प्राची - सितम्बर 2018 - कहानी // वह लड़की // सुषमा श्रीवास्तव

SHARE:

कहानी वह लड़की सुषमा श्रीवास्तव वरिष्ठ लेखिका. आकाशवाणी से सेवानिवृत्त. अब स्वतंत्र लेखन. कहानी और कविताओं की कई पुस्तकें प्रकाशित. वासुदेव क...

कहानी

वह लड़की

सुषमा श्रीवास्तव

वरिष्ठ लेखिका. आकाशवाणी से सेवानिवृत्त. अब स्वतंत्र लेखन. कहानी और कविताओं की कई पुस्तकें प्रकाशित.

वासुदेव कृत लघु रामायण की टीका लिखकर महती कार्य किया. यह रामायण प्रज्ञा प्रकाशन द्वारा प्रकाशित की गयी है और पाठकों के लिए निःशुल्क उपलब्ध है.

सम्प्रति दिल्ली में रहकर साहित्य सेवा में रत्.

‘‘हैलो डॉक्टर!’’

‘‘हैलो तिमोती इधर कैसे?’’

‘‘वह...मृदुजी से मिलना था.’’

‘‘ओह! लो वह आ भी गई.’’

‘‘तिमोती तुम यहाँ? क्या बात है?’’ मृदु ने पास आकर पूछा.

‘‘बात कुछ खास नहीं है और है भी! तुम्हारी सिफारिश से मुझे तीन दिन के लिए गैलरी प्रायोजित कर दी गई है. कल ही प्रदर्शनी का उद्घाटन है. यह लो कार्ड और लम्बा सा

धन्यवाद!’’

डॉ. शिखा लेटर बाक्स से अपने पत्र निकालकर बैग के हवाले कर रही थीं.

तिमोती ने नाम लिखकर एक कार्ड डॉ. शिखा की ओर भी बढ़ाया.

‘‘डॉक्टर... मैं आपको बता दूं कि मैं एक कलाकार हूं. कल मेरे चित्रों की पहली प्रदर्शनी लग रही है. प्लीज कुछ समय निकालिए. आप आयेंगी तो हमें बहुत अच्छा लगेगा.’’

‘‘लेकिन तिमोती शायद हमें कुछ खास अच्छा न लगे... यानी कला से मुझे कुछ लगाव नहीं, इसलिये उतनी समझ भी तो नहीं है. हां, तुम्हारी उन्नति देखना मुझे अवश्य अच्छा लगेगा. मैं आऊँगी.’’

‘‘मैं सोचती हूं तिमोती कि रंगों का अर्थ सबके लिए एक जैसा नहीं होता. हर दिन नए अर्थ खुलते जाते हैं. अच्छा कल मिलते हैं, बॉय...’’

अब मृदु आगे आ गई।

‘‘तिमोती... तुम भी किससे उलझ रहे हो... डॉ. शिखा, पेंटिंग म्यूजिक... कला, यह सब उनके लिए नहीं. उनकी एक ही कला है डॉक्टरी-सर्जरी, काट-कूट, जोड़-घटाव.’’

‘‘हाँ मृदु, मैं उनकी जिजीविका का कायल हूं.’’

‘‘बड़ी जिजीविका...’’ वह होंठ बिचका कर बोली. मृदु के चेहरे पर उसकी अपनी समृद्धि, पिता का रुतबा और कला की समझ का दर्प एक साथ झलक उठा.

शिखा की प्रशंसा वह सहन नहीं कर सकी.

‘‘चलता हूं. कल जल्दी आना.’’

तिमोती के सामने इस समय विचार नहीं, भविष्य के सुंदर सपने थे. उन सपनों में मृदु भी थी. उसके लिए मृदु ने माडलिंग भी की. प्रदर्शनी लगाने के लिए काफी सहायता भी की थी. वह मृदु के प्रति कहीं अपने मन में एक कोमल भाव सजा चुका था.

