साहित्यकारों से आत्मीय संबंध (पत्रावली / संस्मरणिका) भाग - 9 // डॉ. महेन्द्र भटनागर

SHARE:

. साहित्यकारों से आत्मीय संबंध (पत्रावली/संस्मरणिका) डॉ. महेंद्र भटनागर द्वि-भाषिक कवि / हिन्दी और अंग्रेज़ी        (परिचय के लिए भाग 1 में य...

.

image

साहित्यकारों से आत्मीय संबंध

(पत्रावली/संस्मरणिका)

डॉ. महेंद्र भटनागर

द्वि-भाषिक कवि / हिन्दी और अंग्रेज़ी

image

       (परिचय के लिए भाग 1 में यहाँ देखें)

--

भाग 1 || भाग 2 || भाग 3 || भाग 4 || भाग 5 || भाग 6 || भाग 7 || भाग 8 ||


भाग 9


श्रीमती माया वर्मा (सम्मानित कवयित्री/लेखिका)

. दि. 23-7-80



‘संकल्प’ कविता-संग्रह (प्रकाशन-वर्ष 1977) पर प्रतिक्रिया :

पढ़ा सुखद ‘संकल्प’ बहुत ही मन को भाया,

‘जीवित है मानवता’-यह अनुमान लगाया।

पाये तथ्य मनोवैज्ञानिक, मधुरिम भाषा

दिखी आप में, कुछ दे जाने की अभिलाषा।

मानवीय संवेदना को नव-प्राण दिया है

सामाजिक मूल्यों का पुनरुत्थान किया है।

प्रियवर! गांधी को सलीब पर क्या लटकाया

सही आधुनिक राजनीति का चित्र बनाया!

संकल्पित संदेश आपके दुनिया माने

है हार्दिक कामना - सुपथ जन-मन पहचाने!

बनें आप साहित्य-जगत के दृढ़ ध्रुव तारा

विकृत रूप जग का तव कर से जाय सँवारा!

                .

डा. मृत्युंजय उपाध्याय

. धनबाद / दि. 19-12-90

आदरणीय भाई,

सादर प्रणाम। आपकी कृतियों पर एक विहंगम दृष्टि डाली है और पाया है कि आप एक महान कवि हैं। आपका पूरा जीवन काव्य है। आपकी साँस-साँस कविता है। मैं पढ़ कर भाव-विभोर हो गया, आप्यायित भी।

संप्रति ‘नवें दशक की कविता का अभिव्यंजना-शिल्प’ आलेख में आपकी कविताओं पर डेढ़ पृष्ठ लिखा है।

आपकी कविता पर प्रपत्र-वाचन हो या स्वतंत्र-लेख-लेखन हो - मुझे प्रसन्नता होगी और मेरे मन के अनुकूल होगा।

वैसे ख्याति-लब्ध आलोचकों और विद्वानों ने आप पर जम कर लिखा है और ईमानदारी से आपका मूल्यांकन किया है। आपकी काफ़ी चर्चाएँ हुई हैं।

[post_ads]

चित्रकूट के राष्ट्रीय रामायण मेले के अठारहवें अधिवेशन में भाग लेना चाहें, तो स्वीकृति दें। आपको द्वितीय वर्ग का मार्ग-व्यय तथा आतिथ्य भाव मिलेगा। वहाँ नहीं गए हों तो साथ में मेरी पूज्या भाभी जी को भी लाएँ। पर्यटन तीर्थाटन का सुख लें। मैं संयोजक हूँ। आपकी आज्ञा पाते ही निमंत्रण भिजवाऊंगा। भाभी जी को आमंत्रित करता हूँ। वहीं, ‘सीताराम’ के दर्शन हो जाएंगे। पता नहीं कभी आप लोगों से मिल पाऊँ या नहीं।

भवदीय,

मृत्युंजय

. दि. 11 जनवरी 1991 / धनबाद

आदरणीय भाई,

सादर प्रणाम। कृपा-पत्र के लिए आभारी हूँ। आपका सहज स्नेह पाकर कितनी प्रसन्नता होती है - कह नहीं पाता।

सुखद आश्चर्य है कि आप जितने महान कवि हैं, उतने ही बड़े गद्यकार भी।


प्रेमचंद वाली पुस्तक अपनी लघुता में भी कितनी विराट है - देखा जा सकता है। विशाल विषय को पचा कर ही ऐसी कालजयी कृति लिखी जा सकती है। ‘जीने के लिए’ मुझे उत्तम कोटि की काव्य-कृति लगी। एक-एक कविता जानदार है। संवेदना की सघनता एवं संश्लिष्टता भी है।

भवदीय,

मृत्युंजय

. दि. 4-11-1991 / धनबाद

आदरणीय भाई,

सादर प्रणाम।

आप पर अपने विश्वविद्यालय से पी-एच.डी. कराने का मन है। प्रयत्नशील हूँ। सफलता मिल जाए, तभी धन्यवाद कहें। हाँ, तब गुरु-शिष्य का कुछ दिनों आतिथ्य स्वीकारना होगा और हर संभव सहयोग देना होगा।

पी-एच.डी. की परीक्षकता विनिमय की वस्तु है। ऐसे कम होंगे जो शुद्ध मानवता की दृष्टि से किसी को उपकृत करना चाहें। अपनी ओर से मेरा प्रयत्न रहेगा।

कभी ग्वालियर बुलाइए तो आपकी कृतियों पर लंबा भाषण दूँ, लंबा आलेख लिखूँ। अवसर आने पर उत्साह जगता है। ऐसे लिखने का इतना दबाव रहता है कि पढ़ना भी कम होता जा रहा है। आपने अपनी कृतियों का पूरा सेट देकर बड़ा अच्छा काम किया है। आप पर काम हो, इसलिए वही सेट लेकर भेजा है शिष्य को। इस बार आपको याद कर ही रहा था कि आपने कृपा कर दी। आपका सहज-स्नेह ही मेरा संबल है। आशा है, सानंद हैं।

भवदीय,

म.उ.

