कविता संग्रह // मनमन्थन // दुर्गा प्रसाद प्रेमी

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स्तों मनमन्थन में मानव ज्ञानार्थ हेतु संसार में प्रचलित तमाम पहलुओं पर चर्चा की गई है। पढें, समझें और लुत्फ उठायें। अपितु इस काव्य को किसी ज...

दुर्गा प्रसाद प्रेमी की 165 लड़ियाँ

स्तों
मनमन्थन में मानव ज्ञानार्थ हेतु संसार में प्रचलित तमाम पहलुओं पर चर्चा की गई है। पढें, समझें और लुत्फ उठायें। अपितु इस काव्य को किसी जाति धर्म सम्प्रदाय से न जोडें
(धन्यवाद)

(01)
मनमन्थन करके हार गया मैं समझ नहीं कुछ पाता हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर तो मन ही मन पछताता हूँ।।
जनसंख्या का भार बढ़ा तो दोष क्या है पौधों का।
रहने को घर नहीं है खोली दोष क्या है औधों का।।
रख सीमित परिवार सदा खुशहाल रहे तेरा जीवन।
हँसी खुशी सब रह पायें आबाद रहे तेरा जीवन।।
जीवन को बरबाद न कर बरबाद न कर इस माया को।

छोटा सा परिवार बना कर सफल बना ले काया को।।
छोटा हो परिवार तो सब सुख समृद्धि मिल जाती है।
कम मेहनत करने पर भी रोजी रोटी मिल जाती है।।
अच्छी शिक्षा मिल जायेगी नन्हे मुन्ने बच्चों को।
मत घबराना फ्री है आफर सिर्फ तेरे दो बच्चों को।।
मिल जायेगी तुझे सब्सिडी शासन के अधिकारों में।
सीमित है परिवार तेरा चर्चा होगी अखबारों में।।
अखबारों की बनेगी सुर्खी बुलंद रहे आवाज तेरी।
मान और सम्मान मिलेगा बन जायेगी बात तेरी।।
जनसंख्या के कम होने से देश तरक्की लायेगा।
विकसित कहते सभी देश फिर विकासशील बन जायेगा।।
भारत का सम्मान बढ़ाना सब की साझेदारी है।
जनसंख्या को सीमित रखना सबकी जिम्मेदारी है।।
प्रेमी निसदिन करें कामना सुख भोगें सन्तान सभी।
भारत के हित में सब रहना जनसंख्या कम करो सभी।।
बेटा हो चाहे बेटी हो सबका मान बराबर है।
बेटे से कम नहीं है बेटी सब स्थान बराबर है।।
माया इन्दिरा और कल्पना सब भारत की बेटी हैं।
राजनीति से आविष्कार तक कभी न पीछे हटती हैं।।
बेटी का है मान बड़ा बेटी तो सबसे प्यारी है।
बेटी की उपमा जग में दिल दिल में न्यारी न्यारी है।।
कोई कहे दुर्गा है बेटी कोई लक्ष्मी कहता है।
बेटी को सम्मान सदा प्रेमी के दिल में रहता है।।
मैं प्रेम बेटी चरणों में नित नित शीश झुकाता हूँ।
उठती मेरी नजर जिधर तो मन ही मन पछताता हूँ।।

(02)

मुझे लगे क्यों भोली जनता ठोकर खाती फिरती है।

इक पुतला सा बचा है बाकी न चलती न फिरती है।।

पल पल मरते देखा है मैंने इस निर्धन जनता को।

कोई फर्क नहीं पड़ता फिर भी जनता के उस हनता को।।

शासन ने अधिकार दिये क्यों जनता को नहीं मिलते हैं।

क्यों बेचारे फटी गुदडिया बार बार सब सिलते हैं।।

जीना मुश्किल किया है यारों धर्म के ठेकेदारों ने।

रिश्वतखोर दलालों ने कुछ चन्द लोग मक्कारों ने।।

प्रताड़ित निसदिन करते हैं जनता को मक्कार यहाँ।

निर्बल सी मजबूर है जनता कहो बताओ जाये कहाँ।।

न्यायालय जाती है फिर भी न्याय उसे न मिलता है।

न्याय फूल तो सदा से भाई दौलत आगे झुकता है।।

सालों पड़ी तारीख न्यायालय में जा जाकर हार गये।

नहीं मिला इंसाफ हमें न मुजरिम कारागार गये।।

सीना ताने चलता मुजरिम कहता क्या कर सकते हो।

हमसे बचना न मुमकिन है कितना तुम भग सकते हो।।

कर कर के फरियाद अदालत में जब तुम थक जाओगे।

करते करते आस न्यायालय तुम अन्धे हो जाओगे।।

शासन की सब चाल अदालत सारी कोट कचहरी है।

कहीं न मिलता न्याय होत हर जगह पे हेराफेरी है।।

काला कोट कभी तुमको इंसाफ नहीं मिलने देगा।

आपस में हम तुम दोनों को लड़ने की शिक्षा देगा।।

इसीलिए तो कोट कचहरी से प्यारे मैं डरता हूँ।

उठती मेरी नजर जिधर तो मन ही मन पछताता हूँ।।

(03)

कितना मूरख संसार है यह देखो बेटी से डरता है।

अपने बेटे के रिश्ता हित बेटी को खोजता फिरता है।।

हे मूरख मानुष गर तू बेटी को जन्म नहीं देगा।

सारी उम्र पछतायेगा फिर कन्यादान कहाँ लेगा।।

दानों में महादान सदा से कन्या दान कहलाता है।

डोली आँगन से उठी नहीं खुद को दानी कहलाता है।।

आँगन से डोली उठना शुभ सूचक कहलाता है।

जिस घर बेटी जन्म न ले बो सारी उम्र पछताता है।।

नित रोते हैं बेटे उसके किसको जाकर बहिन कहूँ।

खुशियाँ बिन बहिन अधूरी है त्योहार राह मैं किस की तकूँ।।

होती जो इक बहिन मेरी मैं भी तो राखी बँधवाता।

नहीं कलाई सूनी होती देख बहिन को हर्षाता ।।

बेटी तो मान जगत का बेटी मान बढ़ाना है।

कठिन परिश्रम करके भी बेटी को खूब पढ़ाना है।।

बेटी का सम्मान करो बस इतना ही मैं कहता हूँ।

उठती है मेरी नजर जिधर तो मन ही मन पछताता हूँ

(04)

बी.ए.किया बी.टैक किया बी.काम की डिग्री पाई है।

रात दिनों मेहनत कर करके फस्ट डिवीजन पाई है।।

घर में काम नहीं होता कैसे जीवन चल पायेगा।

क्या कोई रोजगार इन्हें सरकारी मिल पायेगा।

नहीं मिला रोजगार इन्हें तो कैसे समय बितायेंगे।

कैसे चलेगा जीवन इनका कैसे समय बितायेंगे।।

घर पूँजी बरबाद हुई सब पास न कुछ भी बाकी है।

रोजगार पाने की इच्छा इनके मन में जागी है।।

लिए सहारा बैसाखी का दूर नहीं जा पायेगा।

लगेगी ठोकर बीच रास्ते रस्ते में गिर जायेगा।।

इसीलिए कहते हैं प्रेमी लोहे की बनवा ले तू।

वो भी साथ नहीं देगी गर चाहे तो आजमा ले तू।।

बना स्वयं को दृढ़ तू अपने कभी नहीं गिर पायेगा।

राह का कोई पत्थर तुझको मात नहीं दे पायेगा।।

चूर चूर होगा वो पत्थर राह तेरी जो आयेगा।

निर्भय होकर कोसों की प्रेमी मंजिल चल पायेगा।।

चोर जमाना जालिम है किसी पर मत करना।

बात बात अपने जीवन में झगड़ा भी तू न करना।।

झग झगडा और नित्य बुराई पतन ओर ले जाती हैं।

प्रेम परख और मीठी बानी जीवन सफल बनाती हैं।।

जीवन की डग बहुत है लम्बी देख बुराई मत करना।

सत्य बचन और मीठी बानी तू अपने मन में रखना।।

कभी न धोखा खायेगा तू यश और मान भी पायेगा।

प्रेमी तेरा सारे जहाँ में नाम अमर हो जायेगा।।

मीठी बानी सत्य बचन का पाठ मैं तुझे पढ़ाता हूँ।

उठती है मेरी नजर जिधर तो मन ही मन पछताता हूँ।।

(05)

छल से भरा है जाम जहाँ का इसे तू धारण मत करना।

मद मदिरा और माँस का भोजन तू जीवन में मत करना।।

मद मदिरा और माँस चबाना इंसानों का काम नहीं।

इन्हें ग्रहण कर तू अपना जीवन करना बदनाम नहीं।।

मद मदिरा सेवन करने से बुद्धि नष्ट हो जाती है।

सारी माया लुट जाती है अक्ल बाद में आती है।।

मद मदिरा सेवन करने से बीच राह गिर जायेगा।

गली का कुत्ता आकर तेरा स्वागत कर भग जायेगा।।

चाटेगा तेरा सुन्दर मुखडा शू शू भी कर जायेगा।

देखेंगे सब लोग तमाशा शर्म से तू मर जायेगा।।

मदिरा का हर जाम जोशीला पीने बाले कहते हैं।

सारा दिन बस मदिरा के ही पीछे पीछे रहते हैं।।

प्रेमी गुड मीठा होता है फिर भी विष है भरा हुआ।

मदिरा में विष कितना होगा गुड ही तो है सडा हुआ ।।

लीवर फेल हुआ मदिरा से किडनी है जाने बाली।

प्रेमी कहें मान जा मूरख जान है अब जाने बाली।।

न अब काम करेगा कोई कैपसूल इन्जेक्शन भी।

प्रेमी काम नहीं आयेगा किडनी ट्रान्सप्लांट भी।।

खुद भी अपनी जान गया परिवार भिखारी बना दिया।

रोती है घर में नारी तुझे दुश्मन कहूँ या कहूँ पिया।।

मदिरा पान करने वालों को प्रेमी बेटी मत करना।

जीते जी अपनी बिटिया की नर्क जिन्दगी मत करना।।

इससे तो अच्छा होगा वो अविवाहित ही मर जये।

अविवाहित की काट जिन्दगी खुशी खुशी वो रम जाये।।

प्रेमी का पैगाम यही है सबको मैं समझाता हूँ।

उठती है मेरी नजर जिधर तो मन ही मन पछताता हूँ।

--.

(06)
क्या इस युग का हाल लिखूँ घर घर में चडडा बसता है।
उस चडडा ने बुरा किया सब लोग जमाना हँसता है।।
तिलक लगाये माला फेरे अक्ल नहीं दो आने की।
हाथ दबा की पेटी है मुँह में बदबू मयखाने की।।
ऊँची कुर्सी ऊँची टेबल अलग है केबिन बना हुआ।
नाक सामने मन्दिर है हनुमान का फोटो लगा हुआ।।
फिर भी है शर्म नहीं आती करता रहता है पाप सदा।
इस चडडा को क्या कहूँ हनुमान जरा अब तू ही बता।।
कहते हैं हनुमान की शक्ति सबसे न्यारी होती है।
जब मन्दिर में पाप है होते तब शक्ति कहाँ सोती है।।
आया डॉक्टर पास आस जीवन मेरा बच जायेगा।
पीडा होगी शान्त बचा जीवन सुख मय कट जायेगा।
कहें डॉक्टर रुप सदा भगवान के जैसा होता है।
देख समस्या हुनर से अपने सबको जीवन देता है।।
इसीलिए सारी जनता डॉक्टर को शीश झुकाती है।
रोती क्लिनिक पर आती है हँसती जनता जाती है।।
कर बीमार इलाज बडी मुश्किल विश्वास जमाया था।
माया को न जोर सका जनता का साथ निभाया था।।
फ्री दवायें बंटवाकर मैंने लोगों का भला किया।
कलयुगी डॉक्टर कहते हैं मूर्ख ये तूने क्या किया।।
न सोफा घर में तेरे न गोदरेज अलमारी है।
हमदर्दी न कर जनता से हमदर्दी बीमारी है।।
बेचारी बेबस जनता को जितना चाहे लूट यहाँ।
बिन दबा नहीं जीवन इनका मजबूर हैं सब जायेंगे कहाँ।।
प्रेमी ने हँसकर पूँछ लिया ऐसी भी क्या मजबूरी है।
ऐसा क्या रोग है जनता को सेवन नित दबा जरूरी है।।
हँस बोले उद्योग पति अब तुमसे क्या छिपाना है।
लेकिन प्रेमी जी याद रहे जनता को नहीं बताना।।
प्रेमी जी ने कहा ठीक जनता को नहीं बतायेंगे।
रातों रात उद्योग पति बनने का राज बतायेंगे।।
उद्योग पति के होंठ हिले लेकिन वो कुछ न कह पाये।
मूरख प्रेमी उद्योग पति से बिन बोले न रह पाये।।
प्रेमी बोले उद्योग पति क्यों माया में भरमाया है।
सोया में सोख्ता बेच बेच जनता को खूब खिलाया है।।
मैंगी में शीशा बेच दिया मैदा चाऊमीन बनाई है।
तेज मसाले डाल डाल जनता को खूब खिलाई है।।
सरसों को बदनाम किया पालिश का तेल मिलाया है।
धोखा देकर जनता को पैसा दिन रात कमाया है।।
तेरा ही है खून रगों में बना डॉक्टर है बेटा।
कहीं आँख तो कहीं है किडनी जनता का उसने बेचा।।
बेच बेच गुर्दे जनता के पैसा खूब कमाता है।
रोज सुबह को मन्दिर जाता लम्बा तिलक लगाता है।।
करता क्यों बदनाम कसाई तिल चन्दन उस रोली को।
क्यों भरता है पाप कमाकर अपनी खाली झोली को।।
सोच जरा गर बच्चे तेरे रोग से ग्रसित हो जायें।
रोग मूर्छा आ जाये बेहोश पडे वो सो जायें।।
क्या उनकी भी किडनी बिकवाकर दूर देश पहुँचायेगा।
या हुनर से अपने तू बीमारी दूर भगायेगा।।
हे मूरख भगवान है तू औलाद तेरी सारी जनता।
फिर क्यों दर्द भरी जनता की तू आवाज नहीं सुनता।।
माया का है काम जगत में सबकी बुद्धि हर लेना।
माया को बिसराकर मूरख भला काम कोई कर लेना।।
जो आया है बो जायेगा ऐसा सब लोग बताते हैं।
फिर भी माया वशीभूत हुए किडनी गुर्दे बिकवाते हैं।।
किडनी गुर्दे को बेच बेच माया से मोह लगायेगा।
यह साथ नहीं देगी प्रेमी जग छोड़ अकेला जायेगा।।
मैं तो हूँ कंगाल पति उद्योग पति न बन सकता।
क्योंकि अपने जी ते जी कोई गलत काम न कर सकता।।
पैसा है मेरे पास नहीं मैं कलम माँगकर लिखता हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर तो मन ही मन पछताता हूँ।।
 
