ग़ज़ल उससे अब मुलाक़ात शायद ही हो, कह सकना दिल की बात शायद ही हो. महीने के इन आखि़री दिनों में, उस ग़रीब के घर भात शायद ही हो. कोई कमी न ...
ग़ज़ल
उससे अब मुलाक़ात शायद ही हो,
कह सकना दिल की बात शायद ही हो.
महीने के इन आखि़री दिनों में,
उस ग़रीब के घर भात शायद ही हो.
कोई कमी न रहे अगर कोशिशों में,
तब किसी काम में मात शायद ही हो.
मेहनतों से कमाए हैं तक़दीर के उजाले,
अब उसकी ज़िन्दगी में रात शायद ही हो.
बिखर गए हैं ज़र्रा-ज़र्रा प्यार के रिश्ते,
फिर इन रिश्तों की शुरूआत शायद ही हो.
-0-0-0-0-0-0-
[post_ads]
ग़ज़ल
ठीक नहीं इतना घबराना,
मुश्किलों से क्या शरमाना.
क्या पता कि कब मिल जाए,
ख़ुशियों से इक भरा ख़ज़ाना.
ठुकरा दिया बेदर्दी से उसने,
पेश किया जब दिल नज़राना.
ख़ुशियाँ आईं न पास हमारे,
कभी कोई कभी कोई बहाना.
अक्सर हमको लगने लगता,
बेहतर नहीं है क्या मर जाना?
-0-0-0-0-0-0-
ग़ज़ल
ज़ख़्म मिले इतने सारे,
लेकिन लगते सब प्यारे.
दुनिया ने की कोशिश भरसक,
लेकिन हम तो न हारे.
इतने दूर हुए हम दोनों,
धरती से जितने तारे.
कुछ करके दिखलाओ भी,
नहीं लगाओ केवल नारे.
मिल गए अचानक जब वो,
साँस रूकी ख़ुशी के मारे.
-0-0-0-0-0-0-
ग़ज़ल
दिल मेरे, क्यों रोता है?
होने दे, जो होता है.
लगता है मासूम बहुत,
लेकिन ज़हर का सोता है.
ख़ुशियाँ कैसे पाएगा,
जो काँटे ही बोता है.
हरदम हँसता रहता है,
अन्दर से पर रोता है.
उसकी यादों का तूफान,
अक्सर मुझे भिगोता है.
करने पड़ रहे उसे ही फाके,
जिसने खेत को जोता है.
जीना हुआ अपना ऐसे,
जैसे ज़हर में गोता है.
-0-0-0-0-0-0-
[post_ads_2]
ग़ज़ल
अन्दर-अन्दर रोता दिल,
जीना हुआ बड़ा मुश्किल.
तेवर तीखे सूरज के,
होगी छाँव कहाँ हासिल.
न जाने क्या जादू है,
देख उसे दिल जाता खिल.
सूखी रोटी भी मिले नहीं,
बन्द हुई है जब से मिल.
आधी तनख़ा लूट गए,
बिजली-फोन-बनिए के बिल.
-0-0-0-0-0-0-
ग़ज़ल
इतना चुप क्यों रहता है,
हमसे क्यों नहीं कहता है.
न जाने उसके दिल में,
कौन-सा तूफाँ बहता है.
दिल के सारे ज़ख़्मों को,
गुपचुप-गुपचुप सहता है.
जब अपना कोई दे धोखा,
दिल में कुछ-कुछ ढहता है.
ऊपर-ऊपर से हँसता है,
अन्दर वह रोता रहता है.
-0-0-0-0-0-0-
ग़ज़ल
कैसे बतलाऊँ कि दर्द कितना है,
मेरा दिल अन्दर से ज़र्द कितना है.
तुम उसे जानते नहीं हो पूरी तरह,
मुझे पता है वह हमदर्द कितना है.
दिख रहा साफ जो मकान बाहर से,
नहीं मालूम अन्दर ग़र्द कितना है.
दर्द भुलाने को वह भटके कहाँ-कहाँ,
सब कहते उसे आवाराग़र्द कितना है.
हो गए दूर इक-दूजे से हम इतना,
पता नहीं अब रिश्ता सर्द कितना है.
-0-0-0-0-0-0-
ग़ज़ल
अपनी कोई पहचान नहीं,
ज़िन्दा कोई अरमान नहीं.
दिल में इतने जख़्म भरे,
चेहरे पर मुस्कान नहीं.
खरा दोस्त जो अपना हो,
मिला ऐसा इन्सान नहीं.
दिल अपना ऐसा टूटा,
इसमें तो अब जान नहीं.
सह लेंगे हर मुश्किल हम,
सहेंगे मगर अपमान नहीं.
-0-0-0-0-0-0-
ग़ज़ल
ज़रूरत से ज़्यादा वह चालाक है,
जताए ख़ुद को सोना, भले ख़ाक़ है.
छुपा ले अपनी ग़रीबी को कितना,
जान लेंगे सभी गर गिरेबाँ चाक है.
हो गया पैसा ही पैमाना इज़्ज़त का,
पैसेवालों की ही अब ऊँची नाक है.
