मालिक मददगार मेरे ॥ ॥
तेरी दया का हूँ मैं भिखारी
यही दान मांगू पुकारी पुकारी
दया कर दे दाता, दयावान मेरे ...दया कर ॥
अपनी नजर में खुद ही गिरा हूँ
पलकें झुकाकर दर पे खडा हूँ
बदी बख्श मेरी बखशणहार मेरे ...दया कर ॥
किया कुछ न मैंने गुनहगार मैं हूँ
गुनाहों का बोझा उठाकर थका हूँ
रखो लाज मेरी मेहरबान मेरे ...दया कर ||
समझ दे तू साईं सही राह देखूं
सभी में समाया, तेरा नूर देखूं
नजर ऐसी दे दे, निगहबान मेरे ...दया कर ||
दया कर दयालू साईं नाथ मेरे
मुसीबत में मालिक मददगार मेरे ॥ ॥
*
भजन 4 ॥तर्ज = अहीर भैरव-तिन जोग्युन||
दिन जोगी संग गुजार
जो जागे है सारी रात ॥ ॥
थिर मन थिर तन बैठ भजन कर
तू चित में साईं सिमरन कर
उठकर रोज प्रभात ....दिन जोगी संग गुज़ार
सबको सांई नाम संभाले
खुद को कर तू उसके हवाले
पूछे न कोई जात.... दिन जोगी संग गुज़ार
तज अभिमान तू इस देही का
तन मन धन कब हुआ किसीका
काल करेगा मात.... दिन जोगी संग गुज़ार
*
भजन 5 ॥तर्ज = जिंदगी की राह पर ॥
दीन बंधू नाथ मेरे, दुख में जब घबराऊं मैं
ध्यान तेरा ध्याऊं मैं ॥ ॥
सँग लेकर मन का साँई, मन की बनकर रह गई
झूठ को सच मान कर, झूठ में ही बह गई
अब न कोई है किनारा, पार कैसे पाऊँ मैं...ध्यान तेरा ॥
दिल भी तेरा मैं भी तेरी, तू बना अपना मुझे
ग्यान ऐसा दे दे साँई, भूल पाऊँ ना तुझे
याद कर अशकों की माला, आप को पहनाऊँ मै...ध्यान तेरा ॥
हर तमन्ना दिल में दाखिल, दिल की खाइश नित नई
राहतों में भी न राहत, राह में मै लुट गई
राह में रहबर मिले जो, हाले दिल बतलाऊँ मैं...ध्यान तेरा ॥
*
भजन 6 ॥तर्ज=बागेश्वरी-चरण कमल में मिले॥
क्या करता है मेरा मेरा,
नहीं यहाँ है कुछ भी तेरा ॥ ॥
जग सपना पर सच लगता है
टूटे नींद तो झूठ सा ये है
सोच रहा हूं कौन लुटेरा....जग में कुछ ॥
झूठे जग से क्या डरता है
करना क्या है क्या करता है
विशयों ने है तुझको घेरा....जग में कुछ ॥
आनी जानी दुनियां फानी
फिर भी मन करता नादानी
चार दिनन का यहां बसेरा....जग में कुछ ॥
मंथन कर तू मन का देवी
तेरे अंदर तेरा स्नेही
उजले मन से देख सवेरा....जग में कुछ ॥
*
भजन 7 ॥तर्ज = जप मन साईं राम ॥
साईं नाम बोलो, साईं नाम बोलो,
साईं राम बोलो, साईं राम बोलो,
सांई नाम सदा सुखदाई,
मुख से सांई साँई बोलो ॥ ॥
साईं गंगा साईं जमुना, साईं नाम सरोवर तन मां
साईं सुमरन से बंदे तुम, अपने आप को धोलो धोलो
साईं राम बोलो ॥
साईं राम रहीम भी साईं, साईं राधे श्याम गुसांई
जो जैसा भावे वैसा वो पाए, भरमों में ना भूलो भूलो
साईं राम बोलो ॥
जग में सुख के साथी सारे, साईं दुख में साथ हमारे
साईं जैसा मीत न कोई, उसके ही तुम होलो होलो
साईं राम बोलो ॥
*
भजन 8 ॥तर्ज = होंटों को छू लो तुम ॥
सांसों में समा जाओ, ऐसे जैसे सरगम
नैनौं में बस जाओ, ऐसे ज्यों हो काजल॥ ॥
मन पंछी मतवाला, उडता फिरता बन बन
डाली डाली उडकर, खुद को करता घायल
सांसों में समा जाओ॥
आकाश की सीमा से, उडता ऊंचा ये मन
मन मस्त मगन हाथी, आवारा ज्यूं बादल
सांसों में समा जाओ॥
देवी का दिल डूबा, संसार के सागर में
खुद हाथ पकड साईं, अब पार करो भवजल
सांसों में समा जाओ॥
*
भजन 9 ॥तर्ज-अहीर भैरव–तिन जोग्युन ॥
मन साँईं के गुण गा
यहां बैठ के सारी रातऽऽऽ॥ ॥
साईं समरथ सुनता सबकी
तेरी मेरी इसकी उसकी
पूछे न कोई जा ऽऽत...मन साँईं ॥
सबको साईं नाथ संभाले
खुद को कर तू उसके हवाले
वो जाने सब बाऽऽत...मन साईं ॥
दीन दयालू दिलबर दाता
जोड उसीसे अपना नाता
पूछे वो खुशलाऽऽत....मन साईं ॥
सांई सब के दिल में बसता
हर दिल मंदिर जैसा लगता
ये ही सची बाऽऽत....मन साईं ॥
*
भजन 10 ॥तर्ज =आयो शरण तिहारी॥
साईं दे दे दान दया का
ठाढ़े द्वार तिहारे॥
मन में कर उजियारा साईं
दूर करो अंधियारा साईं
घट घट के उजियारे.... ठाढ़े द्वार तिहारे
कर्म धर्म कुछ भी ना जानूं
मीत सखा तुमको ही मानूं
दीनन के रखवारे.... ठाढ़े द्वार तिहारे
राम रहीम गुसांई तुम हो
ईश्वर अळा नानक तुम हो
तुझ बिन हम बेसहारे... ठाढ़े द्वार तिहारे
देवी दर पर आन पडी है
कष्टों मे जब बाड पडी है
तेरी ओट सहारे.... ठाढ़े द्वार तिहारे
*
भजन 11 ॥तर्ज =भगवान तुम्हारे चरणों ॥
तुमको जो भाए हे स्वामी
वो पुष्प कहां से लाऊं मैं?
