प्राची - सितम्बर 2018 - व्यंग्य // स्वर्ग में विचार-सभा का अधिवेशन // भारतेन्दु हरिश्चन्द्र

SHARE:

स्वा मी दयानन्द सरस्वती और बाबू केशवचन्द्र सेन के स्वर्ग में जाने से वहां एक बहुत बड़ा आंदोलन हो गया. स्वर्गवासी लोगों में बहुतेरे तो इनसे घृ...

स्वामी दयानन्द सरस्वती और बाबू केशवचन्द्र सेन के स्वर्ग में जाने से वहां एक बहुत बड़ा आंदोलन हो गया. स्वर्गवासी लोगों में बहुतेरे तो इनसे घृणा करके धिक्कार करने लगे और बहुतेरे इनको अच्छा कहने लगे. स्वर्ग में भी ‘कंसरवेटिव’ और ‘लिबरल’ दो दल हैं. जो पुराने जमाने के ऋषि-मुनि यज्ञ कर-करके या तपस्या करके अपने-अपने शरीर को सुखा-सुखाकर और पच-पचकर मरके स्वर्ग गए हैं उनकी आत्मा का दल ‘कंसरवेटिव’ है, और जो अपनी आत्मा ही की उन्नति से और किसी अन्य सार्वजनिक उच्च भाव संपादन करने से या परमेश्वर की भक्ति से स्वर्ग में गए हैं वे ‘लिबरल’ दलभक्त हैं. वैष्णव दोनों दल के क्या दोनों से खारिज थे, क्योंकि इनके स्थापकगण तो लिबरल दल के थे किंतु ये लोग ‘रेडिकल्स’ क्या महा-महा ‘रेडिकल्स’ हो गए हैं. बिचारे बूढ़े व्यासदेव को दोनों दल के लोग पकड़-पकड़ कर ले जाते और अपनी-अपनी सभा का ‘चेयरमैन’ बनाते थे, और व्यास जी भी अपने प्राचीन अव्यवस्थित स्वभाव और शील के कारण जिसकी सभा में जाते थे वैसी ही वक्तृता कर देते थे. कंसरवेटिवों का दल प्रबल था; इसका मुख्य कारण यह था कि स्वर्ग के जमींदार इन्द्र, गणेश प्रभृति भी उनके साथ योग देते थे, क्योंकि बंगाल के जमींदारों की भांति उदार लोगों की बढ़ती से उन बेचारों को विविध सर्वोपरि बलि और मान न मिलने का डर था.

कई स्थानों पर प्रकाश-सभा हुई. दोनों दल के लोगों ने बड़े आतंक से वक्तृता दी. ‘कंसरवेटिव’ लोगों का पक्ष समर्थन करने को देवता भी आ बैठे और अपने-अपने लोकों में भी उस सभा की स्थापना करने लगे. इधर ‘लिबरल’ लोगों की सूचना प्रचलित होने पर मुसलमानी-स्वर्ग और जैन स्वर्ग तथा क्रिस्तानी स्वर्ग से पैगंगर, सिद्ध, मसीह प्रभृति-स्वर्ग में उपस्थिति हुए और ‘लिबरल’ सभा में योग देने लगे. बैकुंठ में चारों ओर इसी की धूम फैल गई. ‘कसंरवेटिव’ लोग कहते, ‘छिः, दयानन्द कभी स्वर्ग में आने के योग्य नहीं; इसने 1. पुराणों का खंडन किया, 2. मूर्तिपूजा की निंदा की, 3. वेदों का अर्थ उलटा-पुलटा कर डाला, 4. दक्ष नियोग करने की विधि निकाली, 5. देवताओं का अस्तित्व मिटाना चाहा, और 6. अंत में सन्यासी होकर अपने का जलवा दिया. नारायण! नारायण! ऐसे मनुष्य की आत्मा को कभी स्वर्ग में स्थान मिल सकता है, जिसने ऐसा धर्म-विप्लव कर दिया और आर्यावर्त को धर्म-वहिर्मुख किया!’