(07)
अब क्या सुनाऊँ तुम्हें कहानी इस सुन्दर संसार की।
आओ सुनाऊँ तुम्हें कहानी एक धनी परिवार की।।
हुए सेठ इक धनी राम जिनकी खडसार निराली थी।
था चमन निराला फूलों का उनकी पहचान निराली थी।।
न घोडी थी न बंगला था न अलमीरा धन रखने को।
न गेहूँ था न चावल था नित नीम था उनके चबने को।।
सुबह सुबह का समय एक दिन चमन बाग से जा निकलने।
चमन बाग के गुल दस्ते देख उन्हें हँसने निकले।।
धनी राम ने रुक कर के फिर गुलदस्ते से पूछ लिया।
काहे रास्ता रोका है ऐसा मैंने क्या किया।।
एक फूल बोला मुस्काकर क्यों नित नीम चबाते हो।
गेहूँ के भन्डार भरे हैं उसको क्यों नहीं खाते हो।।
धनी राम बोले पुष्कर जी बोलो तुम क्या खाते हो।
नित्य सुबह को चमन बीच में भीनी खुशबू देते हो।।
गुलदस्ते ने कहा सेठ जी मैं स्थाई पौधा हूँ।
तपिश धूप को सहता हूँ और भीनी खुशबू देता हूँ।।
धनी राम ने कहा कास सबका मन हो तेरे जैसा।
खुशबू हो तेरे जैसी बिन लागत और बिन पैसा।।
गुलदस्ते ने कहा सेठ पैसे से क्या खरीदूँगा।
चार दिनों का जीवन मेरा पानी पीकर जी लुँगा।।
लेकिन तुमने नहीं बताया नित्य नीम क्यों चबते हो।
माया को क्यों जोड़ जोड़ तुम अलमीरा में रखते हो।।
धनी राम ने कहा पुष्प जी अलमीरा तो खाली है।
धनी राम की दौलत तो तुम पुष्पों की हरियाली है।।
गेहूं से गोदाम भरे मैं फिर भी कुछ न खाता हूँ।
ठंडा पानी पीता हूँ और नीम कली ही खाता हूँ।।
कहें पुष्प जी धनी राम से गेहूं का फिर क्या होगा।
गोदामों में सड़ जायेगा उसका अन्त यही होगा।।
धनी राम ने कहा पुष्प जी ऐसा न हो पायेगा।
साथ मेरे तुम चलकर देखो अन्न न जाया जायेगा।।
तन खाये से कुछ न होता मन खाये सब होता है।
इक इक दाना चुगता हूँ मैं नित भन्डारा होता है।।
इस हाड़ मास के तन खातिर मैं कुछ भी नहीं छुपाऊँगा।
अपने जीते जी जनता को भूखा नहीं सुलाऊँगा।।
क्या साथ लाया मैं अपने क्या लेकर मैं जाऊँगा।
चार दिनों का जीवन मेरा दौलत क्या छिपाऊँगा।।
भूखों को मिल जाये भोजन यही लक्ष्य बस मेरा है।
आज नहीं तो कल जाना है तिरिया रैन बसेरा है।।
धनी राम कहते सब मुझको पर मैं कोई धनी नहीं।
धनी राम की इस माया से कभी पुष्प जी बनी नहीं।।
माया ने बोला इक दिन मैं तुमको भरमाऊँगी।
नीम कली छुडवाकर तुमसे अन्न भोज करवाऊँगी।।
धनी राम ने प्रण किया मैं अन्न कभी न खाऊँगा।
दाना दाना जोड़ जोड़ नित्य भन्डारा करवाऊँगा।।
माया ने भन्डार भर दिये धनी का मन ललचा जाये।
नीम कली को छोड़ धनी गेहूं चावल कुछ तो खाये।।
इसीलिए सब लोग मुझे इक धनी व्यक्ति कहते हैं।
पर धनी राम तो अपना जीवन तन्हाई में जीते हैं।।
पुष्पराज ने कहा धनी जी माया तो सुखदाई है।
आती माया लात मारते क्या मुसीबत आई है।।
धनी राम ने कहा पुष्प जी माया जग की दुशमन है।
भाई से   भाई लड़वाकर छोड़ चली जा दामन है।।
माया दामन कभी न पकडो दूर सभी से कर देगी।
अपनों के प्रति अपनों के जहर ह्रदय में भर देगी।।
दीन बन्धु और सगे सम्बन्धी सभी दूर हो जायेंगे।
सारा जीवन अकेले रहकर हम कैसे जी पायेंगे।।
इसीलिए मैं त्याग पुष्प जी इस माया का करता हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर तो मन ही मन पछताता हूँ
--.
(08)
गुटका खा बर्बाद हुए अब मुँह से बदबू आती है।
पढी लिखी सारी दुनिया फिर भी गुटके को खाती है।।
क्या अमृत है गुटके में जो इतने लालायित हो।
मात पिता का कहा न मानों तुम कितने नालायक हो।।
खाकर गुटका बीच सड़क पर पीक मारता चलता है।
बीच सड़क में पाउच फेंकना अपनी शान समझता है।।
शान नहीं ये मक्कारी है आये दिन पछताओगे।
समय से पहले दाँत गिरेंगे खाना कैसे खाओगे।।
मुँह में हाथ नहीं जाता चम्मच से खाना खाता है।
गले ग्रास नहीं जाता नित दर्द की गोली खाता है।।
मक्खन का कोई ऐड नहीं नित गुटखा ऐड में आता है।
मक्खन से जीवन बचता है गुटखे से जीवन जाता है।।
है पान सुपारी गुटखे में पर जहर का वो परिचायक है।
गुटके से कितनी जान गई फिर भी कहते महानायक है।।
गुटका बिन खाये नेताजी संसद न जा पाते हैं।
बिन गुटखा के नेताजी इक पल भी रह न पाते हैं।।
गुटखा खाते शर्म न आती कहते यह स्टायल है।
कहते प्रेमी मान जा मूरख जहर की यही मिसाइल है।।
होंठों की शान बताते हैं मूरख गुटखे की लाली को।
लाली अन्दर जहर छुपा न आता नजर मवाली को।।
सुबह उठा गुटखा खाया गुटके से मंजन होता है।
गला कैंसर पकड़ लिया अब पड़ा जमीं पर रोता है।।
खूब चबाया रजनी गंधा बना शहंशाह फिरता था।
बाली उमर में गुटखा खाकर गली गली में फिरता था।।
साहू और उद्योग पति सब मौत बेचते फिरते हैं।
स्मगलिंग का धन्दा तो उद्योग पति ही करते हैं।।
गली गली में मौत बेचते जरा दया नहीं आती है।
इसीलिए तो माया सारी पास इन्हीं के जाती है।।
इन्हें नहीं है कोई फर्क किसी के जीने मरने का।
इनको तो मतलब रहता है माल तिजोरी भरने का।।
चमचम करता बना हो आफिस सोफा सेट निराला हो।
मतलब न हो दुनिया से अपना जीवन मतवाला हो।।
शीशे की हो चारदीवारी मेज रखा कम्प्यूटर हो।
विन्डो में चलती हो ए सी खाना पिज्जा बर्गर हो।।
जनता की औकात बतायें अपनी का है पता नहीं।
कहते सब माया की महिमा अपनी कोई खता नहीं।।
माया मन से भारी है और मन माया से हलका है।
इसीलिए मन के अन्दर माया का मचा तहलका है।।
नहीं देखती पाप पुण्य चाहे जितने दुष्कर्म करो।
उद्योग पति माया भूखा तुम चाहे जियो या चाहे मरो।।
मजदूर मजूरी भूखा है मेहनत कर कर वो हार गया।
पापी इस जग में फूला बैठे कुर्सी जो हार गया।।
मजदूर तिजोरी खाली है पापी की है भरी हुई।
मजदूर मौज में फिर भी है पापी की धोती फटी हुई।।
दो पैसे रोज कमाता है वो चैन नींद में सोता है।
पापी व्यापार है लाखों का फिर भी पापी नित रोता है।।
कहीं कत्ल का केश कहीं डांका में पुलिस उठाती है।
कोठी है आलीशान बनी पर पापी नींद न आती है।।
नैंनों रैन गुजरती है दिन दौड़ धूप कट जाता है।
हार्न आवाज सुनाई दे तो गांव छोड़ भग जाता है।।
छुपता फिरता है गली गली जंगल में जाकर सोता है।
यह पाप कमाया पैसा भी प्रेमी किस काम का होता है।।
बीबी की शान निराली है बेटा नित डर से रोता है।
माँ बाप बेचारे क्या कहें नित नया सबेरा होता है।।
हरि भजन साईं पूजा सब लोग सुबह को करते हैं।
पापी के द्वारे ठग बैठे मदिरा के पीछे लड़ते हैं।।
ऐसे जिल्लत के जीने से मर जाना अच्छा होता है।
ऐसी माया से तो प्रेमी निर्धन ही अच्छा होता है।।
माया न सही औलाद तो है नित उसको गले लगाता है।
बाँहों का झूला दे देकर नित उसको रोज सुलाता है।।
ऐसा जीवन है सुखदायी जो अपनों के बीच रहे।
दुख दर्द बाँट सब आपस में इक दूजे के साथ रहें।।
वो पति क्या जो पत्नी को जीवन का सुख न दे पाये।
पत्नी नित पिया वियोग सहे तन्हा ही जीवन कट जाये।।
तन्हाई का आलम तो विधवा ही तुझे बतायेगी।
कैसे जीवन कट पायेगा यह वक्त की राह बतायेगी।।
बिन दिया उजाला कैसे हो चहुं ओर अंधेरा दिखता है।
तन्हाई का तो इक इक पल वर्षों के जैसा कटता है।।
बिन बाती दीपक सूना सूना श्रृंगार है पति बिना।
संतान बिना आंगन सूना सूना संसार है पति बिना।।
पति पत्नी गर साथ रहें तो दुख भी सुख बन जाता है।
बुरा वक्त खुश देख उन्हें वापस पीछे हट जाता है।।
जीवन का संग संगिनी है अकेले न जीवन कटता है।
तन्हा जो जीवन हो जाये प्रेमी काँटा सा चुभता है।।
नर नारी से पशु तलक सबका इक संगी होता है।
जिसका  का न संगी हो प्रेमी वो सारा जीवन रोता है।।
इक पहिए की लारी कोई सफर तय नहीं कर सकती।
बिना संग जीवन की नौका कार कभी न हो सकती।
बिन मल्लाह की नाव हमेशा डूब बीच में जाती है।
बिन अभ्यास ज्ञान की पुस्तक बही धार में जाती है।
पुस्तक से गर ज्ञान मिले तो ज्ञानी सब हो जायेंगे।
कौन जायेगा विद्यालय क्यों अपना समय बितायेगे।
पुस्तक है भन्डार ज्ञान का पर अभ्यास जरूरी है।
नित उठकर विद्यालय जाओ जाना बहुत जरूरी है।।
विद्यालय शिक्षा का मन्दिर ऐसा ही मैं कहता हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर तो मन ही मन पछताता हूँ।।
---.
(09)
विद्यालय नित जाने से अभ्यास ज्ञान का होता है।
बिना गुरु पुस्तक बांचे आगाज हानि का होता है।।
बिना गुरु के ज्ञान किसी ने आज तलक नहीं पाया है।
बड़े बड़े ज्ञानी हैं जग में सब गुरुओं की माया है।।
गुरु है जग में ज्ञान का सागर बस इतना ही कहता हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर तो मन ही मन पछताता हूँ।।
(10)
सब नजरों का खेल यहाँ नजरें नजरों पर बार करें।
नजरों से सीना चौड़ा नजरें नजरों पर बार करें।।
नजरों से नजरों से रिश्ता नजरें ही सबसे प्यार करें।।
नजरों से मिल जाये नजरें नजरें मुश्किल को पार करें।।
नजरों से ही नजरों ने नजरों पर काबू पाया है।
नजर चूक जा नजरों से वो मिटटी मोल बिकाया है।।
नजरों में आई मिटटी भी इक दिन सोना बन जाती है।
नजरों से चूक जो हो जाये तो सारी उम्र सताती है।।
नजरों का सब खेल यहाँ नजरों से इज्जत बनती है।
नजरों से ही मंजिल है नजरों से राह चमकती है।।
नजरें गर धोखा दे जाये जग अंधियारा लगता है।
नजरों से बार करने बाला दुशमन भी प्यारा लगता है।।
नजरें ही बद से बदतर मानुष को यहाँ बनाती हैं।
नजरें ही बिन शादी के सुहाग स्वपन दिखाती हैं।।
है नजरों के बार ताकत मन इतना बेचैन हुआ।
अनजाने ही बनी संगिनी मन इतना बेचैन हुआ।।
नजर नजर का खेल है सारा नजर बार दिल होता है।
नजर बार जख्मी हो जाये अपना सब कुछ खोता है।।
बुरी नजर बचकर रहना मैं यही तुम्हें समझाता हूँ ।
उठती है मेरी नजर जिधर तो मन ही मन पछताता हूँ।।
(11)
हमने देखी है दुनिया जो गम में खुशी मनाती है।
बजा के ताली नाच सामने उसका हास उड़ाती है।।
चला गया बो जाने बाला अब अफसोस क्या करना।
खुशी बिदाई दे डालो अश्कों से बार नहीं करना।।
बरना उसके कदम कभी ऊँचाई न छू पायेंगे।
उलझ तुम्हारे अश्कों में वो आगे न बढ पायेंगे।।
ऐसा गर जो हुआ तो वो जीते जी मर जायेगा।
मंजिल छोड़ कामयाबी की वापस घर आ जायेगा।।
अश्कों का तो काम है बहना इनको तो बहना ही है।
तिनका हो या दर्द जुदाई इनको तो सहना ही है।।
गंगा जल जैसी निर्मल होती अश्कों की धारा।
कहीं प्यार तो कहीं जुदाई अश्कों से जग हारा।।
आँखें कितनी निर्मम है जो छुपा इन्हें रख लेती हैं।
सहकर अश्कों की गर्मी को खुश इतना रह लेती हैं।।
अश्कों की है अजब कहानी बिन चाहे बह जाते हैं।
कभी खुशी तो कभी जुदाई नैंनों में दे जाते हैं।।।
अश्क जुदा होकर नैंनों से कहो कहाँ छुप जाते हैं।
आँख से ढलकर गिरें जमीं पर मिटटी में मिल जाते हैं।।
अश्कों की है उम्र जुदा नयनों से होकर गिर जाना।
अश्कों की ताकत को प्रेमी अश्कों ने ही पहचाना।।
अश्क बड़े अनमोल हैं प्रेमी इनको मोती कहते हैं।
इसीलिए आँसू बनकर पलकों के नीचे रहते हैं।।
पलकें हैं आँसू की ताकत आँसू ताकत पलकों की।
आँसू बिन पलकें न भीगे पलकें ताकत आँखों की।।
हर तिनका हर खतरे से पलकें ही इन्हें बचाती हैं।
नयनों की रक्षा करने में पलकें धोखा खाती हैं।।
नयनों की रक्षा करना पलकों की जिम्मेदारी है।
प्रेमी यारी नयन पलक की जग में सबसे न्यारी है।।
गर्मी सर्दी तपिश धूप चाहे हो खुशियों का रंग।
पलक नयन की यारी ऐसी जैसे चोली दामन संग।।
क्या लिखूँ कुछ समझ न आये बस इतना ही लिखता हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर तो मन ही मन पछताता हूँ।।
(12)
होता है अन्याय यहाँ सब पाँव पसारे सोते हैं।
कहलाने को न्यायाधीश पर बीज बुराई बोते हैं।।
अपना अपनों को मरता है गैरों का है नाम कहाँ।
स्वतंत्रता के उन वीरों का इस जग में है नाम कहाँ।।
कौन हुआ आजाद यहाँ भारत आजाद कराने में।
कौन हुआ बलवान यहाँ कानून का पाठ पढ़ाने में।।
जिन वीरों ने जान गंवाई उनका नाम नहीं आया।
जिन्होंने खून पिया वीरों का उनको आगे दर्शाया।।
जनता से सरहद तक जिसने बीज लडाई बोया है।
है उसका सम्मान यहाँ वो पैर पसारे सोया है।।
घर घर में हर आफिस में नाम उन्हीं का होता है।
वीरों के घर जाकर देखो नित दिन माहतम होता है।।
क्यों शासन ने भुला दिया है भगत भीम से वीरों को।
भगत बोस आजाद भुलाकर नाम दिया क्यों औरों को।।
किसके सीने पर दाग लगा उन अंग्रेजों की गोली का।
किसने आलम झेला था वो खून जंग की होली का।।
किस माँ ने वो लाल जना किसने खाई रण में गोली।
वन्देमातरम नाम जुबां पर खूब चली जमकर गोली।।
तिलक लगा माथे माता ने अपना छोरा भेजा था।
भारत माँ की लाज बचे माता ने किया ढिंढोरा था।।
धन्य है ऐसी माता को मैं नित नित शीश झुकाता हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर तो मन ही मन पछताता हूँ।।
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(15)
बेचैन हुआ क्यों दिल मेरा कुछ समझ नहीं मेरे आया।
जब आँख खुली तो रजनी थी कुछ धुँधला धुँधला दिखलाया।।
हर बार दौड़ कर शेर मेरी निद्रा को दूर भगाता था।
कौन था बैरी निद्रा का कौन दौड़कर आता था।।
था रजनी का अन्धकार मैं समझ कुछ नहीं पाता था।
क्यों मेरी प्यारी निद्रा को मुझसे दूर भगाता था।।
वेचैन हुआ जब मन मेरा मैं उठ बिस्तर पर बैठ गया।
जब आँख खुली तो रजनी थी कुछ धुँधला धुँधला दिखलाया।।
मैंने देखा इक चूहा दौड़ बिल के अन्दर घुस जाता था।
सूखी रोटी वह बार बार इक थैली से ले जाता  था।।
मन के अन्दर नफरत जागी देख चुहे की मक्कारी।
न सोता न सोने देता भाग गई निद्रा सारी।।
निद्रा प्यारी या भूख बडी प्रेमी की समझ नहीं आया।
जब आँख खुली तो रजनी थ कुछ धुँधला धुँधला दिखलाया।।
कुछ देर बैठ मैंने देखा वो दौड़ रहा था इधर उधर।
नजर सामने बिल्ली थी वो सोच रहा अब जाऊँ किधर।।
दौड़ तभी बिल्ली झपटी बिल्ली ने उस पर बार किया।
दोनों पन्जों में जकड़ लिया जीना उसका दुश्वार किया।।
दुश्मन बीच में फँसा चूहा, रो रो फरियाद सुनाता है।
अब जान बचे प्रेमी कैसे नैंनों से नीर बहाता है।।
मैं बैरी था रोटी का, तू मेरी बैरी बन बैठी।
उठा लुत्फ इस रजनी का मेरी छाती पर चड बैठी।।
कुतर कुतर इस टुकडे को बार बार मैं खाता था।
देख न ले मुझको कोई ,बार बार भग जाता था।।
बिल्ली बोली अब मत भागना,क्योंकि मैं नहीं भाग सकती।
तीन दिनों से भूखी हूँ मैं साथ तेरे नहीं लग सकती।।
चूहा बोला छोड़ मुझे मैं तेरी भूख मिटाता हूँ।
अन्दर जाकर रोटी को मैं अभी चुराकर लाता हूँ।।
बिल्ली बोली ये मूरख तू मुझको राह बतायेगा।
अपना पेट नहीं भर सकता मुझको क्या खिलायेगा।।
चूहा हँसकर बोल पड़ा बिल्ली रानी खुद्दार हूँ मैं।
दौड़ झपट कर खाता हूँ गद्दार नहीं लाचार हूँ मैं।।
कास अगर मानुष जैसा मेरी बाजू में दम होता।
मेहनत करता रात दिनों न कभी भूख का गम होता।।
बिल्ली बोली कद देख तेरा,इक बात मैं तुझसे कहती हूँ।
आज से हम तुम दोस्त हैं खिड़की के पीछे रहती हूँ।।
चूहा बोला बिल्ली से,क्यों मूर्खता करती हो।
मुझे मारकर खा जाओ क्यों भूख से अपनी लडती हो।।
बिल्ली हँसी, चूहे से बोली क्यों शर्मिंदा करते हो।
सारी रजनी दौड़ दौड़ क्यों अन्न इकट्ठा करते हो।।
भूख नहीं ये डायन है इक दिन तुमको खा जायेगी।
सारी माया धरी भार में अन्त समय रह जायेगी।।
चूहा बोला क्या करें यह भूख तो जग की बैरी है।
माया को क्यों करें इकट्ठा ये तेरी न मेरी है।।
बिल्ली बोली चलो कहीं उपवन में दोनों चलते हैं।
नित्य जहां पर कन्द मूल फल खाकर पन्छी रहते हैं।।
चूहा बोला बिल्ली रानी जीते जी मर जाओगी।
नित्य माँस खाने बाली तुम कन्द मूल फल खाओगी।।
बिल्ली बोली चूहे जी यह सब मन का लेखा है।
सन्त बड़ा सन्तोष नहीं इस जग में मैंने देखा है।।
बिल्ली बोली चूहे जी जीवन ही तो जीना है।
माँस नहीं अब कन्द मूल खाकर ही पानी पीना है।।
चूहा बोला काश सभी के मन का लालच मर जाये।
जीव हत्या रोक लगे जीवों का जीवन बच जाये।।
प्रेमी जिसने जैसा वोया उसने बैसा है पाया।
जब आँखों खुली तो रजनी-------------  - ------
(16)
क्या तुमने उस नन्हें से कोमल पौधे को देखा है।
मृदुल मृदुल नम शाखाएं क्या उसकी जीवन रेखा है।।
मन्द मन्द सा हवा का झोंका उसे मात दे जाता है।
नन्ही नन्ही हरी पत्तियाँ उड़ा साथ ले जाता है।।
कभी कभी शाखाएं भी साथ छोड़ उड़ जाती है।
इक मीठा सा दर्द मेरे वो ह्रदय में दे जाती हैं।।
अब तुम्हीं बताओ क्या करुँ मैं इक नन्हा सा पौधा हूँ।
नन्ही सी है जान मेरी मैं तेज हवा में रौंदा हूँ।।
खाने को आहार नहीं भर पेट मुझे मिल पाता है।
छोटा होने के कारण सूर्य नहीं दिख पाता है।।
नहीं मिला आहार तो कैसे मैं जीवित रह पाऊँगा।
दूर सूर्य से रह कर कैसे जिन्दा रह पाऊँगा।।
विकसित होने से पहले मेरा जीवन मिट जायेगा।
क्या भरोसा पास खडा ऊँचा पौधा कट जायेगा।।
हे ईश्वर क्यों दुख देते हैं बड़े हमेशा छोटों को।
नित देखा सम्मान मिला इस जग में मोटे मोटो को।।
छोटा यदि नहीं होगा तो बड़ा कहाँ से आयेगा।
बिन छोटे निर्माण जगत प्रेमी कैसे हो पायेगा।।
न होता गर छोटा पौधा दरख्त कभी न बन पाता।
सूना रहता सारा जंगल हरा भरा न हो पाता।
छोटे से निर्माण जगत का प्रेमी मैंने देखा है।
क्या तुमने उस कोमल से नन्हें पौधे को देखा है।।
जीने का अरमान जगत में सबसे अन्दर होता है।
जीने की लौ उसे भी है जो पड़ा पालना रोता है।।
तन मिट्टी मनमूरख है श्वास सार है जीने का।
श्वास सार है जग सारा निरंकार ठिकाना रहने का।।
जान सके तो जान ले प्रेमी निरंकार की माया है
निरंकार कण कण बसता सब निरंकार की छाया है।।
माटी का तन दे मानुष से अपना काम कराता है।
श्वास रुप में आकर प्रेमी हर तन में बस जाता है।।
लाख करोडों रुप हैं उसके देख नहीं तू पायेगा।
जिस दिन दर्शन हो गये प्रेमी भव सागर तर जायेगा।।
भव सागर से मुक्ति देगा वो ही तो जग ज्ञाता है।
सृष्टि का सृजन हारा है वो ही जग का दाता है।।
प्रेमी की नित कलम चले नित निरंकार को ध्याते हैं।
निरंकार को शीश झुकाकर जीवन का सुख पाते हैं।।
हरि भजन गीता रामायण सच्ची जीवन रेखा है।
क्या तुमने उस कोमल से नन्हे पौधे को देखा है।।
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(17)
मनमन्थन करके हार गया पर समझ कुछ नहीं पाता हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर तो मन ही मन पछताता हूँ।।