असुवन के पुष्प चढाऊं पर
वो नैन कहां से लाऊं मैं ॥॥
दिल के दरवाजे खोल मेरे
मालिक मेरे रहबर मेरे
दिल के दरपण में देखूं जब
तेरा अक्स वहां भी पाऊं मैं ॥
तेरा दर है मंजिल मेरी
और राह बनी है दिल मेरी
गर दूर रहोगे राहों से
भटक भटक खो जाऊं मैं ॥
ये ग्यान व ध्यान की बातें सब
बातों से क्या मतलब मेरा
बिन बात कहे समझो तुम जो
वो श्बद कहां से लाऊं मैं ॥
भजन 12 ॥तर्ज = खुशी दोगे तो ॥
सहारा आज भी तेरा, सहारा कल भी तेरा ही
सदा है आसरा तेरा, सिवा तेरे कहां जाऊँ ॥॥
तुम्ही माता पिता तुम हो, तुम्ही सरवर सखा साँई
न अब कुछ माँगना बाकी, बिना माँगे जो सब पाऊँ ...सदा है आसरा ॥
नहीं है नींद नैनन में, नहीं है चैन चितवन में
जहां देखी झलक तेरी, वहीं पर मैं चला आऊँ....सदा है आसरा॥
झलक सबमें दिखे तेरी, नजर ऐसी नहीं मेरी
तुझे देखे तो कैसे ये न देवी रीत यह जाने...सदा है आसरा॥
*
भजन 13 ॥तर्ज = खुशी दोगे तो ॥
शरण में आए हैं साईं, चरण में तुम जगह देना
सहारा है लिया तेरा उसे साईं निभा देना ॥॥
न जाने किस पे राजी तू, खफा मुझसे न पर होना
गुनाहों से भरा दिल है, न कोई साफ है कोना
खता मेरी मेरे मौला, भुला देना भुला देना...सहारा ॥
तुम्हारे जैसे तुम ही हो, नहीं कोई तेरे जैसा
बहुत ढूंढा मिला मुझको, न कोई नाथ तुम जैसा
मैं जैसी हूं तुम्हारी हूं, शरण में तुम पनाह देना...सहारा ॥
है देवी दूर से आई, बडी महिमा सुनी तेरी,
कहूं कुछ या रहूँ चुप मैं, सुनी है अनकही मेरी,
बिनंती नाथ हम सभकी, दया करके अघा देना...सहारा ॥
किया है पार औरों को, मुझे भी पार कर देना
किनारे पर खडी हूँ मैं, भँवर में डूबती नैया
मेरी क्शती किनारे पर, मेरे मौला लगा देना....सहारा ॥
*
भजन 14 ॥तर्ज = राग पीळू ॥
आओ साँई, आओ साँई, मन में मेरे कब आओगे
मन भावन है मूरत तेरी, नयनन में कब बस जाओगे ॥ ॥
मीत न सँगी जग में तेरा, तेरा मन ही बैरी तेरा
ओट न लेगा जब तक उसकी, बंधन में बँध जाओगे ....आओ साँई ॥
साँई सुख का सागर ऐसा, जो खोजे सो पाये वैसा
नयन मूँदकर घट भीतर जो, जाओगे कुछ पाओगे....आओ साँई ॥
पावन निरमल नाम है साँई, चरण में उसके धाम गुसाँई
तीरथ सब है उन चरणों में, पूजोगे तो पाओगे.....आओ साँई ॥
*
भजन 15 ॥तर्ज = चरण कमल में ॥
साँई शरण में आना प्यारे, भवसागर तर जाएगा ॥
इस दर पे है पाया सबने, खाली तू क्यों जायेगा ॥ ॥
नजर दया की सब पर रहती, मुझपर तुझपर उसकी रहती
अपनी नजर टिकाना प्यारे, मँजिल को तू पायेगा....साँई शरण ॥
माया ममता दान दया का, सबको इस दर से मिलता है
मिले मिले न मिले धन दौलत, राम रतन मिल जायेगा....साँई शरण ॥
पाँच विकार ने डेरा डारा, भूल भुलैया जीवन सारा
तन मन थिर जब तेरा होगा, पद निरवाण तू पायेगा....साँई शरण ॥
*
भजन 16 ॥तर्ज= राग बागेश्री ॥
गुरू चरनन में प्रीत लगा ले, भवसागर तर जाएगा
अवसर आज मिला है प्यारे, बारँबार न आएगा ॥
पल पल छिन छिन ध्यान धरो तुम
चितवन को नित साफ करो तुम
सच को साथी मान चलो वो, मन की मैल हटाएगा....अवसर आज ॥
सागर है सँसार यह सारा
डूबों को है उसने तारा
ओट शरन उसकी जो लेगा, भवसागर तर जाएगा....अवसर आज ॥
नजर दया की गर वो कर दे
खाली झोली सबकी भरदे
ध्यान मगन मन मस्त हो देवी, दरशन तब हो पाएगा....अवसर आज ॥
*
भजन 17 ॥तर्ज = केदार राग ॥
नाम भजो मन बाँवरे, वक्त न वापस आएगा
खाळी हाथ तू आया जग में, खाळी ही फिर जाएगा ॥॥
भजन बिना मन रेती रेती, कुछ भी न देगी बँजर रेती
भजन बिना मन राख की ढेरी, सँग हवा के खाये फेरी.......नाम भजो ॥
भजन बिना क्या जीवन जीना, सपनों का सब दाना बीना
भजन बिना मन उलटी गागर, खाली, सूखी आगे सागार.....नाम भजो ॥
*
भजन 18 ॥तर्ज = मैं तो बाँवरी श्रीनाथ की ॥
तुम आदि हो तुम अँत हो, मेरी कल्पना के मयूर हो
हर दिल के तुम विशवास हो, हर दिल के तुम ही नूर हो ॥॥
मैं पथिक हूँ तुम राह हो, मैं भेद हूँ तुम भाव हो
पहुँचेगा मँजिल पर वही, जिसपर क्रपा भरपूर हो...तुम आदि हो ॥
देखा है हर दिन आईना, पहचान खुद को पाई ना
