प्राची - सितम्बर 2018 - कहानी // यशोदा // प्रभात दुबे

SHARE:

दि सम्बर की सुबह थी. अभी सात बजे थे. आकाश पर बादल छाये हुए थे. तेज ठण्डी हवायें चल रही थीं. उसी समय इंदिरा गांधी हवाई अड्डे के टर्मिनल-3 में...

दिसम्बर की सुबह थी. अभी सात बजे थे. आकाश पर बादल छाये हुए थे. तेज ठण्डी हवायें चल रही थीं.

उसी समय इंदिरा गांधी हवाई अड्डे के टर्मिनल-3 में एक अमेरिकन एअरवेज का जहाज उतरा. उसमें एक यात्री सवार था. उसका नाम था डाक्टर मयंक तिवारी, उम्र लगभग 33-34 साल, गौरवर्ण चेहरा... आंखों पर सोने की फ्रेम का चश्मा लगाये धीरे-धीरे कुछ सोचता हुआ वह नीचे उतरा। पन्द्रह मिनिट की औपचारिकताओं को पूरी कर वह सीधे हवाई अड्डे से बाहर निकला.

बाहर निकलकर उसने प्री पेड टैक्सी बूथ से एक टैक्सी बुक की. टैक्सी में बैठते हुए उसने कहा-

"गगन विहार चलो," टैक्सी ने एक मामूली सा झटका लिया और तेज रफ्तार से पश्चिम दिल्ली की कालोनी गगन विहार की ओर दौड़ने लगी.

मयंक इस समय केवल अपनी मां के ही संबंध में सोच रहा था. दुनिया कितनी तेजी से बदल रही है। वक्त की कड़ी

धूप में, हर रिश्ता बेमानी लग रहा है, परन्तु मां आज भी वही है. बचपन वाली मां, उसका प्यार ममता स्नेह जरा भी नहीं बदला। आज भी जब वह कभी उससे फोन पर बात करती है तो लगता है वह अभी भी पांच साल का बच्चा है उसके सामने.. कितने सवाल, कितनी नसीहतें, कितनी चिंता करती है मां, मां तो वह भी सुन लेती है जो मैं उससे कभी नहीं कहता, कितना प्यारा संबंध होता है मां-बेटे का.

यह सोचते सोचते उसने अपनी आंखों में नमी सी महसूस की.

[post_ads]

अचानक उसका हाथ कमीज के भीतर सीने पर लटकी ताबीज से जा टकराया. यह ताबीज लगभग बीस साल तक उसके गले में लटकी रही. फिर जब कपड़ा पुराना हो गया और फटने लगा तो उस ताबीज को उसकी मां यशोदा ने सोने से मढ़वा कर फिर उसके गले में डलवा दिया था.

उसे अच्छी तरह से याद है कि उसी बरस उसने मेडिकल बोर्ड से अव्वल दर्जे में परीक्षा पास की थी और उसके नाम के आगे डाक्टर शब्द का उपयोग किया जाने वाला था. वह यह कैसे भूल सकता है कि उसने अपनी मां यशोदा के सामने एक नई डायरी का पृष्ठ खोलते हुए कहा था, "मां, मैं चाहता हूं कि तुम दुनिया में मेरे नाम के आगे सबसे पहले डॉक्टर शब्द लिखो, क्योंकि यह डॉक्टर शब्द की प्राप्ति तुम्हारे उन प्रयासों से ही मुझे मिली है जो केवल तुम ही कर सकती थी, और कोई नहीं."

मां की आंखें छलछला आई थीं. उन्होंने अपने पति की ओर देखा तो उन्होंने सहमति से सिर हिलाया, तब कहीं जाकर सामने रखी हुई डायरी में खुशी से कांपते हुए हाथों से उन्होंने पहली बार लिखा था- "डॉक्टर मयंक तिवारी।"

यह लिख कर अचानक उनके कांपते हुए ओठों से एक आह निकली थी और उस आह के साथ एक शब्द भी निकला था ‘काश’ और बाकी शब्द इतने धीरे से बोले गये थे कि वह सुन कर भी नहीं सुन पाया था.

