अध्ययन सामग्री - कहानी – घुसपैठिये - ओमप्रकाश वाल्मीकि // डॉ. जयश्री सिंह

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डॉ. जयश्री सिंह सहायक प्राध्यापक एवं शोधनिर्देशक, हिन्दी विभाग, जोशी - बेडेकर महाविद्यालय ठाणे - 400601 महाराष्ट्र कहानी – ५ घुसपैठिये - ओम...

डॉ. जयश्री सिंह

सहायक प्राध्यापक एवं शोधनिर्देशक, हिन्दी विभाग,

जोशी - बेडेकर महाविद्यालय ठाणे - 400601

महाराष्ट्र


कहानी – ५ घुसपैठिये - ओमप्रकाश वाल्मीकि

लेखक परिचय :- ओमप्रकाश वाल्मीकि वर्तमान दलित साहित्य के प्रतिनिधि रचनाकारों में से एक हैं। हिंदी में दलित साहित्य के विकास में ओमप्रकाश की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। उन्होंने डॉ. भीमराव अंबेडकर की रचनाओं का अध्ययन किया, जिससे उन्हें दलित साहित्य के अध्ययन में काफी प्रेरणा मिली। वाल्मीकि जी की मान्यता है कि दलितों द्वारा लिखा गया साहित्य ही दलित साहित्य है। उनका मानना है कि दलित की पीड़ा दलित ही बेहतर समझ सकता है और वही उसके अनुभव को सत्य रूप में अभिव्यक्त कर सकता है।

ओमप्रकाश वाल्मीकि ने 80 के दशक में लिखना प्रारंभ किया। उन्होंने हर विधा में अपनी लेखनी चलाई - कविता संग्रह, आत्मकथा, आलोचना साहित्य, दलित साहित्य, नाटक और कहानी संग्रह आदि। उनके कहानी संग्रहों में सलाम, अम्मा एंड अदर स्टोरीज, छतरी और घुसपैठिए आदि।

घुसपैठिए एक ऐसी कहानी है जो मेडिकल कॉलेज के दलित छात्रों पर लिखी गई है। वाल्मीकि जी ने इस कहानी द्वारा समाज में फैली जाति व्यवस्था को प्रकाश में लाने का प्रयास किया है। मेडिकल कॉलेज के एक-एक दलित छात्र कैसे बली की वेदी पर चढ़ता है? क्या दलित डॉक्टर या इंजीनियर नहीं बन सकते? उनके दलित होने के कारण उन्हें आरक्षण मिलता है, तो इसमें उनका क्या दोष? कहानी में इन्ही सवालों को उठाने का प्रयास हुआ है।

कहानी की कथावस्तु :- ओमप्रकाश वाल्मीकि की यह कहानी मेडिकल कॉलेज में अध्ययन कर रहे दलित छात्रों की कहानी है। घुसपैठिए कहानी का परिवेश मेडिकल कॉलेज है। जहाँ दलित छात्र सवर्ण छात्रों की दृष्टि में एक अपराधी समझे जाते हैं। उन्हें आरक्षण द्वारा कॉलेज में प्रवेश मिला है यही उनकी सबसे बड़ी गलती है। दलित छात्रों को अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने की मनाही है। पूरा माहौल शहरी है जहां सब सुशिक्षित है। सब ऊंचे-ऊंचे पदों पर आसीन हैं। कोई दलित व्यक्ति अफसर तो कोई अधिकारी है लेकिन किसी में इतनी हिम्मत नहीं है कि अन्याय के विरोध में खड़ा हो या उसके खिलाफ कोई कार्यवाही करें। कोई इतना साहस नहीं जुटा पाता कि इन दलित छात्रों की पुकार सुन ले। सारे अफसर और अधिकारी अपनी-अपनी कुर्सी संभालते से नजर आ रहे हैं।

पूरा वातावरण इसी तानाकशी से भरा है। समस्त विभाग वालों को ऐसा लगता है कि दलित छात्र घुसपैठी हैं। आरक्षण के चलते ही उन्हें प्रवेश मिला है।

