सहमति 'असहमत’ होने की // डॉ. आभा सिंह

SHARE:

' काज़ी जी दुबले क्यों तो शहर की चिंता में ’ इस मुहावरे को यदि किसी को चरितार्थ होते देखना हो तो उन ठिकानों पर देख ले जहां लोग इकट्ठा ही ...

snip_20180629113259

'काज़ी जी दुबले क्यों तो शहर की चिंता मेंइस मुहावरे को यदि किसी को चरितार्थ होते देखना हो तो उन ठिकानों पर देख ले जहां लोग इकट्ठा ही इस दृष्टि से होते है कि बस क्रांति के कुछ बीज हाथ लग जाए तो वे उसे उन जगहों पर बो देंगे जहां परिवर्तन की आवश्यकता है। बीजों के फल लगेंगे, फूल खिलेंगे जो परिवर्तन के काम आएंगे और परिवर्तन 'हमलाएंगे। इस प्रजाति के लोगों को तलाशना बहुत मुश्किल भी नहीं है जो 'जादू के प्रयोगद्वारा क्रांति से परिवर्तन की धूरी नापते है, इस तरह के असंख्य 'बिरले’ (असंख्य भी बिरले भी) उन जगहों पर पाए जाते है जिसे 'अड्डाया ढ़िया या फिर 'मुल्ला की दौड़ की 'मस्ज़िदके रूप में जाना जाता है। ऐसे ही एक ठिकाना था जहां तीन दोस्त मिलकर 'गहन चर्चाकर रहे थे।

अब यह चर्चा की खुशनसीबी कम, बदनसीबी ही ज्यादा है कहा नहीं जा सकता पर यह जरूर कहा जा सकता है कि कड़ी निंदा और गहन चर्चा दोनों का भाग्य लगभग एक जैसा ही होता है। गहन होते ही बेनतीजन हो जाती है। गहन होने पर तो रामसेतु के पत्थर भी तैर नहीं पाए डूब गए वह तो तब तैरे जब उनमें से उनका मैं रूपी घनत्व कम किया गया ऐसा कहा जाता है, यह कभी नहीं सुना कि ऐसा माना जाता है। तो जब पत्थर गहन होकर डूब सकते है तो फिर चर्चा की क्या मजाल जो पार लग जाए वह भी अपनी दिशा बदलकर डोलने लग जाती है। चर्चा को गहन के बजाए यदि नतीजन कहा जाए तो हो सकता है नतीजा भी निकले आखिर है तो क्रिया ही, कर्म पर आधारित तब चर्चा का सुख ही नहीं हम उसका लाभ भी ले पाते पर 'चौबेजी गए थे छब्बेजी बनने दुबेजी बनकर रह गएकी नस्ल (बहुत प्रभावशाली शब्द है, चमत्कारी असर दिखाता है, तर्ज में वो बात नहीं) के अनुसार चर्चा भी कहीं चर-चुरा के चली जाती है। नतीजे पर आ ही नहीं पाती और गहन चर्चा नतीजन चर्चा नहीं हो पाती।

खैर, चर्चा तो चर्चा है भई कोई सरकारी योजना तो है नहीं जो भौतिक शास्त्र के कहे अनुसार बिजली की तरह पहले दिखाई देगी और फिर सुनाई देगी। योजना की तो नियती ही यही है कि वह बार-बार सुनाई देती है पर एकबार भी दिखाई नहीं देती। ऐसे ही अनौपचारिक औचित्य के साथ तीन मित्र एक स्थान पर (वही स्थान जहां क्रांति को परिवर्तन के रूप में उगाने वाले बीज मिलते है) चर्चा कर रहे थे। हल्की-फुल्की सी लगने वाली यह चर्चा बाद में सरकार के ठोस कदम की तरह गहन हो गई। प्रारंभ में यह चर्चा बिल्कुल साधारण बातचीत थी।

पहले मित्र ने कहा -

गजब की गरमी है भई इन दिनों।

वाक्य कहते समय पहले के चेहरे पर वही भाव थे जो सत्यनारायण की कथा सुनते समय श्रोता रूपी भक्त का कथावाचक के प्रति होता है जिसे हम निर्विकार कह सकते है।

अब इन तीन मित्रों में से जो दूसरा था वह उनमें से था जो इस बात पर भी लड़ सकता था कि सुंदरकांड में से महाभारत की कथा किसने चुराई। यह अलग बात है कि उसका आस्तीन चढ़ाना लड़ने का संकेत भले ही देता हो पर वास्तव में वह अपने अभिनय कला का परिचय दे रहा होता था। तो ऐसा 'दूसरादरअसल दूसरा ही था तो चोरी का आरोप लगाते समय जो लहजा बनाना होता है उसी लहजे को बनाकर वह बोला -