एक सभा में काशी के विश्वनाथ जी ने उदयपुर के एकलिंग जी से पूछा, ‘भाई! तुम्हारी क्या मति मारी गई जो तुमने ऐसे पतित को अपने मुंह लगाया और अब उसके दल के सभापति बने हो, ऐसा ही करना है तो जाओ लिबरल लोगों में योग दो.’ एकलिंग जी ने कहा, ‘भाई, हमारा मतलब तुम लोग नहीं समझ सकते. हम उसकी बुरी बातों का न मानते न उसका प्रचार करते, केवल अपने यहां के जंगल की सफाई का कुछ दिन उसे ठेका दिया, बीच में वह मर गया. अब उसका माल-मता ठिकाने रखवा दिया तो क्या बुरा किया.’

कोई कहता, ‘केशवचन्द्र सेन! छि छि! इसने सारे भारतवर्ष का सत्यानाश कर डाला. 1. वेद-पुराण सबको मिटाया, 2. क्रिस्तान, मुसलमान सबको हिंदू बनाया, 3. खाने-पीने का विचार कुछ न बाकी रखा, 4. मद्य की तो नदी बहा दी. हाय-हाय, ऐसी आत्मा क्या कभी बैकुंठ में आ सकती है!’

ऐसे ही दोनों के जीवन की समालोचना चारों ओर होने लगी.

लिबरल लोगों की सभा भी बड़ी धूमधाम से जमती थी. किंतु इस सभा में दो दल हो गए थे, एक जो केशव की विशेष स्तुति करते, दूसरे वे जो दयानन्द को विशेष आदर देते थे. कोई कहता, अहा धन्य दयानन्द जिसने आर्यावर्त के निंदित आलसी मूर्खों की मोह-निद्रा भंग कर दी. हजारों मूर्खों को ब्राह्मणों के (जो कंसरवेटिवों के पादरी और व्यर्थ प्रजा का द्रव्य खाने वाले हैं) फंदे से छुड़ाया. बहुतों को उद्योगी और उत्साही कर दिया. वेद में रेल, तार, कमेटी, कचहरी दिखाकर आर्यों की कटती हुई नाक बचा ली. कोई कहता, धन्य केशव! तुम साक्षात दूसरे केशव हो. तुमने बंग देश की मनुष्य नदी के उस वेग को, जो क्रिश्चन समुद्र में मिल जाने को उच्छलित हो रहा था, रोक दिया. ज्ञानकर्म का निरादर करके परमेश्वर का निर्मल भक्ति-मार्ग तुमने प्रचलित किया.

कंसरवेटिव पार्टी में देवताओं के अतिरिक्त बहुत लोग थे जिनमें याज्ञवल्क्य प्रभृति कुछ तो पुराने ऋषि थे और कुछ नारायण भट्ट, रघुनन्दन भट्टाचार्य, मण्डन मिश्र प्रभृति स्मृति ग्रंथकार थे.

लिबरल दल में चैतन्य प्रभृति आचार्य, दादू, नानक, कबीर प्रभृति भक्त और ज्ञानी लोग थे. अद्वैतवादी भाष्यकार आचार्य पंचदशीकार प्रभृति पहले दलमुक्त नहीं होने पाए. मिस्टर ब्रैडला की भांति इन लोगों पर कंसरवेटिवों ने बड़ा आक्षेप किया, किंतु अंत में लिबरलों की उदारता से उनके समाज में इनका स्थान मिला था.

दोनों दलों के मेमोरियल तैयार कर स्वाक्षरित होकर परमेश्वर के पास भेजे गए. एक में इस बात पर युक्ति और आग्रह प्रकट किया था कि केशव और दयानन्द कभी स्वर्ग में स्थान न पावें और दूसरे में इसका वर्णन था कि स्वर्ग में इनको सर्वोत्तम स्थान दिया जाए.