. दि. 13-1-1993 / धनबाद

आदरणीय भाई,

सादर प्रणाम। आपका कृपा-पत्र पाकर अतीव प्रसन्नता हुई। अब मेरा विश्वविद्यालय हज़ारीबाग हो गया है, जो फ़रवरी से काम करेगा।

आलोचनात्मक लेख, कहानियाँ, प्रोजेक्ट आदि का कार्य करता रहता हूँ। विश्राम कभी नहीं है।

मेरे विभागाध्यक्ष ने आपका नाम प्रस्तावित (शोधार्थ) करने पर टाल दिया, दो-चार अन्य नाम सुझा दिए। मैं विवश हो गया। यहाँ तो विनिमय होता है भगवन्।


जब आप विनिमय की क्षमता रखते थे, तब मौन रहे। अब तो विद्वता एवं मानवता का पूजक ही मेरे जैसा पाठक / शिष्य ही आपकी ओर उन्मुख होगा।

आपके नए कविता-संग्रह का स्वागत है। आप चाहें, तो आपकी काव्य-यात्रा पर मैं ही एक स्वतंत्र पुस्तक लिखूँ।

आशा है, आप सानंद हैं। परमात्मा से प्रार्थना है कि नववर्ष आपकी अनन्त खुशियों का कारण बने। सादर -

भवदीय,

मृत्युंजय उपाध्याय

. दि. 14-9-1998 / ध.

आदरणीय भाई,

आपका 2/9 का कृपा-पत्र मिला। आभारी।

मैं रुचिपूर्वक क्या लिखूंगा? रचनाएँ इतनी प्राणवन्त होती हैं, संवेदना की सघनता ऐसी होती है कि मुझसे लिखा लेती हैं। मैं मंत्रमुग्ध-सा पीछे-पीछे भागता जाता हूँ। दिल खोल कर विस्तार से जाने का अवसर नहीं मिलता। पत्रिकाओं के जगह की किल्लत के कारण। कभी लंबा लेख लिखूंगा अपनी काव्य-धारणाओं, प्रतिपत्तियों को आपके साथ मिलाते हुए। आपकी कविता में भावन-अवगाहन करते हुए। आपमें सृजन के लिए विशेष उत्साह है। जीवट है। साँस-साँस में कविता है। साहित्य है। यह बहुत बड़ी बात है। अधिकांश बुज़ुर्ग विद्वान महंथी, चर्चित-चर्वण, अतीत पद को भुनाने आदि में ही लगे रहते हैं। नया कुछ नहीं करते।

प्रभु आपको हज़ार वर्ष की आयु दे। रहें स्वस्थ-सानंद, सृजनरत।

सादर,

भवदीय,

मृ. उपा.

.

यशस्वी उपन्यसकार यशपाल

. ‘विप्लव’, 21, शिवाजी मार्ग

लखनऊ

दि. 29-11-55

प्रिय महेन्द्र भटनागर जी,

आपका 26-11-55 का पत्र मिला। धन्यवाद। अपनी समझ और याद के अनुसार उत्तर दे रहा हूँ।


1. उपन्यासों के रचना-काल : दादा कामरेड (1941), देशद्रोही (1943), दिव्या (1945), पार्टी कामरेड (1946), पक्का कदम (1949 / अनुवाद या एडेप्टेशन), मनुष्य के रूप (1949)।


2. ‘दिव्या’ के पहले संस्करण में जिन भूलों की ओर भगवतशरण जी उपाध्याय ने संकेत किया था, वे निकाल दी गई थीं। भगवतशरण जी का नाम पहले संस्करण की भूमिका में भूल से रह गया था। उनसे मैंने पहले संस्करण में भी सहायता ली थी।


3. ‘दिव्या’ का संदेश यही समझा जा सकता है कि अपने अतीत के सामाजिक अनुभवों के विश्लेषण के आधार पर हम जीवन के अन्तर्विरोधों को दूर करने का यत्न करें। हमारे अतीत में हमने अपने विश्वासों और संस्कारों को किस प्रकार बदला है, श्रेणी-संघर्ष किस प्रकार अदमनीय रूप से समाज की व्यवस्था में परिवर्तन करती आई है। किस प्रकार तर्क विश्वास पर विजय प्राप्त करता रहा है। नारी दमन में रह कर भी किस प्रकार अपनी भावनाओें को बनाये रही है।

[post_ads_2]

4. दास-प्रथा आज प्राचीन रूप में नहीं है, परन्तु दास-प्रथा का मूल प्रयोजन एक श्रेणी द्वारा दूसरी श्रेणी का शोषण तो आज भी है। एक समय दास की शारीरिक शक्ति का शोषण स्पष्ट था; आज आर्थिक व्यवस्था के पर्दे में प्रच्छन्न है। प्राचीन काल के शोषण को यदि हम नैतिक नहीं मानते तो आज के शोषण को कैसे मान लें?