मां ने जैसे ही डायरी बंद कर मयंक की ओर बढ़ाई तो वह मां के कदमों में झुका और झुके-झुके ही उसने आर्शीवाद के रूप में अपनी पीठ पर अपनी मां के दोनों हाथों का स्पर्श का अनुभव किया था. किन्तु इस घटना के पांच साल बाद भी आह के साथ निकले इस काश शब्द का अर्थ वह आज तक नहीं समझ पाया और न ही इस शब्द को भूल पाया है .

वैसे तो मयंक बहुत सी बातें नहीं भूल पाया है, जैसे मां का सोचते-सोचते अचानक कहीं गुम हो जाना. मां, जब भी उससे मिलती थी तो हमेशा उसके सिर से हाथ फेरते हुए, वह दोनों हाथों को नीचे सीने पर लाकर, इस ताबीज को थाम लेती थी. मयंक अमेरिका में भी सोचता रहता था कि इस ताबीज में ऐसा क्या है कि मां, हमेशा इस ताबीज की ओर देखती ही दिखाई देती है. मयंक को हमेशा यह लगता था कि उसके मां-बाप के बीच में उसे लेकर कुछ न कुछ है जरूर, वरना वे अक्सर उसे देख कर बात करते करते चुप क्यों हो जाया करते हैं.

सोचते-सोचते मयंक ने टैक्सी के बाहर खिड़की से देखा. टैक्सी, गगन बिहार के उस पार्क के सामने जा पहुंची थी, जहां वह खेलते हुए जवान हुआ था. अचानक ड्राइवर ने कहा- "सर, बंगला नंबर बतायेंगे क्या?"

"तुम ऐसा करो, सामने वाली गली के तीसरे नंबर के मकान के सामने टैक्सी रोक दो."

[post_ads_2]

पार्क से ही गली में बना हुआ वह दो मंजिला भव्य मकान अलग से दिखाई दे रहा था. टैक्सी मकान के सामने ठहर गई. उसने कमीज की जेब से पर्स निकाल कर टैक्सी का किराया दिया और मकान के बाहर लगी हुई कॉलबेल पर अपनी उंगली रख दी. कुछ देर बाद मकान से घर का नौकर रामू बाहर निकला. जैसे ही उसने मयंक को देखा तो दौड़ कर बंद दरवाजे के ताले को खोलकर एक ओर हट गया.

उसने दोनों हाथों से पहले तो मयंक को प्रणाम किया और उसके हाथ से बैग लेकर जाने लगा तो मयंक ने पूछा, "कैसे हो रामू?"

"आपकी कृपा है छोटे मालिक," रामू ने बहुत ही विनम्रता से कहा.

"मां कहां पर हैं"

"अपने कमरे में ही हैं."

मयंक दौड़ कर मां के कमरे में पहुंचा. मां बिस्तर पर लेटी हुई थीं. मां ने जैसे ही मयंक को देखा तो उन्होंने पूरी ताकत लगा कर उठने का प्रयास किया, किन्तु अत्यधिक कमजोर होने के कारण वह बिस्तर से उठ न सकीं. मयंक ने मां के पास पलंग पर ही बैठ कर उसके दोनों पैर पकड़ लिये और कहा- "क्या मां तुम भी बस, कैसी हालत बना रखी है अपनी. तुम अगर बीमार थी तो क्या इसकी खबर फोन से मुझे नहीं दे सकती थी."

मयंक ने मां के हाथ की नब्ज को ढूंढ़ा. नब्ज बहुत ही

धीरे-धीरे चल रही थी. उसने तत्काल रामू को आवाज दी और अपना बैग मंगवाया. उसने बैग से निकाल कर तत्काल मां को एक इंजेक्शन लगाया, दो चम्मच दवा पिलाई और एक कागज पर जल्दी-जल्दी कुछ दवाइयां और इंजेक्शन लिखे और रामू को कागज देते हुए कहा- "जल्दी जाओ, यह दवाइयां लेकर आओ." कहते हुए, उसने बिना गिनती किये हुए ही, पर्स से बहुत सारे रुपये निकाल कर रामू को थमा दिये।

मां ने टूटती हुई आवाज में कहा- "बेटे मयंक बिना किसी खबर के अचानक कैसे चला आया? इतनी दूर से?"

"मां, तुम्हें लेने के लिये आया हूं. चल मां अब हम अमेरिका में ही एक साथ रहेंगे. यह तो अच्छा हुआ कि रामू ने तुम्हारे मना करने के बाद भी मुझे फोन कर दिया, नहीं तो मुझे पता ही नहीं चलता कि तुम बीमार हो."