अब ,हन होता मन से मन में व्याकुलता बढ़ती है।
बिल्ली का भाव हुआ महंगा अब पड़ी शेरनी रोती है।।
जर्मन लन्दन का भेष बना हिन्दुस्तानी कहलाता है।
घर में पतिव्रता नारी है औरों से दिल बहलाता है।।
न मान रहा सम्मान रहा कुल की इज्जत भी धो डाली।
जिसके कारण परिवार गया वो भी निकली धोके वाली।।
सिर की शोभा तो चली गई न रोली न सिन्दूर रहा।
कटे बाल फैशन वाले कंघी का झंझट खत्म हुआ।।
कैसे उस पथ को भूल गये कैसे वह सत्य विसार दिया।।
जिस माता ने जन्म दिया उस ही को थप्पड़ मार दिया।।
अब क्या लिखूँ मन की बातें कुछ भी लिखने से डरता हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर तो मन ही मन पछताता हूँ।।
न मोटर थी न लारी थी पैदल की मस्त सवारी थी।
दिल के अन्दर था प्यार भरा हँस कर सब राह गुजारी थी।।
मर मिटता था इक दूजे पर वो राह गीर भी प्यारा था।
चलते थे मंजिल कोसों की पर सत्य न कभी बिसारा था।।
ठोकर खाई पर संभल गये साथी ने कभी गिरने न दिया।
जिसकी खोली पर पहुंच गये दुग्धपान किया जलपान किया।।
क्या प्रेम था भारत बासी में मैं आज तुम्हें बतलाता हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर तो मन ही मन पछताता हूँ।।
(18)
मैं ढूंढ रहा उस मानव को जिसके दिल में था प्यार भरा।।
था अडिग अडिग अपने पथ पर मन में था उद्गार भरा।
औरों के खातिर जान गई मन में न कभी संकोच किया।।
दुख दर्द सहा औरों के लिये फिर भी न कभी अफसोस किया।
अब भाई भाई का दुश्मन ऐसी भी क्या मजबूरी है।
इस युग को यारों क्या कहूँ पर कहना बहुत जरुरी है।।
कहता हूँ दिल रोता है न कहता हूँ कुछ होता है।
इन्सां से ज्यादा वफादार हर युग में तोता होता है।।
तोते की सुन मधुर बानी मन में मृदुलता आती है।
जहाँ प्यार की संगत बैठी हो वहाँ मन में खुशी छा जाती है।।
अब कहाँ कहाँ ढूंढूं उसको मन में जिसकी है प्यास जगी।
चहु ओर नजर डाली देखा, है ईर्षा की आग लगी।।
कोई पत्नी से परेशान तो किसी का पति जुवारी है।
माँ रोती है आँगन में घर में तो बिटिया क्वांरी है।।
इस कमर तोड़ महंगाई में मैं कैसे ब्याह रचाऊँगी।
लोग हँसे दे दे ताली कैसे डोली बैठाऊँगी।।
मैं क्या करुँ भारत माता कैसे अब लाज बचाऊँगी।
इस लन्दन की मँहगाई से कैसे छुटकारा पाऊंगी।।
रात दिन कर याद पुरानी बातों को मैं रोता हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर तो मन ही मन पछताता हूँ।।
(19)
दो आने था तेल बिका जब मोटर थी अंग्रेजों की।
न बम था न गोली थी भरमार थी सिर्फ गुलेलों की।।
अब जान का दुश्मन बम भी है गोली तो है गली गली।
निसदिन खतरा सा रहता है कभी यहाँ चली कभी वहाँ चली।।
क्या वो भारत के लाल नहीं जिनको पहनाई है वर्दी।
हर डर से उनको मुक्त करो सब दूर करो दहशत गर्दी।।
दहशत में रोटी खाते हैं दहशत में जीवन बीत रहा।
गर्मी सर्दी और तपिश धूप सहकर भी सबको जीत रहा।।
सिर पर है बँधा कफन उसके फिर भी न हिम्मत हारी है।
जिस माँ के कारण युद्ध हुआ फिर भी वह बनी दुखारी है।।
किसकी है कमी किसका है दोष हम क्यों गोली से खेल रहे।
अमन चैन का भाषण दे क्यों बेचैनी को झेल रहे।।
किसे कहूँ किससे पूँछूँ मैं कहो क्या कर सकता हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर तो मन ही मन पछताता हूँ।।
(20)
अमन चैन को छोड़ किया था आन्दोलन आजादी का।
हिन्दू मुसलिम सिक्ख ईसाई इन सबकी बर्बादी का।।
कितने घर बर्बाद हुए कभी किसी ने सोचा है।
कुर्सी पाने के लालच में सबने किया तमाशा है।।
पहले था आजाद वतन है देश गुलाम बना।
नर से नारी को बोलो इस युग में क्या सम्मान मिला।
कहीं निकल न पाती घर से कहीं न उसका डेरा है।
जीना मुश्किल है उसका गुन्डों ने डाला फेरा है।।
कहीं राजनीति कहीं कुटिल नीति कहीं होता नंग तमाशा है।
नारी को मोहरा बना दिया सब हँसते हैं दे दे ताली।
कुर्सी की चाह सभी को है फिर कौन करेगा रखवाली।।
कौन बचाये उस माँ को जिसने जीवन बलिदान दिया।
सीने पर पत्थर रख कर के भारत को गौरव दान दिया।।
फिर भी इज्जत का नाश हुआ है कोई नहीं सुनने बाला।
यह कैसी नीति मानव की करती औरत का मुँह काला।।
न कुर्सी दो नारी को आरक्षण भी खत्म करो।
इज्जत से जीने का जग में नारी का प्रबंधन करो।।
इज्जत से बड़ा गहना नारी का और नहीं कुछ होता है।
लुटती है इज्जत नारी की तो प्रशासन कहाँ सोता है।।
कहाँ गया संविधान भीम का कहाँ   गई अब वो धारा।
भाई भाई का दुश्मन है बेटा माँ का हत्यारा।।
कडी सजा दो गुन्डों को नारी को धमकाते हैं।
नारी की इज्जत लूट लूट उनको कमजोर बनाते हैं।।
डन्डों से गर न माने तो फाँसी पर लटका दो।
चुन चुन कर ऐसे लोगों को भारत से ही भटका दो।।
नमन मेरा उन माताओं को नमन मेरा उन बहनों को।
लाज बचाते जो बहनों की नमन मेरा उन वीरों को।।
मैं तो हूँ अज्ञान मुसाफिर बस इतना ही लिखता हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर तो मन ही मन पछताता हूँ।।
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(21)
आजाद देश आजाद लोग फिर भी डरते चुप रहते हैं।
कानून का साथ नहीं देते चुपके चुपके दुख सहते है।।
गली बीच गुंडा गर्दी को देख सभी डर जाते हैं।
इसी वजह से दो गुन्डे दस पर भारी पड़ जाते हैं।।
देती जनता साथ कहीं तो कहीं सुरक्षा ढीली है।
इसीलिए कानून की चादर पड़ी आज भी गीली है।।
घूसखोर अधिकारी जब तक इस कुर्सी से न उतरेंगे।
चोर उचक्के इस जनता को अन्दर अन्दर कुतरेंगे।।
भोली भोली सी जनता जब दफ्तर को जाती है।
घूँस खोर और दल्लों की तो लाइन वहाँ लग जाती है।।
क्या अधिकारी नहीं जानता गेट सामने दल्ले हैं।
काम किसी का कोई कराये कहे किसान सुदल्ले हैं।।
अधिकारी को जब रिस्वत उस दल्ले से मिल जाती है।
रामवती से सोमवती फौरन फाईल बन जाती है।।
काहे शर्म नहीं आती रिस्वत खोरी के धन्धे में।
न्याय करो सम्मान सहो क्यों पड़ते हो फन्दे में।।
जनता के बन राज दुलारे नाम यश को पा जाओ।
बनी रहे कुर्सी अलबेली ऐसा ही कुछ कर जाओ।।
सोचो गर सस्पेंड हुए तो बच्चों का क्या होगा हाल।
न ए सी न चलेगा कूलर जीना होगा बुरा मुहाल।।
अलवर से कलकत्ता जाती ट्रेन कभी क्या देखी है।
लाल झड़ी को देख अचानक ब्रेक वहीं ले लेती है।।
बाप गया रिस्वत खोरी में बेटा फिर भी लेता है।
बाप से कहता मूर्ख हो तुम रिस्वत तो जग लेता है।।
रिस्वत लेना छोड़ दिया गर तो तनख्वाह में क्या होगा।
तनख्वाह है कुर्सी की कीमत रिस्वत में मंगल होगा।।
प्रेमी कहते बदल सोच दे हे मूर्ख हिन्दुस्तानी।
हिन्दुस्तानी कुर्सी पर अब नहीं चलेगी मनमानी।।
मेहनत और वफादारी से जीवन को खुशहाल बना।
जीत भरोसा जनता का कुर्सी का भी मान बना।।
मेहनत की रोजी रोटी से महल तेरे बन जायेंगे।
चोर डॉक्टर रिस्वत के लूटे पैसे ले जायेंगे।।
अमर रहेगा जीवन तेरा सत्य वचन मैं कहता हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर---------------------।।
(22)
गाय भैंस को देख मवाली मन ही मन हर्षाता है।
नर से तो वो बैल भला जो मेहनत करके खाता है।।
गाड़ी खींचे हल जोते खुश हरी घास में रहता है।
गर्मी सर्दी तपिश धूप को हँसते हँसते सहता है।।
दुनिया की रंगत बदली पर उसने रंग नहीं बदला।
दुनिया की संगत बदली पर उसने संग नहीं बदला।।
न लालच न कोई ईर्षा पशु क मन को भेद सकी।
इन्सां ने लालच में आकर पशु की गर्दन जाय कसी।।
करी कमाई हल जोता मेहनत से गोदाम भरे।
चहुं ओर लहलहाती खेती,जंगल भी हैं हरे भरे।।
चीर के सीना धरती माँ का उसने अन्न उगाया था।
फिर क्या ऐसी खता बैल जो काट के माँस बिकाया था।।
हरी घस को खाकर भी क्यों जीने का अधिकार नहीं।
क्यों होता है जुल्म पशु पर क्या यह पशु संहार नहीं।।
दूध पिये नर जिसका उसको माता का स्थान दिया
 माता माता कहकर जिसको जग जननी का नाम दिया।।
आई जबानी भूल गया सब माता को दुतकार दिया।
करी हवाले गलगत्तों के जा उसको कटवा दिया।।
क्या माँगा था नर मूरख से हरी घास तो माँगी थी।
प्रेमी पूछे गौ माता ने मर्यादा कब लाँघी थी।।
न माँगा था पिज्जा बर्गर न कोई, गुड का ढेला।
जब तक माता रही द्वारे दूध दिया अलबेला।।
उस मानव को क्या कहूँ जो माता को खा जाते हैं।
क्यों प्रेमी ऐसे मानव भी वीर गति पा जाते हैं।।
किससे करुँ सवाल जगत में घुट घुट कर ही मरता हूँ।
उठती है मेरी नजर----------------------------- - 
(23)
ऑनलाइन होकर भी सबकुछ बिकता है बाजारों में।
दो पैसे का मोल जिसका बिकता वही हजारों में।।
वीवी बच्चे भूखों मरते नेट चले गलियारों में।
ऑनलाइन से बचना भाई झगडा हो परिवारों में।।
ऑनलाइन से बड़ा फायदा दुखिया रोवे गली गली।
हाथ कटोरा काँधे झोला कहता घूमें अली अली।।
निर्धन का तो सब कुछ लूटा ऑनलाइन बीमारी ने।
सारे कागज फेल हुए हैं ऑनलाइन बीमारी में।।
ऑनलाइन ने सब कुछ लूटा वर्षों आस लगाई है।
राशनकार्ड की बुक प्रेमी अभी हाथ न आई है।।
बेटा काम नहीं करता बस दिनभर नेट चलाता है।
दूध के पैसे बचा बचाकर नेट पैक करवाता है।।
क्या सुधरेगी युवा पीढ़ी नेट पैक के आने से।
या सुधरेगी युवा पीढ़ी शिक्षा उच्च बनाने से।।
नेट पैक के चक्कर में लिखना पढ़ना सब भूल गये।
पुस्तक को बकवास बतायें नेट कोस्चन नये नये।।
आज की युवा पीढ़ी का यह सत्य तुम्हें बतलाता हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर
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(24)
न प्रेम रहा मन के अन्दर सब दीन दया को छोड़ दिया।
फैशन की अन्धी आँधी ने बेरुखी से नाता जोड़ दिया।।
सिर पर बाल नहीं दिखते हैं आज की युवा नारी में।
बूढ़े बच्चे सभी फँसे हैं फैशन की बीमारी में।।
मर्दों जैसे बाल कटाये जिन्स टाप को पहन लिया।
आगे आगे चलती नारी और पिछाडी चले पिया।।
सिर पर पल्लू कोई न डालें मर्दों जैसी चाल चलें।
ऊँच नीच होने पर यारों घर में बैठी हाथ मलें।।
पन पर्दा और लाज बचाना सब नारी के गहने हैं।
पन पर्दा में रहने बाली सब माताएं बहने हैं।।
उस नारी को क्या कहूँ जो लाज शर्म को भूल गई।
मान और मर्यादा छोडी फैशन में लवलीन  भई।।
शिक्षा का अधिकार जगत में नर नारी दोनों को है।
शिक्षा जैसे धन को चुराना, न हिम्मत चोरों को है।।
शिक्षा पाकर भी जनता क्यों मूरख जैसे करती काम।
फैशन के लालच में आकर क्यों खुद को करती बदनाम।।
गुड को छोडा चीनी खाई आखिर मीठा ही खाया।
अरे जरा सोचो तो प्रेमी क्या खोया और क्या पाया।।
गुड खाते मधुमेह न होता नीम चबाना न पड़ता।
भरी जबानी में तुमको न छडी पकड़ चलना पड़ता।।
क्या गुड़ खाने से तुमको तौहीन दिखाई देती है।
पर चीनी के सेवन से मुझे मौत दिखाई देती है।।
इस लाईलाज बीमारी का तुमने खुद पौधा सींचा है।
लडडू पेडा बर्फी खाई गुड से दामन खींचा है।।
उसको कैसे भूल गये जो मीठे की जगजननी है।
लडडू पेडा और इमरती गुड़ से ही तो बनती है।।
रोज करो व्यायाम सुबह को मैं भी तो नित करता हूँ।
उठती है मेरी नजर----------------               
(25)
एक तरफ तो कुँआ खुदा है एक तरफ दिखती खाई।
एक भाई तो वफादार है दूजा निकला हरजाई।।
एक वृक्ष पर दो रंगों का फूल खिला क्या देखा है।
नीम आम को एक बृक्ष पर साथ में पकते देखा है।।
हंस काग को एक थाल भोजन करते क्या देखा है।
मोर साथ में साँप रेंगते प्रेमी तुमने देखा है।।
वृक्ष कदम्ब की डार कभी फल फूल को फलते देखा है।
श्राद पात्र को कभी क्या पूजा में चढ़ते देखा है।।
यह तो सब विधि का लेखा है बदल नहीं सकता कोई।
हरि लेख को बदल सके प्रेमी जग में है न कोई।।
एक पिता की दो सन्तानें राहें जुदा हुईं कैसे ।
एक जपे नित हरि नाम को दूजा चोर हुआ कैसे।।
नीम बीज से नीम अंकुरित नीम स्वाद ही देता है।
हरि नाम जपने बाला क्यों जन्म चोर को देता है।।
न बदला आकाश चन्द्रमा, न प्रकृति रंग बदल गया।
न स्वाद नीम का बदल सका फिर इन्सां कैसे बदल गया।।
नर नारी की जाति न बदली नर से नर उत्पन्न हुआ।
एक बना क्यों भला आदमी दूजा क्यों गददार हुआ।।
माता पिता नहीं बदले तो संस्कार क्यों बदल गये।
खून खून से खून का रिश्ता खून के रिश्ते कहाँ गये।।
खूनी को खूनी कहना स्वीकार समाज नहीं करता।
क्यों जग खूनी से डरता अपमान समाज नहीं करता।।
खूनी का अधिकार बन्द जग में रहने का हो जाये।
हिम्मत न होगी उसकी अपराध जगत फिर कर जाये।।
आजीवन हो सजा खून की कोई बेल तारीख नहीं।
खूनी अपराध माफ हो जाये ऐसा हो कानून नहीं।।
कारागार में जीवन काटे कारागार में मर जाये।
कारागार में घुट घुट कर वो सारा जीवन पछताये।।
कौन लिखे कानून यहाँ किसकी हिम्मत मैं कहता हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर-----                
(26)
संयम के सारे रंग संग न कोई किसी के जाता है।
प्रेमी करें बिचार समय से दुख भी सुख बन जाता है।।
विवाह हुआ फेरे डाले सात बचन सातों कसमें।
अल्प आयु मौत हुई तो टूट गई सारी रस्में।
माथे का सिन्दूर बढ़ाता उम्र पति की कहते हैं।
फिर क्यों पत्नी का साथ छोड़ पति अल्प उम्र मर जाते।।
अल्प आयु गया छोड़ पति, पत्नी जीवन नष्टः हुआ।
सावित्री जैसी पत्नी का पति बिन जीवन भ्रष्ट हुआ।।
कैसे कटेगा जीवन उसका किससे विवाह रचायेगी।
यह दुश्मन जग है नारी का,कैसे जिन्दा रह पायेगी।।
न चाहकर भी उसे किसी की पत्नी तो बनना होगा।
न चाहकर भी माथे पर सिन्दूर उसे भरना होगा।।
चला गया सिन्दूर साथ पति के जल अग्नि राख हुआ।
छूट गया जब साथ पति पत्नी जीवन अभिशाप हुआ।।
जीवन तो जीना होगा सब लोग मुझे समझाते हैं।
प्रेमी पूछे अल्प आयु छोड़ पति क्यों जाते हैं।।
शिव से पूछूँ या कृष्ण से या ब्रह्मम देव बतलायेंगे।
बजरंबली भैरव बाबा या निरंकार बतलायेंगे।।
कैसे जीवन कट पायेगा ईशवर से ध्यान लगाता हूँ।
उठती है मेरी नजर-----------–--------------
(27)
सोच बड़ा अफसोस पिता सब का ईश्वर कहलाता है।
फिर क्यों बच्चों की खुशियों में ईश्वर आग लगाता है।।
पिता पुत्र की खुशियों को दिन रात दुआएँ देता है।
ईश्वर कैसा पिता है प्रेमी जान पुत्र की लेता है।।
पिता नहीं वो हत्यारा बैठे बैठे दुख देता है।
चलते फिरते जीवों का क्षण में जीवन हर लेता है।।
पिता पुत्र का रिश्ता क्या होता है उसको क्या पता।
आया है वो जायेगा तो निरंकार की क्या खता।।
हर वस्तु की उम्र धरा पर निश्चित मानी जाती है।
बिल्डिंग छोटी बडी नहीं वो नाम से जानी जाती है।।
जीवों की क्या उम्र धरा पर आकर कौन बतायेगा।
किसे पता कब मौत का पंजा आकर गला दबायेगा।।
वेद शास्त्र पढने बाले विज्ञान साइंस के ज्ञाता हैं।
कब आये किसको आ जाये कोई जान न पाता है।।
आडंबर और ढोंग का परचम यहाँ सभी लहराते हैं।
अपनी मौत का पता नहीं औरों की मौत बताते हैं।।
मौत नहीं जागीर किसी की नहीं किसी से डरती है।
राजा हो या रंक भिखारी प्राण सभी के हरती है।।
धन दौलत का लोभ नहीं न शोर सिफारिश चलती है।
आती है क्यों मौत अचानक प्रेमी किसकी गलती है।।
क्या भला और क्या बुरा यह समझ प्रेमी न आया।
जीवन का निष्कर्ष मरण ऐसा प्रेमी ने बतलाया।।
जीवन को संघर्ष मान मैं मंजिल चलता जाता हूँ।
उठती है मेरी नजर
---.
(28)
शुभ कर्म करो सतकर्म करो ऐसा सब लोग बताते हैं।
फिर क्यों प्रेमी धरा बीच दुष्कर्म बनाये जाते हैं।।
गोली और बन्दूक कहो क्या सत कर्मों की रेखा है।
गोली और बन्दूक से प्रेमी जीवन जाते देखा है।।
हिंसा और सतकर्म लड़ाई रोज धरा पर होती है।
हिंसा को नित देख देख धरती माता भी रोती है।।
प्रेमी यह संसार की धरती सबकी माँ कहलाती है।
राजा हो या रंक भिखारी सबको गोद सुलाती है।।
टुकड़े कर बर्बाद किया हिन्द पाक जापान किया।
अब रोज लड़ाई होती है सियासत ने ऐसा काम किया।।
कोई कहे जापान हमारा कोई हिन्द को ध्याता है।
कोई कहे कश्मीर चाहिए पाक क्यों द्वन्द मचाता है।।
कश्मीर क्या हम हिन्द के वासी कंकड़ न दे पायेंगे।
चीन पाक के दुश्मन सारे जान से मारे जायेंगे।।
कल भी कश्मीर हिन्द का था हिन्द ध्वजा फहराता है।
प्रेमी संसद लगा तिरंगा लहर लहर लहराता है।।
करना न अफसोस दोष कश्मीर हिन्द का हिस्सा है।
पाक लड़ाई मत करना तू हिन्द सामने बच्चा है।।
पुत्र पिता से करे लड़ाई लोक हँसाई होती है।
ये दुनिया भी क्या दुनिया है जो वीज बुराई बोती है।।
साहसी वीर वो होता है दुश्मन छाती जो चढ़ जाए।
दुश्मन से बदला ले वापस सरहदे वतन जो आ जाए।।
हिंसा है अभिशाप आप कब सुधरेंगे मैं कहता हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर-----------------------।।
(29)
क्या कहूँ जग का बैरी ये उग्रवाद समाज हुआ।
उग्रवाद को सह देकर के पाक बड़ा मजबूर हुआ।।
मजबूर पाक पाकिस्तानी नित उग्रवाद से डरता है।
उग्रवाद की सह पाकर हिंसा की बातें करता है।।
हिंसा से क्या किसी देश में लहर उन्नति आती है।
हिंसा में वे मौत देश की जनता मारी जाती है।।
बम का कोई पता नहीं वो कभी कहीं फट सकता है।
हिन्दू हो या मुस्लिम हो वो जान सभी की लेता है।।
बम गोली का जग में कोई होता है ईमान नहीं।
बम गोली को हिन्दू मुस्लिम की होती पहचान नहीं।।
बम गोली का लक्ष्य जहाँ में बर्बादी ही होता है।
बम गोली का खेल जहाँ में प्रेमी जग क्यों बोता है।।
अमन चैन से रहें सभी न कोई किसी का दुश्मन हो।
हो प्रेम पुजारी जग सारा हर कदम प्यार का गुलशन हो।।
गोली और बारुद सभी सारे जग से ही मिट जायें।
तो प्रेमी संसार का जीवन मुक्त दुखो से हो जाये।।
दुख का कारण हिंसा है मैं आज तुम्हें बतलाता हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर ----------------------------।।
(30)
हिंसा में देश उजड़ते हैं इतिहास उठा देखो भाई।
हिंसा में बर्बाद जहाँ होते हमने देखे भाई।।
हिंसा हिंसक दो पहलू न कभी किसी के होते हैं।
हिंसा हिंसक जो अपनाते सारा जीवन रोते हैं।।
बन्द करो सब हिंसा सारी बन्द करो मारा मारी।
प्रेमी प्यार लुटाओ जग में खिले प्रेम की फुलवारी।।
प्रेम ही जग में सार बन्धुओं ऐसा ही कुछ लिखता हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर------------------------।।
(31) 
जम्बू जाओ या काश्मीर सब इन्सानो की बस्ती है।
 