'गरमी तो बढ़ेगी ही भई लोगों के दिमाग जो इतने गरम है।

इस वाक्य को कहते समय उसके चेहरे पर वही तेज था जो मतदान को लाखों बार गुप्त कहा जाने के बाद भी दमदार (दामदार) उम्मीदवार के चेहरे पर होता है। इन दोनों मित्रों के साथ एक तीसरा भी था जो उतने ही ध्यान से दोनों की बात सुन रहा था जितने ध्यान से अधिकारी प्रशासन की सुनता है। उसे यह दो तरह की गरमी वाला समीकरण समझ नहीं आया और समझ नहीं आने पर 'होम करते हाथ जलानाका उदाहरण चरितार्थ करने हेतु वह बोल पड़ा -

क्या आप लोग मौसम की बात कर रहे है?

तीसरे के इस अति अयोग्य (आप अधमी, अविश्वसनीय, चापलूस जो चाहे हो सकते हो पर अयोग्य नहीं) प्रश्न ने वही काम किया जो गर्मी के दिनों में सूखा या अकाल करता है जिसके परिणाम स्वरुप पहले को पहले तो गुस्सा आया फिर समझ आया तो उसने समझदारी से जवाब दिया की - मौसम की ही तो गरमी बढ़ रही है भई।

वहां जो दूसरा था जैसा कि बताया जा चुका है कि वह दूसरा ही था वह बोला -

नहीं बिल्कुल नहीं मौसम में गरमी इसलिए बढ़ रही है क्योंकि लोगो के तेवर बहुत गरम है।

इन तीनों में तीसरा थोड़ा अधिक सीधा था जिससे सरल भी था उसकी समस्या यह थी कि वह अपनी समझदारी को ही अपनी जिम्मेदारी समझ लेता था जैसे अभी उसकी समझदारी को महसूस हुआ कि अब बोलने की बारी उसकी है वह जिम्मेदारी से बोल पड़ा कि - दिमाग और तेवर तो इसलिए गरम है भई क्योंकि मौसम में ही गरमी बढ़ गई है और बढ़ती गरमी का कुछ तो फर्क पड़ेगा ही।

तीसरे के इस जवाब ने दूसरे पर भाषा और भौतिकी का एक सा प्रभाव डाला क्योंकि यह वह बिजली थी जो दूसरे पर गिरी जिससे जन्मा उसका क्रोध दिखा और हमारी प्यारी भाषा का मुहावरा 'बिजली गिरनाचरितार्थ हुआ। पहला तो अडिग रहा पर दूसरा विचलित हो गया लेकिन वह बडी मजबूत जवाब शक्ति (इच्छाशक्ति) वालों में आता था। यह अपनी वाक-कला से हिमालय पर भी बरफ बेच कर आ सकता है, इनसे सवाल करने के बाद व्यक्ति खुद से ही सौ बार वही सवाल दोहराता है कि कही उसका सवाल सही तो नहीं है (जांच सही की ही तो की जाती है) इनसे किसी भी तरह का कितना ही डगमगाया सवाल पुछ लो जवाब अडिग ही होगा, और उसी अडिगता के साथ वह बोला -

'अब तुम्हें फर्क पड़ राह है, उस समय नहीं पडा जब मैंने कहा था कि गरमी ज्यादा है। तुमने उस समय मुझसे कहा कि गरमी का क्या है वह तो साहूकार के ब्याज की तरह बढ़ती ही जाती है। लेकिन इस साल तुम्हे गरमी लग रही है (सहमत न होने का कारण देखिए कितना गंभीर है)।

दूसरे द्वारा लगाया गया आरोप उतना भयानक नहीं था जितना हिंसक कहने का तरीका था। बिचारा पहला और तिसरा दोनो ही नहीं समझ पाए कि उनका सिर ओखली में कब चला गया और कब दूसरा मूसल को नियंत्रित करने लगा ठीक वैसे ही जैसे अधिकार होते सभी के पास है पर उपयोग में किसी-किसी के ही आते है। दोनो ही बड़े संयत स्वर में बोले गर्मी से भला कैसा मान न मान वह तो पड़ेगी ही। यह कोई सहमति-असहमति वाली बात तो है नहीं।

'दूसरा' न केवल सवाल रोचक करता था अपितु गप्प भी बहुत अच्छी हांक लेता था। एक बार चरवाहा अपने मवेशी हांकने में चूक सकता है पर यह बिना मवेशी के भी हांक लेता था और जब वह हांकने के अंदाज में आता था तब न केवल चेहरे पर ही नहीं शब्दों में भी राजा हरिशचंद्र के बाद का एकमात्र सत्यवादी होने का हठ आ जाता था। अपनी बात को सही साबित करने के लिए वह बड़ी ही शांति से बोला -