5. ‘दिव्या’ को सशक्त इस रूप में माना जा सकता है कि वह आद्योपान्त समस्यापूर्ण और फिर भी रोचक। वह आधुनिक समस्याओं का अतीत के रंग में विश्लेषण है।


6. मेरे उपन्यासों पर आलोचनात्मक लेख तो कई छपे हैं; पुस्तक ठीक मालूम नहीं। ‘दिव्या’ पर शांन्तिप्रिय द्विवेदी की नयी पुस्तक ‘साकल्य’ में एक पृथक निबंध है।


आशा है, आपके पत्र की प्रति आपके पास होगी। यों भी आपका पत्र संदर्भ के लिए भेज रहा हूँ। पत्र की प्राप्ति सूचना दीजियेगा। अपना विचार भी लिखिएगा।

आपका

यशपाल

.

महाराजकुमार डॉ. रघुवीर सिंह (यशस्वी निबंधकार)

. सीतामऊ-मालवा

अगस्त 25, 1971

प्रिय डा. महेंद्र भटनागर,

सधन्यवाद वन्दे। आपका 23/8 का पत्र मुझे यहाँ आज प्रातः मिला। सारे समाचार ज्ञात हुए।

‘मानस चतुशती समारोह समिति’ के संदर्भ में आपने मेरे संबंध में जो भी सोचा है, उसके लिए मैं आपका कृतज्ञ हूँ। परन्तु मेरी तीन कठिनाइयाँ हैं। सर्वप्रथम, ‘रामचरितमानस’ का मेरा ऐसा अध्ययन नहीं है कि मैं उस पर साधिकार कुछ कह सकूँ। दूसरे, मेरे लिए यह संभव नहीं कि मैं यदा-कदा मंदसौर आ सकूँ। तीसरे, प्रत्येक पद की मान-प्रतिष्ठा के अनुरूप कुछ उत्तरदायित्व तथा कर्तव्य भी होते हैं। मैं कहाँ तक उन सबको ठीक तरह पूरा कर पाऊंगा यह नहीं जानता। इसी कारण इस बारे में कई माह पहले भी पूछे जाने पर मैंने अपनी असमर्थता ही सूचित की थी। इधर परिस्थितियों में कोई परिवर्तन नहीं हो पाया है कि अपने पूर्व निश्चय में फेर-बदल करूँ अतः कृपया मुझे क्षमा करें। यों भी मेरा अपना काम ही इतना अधिक है उसे समय पर निपटाना कठिन हो जाता है। अतः नये कर्तव्य-भार के लिए तत्पर

नहीं हूँ।

मेरे लेखों के कुछ संग्रह कोई बीस वर्ष पूर्व छपे थे। वे अप्राप्य हो गये। कोई प्रकाशक ऐसे प्रकाशन करने को तैयार हो तो अवश्य ही सोचूंगा।

केवल बीस मील की दूरी पर कोई डेढ़ वर्ष बिता कर भी आपने इधर कृपा

नहीं की, तो आपसे मैं क्या कहूँ। प्रति दिन हर डेढ़-दो घण्टे में मंदसौर से सीतामऊ के लिए मोटर-बस रवाना होती है, यह तो आपको मालूम ही है। सो अब अधिक बताने को क्या रह गया है? अगर आपको यहाँ तक के लिए साथी चाहिए तो मंदसौर के शासकीय महाविद्यालय में आपको वे अनेकों अनायास ही मिल जावेंगे अथवा आप चाहेंगे तो सीतामऊ मोटर बस-स्टैण्ड पर आपकी अगवानी की व्यवस्था कर दूंगा।


किमधिकम्बहुना।

शेष कुशल। आशा है, सानंद होंगे। अधिक आगे फिर कभी।

सधन्यवाद,

भवदीय,

रघुवीरसिंह

. सीतामऊ

दि. 30-8-1971

प्रिय डा. महेंद्र भटनागर,

सधन्यवाद वन्दे। आपका अगस्त 27, 1971 ई. का पत्र यथासमय मिला। सारे समाचार ज्ञात हुए।

मुझे किसी प्रकार का असहयोग नहीं करना है और न मैं आप सब से छँट कर अलग रहना चाहता हूँ। मंदसौर-क्षेत्र में साहित्य-कार्य में प्रगति होवे इसके लिए मैं सदैव समुत्सुक रहा हूँ और मेरा सहयोग सदैव सुलभ रहेगा इस बारे में आप सर्वथा आश्वस्त रहें। परन्तु ऐसी शासन से संबंधित समितियों में काम कम होता है और ऊपरी दिखावा अथवा प्रदर्शनात्मक आयोजनों में ही सारा समय तथा द्रव्य व्यय हो जाता है, और इस प्रकार के कार्यों में सहज प्रसिद्धि की प्राप्ति के हेतु जो अशोभनीय आपा-धापी होती है उससे मैं पूरी तरह परिचित हूँ। अतः उस संभावित प्रतियोगिता से दूर रहना ही मुझे उचित जान पड़ा था। इसी कारण मैंने अपनी असमर्थता आपको सूचित की थी। किंतु जब आप सबका इतना अधिक आग्रह है, तो उसे मैं अपने लिए आदेश के रूप में मान्य कर अपनी स्वीकृति देता हूँ। मैंने अपनी वस्तुस्थिति आपको स्पष्ट कर दी थी अतः मेरा विश्वास है कि उस संबंध में आपको आगे कभी निराशा नहीं होगी। यदि ‘मानस चतुश्शती’ के आयोजनों से लाभ उठा कर मंदसौर-क्षेत्र में साहित्यिक चेतना उत्पन्न हो सके तो मुझे अत्यधिक प्रसन्नता होगी। स्वाधीन भारत में अब भी उसके लिए उपयुक्त वातावरण और सही दृष्टिकोण का अभाव ही है। साहित्य-साधना का अभाव देश तथा जन-साधारण के भावी विकास में घातक प्रमाणित हो सकता है। सो उसके लिए सदैव व्यग्र रहता हूँ।