अब रौशनी ऐसी करो, जिसमें तुम्हारा नूर हो...तुम आदि हो ॥
छूने को तन आकाश का, पँछी उडा मेरी आस का
विश्वास का बँधन है ये, ऐसा न हो के ये चूर हो...तुम आदि हो ॥
देवी ह्रदय के सँत हो, भक्तों के तुम भगवँत हो
विश्वास का ये दीप है, ज्योती तुम्ही तुम नूर हो....तुम आदि हो ॥
*
भजन 19
बहता पानी ही तो इक नदिया कहलाए
पानी में बूँद मिले, वही सागर कहलाए॥॥
चँचल मन चितवन भी, चुप चाप में चलता है
दाना बीना जैसे कोई जाल सा बुनता है
है भूल भुलैया ये, इसमें सब खो जाए....पानी में बूँद ॥
दिल के दर्पण में तू, क्या खुद को देख रहा
हर रूप में हर रंग में, वो इँद्रधनुष लगता
जैसा वो रूप धरे, वैसा ही हो जाए.....पानी में बूँद ॥
जिसपर तेरी क्र्पा, वही पास तेरे आए
मुझे ऐसी नजर दे दे, जिसमें तू समा जाए
तेरा रूप अनूप मेरे, दिल में ही बस जाए.....पानी में बूँद ॥
*
भजन 20
सत्यम शिवँ सुंदरम साँई नाम है...मौला
भूले हुए पहुँचे जहाँ साँई धाम है...मौला
जो भी लेता उसका अधार
साँई लेता सबको उबार
करता पूरण है वही, तेरा मेरा काम ॥
जो भी आता साँईं द्वारे
मौला उसको पार उतारे
नाम साँई नाऽम मौला, लेते रहो सुबह शाम ॥
*
भजन 21 ॥तर्ज= जप मन साँई राम ॥
जप मन साँई राम, सदा साँई राम
साँई राम, साँई राम जप मन साँई राम ॥॥
साँसन की पूँजी जो पाई
खेलत कावत वो ही गवाँई
क्यों बन बैठा है अनजान.....जप मन साँई राम ॥
मन माया में है मतवाला
भुल गया वो है बेगाना
बूल भुलैया से अनजान.....जप मन साँई राम ॥
सत्यम शिवँ, शिव ही सुँदर
साँई बूँद है साँई समुँदर
अमृत का तू कर ले पान.....जप मन साँई राम ॥
साँई नाम है एको साचा
जोड उसीसे अपना नाता
तज दे झूठा तू अभिमान ...जप मन साँई राम ॥
जप मन साँई राम, सदा साँई राम=२
साँई राम, साँई राम सदा साँई राम ॥॥
*
भजन 22 ॥तर्ज= जय जय हे जगदँबे माता ॥
जय-जय साईं नाथ हमारे
भक्ती के भँडार हो नाथा
मुक्ती के तुम द्वार हो नाथा
साँई नाथ हमार......भक्ती के भँडार ॥॥
तेरे द्वारे जो भी आया
भर झोली वरदान है पाया
खाली हाथ न कोई जाता....भक्ती के भँडार॥
झूठी है सँसार की माया
झूठी मेरी अपनी काया
एक है साचा तेरा नाता....भक्ती के भँडार॥
राम तुम्हीं रहमान तुम्हीं हो
ग्यान की बहती धारा तुम हो
दृष्टि से अग्यान हटाता...भक्ती के भँडार॥
*
भजन 23 ॥तर्ज=सुन नाथ अर्ज अब मोरी॥
सुन नाथ अरज अब मोरी
मै शरण पड़ा प्रभू तोरी
सुत दारा और मीत न कोई
उसका तू जिसका नहीं कोई
मैने ओट है लीनी तोरी....मै शरण ॥
देने वाले तुम भगवान हो
निरधन का भी तुम ही धन हो
मेरी भी है फैली झोरी....मै शरण ॥
आशाओं के दीप जलाकर
अंधियारे को दूर भगाकर
अब आई शरण मै तोरी....मै शरण ॥
देवन के तुम देव अगोचर
देवी के सपने पूरे कर
आँखों ने सजाई लोरी....मै शरण ॥
*
भजन 24 ॥तर्ज =मुकुंद माधव हरी बोल ॥
साँईं भजो मन साँईं भजो मन
साँईं भजो मन साँईं भजो मन
काम तजो मन क्रोध तजो
साँईं भजो मन साँईं भजो मन साँईं भजो ॥
आस न छोडो साँई दर की
ओत न छोडो उसके घर की
नमन करो मन नमन करो..साँईं भजो ॥
दीनन का वो दीन दयाला
भक्त जनों का वो रखवाला
श्रधा और विशवास धरो..साँईं भजो ॥
नमन करो नित दर पर देवी
सफल करेगा परम स्नेही
सिमर सिमर हर साँस चलो..साँईं भजो ॥
*
भजन 25 ॥तर्ज =किसने देखा शाम ॥
शिरडी का साँई राम बोलो
परतीश्वर साँई राम.....बोलो ॥
किसने देखा राम बोलो
शिरडी का साँई राम.....बोलो ॥
शिरडी में है श्याम बिराजे
परती में घनश्याम बिराजे
घर घर में ब्रज धाम.....बोलो ॥
बाबा बिना शिरडी वन कैसा
श्याम बिना व्रँदावन कैसा
कैसा गोकुल डाम.....बोलो ॥
अपना प्यारा बाबा साँई
शिरडी का है बाबा साँई
देवी ह्रदय का राम.....बोलो ॥
*
भजन 26 ॥तर्ज= जप मन साँई राम ॥
जप मन साँई राम, सदा साँई राम
साँई राम, साँई राम जप मन साँई राम ॥॥
दिन बीता है खेलत खावत
रैन है बीती सोवत जागत
कबर जपोगे साँई नाम.....जप मन साँई राम ॥
कल ना पडत पत हरी मग जोवत
रैन है बीती अब क्यों सोवत
मानुष देही सुलभ न जान.....जप मन साँई राम ॥
साँसों की सरहद के आगे
सोए भाग्य हमारे जागे