बात दरअसल ऐसी है कि कुछ बढ़ा नहीं है बल्कि घटा है, यह बढ़ती गरमी का नहीं बल्कि घटती सहनशक्ति का परिणाम है।

पहले और तीसरे के लिए यह जवाब ठीक वैसा ही था जैसे कक्षा के किसी विद्यार्थी को 'दांत खट्टे करनामुहावरे का वाक्य में प्रयोग करने के लिए कहा जाए और वह कहे कि 'राम ने आम खाकर दांत खट्टे किए।’ (मुहावरों के वाक्य में प्रयोग का सारा दारमदार भी राम के ही कंधों पर रखा गया है।

खैर, पहला और तीसरा दोनों ही इस विज्ञान को भी पछाड़ देने वाले वैज्ञानिक दृष्टिकोण को देखकर हकबका (हक्का-बक्का) कम गए सकपका ज्यादा। दोनों समझ गए कि अब प्रश्नों से ज्ञान नहीं मिलेगा जिज्ञासा जगानी पड़ेगी तभी इस मायावी सोच की जड़ें पता चलेगी। इस वक्त दोनों अद्भुत रूप से आश्चर्यचकित थे सो चकरा कर पूछ बैठे - भला इस गरमी का सहनशक्ति से क्या संबंध?

दूसरे ने रस सिद्धांत के सारे रसों का ऐसा मिश्रण बनाया मानो 'गोरसहो (पवित्रता की दृष्टि से यह जरूरी था) और इस पवित्र चादर की ओट में मूर्खता छिपाते हुए बोला कि -

देखिए जब 'हर तरफ तरक्की हो रही हैऐसा कहा जाता है पर होती तरक्की दिखे ना तो हम कल्पनाशक्ति का सहारा लेते है और तरक्की को महसूस करते है। तीसरा थोडा नादान था रुक नहीं पाया बोल पडा - क्यों भई तरक्की दिखेगी नहीं क्या? यह कोई भाव है जिसे महसूस करना पड़ेगा?

दूसरे पर तीसरे के सवाल का उतना ही असर पडा जितना नेता पर नैतिकता का पड़ता है। वह अपनी ही रौ में बोलता गया और बोलते समय वह बीच-बीच में भावुक भी होता रहा। कहने लगा - 'महसूस करोगे तभी तो सौन्दर्य नजर आएगा। तरक्की हो रही है इस तरह की आशावादी (हकीमी) सोच से ही तरक्की नजर आएगी और फिर चमत्कारिक रूप से शहर का प्रसिद्ध नाला भी नाला न लगकर टेम्स नदी की तरह नजर आएगा, अपनी घ्राणेन्द्रियों की शक्ति को इतना बढ़ा दो की बदबू भी किसी नई तरह की खुशबू सी लगने लगे, जिसे तुम गरमी-गरमी कह रहे हो उसे मस्तिष्क को ऊर्जा देने वाली वाष्प समझो, अपने विचारों में परिवर्तन लाओ। इन बातों में मत उलझो कि शहर का सौंदर्यीकरण हो रहा है या भंगारीकरण, तुम तो बस यह सोचो की तुम लंदन की प्रसिद्ध सड़क की सैर कर रहे हो परंतु यह सब तभी संभव होगा जब तुम अपनी सहनशक्ति बढ़ाओगे।

इतना विस्तृत जवाब (स्पष्टीकरण) पाकर भी पहले और तीसरे का संदेह बना ही रहा की उन्हें उत्तर मिला है प्रायश्चित्त करवाया गया है।

तीसरा थोडा टेढ़ा जानकार था अधिक समय तक अपने सवालों को सरकारी फाईल की तरह अटकते नहीं देख सकता था तुरंत पुछ बैठा -

क्या 20 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार को भी तरक्की मानना पड़ेगा?

दूसरा जो था वह जानकार कितना था यह तो नहीं कहा जा सकता पर अपनी बात का इतना तो क्या उतना भी विरोध सहन नहीं करता था, प्रतिक्रिया स्वरुप बोला -

तुम लोगों की समस्या यह है कि तुम सहमत नहीं हो सकते, सहमत नहीं होते न सही पर असहमत हो इसलिए विरोध तो मत करो। भला विकास का भी कोई विरोधी होता है!