क्यों खून बहाते आपस में जिन्दगी हुई क्या सस्ती है।।
देख जरा जम्बू जाकर नित झरना झर झर झरता है।
हैं बाग बगीचा हरे भरे फिर भी रहने से डरता है।।
क्या खूब सजी बगिया देखो जम्बू की गलियाँ न्यारी हैं।
यहाँ भाँति भाँति के फूल खिले कलियों की शान न्यारी है।। 
ऊँचा पर्वत लंबा रस्ता बर्फीली राह निराली है।
इकवार करो जम्बू भ्रमण यहाँ मस्त हवा मतवाली है।।
जब चले शीत का जोर पवन घन घोर मचाये शोर मोर छिप जाते हैं।
दादुर करें पुकार दिखाओ यार नृत्य फिर पेंगुइन दिखलाते हैं।।
पेंगुइन वो चिडिया है जो शीतल जल में रहती है।
देख बर्फ की चटटानों को मस्त मगन हो जाती है।।
यहीं द्वार है वैष्णवी का श्रद्धालु नित आते हैं।
अपने मन की माँग मुरादें खुशी खुशी घर जाते हैं।।
माँ की महिमा क्या लिखूँ मैं क्या लिखने के लायक हूँ।
मैं तो हूँ अन्जान अजनबी प्रेमी मैं किस लायक हूँ।।
कलम चलाना शब्द बनाना यह सब माँ की माया है।
मैं मूरख अन्जान मुसाफिर तन मिट्टी की काया है।।
रोम रोम माँ बसती है वो शब्द शब्द में रहती है।
प्रेमी बो ही लिखते हैं जो माँ प्रेमी से कहती है।।
माँ मर्जी से कलम चले सब माँ मर्जी से लिखता हूँ।
उठती है मेरी नजर-----------------------------
(32)
यहाँ पतित पावनी गंगा भी कल कल कल करती बहती है।
ऋषि मुनियों के पाप माँ गंगे पल भर में हर लेती है।।
लहर लहर शक्ति माँ गंगे क्षण क्षण में दिखलाती है।
प्रेमी शक्ति लहरों की चटटान काट बह जाती है।।
गंगा का स्थान बड़ा सब निर्मल उज्जवल कहते हैं।
प्रेमी भागीरथ गंगा को जटा बीच में रखते हैं।।
गंगा है विकराल रुप चलता फिरता जल निर्मल है।
भागीरथ के हाथ में प्रेमी छोटा एक कमंडल है।।
कितना जल होगा उसमें जो गंगा विश्राम करे।
गंगा है इक बहता दरिया क्यों प्रेमी बदनाम करे।।
गंगा की धारा के आगे ध्वस्त हिमालय होता है।
भागीरथ की जटा कमंडल क्या पर्वत से मोटा है।।
न करना विश्वास कभी जनता के तुच्छ बिचारों पर।
न करना विश्वास कभी इन धर्म के ठेकेदारों पर।।
धर्म के ठेकेदार सदा उल्टा ही पाठ पढ़ाते हैं।
रामायण का पता नहीं वेदों की कथा सुनाते हैं।।
कथा सुनाते शर्म न आती आपस में लड़वाते हैं।
महापुरुषों की करें बुराई पत्थर को पुजवाते हैं।।
क्या कहूँ ऊन सन्तों को जो जनता को भरमाते हैं।
उल्टे कथन सुना सुना जनता से नोट कमाते हैं।।
निराकार है सार जगत वो सबके मन में बसता है।
फिर क्यों प्रेमी ढोंगी सन्तों के चक्कर में फँसता है।।
निराकार ही सार जगत में मैं सबको बतलाता हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर--------------------
(33)
सन्त बड़े मनमन्त सन्त की महिमा जग में न्यारी है।
सन्त न माँगें भीख सीख जनता को देते न्यारी हैं।।
भीख माँगते ठोकर खाते सन्त नहीं कहलाते हैं।
चरस भाँग सुलफा खा जायें होटल मौज मनाते हैं।।
सन्त बड़ा सन्तोष सन्त बिन पैसे मौज मनाते हैं।
सन्त जपें नित हरि नाम माया को दुष्ट बताते हैं।।
सन्तों से संसार प्यार जग में हर प्राणी करता है।
माया से रहें दूर सन्त दुआओं से झोली भरता है।।
सन्तों का नहीं काम करें बदनाम शाम झिलमिल तारों की  सईया हो।
सन्तों का नहीं काम पियें नित जाम शाम सुन्दर कन्या की  सईया हो।।
सन्त हुआ अब अन्त फिरें सन्तों के रुप भिखारी हैं।
कर मांथे पर तिलक जगाये अलख बने माया के सभी शिकारी हैं।।
करें काम न काज राज मन्दिर में बैठे करते हैं।
नित्य जपें हरिनाम  करें बदनाम राम के नाम तिजोरी भरते हैं।।
जनता है अनजान नहीं है ज्ञान देव क्या सोना चाँदी खाते हैं।
सन्तों की सब चाल बुरा है हाल उठा सब सन्त लोग ले जाते हैं।।
मत करना बदनाम हरि का नाम चढा सोना चाँदी मैं कहता हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर-----------------------
(34)
सब कहें तवायफ नंगी है महफिल में नाच दिखाती है।
करे हुस्न का बार सभी को अपने साथ नचाती है।।
है रुप रंग उसका प्यारा छवि उसकी प्यारी लगती है।
क्या खूब सजी महफिल देखो परियों की रानी लगती है।।
सुन्दर सा ले रुप तवायफ सबके मन को भाती है।
संगीत तान तो ऐसी है गूंगे के मन भी भाती है।।
मादक द्रव्यों का सेवन अब गली गली में होता है।
मदिरा पीकर मस्त हो गया ओढ़ रजाई सोता है।।
बीबी बच्चे भूखों मरते पड़े शराबी फर्क नहीं ।
समझाना गर उस को चाहो कहे शराबी तर्क नहीं।।
इस मद मदिरा का लालच दौलत से गहरा होता है।
कहाँ गया फिर कौन गया कोई न मतलब होता है।।
बिन मदिरा के साँस न चलती ऐसी हालत होती है।
जीवन का जब अन्त हुआ तो पड़ी जवानी रोती है।।
सौ वर्षों का जीने बाला सौ दिन में मर जाता है।
छोड़ बुढ़ापा अपने तन का जवानी में ही जाता है।।
मद्यपान करने बालों पर नहीं बुढापा आता है।
भरी जवानी में ही जीवन नर्क लोक को जाता है।।
अपना जीवन नर्क किया परिवार रोड पर छोड़ दिया।
सुख की निंदिया सो गये हर दुख से नाता तोड़ दिया।।
सो गये पाँव पसार पड़ा परिवार यहाँ पर रोता है।
पर पापा का इंतजार छोटा बच्चा नहीं सोता है।।
मम्मी कहती सोजा पापा ढेर खिलौने लायेंगे।
बेटा कहता है मम्मी लेकिन पापा कब आयेंगे।।
पत्र लिखूँ या फोन करुँ जो जल्दी पापा आ जायें।
बोलो मम्मी क्या करुँ जो आकर पापा न जायें।।
बिन पापा के मम्मी मुझको सूना सूना लगता है।
बोल बता मम्मी मेरा पापा कौन दिशा में रहता है।।
अपने पापा की खातिर मैं देश देश को जाऊँगा।
देश देश जाकर मम्मी पापा का पता लगाऊँगा।।
बिन पापा जीवन बच्चों का एक नर्क सा होता है।
बिन पापा हर कदम कदम बच्चों को रोना होता है।।
तुम क्या जानों तुम बिन पापा हम कितने दुख सहते हैं।
छोटी छोटी हर वस्तु को नित्य तरसते रहते हैं।।
ऐसा क्या था काम जरुरी छोड़ हमें परदेश गये।
तुम क्या जानों तुम पापा हमने कितने दुख सहे।।
पापाजी अब  वापस आओ और सहन होता है।
नन्हां प्रेमी खडा राह में पापा तेरी रोता है।।
न माँगूँगा खेल खिलौने न टाफी मैं माँगूँगा।
भूखा रहकर बैठ गोद में अपना समय बिता लूँगा।।
गोद पिता की सिंहासन से कम न होती बच्चों को।
आस पिता की गोद की होती है हर नन्हे बच्चे को।।
बच्चे का उज्ज्वल जीवन तो पिता गोद में होता है।
मात पिता बिन बच्चों का जीवन क्या जीवन होता है।।
प्रेमी जीवन नर्क बना मैं पिता गोद को तरसा हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर
---.
(39)
भयहीन रहे भय मुक्त रहे तब ही होगा उत्थान यहाँ।
निर्बल को दर्जा मिल जाये कोई ऐसा हो कानून यहाँ।।
निर्बल की निर्बलता देखो बह बुद्धि हीन नहीं होता है।
बिन पैसा के बुद्धि मान भी पड़ा बिचारा रोता है।।
आविष्कार करे कैसे है पूँजी उसके पास नहीं।
मिले सहारा गवर्नमेन्ट से ऐसी भी कोई आस नहीं।।
इसीलिए निर्बल बेचारा अदर देश को जाता है।
बुद्धि का कर त्याग वहाँ भोजन के लिए कमाता है।
होता है एहसास क्या जुदा वतन हो जाने का।
पर मन में लालच होता है कौडी दाम कमाने का।।
क्यों कोई रोजगार उन्हें भारत में नहीं मिल सकता है।
क्यों भारत का गुलदस्ता परदेश में जाकर खिलता है।।
हवा मिली भारत की जिसने अन्न यहाँ का खाया है।
फिर क्यों भारत की मिट्टी ने उसको किया पराया है।।
हठखेली करता रहता था रात दिन बह गलियों में।
देख मधुर मुस्कान को उसकी रंगत आती थी गलियों में।।
कली कली खुशनुमा जवाँ रंगत चेहरे की मतवाली।
भारत का रंग सुनहरा है चहु ओर खिली है फुलवारी।
कहीं ऊँचे वृक्ष पहाडों में मृदुल मृदुल से दिखते हैं।
कहीं नन्हें वृक्ष कतारों में अति शोभित से लगते हैं।।
खिली कहीं गुलनार कहीं चम्पा के फूल निराले हैं।।
गेंदा गुलाब कहीं काचनार चम्पा के फूल निराले हैं।।
भारत की पहचान क्या है कैसे प्रेमी बतलायें।
प्रेम की बगिया देख देख प्रेमी अति मन में हर्षाये।।
प्रेम की गंगा हर भारतवासी के मन में बहती है।
इसीलिए तो भारत में गंगा युमना भी बहती है।।
तीन रंग से बना तिरंगा शान हमारे भारत की।
भगत भीम आजाद बोस पहचान हमारे भारत की।।
निसदिन ऊँचा रहे तिरंगा यही कामना करता हूँ।
उठती है मेरी नजर----------------------------
(40)
सर्पों को दूध पिला करके उम्मीद वफा की मत करना।
सर्पों में जहर उपजता है उन्हें दोस्त बनाकर मत रखना।।
दुश्मन तो दुश्मन होता है वो कभी घात कर जायेगा।
भारत पर दृष्टि डालेगा तो बिना मौत मर जायेगा।।
हम प्रेमी हैं कमजोर नहीं जो दुश्मन से डर जायें।
भारत में कायर कोई नहीं मैदान छोड़ जो भग जायें।।
भारत का पथ है यश पाना यश को ही हम पायेंगे।
शान तिरंगा ऊँची है दुश्मन को मार भगायेंगे।।
आन बान और शान देश की कोई नहीं मिटा सकता।
अब भारत की नजरों से कोई दुश्मन नहीं छिप सकता।।
खोज निकालेंगे दुश्मन को चाहे वो पाताल रहे।
चीन चुनौती को स्वीकार पाक बेचारा क्या कहे।।
पाक पाकीजा चीन देश पर राज नहीं कर पायेंगे।
भारत में गर कदम रखा तो जान से मारे जायेंगे।।
जान सलामत रखना चाहो दूर सरहद से रहना तुम।
कभी नहीं बख्शेगा भारत ,भारत के हो दुश्मन तुम।।
भारत की पहचान तिरंगा सदा ध्यान स्मरण रहे।
नहीं झुका है नहीं झुकेगा भारत भूमि अमर रहे।।
भारतवीरों अमर मैं नित नित शीश झुकाता हूँ।
उठती है मेरी नजर--------------------------
(41)
राज गया सब काज गया चली गई सब जरदारी।
जनता झूमे खुशी मनाये बन गई बात हमारी।।
अब न कोई जमींदार नित हमको रोज सतायेगा।
भारत का कानून जमींदारी को दूर भगायेगा।।
बाबा का संविधान देश में नई उन्नति लाया है।
सबको दे अधिकार भीम ने देश का मान बढ़ाया है।।
भीम स्वर्ग को चले गये पर छवि अभी भी वाकी है।
दे सबको अधिकार बराबर सबकी इज्जत रखी है।।
सभी पढेंगे सभी बढेंगे सभी बनेंगे वीर जवान।
भारत का गौरव रखने को पकडेंगे सब तीर कमान।।
अव न कोई निरक्षर होगा भारत जैसी भूमि पर।
घर घर शिक्षा फूल खिलेगा भारत जैसी भूमि पर।।
घर घर होगा साईंटिस्ट घर घर होगा आविष्कारी।
कोई रोग न पनपेगा घर घर होगा शिक्षा धारी।।
कोई रोग अब बड़ा न होगा सबकी दबा बनायेंगे।
मेक इंडिया बना है भारत बाहर अब न जायेंगे।।
भारत को समृद्ध बनाना सबकी जिम्मेदारी है।
कोई छति न होने पाये सबकी साझेदारी है।।
एक अकेला क्या करेगा मिलकर हाथ बटाना है।
घर घर पहुंचे रोजगार ऐसा करके दिखलाना है।।
मैं प्रेमी नित कलम से अपनी ऐसा ही कुछ लिखता हूँ।
उठती है मेरी नजर------------------------
(42)
नाम बड़ा न होत है बड़ा होत है दाम।
काम बड़ा होता तभी जब बड़ा मिलता है दाम।।
दाम बिना संसार में काम न होता कोय।
प्रेमी लालच के बिना काम करत न कोय।।
माता प्यारा पुत्र है भगत नाम भगवान।
प्यारा धन व्यापारी को बेच दिया ईमान।।
झूठ सगा न होत है झूँठ बचो सब कोय।
सच्चाई अमृत भरा साथ देउ सब कोय।।
न अमृत अम्बर भरा न उपजै भुईं बीच।
मीठी बानी बोल के जग अमृत में सींच।।
मीठी बानी से सदा बरसे अमृत धार।
कटु बचन है संखिया छूट जात परिवार।।
भला भला ढूँढत फिरै भला कहीं न होत।
भला वहीं पर होत है जहाँ जलत प्यार की जोत।।
जोत जलत जब प्यार की होत बुराई अन्त।
प्रेमी इस संसार में प्रेम बिना बेअन्त।।
प्रेम बिना नर सारखे जैसे सूखी घास।
प्रेम जपो हरि नाम लो काहे होत उदास।।
प्रेम जीव की आत्मा प्रेम जगत उद्वार।
प्रेम बिना संसार में और न कोई  सार।
क्या लिखूँ अब प्यार की महिमा लिख लिख आहें भरता हूँ।
उठती है मेरी नजर
---.
(43)
रेल यात्रा सुखद बताई जाती है संसार में।
बर्थ मिले और बाथरूम तो मिलता है उपकार में।।
मिल जुलकर सब करें यात्रा कोई न खतरा होता है।
चिंता से भय मुक्त यात्री पड़ा बर्थ पर सोता है।।
न झटका न कोई  खटका न कोई आना कानी।
हँसी खुशी सब करो यात्रा साथ में नाना नानी।।
रेल बजुर्गों को आरक्षण दे यात्रा करवाती है।
जिसके बदले एक फार्म वो छोटा सा करवाती है।।
नाम लिखो और गाँव लिखो उम्र को अपनी दर्ज करो।
लम्बी यात्रा कम पैसों में खुशी खुशी स्वीकार करो।।
फिर भी जनता इतनी मूर्ख यात्रा भंग कराती है।
बिना टिकट के करे यात्रा फ्री जेल को जाती है।।
बिना टिकट यात्रा करने में तनिक शर्म नहीं आती है।
वर्षों की सारी इज्जत पल भर में नष्ट कराती है।।
कहते प्रेमी समझाता हूँ कभी न ऐसा काम करो।
टिकट बिना न करो यात्रा बस इतना एहसान करो।।
देश बचेगा लाज बचेगी इज्जत भी बच जाएगी।
टिकट यात्रा करेंगे हम सब रेल तरक्की लायेगी।।
बस अब और नहीं कहना है इतना ही मैं कहता हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर-----------------------।।
(44)
सोच को लगी खरोंच कोई बुद्धि से काम नहीं करता।
बुद्धि से जो काम करे वो हाथ से काम नहीं करता।।
करते हैं सब नौकर चाकर बैठा हुक्म चलाता है।
एक अकेला सौ बन्दो से बैठा काम कराता है।।
सिस्टम देखो कंप्यूटर का अकेला सौ पर भारी है।
कंप्यूटर बिन काम चलता इतनी ताकत भारी है।।
सोच जरा कंप्यूटर कोई प्रभु का अवतार नहीं।
हाथ नहीं कोई पैर नहीं कोई खाने का आधार नहीं।।
मेगाबाईट में लिखता है और मेगावाट को खाता है।
कितना है वो खुश किस्मत जो बैठे ही यश पाता है।।
न कागज न कलम चाहिए न कोई कलम स्याही।
सोच जरा प्रेमी बेचारा कैसे होत लिखाई।।
न कोई अक्षर रहे अधूरा न भूले कोई बात।
न थकता न रूठे तुमसे दिन हो चाहें रात।।
प्रेमी की कल्पना यही है काम करो दिखला जाओ।
नाम रहे संसार हमेशा ऐसा तो कुछ कर जाओ।।
रात दिन दिल के अन्दर बस यही प्रण मैं करता हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर-----------------------।।
(45)
जनता तक आवाज ले जाना मेरे बस की बात नहीं।
ताकत मेरे पास नहीं पैसा भी मेरे पास नहीं।।
मेरा है प्रयास दुखी जनता हो जाए सुखदाई।
मान मिले सम्मान मिले शिक्षा हो जाए चौगाई।।
एक बने सब नेक बने सब बन जाए गौरव शील।
दिल दिल के अन्दर प्रेमी जगे ऐसी आ जाए खुशहाली।।
कोई न किसी का दुशमन हो कोई न किसी को दे गाली।
चहु ओर हो मौज बहारों की खिले प्रेम फूल डाली डाली।।
जाति पांति का भेद न हो न ऊँच नीच का फँदा हो।
एक रहे हैं एक रहेंगे कोई न शर्मिन्दा हो।।
एक पिता और एक ही माँ है इस सारे संसार में।
एक रंग और एक लहू है इस सारे संसार में।।
हिन्दू का हो रक्त चाहें वो मुस्लिम सिक्ख ईसाई का।
नहीं बहेगा खून कभी भी अब भारत के भाई का।।
नहीं करेंगे मूर्खता जो अब तक करते आये हैं।
मेल रखेंगे आपस में सब एक ही माँ के जाये हैं।।
मादक द्रव्यों का सेवन अब गली गली में होता है।
मदिरा पीकर मस्त हो गया अब ओढ़ रजाई सोता है।।
बीबी बच्चे भूखे मरते पड़े शराबी फर्क नहीं।
समझाना गर उसको चाहो कहे शराबी तर्क नहीं।।
इस मद मदिरा का लालच दौलत से गहरा होता है।
कहाँ गया फिर कौन गया कोई न मतलब होता है।।
बिन मदिरा के साँस न चलती ऐसी हालत होती है।
जीवन का जब अन्त हुआ तो खड़ी जवानी रोती है।।
सौ वर्षों का जीने वाला सौ दिन में मर जाता है।
छोड़ बुढ़ापा अपने तन का जवानी में ही मर जाता है।।
मद्यपान करने वालों पर नहीं बुढ़ापा आता है।
हँसते हँसते ही जीवन नर्क लोक को जाता है।।
अपना जीवन नर्क किया परिवार रोड पर छोड़ दिया।
सुख की निंदिया सो प्रेमी दुख से नाता तोड़ दिया।।
सो गए पाँव पसार पड़ा परिवार यहाँ पर रोता है।
कर पापा का इन्तजार छोटा बच्चा नहीं सोता है।।
मम्मी कहती सो जा पापा ढेर खिलौने लायेंगे।
बेटा कहता है मम्मी लेकिन पापा कब आयेंगे।।
पत्र लिखूँ या फोन करूँ जो जल्दी पापा आ जायें।
बोलो मम्मी क्या करूँ जो आकर पापा न जायें।।
बिन पापा के मम्मी मुझको सूना सूना लगता है।
बोल बता मम्मी मेरा पापा कौन दिशा में रहता है।।
अपने पापा की खातिर मैं देश देश को जाऊँगा।
देश देश जाकर मम्मी पापा का पता लगाऊँगा।।
बिन पापा जीवन बच्चों का एक नर्क सा होता है।
बिन पापा हर कदम कदम बच्चों को रोना होता है।।
ऐसा था क्या काम जरूरी छोड़ हमें परदेश गये।
तुम क्या जानो तुम बिन पापा हमने कितने दुख सहे।।
छोटी छोटी हर वस्तु को पापा जीवन तरस रहा।
कभी नीर तो कभी हैं सत्तू ऐसे जीवन बीत रहा।।
पापा जी अब वापस आओ और सहन न होता है।
नन्हा प्रेमी खड़ा राह में पापा तेरी रोता है।।
न माँगूँगा खेल खिलौने न टाफी मैं खाऊँगा।
भूखा रहकर बैठ गोद में अपना समय बिताऊँगा।।
गोद पिता की सिंहासन से कम न होती बच्चों को।
आस पिता की गोद की होती है हर नन्हे बच्चे को।।
बच्चे का उज्जवल जीवन तो पिता गोद में होता है।
मात पिता बिन बच्चों का जीवन क्या जीवन होता है।।
प्रेमी जीवन नर्क बना मैं पिता गोद को तरसा हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर
---.
(46)
एक हमारी मातृभूमि है हम सब उसके बेटे हैं।
दुख पीड़ा में साथ रहेंगे माँ के सभी चहेते हैं।।
माँ का दर्जा सबसे ऊँचा होता है संसार में।
सभी दुखों का अन्त लिखा होता है माँ के प्यार में।।
बिन माँ की औलाद को देखो पड़ी जमीं पर रोती है।
क्या कहूँ बिन माँ बच्चे की कैसी हालत होती है।।
दर दर ठोकर खाते हैं वो सारी उमर पछताते हैं।
बिन माता के वो बच्चे संस्कार कभी न पाते हैं।।
क्या होता है प्यार पालना कभी न उनने झूला है।
कैसे बिन माँ बचपन बीता अभी झलक नहीं भूला है।।
आँखों में अश्कों की धारा लिए फिरा संसार में।
माता बिन जग सूना सूना स्वर्ग है माँ के प्यार में।।
माता भूखी रहकर भी बच्चे को दूध पिलाती है।
प्यारी लोहरी गा गाकर बच्चे को रोज सुलाती है।।
क्या लिखूँ माँ की महिमा कुछ भी कहने से डरता हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर------------------------।।
(47)
अब उस माँ का हाल सुनो जो बच्चे से कतराती है।
उल्टा पल्लू लाल लिपस्टिक फैशन बाल कटाती है।।
बच्चे को बेबी कहती है कहे गले का फंदा।
जन्म दिया बर्बाद हुई मैं बन्द हो गया धन्दा।।
लाखों का व्यापार मेरा सब हो गया पानी पानी।
बच्चे की है अजब कहानी मैंने है अब जानी।।
बन्द हुआ व्यापार मेरा सब शौप पड़ा है ताला।
इक इक पैसा परेशान कर दिया है तूने लाला।।
इससे तो अच्छा होता मैं जन्म तुझे न देती।
अनाथालय से चन्द रुपये में इक बच्चा ले लेती।।
पति पत्नी दोनों खुश रहते कोई न झंझट होती।
सारे दिन व्यापार चलाती रात चैन से सोती।।
न लुटती मेरी मस्त जवानी सदा हुस्नुमा रहती।
शादी के झंझट से बचती कोई दर्द न सहती।।
फिरती मैं आजाद परिंदा कोई न बन्दिश होती।
सदा जवानी रहती मुझ पर दुनिया कदम चूमती।।
कहते प्रेमी ऐसी माँ को डायन कहूँ या माता।
माता बन अफसोस जताए कैसा जग से नाता।।
हुस्न सलामत रहे नहीं बच्चे को दूध पिलाती है।
दे डिब्बे का दूध सदा बच्चे को दूर सुलाती है।।
बेबी को नौकर पाले नौकर आहार खिलाता है।
रोये फर्क नहीं माता को नौकर उसे झुलाता है।।
डिब्बे का पी दूध जवानी जब बेटे पर आई है।
वाई को माता कहता माता को कहे पराई है।।
माँ ने चाँटा मार पुत्र को कोशिश की समझाने की।
वो वाई मैं माँ हूँ तेरी अकल नहीं दो आने की।।
कहे पुत्र तू कैसी माँ है कभी नहीं आहार दिया।
जिसको तुम वाई कहती हो उसने मझको प्यार दिया।।
जब रोया तब रोई थी मेरी हँसी देख मुस्काई थी।
थपकी देकर मुझे सुलाया लोहरी रोज सुनाती थी।।
कभी न उसने हक जताया उंगली पकड़ चलाया था।
सारी रात जाग जाग कर मुझको दूध पिलाया था।।
मेरी तो है वाई माता मैं वाई का प्यारा हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर
---.
(48)
क्या कभी तुमने घर जाकर देखा है उस नारी के।
रो रोकर क्या हाल हुआ है फूटे करम बेचारी के।।
पाँच बरस से व्याह के आई फिर भी अभी अकेली है।
लोक जमाना ताना मारे यह तो नार नवेली है।।
पति पत्नी दोनों रोते हैं कोई चैन न पाता है।
बिन बच्चे के आँगन सूना कुछ न मन को भाता है।।
दुनिया कहती बाँझ बँझोरी सबके ताने सहती है।
खाना खाती पानी पीती निसदिन गम में रहती है।।
दुख तो दुख होता है जग में दुख से किसका नाता है।
कब आये किस पर आ जाये कोई जान न पाता है।।
राहगीर ने ठोकर खाई देखा हडडी टूट गई।
प्रेमी ने पूछा तो बोला छडी हाथ से छूट गई।।
प्रेमी में हालत पूछी अफसोस कहा मत करना तुम।
हम चलते हैं समय नहीं है साथ किसी के आना तुम।।
कहते प्रेमी कौन बताये राह किसी को सुखदाई।
भला किया तो मिली बुराई गली गली चप्पल खाई।।
रात दिना रोते पति पत्नी कोई न राह बताता है।
हँसे पडोसी मौज मनाये मूरख उन्हें बताता है।।
जिसको दुख वो ही जानता है और किसी को क्या पता।
नहीं हुई संतान तो बोलो नारी की है कौन खता।।
क्यों मूरख संसार उसे नित कहकर बाँझ बुलाता है।
मार मार ताने उसका क्यों जीवन नर्क बनाता है।।
हँसी नहीं दे सकते तो आँसू क्यों उसको देते हो।
कर प्रताडित उस अबला का क्यों जीवन ले लेते हो।।
नहीं हुई संतान तो क्या वह नारी न कहलायेगी।
हाथ पकड़ उँगली पति की क्या साथ नहीं चल पायेगी।।
निसन्तान होने का दुख कैसा होता पूछो उससे।
जीती है दिल दर्द छुपाकर अपना दर्द कहे किससे।।
कहने से भी डरती है न कहती तो मरती है।
दिल को समझाती है निसदिन यह तो मार कुदरती है।।
पहले भी वो नारी थी और अभी भी नारी है।
फर्क सिर्फ इतना प्रेमी ये नारी वो महतारी है।।
दोनों का है मान बराबर प्रेमी जी दर्शाते है।
दोनों का सम्मान बराबर प्रेमी जी बतलाते हैं।।
प्रेमी नित शीश झुकायें नर नारी से जनमा है।
नजर उठेगी उधर दिखेगा सब नारी का कुनवा है।।
नारी का सम्मान करो सब कुछ ऐसा ही लिखता हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर-------------------------।।
(49)
नहीं रहे वो बाग बगीचे न हैं पेड़ खजूरों के।
पेड़ काट खलिहान बनाये दिखते पेड़ बबूलों के।।
प्रकृति को नष्ट किया अन्जाम कभी क्या सोचा है।
सौ पुत्रों से एक पेड़ का दर्जा ऊँचा होता है।।
प्रकृति गर रहे सलामत प्रदूषण भी होगा कम।
स्वस्थ रहेगा तन मन सारा आँख कभी न होगी नम।।
प्रदूषण दूषित होने से कई रोग लग जाते हैं।
दूषित प्रदूषण को केवल पौधे स्वस्थ बनाते हैं।।
वृक्ष भूमि से काट दिये अब नित रोगों से लड़ता है।
वृक्ष लगाने को कह दो तो उल्टा और अकड़ता है।।
दुख का जीवन नष्ट हुआ संसार अभी भी बाकी है।
वृक्ष लगा जा उस पीढ़ी को जिसका जीवन बाकी है।।
कुछ तो कर एहसान अरे उस आने वाली पीढ़ी पर।
प्रकृति को नष्ट किया रम चला काठ की घोड़ी पर।।
इतना भी लालच मत कर जो नष्ट वृक्ष सब हो जायें।
त्राहि बोले प्रकृति वे मौत यहाँ सब मारे जायें।।
प्रकृति गर नष्ट हुई तो जीवन नष्ट हो जाएगा।
भूमि भी न रहेगी फिर जीवन कैसे बच पायेगा।।
जीवन की रक्षा केवल जल हवा आग से होती है।
हवा आग और जल हमको बस प्रकृति ही देती है।।
कहते प्रेमी वृक्ष लगाओ समय न नष्ट गवाना है।
हरण करें जो प्रकृति का उसको सजा दिलाना है।।
क्यों करती है पाप यह दुनिया क्यों जंगल कटवाती है।
हरी भरी सी धरती माँ को क्यों नंगा करवाती है।।
क्या तुमको आभास नहीं सब धरती माँ के गहने हैं।
धरती ने जनमा इन को सब इक दूजे के टहने हैं।।
जब जब कटते वृक्ष धरा से तब तब माता रोती है।
किसे बतायें किससे पूछे यह दुर्गत क्यों होती है।।
कौन है जिम्मेदार यहाँ प्रकृति नष्ट कराता है।
भोले भाले जीवों को जो बिना मौत मरवाता है।।
जीवन का आधार प्रकृति बस इतना मैं कहता हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर
---.
(50)
जनसंख्या का भार बढ़ा तो दोष क्या है पौधो का।
रहने को घर नहीं है खोली दोष क्या है औधों का।।
दंग नजर और भंग राजनीति से क्या होता है।
देख दुर्दशा युवा घर घर में बैठा रोता है।।
रोजगार मिल जाए सबको सब हो जायें चंगे।
रहे सुशासन सारी जनता बन्द हो जायें दंगे।।
बेटा बेटी सभी पढ़ें रोशन हो नाम जहाँ का।
बेटी को इन्साफ नहीं है है ये न्याय कहाँ का।।
संगीत तवायफ का गहना महफिल उसकी कमजोरी है।
नूपुर हैं शान बहारों की पैसा उसकी मजबूरी।।
कोई जन्म तवायफ न जनमी सब धरा तवायफ बनती हैं।
क्यों रूप हुआ तब्दील नारी जो बनी तवायफ फिरती है।।
है नर की सब देन यहाँ नारी को नंगा करता है।
जबरन अस्मत से खेल खेल क्यों नाम तवायफ धरता है।।
दो दो बेटी का बाप बना फिर भी पर नारी को तकता है।
बेटी जैसी पर नार देख क्यों उल्टा सीधा बकता है।।
लुटती अस्मत परनारी की क्यों देख सभी भाग जाते हैं।
जल्लाद लूट अस्मत उसकी क्यों चैन नींद सो जाते हैं।।
निर्धन है तो क्या हुआ वो भी भारत की बेटी है।
बेलाज हुई बेजान हुई जो चारपाई पर लेटी है।।
जनता ने साथ दिया होता अस्मत से जंग नहीं लड़ती।
गुन्डों के साथ लड़ाई में बेटी कमजोर नहीं पड़ती।।
प्रेमी पूछें नित जनता से है क्या किसी को पता नहीं।
है कौन अजन्मा इस जग में जो है बेटी का पिता नहीं।।
है कौन अजन्मा नारी से इस जग में प्रेमी कहता हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर-----------------------।।
(51)
क्या शेर चूहा प्रेमी जग में कभी दोस्त बन सकते हैं।
क्या अग्नि जल ,एक साथ मिल दरिया में बह सकते हैं।।
क्या मालिक से बड़ा कभी कोई नौकर हो सकता है।
क्या बिन बेटी कभी कोई बेटा पैदा हो सकता है।।
बेटी का संसार जहाँ फिर भी बेटी की कदर नहीं।
गर्भ अवस्था मार दिया प्रेमी पूछे यह गदर नहीं।।
यह गदर खत्म होगा कैसे,कैसे बेटी बच पायेगी।
वो माँ भी कैसी डायन है जो बिन बेटी रह पायेगी।।
बेटा बेटा सब कहते हैं बेटे को जन्म कौन देगा।
बिन बेटी जग में प्रेमी बेटे को बहू कौन देगा।।
बेटे के शुभ चिन्तक हो बेटी को मार गिराते हो।
बेटे की शादी खातिर दर दर की ठोकर खाते हो।।
बेटा कुल का दीपक है तो बेटी घर की देबी है।
बेटा से जग रौशन है तो बेटी जग की देबी है।।
बेटे बिन आँगन सूना तो बेटी बिन जग सूना है।
बेटे से मान कहीं जग में बेटी का प्रेमी दूना है।।
बेटी से ही,कुल दीपक जन्मा है क्या तुम भूल गये।
बेटी का ही अंश है बेटा प्रेमी कैसे भूल गये।।
दोनों का मान बराबर है ऐसा ही मैं लिखता हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर
---.
(52)
प्रेमी है जग का हाल बुरा अधिकार दिया पछताते हैं।
सम्मान का मतलब इस जग प्रेमी सब गलत लगाते हैं।।
बेटी को सम्मान दिया अभिमान से वो जी पायेगी।
नहीं पता प्रेमी हमको वो जीन्स पहनकर आयेगी।।
जीन्स टाप और पैन्ट शर्ट क्या स्त्रियों के कपडे हैं।
धोती ब्लाउज छूटा जब से प्रेमी जग में लफडे हैं।।
सिर से लेकर पाँव तलक देखो अब नारी नंगी है।
संस्कार सब खत्म हुए प्रेमी कपडे की तंगी है।।
चादर चुन्नी गया दुपट्टा अब नंगा सिर रहता है।
लड़कों जैसा भेष बना फिर भी जग नारी कहता है।।
शिक्षा का अधिकार दिया अधिकार नौकरी दे डाला।
शिक्षा पाकर भी जग में नारी करती क्यों मुँह काला।।
संस्कार उज्ज्वल होते हैं शिक्षा को पा लेने से।
फिर नारी क्यों बिगड़ गई है शिक्षा को पा लेने से।।
क्यों शिक्षा पाकर नारी सम्मान का मतलब भूल गई।
क्यों शिक्षा पाकर नारी मर्यादा से दूर गई।।
मर्यादा क्यों भंग हुई शिक्षा का मान गया कैसे।
क्यों नारी इतना बदल गई अब जग सम्मान करे कैसे।।
शिक्षा का उपयोग करो तुम मर्यादा न पार करो।
फैशन को पीछे छोड़ बहिन उस संस्कार को याद करो।।
सिर पल्लू और ढीला कपड़ा लाज स्त्री गहना है।
प्रेमी जी यह नहीं कहते हैं सारे जग का कहना है।।
सिर पल्लू ढंककर भी नारी साईंटिस्ट बन सकती है।
सिर पल्लू ढंककर ही नारी शील सती बन सकती है।।
सिर पल्लू ढंककर नारी नंगी तलवार चलाती है।
सिर पल्लू ढंककर नारी संसद में राज्य चलाती है।।
लक्ष्मी बाई इन्दिरा ने जीन्स टाप कब पहना था।
लाज देश की रखने खातिर क्या क्या दुख नहीं झेला था।।
संस्कार कायम रक्खे इस आने बाली पीढ़ी को।
कहते प्रेमी क्या कहूँ इस आने बाली पीढ़ी को।
संस्कार को भूल न जाना बस इतना ही कहता हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर
---.
(53)
कलम उठाओ कापी पकडो नित विद्यालय जाओ तुम।
रणभूमि दुशमन के आगे कभी न शीश झुकाओ तुम।।
रण में रणभूमि देखो घर में देखो नित नारी को।
सत्य बचन में सुख देखो नित रोता देख ज्वारी को।।
जुआ किसी का हुआ नहीं मत खेल जुआ पछतायेगा।
कौडी कौडी लाज बिकेगी मुफ्त में मारा जायेगा।।
गली गली बदनाम जुवारी चोरों जैसा फिरता है।
हार गया सब माल जुआ में पागल जैसा दिखता है।।
घर बेचा भूमि बेची बीवी को गिरवी दे डाला।
कर्ज करे नित पत्ते खेले कहता मैं हूँ दिलवाला।।
इसीलिए भाई मैं जग में जुआ जुल्म बतलाता हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर
---.
 