सिमर सिमर पायो सुख धाम....जप मन साँई राम ॥
साँईं सुख का सरवर सारा
पाया जिसने गोता मारा
उससे होवत सारे काम.....जप मन साँई राम ॥
*
भजन 27 ॥तर्ज= मुफाईलुन ॥
मिले जो धूल चरणों की मुझे साँई तो तर जाऊँ॥
तेरी रहमत बिना मौला मेरे साँई किधर जाऊँ ॥
डगर पर मै भटकता हूँ, नहीं सूझे कोई मँजिल
अँधेरा हि अँधेरा है, यही डर है न गिर जाऊँ...बिना रहमत॥
मेरी हर राह में तू ही, उजालों का उजाला है
करो जो राह रौशन गर, वहीं पर मैं सँभळ जाऊँ...बिना रहमत॥
मैं दुख में याद करता हूँ, मैं सुख में भूल जाता हूँ
सदा अपने ही मतलब से, तेरे दर पर चला आऊँ...बिना रहमत॥
*
भजन 28 ॥तर्ज ॥
विनती सुन लो हे कृपाल
दीनन के तुम नाथ क्रपालू ॥
सब कहते तुम करुणा सागर, भर दो मेरी खाली गागर
सूखा तट है मेरे मन का, रहम नजर से नम कर दो ॥
माया की लहरों में जीवन, बे मतलब बे मक्सद जीवन
बीच भँवर में डोल रहा है, भव बँधन से उधर करो ॥
सुन सुन तेरी महिमा गाथा, नत मस्तक अब हुआ है माथा
देवी ओट शरण तेरे है आई, अब तो मुशकिल मेरी हारो ॥
*
भजन 29 ॥तर्ज= तूँ साजन राजन ॥
ओम मौला साँई, ओम बाबा साँई
पीरन के पीर.....ओम मौला साँई॥
तेरे दर पे आई, बनके फकीर..ओम ॥
हाल तू जाने दीन दयालू
कर कृपा हम पर हे क्रपालू
तेरा नाम लेते, टल जाये पीर...ओम ॥
तुम बिन कौन है साँई हमारा
हम बेसहारे तू है सहारा
तुझ बिन कौन बँधाए धीर...ओम ॥
*
भजन 30 तर्ज हे री मैं बहुर कही समझाइ॥
करुणा सुनो हे नाथ हमारी
राख लेहो पत अबकी बारी ॥॥
लोक करत है कीरत निंदा, पावन प्रेम करत हैं गंदा
जब सब सुख छोड जगत के एको
मीठा तेरा नाम लिया....करुणा ॥
एक छोर पर तुम हो नँदन, दूजे पर मै द्रोपद नारी
धीरज का धागा बुन बुन कर
लाज शरम को ढाँप लिया है....करुणा ॥
तेरे कारण जोग लिया, विष के प्याला पीऽऽ लिया
मीरा बन रविदास गुरू से
नाम रतन अनमोल लिया....करुणा ॥
*
भजन 31 ॥तर्ज = राग भैरव ॥
तन का त्याग गुमान रे बंदे
तन का त्याग गुमान
तज झूठा अभिमान रे बंदे
तज झूठा अभिमान रे बंदे ॥॥
विशय विकारों ने भरमाया, माया ने है खूब लुभाया
कर संग तू सँत जनन का, पाले अत्म ग्यान रे बंदे ॥ तज झूठा अभिमान रे बंदे ॥॥
झूठे जग का झूठा नाता, सपना सच जैसा है भाता
यह सपना है जब तक तू है, नींद अँदर गलतान रे बंदे ॥ तज झूठा अभिमान रे बंदे ॥॥
राम नाम का ध्यान लगाले, अपने मन में ज्योत जगाले
अँदर की तू खोलके आँखें, देख तू पुरुष सुजान रे बंदे ॥ तज झूठा अभिमान रे बंदे ॥॥
काशी काबा बन बन भटका, पत्थर पूजा में मन अटका
मन के अँदर झाँक न पाया, जहाँ बसे भगवान रे बंदे ॥ तज झूठा अभिमान रे बंदे ॥॥
*
भजन 32 ॥तर्ज = जप मन साँई राम ॥
करुणा सुनो श्री परम कृपालू
दीनन के हे दीन दयालू ॥॥
परम क्रपालू साँई नाथा, गावत हारी तोरी गाथा
मैं निरगुन गुण तोमे साँई, मोपे अपना हाथ धरो.....करुणा सुनो ॥
तुमरे कारण जोग लिया है, सुख सागर को छोड दिया है
अब तो देदो दान दया का, दुख भँजन दुक दूर करो.....करुणा सुनो ॥
दर्शन के दो प्यासे नैना, उरझे उरझे प्यासे नैना
अब तो नैनन में बस जाओ, या बन आँसू छलक पडो.....करुणा सुनो ॥
*
भजन 33 ॥तर्ज
ओ मेरे साँई ओ मेरे साँई
आन पडी हूँ चरनन तेरे..साँई ॥
तरसे मनवा आकुल व्याकुल
प्यास बुझे हो दरशन तेरे...साई ॥
बरसे अखियाँ भर भर आँसू
बस जाओ तुम नयनन मेरे..साँई ॥
ओ मेरे साँई ओ मेरे साँई , ओ मेरे साँई ओ मेरे साँई
ओ मेरे साँई ओ मेरे साँई , ओ मेरे साँई ओ मेरे साँई
*
भजन 34 ॥तर्ज = मनवा जप ले हरी का नाम ॥
रे मन जाग के जप हरी नाम
मन तू हर हर जप हरि नाम....राम राम राम ॥॥
चढी रहे दिन रात खुमारी
सुध बुध सुरत भुलाकर सारी
पीले नाम का जाम....राम राम राम ॥
जग में कर तू जाप हारी का
सुन मन में आलाप हरी का
तज मन का विश्राम....राम राम राम ॥
साँसों की तू फेर ले माला
राम नाम रस पीले प्याला
सिमरन कर सुबह शाम....राम राम राम ॥
जीवन पूंजी है तू जिसको
करके नींद न खोना इसको
अमुल है देवी नाम....राम राम राम ॥
*
भजन 35 ॥तर्ज = माई रे माई मुँडेर पे तेरे ॥