अपनी स्वतंत्र जीवन शैली के कारण मृदु अपने धनाढ्य पिता के साथ नहीं रहती थी. इस वर्किंग वीमेन हॉस्टल में

अधिक समय बिताती थी. डॉक्टर शिखा ऊपरी हिस्से में रहती थीं पर उनका अधिक समय हास्पिटल में ही बीतता था, बस आपस में एक औपचारिक मुस्कान या हैलो!

एक दिन सड़क दुर्घटना में घायल उस औरत को अपने हाथों में उठाए तिमोती ही अस्पताल लाया था.

‘‘डॉ. जल्दी कीजिए, खून बहुत बह गया है.’’

जेब से सारे रुपये निकाल कर मेज पर उसने रख दिये थे.

डॉ. शिखा ने नर्स को आवश्यक निर्देश दिये. काफी देर डॉ. शिखा अपने सहयोगियों के साथ उस औरत के गहरे जख़्मों से जूझती रही थीं.

तिमोती व्यग्रता से बरामदे में चक्कर लगा रहा था.

नर्स ने पूछा-‘‘आपकी माँ हैं क्या?’’

दूसरी ही मानसिकता में विचरण कर रहे तिमोती, नर्स की ओर एक गहरी नज़र डालकर चुप हो गया। क्या किसी घायल को अस्पताल ले आने के लिए किसी का माँ होना ज़रूरी है?

माँ ही सी तो है वह!

डॉ. शिखा कुशलता का संदेश देकर केबिन में जा चुकी थीं. अपने कंधों पर वह डॉ. शिखा के आश्वस्ति भरे हाथों को अच्छी तरह अनुभूत कर रहा था. फिर वह मरीज़ की खैर ख़बर लेने दोनों समय आता रहा. कभी-कभी स्टूल पर बैठकर घंटों, आड़ी-तिरछी लकीरें खींचता रहता. कभी किसी कागज पर कभी पैड पर या फिर टुक-टुक किसी भोले बालक की तरह उसकी ओर देखता रहता. यही परिचय, यही पहचान, तिमोती की डॉ. शिखा से थी जिसके सहारे उसने डॉ. शिखा को निमंत्रण पत्र दिया था.

डॉ. शिखा आर्ट गैलरी में आई थीं.

जीन्स टॉप सिर के ऊपर फँसा काला चश्मा, कंधों पर लम्बे बैग्स... लड़कियाँ ठक-ठक हील पहने घूम रही थीं-चित्रों पर चर्चा कर रही थीं. लम्बे बालों या पोनी में या फिर सफाचट खोपड़ी, लम्बे कुर्ते पहने झोले लटकाए युवक कलाकार या कला प्रेमी जोर की बहस कर रहे थे.

डॉ. शिखा यहाँ अपने को पूरी तरह से मिसफिट समझ रही थीं. फिर धीरे-धीरे गैलरी में घूम-घूम कर चित्र देखती रहीं. सच ही तो, जीवन के इस पैंतालीसवें वर्ष में वह समझ पा रही हैं कि संवेदनाओं से दूर, ललित कलाओं से दूर, व्यक्ति समाज को रुक्षता और उद्दंडता के उस छोर पर ले जाता है, जिसे हम दहशतगर्दी या आतंकवाद कहते हैं.

अब डॉ. शिखा ने अधिक गहराई से एक चित्र पर नज़र जमाई-पर तिमोती, उसी ओर आ रहा था.

‘‘आप यहां हैं? कैसा लगा यह चित्र?’’

‘‘मेरी समझ में यह नीले रंग का प्रचुर प्रयोग और इसके गहरे शेड्स चित्र को अवसाद से भर रहे हैं.’’

‘‘लेकिन डॉ. आकृति की सुनहरी उड़ान देखिए-उसमें है न अवसाद से मुक्ति-होप! होप! इटरनल होप!’’