ईश्वर ने दोनों दलों के डेप्यूटेशन को बुलाकर कहा, ‘बाबा, अब तो तुम लोगों की ‘सैल्फगवर्नमेंट’ है. अब कौन हमको पूछता है, जो जिसके जी में आता है करता है. अब चाहे वेद क्या संस्कृत का अक्षर भी स्वप्न में न देखा हो पर धर्म विषय पर वाद करने लगते हैं. हम तो केवल अदालत या व्यवहार या स्त्रियों के शपथ खाने को ही मिलाये जाते हैं. किसी को हमारा डर है? कोई भी हमारा सच्चा ‘लायक’ है? भूत-प्रेत, ताजिया के इतना भी तो हमारा दरजा नहीं बचा. हमको क्या काम चाहे बैकुंठ में कोई आवे. हम जानते हैं कि चारों लड़कों (सनक आदि) ने पहले ही से चाल बिगाड़ दी है. क्या हम अपने विचारे जयविजय को फिर राक्षस बनवावें कि किसी का रोकटोक करें. चाहे सगुन मानो चाहे निर्गुन, चाहे द्वैत मानो चाहे अद्वैत, हम अब न बोलेंगे. तुम जानो स्वर्ग जाने.’

डेप्यूटेशन वाले परमेश्वर की ऐसी कुछ खिजलाई हुई बात सुनकर कुछ डर गए. बड़ा निवेदन-सिवेदन किया. किसी प्रकार परमेश्वर का रोष शांत हुआ. अंत में परमेश्वर ने इस विषय के विचार के हेतु एक ‘सिलेक्ट कमेटी’ की स्थापना की. इसमें राजा राममोहन राय, व्यासदेव, टोडरमल, कबीर प्रभृति भिन्न-भिन्न मत के लोग चुने गए. मुसलमानी-स्वर्ग से एक ‘इमाम’, क्रिस्तानी से ‘लूथर’, जैनी से पारसनाथ, बौद्धों से नागार्जुन और अफ्रीका से सिटोवायों के बाप को इस कमेटी का ‘एक्स आफीशियो मेंबर’ नियुक्त किया. रोम के पुराने ‘हरकुलिस’ प्रभृति देवता तो अब गृह-सन्यास लेकर स्वर्ग ही में रहते हैं और पृथ्वी से अपना संबंध मात्र छोड़ बैठे हैं, तथा पारसियों के ‘जरदुश्तजी’ को ‘कारेस्पांडिंग आनरेरी मेंबर’ नियत किया और आज्ञा दी कि तुम लोग सब कागज-पत्र देखकर हमको रिपोर्ट करो. उनकी ऐसी भी गुप्त आज्ञा थी कि एडिटरों की आत्मागण को तुम्हारी किसी ‘काररवाई’ का समाचार तब तक न मिले जब तक कि रिपोर्ट हम न पढ़ लें, नहीं ये व्यर्थ चाहे कोई सुने चाहे न सुने अपनी टांय-टांय मचा ही देंगे.

सिलेक्ट कमेटी का कोई अधिवेशन हुआ. सब कागज-पत्र देखे गए. दयानन्दी और केशवी ग्रंथ तथा उनके अनेक प्रत्युत्तर और बहुत से समाचार पत्रों का मुलाहिजा हुआ. बालशास्त्री प्रभृति कई कंसरवेटिव और द्वारकानाथ प्रभृति लिबरल नव्य आत्मागणों की इसमें साक्षी ली गई. अंत में कमेटी या कमीशन ने जो रिपोर्ट की उसकी मर्म बात यह थी किः-