मां ने टूटती हुई आवाज में कहा- "मयंक, अच्छा हुआ तू आ गया बेटे! मुझे न मालूम ऐसा क्यूं लगता है कि अब मेरी सांसों का हिसाब होने वाला है. मेरा अंतिम समय काफी नजदीक है. वैसे भी तेरे पिता के जाने के बाद, मेरे जीने की लालसा,

धीरे-धीरे समाप्त हो रही है."

मयंक ने मां के चेहरे को गौर से देखा. मां की नजर आज भी उसके सीने पर आकर अटक हुई थी. उसने कमीज का बटन खोल कर ताबीज निकालते हुए कहा- "मां, आज भी तुम्हारा बेटा, तुम्हारी पहनाई हुई ताबीज, अपने सीने से लगाये हुए है."

"हां बेटे, इसे हमेशा पहने रहा करो, लेकिन यह ताबीज मैंने नहीं, तुम्हारी मां ने पहनाई है. यह ताबीज नहीं, उसका आर्शीवाद और उसकी अंतिम निशानी है."

कहते-कहते हुए उसकी आवाज भर्रा गयी.

"यह क्या कह रही हो मां? क्या तुम नहीं हो मेरी मां? कह दो मां यह सब झूठ है, नहीं-नहीं यह सब गलत है. तुम ही मेरी मां हो." मयंक ने एक सांस में कई सवाल कर डाले .

"नहीं, बेटे यह सच नहीं है। मैं तुम्हें जन्म देनेवाली देवकी जैसी भाग्यवान स्त्री नहीं हूं, मैं तो तुम्हें पालने वाली यशोदा हूं. मैं नाम से ही यशोदा नहीं, कर्म से भी यशोदा हूं. मैं अब जिन्दगी की इस संध्या में तुमसे कुछ नहीं छिपाऊंगी."

मयंक की आंखों में आई आसुंओं की बाढ़ को, अपने कांपते हाथों से, साड़ी के आंचल से साफ करते हुए यशोदा ने मयंक का दाहिना हाथ अपने दोनों हाथों में लेकर, उसे अपने सीने पर रख कर कहना प्रारंभ किया- "बेटे, मुझे वो रात आज भी अच्छी तरह याद है, जब नीले गगन में एक साथ ही न जाने कितने बादलों का समूह घिर आया था. आसमान पर चमकते हुए चांद सितारों को मानो किसी ने चादर से ढंक लिया हो. शीतल चांदनी का स्थान कालिमा से भरी रात ले चुकी थी.चारों ओर अन्धकार का साम्राज्य छाया हुआ था. इसी समय वायु का एक तेज झोंका आया अैार इस झोंके के साथ, जाने कितनी ही बूंदें उमड़ पड़ीं और देखते ही देखते ही तेज बारिश होने लगी.

"मेरे पति राकेश ने कार के एक्सीलेटर पर पैर का दबाव बढाया तो कार झांसी-दिल्ली मार्ग पर तेजी से दिल्ली की ओर अस्सी किलोमीटर की रफ्तार से बढने लगी. कार के सामने के हिस्से में लगा वाइपर तेजी से पानी की बूदों को साफ करने का प्रयास कर रहा था, किन्तु बूंदों का प्रवाह बहुत तेज था. बहुत देर तक मैं वाईपर और कांच पर गिरती बूंदों का संद्यर्ष देखती रही.

"अचानक आकाश में बादलों के बीच में एक तेज गर्जना के साथ बिजली कौधी तो मैंने घबरा कर राकेश से कहा- "इतनी भी जल्दी क्या है राकेश? न हो तो इस अनवरत बारिश के बीच हम कहीं कुछ देर के लिये ठहर जाते हैं. न जाने क्यूं, मेरा जी घबरा रहा है. इतनी तेज बारिश में इतनी तेज कार चलाना खतरे से खाली नहीं है."

"तुम, क्यों परेशान हो रही हो. कुछ किलोमीटर का और सफर बचा है. हम आगरा से काफी दूर निकल आये हैं. इस बारिश से मुक्ति के लिये जल्द से जल्द घर पहुंचना बहुत जरूरी है. दूर-दूर तक कहीं भी कोई रुकने का स्थान भी तो नहीं दिखाई दे रहा है."