‘‘हाँ शायद!’’ वह तिमोती को छोड़ आगे बढ़ गई. स्त्री चेतना को अनेक रूपों अनेक रंगों में परिभाषित किया गया था. नीले रंग के अनेक प्रयोग थे. कोने में रखा एक चित्र उसे आकर्षित कर रहा था. वह उसी ओर बढ़ ली. वह सीधे चित्र को देखने लगी. इसमें गहरे नीले, लाल, बैंगनी रंगों के सर्पिल फेनों के बीच से एक स्त्री आकृति, श्वेत वस्त्रों में आधी उठी हुई दिखाई दे रही थी. खूब घने काले बाल चेहरे पर फैले हुये-बस एक आँख बड़ी स्पष्टता से बालों के बीच से दिखाई दे रही थी. चेहरे के दाहिनी ओर का हिस्सा झुका हुआ! वह एक आंख-उसमें क्या था?

शिखा चिपक सी गई उससे. वह आंख उसे कहां खींचे लिये जा रही थी, किन गलियों, किन चौबारों, उम्र के किन मोड़ों पर...! यह रंगों में डूबती आकृति है या रंगों के व्यूह से बाहर आती आकृति...यह ‘‘आंख’’ यह ‘‘चेहरा’’ उसको पहचानता है, कोई रिश्ता है उसके और मेरे बीच. जरूर, पर क्या? जीवन के कितने रंग बिखरे हैं यहां पर. रंगों के व्यूह से उठती यह शुभ्र आकृति कितनी शाश्वत है. वह आंख, वह एक आंख कैनवास से निकल कर किसी दुस्साहसी बाला की तरह उसके भीतर बैठ गई-कि अब मैं कहीं नहीं जानेवाली. शिखा के लाख झटकने के बाद भी वह आंख उसके करीब आती गई. कुछ कहती सी, कुछ बोलती सी.

क्यूं मुझे भूल गईं? आप डॉक्टर हो, रुतबा है, होली के उन रंगों को याद करो-दोपहर एक बजे का समय. ढोल-मजीरे के साथ होली के गीत रंग बरसे... होली खेले रघुबीरा अवध में... रंगों से पुते लोग मस्त थे, नाच रहे थे, होली खेल रहे थे. मोहल्ले के लोग भी टोली बनाकर एक दूसरे के घर रंग खेल रहे थे. गुझिया, पापड़ चल रहे थे. चारों ओर उल्लास बरस रहा था. पड़ोस के घर में जोर की होली चल रही थी. अचानक देखा पन्द्रह-सोलह साल की एक रंगी-पुती लड़की सीधे सड़क से भागती आ रही थी. वह बेहद दहशत में थी. उसके पीछे कई लड़के दौड़ रहे थे, पकड़ने की कोशिश कर रहे थे. बचने के लिए वह लड़की पड़ोस के गेट में घुस कर भीड़ में घुल गई, पर बात समाप्त नहीं हुई. वह लड़के भी गेट खोल कर घुस गए. जब तक कोई कुछ समझ पाता, उनमें से दो ने लड़की को लपक लिया और रंग उस पर पोत दिया और बाहर निकल कर पीछे की ओर भाग लिए. लड़की भी उसी समय निकल गई. रंगों में पहचान क्या... सब लोग इस घटना से स्तब्ध थे.

‘‘यह गुण्डागर्दी!’’

‘‘क्या जमाना आ गया.’’

‘‘होली ऐसे त्योहार में बदमाशी.’’

‘‘इतनी भीड़ में कारगुजारी कर गये.’’

‘‘लड़की के लक्ष्छन तो देखो, बाहर ऐसे हुड़दंग में भला क्या?’’

‘‘पता नहीं कौन थी?’’

‘‘अरे, आसपास की ही थी.’’

भीड़ हटने को ही थी कि सामने के फ्लैट से एक सुदर्शन युवक आकर खड़ा हो गया. ‘‘अरे आपलोग तमाशा देख रहे हैं. लड़की किसी की हो, इस तरह सरेआम बदमाशी करना और सबका चुप रहना क्या ठीक है? वह पांच हैं, और हम लोग इतने. खदेड़िए उनको, सबक सिखाइए, दूर नहीं गये होंगे. आज यह लड़की है, कल कोई और हो सकता है.’’ उनकी ललकार पर कुछ हमारे अपने जवान लड़के, उनके पीछे, काफी लोग और भी दौड़ पड़े. सारा शोर गली की ओर मुड़ गया. एक डेढ़ मिनट बाद ही धाँय ही आवाज़ आई. लोग जल्दी से घरों में घुसने लगे-शोर हुआ, ‘‘गोली चल गई, कोई मारा गया.’’