आशा है, सानंद होंगे। कालिदास द्वारा प्रशंसित सुन्दर नयनों के आकर्षण से यत्किंचित काल के लिए भी स्वयं को मुक्त कर यदि आप इस देहात में आने का कष्ट करेंगे तो आपसे सविस्तार चर्चाएँ हो सकेंगी। सो आपकी प्रतीक्षा में रहूंगा।

सधन्यवाद,

भवदीय,

रघुवीरसिंह

. सीतामऊ

दि. नवम्बर 21, ’73

प्रिय डा. महेंद्र भटनागर,

सधन्यवाद वन्दे। आपका 20/1 का पत्र मुझे यहाँ आज प्रातःकाल मिला। मैं तत्काल ही उत्तर दे रहा हूँ। आपके आमंत्रण के लिए मैं कृतज्ञ हूँ। मैं अवश्य ही उसे सधन्यवाद स्वीकार करता हूँ।

मुझे बरसों से यह आशा थी कि यहाँ आपका स्वागत करूंगा और यहीं आपसे प्रथम भेंट हो सकेगी, परन्तु वह संभव नहीं हुआ। अंततः कहीं-न-कहीं आपसे भेंट हो ही जावेगी।

‘प्रेमचंद का वह चौंकाने वाला पत्र’ मैं उस दिन अपने साथ लेता आऊंगा कि तब वहाँ उसका फोटो-चित्र लिया जा सके। जीवन की वास्तविकता चौंका देने वाली ही होती है।

अधिक आगे मंदसौर में भेंट होने पर ही।

भवदीय,

रघुवीरसिंह

.

रजनी नायर (सं. ‘प्रदीप’)

. प्रचार विभाग, यू.एस. क्लब, शिमला

दि. 17-1-49

प्रिय महोदय,

आपकी कविता ‘नया विश्वास’ फरवरी के अंक में प्रकाशित हो रही है। इस देरी के लिए क्षमा करें। भविष्य में कभी इतना विलम्ब न होने पायगा। कविता छपने पर पारिश्रमिक आपकी सेवा में भेज दिया जायगा।

‘सन्ध्या’ का दूसरा अंक भी मिला। पेपर आपने पहले जैसा नहीं लगाया मजबूरियाँ मैं समझती हूँ। सामग्री तो पहले से भी अच्छी है। प्रत्येक रचना ‘बोलती-सी’ है।

आपसे एक प्रार्थना है कि कृपा करके आप भी हमारे प्रकाशनों (प्रचार- विभाग) में भाग लें। पूर्वी पंजाब सरकार शीघ्र ही मद्य-निषेध से संबंधित एक कहानी-संग्रह प्रकाशित करवा रही है। आप यदि शराब-बंदी पर कहानी भेज सकें तो शीघ्र भेज दें। इसी विषय पर यदि गीत भेज सकें तो भेज दें। गीतों की भी आवश्यकता है। कुछ गीत रिकार्ड भी करवाए जाएंगे। ‘प्रदीप’ में भी प्रकाशित किए जाएंगे। आप अपने मित्रों एवं सहायकों से भी कहें कि वे अपनी रचनाएँ भेज दें।

कहानी अच्छी होने पर फ़िल्म भी बन सकती है।

आशा है, आप स्वस्थ और प्रसन्न हैं।

सधन्यवाद -

आपकी : रजनी नायर

कहानी ‘लड़खड़ाते क़दम’, विलम्ब से लिखी थी; जो ‘लड़खड़ाते क़दम’ नामक कथा-संग्रह में समाविष्ट है।

शराब-बंदी पर भी, विलम्ब से, दो कविताएँ लिखीं, उन दिनों! ये रचनाएँ ‘बदलता युग’ में संगृहीत हैं-‘शराबी’ और ‘शराबी से’।

.

मित्र डा. रांगेय राघव

. 51 सिविल लाइन्स, आगरा

दि. 23-5-51

प्रिय भाई,

कृपा पत्र। धन्यवाद। अस्वस्थ था। अब धीरे-धीरे पनप रहा हूँ। डाक्टर की राय है कि इस वर्ष दिसम्बर तक बिल्कुल पहले जैसा हो जाऊंगा। आप पढ़ा रहे हैं; सुन कर प्रसन्नता हुई।

रामविलास ने मेरे साथ ज़्यादती नहीं की, अपने त्रात्स्कीवाद में वे बह गये थे।

भूलना नहीं, आज प्रत्यालोचन की आवश्यकता है। अगर मैं काम करने योग्य होता तो तभी डाक्टर को जवाब दे देता। क्या करता बीमार पड़ गया। उसी तेज़़ी से लिखने योग्य शारीरिक शक्ति अभी कहाँ पा सका हूँ।

अपने साहित्य के विषय में लिखें। मैं अब कुछ-कुछ लिखना शुरू कर रहा हूँ।

शेष फिर।

सस्नेह,

रांगेय राघव

. रामनगर कॉलोनी, आगरा

दि. 7-5-52

प्रिय भाई,

मेरी बधाई स्वीकार करो!