हम दोनों कुछ समय के लिये खामोश हो गये. फिर राकेश ने चुप्पी तोडते हुए कहा- "यशोदा, यदि बीच सड़क पर ट्रक और कार की भिड़ंत होने से जाम न लगता तो शायद हम अभी तक घर पहुंच चुके होते. अनावश्यक यह तीन-चार घण्टे यूं ही बर्बाद हो गये."

राकेश झांसी से मुझे अपने साथ लेकर दिल्ली लौट रहे थे. बारिश का रुकना तो दूर रहा, वह और तेज होती जा रही थी। पानी की तेज बौछारों के बीच कार की हेडलाइट भी उतनी ज्यादा रोशनी नहीं दे रही थी, जितनी कि हमें आवश्यक थी. चारों ओर पानी ही पानी था. राजमार्ग पर तेज बारिश के कारण आवागमन कम हो गया था. सड़क पर इक्का-दुक्का कभी ट्रक या कार दिखाई दे जाते थे. वे भी बहुत ही धीमी रफ्तार से कार चला रहे थे. मेरे और उनके चेहरे पर इस बारिश के प्रति बढ़ती झुंझलाहट अलग से देखी जा सकती थी. तभी राकेश को कार से कुछ दूरी पर सड़क के बीच में एक सफेद बिंदु सा दिखाई दिया. जो धीरे-धीरे बड़ा आकार लेता जा रहा था. वे इस बिन्दु के बढ़ते आकार पर लगातार नजर रखे हुए थे. ज्यों-ज्यों कार आगे बढ़ रही थी, उस बिन्दु का आकार भी बढ़ रहा था. फिर धीरे-धीरे वह बिन्दु एक मानव आकार के रुप में, हमें स्पष्ट दिखाई देने लगा. मैं मन ही मन ईश्वर का ध्यान कर रही थी कि तभी राकेश को कार रोकते देख मैंने घबरा कर कहा- "राकेश, गाड़ी मत रोको, न मालूम कौन है? मुझे डर लग रहा है."

राकेश ने मेरी बात को अनसुनी कर कार की गति काफी धीमी कर दी. कार धीमी होती हुई उस आकृति के पास जाकर थम गई. राकेश ने अपनी तरफ वाली खिड़की का थोड़ा सा कांच खोला. मैंने देखा, सफेद साड़ी पहने हुए पूरी तरह भीगी हुई एक महिला हमारे सामने खड़ी हुई थी. उसकी गोद में एक बच्चा भी था, जिसे पानी और हवा से बचाने के लिये वह लगातार असफल प्रयास कर रही थी. कार रुकने की आवाज सुनते ही उसने पलट कर हम दोनों की ओर देखा. राकेश से उस महिला की ऐसी हालत नहीं देखी गयी और उससे कहा-

"आप कहां तक जायेगी?"

उसने कांपते हुए स्वर से कहा- "जहां मेरा भाग्य ले जायेगा बाबू."

"भाग्य ले जायेगा! पागल हो! इस बरसात में, इस तरह पानी से भीग रही हो, आओ कार में बैठ जाओ. तुम जहां कहोगी, हम तुम्हें वहीं छोड़ देंगे. देखो, पानी में इस तरह से भीगना, तुम्हारे और बच्चे दोनों की सेहत के लिये बिलकुल भी ठीक नहीं होगा. हमारा कहना मानो और कार के अन्दर आ जाओ. घबराओ नहीं, मैं, बच्चों का डाक्टर हूं और ये मेरी पत्नी यशोदा मेरे साथ में हैं. हम दोनों पूरी तरह से तुम्हारी मदद करेंगे."

तभी मैंने भी अपने पति की बात का समर्थन करते हुए कहा- "आ जाओ बहन, घबराओ नहीं, हम तुम्हें और तुम्हारे बच्चे को तुम जहां कहोगी वहां सुरक्षित छोड़ देंगे."

उस महिला ने कुछ पल सोचा. हम दोनों की ओर ध्यान से देखा और फिर कंपकंपाते हुए बारिश से भीग कर काले पड़ गये अपने ओठों पर जीभ फेरते हुए कहा- "नहीं बहन, तुम जाओ, मैं जैसे इतनी दूर पैदल चल कर आ चुकी हूं, वैसे भी आगे पैदल जा सकती हूं."