(54)
26 नबम्बर मिलेनियम दिन शुभ संवत अति प्यारी है।
दिन शनिवार शनि की महिमा प्रेमी की बिपदा टारी है।।
कर नतमस्तक सब देबों को कुटिया चरपईया डारी है।
व्रह्मा बिष्णु बजरंगबली शिव गजानंद बलिहारी है।।
साँई शरणागत हैं प्रेमी नित साँई के गुण गाते हैं।
साँई संगत है सुखदाई प्रेमी ऐसा बतलाते हैं।।
हो दीर्घ आयु बच्चों की शिक्षा अच्छी वो पा जायें।
उत्थान करें सतकाम करें सम्मान से जीवन जी जायें।।
चहु ओर जहाँ रौशन जीवन खुशियों का नित्य सबेरा हो।
दूध पूत आँगन महके पग पग खुशियों का फेरा हो।।
प्रेमी की टेर सुनो ईश्वर बच्चों को सुख घनेरा हो।
क्या निर्धन की झोपड़ी क्या निर्धन का गाँव।
दर दर ठोकर खा रहा तजे धूप बिन छाँव।।
कहे कहे तो क्या कहे मुँह पर लगी लगाम।
कोई जगत में न सुने बात लिए बिन दाम।।
समझ नहीं आया प्रेमी जग पैसे को क्यों रोता है।
पैसा जीवन मौत है पैसा नहीं किसी का होता है।।
पैसे से जिन्दगी मिली जीवन न किसी को मिलता है।
दिल का सौदा दिल से है दिल पैसे से नहीं मिलता है।।
दिल दरिया लहरों जैसा मीलों सी गहराई है।
दिल दाम नहीं कोई दिल का दिल सबका सौदाई है।।
दिलदार बही जो बिन पैसे दिल मोल बाजार लगाता है।
दिल लेता है दिल देता है दिल के ही नगमें गाता है।।
दिल दर्द दबा न काम करे जब दिल जख्मी हो जाता है।
प्रेमी इस दिल के चक्कर में बर्बाद जहाँ हो जाता है।।
दिल का तो दिल से नाता है दौलत से कोई मोल नहीं।
दिल दिल का सौदा करता है कोई ऊँच नीच का तोल नहीं।।
यों तो दिलदार हजारों हैं पर दिल से काम नहीं लेते।
दिल से जो काम लिया होता प्रेमी बर्बाद नहीं होते।।
दिल का दरबार लगा बैठे दिलदार नजर नहीं आता है।
दिल दिये बिना दिल लिये बिना व्यवहार नजर नहीं आता है।।
न हल्की है न भारी है बस कलम से प्रेमी यारी है।
दौलत से कोई मोह नहीं शब्दों की दौलत प्यारी है।।
शब्दों को चुनना काम मेरा मैं सपनों को नहीं चुनता हूँ।
माया को पीछे छोड़ सदा शब्दों की पूजा करता हूँ।।
मैंने तो दिल को बेच दिया मैं साफ साफ बतलाता हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर----------------------
(55)
शिक्षक से जाकर पूछ जरा शिक्षा का मोल क्या होगा।
शिक्षा है अनमोल रतन शिक्षक का मोल क्या होगा।।
शिक्षक बिकता है गली गली शिक्षा का कोई मोल नहीं।
शिक्षक बिन शिक्षा सूनी है शिक्षा का कोई तोल नहीं।।
शिक्षक बिन जग अंधियारा है शिक्षा बिन कुल अंधियारा है।
शिक्षा से शिक्षक प्यारा है प्रेमी शिक्षक जग तारा।।
शिक्षा है अनमोल रतन धन शिक्षा है हितकारी।
शिक्षा बिन न जगे जगत में सोच नई चिंगारी।।
शिक्षा पाना सबका हक है सब शिक्षा को पाओ।
शिक्षा पकर देश जगत अच्छे बच्चे कहलाओ।।
शिक्षा का व्यापार बन्द कर जन जन तक पहुँचाओ।
शिक्षा सस्ती रहे देश में ऐसा नियम बनाओ।।
गाँव गाँव स्कूल खुलें पढ जाये बच्चा बच्चा।
बने साक्षर सभी नागरिक सबक मन हो सच्चा।।
शिक्षा ऊँची रहे देश में यही दुआ करता हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर------------------
(56)
बिन माँ के सन्तान का जीवन सोचो क्या होता है।
भूखा प्यासा रहे पड़ा वो बिस्तर में रोता है।।
पिता रहे लापता रहे सन्तान अकेली घर में।
रो रो बच्चा खेल रहा है बसता है डर मन में।।
माता होती गले लगाती स्तन दूध पिलाती।
बाँहो का दे मुझे झूलना झूला रोज झुलाती।।
रोज खेलता गोद में माँ की हँसी खुशी दिन कटता।
दुख होता चाहे सुख होता माँ ममता में बँटता।।
माँ की ममता मान बढ़ाती हर बच्चे के मन में।
सद बुद्धि सुख राह दिखाती बच्चे के जीवन में।।
जीवन तो जीना होगा,जीवन है,एक कहानी।
आता जाता जीवन सबका ये ही,जगत कहानी।
सुख आये दुख आये जीवन चलता ही रहता है।
जन्म मरण का चक्र जहाँ में चलता ही रहता है।।
चार दिवस अफसोस हुआ जब पिता से हुई जुदाई।
कोई किसी के साथ न जाता ये ही जगत खुदाई।।
जो आया बो जायेगा न रुके किसी के रोके।
जीवन है इक फूल पंखुड़ी उडे हवा के झोके।।
क्या हो जाये कब हो जाये हवा हवा मिल जाये।
मिट्टी का तन पड़ा भुईं पे बिना काम रह जाये।।
अजब अनोखी देह की रचना प्रेमी समझ न आई।
श्वास रही तो करी कमाई श्वास रहित बिलखाई।।
यह मेरा बो मेरा कहता जहाँ जगत में डोले।
प्रेमी मन में भ्रम लिए नर, रन बन मृग सा डोले।।
न कुछ था न है कुछ तेरा सब है मन का फन्दा।
प्रेमी जीवन साख है टूटी श्वास बन्द सब धन्दा।।
क्या कहूँ कुछ समझ न आये मनमन्थन करता हूँ ।
उठती है मेरी नजर जिधर-----------------
(57)
भाई सा कोई दोस्त नहीं न भाई दुश्मन जैसा।
भाई, भाई की भुजा सुना, हमने था प्रेमी ऐसा।।
नहीं रहे बो मात दुलारे नहीं रहे बो भाई।
प्रेमी टूटा रक्त का बन्धन भाई बना कसाई।।
चन्द रुपये लालच में भाई भाई को मरबाये।
मगरमच्छ से बहते आँसू जनता बीच दिखाये।।
भाई सा बदनाम शब्द करते हैं चन्द लुटेरे।
ऐसे भाई जग में प्रेमी न तेरे न मेरे।।
लालची अधर्मी भाई से मैं सावधान करता हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर

----------.

(58)
कठिन अध्ययन किया जगत में तभी उपाधि पाई है।
सौ में अकेला बना डाक्टर जनता करे बड़ाई है।।
जनता की उम्मीद नजर अब भला सभी का होगा।
समय समय पर मिले दबाई रोग मुक्त जग होगा।।
आओ चिकित्सा जगत की यारो तुन्हें सुनायें कहानी।
आज चिकित्सा जगत में प्रेमी होती है मनमानी ।।
बेड चार्ज और हाथ फीस का अलग अलग है दाम।
पैसे के लालच में प्रेमी डिग्री है बदनाम।।
अस्पताल तो एक है लेकिन चार्ज हुआ बँटबारा।
एसी जनरल अलग अलग हैं कैसे होय गुजारा।।
एक डॉक्टर एक ही डिग्री दबा नहीं है न्यारी।
एसी जनरल जाकर देखो सबकी एक बीमारी।।
हाड माँस का तन है सबका सब हैं दुख के मारे।
फिर क्यों प्रेमी बना दिये हैं कमरे न्यारे न्यारे।।
रोगी तो रोगी होता है रोग मिले छुटकारा।
क्या एसी क्या जनरल प्रेमी रोगी जीवन प्यारा।।
रोग दबाई नींद चटाई भूख मिले जब रोटी।
प्रेमी इनका मोल न कोई तीनों जीवन ज्योति।।
नींद नशा और इश्क में सब होता है भंग।
प्रेमी सिर तीनों चढें अक्ल छोड़ दे संग।।
रंग अनोखा नींद का सब रंग देत भुलाय।
प्रेमी इस संसार में सब को नींद लुभाय।।
सबको नींद लुभाय सत्य मन मैं कहता हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर ---------------
(59)
कैसलैस होगा भारत ऐसा कब किसने सोचा था।
कार्ड कैस का बनेगा मालिक ऐसा नहीं भरोसा था।।
युग बदला भारत बदला तो कैस साथ में बदल गया।
कैसलैस होते होते भारत का ओहदा बदल गया।।
कल तक भारत भारत था अब भारत एक सितारा है।
रहे तिरंगा निसदिन ऊँचा गौरव यही हमारा है।।
शॉप शॉप पर स्वीप लगे भारत की शान बढ़ाते हैं।
कैसलैस की खुशी जशन घर घर में लोग मनाते हैं।।
कैस नहीं तो सेफ रहेगें डर न होगा चोरों का।
काला चेहरा सामने होगा देश में रिश्वत खोरों का।।
घर घर में सब बने साक्षर यही देश परिवर्तन है।
घर घर शिक्षा द्वीप जलायें प्रेमी का मनमन्थन है।।
प्रेमी जग में प्रेम की बंशी शिक्षा से ही बजती है।
शिक्षा से ही देश की नईया प्रेमी आगे बढ़ती है।।
शिक्षा है अनमोल रतन चोरों के हाथ नहीं आती।
बिन शिक्षा के जीवन में कोई खुशहाली न आती।।
शिक्षा ऊँची रहे नित्य मैं यही कामना करता हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर------------------
(60)
संसद तो है शान देश की नित्य सभायें होती हैं।
कुछ दुर्लभ धाराएं है जो पड़ी अधूरी रोती हैं।।
नहीं गौर करता कोई छोटी मोंटी धाराओं पर।
नुक्कड़ होती सभा नित्य देखी हमने चौराहों पर।।
कहीं लगा शिलान्यास तो कहीं है बैनर लगा हुआ।
जनता का विश्वास जीत नेता संसद में खडा हुआ।।
पाँच वर्ष तक राज्य किया जनता की याद नहीं आई।
आया इलक्शन घर घर घूमा गली गली टक्कर खाई।।
जनता बोली भूल हुई जो हमने तुमको बोट दिया।
पाँच वर्ष के कार्यकाल में हमको तुमने क्या दिया।।
हाथ जोड़कर नेताजी ने अपना दुखड़ा कह डाला।
ऐनक पीछे बहते आँसू अपना मुखड़ा धो डाला।।
क्या कहुँ बे पक्ष पार्टी ने मुझको बदनाम किया।
शिलान्यास लगवाकर मुझसे बिल न उसका पास किया।।
मगरमच्छ से बहते आँसू जनता का मन लुभा गये।
चिकनी चुपड़ी बातें करके सबको उल्लू बना गये।।
खद्दर का कुर्ता पहना और पापलीन की धोती।
सिर पर टोपी लम्बी है पर पैर चाम की जूती।।
कुर्सी तो है जर्मन बाली टेबल है जापानी।
माथे टीका चन्दन का फिर भी करता बेईमानी।।
क्या कहें कुछ समझ न आये राज रंग का फंदा।
गली गली में होता देखा राजनीति का दंगा।।
राजनीति है विष की पुड़िया मत न गले लगाओ।
सोच समझ मतदान करो चोरों को मार भगाओ।।
चोरों का हक नहीं जाये संसद अधिकार जमायें।
चोरों को हक नहीं एम पी एम एल ए बन जायें।।
निर्वाचन आयोग से प्रेमी करते हैं फरियाद।
छानबीन कर टिकट दिलाओ बन्द होय अपराध।।
नियम बनाओ कोई नया गुन्डागर्दी मिट जाये।
चोर उचक्का जीत इलेक्शन संसद को न जाये।।
संसद तो है शान देश की संसद है निर्णायक।
याद रखो कोई बैठ न पाये संसद में खलनायक।।
विष नीला हो चाहे पीला विष तो विष होता है।
रंग संग से नहीं कभी विष भेद मिटा करता है।।
विष की कोई जाति न होती न विष का कोई अपना।
विष का सेवन जो कर जाये उसे पडेगा रुकना।।
साँस रुके तो आस रुके रुकजाती दिल की धड़कन।
कोई न जाता साथ किसी के चंद दिनों की तड़पन।।
इन्सां को कोई न रोता सभी काम को रोते।
कैसे होगा खर्च गृहस्थी सोच अश्क मुँह धोते।।
नारी का कुछ पता नहीं कब नारंगी बन जाये।
बच्चों को कब छोड़ अकेला दूजा विवाह रचाये।।
यह तो है सबका मनथन मन चंचल होता है।
मन विचलित होने से प्रेमी सारी सारी उम्र रोता है।।
मन न मीत कभी होगा न होगी मन से यारी।
सारे जग की दौलत पाकर भी,मन न बने पुजारी।।
अनहोनी मन सैर करेगा अनहोनी करवाये।
मन की मान करे जो करनी बार बार पछताये।।
घर नंगा पाकिट खाली मन चाट पकौडा माँगें।
इज्जत खोई मन की खातिर मर्यादा को लाँघे।।
मर्यादा जब भंग हुई सब मान ज्ञान बिसराया।
बुद्धिमान से मानव को मन तिगनी नाच नचाया।।
मन का मान रखो जग में यारी हाथी अंकुश सी।
अंकुश लग मन दौड़ न पाये राह लगे बेबस सी।।
काज करो सब सोच समझ बस इतना ही कहता हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर

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(61)
ना का नमना काम जगत में नमना ही जीवन है।
कभी न रुकना कभी न थकना चलना ही जीवन है।।
जीवन है इक आस अधूरी कब जाने छिन जाये।
पता नहीं कब तन मिट्टी का मिट्टी में मिल जाये।।
आँख खुली तब भोर हुआ भुई चरन छुए पग धारो।
माता पिता की सेवा करना मन से नहीं विसारो।।
उदर पला नौ मास मात के जन्म हुआ जग आया।
पग पग माँ ने राह दिखाई जवाँ हुआ बिसराया।।
भूल गया उस मुख की लोहड़ी गाकर तुझे सुनाई।
भूल लगी आहार दिया माँ फिर भी कहे पराई।।
बचपन में माँ दूध पिलाये अति मन में हर्षाये।
वही पुत्र माँ के ऊपर अब नित लाठी वर्षाये।।
कल तक माता माता थी अब माता हो गई बैरी।
कहे पुत्र माँ से प्रेमी तुम कभी न चढ़ना डेरी।।
जाओ घर से दूर कहीं जा खन्दक में मर जाओ।
पीछा छोड़ो पैर पड़ूँ मैं अब दूर कहीं भग जाओ।।
न तू माँ न पुत्र मैं तेरा खत्म हुआ ये नाता।
मैं भूला अब खत्म तू करदे मात पुत्र नाता।।
प्रेमी को अफसोस हुआ सुन माँ बेटे की बानी।
द्वार खड़ी माँ रोती देखी दो दो घूँटा पानी।।
कैसा है बेदर्द जमाना प्रेमी समझ न आया।
जिस बेटे को जन्म दिया उसने ही मार भगाया।।
कितना है बेदर्द जमाना कितना है जग बैरी।
प्रेमी क्यों मन भ्रष्ट हुआ क्यों बना राख की ढेरी।।
प्रेमी पूछे क्या कोई बिन माँ पैदा होता है।
बिन माँ की सन्तान से पूछो जीवन क्या होता है।।
जीवन का है अर्थ क्या बस माँ ही समझाती है।
बुरे भले का ज्ञान सिर्फ माता ही कर बाती है।।
माता ही है जग जननी माता ही रूप भवानी।
माता से ही शुरू होती जीवन की नई कहानी।।
प्रेमी कहते नित उठकर माता को शीश झुकाओ।
सुख समृद्धि जीवन में सब माँ कृपा से पाओ।।
माता है ममता की देवी बस इतना ही कहता हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर--------------------।।
(62)
बदल गई सरकार देश की बदल गये नेता सारे।
सूरज चंदा कोई न बदला बदल गये रिस्ते सारे।।
रिश्ता था अनमोल जगत का प्रेमी कैसे बदल गया।
अर्थ व्यवस्था न बदली फिर पैसा कैसे बदल गया।।
न बदला संविधान देश का न बदला लिखने वाला।
न बदला कागज का टुकड़ा न उस पर छपने वाला।।
न बदला कोई जुर्म देश का न बदला सहने वाला।
न बदली कोई हिन्द की भाषा न बदला रहने वाला।।
क्या गोरा क्या काला धन धन की है पहचान क्या।
अरब पति उद्योग पति की बोलो है पहचान क्या।।
उद्योग पति से किसने पूछा इतना धनी हुआ कैसे।
कल तक था कंगाल पति अब मालामाल हुआ कैसे।।
लाख रुपये की इनकम है फिर अरबों जमा हुआ कैसे।
मिट्टी में रहने वाला फिर आसमान हुआ कैसे।।
उद्योग चलाते इनकम पाते सरकार दिखाते हैं घाटा।
मिनी बैंक से लोन लिया बिन जमा किये सब सन्नाटा।।
गाड़ी है जर्मन वाली घर में नौकर बहुतायत हैं।
शीशे का है शीश महल क्या यह माफी के लायक है।।
फिर भी यह कानून हिन्द का इन्हें माफ कर देता है।
पिछला कर्ज बकाया है अगली मंजूरी देता है।।
उद्योग नहीं नीलाम कभी उद्योग पति का होता है।
घाटे का नित करे बहाना चैन नींद में सोता है।।
हीरे का है बटन लगा सिर पर टोपी मखमल वाली।
उद्योग पड़ा घाटा फिर भी नौकर करते हैं रखवाली।।
ऐरो प्लेन की करें यात्रा देश देश को जाते हैं।
जर्मन इटली जा जाकर होटल में मौज मनाते हैं।।
बिन पैसा सोचो कोई जर्मन इटली जा सकता है।
बिन पैसा सोचो कोई घर छोड़ कहीं जा सकता है।।
फिर भी कहते घाटा है व्यापार पड़ा ताला।
जाँच हुई सब पकड़ गया उद्योग पति धन काला।।
आधा खाया अधिकारी ने आधा माल खजाना।
खड़ा द्वारे सी वी आई चलता नहीं बहाना।।
चोर बने सरकार नजर जनता नित करे बुराई।
दो नम्बर दौलत प्रेमी नहीं काम में आई।।
दाम दिया मजदूर को आधा पूरा काम कराया।
जब मजदूर ने पैसा माँगा डराया धमकाया।।
बेबस और लाचार ये जनता नित्य जुर्म सहती है।
जान बनी अन्जान ये जनता जुबाँ बन्द रखती है।।
जुबाँ बन्द रखना मजबूरी जनता की होती है।
क्योंकि घर में भूखी बच्ची रोटी को रोती है।।
क्या करे निर्धन बेचारा बात कहे कुछ कैसे।
कोई नहीं सुनने वाला गर पास नहीं हो पैसे।।
चुप रहता हूँ इसीलिए मैं जुर्म सभी सहता हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर

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(63)
मजबूर हुआ लाचार हुआ क्यों हिन्द देश का बासी।
सोने की चिड़िया भारत और तीर्थ मथुरा काशी।।
वर्षों रहा गुलाम देश कोई तीर्थ काम न आया।
कोढे मारे अंग्रेजों ने अपना काम कराया।।
वर्षों शासन किया देश का अन्न नमक भी खाया।
धन लूटा और तन भी लूटा फिर भी नित्य सताया।।
काम कराया हल जुतबाया पढ़ना व्यर्थ बताया।
ऊँच नीच का भेद बताकर आपस में लड़वाया।।
पन्डित मुल्ला नोट कमायें जनता मरती भूखी।
पन्डित मुल्ला मक्खन खायें जनता रोटी सूखी।।
पन्डित मुल्ला कहो क्या कोई शिव हैं या मुहम्मद।
पन्डित मुल्ला नित्य बनायें जाति पांति का गुम्मद।।
पन्डित का धन मन्दिर है मुल्ला की मस्जिद खेती।
पन्डित का जप राम नाम मुल्ला रव टेर चहेती।।
मुल्ला कहता रव मेरा पन्डित कहे राम है मेरा।
बुद्धि भ्रष्ट करें जनता की क्या मेरा क्या तेरा।।
रब सिक्खों की वाणी है अल्लाह मुस्लिम उपनाम।
हिन्दू कहता निराकार है भिन्न शब्द इक नाम।।
शब्दों का अन्तर देकर जनता को मूरख कर डाला।
एक पिता और एक ही माता एक ही सब का रखवाला।।
क्यों जनता मूरख बनती,है मुल्ला पन्डित की बातों में।
क्यों पड़ती है जाति पांति के झूँठे रिश्ते नातों में।।
जाति पांति सब रार की बातें बस इतना ही कहता हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर------------------------।।
(64)
क्या कभी सोचा तुमने सूरज का रंग बदल डालें।
पिददी सी इस चीज को ले चुकटी में चलो मसल डालें।।
हमने माना सूरज भी चुकटी से मसला जायेगा।
मसल बाद पहले तो समझ फिर नया कहाँ से लायेगा।
नया नहीं ला सकता तो जैसा है वैसा रहने दे।
मध्यम है तो क्या हुआ तू उसे रोशनी देने दे।।
मध्यम से ही जहाँ जगत जीवन की रक्षा होती है।
मध्यम से ही जीव जगत में नित्य उन्नति होती है।।
बिन प्रकाश बिन पैसा प्रेमी जीवन न चल पायेगा।
बिन प्रकाश बिन पैसा प्रेमी जगत नष्ट हो जायेगा।।
देन सूर्य प्रकृति उसको अपनी गत चलने दो।
मधुर मलिन सी इन किरणों को जल कल में ही रहने दो।।
अग्नि जीवन पानी का पानी का जीवन अग्नि है।
इस माया का क्या भरोसा प्रेमी यह तो ठगनी है।।
आज यहाँ कल वहाँ ठिकाना रोके से न रुकती है।
सारे विश्व का भ्रमण करती प्रेमी यह न थकती है।।
थकता है माया का लोभी रात दिन जो खटता है।
अन्त समय तक माया माया ही जो प्रेमी जपता है।।
पैसा है वे पैर मुसाफिर सबको सैर कराता है।
कहीं खुशी तो कहीं बुराई पैसा ही दे जाता है।।
 क्या लिखूँ माया की महिमा लिखने से भी डरता हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर

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(65)
सोना चाँदी भाव बढ़ा सिल्वर ने रंग दिखाया है।
इसीलिए अब विश्व बैंक ने कागज नोट छपाया है।।
रंग बिरंगा रूप दिया देखो कागज के टुकड़े को।
कागज ही अब दूर करेगा जग जनता के दुखड़े को।।
कागज में भरमाई दुनिया जग कागज पीछे है।
कागज ही है बादशाह दुनिया जग कागज पीछे है।।
कागज से ही पढ़ना लिखना कागज ज्ञान कराये।
कागज की ही नाव जगत में प्रेमी दौड़ी जाये।।
कागज के पीछे जग भाजे कागज जग के पीछे।
कागज को ही छिपा छिपा जग भरै तिजोरी पीछे।।
क्या पता था एक समय ऐसा भी आ जायेगा।
कागज का ये छपा नोट भी धोखा दे जायेगा।।
लगता हमको बिकने वाला है कुछ कागज से सस्ता।
इसीलिए सरकार ने भाई अपनाया ये रस्ता।।
आठ नम्बर मिले नियम सोलह की रात सुनहरी।
नौ नम्बर बन्द करेन्सी हिन्द मूछी गहरी।।
घर घर में मातम छाया कुछ समझ नहीं आता है।
भूखे बच्चे घर में रोयें कुछ भी न भाता है।।
धन्य हिन्द की राजनीति और धन्य हिन्द का राजा।
निर्धन का सब बोट लिया और बन बैठा महाराजा।।
बोट दिया था जनता ने कुछ अच्छे दिन आयेंगे।
फूल खिलेंगे बागो में गुलदस्ते मुस्करायेंगे।।
सूखे फूल कतारों में अब गुलदस्ता है खाली।
हार बने न गुलदस्ता अब फूल सख गई डाली।।
वर्षों खिलता चमन आज है पल भर में मुरझाया।
हरा भरा था वृक्ष आज क्यों पकड़ डाल उपसाया।।
त्राहि त्राहि देख चमन प्रेमी का मन घबराया।
अच्छे दिन के लालच में अब बुरा समय है आया।।
खून पसीने का पैसा अब जमा बैंक में होगा।
जेब रहेगी नित खाली प्रेमी क्या अच्छा होगा।।
कैसे मुन्ना करे पढ़ाई पैसे का है टोटा।
नोट देख सब कहते प्रेमी ये है सिक्का खोटा।।
खोटा सिक्का बना किस लिए किसने इसे बनाया।
मन मन्थन जब किया बैठ तो समझ प्रेमी आया।।
गोरे को काला करते काले को करते गोरा।
इक इक पैसा परेशान है पीटत फिरै ठिठोरा।।
इनकम करते दो आने की काम करे चाराना।
कल तक था निर्धन बेचारा अब है उच्च घराना।
जोड़ जोड़ घर में रखते हैं बैंक पड़ी है खाली।
कोठी भी है बंगला भी है फिर भी है कंगाली।।
प्रेम हुआ जापान विवाह जर्मन में जाय मनाया।
हनीमून के लिए महल लन्दन में जा बनबाया।।
नहीं मिली कोई जगह हिन्द में हनीमून के लायक।
इनकम टैक्स की चोरी करते बने फिरें महानायक।
खूब करन्सी जमा करो मेहनत से नोट कमाओ।
घर छोडो तुम रखो बैंक में देश का काम चलाओ।।
ब्याज मिलेगा तुम्हें जमा पर सेफ रहेगा पैसा।
सारे जग का काम चलेगा मत कर पैसा पैसा।
घर पैसा नहीं किसी काम का बैंक काम आ जाये।
पड़ा जेब में पैसा प्रेमी पानी सा बह जाये।।
मत कर इतना मोंह जान दुश्मन बन जाये पैसा।
बैंक से नाता जोड़ सफल जीवन कर जाये पैसा।।
जनधन से लेकर सेविंग तक बैंक साथ है तेरे।
के सी सी से पैसा पाकर करले दूर अंधेरे।।
निम्न योजना लगी बैंक में किसी से काम चला ले।
घर में पैसा मत रख प्रेमी खाते में डलवा ले।।
लिखता हूँ संदेश देश हित में ही मैं रहता हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर--------------।।
(66)
बन्द करो गौ कसी जवानों नित्य करो गौ पूजा।
इससे बड़ा पुण्य न कोई और जगत में दूजा।।
भर भर लोटा दूध पिओ तुम मक्खन नित्य बनाओ।।
डाल दाल में घी भर चम्मच नित्य मजे से खाओ।।
होगी फिर खुशहाल जिन्दगी सेहत रहेगी खासी।
स्वस्थ रहेगा तन मन सारा होगी दूर उदासी।।
दूर रहेंगे दुखडे सारे रोग नहीं होवेगा।
बिना पिये फिर दूध देश में कोई नहीं सोवेगा।।
घर घर माता पाँव पँसारे नियम बनाओ ऐसा।
गौ माता की करे न सेवा प्रेमी हिन्दू कैसा।।
हिन्द देश में रहकर भी गौ पूजा नहीं करेगा।
ऐसा हिन्दू कभी देश में उन्नति नहीं करेगा।।
गौ माता की रक्षा करना हिन्द देश का नारा।
रहे सलामत गाय हिन्द में यह संकल्प हमारा।।
प्रेमी के मन प्रेम बसा जनता से आस लगायें।
हाथ जोड़ फरियाद करें मिल माँ की जान बचायें।।
तुच्छ मेरा संदेश सज्जनों तुच्छ मेरा प्रचार।
मनमन्थन पुस्तक से प्रेमी लिखें पंक्ति चार।।
वर्तमान की सारी घटना मनमन्थन लिख डाली।
देश का युवा करे तरक्की आये देश खुशहाली।।
निर्धन से धनवान की महिमा मनमन्थन में पढ़ना।
लिखित प्रेमी काव्य सज्जनों पढ करना मत गढ़ना।।
शान तिरंगा बनी रहे हिन्दुत्व पता लहराये।
प्रेमी का संदेश देश में प्रेम ध्वजा लहराये।।
और नहीं कुछ याद मुझे बस इतना ही लिखता हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर

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(67)
संयम बरतो संयम बरतो जल्दी का काज बुनो न कभी।
संयम सतर्कता होती संयम दुर्घटना हो न कभी।।
संयम का संताप बड़ा संयम से सबकुछ होता है।
संयम बिन होती दुर्घटना दुर्घटना से दिल रोता है।।
दूर सही दुर्दशा न हो संयम का ध्यान सदा रखना।
संयम बरते जो जीवन में प्रेमी जीवन का क्या कहना।।
ज्ञान रहे पहचान रहे सतर्कता अपनी शान रहे।
जीवन का मान बढ़ाना है तो अनुशासन का ध्यान रहे।।
कर्म भूमि हो स्वच्छ स्वच्छ कहीं गंदगी हो न सके।
मन निश्छल हो याद रहे कोई भूल,भूल से हो न सके।।
सेल फोन और एयर फोन एकांत बैठ उपयोग करो।
प्रेमी कहते सफर बीच इस एयर फोन को बन्द करो।।
अर्जेन्ट काल आनी होगी तो दोबारा आ जायेगी।
जान गई पछताओगे बो दोबारा न आयेगी।।
इसी लिए कुछ चन्द शब्द जनहित में जारी करता हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर----------------।।
(68)
जीवन जंग है प्यार की दुख सुख है अभिमान।
दुख सुख मिल जीवन बना प्रेमी करें बखान।।
जीव जगत भ्रमण करे हँस हँस करे बखान।
दुख सुख हँस धारण करे यही जीव की शान।।
शान बान और आन बिन जीवन में अंधेर।
पक्षी गाता जा रहा कागा जपै मुंडेर।
कागा कोयल सम दिखें वाणी में मत भेद।
एक जपे नित राम को एक करे स्वर भेद।।
स्वर सलोना साँवला बोल सके तो बोल।
सत्य बचन अनमोल हैं विष अमृत न घोल।।
सतर्कता सार सभी सुख का दुर्घटना सार दुखों का है।
सतर्कता जान बचाती सतर्कता साथ युगों का है।।
पिछड़ गया क्यों देश हिन्द क्यों पिछड़ा हिन्द निवासी।
पिछड़ गई क्यों देश सभ्यता प्रेमी मथुरा काशी।
कहाँ गया बो प्रेम दिलों का कहाँ गई मर्यादा।
जाति पांति निय होय लड़ाई देश कर दिया आदा।।
जाति पांति के बँटवारे में कौन क्या पायेगा।
पक्षी जैसा बना घोंसला प्रेमी रह जायेगा।।
चन्दन की नित डाल बैठ कर कोयल गीत सुनाये।
मीठी मीठी मधुरी वानीं सुन सुन जी ललचाये।।
रंग है रौनक सभी दिलों का रंग बदरंग न होता।
कोयल कागा एक रंग हैं दोनों अलग मुखौटा।।
भले बुरे की कभी कल्पना रंगों से मत करना।
काला गोरा समझ किसी को प्रताड़ित मत करना।।
रंगों से पहचान न करना बस इतना कहता हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर----------------।।