सतगुरू दाता दुखडे अपने कैसे तुम्हें सुनाऊँ
जानत हो सब जानन हारे क्या मैं तुम्हें बताऊँ ॥॥
पाप की गठडी सिर पर भारी
रात अँधारी कारी कारी
इक गुमराह मुसाफिर हूँ मैं
कैसे मँजिल पाऊँ....जानत हो सब ॥
गफलत में है उम्र गँवाई
बख्श बदी कर माफ मँदाई
कष्ट हरण तुम मेरे करलो
पास मैं किसके जाऊँ....जानत हो सब ॥
सब दुख मेरे तेरे हवाले
तुझ बिन मोहे कौन सँभाले
पल में सब दुख दर्द मिटाओ
तेरी शरण में आऊँ....जानत हो सब ॥
तुम ही हो देवोँ के देवा
देवी देव करत है सेवा
मुझमें कोई गुण न कला है
कैसे तुझे रिझाऊँ....जानत हो सब ॥
*
भजन -36
सतगुरु अब घर आओ
सगरी रैन है जाग बिताई
नैनन में बस जाओ.........सतगुरु अब
जल बिन मीन, पवन बिन अग्नि
शीतल जल बरसाओ...........सतगुरु अब
निरखत तोहे नैन बाँवरे
अब तो दरस दिखाओ ........ सतगुरु अब
भोर बदल कर साँझ हुई है
चाँद सा मुखड़ा दिखाओ........सतगुरु अब
शरण पड़े की लाज लेहो रख
नैया पार लगाओं............सतगुरु अब
सतगुरु अब घर आओ
सगरी रैन है जाग बिताई
नैनन में बस जाओ
*
भजन 37 ॥तर्ज=शत बार कहो रे साँई राम॥
हर साँस सुमर इक नाम,
साँई राम, साँई राम, साँई राम..३
पूरे होंगे सब काम...साँई राम ॥
सुख शाँति के सागर, भर दो मेरी गागर
तर जाऊँ पी पी जाम...साँई राम ॥
दरशन के प्यासे नैन, मिलता है न उनको चैन
इक झलक दिखा मेरे राम...साँई राम ॥
मन मोहक रूप तेरा, व्याकुल तन मन मेरा
बेमुल है इसका दाम....साँई राम ॥
*
भजन 38 ॥तर्ज =राम रहीम तुम हो ॥
राम रहीम करीम तुम्ही हो,
तुम्ही हो कृष्ण सुजान, राधे श्याम, राधे श्याम
राम रहीम करीम तुम्ही हो
सभी तुम्हारे नाम...दादा श्याम, दादा श्याम ॥
तुम्ही हो गीता, ग्रँथ तुम्ही हो
तुम्ही हो वेऽऽऽद पुराण...दादा श्याम, दादा श्याम ॥
धर्म, अधर्म के युध में अर्जुन
राम तुम्ही रहमान...दादा श्याम, दादा श्याम ॥
आदि सच अनादी सच हो
सच से सारे काम....दादा श्याम, दादा श्याम ॥
*
भजन 39 ॥तर्ज = राग माँड ॥
पल पल तेरी याद सताए, बतियां तेरी भूल न पाए
कोयल खकी कू कू सी मीठी
बँसी की आवाज बुलाए ॥॥
कृष्णमुरारी मथुरा वासी, मैं तो तेरे प्रेम की प्यासी
निसदिन रहती मैं भी उदासी
महलों में मोहे नींद न आवे....पल पल ॥
मुरली पे वो तान बजाए, मधुर मधुर आवाज बुलाए
झुम झूम हर मथुरा वासी
मस्त मगन हो नाचे गाए....पल पल ॥
रात को बैठी राधा रोए, नाम तेरे की माला पोए
दरशन की ये प्यासी अखियाँ
बैठी राह में नैन बिछाए....पल पल ॥
*
भजन 40 ॥तर्ज = ओ रसना जप नाम ॥
ओ रसना जप नाऽऽम,
नाम जपन क्यौं छोड दिया री
बीती जाए उमरुया.........ओ रसना ॥॥
जीवन झूठा सच सा लागे
मरना सच है सच ना लागे
जानत है हार कोइ री....ओ रसना ॥
तन झूठा ये काया झूठी
आनी जानी माया झूठी
सच से नाता जोड री.....ओ रसना ॥
काळ खडा है ऊपर तेरे
करम करो यूँ आवे न नेरे
पाछे काहे रोइ री......ओ रसना ॥
जाग री देवी अब क्यों रोए
जनम अमोलक क्यों तू खोए
पाँव पसार न सोइ री.....ओ रसना ॥
*
भजन 41 ॥तर्ज = दया कर दयालू ॥
दया कर दयालू दयावान साँई
नाथ निरँजन निगहबान साँई....दया कर॥
गुनाहों की दलदल यहाँ पर है भारी
मगर जी रहा हूँ दया पर तुम्हारी
नजर ना फिराना मेहरबान साँई....दया कर॥
बडी दूर से मै चला अ रहा हूँ
कडी धूप में मैं चला आ रहा हूँ
चरण में बिठाना मेहरबान साँई....दया कर॥
पड़ी गफलतों में रही देवी सोती
न कुछ देख पाई नजर में है मोती
नजारा दिखाना मेहरबान साँई....दया कर॥
*
भजन 42 ॥तर्ज = राग केदार ॥
साँस की पूँजी नहीं टक्साल ये है
खरचो सोच सँभार......
भवसागर सँसार ये है
भरमों का ये सार.. साँसों कि पूँजी ॥
मन मँदिर है तन है झूला
भटक भटक कर क्यों है भूला
थिर तन बैठ विचाऽऽर...साँसों कि पूँजी ॥
अँदर अपने निज घर जाओ
थिर तन करके मोती पाओ
तेरा तुझपे भाऽऽर...साँसों कि पूँजी ॥
पूजे देवी देव है कितने
अनगिन फलक पे तारे जितने
करले एको आधाऽऽर....साँसों कि पूँजी ॥
भजन 43
तुम्हारा दर मेरे स्वामी मैं छोडूँ तो किधर जाऊँ ?
न अपना है यहाँ कोई, कहो मालिक किधर जाऊँ ?