इस कॉलेज में अमरदीप, विकास चौधरी और नितिन मेश्राम तथा सुभाष सोनकर जैसे दलित छात्र ने डॉक्टर बनने के लिए प्रवेश लिया है। वे अपने मां-बाप के सपनों को पूरा करने के जद्दोजहद में लगे हुए हैं। कॉलेज में सवर्ण छात्र दलित छात्रों के साथ दुर्व्यवहार करते हैं, जिससे दलित छात्र बिल्कुल परेशान हो गए हैं। इतना ही नहीं शहर से कॉलेज जाने वाली बसों में उन्हें चमरटे जैसे अभ्रद शब्दों से बुलाकर बस की सबसे पीछे सीट पर ले जाकर लात-घूंसे से पीटा जाता है। यहां तक कि उन्हें हॉस्पिटल में भी अलग रखा जाता है। यही हाल गर्ल्स हॉस्टल का भी है। वहां की सभी दलित लड़कियां एक ही साथ रहती हैं। यदि छात्र हॉस्पिटल गार्डन से इसकी शिकायत करें तो उल्टी उन्हें ही चेतावनी दी जाती है कि अपनी औकात में रहें वरना हॉस्टल से निकाल दिए जाएंगे।

कहानी में एक किरदार राकेश है जो एक अफसर है, वह भी दलित जाति का है। कहानी का प्रमुख पात्र रमेश चौधरी है। वह एक सामाजिक कार्यकर्ता है, जो बिल्कुल बेबाक और गलत का विरोध करने में तत्पर है जबकि राकेश बिल्कुल शांत प्रवृत्ति का है। राकेश दलित वर्ग पर होने वाले अत्याचारों के खिलाफ बोलना तो चाहता है, लेकिन अपनी पत्नी के डर से चुप्पी साध लेता है। उसे यही सही लगता है। रमेश चौधरी अक्सर किसी-न-किसी बहाने राकेश से मिलता है। उसके आने से राकेश बिल्कुल अव्यवस्थित हो जाता है। वह जितना उससे पीछा छुड़ाना चाहता है उतना ही वह किसी-न-किसी बहाने आ ही जाता है

रमेश, राकेश के इस व्यवहार से वह एक बार कुछ ऐसा कहता है - “ तुम लोग अपने आप को समझते क्या हो? तुम लोगों को सिर्फ बड़े-बड़े प्रमोशन चाहिए, वह भी आरक्षण के भरोसे। बच्चों को स्कूल, कॉलेज में एडमिशन भी कोटे से ही चाहिए। लेकिन इस कोटे को बचाए रखने की नौबत आती है तो तुम लोगों को जरूरी काम निकल आते हैं या फिर दफ्तर से छुट्टी नहीं मिलती तब रमेश चौधरी ही बनेगा बलि का बकरा। गालियां भी वही खाएगा। देखो साहब….. अगर भीड़ का हिस्सा बनने में आप लोगों को खतरा दिखाई देता है तो ऐसी संस्थाओं को चंदा दो जो तुम्हारे हितों के लिए काम करती हो…. तुम लोग इसी तरह उदासीन बने रहे तो वह दिन दूर नहीं जब यह लोग आरक्षण को हजम कर जाएंगे….. बाबा साहब तो है नहीं…..” उसकी ऐसी बातों से राकेश हमेशा बचने की कोशिश करता है, क्योंकि उसकी पत्नी इंदू चाहती थी वह इन सब पचड़ों से दूर रहे। इंदु का ऐसा नजरिया इस सामाजिक प्रताड़ना का फल था। वह एक सहज जीवन जीना चाहती थी। ऐसा लगता है कि अपने दलित होने का भय उसे खाए जा रहा है।