आखिर बहुत कोशिश करने के बाद पहला और तीसरा इस नतीजे पर पहुंच ही गए कि दूसरे की समस्या का मूल आखिर कहा है, क्यों वह आलोचना को विरोध और चर्चा को आलोचना समझ लेता था।

बात दरअसल ऐसी थी कि कुछ वर्षों से समाज में एक नए तरह का व्यवहार संबंधी गुण दिखाई दे रहा था जो गुणकारी तो नहीं कहा जा सकता पर ऐसा आघात करता था जिससे की समझने की समझ कब चली गई समझ ही नहीं आता था। आंखों का दोष तो इस कदर बढ़ जाता था कि आंख के सामने बिंदु भी आ जाए तो वह भी हिंदु ही लगता था। इतिहास से ऐसा भयानक रूप से गंभीर लगाव की जब चाहे तब उसे कुरेद दे, खारिज कर दे, नकार दे या उसमें नया कुछ गढ़ दे कुछ भी संभव था। इस बीमारी का एक लाभ भी था जिसके चलते व्यक्ति घनघोर आशावादी हो जाता है मानो आशा न हुई नशा हो गई। नशा भी ऐसा की दूसरों के हलक में हाथ डालकर मनवाने को व्याकुल की 'अवतार होते हैभले ही इसे मनवाते-मनवाते विश्वास ही तार-तार क्यों न हो जाए।

कहते है इस बीमारी में कमलनाल काफी लाभदेह होती है पर वह बहुत अधिक पौष्टिक होने के कारण उसके मूल को आत्मसात करना आधों के बस का ही नहीं होता और बचे हुए आधे अपनी अवसादग्रस्त प्रवृत्ति के कारण मूल (नाल) को हजम नहीं कर पाते नतीजन बदहजमी हो ही जाती है।

पहले और तीसरे ने सोचा दूसरे को छोड़कर वे कहीं नहीं जा सकते क्या पता कहा चल दे। सहनशक्ति जो इतनी बढ़ा दी है, कुछ भी कर सकता है, कहीं भी चला जा सकता है। उसे रोके रखने के लिए तीसरे ने एक सवाल फिर कर दिया कि -

यह बताओ जब इतनी भयानक तरक्की हो रही है और हर चीज बढ़ती ही जा रही है (पाठक तरक्की को विकास पढ़ने के लिए स्वतंत्र है) चीजों पर टैक्स बढ़ रहा है, लोगों में असंतोष बढ़ रहा है, रोजगार से दूरी बढ़ रही है, झूठ बोलने की क्षमता भी बढ़ रही है तो क्या इस बढोतरी के क्रम में हमारी तनख्वाह भी बढेगी?

दूसरे के लिए जितना संभव हो सकता था उतने हिकारत की दृष्टि से उसने तीसरे की ओर देखा मानो इससे निम्न स्तर का सवाल तो हो ही नहीं सकता और जो सवाल ही नहीं हो सकता उसका जवाब भी वह क्यों दें। परंतु दूसरा क्योंकि 'दूसराथा उसने जवाब दिया।

बोला - तुम तनख्वाह पसंद लोग घूम-घूमकर अपनी आय पर ही आ जाते हो। क्या इतना भी नहीं जानते की एक बार में एक ही चीज बढ़ती है, अभी काम बढ़ा है कभी तनख्वाह भी बढ़ जाएगी। पहले अपनी सहनशक्ति तो बढ़ाओ महसूस करो कि तुम्हारी आय बहुत अधिक है और फिर भी बढ़ी हुई ना लगे तो जरूरतें घटा लो आय अपने आप बढ़ जाएगी।

'पहलाऔर तीसरा तो समझ ही नहीं पाए कि कब उनके हाथ भक्त वाले कृतज्ञता के भाव में जुड़ गए और चेहरे पर भी ऐसा प्रभाव दिखने लगा मानो किसी अवतार का जन्म तो हो ही गया।

इन दोनों को देखकर 'दूसराखुद भी सकपका गया क्योंकि वह किसी को भी स्वयं से असहमत होने की सहमति देता नहीं था और कोई उससे सहमत होता था नहीं बस यही कारण था कि 'काज़ी जी दुबले क्यों तो शहर की चिंता में।

नागपुर।

---000---

COMMENTS

BLOGGER: 1
  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन धारा 377 के बाद धारा 497 की धार में बहता समाज : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

    जवाब देंहटाएं
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: सहमति 'असहमत’ होने की // डॉ. आभा सिंह
सहमति 'असहमत’ होने की // डॉ. आभा सिंह
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjAjMu-oleElb7r8l-6EGdt-MzesFxjOccaLtFi2I38L0L5faus9YG_XWm_xG9cus_GyxXoEWayddZsiqb69O4rqRXKV1fQg1Ud-Gt2oXepOkV173YAWPQyEOmOTwJLHTYiyXB4/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjAjMu-oleElb7r8l-6EGdt-MzesFxjOccaLtFi2I38L0L5faus9YG_XWm_xG9cus_GyxXoEWayddZsiqb69O4rqRXKV1fQg1Ud-Gt2oXepOkV173YAWPQyEOmOTwJLHTYiyXB4/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2018/09/blog-post_36.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2018/09/blog-post_36.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content