कहानी संग्रह वे बहत्तर घंटे राजेश माहेश्वरी मित्रता कुसनेर और मोहनियां एक-दूसरे से लगे हुए जबलपुर के पास के दो गांव हैं। कुसनेर के अभयसिंह औ...
कहानी संग्रह
वे बहत्तर घंटे
राजेश माहेश्वरी
मित्रता
कुसनेर और मोहनियां एक-दूसरे से लगे हुए जबलपुर के पास के दो गांव हैं। कुसनेर के अभयसिंह और मोहनियां के मकसूद के बीच बचपन से ही घनिष्ठ मित्रता थी। वे बचपन से साथ-साथ खेले-कूदे और पले बढ़े थे। अभय सिंह की थोड़ी सी खेती थी जिससे उसके परिवार का गुजारा भली-भांति चल जाता था। मकसूद का जबलपुरिया साड़ियों का और सूत का थोक का व्यापार था। उसके पास खेती की काफी जमीन थी। खुदा का दिया हुआ सब कुछ था। वह एक संतुष्टि पूर्ण जीवन जी रहा था।
अभय सिंह की एक पुत्री थी। पुत्री जब छोटी थी तभी उसकी पत्नी का निधन हो गया था। उसने अपनी पुत्री को मां और पिता दोनों का स्नेह देकर पाला था। उसे अच्छी शिक्षा दी थी। वह एम. ए. कर चुकी थी। अब अभय सिंह को उसके विवाह की चिन्ता सताती रहती थी। अथक प्रयासों के बाद उसे एक ऐसा वर मिला जो उसकी पुत्री के सर्वथा अनुकूल था। अच्छा घर और अच्छा वर मिल जाने से अभय सिंह बहुत खुश था। लेकिन अभय सिंह के पास इतना पैसा नहीं था कि वह उसका विवाह भली-भांति कर सके। उसे चिन्ता उसके विवाह के लिये धन की व्यवस्था की थी। जब विवाह के लिये वह पर्याप्त धन नहीं जुटा सका तो उसने सोचा- मेरा क्या है मेरे पास जो कुछ है वह मेरी बेटी का ही तो है। ऐसा विचार कर उसने अपनी कुछ जमीन बेचने का निश्चय किया।
मकसूद का इकलौता पुत्र था सलीम। उसका विवाह हो चुका था। सलीम का एक छोटा चार साल का बच्चा भी था। पुत्री के विवाह के लिये जब अभय सिंह ने अपनी जमीन बेचने के लिये लोगों से चर्चा की तो बात सलीम तक और सलीम के माध्यम से मकसूद तक भी पहुँची। मकसूद को जब यह पता लगा कि अभय सिंह बेटी के विवाह के लिये अपनी जमीन बेच रहा है तो यह बात उसे अच्छी नहीं लगी। एक दिन वह अभय के घर गया। सलाम-दुआ के बाद उनमें बातचीत होने लगी।
सुना है बिटिया का विवाह तय हो गया है।
हाँ! मण्डला के पास का परिवार है। लड़के के पिता अच्छे और प्रतिष्ठित किसान हैं। लड़का पढ़ा लिखा है पिता के साथ खेती भी देखता है। एक इलैक्ट्रानिक्स की अच्छी दुकान भी मण्डला में है जिसे पिता-पुत्र मिलकर चलाते हैं। सुमन बिटिया के भाग्य खुल गये हैं। उस घर में जाएगी तो जीवन संवर जाएगा और मैं भी चैन से आंख मूंद सकूंगा।
शादी की तैयारियों के क्या हाल हैं?