उस कॉलेज में दिन-प्रतिदिन दलित छात्रों के साथ दुष्कर्म बढ़ता जाता है। एक दिन अचानक राकेश के घर पर रमेश चौधरी कॉलेज के कुछ दलित छात्रों अमरदीप, विकास चौधरी, नितिन मेश्राम और सुभाष सोनकर को लेकर आया। रमेश चौधरी सबका परिचय कराता है। वे अपनी सारी तकलीफें राकेश से बताते हुए कहते हैं कि वें कितनी यातनाओं से गुजर रहे हैं उसका दर्द वही समझ सकते हैं। अमरदीप अपनी तकलीफ बताते हुए कहता है कि एक रोज तो उसने आत्महत्या करने का निश्चय कर लिया था। इन बातों से उसके हृदय में उठने वाली चीत्कारें साफ-साफ सुनाई पड़ती हैं। एक दिन उन्हें हॉस्टल के कमरे में बंद करके पूरे दिन रखा गया था। कुछ दिन पहले ऐसे ही बस में फाइनल के प्रणव मिश्रा ने चिल्लाकर आवाज़ लगाई की बस में चमार कौन है? उस बस में सुभाष सोनकर नाम का विद्यार्थी था जो चुपचाप बैठा रहा। उसके पास बैठे छात्र ने इशारे से बताया इतने में प्रणव मिश्रा तिलमिला गया और सोनकर के बाल पकड़ खींचलिया और बोला क्यों बे चमरटे सुनाई नहीं दिया। सोनकर ने जवाब दिया कि मैं चमार नहीं हूं। मिश्रा ने उसे जोरदार थप्पड़ मारा और कहा “चमार हो या सोनकर ब्राह्मण तो नहीं है। है तो कोटे वाला ही बस इतना ही काफी है।“उसने लात-घूंसों से मार कर उसे अधमरा कर दिया। उन छात्रो को एक-एक दिन इसी प्रकार की यंत्रणा से गुजार कर जीना पड़ता था।

शिकायत करने पर दलित छात्रों को इस बात का हवाला दिया जाता है कि आरक्षण से आए हो तो थोड़ा-बहुत तो सहना पड़ेगा। लेखक कहते हैं कि,ये आरक्षण के विरोध से उत्पन्न हुआ आक्रोश है। डीन ही नहीं, प्रोफेसर भी इस प्रकार की बातें करके प्रणव मिश्रा जैसे छात्रों को राह देते हैं।

सुभाष सोनकर ने अपनी मेडिकल रिपोर्ट बनवाई, जिसे लेकर वह पुलिस थाने गया रपट लिखवाने के लिए, तो उससे इंस्पेक्टर ने ये कह कर रिपोर्ट लिखने से साफ मना कर दिया कि “यें अंदरूनी मामला है पुलिस को क्यों घसीटते हो।“ इस स्थितियों में उनके लिए एकाग्र होकर पढ़ाई कर पाना बहुत ही मुश्किल था। रमेश चौधरी ने अखबारों में रपट भेजी तो वहां रैंगिंग कहकर छाप दिया गया। दलित छात्रों के साथ होने वाली ज्यादतियों का कोई जिक्र नहीं था।

राकेश और रमेश ने सोचा कि डीन से मिलकर समस्या का समाधान निकालेंगे, तो वहां भी उन्हें निराशा ही मिली। डीन ने यह कहकर बात खत्म करने की कोशिश की, कि यहां पर दलित उत्पीड़न जैसा कुछ नहीं है। राकेश और रमेश चौधरी बौखलाकर उठ आए। दलित छात्रों का मेडिकल में आना डीन की दृष्टि में घुसपैठ थी।