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(68)
कर्म करो मत शर्म करो है कर्म धर्म की शान।
कर्म किये तन न घटे नाहि घटे पहचान।।
कर्म धर्म इक राह है दोनों मंजिल एक।
कर्म धर्म दोनों सही प्रेमी वो तन नेक।।
कर्म करे से फल मिले धर्म कमाये मान।
धर्म ज्योत जलती जहाँ दूर होत अज्ञान।।
धर्म कर्म की बात करे सब दिल में बैठा चोर।
निर्धन का कोई गौर न करता सब हैं रिस्वत खोर।।
लालच के चक्कर में देखो बन बैठे बेईमान।
बिन पैसे के कलम न चलती बेच दिया ईमान।।
धर्म कर्म को खो दिया फँस लालच के बीच।
गली गली खा गालियाँ कहती दुनिया नीच।।
निर्धन से धनवान बन भूल गया वो बात।
लंघन कर जीवन कटा अग्नि तप तप रात।।
प्रेमी धन करतार का सब है चौकीदार।
चार दिना की जिन्दगी छूट जात संसार।।
प्रेमी या धनवान से वो निर्धन है ठीक।
हाथ पसारे जो खड़ा देता उसको भीख।।
गाली खाकर भी कभी करता नहीं अनर्थ।
सहन सभी करतार को तप न जाये ब्यर्थ।।
कहते प्रेमी तप करो सब निर्धन धनवान।
सत्य वचन अनमोल हैं सत्य हरि गुणगान।।
हरि नाम अमृत बसा जप अमृत को चाख।
अन्त समय पछतायेगा तन जल होगा राख।।
सन्त समागम सत्य की माया संगत पाप।
सन्त समागम नित करो हरि नाम का जाप।।
प्रेमी धन हरि नाम है और न दूजा कोय।
प्रेमी जप हरि नाम को नित्य मनोरथ होय।।
लिखना था जो लिख दिया पढ़ पढ़ करो विचार।
सत्य राह सुख से भरी प्रेमी कहे पुकार।।
सत्य राह चलते रहो सत्य करो नित काम।
राम नाम जपते रहो नित्य सुबह और शाम।।
क्या कहूँ और क्या लिखूँ कलम हुई मजबूर।
सच्चा साँई प्रेम रस चखना इसे जरूर।।
प्रेमी का नित शीश साँई चरणों में झुकता है।
सबका मालिक एक है साँई खाली झोली भरता है।।
साँई सच्चा सार जगत बस इतना ही कहता हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर--------------------।।
(69)
हुई पलट संसार में फैला माया जाल।
जिसको देखो चल रहा निसदिन उलटी चाल।।
वस्त्र बेढंगे चाल बेढंगी कहता यह फैशन है।
फैशन जीवन सार बना फैशन से जग रोशन है।।
बिन फैशन जीवन सूना फैशन बिन कुछ न भाता है।
नाते रिश्ते छोड़ पिछारी जोड़ा फैशन नाता।।
माँ को कहता मन्द बुद्धि नित पिता को गाली देता।
रंग बिरंगे वस्त्र बेढंगे पहन गली में फिरता।।
कहे पिता से पास न आना तुम हो ग्राम गुआला।
पढ़ा लिखा मैं इंग्लिश बाबू फैशन का मतवाला।।
पढ़ लिये अक्षर चार गया सब भूल पिता की सेवा।
माता पिता का करे अनादर सब फैशन की मेवा।।
संस्कार सब भूल गया पितरों का नाम लजावे।
प्रेमी न सन्तान कभी ऐसी जीवन सुख पावे।।
जड़ को पानी मिला नहीं तो साख कहाँ पीवेगी।
बिन जड़ साख आसमान में प्रेमी कब फूलेगी।।
जड़ तना तना से पत्ती पत्ती फूल उगाती।
इसीलिए तो जड़ की महिमा प्रेमी दुनिया गाती।।
जड़ बिन साख नहीं उपजे न उपजे पत्ती फूल।
माता पिता की सेवा प्रेमी सच्चा जीवन मूल।।
माता पिता बिन कोई न उपजा न उपजे कहता हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर-----------------------।।
(70)
बदचलन मर्द भी होते हैं पर दोष नहीं उनका कोई।
बदचलन मर्द को पाय प्रेमी घर घर में महिला रोई।।
बदचलन मर्द को सजा मिली क्या कहीं लिखा पाया है।
बदचलन हुए क्यों मर्द कोई अंदाज लगा पाया है।।
घर का मुखिया बना देश का राजा भी बन बैठा।
कर प्रताड़ित पर नारी को भला आज बन बैठा।।
क्या क्या जुर्म किये मर्दों ने कहो सजा क्या पाई। 
भूल तनिक गर हो महिला से कहते सब हरजाई।।
मर्दों का कोई चलन नहीं जो जी चाहें करते हैं।
कहते हम तो मर्द हैं भईया नहीं कभी डरते हैं।।
रास रचाये असमत लूटे नित्य मौज में रहते।
मर्दों का नित देख रवैया प्रेमी गम में रहते।।
औरत को औरत न समझे कहे पैर की जूती।
दे तलाक दूजी कर लाया कहता आफत छूटी।।
औरत को कई नाम दिये मर्दों ने तुम्हें बतायें।
रक्कासा और बना वेश्या महफिल बीच नचाये।।
भोली औरत बनी रक्कासा दोष कहो किसका है।
औरत का कोई दोष नहीं सब किस्सा मर्दों का है।।
मर्दों ने फेरा डाला औरत को नित्य सताया।
कभी डराया कभी सताया वेश्या उसे बनाया।।
मर्दों की इस राजनीति में औरत फँस जाती है।
चरित्रवान होकर बेचारी वेश्या कहलाती है।।
क्षण भंगुर गलती की खातिर नार हुई नारंगी।
मर्द करे नित पाप जगत में फिर भी है बहुरंगी।।
नित अस्मत से खेल रहा नित औरत मर्द सताये।
अपनी गलती न स्वीकारे औरत गलत बताये।।
औरत है निर्दोष जगत में मैं इतना ही कहता हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर---------------------।।
 

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(71) 
पर नारी को छोड़ ताकना सतयुग आ जायेगा।
कभी नहीं संसार बुरा नारी को कह पायेगा।।
मत करना मजबूर कभी मत इज्जत दाँव लगाना।
प्रेमी कहते नारी को इज्जत सम्मान दिलाना।।
नारी का सम्मान शान सब मर्दों की होवेगी।
नहीं पड़ी फिर कहीं गली में वे इज्जत रोवेगी।।
होगी हर महफूज गली घर घर बेटी जन्मेगी।
जन्म से पहले कभी नहीं जीवन बेटी खोवेगी।।
होगा फिर आबाद जहाँ रौशन जग चाँद सितारा।
कितना सुन्दर हो जायेगा भारत अपना प्यारा।।
नहीं डरेगा फिर कोई बेटी से मैं कहता हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर---------------।।
(72)
कितना है बेदर्द जमाना कितना है हरजाई।
जन्म से पहले मार शिशु को तनिक शर्म न आई।।
जीवन है बेरहम जिन्दगी जीना सबका हक है।
जीने का अधिकार छीनना नहीं किसी का हक है।।
खट्टा हो चाहें मीठा हो फल तो फल होता है।
बीज चाख फल जग में प्रेमी कोई नहीं बोता है।।
न जन्मा जो मरा अजन्मा उसका दोष क्या था।
जन्म से पहले बेटा बेटी किसको बोल पता था।।
कैसा है वो पिता बेरहम कैसी डायन माँ है।
गर्भ शिशु को मार दिया प्रेमी इन्साफ कहाँ है।।
आखिर था क्या दोष शिशु का कोई मुझे बतलाये।
ऐसी माँ को क्या कहूँ जो मार शिशु हर्षाये।।
आज बनी क्यों डायन माता समझ नहीं पाता हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर----------------------।।
(73)
बना है बंगला अरबों का पर बूँद नहीं है पानी।
एक किसी की नहीं आज घर घर की यही कहानी।।
नल भी है और मोटर भी फिर भी है लोग बताते।
जिसको देखो जमींदार अन्दर सब नल लगवाते।।
राह चली हैरान हुआ गर्मी ने गला सुखाया।
गली गली में ढूँढ फिरा पर पानी कहीं न पाया।।
क्या कहूँ अब किससे माँगू पानी बिन मरता हूँ।
सब दिखते हैं अरबपति कुछ कहने से डरता हूँ।।
घर में है अनमोल खजाना द्वार नहीं है पानी।
दौलत वाले जग में देखी तेरी अजब कहानी।।
दौलत पा कुछ पुन्य कमाले नल द्वारे लगवाले।
राहगीर जलपान कराकर मोक्ष द्वारा पाले।।
जल बिन जीवन नहीं बचेगा जान चली जायेगी।
अरबपति अरबों की माया काम नहीं आयेगी।।
जल का कर लो दान यही मैं हाथ जोड़ कहता हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर----------------------।।
(74)
पूर्वजों को याद करो कितने नल कूप लगाये।
राहगीर की सुविधा हेतु धर्मशाला बनवाये।।
जगह जगह पर कुँआ खुदाये साथ बाल्टी लोटा।
फिर भी वो धनवान कहाये कभी न आया टोटा।।
कोई मरा न बिन पानी न मरा राह में भूखा।
मन्दिर मस्जिद बनवाने में नहीं पूर्वज चूका।।
इसीलिए नित पुरखों का मैं नमन ध्यान करता हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर----------------------।।

---.

(75)
मन्दिर मस्जिद गुरूद्वारे गिरिजाघर जाकर देखा।
नहीं मिला प्रमाण नया है सब पुरखों का लेखा।।
हस्त लिपि है वही पुरानी जो पहले लिखते थे।
कभी पूर्वज दान पुण्य करने से न थकते थे।।
क्या कभी इस युग में प्रेमी बनी इमारत ऐसी।
सदियों पहले पुरखों ने निर्माण कराया जैसी।।
लाल किला जामा मस्जिद और ताज महल है प्यारा।
गेट इन्डिया दिल्ली वाला सिक्खों का गुरूद्वारा।।
हरिद्वार हर की पौडी काशी मन्दिर अनमोल।
वृंदावन में देख ले प्रेमी हरि भजन का मोल।।
बना वैष्णवी धाम निराला जम्मू नगरी बीच।
ऊँचा पर्वत धाम निराला पूर्णागिरी के बीच।।
राम लला के दर्शन हेतु धाम अयोध्या जाओ।
हनुमान गढी में पा दर्शन बजरंग वली गुण गाओ।।
अमरनाथ में शिव की महिमा शिवलिंग शिव का ध्यान।
पार्वती माँ पुत्र गणेश सब देवो की शान।।
करन नमन नित सब देवो को साँई शरण में रहता हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर--------------------------।।
(76)
झूठ बोलना धोखा देना वर्तमान फितरत है।
दीन दुखी की मदद न करना वर्तमान आदत है।।
पैसा पाकर भी निर्धन सा बना गली में डोले।
रात तिजोरी खड़ा अकेला चुपके चुपके खोले।।
दल्लों की है कमी नहीं इस फैशन के बाजार में।
बिना दलाली कुछ न मिलता प्रेमी आज बाजार में।।
चपरासी से अधिकारी तक सभी दलाली करते हैं।
बिना दलाली बैठ कोट में इक फार्म न भरते हैं।।
बिना दलाली कलम न चलता वर्तमान अधिकारी का।
सरकारी वर्दी के अन्दर दिल है एक भिखारी का।।
खुद की इज्जत खाक हुई सन्तान गालियाँ खाती है।
रात दिन मेहनत करती है फिर भी सुख न पाती है।।
छोड़ दलाली बन जाओ इक नेक पुरूष मैं कहता हूँ।
उठती है मेरी नजर जिधर--------------------------।।

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(77)

अस्पताल से आस लगी क्या पता रोग दुख कट जाये।

अस्पताल अन्दर जब पहुँचे देख प्रेमी पछताये।।

डॉक्टरों का पता नहीं सब कुर्सी पड़ी थीं खाली।

चारों तरफ जब नजर घुमाई गार्ड करें रखवाली।।

आगे बढ़कर पता रिसेप्शन से प्रेमी ने पूछा।

कहा डॉक्टर कब आयेंगे कुर्सी पड़ा अंगोछा।।

बोलीं मैडम सब्र करो कुछ पल में आजायेंगे।

प्रेमी बोले कुछ पल में तो लाखों मर जायेंगे।।

मैडम बोलीं क्या करें है खेद हमें भी होता।

फ्री दवा के चक्कर में जो पड़ता है वो रोता।।

प्रेमी बोले नहीं मैम है गलत आपकी बानी।

सरकारी कुर्सी पाकर क्यों करती हो बेईमानी।।

उसी य समय फिर डॉक्टर जी मैडम के पास पधारे।

भीड़ देख फिर डॉक्टर जी ने मीठे बचन उचारे।।

बोले बैठो दबा मिलेगी रोग दिखाओ पर्चा।

तभी सामने शुरु हो गई टी बी पर परिचर्चा।।

डॉक्टर जी फिर मग्न हुए और राजनीति जा पहुँचे।

क्या करें बीमार बेचारे बैठ तिपाई सोचें।।

ऐसी हालत अस्पताल की कहो क्या बतलायें।

बीमार बेचारे क्या करें अब दबा कहाँ से लायें।।

कहने को सरकार है कहती अस्पताल में जाओ।

सरकारी सुविधा का भाई जाकर लाभ उठाओ।।

जनता दुखियारी बेचारी अब कैसे लाभ उठाये।

कभी डॉक्टर नहीं मिला तो दबा कहाँ से लाये।।

भेजी थी सरकार दबाई जनता लाभ उठाये।

करे सिफारिश जनता सारी फिर भी मिल न पाये।।

डॉक्टर जी ने हाल पूँछ पर्चा लम्बा लिखडाला।

रोगी कहता आज पड़ा है मेडिकल से पाला।।

प्रेमी कहते क्या निर्धन मेडिकल जा पायेगा।

दाम नहीं है पास क्या वो जिन्दा रह पायेगा।।

कहाँ गई वो दबा जिसे सरकार दिया करती है।

जिसके बदले दाम नहीं जनता से लिया करती है।।

कहाँ गई वो दबा कहो किसने है पता लगाया।

थोड़ा थोड़ा बैठ बार में सबने मिलकर खाया।।

सब हैं रिश्वत खोर करे अब किसकी कौन बुराई।

सरकारी थी दबा कभी निर्धन को न मिल पाई।।

समय सारणी लगी डॉक्टर आठ बजे आयेंगे।

कभी करी तफ्तीश किसी ने क्या वो मिल पायेंगे।।

समय सारणी लोक दिखाबा बस इतना कहता हूँ।

उठती है मेरी नजर जिधर--------------------।।

(78)

ऊँचा हुक्का ऊँची बैठक बात करें नित मोटी।

औरन को उपदेश बतावें आप लंगोटी छोटी।।

जमींदार हैं वर्षों के पर जेब नहीं है पैसा।

बैठक बैठे होती चर्चा जमींदार है कैसा।।

पीने को हुक्का न बीडी न कोई चिलम तमाखू।

जब देखो तब करता घूमे सबसे बात लडाकू।।

नित्य लडाये जनता को मुर्गा बोतल की खातिर।

बुला करे इंसाफ बाद में जमींदार है शातिर।।

ऐसा कटते वक्त जमीदारों का हमने देखा।

हाल हुआ बेहाल प्रेमी सब कर्मों का लेखा।।

नित्य किया अन्याय जमींदारी का रौब दिखाया।

डराया धमकाया बेबस कर मुँह बन्द कराया।।

चला गया सब राज सियासत चली गई अब सारी।

नजर उठाकर देख ले प्रेमी सूनी कोठी सारी।।

नहीं जलाता दिया कोई अब वन्शज नजर न आये।

सूनीं कोठी परी धरा पर प्रेमी यों बिलखाये।।

राज रंग है भंग साथ अन्याय का यह सब देते।

बुद्धि करें विनाश जेब सारी माया हर लेते।।

लाखों बेबस खडे राह अकेले प्रेमी समझायें।

सब मूरख हैं कहते प्रेमी मन ही मन हर्षायें।।

कुर्सी का अपमान मान इज्जत का प्रेमी खोया।

जनता करे सवाल मंत्री पैर पसारे सोया।।

झूठे बादे तुच्छ इरादे जनता पाकर रोई।

नित्य करे फरियाद नहीं जनता की सुनता कोई।।

जन जनता को न्याय मिले मैं यही दुआ करता हूँ।

उठती मेरी नजर जिधर------------------।।

(79)

परिवहन निगम सरकारी सेवा सब कोई लाभ उठाओ।

दिल्ली मथुरा काशी को परिवहन निगम से जाओ।।

सेवा अच्छी परिवहन निगम फिर भी जनता कतराती।

दिन में करता सफर यात्री रात नींद न आती।।

टूटे हैं सब रोड गन्दगी बस अन्दर है भारी।

टूटे सारा बदन मुफ्त में आय लगी बीमारी।।

कहती सरकार प्यार हम जनता से करते हैं।

इसीलिए परिवहन निगम पर जोर दिया करते हैं।।

रोडों की है दशा बुरी इसमें न दोष हमारा।

ओवर लोड के लालच में रोडों ने किया किनारा।।

समय से पहले टूट गया सब पत्थर है बिखराया।

ओवर लोड पर फिर भी अंकुश अभी नहीं लग पाया।।

समझ नहीं आता कैसे यह पास लोड होता है।

आफिस बैठा अधिकारी क्या पड़ा नींद सोता है।।

वर्दी भी है ताकत भी है फिर भी हैं क्यों डरते।

नजर सामने ओवर लोड गाडी फिर भी नहीं पकड़ते।।

कुर्सी पाकर क्यों डरते हैं समझ नहीं पाता हूँ।

उठती है मेरी नजर जिधर-----------------।।

(80)

जान गई पहचान गई बस नाम अमर हो पाया।

शान तिरंगा झुक न पाये अपना बचन निभाया।।

हम सब हिन्दू हिन्दुस्तानी मुस्लिम सिक्ख ईसाई।

हम सबकी है भारत माता हैं भाई भाई।।

नहीं झुके हैं नहीं झुकेंगे हम दुशमन के आगे।

हिन्द देश के वीर सिपाही होंगे सबसे आगे।।

वीर सिपाही कभी न मरते सदा अमर रहते हैं।

हिन्दुस्तानी क्या यह सारे जग बासी कहते हैं।।

वीरों को प्रणाम नमन प्रेमी नित शीश झुकायें।

वीरों की नित बहादुरी के प्रेमी किस्से गायें।।।

मनमन्थन मन का मन्थन जन हित में प्रचार।

जन जन के उत्थान हित लिखीं पंक्ति चार।।

प्रेम और सद्भावना शब्द शब्द दर्शाय।

हाथ जोड़ बिनती सबै पढना मन हर्षाय।।

गलती की माफी सदा माँग रहा है दास।

पढ पढ शिक्षा लीजिए धरि हृदय में आस।।

क्या कहूँ अज्ञान हूँ मैं समझ कुछ नहीं पाता हूँ।

उठती है मेरी नजर जिधर तो मन ही मन पछताता हूँ।।

लेखक-दुर्गा प्रसाद प्रेमी

(इति समाप्तम)

साथियों, अगली कड़ी में मिलते हैं हिन्दी काव्य मधुवन

के साथ जय हिन्द जय भारत

--


नाम-दुर्गा प्रसाद प्रेमी
पिता का नाम-श्री मोती राम
माता का नाम-श्रीमती रामकली देबी
गाँव-मौंजम नगला जागीर
डा. रतना नन्दपुर-262407
त.व.थाना-नवाबगंज
जिला- बरेली उत्तर प्रदेश(भारत)
जन्मतिथि- 05/02/1983

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रचनाकार: कविता संग्रह // मनमन्थन // दुर्गा प्रसाद प्रेमी
कविता संग्रह // मनमन्थन // दुर्गा प्रसाद प्रेमी
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