मैंने बारिश की तेज गति और उसके शोर से घबरा कर तेज आवाज में कहा- "नादानी मत करो? अपना नहीं तो कम से कम इस बच्चे की जिन्दगी के बारे में तो सोचो. यदि बच्चे को कुछ हो गया तो तुम फिर क्या करोगी?"

उस महिला ने बहुत ही स्नेह से अपना गीला हाथ, अपने बच्चे के गीले बदन पर फेरते हुए कुछ सोचा और धीरे से कार के पिछले दरवाजे की ओर बढ़ी. मैंने तत्परता से कार से उतर कर, बारिश की परवाह न करते हुए, कार का पिछला दरवाजा खोला. उस महिला ने भी जल्दी से कार के अन्दर प्रवेश किया. मैं कार का पिछला दरवाजा बंद कर तेजी से अपनी सीट पर आकर बैठ गयी.

मुझे अपने अन्दर एक आत्मिक संतोष का अनुभव हुआ. मैंने अपनी सीट से मुड़कर पीछे की ओर देखा. वह महिला पूरी तरह भीगी हुई थी. यकायक उस महिला की गोद में लेटा बच्चा मचल उठा और तेजी से बिलख कर रोने लगा. मेरा नारी हृदय द्रवित हो उठा. मैंने उस स्त्री की गोद में बच्चे के शरीर से लिपटा हुआ गीला कपड़ा वहीं छोड़ते हुए उस बच्चे को उठा कर अपनी गोद में लिटाया. कुछ पल बाद ही मैंने पैर के पास रखी हुई टोकनी में से एक सूखा टॉवल निकाल कर उस बच्चे के बदन के गीलेपन को अच्छी तरह से साफ किया. बच्चे के शरीर का गीलापन दूर होते ही उसके चेहरे पर एक मुस्कान सी दिखाई दी। वह बहुत ही सुंदर दिखाई दे रहा था. मैंने उसे प्यार से चूम लिया. मेरे पूरे शरीर में बिजली सी कौंध गई. मैं मां नहीं बन पाई तो क्या हुआ, औलाद क्या होती है मुझसे ज्यादा कौन समझता है? मैं भावातिरेक में राकेश से कुछ कहने ही वाली थी कि तभी राकेश ने उस बच्चे के बदन को छू कर देखा और मुझसे कहा- "अरे यशोदा, इसे तो तेज बुखार है।"

यह कह कर उन्होंने अपनी कमीज के ऊपरी हिस्से से दवाइयों का एक पैकिट निकाल कर मुझे देते हुए कहा- "इस पैकिट में एक लाल रंग की छोटी गोली होगी, उसे इस बच्चे के मुख में रख दो. धीरे-धीरे वह चूसता रहेगा. कुछ पल में ही बच्चे को आराम मिल जायेगा."

राकेश के द्वारा दी गयी उस गोली ने तुरन्त जादू सा काम किया और कुछ ही पलों में उस बच्चे का बुखार जा चुका था. अब बच्चा दुनिया से बेखबर होकर मेरी ही गोद में सो चुका था. मेरा मन नहीं माना तो मैंने कुछ सोचते हुए मुड़ कर पिछली सीट पर देखा, वह महिला सर्दी से कांप रही थी। मैंने सोचा कि राकेश से कहूं कि वह कुछ पल के लिये कार रोक दे और डिक्की में रखी अटैची से कुछ कपड़े निकलवाकर, महिला के गीले वस्त्र बदलवा देना चाहिये, किन्तु फिर यह सोच कर खामोश हो गई कि यह कैसे संभव है. इस बरसात में यह स्त्री कहां और कैसे चलती सड़क पर, कपड़े बदलेगी. बारिश का मिजाज अभी भी नहीं बदला था. मैंने उस महिला की ओर मुखातिब होकर कहा- "बहन, तुम कौन हो? और ऐसी तेज बारिश में अकेले पैदल, अपने बच्चे को साथ लेकर इस तरह घर से क्यूं निकल पड़ी ? देखो, तुम्हारे बच्चे का चेहरा कैसे कुम्हला गया है."

यह कह कर मैंने प्यार से बच्चे के सिर पर हाथ फेरा.