तुम्ही आधार हो मेरे, सखा बंधू तुम्ही मेरे
मेरे प्राणों के हो आधार, रहो सर्वर तुम्ही मेरे
तुम ही नैया खिवैया तुम, किनारा भी तुम्हें पाऊँ
न कोई है यहाँ अपना, कहो मालिक किधर जाऊँ..तुम्हारा दर
है माया मोहिनी हर पल सदा उसको ही मैं चाहूँ
तुम्हें जो याद करता है कहाँ से मैं वो दिल लाऊँ
रहे चरनन में मन मेरा कहाँ से प्रीत वो लाऊँ
न कोई है यहाँ अपना कहो मालिक किधर जाऊँ...तुम्हारा दर
न कोई और मैं जानूं, न कोई और मैं पूजूं
तुम्हारे दर से जो चाहूं, जो मांगू, मैं वही पाऊँ
ठिकाना है मिला अब तो सदा तेरे ही गुण गाऊँ
न कोई है यहाँ अपना कहो मालिक किधर जाऊँ...तुम्हारा दर
*
भजन 44 ॥तर्ज =हे गोविंद हे गोपाल ॥
हे कृपाल हे दयाल
हे कृपाल लाऽऽऽऽल ॥॥
दीनन के तुम नाथ हो
नाथन के तुम नाऽऽऽथ....हे कृपाल ॥
साँसों के तुम साज हो
साज की आवाऽऽऽज.... ....हे कृपाल ॥
आशाओं के दीप हो
उजियारे के नाऽऽऽद.... ....हे कृपाल ॥
भय अभय निर्भय तमेव
हर विकाऽऽऽर के पार.... ....हे कृपाल ॥
*
भजन 45 ॥तर्ज = राग मालकौंस ॥
रैन दिवस मन सुमरो नाम,
हरी बिन और न आवै काम ॥॥
चरण कमल धर प्यारे मन से
प्रीत करो चित लायो राम....रैन दिवस ॥
बीता पल जो बीत गया जो
आवन लागी जीवन शाम....रैन दिवस ॥
साँस साँस सिमरो रे मनवा
रहना नहीं है जाना धाम....रैन दिवस ॥
**
भजन- 46
साँई साईं भजन तू गा ले रे, ओ भोले प्राणी
नाम रतन धन पाले रे, ओ भोले प्राणी ॥॥
यह संसार सपन माया है
झूठी जग की हर छाया है
सच से प्रीत लगाले रे.....ओ भोले प्राणी ॥
चार दिनों का जीवन तेरा
क्या करता है मेरे मेरा
निज डन को तू पाले रे....ओ भोले प्राणी ॥
नारायन है नाम हरी का
धर मन में तू ध्यान उसीका
प्रेम की ज्योत जगाले रे....ओ भोले प्राणी ॥
साँई नाम है अम्रत झरना
पीले प्यारे देर न करना
मन की प्यास बुझाले रे...ओ भोले प्राणी ॥
*
भजन 47
ओ मन जाग के जप हरी नाम,
नाम बिना नहीं आराम....राम,राम,राम॥
जीवन रूपी सागर से तू
नाम की भरले गागर रे तू
पीले नाम का जाऽऽऽम....राम,राम,राम॥
इस जीवन में आकर के तुमने
मानुष देही पाकर तुमने
किया न कोई काऽऽऽम....राम,राम,राम॥
मन पँछी पिंजरा यह तन है
साँसें ही बस जीवन धन है
उडना अपने धाऽऽऽम....राम,राम,राम॥
राम,राम,राम, राम,राम,श्याम
श्याम श्याम श्याम, राधे राधे श्याम
राधे राधे श्याम, श्याम श्याम श्याम ॥
*
भजन 48 ॥तर्ज=कळावती ॥
मनमत मूरख करम कमाओ
हीरा जनम न यूँ ही गवाँओ ॥
दिन अँधियारा रात भी कारी
सपनों की नगरी ये सारी
नैनन ज्योत जगाओ..मनमत ॥
सपनों को सच मान न मूरख
दुनियाँ है परछाई मूरख
उसको पकड न पाओ..मनमत॥
काम क्रोध मध लोभ मोह लुटेरे
पाँच विकाऽऽऽर सयाने लूटे
खुद को डेवी बचाओ...मनमत॥
भजन बिना बिरथा सब साँसें
कूड कमाया कूड कमाया
सिमर सिमर सुख पाओ..मनमत॥
*
भजन 49 ॥तर्ज= गोविंद के गुण ॥
साँईं के गुण गाले रेऽऽ ओ भोले प्राणी....॥
राम रतन धन पाले रे..ओ ॥॥
माया मोह से मन को हटाले, पाप करम से खुद को बचाले
सच से मन को लगाले रे...॥
दुख सुख दोनों रूप है मन के, शाँत स्वरूप तू धर ले मन में
मन से मन को मनाले रे...॥
झूठी दुनियाँ झूठा जीवन, झुठ कपट से भटका ये मन
सच को तू अपना ले रे...॥
*
भजन 50 ॥तर्ज= ऐ मेरे दिले नादाँ॥
आए हैं शरण तेरी, ले फूल श्रधा के हम
के याद दया तेरी मेरी आँख हुई है नम ॥
सुनते थे सभी से हम तुम दीन दयालू हो
मैने भी ये माना है तुम परम कृपालू हो
ले आस मै इक मन में, दर पे आया भगवन॥
श्रधा विश्वास ही क्या ईमान भी डोल रहा
है तेज हवा आँधी मैं बुझता एक दिया
डगमड है डोल रही नैया और मेरा मन ॥
नतमस्तक होकर ही पाते है सब तुमसे
क्या भूल हुई मालिक जो दूर हुए मुझसे
कर जोडके माँगूं मैं तेरी रहमत और करम॥
*
भजन -51
तू ही मेरा चारागार
सच्चा सतगुरु तू करतार
पढ़ते पढ़ते उम्र गवाई
समझ न पाई गीता सार....सच्चा सतगुरु तू करतार
तू ही पिता तू माता मेरी
तू ही बंधू तू ही परिवार...सच्चा सतगुरु तू करतार
तेरे भरोसे तेरे हवाले
तू ही तू मेरी सरकार...सच्चा सतगुरु तू करतार
नैया मेरी बहुत पुरानी
कर कृपा तू कर दे पार....सच्चा सतगुरु तू करतार
नादां देवी तुझसे मांगे
एको तेरा नाम आधार...सच्चा सतगुरु तू करतार
तू ही मेरा चारागार
सच्चा सतगुरु तू करतार
देवी नागरानी
भजन -52
ख़ुशी लेकर जहाँ में तुम, ख़ुशी दोगे, रहोगे खुश
महक से उसकी तुम जीवन सजाओगे, रहोगे खुश
न घाटे का करो सौदा, जो दोगे तुम वो पाओगे
सचा सौदा जहाँ में तुम कमाओगे, रहोगे खुश