आने का यत्न करूंगा। पर, इस पर विश्वास मत करना।

सानंद होंगे।

सस्नेह,

रांगेय राघव

(12 मई 1952 को सम्पन्न मेरे विवाह के उपलक्ष्य में लिखित उपर्युक्त बधाई-पत्र!)

. वैर-बयाना-भरतपुर

दि. 20-1-57

प्रिय भाई,

कृपा कार्ड, धन्यवाद।

कविताएँ पसंद आईं। आभारी हूँ। छपने पर लिखूंगा।

‘नई चेतना’ मिली।

‘कविताएँ सुन्दर हैं और वे संकीर्ण मनोवृत्ति से ऊपर हैं; जैसा कि आपका लेखन प्रारम्भ से ही रहा है। आपने सदैव नये चिन्तन को विकास की प्रोज्ज्वल धारा के रूप में लिया है। ‘नई चेतना’ में यह सर्वत्र है। मैं इस नयी कृति पर आपको बधाई देता हूँ।

आधुनिक कविता वाली पुस्तक का एक भाग प्रेस में गया। तीन पूरे होते ही चले जायेंगे। मैं सकुशल हूँ। आप भी सकुशल होंगे। मेरे योग्य सेवाएँ लिखें। -

सस्नेह,

रांगेय राघव

. वैर-बयाना-भरतपुर

दि. 1-6-57

प्रिय भाई,

आपके पत्र मिले। धन्यवाद। मैं बाहर था। अतः उत्तर न दे सका। क्षमा करेंगे।

मास्को के संकलन की मुझे कुछ ख़बर नहीं। पता नहीं, Holiday कौन-सी कविता है।

दावत पक्की है।

मेरा जीवन-परिचय

जन्म 1923 ई., शिक्षा एम.ए., पी-एच.डी., हॉबी पेंटिंग लेखन इत्यादि आप जानते ही हैं। संग्रह छपे हैं - ‘पिघलते पत्थर’, ‘रूप छाया’, ‘मेधावी’, ‘राह के दीपक’, ‘पांचाली’। आप स्वयं चुन लें - पत्रों में भी तो हैं।

नागार्जुन जी मुझे नहीं मिले।

चेकोस्लोवेकिया के श्री ओडोलेन स्मेकल से मेरा स्वयं परिचय है। आप चाहें तो और चुन कर कविताएँ भेज दें।

अपनी सूचना दें - प्रगति की भी। पत्र-व्यवहार रखा करें - यह स्नेह का बंधन अच्छा होता है। सानंद होंगे।

सस्नेह, रांगेय राघव

. बापूनगर, जयपुर

दि. 23-1-62

प्रिय भाई,

आपका कृपा पत्र मिला। रिव्यू पढ़ूंगा।

आपकी कविताओं की मैंने उपेक्षा नहीं की है। दूसरे भाग में आपका काफ़ी उल्लेख है, आप देखेंगे।

‘राजपाल’ से अवश्य बात करूंगा। किन्तु अब मैं फ़रवरी में नहीं जा पाऊंगा। इधर तीन माह से निरन्तर अस्वस्थ हूँ। डाक्टर की राय है कि मैं अभी नहीं निकल सकूंगा। ठीक होने पर ही जाऊंगा।

एन्थोलोजी के लिए मैं अभी कुछ नहीं कर सकता। किसी से पूछूंगा।

हमारा आपका बहुत पुराना संबंध है और वह ऐसा ही बना रहेगा।

ए.आई.आर. जयपुर पर मेरे परिचित हैं, पर मित्र नहीं। आप अपनी बात लिखें।

योग्य सेवा से सूचित करते रहें।

सस्नेह,

रांगेय राघव

. बम्बई

दि. 29-5-62

प्रिय भाई,

आपका स्नेह भरा पत्र मिला। टाटा मेमोरियल अस्पताल में इलाज हो रहा है। कैंसर नहीं है। मुझे होजकिन्स डिज़ीज़ है। ग्लैंड्स में रोग होता है। ईश्वर ने चाहा तो आपकी कामना सफल होगी। पहले से ठीक होता जा रहा हूँ। सानंद होंगे।

सस्नेह

रांगेय राघव

4/5 का पत्र मिला। वही कविताएँ छाप लें।

.