‘‘कौन! कौन!’’ इधर घरों के लोग ही गये थे. उनके परिजन उधर ही दौड़ पड़े. खबर आई-सामने के घर के अन्नू के फूफाजी हैं-कुछ ही देर में नजारा ही बदल गया था. लुटे-पिटे वर्माजी, अपने तीस वर्षीय लहूलुहान बहनोई को लेकर अस्पताल भागे. हाहाकार मच गया था.

चौबीस वर्षीय रमोला, तीन वर्षीय तिमोती, भौजाई ललिता की चीखें आसमान भेद रही थीं. पुलिस शिनाख्त, रंग, लड़की, फायर, फिर यह मौत... पूरा सन्नाटा पसरा था. सब दरवाजे बंद हो गए थे. चीखें चुप हो गई थीं.

पुलिस के बूटों की खटखट और सन्नाटे को तोड़ती एक टैम्पो की आवाज़ आई. बहनोई जी के घरवाले आ गए थे. हृदय विदारक चीखें दीवारें भेद रही थीं. तुरंत ही वह चीखें आवाज़ में बदल गईं.

रमोला की सास, रमोला के लम्बे बालों को खींच-खींच कर उसे दीवार से पटक रही थी.

‘‘होली मायके में मनाय के खाय गई न हमरे लाल को. कुलनासी, कुल कलिंकिनी...सब नास कर दिहिस’’ भौजाई दौड़ीं... ‘‘माँ जी इसमें इसका क्या दोष...’’ सास ने उसकी ओर भी जलती आँखों से देखा, ‘‘ठीक कही बहूरानी, दोस तो हमरा ही था जो...’’

वह अपनी छाती कूट रही थीं, सिर दीवार पर मार रही थीं.

बहू निस्पंद निष्चेष्ट दीवार से चिपकी थी.

सास ने पति को झकझोरा-‘‘बुलाव गाड़ी, चलउ अभी...’’ दूसरा बेटा उन्हें लेकर बाहर चला गया. गाड़ी तैयार खड़ी थी, उसी तरह विलापती वह गाड़ी में बैठीं. पीछे आती बहू को उन्होंने फिर धक्का दिया-और रमोला के गले में पड़ा रक्षा कवच खींच कर बच्चे के गले में डाल दिया.

‘‘कहां आय रही, अब तू मायके में रह, अब तू देख हां हमारे लिए मर-खप गई, जा मर

कलमुंही...’’

उसकी गोद से बच्चा छीनकर वह गाड़ी में बैठ गईं. सहमा बच्चा भी अब चीख पड़ा था. अभी तक चुप बहू रमोला चीख मारकर बच्चे की ओर झपटी, पर गाड़ी जा चुकी थी. कुछ ही क्षणों में उसका सबकुछ जा चुका था। उसका सौभाग्य, उसकी गोद, उसका संसार... लहराकर वह वही गिर पड़ी. लम्बे काले बाल गोरे चेहरे को ढक चुके थे. बालों की जाली से दिख रही थी बस दाहिनी आँख-आधी खुली-आँख कुछ नहीं देख रही थी, सब उसे देख रहे थे. उस एक आँख की लपट से तू अन्जान है, पहचान चाहिए तुझे.

हाँ, वो गरदन का बड़ा-सा काला मस्सा जिससे वो माँ के हाथ निकाल कर खेला करता था. फिर जोर से दबा भी देता. मां को दर्द भी होता तो वो हाथ दिखाती कि मारूँगी, तो फिर वो बच्चा जल्दी से अपना चेहरा माँ के आँचल में छिपा देता-इस समय दिखाई दे रहा है गर्दन का वो मस्सा.