महक से उसकी तुम जीवन सजाओगे, रहोगे खुश
जहाँ पर बीज नफ़रत के सदा बोती रहे दुनिया
वहीँ तुम प्यार का पौधा उगाओगे, रहोगे खुश
महक से उसकी तुम जीवन सजाओगे, रहोगे खुश
अगर आंसू छलकते हैं. उन्हें रोको उन्हें बाँधो
उन्हें अपनी ही पलकों में सजाओगे, रहोगे खुश
महक से उसकी तुम जीवन सजाओगे, रहोगे खुश
जहाँ में जो भी ढूँढोगे, वही पाओगे सच जानो
बुरे-अच्छे का अंतर जो मिटाओगे, रहोगे खुश
महक से उसकी तुम जीवन सजाओगे, रहोगे खुश
*
भजन -53
सतगुरु अब घर आओ
सारी रैन है जाग बिताई
नैनन में बस जाओ.......सतगुरु अब
जल बिन मीन, पवन बिन अग्नि
शीतल जल बरसाओ......सतगुरु अब
निरखत तोहे नैन बाँवरे
अब तो दरस दिखाओ .....सतगुरु अब
भोर बदल कर साँझ हुई है
चाँद सा मुखड़ा दिखाओ.....सतगुरु अब
शरण पड़े की लाज रखो तुम
नैया पार लगाओ......सतगुरु अब
सतगुरु अब घर आओ
सारी रैन है जाग बिताई
नैनन में बस जाओ
*
भजन -54 ||तर्ज़: सीने में सुलगते हैं||
संसार समंदर सींप ये मन, अंदर इसके इक मोती है
गहरा जितना जो डूब गया, टकसाल उसीकी होती है
क्यों गाफिल सच से है इतनी,
है झूठ में गुमसुम तू कितनी
है फ़स्ल पुरानी बाकी, फिर
क्यों बीज नए अब बोती है.... संसार समंदर सींप ये मन
तू दिन भर सोई रात ढले
होती है सुबह जब आँख खुले
सोती है तू जब संग तेरे
किस्मत भी तेरी सोती है.... संसार समंदर सींप ये मन
शैतान जहाँ भगवान् वहाँ
ढूँढें उसको इंसान कहाँ
वो दूर नहीं देवी तुझसे
नैनो में बसी वह ज्योति है…. संसार समंदर सींप ये मन
संसार समंदर सींप ये मन, अंदर इसके इक मोती है
गहरा जितना जो डूब गया, टकसाल उसीकी होती है
देवी नागरानी
*
भजन -55
मिट्टी को समझे सोना है
पूँजी खोकर फिर रोना है
जिस डाली पर आप खड़े हो
काट उसे फिर क्या रोना है...मिट्टी को
क़र्ज़ है बाकी पहले का भी
बीज नया फिर क्यों बोना है...मिट्टी को
दाग़ लगे हैं दामन पर जो
जीते जी उनको भी धोना है... मिट्टी को
बस गयी दुनिया मन में ऐसे
साहिल पे अब कैसा रोना...मिट्टी को
पाँचों विकार है लुटे पल पल
ग़फलत में जीवन खोना है...मिट्टी को
बहुत है बीती, बाक़ी थोड़ी
क्या पाना क्या खोना है...मिट्टी को
भजन -56
चला है किधर तू, कहाँ तुझको जाना
ख़बर क्या तुझे दूर कितन ठिकाना
नहीं कोई साथी, यहाँ तू अकेला
तुझे घेरे तनहाइयों का है मेला
इसी शोर-गुल में भटकता फिरे क्यों
जहाँ लुट गया फिर, वहां क्या है जाना
चला है किधर तू, कहाँ तुझको जाना.
सुनो आहटों को जो भीतर से आतीं
करे दिल को रौशन, दिए बिन वो बाती
बदल दे तू जीवन की बहती यह धरा
जहाँ लौट कर ज़िन्दगी को है जाना
चला है किधर तू, कहाँ तुझको जाना
ये अनमोल दौलत है सांसों की देवी
न नादान बनकर तू खोना वो सारी
जो मक़्सद तू लेकर जहाँ में है आई
कहीं भूल कर भी उसे ना भुलाना
चला है किधर तू, कहाँ तुझको जाना
*
भजन 57 ॥तर्ज=ज़िंदगी की राह पर ॥
दर दुआओं के अगर जाके सर को झुकाओगे
जाने क्या क्या पाओगे...॥
सर झुकाकर बँदगी में, प्रेम से गर जाओगे
जाने क्या क्ता पाओगे.॥ कम्पलीट
*
भजन 58
आँनंद दीजे आंनद दीजे
आँनंद दाता आंनद दीजे ॥॥
सत चित आँनंद रूप तुम्हारा
कर क्रपा प्रभू दरशन दीजे..आँनंद दाता ॥
दीन दयाल क्रपाल तुम्ही हो
अपनी शरन में साँई लीजे..आँनंद दाता ॥
जीवन रूपी सागर में प्रभू
नैया मेरी पार कारीजे....आँनंद दाता ॥
देवन के देवा तुम नाथा
चरणों में प्रभू चाकर कीजे....आँनंद दाता ॥
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भजन -59 ||तर्ज़-राग केदार -सोच समझ||
जीवन की अंधियारी राहें, पास खड़ी फैलाकर बाहें
मन में तुम विश्वास जगाकर, प्रेम का दीप जलाना रे...
1 जीवन के पथ पर पल पल चल
मन में व्याकुलता हो हलचल
सच की राह पे पाँव बढाकर
प्रेम का दीप जलाना रे....
१. प्रेम ही भक्ति, प्रेम ही शक्ति
प्रेम की ज्योत जलाना मन रे
नफरत के वो बीज मिटाकर..
प्रेम का दीप जलाना रे....
२.मन में लौ विश्वास की धरना
उसमें तेल श्रद्धा का भरना
करना दूर अज्ञान जलाकर
प्रेम का दीप जलाना रे....
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भजन 60 ॥तर्ज = राग यमन ॥
रहमत तेरी अपारऽऽऽऽदाता
रखकर अस तेरे दर आई
सुन तू मेरी पुकार......दाता....
बिरिथा मन की किससे कहूँ मैं
दर्द मैं दिल का किससे कहूँ मै
तू मेरा गमखार.........दाता ....
महिमा तेरी क्या गाऊँ मैं
चरणों में मैं शीश झुकाऊँ
तुझपे मैं बलहार........दाता ....
देवी दर तेरे की दासी
तेरे दरशन की है प्यासी
आकर दे दीदार.........दाता ....