मेरे घनिष्ठ कवि राजेंद्रप्रसाद सिंह

श्री. राजेंद्रप्रसाद सिंह समकालीन रचनाकार होने के नाते मेरे समक्ष प्रारम्भ से रहे। हम दोनों साथ-साथ अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे। व्यक्तिगत सम्पर्क-संबंध का सूत्र सम्भवतः श्री. राजेंद्रप्रसाद सिंह-द्वारा सम्पादित एक विशिष्ट कविता-संकलन ‘प्रक्रिया’ है। ‘प्रक्रिया’ का प्रकाशन सन् 1972 में हुआ। इसमें ग्यारह कवि संकलित हैं-गंगाप्रसाद विमल, अमृता भारती, रवीन्द्र भ्रमर, राजेन्द्र प्रसाद सिंह, रामनरेश पाठक, शिव प्रसाद सिंह, रमा सिंह, महेन्द्र भटनागर, रामदरश मिश्र और वीरेन्द्र कुमार जैन। ‘प्रक्रिया’ की चर्चा तो यत्र-तत्र हुई; किन्तु हिन्दी-साहित्य में उसकी गूँज अपेक्षानुकूल नहीं हुई। साहित्येतिहासकार भी इसका उल्लेख नहीं करते। यही बात सन् 1962 में प्रकाशित ‘प्रगति’ नामक एक अन्य विशिष्ट संकलन के बारे में देखने में आयी; जो श्री. राहुल सांकृत्यायन और प्रो. प्रकाशचंद्र गुप्त-द्वारा सम्पादित है। इसमें जो पाँच कवि सम्मिलित हैं; वे हैं-केदारनाथ अग्रवाल, शिवमंगलसिंह ‘सुमन’, गिरिजाकुमार माथुर, रांगेय राघव और महेंद्र भटनागर। जब-तक अपना कोई गुट न हो; लोग उपेक्षा करते हैं। नामोल्लेख तक करना उन्हें गवारा नहीं। राजेंद्रप्रसाद सिंह एक प्रतिभाशाली रचनाकार हैं; और जिस तरह हर प्रतिभाशाली रचनाकार को उपेक्षा का शिकार होना पड़ता है; वह वेदना उन्होंने भी झेली है। यह तथ्य सर्वकालिक-सर्वदेशीय है। शिकायत जैसी कोई बात नहीं। राजेंद्रप्रसाद सिंह ने एक बार मुझे जो लिखा; उसे मैं अच्छी तरह महसूस करता हूँ; क्योंकि बहुत-कुछ ऐसा ही मेरे साथ भी जुडा़ हुआ है :

. दि. 10 नवम्बर 90

‘‘आपको पता है कि नामी-गिरामी आलोचकों ने कभी मुझे घास नहीं डाली। वे देखते-जानते-समझते रहे कि दशक-दर-दशक मैं उनके द्वारा मूल्यांकित बृहत्रयी के साथ ‘60 तक पत्रिकाओं में छपा और निराला, पन्त, महादेवी, बच्चन, दिनकर, अज्ञेय आदि की सम्मतियों और उल्लेखित शब्दावलियों से सम्मानित भी रहा। आलोचक अवगत हैं कि अपनी पीढ़ी के सभी मूल्यांकित कवि-लेखकों के बीच और शमशेर, केदार, नागार्जुन, त्रिलोचन, मुक्तिबोध, महेन्द्र भटनागर, राजीव सक्सेना, शील, शैलेन्द्र और प्रगतिशील युग-कवियों के साथ मैं भी पत्र-पत्रिकाओं में छपता, विचार-गोष्ठियों में मौज़ूद, मंचों एवं अधिवेशनों में शामिल और सक्रिय और कुछ चर्चित, प्रशंसित भी रहा हूँ। फिर भी वे काव्यान्दोलनों और रचना-धाराओं के विवेचन में मेरी चर्चा से जान-बूझ कर कतराते रहे। मेरी नौ काव्य-पुस्तकें और चार नवगीत कृतियों से एक पंक्ति भी वे उद्धरणीय नहीं मानते।

नवगीत के संबंध में कौन नहीं जानता कि ‘गीतांगिनी’ ’58 में मैंने नामकरण और प्रस्तावना की। उसकी स्वीकृति के संघर्ष का छापे के अक्षरों में, संगठित क्रिया-कलापों में संचालन किया और स्वीकृति के बाद श्रेय का अपहरण करने आ गए डा. शम्भूनाथ सिंह; जिनकी गवाही भी कथित गवाह जगदीश गुप्त ने नहीं दी कि प्रयाग की किसी परिमल-गोष्ठी में मुझसे पहले उन्होंने नवगीत का नाम उचारा था। फिर भी नवगीत अर्द्धशती में उन्होंने मेरे विरुद्ध बहुत बुरे ढंग से ग़लत बातें लिखीं। ‘धर्मयुग’ में 81-82 में डा. विश्वनाथ प्रसाद से मेरे विरुद्ध भूमिका बना कर भारती समेत उन्होंने तैयारी की और ‘पराग प्रकाशन’ से मेरे बग़ैर नवगीत दशक 2, 3 और अर्द्धशती छपवाली।

मैं न मूल्यांकित हुआ, न उल्लखित, मतभेदों में भी निश्चित निष्कर्ष का भागी न हुआ। इतिहास पर इतिहास तो छपते रहे आधुनिक समकालीन लेखन के; मेरे संदर्भ को त्यक्त, झुठलाया, भ्रमग्रस्त और अधूरा या प्रमादजन्य रखा गया। मैं क्या करता? वंचित उस सीमा तक रहा हूँ कि अब-तक टी.वी. पर आने का निमंत्रण नहीं, पुरस्कार, विदेश-यात्रा या प्रतिनिधित्व का अवसर नहीं, ’80 के बाद की बहुचर्चित, उच्चकोटीय पत्रिकाओं में प्रकाशन नहीं, पाठ्य-क्रम में भी स्थान नहीं, नये ‘हूज़ हू’ में नाम नहीं। तब क्या करना है?