मेरे शब्दों को सुन कर वह महिला रो पड़ी और अतीत की स्मृति में उसका सुन्दर चेहरा फिर से म्लान हो उठा. उसने सिसकते हुए कहा- "बहिन कैन्सर की लम्बी बीमारी के बाद, आर्थिक स्थिति खराब होने से, उचित इलाज न मिलने के कारण, मेरे पति की मृत्यु आज से ठीक बीस दिन पहले हुई थी. मृत्यु के पूर्व इलाज के लिये पति ने कुछ कर्ज, गांव के मुखिया से लिया था, जिसे वे मरते दम तक नहीं चुका पाये. कल रात को उस कर्ज की भरपाई में, मुखिया और उसके बेटों ने, मेरी झोंपडी और छोटे से खेत पर कब्जा कर लिया. गांव के लोगों ने भी मुखिया का ही साथ दिया और मुझे गांव छोडने पर मजबूर कर दिया. यदि मैं गांव छोड़ कर नहीं आती तो शायद मैं और मेरा बेटा जीवित न बचते. मैं अपने बेटे के साथ तीन दिनों से इसी तरह सड़क पर भटक रही हूं. मुझे खुद भी नहीं मालूम कि मैं कहां जा रही हूं? सच कहूं बहन, अब मैं जीना नहीं चाहती."

कुछ पल रुकने के बाद वह पुनः बोली- "यदि मैं पुलिस के पास भी जाती तो मुझ गरीब बेसहारा की कौन सुनता? वे पैसे वाले हैं, दबंग हैं, ऊंची जाति के हैं. उनके पास सबकुछ है. मेरे पास क्या है? कुछ नहीं. मैं कैसे उनसे अपनी जमीन और झोंपड़ी वापिस मांग सकती हूं? वह तो मेरे पति ने ही उनके पास गिरवी रखी थी. अब कुछ नहीं हो सकता, और वैसे भी अब मैं अपने पति के विछोह में जीना भी नहीं चाहती हूं."

राकेश को उस स्त्री की यह बातें सुन कर बहुत दुख हुआ. उन्होंने उससे कहा- "आप चिन्ता मत करें, हमारे घर चलें. अब आपका बेटा हमारा बेटा होगा और इन्हें अपनी बड़ी बहन मानना बस. वैसे भी औलाद के नाम पर हमारी कुण्डली खामोश है." राकेश के दर्द को मैं अपने अन्दर तक महसूस कर रही थी.

महिला के चेहरे पर अब वे चिंता की रेखायें दिखाई नहीं दे रही थीं जो कुछ देर पहले मैंने देखी थीं. मैं उसकी दुखभरी कहानी सुन अन्दर ही अन्दर रो रही थी. आखिर मैं भी एक महिला थी. अपनी गोद में लेटे हुए बच्चे को देखा और फिर कहा- "तुम अपने सारे दुख अब भूल जाओ बहन और सब कुछ उस ईश्वर पर छोड़ दो. जिसकी कोई मदद नहीं करता, उसकी मदद स्वयं भगवान करते हैं और हमारा कहना मानो, अब हमारे साथ हमारे घर चलो।"

"नहीं बहन, अब मैं कहीं नहीं जाऊंगी. मुझे, लगता है कि अब मुझे किसी भी आश्रय की आवश्यकता नहीं है. सहारे की आवश्यकता है तो केवल मेरे इस बेटे को, जो शायद उसे मिल चुका है. वे अक्सर कहा करते थे कि मैं अपनी पूरी ताकत लगाऊंगा, इसे पढ़ाऊंगा, बहुत बड़ा डाक्टर बनाऊंगा. उन्होंने अपनी छोटी-छोटी आंखों में न जानें कितने बड़े-बड़े सपने पाल रक्खे थे. अभी-अभी भाई साहब ने बताया है कि आप लोगों की कोई संतान नही है. इसलिये मैं अपना बेटा आप दोनों के सुपुर्द करती हूं. आप लोग कौन हैं? कहां रहते हैं? यह मैं कुछ नही जानती हूं और न जानना चाहती हूं, क्योंकि मेरी आत्मा कह रही है कि आप लोग बहुत ही भले लोग हैं. यह ईश्वर की इच्छा ही है कि उसने इस अभागिन को आप लोगों से मिला दिया. मुझे यह भी विश्वास है कि मेरे पति द्वारा देखा गया स्वप्न आप लोग अवश्य पूरा करेंगे."