तीन साल के बच्चे तिमोती के मस्तिष्क पर इस घटना का गहरा असर हुआ था. लुटी-पिटी माँ की गोद से जबरदस्ती छीने जाने का दर्द उसे बेचैन कर देता था. जब तक काले बालों, के बीच झाँकती वह जलती आँख उसके सपनों में उसे आक्रांत करती थी. वह बेचैन हो उठता था पर समय की धारा ने सबको अपनी जगह लगा दिया था.

डॉ. शिखा के शरीर के सारे रोयें खड़े हो गये.

आतंक से एक चीख निकल गई. हाँ हाँ पहचान पा रही है वह आँख, और उसकी जलन, जिसमें स्वयं उसके भी जीवन को बेरंग कर दिया था. एकाकी रहना उसके व्यक्तित्व का पर्याय बन गया था. माता-पिता के अथक प्रयास के बावजूद अपने जीवन में कोई रंग न भरना उस एक आँख की चीख के कारण ही तो था. आज रंगों के कोलाज में वह सफेद आकृति अपने अर्थ खोल रही थी.

शिखा अपने बिस्तर पर करवटें बदल रही थी. रात उसके लिए हुई ही कहाँ, अचानक वह उठ बैठी-गाड़ी निकाल कर अस्पताल के मानसिक रोगियों के वार्ड की ओर दौड़ गई थी.

संख्या 20 बेड उसके सामने था.

बदहाल सी डॉ. शिखा को वार्ड में पैर रखते देखकर स्टॉफ नर्स परेशान हो गई.

रात के साढ़े तीन बजे-‘‘डॉ. शिखा स्लीपर डाले नाइट गाउन में... यहाँ...’’

अब डॉ. शिखा ने ध्यान से देखा.

वह औरत टेढ़ी लेटी हुई थी. उसके लंबे सर्फिल केश उसके चेहरे पर फैले हुए थे, बालों के बीच से वह दाहिनी आँख दिखाई दे रही थी. पर अब उसमें तपती लपटों की जगह राख के ढेर थे. कोई ज्वलनशील पदार्थ उसमें पहले ही विस्फोट कर चुका था. रंग अब उसे भिगोते नहीं थे, विक्षिप्त कर देते थे, वरना अब वह सामान्य थी.

शायद बीस बर्षीय तिमोती ने उसे पहचान लिया है. माँ जो है उसकी. ममता के रंग ने इस पर शीतलता की वर्षा कर दी है.

अब सुबह के चार बज गये हैं. वार्ड के गेट पर तिमोती खड़ा है. उसकी प्रश्नात्मक दृष्टि के उत्तर में-‘‘एक काल थी.’’

काश कि शिखा, तिमोती को बता सकती कि उन दोनों के जीवन क्रम में गहरे अवसाद, तीक्ष्ण व्यथा के रंगों के संयोजन की सूत्रधार वह स्वयं है. वही तो थी वह लड़की-जिसकी अस्मिता की रक्षा के लिए उसके पिता ने सीने पर गोली खाई थी. हँसता-खेलता परिवार होली के रंगों में लहूलुहान हो गया था.

सम्पर्क : आस्था, 19/1152, इन्दिरा नगर,

लखनऊ-2620016 (उ. प्र.)

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: प्राची - सितम्बर 2018 - कहानी // वह लड़की // सुषमा श्रीवास्तव
प्राची - सितम्बर 2018 - कहानी // वह लड़की // सुषमा श्रीवास्तव
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhRkNTL3efat97yjgZ7KCBZhvL81Yn9McLIIFJ5wEKQgmWNsZucxyP71wJ5jf-C-baG8xV6JxzT7dsZOrs3mKnYTIZvRbp9XY2FVinos3WcAJFxVO_PE_6sBCK-GX0gs81a5Cs8/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhRkNTL3efat97yjgZ7KCBZhvL81Yn9McLIIFJ5wEKQgmWNsZucxyP71wJ5jf-C-baG8xV6JxzT7dsZOrs3mKnYTIZvRbp9XY2FVinos3WcAJFxVO_PE_6sBCK-GX0gs81a5Cs8/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2018/10/2018_43.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2018/10/2018_43.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content