कृपया आप यह न समझे कि मैं हताशा में हूँ।

‘दूरदर्शन’ पर मुझे भी आज-तक आमंत्रित नहीं किया गया। दूरदर्शन-केन्द्र दिल्ली और भोपाल से सुगम-संगीत कार्यक्रमान्तर्गत गीत अवश्य प्रसारित हुए; पर गायक (श्री. प्रकाश पारनेरकर) / गायिका श्रीमती कीर्ति सूद) की मर्ज़ी से। ‘साहित्य एकेडेमी’ द्वारा प्रकाशित ‘हूज़ हू’ के प्रथम संस्करण में तो मैं हूँ; फिर नहीं। श्री. विष्णु प्रभाकर ने बताया-

. 818 कुण्डेवालान

अजमेरी गेट, दिल्ली-6

दि. 26-2-84

प्रिय भाई,

भारतीय साहित्यकार परिचय में आपका नाम था तो आपको फार्म अवश्य भेजा


गया होगा। कृपया आप मंत्री, साहित्य अकादमी, रवीन्द्र भवन, फिरोजशाह रोड, नई दल्ली को सीधे लिख कर फार्म मँगवा लें। उसका परिशिष्ट छप रहा है।

स्नेही,

विष्णु प्रभाकर

पता नहीं, फिर क्या हुआ। फार्म शायद ही मँगवाया हो। वस्तुतः, रचनाकार के लिए यह सब महत्त्वहीन है।

इसी प्रकार, श्री. राजीव सक्सेना ने उन्हें प्रगतिवादी कवियों की एन्थोलोजी - 2 में शामिल नहीं किया (अभी अप्रकाशित)। शामिल, सम्भवतः मैं भी नहीं हूँ। यद्यपि श्री. राजीव सक्सेना ने मुझे लिखा था-

. जनकपुरी, नई दिल्ली

14 दिसम्बर ’86

प्रिय भाई महेन्द्र जी,

पत्र मिला। कविताएँ भी। शायद इस्तेमाल हो जायेंगी। परिचय मैंने बना लिया है।

सानंद होंगे।

सस्नेह,

राजीव सक्सेना

राजीव सक्सेना जी से मेरे संबंध सदा प्रेमपूर्ण-सम्मानपूर्ण रहे। अनेक बार मिलना भी हुआ। जब वे 'New ¡ve+ के सम्पादकीय विभाग में कार्यरत थे, तब उनका एक आलेख प्रमुखता से छपा था -

- Poet Mahendra Bhatnagar & Dhumil+

       [New ¡ve+ èk~ April 22, 1973,

मुझे लगता है, कुछ व्यक्तिगत कारणों से - किसी नाराज़गी से अक़्सर ऐसा हो जाता है। शायद, उनकी अपेक्षा के अनुकूल कोई कार्य न किया हो। मेरे प्रति श्री. राजेन्द्रप्रसाद सिंह जी की रुचि बराबर रही। उन्होंने मुझे पर्याप्त प्रोत्साहित किया। मेरी कृतियों पर स्तरीय आलेख दिये; जो डा. विनयमोहन शर्मा-द्वारा सम्पादित ‘महेन्द्र भटनागर कर रचना-संसार’ और डा. हरिचरण शर्मा-द्वारा सम्पादित ‘सामाजिक चेतना के शिल्पी : कवि महेन्द्र भटनागर’ में समाविष्ट हैं। मैं ही नहीं, अपनी सीमाओं में, अपनी पसंद के समकालीन रचनाकारों के लिए उनसे जो बन पड़ा; उसमें उन्होंने कभी कोई क़ोताही नहीं की। वे दूसरों को प्रतिष्ठित कराने


में संलग्न रहे; स्वयं के प्रति लापरवाह।

निःसंदेह, प्रगतिशील हिन्दी-साहित्य के विकास में उनकी भूमिका महत्त्वपूर्ण है। प्रगतिशील साहित्यान्दोलनों में उनकी सक्रिय भागीदारी रही। ‘आइना’ मासिक पत्रिका एवं अन्य सम्पादित कृतियों के माध्यम से उन्होंने बिहार में ही नहीं; पूरे देश में जनान्दोलनों का मज़बूत आधार निर्मित किया। उनका योगदान साहित्येतिहासकारों द्वारा उपेक्षित नहीं रह सकता।

उनके निम्नांकित उद्गार पारस्परिक संबंधों-संदर्भों के महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ ही नहीं; स्वयं उनके अनेक मानवीय गुणों को प्रकाशित करते हैं :

. आधुनिका, खबड़ा रोड

मुज़फ़्फ़रपुर-1

दि. 15 जुलाई 1998

आदरणीय भाई,

स्नेहाभिवादन। सुदीर्घ कालोत्तर 8/5 का प्रेषित पत्र जो मिला; तो लगा कि नहीं, सब-कुछ अकारथ हो गया; ऐसा नहीं है। और.भी.बहुत कुछ लगा। हमारा संबंध, बहुमुखी असम्बद्धता के विपरीत गज़ब का टिकाऊ नमूना है कि पाँच दशकों की उत्तरशती में बग़ैर आपसी मुलाक़ात बात व समाजी-घरेलू सलूक़ात के; या फिर बावज़ूद किसी जमात, संगठन, संस्था, दल वग़ैरह की सह-सदस्यता के सिर्फ़ और सिर्फ़ मुशारका पसन्दीदा अदब व शाइरी व फ़नकारी में अपनी-अपनी भूमिका के प्रति अब-तक जारी और जीवन्त हैं।

आप 72 के हुए; शुभाशिष दें, 12 जुलाई को मैं 68 पूरा करूंगा। तो क्या हुआ? जो अंकों को उलटकर भारत में 27 साल के हों या विदेश में 86 के; निष्क्रिय और निरर्थक अथवा सक्रिय और सार्थक होने की कोई गारण्टी उन्हें है? ‘नान्याः पंथा विद्यते अयना / न कर्म लिप्यते नरे’। एक समाचार छपा था-Young man o`f 76 marries young woman o`f 67+ - Newyork.