‘हम लोगों की इच्छा न रहने पर भी प्रभु की आज्ञानुसार हम लोगों ने इस मुकदमे के सब कागज-पत्र देखे. हम लोगों ने इन दोनों मनुष्यों के विषय में जहां तक समझा और सोचा है निवेदन करते हैं. हम लोगों की सम्मति में इन दोनों पुरुषों ने प्रभु की मंगलमयी सृष्टि का कुछ विघ्न नहीं किया वरंच उसमें सुख और संतति अधिक हो इसी में परिश्रम किया. जिस चांडाल रूपी आग्रह और कुरीति के कारण मनमाना पुरुष धर्मपूर्वक न पाकर लाखों स्त्री कुमार्ग गामिनी हो जाती हैं, लाखों विवाह होने पर भी जनम भर सुख नहीं भोगने पातीं, लाखों गर्भ नाश होते और लाखों ही बाल-हत्या होती हैं, उस पापमयी परम नृशंस रीति को इन लोगों ने उठा देने में शक्य भर परिश्रम किया. जन्मपत्री की विधि के अनुग्रह से जब तक स्त्री पुरुष जिएं एक तीर घाट एक मीर घाट रहें, बीच में इस वैमनस्य और असंतोष के कारण स्त्री व्यभिचारिणी, पुरुष विषयी हो जाएं, परस्पर नित्य कलह हो, शांति स्वप्न में भी न मिले, वंश न चले, यह उपद्रव इन लोगों से नहीं सहे गए.

विधवा गर्भ गिरावै, पंडित जी या बाबू साहब यह सह लेंगे, वरंच चुपचाप उपाय भी करवा देंगे, पाप को नित्य छिपाएंगे, अंततोगत्वा निकल ही जाएं तो संतोष करेंगे, इस दोष को इन दोनों ने निःसंदेह दूर करना चाहा. सवर्ण पात्र न मिलने से कन्या को वर मूर्ख अंधा वरंच नपुंसक मिले तथा वर को काली कर्कशा कन्या मिले जिसके आगे बहुत बुरे परिणाम हों, इस दुराग्रह को इन लोगों ने दूर किया. चाहे पढ़े हों चाहे मूर्ख, सुपात्र हों कि कुपात्र, चाहे प्रत्यक्ष व्यभिचार करें या कोई भी बुरा कर्म करें, पर गुरु जी हैं, पंडित जी हैं, इनका दोष मत कहो, कहोगे तो पतित होगे, इनको दो, इनको राजी रखो; इन सत्यानाशी संस्कारों को इन्होंने दूर किया. आर्य जाति दिन-दिन ह्रास हो, लोग स्त्री के कारण, धन, नौकरी, व्यापार आदि के लोभ से, मद्यपान के चसके से, बाद में हार कर राजकीय विद्या का अभ्यास करके मुसलमान या क्रिस्तान हो जाएं, आमदनी एक मनुष्य की भी बाहर से न हो केवल नित्य व्यय हो, अंत में आर्यों का धर्म और जाति कथाशेष रह जाए, किंतु जो बिगड़ा सो बिगड़ा फिर जाति में कैसे आवेगा, कोई भी दुष्कर्म किया तो छिपके क्यों नहीं किया, इसी अपराध पर हजारों मनुष्य आर्य पंक्ति से हर साल छूटते थे, उसको इन्होंने रोका. सबसे बढ़ कर इन्होंने यह कार्य किया, सारा आर्यावर्त जो प्रभु से विमुख हो रहा था, देवता बिचारे तो दूर रहे, भूत-प्रेत-पिशाच-मुरदे, सांप के काटे, बाघ के मारे, आत्महत्या करके मरे, जल, दब या डूबकर मरे लोग, यही नहीं, औलिया शहीद और ताजिया गाजीमियां, को मानने और पूजने लग गए थे, विश्वास तो मानो छिनाल का अंग हो रहा था, देखते-सुनते लज्जा आती थी कि हाय ये कैसे आर्य हैं, किससे उत्पन्न हैं, इस दुराचार की ओर से लोगों का अपनी वक्तृताओं के थपेड़े के बल से मुंह फेरकर सारे आर्यावर्त को शुद्ध ‘लायल’ कर दिया.