वैसे तो मैंने सभी तैयारियां अपने हिसाब से कर रखी थीं। लेकिन उन लोगों की प्रतिष्ठा को ध्यान में रखकर कुछ और तैयारियों की आवश्यकता थी। मैंने सोचा कि मेरे बाद मेरा सभी कुछ सुमन का ही तो है। मेरे पास आठ एकड़ जमीन है अगर उसमें से चार एकड़ निकाल दूंगा तो इतनी रकम मिल जाएगी कि सभी काम आनन्द से हो जाएंगे। बाकी बचेगी चार एकड़ तो मेरे अकेले के गुजारे के लिये वह काफी है।
यह जमीन बेचकर तुम्हारे अनुमान से तुम्हें लगभग कितना रूपया मिल जाएगा।
एक से सवा लाख रूपये एकड़ के भाव से तो जाएगी ही। लगभग चार पांच लाख रूपया तो मिल ही जाएगा। इतने में सारी व्यवस्था हो जाएगी।
तुमने मुझे इतना गैर समझ लिया कि न तो तुमने मुझे यह बताया कि सुमन का विवाह तय हो गया है और न ही तुमने मुझे यह बताया कि तुम अपनी जमीन बेच रहे हो। क्या तुम पर और सुमन पर मेरा कोई अख्तियार नहीं है ? क्या वह मेरी भी बेटी नहीं है ?
ऐसी तो कोई बात नहीं है। मैंने सोचा कि जब तुम्हारे पास जाउंगा तो सब कुछ बता दूंगा पर अभी बोनी आदि का समय होने के कारण मैं उस तरफ नहीं निकल पाया। वरना तुम्हें बिना बताये तो आज तक मैंने कोई काम किया ही नहीं है ?
तब फिर जमीन बेचने का निश्चय तुमने मुझसे पूछे बिना कैसे कर लिया मेरे रहते तुम बेटी की शादी के लिये जमीन बेचो यह मुझे कैसे स्वीकार होगा। अब रही बात रूपयों की तो वे तुम्हें जब तुम चाहोगे तब मिल जाएंगे। जमीन बेचने का विचार मन से निकाल दो और बेटी की शादी की तैयारी करो। इतना कहकर मकसूद वहां से चला गया।
उनकी मित्रता ऐसी थी कि अभय कुछ न कह सका। वह तैयारियों में जुट गया। उसने जमीन बेचने का विचार यह सोचकर त्याग दिया कि बाद में जब भी जरुरत होगी तो वह या तो जमीन मकसूद को दे देगा या उसके रूपये धीरे-धीरे लौटा देगा।
विवाह के कुछ दिन पहले मकसूद का संदेशा अभय के पास आया कि मेरी तबियत इन दिनों कुछ खराब चल रही है। तुम षशीघ्र ही मुझसे आकर मिलो। उस दिन रात बहुत हो चुकी थी इसलिये अभय नहीं जा सका। मकसूद की बीमारी की खबर सुनकर वह विचलित हो गया था। दूसरे दिन सबेरे-सबेरे वह घर से मकसूद के यहां जाने को निकल पड़ा। अभी वह मोहनियां तक पहुंचा भी नहीं था कि उस ओर से आ रहे एक गांववासी ने उसे देखा तो बतलाया कि मकसूद का स्वास्थ्य रात को अधिक खराब हो गया था और उसे जबलपुर में मेडिकल कालेज ले जाया गया है।
यह सुनकर अभय ने उस व्यक्ति से कहा कि गांव में वह उसकी बेटी को बतला दे कि वह जबलपुर जा रहा है मकसूद चाचा की तबियत खराब है और वहां से अभय सीधा जबलपुर की ओर चल दिया। जब वह मेडिकल कालेज पहुँचा तो मकसूद इस दुनियां को छोड़कर जा चुका था।
अभय ने सलीम, सलीम की मां और उसकी पत्नी को सांत्वना दी। वह उनके साथ गांव वापिस जाने की तैयारियां करने लगा। उसके ऊपर दुख का पहाड़ टूट पड़ा था। एक ओर उसका सगे भाई से भी बढ़कर मित्र बिछुड़ गया था और दूसरी ओर उसे बेटी के हाथ पीले करना थे।