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भजन 61 ॥तर्ज=तुम्हारा दर मेरे साँई॥
खुशी दो गर तो खुश रहना, जो गम दो तो वही सहना
मुझे जैसा चलाओगे, तेरी मर्जी पे खुश रहना....खुशी दो गर ॥
तुम्ही हो शाह शाहों के, सदा देते रहे सांई
जो दोगे कुछ तो ले लेना, न दोगे तो न कुछ कहना...मुझे जैसा ॥
भला कमजोर का क्या जोर, तेरे जोर पर साँई
तेरी ताकत के आगे तो, मेरे बस में है बस झुकना...मुझे जैसा ॥
निवाजा औरों को साँई, निवाजिश हम पे भी करना
है सजदे में झुकाया सर, उसीकी लाज अब रखना...मुझे जैसा ॥
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भजन 62 ॥तर्ज =सीने में सुलगते हैं॥
॥प्रभू वफा की नजम का अनुवाद॥
इन्सान की दिल अँबर भी है
ये ही गहरा सागर भी है |
इसमें बिजली बादल भी है
इसमें मुगरे मोती भी है..इन्सान ॥
ये दिल है कोमल फूलों सी
छू लेने से मुरझाती है
रोए तो बहाए यह दरिया
रोके तो ये पत्थर भी है..इन्सान ॥
दिल बेहूदी बाजार भी है
ये दिल पापों का घर भी है
दिल के अँदर मँदिर भी है
इसमें इक स्वर्ग का दर भी है..इन्सान ॥
दिल दाम पे बिकता रहता है
ये भेद न पाएगा कोई
ये अदभुत कैसा पँछी है
परवाज करा बे पर भी है..इन्सान ॥
मुँह के तो मलूक वफा कितने
दिल से जिनके न दगा निकली
सुँदर सूरत है जो सुँदर
बाहर भी है अँदर भी है..इन्सान ॥
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भजन 63 ॥तर्ज=मन मँदिर में आओ ॥
सिमरन कर क्यों पूँजी खोवै
स्वासन की माला......॥॥
साथ न कोई, सँग न कोई
आया अकेला यहाँ
उम्र है बीती, चेते ना क्यों
रैन बसेरा यहाँ....सिमरण ॥
मन का अँधेरा घूप है घना है
कोई नहीं है तेरा
जाग जाग तू देर भई है
अब क्या रहना यहाँ...सिमरण ॥
रैन दिवस आवे और जावै
उमरीया बीती जाये
यूँ ना जागा क्यों कर बँदे
सोया पडा तू यहाँ....सिमरण ॥
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भजन 64 ॥तर्ज=भैरवी ॥
पिँजरे की मैना बोल राम राम
रहना नहीं यहाँ जाना है अपने धाम॥
क्यों फेरे माला वहाँ
थिर न हो मन ही जहाँ
खुले नैन ही जीते जी
यूँ पियो अम्रत जाम..राम ॥
सँगी तेरा कोई नहीं
स्वार्थ के सब लोग
चार पहर के संगी तेरे
आए न कोई काम..राम ॥
जनम मरण को याद करके
भूल तू झूठे काम
सच का सौदा कर के मैना
दे मन को विश्राम..राम ॥
काळ कराळ खडा है ऊपर
क्यों है आँखे मींचे
जाग के मूरख अब तो जपले
राम राम राम ही राम..राम ॥
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भजन -65
आई बरिया आई, जागन की है आई
सगरी रैन क्यों सोय गँवाई.
काहे न समझत बतिया प्राणी
आनी-जानी दुनिया फानी
संत कहे समझाई......जागन की है आई
करम हीन हो करम कमाया
दुनिया में सब मूल गँवाया
हीरा जनम गवाई ........जागन की है आई
तेरे अंदर माणिक मोती
नैनन बीच जगे इक ज्योति
देह अमोलक पाई........जागन की है आई
मन मूरख क्यों पाप कमाया
पाप कमाकर आप गँवाया
सुध-बुध सब बिसराई......जागन की है आई
आई बरिया आई, सगरी रैन क्यों सोय गँवाई
भजन -66
तू ही मेरा पालनहार , सच्चा सतगुरु तू करतार
पढ़ते पढ़ते उम्र गँवाई, समझ न पाई गीता सार
सच्चा सतगुरु तू करतार
तू ही पिता तू माता मेरी
तू ही बंधु तू ही परिवार...सच्चा सतगुरु तू करतार
तेरे भरोसे तेरे हवाले
तू ही तू मेरी सरकार...सच्चा सतगुरु तू करतार
नैया मेरी बहुत पुरानी
अब तू पार उतार....सच्चा सतगुरु तू करतार
नादां देवी तुझसे माँगे
सच्चा नाम अधार...सच्चा सतगुरु तू करतार
तू ही मेरा पालनहार, सच्चा सतगुरु तू करतार
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भजन 67 ॥तर्ज =जिंदगी की राह पर॥
जिंदगी की राह पर, दौडकर थक जाऊं मैं
पास तेरे आऊं मैं. पास तेरे ॥
दीन बंधू नाथ मेरे, दुख में जब घबराऊं मैं
ध्यान तेरा ध्याऊ मैं, ध्यान तेरा॥ ॥
ये भी मांगू वो भी मांगू, दिल की ये हालत बनी
ये भी चाहूं वो भी चाहूं, दिल की ये हालत बनी
पर कभी पाकर न पाऊं, खुद से ही झुंझलाऊं मैं...पास तेरे॥
हर तमन्ना दिल मेँ दाखिल, दिल कि खाइश नित नईं
राहतों में भी न राहत, राह में मैं लुट गई
राह में रहबर मिले गर, हाल दिल बतलाऊं मैं...पास तेरे॥
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भजन 68 ॥तर्ज: राग केदार ||
ओ मेरे साँई ओ मेरे साँई
आन पडी हूँ चरनन तेरे..साँई ॥
तरसे मनवा आकुल व्याकुल
प्यास बुझे हो दरशन तेरे...साई ॥
बरसे अखियाँ भर भर आँसू
बस जाओ तुम नयनन मेरे..साँई ॥
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लेखिका परिचय
देवी नागरानी जन्म: 1941 कराची, सिंध (तब भारत) , हिन्दी, सिंधी तथा अंग्रेज़ी में समान अधिकार लेखन, हिन्दी- सिंधी में परस्पर अनुवाद। 8 ग़ज़ल-व काव्य-संग्रह, एक अंग्रेज़ी काव्य-The Journey, 2 भजन-संग्रह, ४ कहानी संग्रह, २ हिंदी से सिंधी अनुदित कहानी संग्रह, 8 सिंधी से हिंदी अनुदित कहानी-संग्रह प्रकाशित। अत्तिया दाऊद, व् रूमी का सिंधी अनुवाद.(२०१६), श्री नरेन्द्र मोदी के काव्य संग्रह ‘आंख ये धन्य है का सिन्धी अनुवाद(२०१७), चौथी कूट (साहित्य अकादमी प्रकाशन), NJ, NY, OSLO, तमिलनाडू, कर्नाटक-धारवाड़, रायपुर, जोधपुर, महाराष्ट्र अकादमी, केरल, सागर व अन्य संस्थाओं से सम्मानित। साहित्य अकादमी / राष्ट्रीय सिंधी विकास परिषद से पुरुसकृत।
dnangrani@gmail.com
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