शराफ़त की अब कोई कीमत रही नहीं,
गुण्डों की अब तो सब तरफ़ धाक है.
चेहरे पर लगा लेते हैं लोग मुखौटे,
पता न चले कौन कितना पाक़ है.
-0-0-0-0-0-0-
ग़ज़ल
ज़िन्दगी के अजब नज़ारे हैं,
हम ज़िन्दगी के ही मारे हैं.
हँसी-खुशी की बातें भूल गए,
हर तरफ़ ग़म के ही इशारे हैं.
इलाज भूख का उसके पास नहीं,
उसके तरकश में सिर्फ़ नारे हैं.
दुनिया समझे न हमें किसी लायक़,
समझें अपने को हम सितारे हैं.
अपने दर्दों की दवा ढूँढे कहाँ,
दर्द भी तो इतने सारे हैं.
-0-0-0-0-0-0-
ग़ज़ल
ज़ख़्म दिल के हरे-हरे-से रहते हैं,
सभी अरमान मरे-मरे-से रहते हैं.
शराफ़त ही होता है जिन लोगों का ईमाँ,
न जाने क्यों डरे-डरे-से रहते हैं.
बड़ा मुश्किल है सह पाना सच्चे इन्साँ को,
ऐसे आदमी से लोग परे-परे-से रहते हैं.
बस गए हैं इतने ज़्यादा ग़म दिल में,
इसीलिए तो हम भरे-भरे-से रहते हैं.
मिल न पाई कोई ऐसी बस्ती हमको,
जहाँ पे बाशिन्दे खरे-खरे-से रहते हैं.
-0-0-0-0-0-0-
परिचय
नाम हरीश कुमार ‘अमित’
जन्म 1 मार्च, 1958 को दिल्ली में
शिक्षा बी.कॉम.; एम.ए.(हिन्दी); पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा
प्रकाशन 700 से अधिक रचनाएँ (कहानियाँ, कविताएँ/ग़ज़लें, व्यंग्य, लघुकथाएँ, बाल कहानियाँ/कविताएँ आदि) विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित. एक कविता संग्रह 'अहसासों की परछाइयाँ', एक कहानी संग्रह 'खौलते पानी का भंवर', एक ग़ज़ल संग्रह 'ज़ख़्म दिल के', एक बाल कथा संग्रह 'ईमानदारी का स्वाद', एक विज्ञान उपन्यास 'दिल्ली से प्लूटो' तथा तीन बाल कविता संग्रह 'गुब्बारे जी', 'चाबी वाला बन्दर' व 'मम्मी-पापा की लड़ाई' प्रकाशित. एक कहानी संकलन, चार बाल कथा व दस बाल कविता संकलनों में रचनाएँ संकलित.
प्रसारण - लगभग 200 रचनाओं का आकाशवाणी से प्रसारण. इनमें स्वयं के लिखे दो नाटक तथा विभिन्न उपन्यासों से रुपान्तरित पाँच नाटक भी शामिल.
पुरस्कार-
(क) चिल्ड्रन्स बुक ट्रस्ट की बाल-साहित्य लेखक प्रतियोगिता 1994, 2001, 2009 व 2016 में कहानियाँ पुरस्कृत
(ख) 'जाह्नवी-टी.टी.' कहानी प्रतियोगिता, 1996 में कहानी पुरस्कृत
(ग) 'किरचें' नाटक पर साहित्य कला परिाद् (दिल्ली) का मोहन राकेश सम्मान 1997 में प्राप्त
(घ) 'केक' कहानी पर किताबघर प्रकाशन का आर्य स्मृति साहित्य सम्मान दिसम्बर 2002 में प्राप्त
(ड.) दिल्ली प्रेस की कहानी प्रतियोगिता 2002 में कहानी पुरस्कृत
(च) 'गुब्बारे जी' बाल कविता संग्रह भारतीय बाल व युवा कल्याण संस्थान, खण्डवा (म.प्र.) द्वारा पुरस्कृत
(छ) 'ईमानदारी का स्वाद' बाल कथा संग्रह की पांडुलिपि पर भारत सरकार का भारतेन्दु हरिश्चन्द्र पुरस्कार, 2006 प्राप्त
(ज) 'कथादेश' लघुकथा प्रतियोगिता, 2015 में लघुकथा पुरस्कृत
(झ) 'राष्ट्रधर्म' की कहानी-व्यंग्य प्रतियोगिता, 2016 में व्यंग्य पुरस्कृत
(ञ) 'राष्ट्रधर्म' की कहानी प्रतियोगिता, 2017 में कहानी पुरस्कृत
सम्प्रति भारत सरकार में निदेशक के पद से सेवानिवृत्त
पता - 304, एम.एस.4, केन्द्रीय विहार, सेक्टर 56, गुरूग्राम-122011 (हरियाणा)
ई-मेल harishkumaramit@yahoo.co.in
शराफ़त ही होता है जिन लोगों का ईमाँ,
जवाब देंहटाएंन जाने क्यों डरे-डरे-से रहते हैं.
वाह।