यह कह कर उसने मेरी गोद से अपने बेटे को लिया. उसे कई बार चूमा, प्यार किया और अपने गले से एक ताबीज निकाल कर उसके गले में पहनाते हुए कहा- "बेटा मैं अपना आशीर्वाद देती हूं कि तू जिन्दगी भर सुखी रहे और बहुत बड़़ा डाक्टर बने."

यह कह कर उसने पुनः बच्चे को मेरी ओर बढ़ा दिया. मैंने उस बच्चे को दोनों हाथों से लेकर आहिस्ते से अपनी गोद में लिटा लिया.

पूरा माहौल भावुकतापूर्ण था. सबकी आंखों में आंसू थे. परन्तु चाह कर भी कोई कुछ नहीं बोल पा रहा था. राकेश घर जल्दी पहुंचने की चिन्ता में तेज गति से कार चला रहे थे कि तभी कार के दायें हिस्से में पीछे की ओर दरवाजा खुलने की हल्की सी आहट हुई. जब तक मैं और राकेश कुछ समझते, तब तक दरवाजा तेजी से खुला और कार में बैठी उस महिला ने चलती कार से बाहर की ओर छलांग लगा दी. उसका शरीर एक पल के लिये हवा में झूला और दूसरे पल ही धमाके के साथ सड़क पर जा गिरा.

राकेश ने घबरा कर तेज गति से चलती हुई कार को सड़क किनारे किया और दौड़ कर उस महिला के पास पहुंचे. तब तक उस महिला का शरीर प्राणहीन हो चुका था. उसके लंबे-लंबे काले बाल रक्त से भीग चुके थे, चेहरे पर दर्द उभर आया था. हम लोगों ने तत्काल राह चलते लोगों की मदद से लाश को किनारे लगाया। फिर घटना की जानकारी पुलिस को दी.

कुछ देर में ही पुलिस घटना स्थल पर आ चुकी थी. राकेश ने अपने संबंधों का उपयोग कर पुलिस केस नहीं बनने दिया और हम लोगों ने उसी तरह उस अनजान स्त्री का विधि-विधान से दाह संस्कार कराया, जैसे कोई अपने स्वजन का करता है.

बेटे, अब तो तुम समझ ही चुके होगे कि तुम्हारी जन्म देने वाली मां, यही महिला थी। जब कभी भी तुम्हारे जीवन में कोई खुशी का क्षण आता था तो मुझे हमेशा यही ख्याल आता था कि ‘काश’ आज तुम्हारी मां जीवित होती, तो वह कितनी खुश होती.

हम दोनों यह सब तुम्हें बहुत पहले ही बताना चाहते थे, लेकिन सोचते थे कि न जाने यह सब सुन कर तुम्हारे कोमल मन पर क्या प्रभाव पडेगा, इसलिये तुम्हें बताने का साहस न कर सके."

मयंक सब कुछ समझ चुका था। उसने रोते हुए कहा- "मां मैं यह कुछ नहीं जानता, लेकिन तुम ही मेरी देवकी हो और तुम ही मेरी यशोदा हो."

यशोदा कुछ कहती कि तभी कमरे में रामू ने प्रवेश किया. उसे देख कर मयंक सब कुछ भूल कर अपनी मां को फिर एक नया इंजेक्शन लगाने की तैयारी में व्यस्त हो गया.

सम्पर्क : 111, पुष्पांजली स्कूल के सामने, शक्ति नगर,

जबलपुर (म. प्र.)

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: प्राची - सितम्बर 2018 - कहानी // यशोदा // प्रभात दुबे
प्राची - सितम्बर 2018 - कहानी // यशोदा // प्रभात दुबे
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhRkNTL3efat97yjgZ7KCBZhvL81Yn9McLIIFJ5wEKQgmWNsZucxyP71wJ5jf-C-baG8xV6JxzT7dsZOrs3mKnYTIZvRbp9XY2FVinos3WcAJFxVO_PE_6sBCK-GX0gs81a5Cs8/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhRkNTL3efat97yjgZ7KCBZhvL81Yn9McLIIFJ5wEKQgmWNsZucxyP71wJ5jf-C-baG8xV6JxzT7dsZOrs3mKnYTIZvRbp9XY2FVinos3WcAJFxVO_PE_6sBCK-GX0gs81a5Cs8/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2018/10/2018_90.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2018/10/2018_90.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content