सप्रेम

राजेन्द्र प्रसाद सिंह

इसी वर्ष, उन्होंने मुझे सुझाव दिया कि मैं ‘उत्तरशती की प्रगतिशील-जनवादी हिन्दी कविता’ पर, ग्वालियर में, एक सेमीनार आयोजित करूँं; किन्तु अब इस सबके लिए मुझमें इतनी ऊर्जा शेष कहाँ?

इधर, ‘नई धारा’ (पटना) में जो एक तुलनात्मक आलेख प्रकाशित हुआ; उसे पढ़ कर उन्होंने मुझे बधाई दी :

. मुज़फ़्फ़रपुर

दि. 18-11-98

आदरणीय,

‘नई धारा’ के नये अंक में श्री. ज्ञान प्रकाश महापात्र का लेख छपा है-


‘मानव-मुक्ति के सिपाही : सच्चिदानंद राउतराय और महेन्द्रभटनागर’।


यह किसी शोध-ग्रंथ का अंश है क्या? प्रविधि वैसी ही प्रतीत हुई। बधाई लें।

सप्रेम,

राजेन्द्र प्रसाद सिंह

निःसंदेह, श्री. राजेन्द्र प्रसाद सिंह मेरे प्रिय मित्रों में से हैं। उनका जन्म 12 जुलाई 1930 का है; जब कि मेरा 26 जून 1926 का। लगभग चार वर्ष का अन्तर है। दूरियाँ हैं; मिल नहीं सके। उनके लेखन में; उनके साहित्यिक विकास में मेरी रुचि सदा रही। माना कि एक जागरूक विचारक व आलोचक होने के नाते एवं साहित्यिक पत्रकारिता से जुड़े होने के कारण वे मेरे काव्य-कर्तृत्व पर अपनी महत्त्वपूर्ण प्रतिक्रिया आलेखबद्ध कर सके; जब कि मैं अपने आलेखों में यदा-कदा उनका मात्र नामोल्लेख एवं उनके काव्य-कर्तृत्व पर वैशिष्ट्य-बोधक कुछ पंक्तियाँ ही दर्ज़ कर सका। संबंधों में आदन-प्रदान हो ही; ज़रूरी नहीं। इस प्रकार की भावना हमारे-उनके बीच कभी रही नहीं। लेकिन अब ज़रूरी है कि उनकी साहित्यिक उपलब्धियों का समुचित मूल्यांकन हो।

.

डा. रामअवध द्विवेदी

. प्लॉट नं. 144

न्यू भेलूपुर कॉलोनी

वाराणसी-1

दि. 19-4-63

प्रिय डॉ. महेन्द्र भटनागर,

बहुत दिनों के बाद आपका पत्र पाकर प्रसन्न हुआ। इधर प्रायः दो वर्षों से देवरिया में हूँ। वहाँ प्रधानाचार्य का कार्य कर रहा हूँ। कुछ समय काशी में भी बीतता है; क्योंकि देवरिया काशी के काफ़ी निकट है।

‘नागरी प्रचारिणी सभा’ में ऐसी उथल-पुथल हुई कि हम लोगों ने उसमें रहना ठीक नहीं समझा। अतः मेरे अतिरिक्त हज़ारी प्रसाद जी, पं. विश्वनाथप्रसाद मिश्र, डा. राजबली पाण्डेय, ‘सुधांशु’ जी आदि ने भी ‘सभा’ से अपना संबंध तोड़ लिया है। अद्यतन काल वाले खंड का कागज़-पत्रों में तो मैं अब भी सम्पादक हूँ; किन्तु मैं उसके कार्य में कोई रुचि नहीं रखता। सच तो यह है कि वृहत् इतिहास का काम इस समय बंद है। इसी उथल-पुथल के कारण ‘हिन्दी रिव्यू’ का प्रकाशन भी बंद हो गया।

‘हिन्दी प्रचारक’ वालों ने आपकी पुस्तक अभी तक मेरे पास नहीं भेजी है। मिलने पर मैं पढ़ूंगा और अपनी राय भेजूंगा। आशा है, ग्वालियर में आप प्रसन्न होंगे।

मुझे बड़ी खुशी है कि अपनी कविताओं का अच्छा स्वागत हो रहा है। ‘हिन्दी रिव्यू’ का प्रकाशन यदि बंद न हुआ होता तो कुछ और अनुवाद छप गए होते।

उस पत्रिका के प्रकाशन में मित्रों से मुझे जो सहयोग प्राप्त हुआ उसे मैं कभी न भूलूंगा।

सप्रेम आपका,

रामअवध द्विवेदी

.

(क्रमशः अगले भाग में जारी...)

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: साहित्यकारों से आत्मीय संबंध (पत्रावली / संस्मरणिका) भाग - 9 // डॉ. महेन्द्र भटनागर
साहित्यकारों से आत्मीय संबंध (पत्रावली / संस्मरणिका) भाग - 9 // डॉ. महेन्द्र भटनागर
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj0OmghCKk15k3I0Chd3ek14tSQpZ4awUSAF-kyPPN-c3G_xP1seY1r3AuNec4aSEeA9NEA4YSAymkdLhyphenhyphenm2mJf5OoJvZtrqQgoRMgam04XvSS-GaTdH-GaQ0zn-7J0M5RlsRRG/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj0OmghCKk15k3I0Chd3ek14tSQpZ4awUSAF-kyPPN-c3G_xP1seY1r3AuNec4aSEeA9NEA4YSAymkdLhyphenhyphenm2mJf5OoJvZtrqQgoRMgam04XvSS-GaTdH-GaQ0zn-7J0M5RlsRRG/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2018/09/9.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2018/09/9.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content