मकसूद को सुपुर्दे खाक करने के बाद अभय गांव वापिस आ गया। अगले दिन सबेरे-सबेरे मोहनियां से एक आदमी आया और उसने अभय से कहा कि उसे भाभी जान ने बुलाया है। अभय भारी मन से मोहनियां गया। वहां जाकर वह मकसूद के यहां सलीम के पास बैठा। सलीम बहुत दुखी था। अभय सिंह बड़े होने के नाते उसे सान्त्वना देता रहा जबकि वह स्वयं भी बहुत दुखी था। कुछ देर बाद ही सलीम की मां उदास चेहरे का साथ वहां आईं। उनकी आंखें सूजी हुई थीं। उन्हें देखकर अभय सिंह की आंखों से भी आंसू का झरना फूट पड़ा। कुछ देर बाद जब उनके आंसू थमे तो कुछ बातें हुई। उसी समय अभय सिंह ने विदा मांगी। तभी सलीम की मां ने एक लिफाफा अभय की ओर बढ़ाया। वे बोलीं- तीन-चार दिन से इनकी तबियत खराब चल रही थी। परसों जब उन्हें कुछ अहसास हुआ तो उन्होंने यह लिफाफा मुझे दिया था और कहा था कि यह आपको को देना है। अगर मैं भूल जाउं तो तुम उसे याद से दे देना।
अभय ने उस बन्द लिफाफे को उनके सामने ही खोला। उसमें पांच लाख रूपये और एक पत्र था। अभय उस पत्र को पढ़ने लगा। पत्र पढ़ते-पढ़ते उसकी आंखों से टप-टप आंसू टपकने लगे। उसकी हिचकियां बंध गई और गला रूंध गया। सलीम ने वह पत्र अभय के हाथ से ले लिया और हल्की आवाज में पढ़ने लगा-
प्रिय अभय, तुम्हारे जमीन बेचने के निर्णय से मैं बहुत दुखी हुआ था। लेकिन मेरे प्रस्ताव को जब तुमने बिना किसी हील-हुज्जत के मान लिया तो मेरा सारा दुख चला गया। हम दोनों मिलकर सुमन को विदा करें यह मेरी बहुत पुरानी अभिलाषा थी। मुझे पता है कि भाभी जान के न होने के कारण तुम कन्या दान नहीं ले सकते हो इसलिये मैंने निश्चय किया था कि सुमन का कन्यादान मैं और तुम्हारी भाभी लेंगे। लेकिन कल से मेरी तबियत बहुत तेजी से खराब हो रही है और न जाने क्यों मुझे लग रहा है कि मैं सुमन की शादी नहीं देख पाउंगा। पांच लाख रूपये रख जा रहा हूँ। उसका विवाह धूम-धाम से करना। तुम्हारा- मकसूद
पत्र समाप्त होते-होते वहां सभी की आंखों से आंसू बह रहे थे। उसने भाभी जान से कहा-
भाभी जान! आज मकसूद भाई होते तो ये रूपयों को लेने में मुझे कोई गुरेज नहीं था लेकिन आज जब वे नहीं रहे तो इन रूपयों को लेना मुझे उचित नहीं लग रहा है। इसलिये मेरी प्रार्थना है कि ये रूपये आप वापिस रख लीजिए।
भाभी जान की रूलाई रूक गई। वे बोलीं- भाई साब अब हमारे पास बचा ही क्या है। उनके जाने के बाद अगर हम उनकी एक मुराद भी पूरी न कर सके तो वे हमें कभी माफ नहीं करेंगे। खुदा भी हमें माफ नहीं करेगा।
तभी सलीम बोला- चाचाजान आप नाहक को सोच विचार में पड़े हैं। दुनियां का नियम है आना और जाना। हम सब मिलकर सुमन का विवाह करेंगे। वह मेरी भी तो छोटी बहिन है। मैं उसके लिये बड़े भाई के भी सारे फर्ज पूरे करुंगा और अब्बा की ख्वाहिश भी पूरी करुंगा। आप ये रूपये रख लीजिये और अगर और भी आवश्यकता होगी तो हम वह भी पूरी करेंगे।
सुमन का विवाह नियत समय पर हुआ। सलीम ने उसके भाई की सारी रस्में भी पूरी कीं और अपनी पत्नी के साथ उसका कन्यादान भी किया। आज भी लोग उस विवाह को याद कर उनकी मित्रता की मिसाल देते हैं।
(क्रमशः अगले भाग में जारी...)
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