‘भीतरी चरित्र में इन दोनों के जो अंतर हैं वह भी निवेदन कर देना उचित है. दयानन्द की दृष्टि हम लोगों की बुद्धि में अपनी प्रसिद्ध पर विशेष रही. रंग-रूप भी इन्होंने कई बदले. पहले केवल भागवत का खंडन किया. फिर सब पुराणों का. फिर कई ग्रंथ माने, कई छोड़े. अपने काम के प्रकरण माने, अपने विरुद्ध को क्षेपक कहा. पहले दिगंबर मिट्टी पोते महात्यागी थे. फिर संग्रह करते-करते सभी वस्त्र धारण किए. भाष्य में भी रेल, तार आदि कई अर्थ जबरदस्ती किए. इसी से संस्कृत विद्या को भली-भांति न जानने वाले ही प्रायः इनके अनुयायी हुए. जाल को छुरी से न काटकर दूसरे जाल ही से जिसको काटना चाहा, इसी से दोनों आपस में उलझ गए और इसका परिणाम गृह-विच्छेद उत्पन्न हुआ.

‘केशव ने इनके विरुद्ध जाल काटकर परिष्कृत पथ प्रकट किया. परमेश्वर से मिलने-मिलाने की आड़ या बहाना नहीं रखा. अपनी शक्ति की उच्छलित लहरों में लोगों का चित्त आर्द्र कर दिया. यद्यपि ब्राह्मण लोगों में सुरा-मांसादि का प्रचार विशेष है किंतु इसमें केशव का दोष नहीं. केशव अपने अटल विश्वास पर खड़ा रहा. यद्यपि कूचबिहार के संबंध करने से और यह कहने से कि ईसामसीह आदि उससे मिलते हैं, अंतावस्था के कुछ पूर्व उनके चित्त की दुबर्लता प्रकट हुई थी, किंतु वह एक प्रकार का उन्माद होगा या जैसे बहुतेरे धर्म प्रचारकों ने बहुत बड़ी बातें ईश्वर की आज्ञा बतला दीं वैसे ही यदि इन बेचारों ने एक-दो बात कही तो क्या पाप किया. पूर्वोक्त कारणों से ही केशव का मरने पर जैसा सारे संसार में आदर हुआ वैसा दयानन्द का नहीं हुआ. इसके अतिरिक्त इन लोगों के हृदय में भीतर छिपा कोई पुण्य-पाप रहा हो तो उसको हम लोग नहीं जानते, इसका जानने वाला केवल तू ही है.’

इस रिपोर्ट पर विदेशी मेंबरों ने कुछ क्रुद्ध होकर हस्ताक्षर नहीं किया.

रिपोर्ट परमेश्वर के पास भेजी गई. इसको देखकर इस पर क्या आज्ञा हुई और वे लोग कहां भेजे गए यह जब हम भी वहां जाएंगे और फिर लौटकर आ सकेंगे तो पाठक लोगों को बतलावेंगे या आप लोग कुछ दिन पीछे आप ही जानोगे.

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: प्राची - सितम्बर 2018 - व्यंग्य // स्वर्ग में विचार-सभा का अधिवेशन // भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
प्राची - सितम्बर 2018 - व्यंग्य // स्वर्ग में विचार-सभा का अधिवेशन // भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhRkNTL3efat97yjgZ7KCBZhvL81Yn9McLIIFJ5wEKQgmWNsZucxyP71wJ5jf-C-baG8xV6JxzT7dsZOrs3mKnYTIZvRbp9XY2FVinos3WcAJFxVO_PE_6sBCK-GX0gs81a5Cs8/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhRkNTL3efat97yjgZ7KCBZhvL81Yn9McLIIFJ5wEKQgmWNsZucxyP71wJ5jf-C-baG8xV6JxzT7dsZOrs3mKnYTIZvRbp9XY2FVinos3WcAJFxVO_PE_6sBCK-GX0gs81a5Cs8/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2018/10/2018_58.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2018/10/2018_58.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content