वह अनेक अधिकारियों के पास गए वहां भी वह असफल रहे। दस-पन्द्रह दिन के अथक प्रयासों के बाद भी उन्हें कोई सफलता नहीं मिली। राकेश भी अधिकारी था, वह अपना सामाजिक उत्तरदायित्व समझकर छात्रों की मदद करना चाहता था। सरकारी अफसर ऐसे कामों से बचने की कोशिश करते थे, उन्हें भय था की कहीं इसका असर उनके ऊपर भी ना पड़ जाए। उन्हें दलित होने का भय हर वक्त सालता है। यहां तक कि रमेश ने जुलूस निकालने की योजना भी बना ली और तारीख भी तय की। लेकिन सुभाष इतना सब सहन न कर सका। हद तो तब हो गई जब सोनकर को पहली परीक्षा में ही फेल कर दिया गया, क्योंकि उसने प्रणव मिश्रा के खिलाफ पुलिस में नामजद रपट लिखाने का दुस्साहस किया था। डीन और अन्य प्रोफेसरों तक शिकायत पहुंचाने की हिमाकत की थी। वह यह भूल गया था कि वह इस चक्रव्यू में अकेला फँसा था, जहां से बाहर आने के लिए उसे कौरवों की कई अक्षौणियीं सेना और अनेक महारथियों से टकराना पड़ेगा। परीक्षाफल का चक्रव्यू भेद कर सोनकर बाहर नहीं आ पाया और अंततः हार कर उसने आत्महत्या कर ली। लेकिन यह आत्महत्या आत्महत्या नहीं बल्कि उन महारथियों द्वारा सोनकर की हत्या की गई थी, जिसे आत्महत्या कहकर प्रचारित किया जा रहा था।

राकेश को जब रमेश चौधरी ने यह ख़बर बताई तो वह बिल्कुल कांप गया। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि इतनी कुशाग्र बुद्धि का सोनकर आत्महत्या कर सकता है। रमेश चौधरी ने राकेश को फोन करके धीर-गंभीर आवाज में बोला, “ राकेश साहब, कल पोस्टमार्टम के बाद सोनकर की लाश का अंतिम संस्कार कॉलेज के मुख्य गेट पर होगा…. आपमें साहस हो तो पहुंच जाना….” उसने रमेश चौधरी के शब्दों की आंच को महसूस कर लिया। सोनकर की जद्दोजहद राकेश की अपनी पीड़ा बन गई थी। वह एक झटके से खड़ा हुआ और उसने तय किया कि वह सोनकर की अंतिम यात्रा में शामिल ही नहीं होगा बल्कि उसे कंधा भी देगा।

इसी के साथ कहानी अपने चरम उत्कर्ष पर पहुंचते हुए समाप्त हो जाती है।

निष्कर्ष :- ओमप्रकाश वाल्मीकि जी घुसपैठिए कहानी के द्वारा दलित समाज की समस्याओं पर ध्यान आकृष्ट करना चाहते हैं। वे दलित वर्ग की पीड़ा को अपनी पीड़ा मानते हैं और यही पीड़ा घुसपैठिए कहानी में मेडिकल कॉलेज में अध्ययन करने वाले दलित छात्रों की है। लेखक इस कहानी के द्वारा यह दर्शाना चाहते हैं कि आरक्षण और कोटे के विरोध की आड़ में सवर्ण छात्र किस प्रकार से दलित छात्रों के साथ दुर्व्यवहार करते हैं। ऐसी संस्थाओं में उन्हें इतनी यंत्रणा दी जाती है कि वह आत्महत्या तक करने को मजबूर हो जाते हैं। वाल्मीकि जी बताना चाहते हैं कि कॉलेजों और कई संस्थाओं में इनके (दलितों) साथ भेदभाव किया जाता है। दलितों को रहने के लिए अलग रूम और सवर्ण को अलग रूम दिया जाता है। कहानी में बताया गया है कि मेडिकल कॉलेज के ऐसे हालात है कि वहां दलित छात्रों का पढ़ाई करना बहुत ही कठिन हो गया है। दलित छात्र कहते हैं कि कई बार तो ऐसा लगता है पढ़ाई छोड़ कर लौट जाएं, लेकिन मां-बाप की उम्मीदें रास्ता रोककर मजबूर कर देती है। कॉलेज के प्रोफेसर और डीन भी प्रणव मिश्रा जैसे लोगों को राह देते हैं और इतना ही नहीं प्रैक्टिकल परीक्षाओं में भी भेदभाव किया जाता है। यह क्लासेस अटेंड करें या ना करें इनको अटेंडेंस की भी समस्या नहीं होती और दलित छात्र इसका विरोध करें तो उसे सीधा फेल कर दिया जाता है। अतः वाल्मीकि जी ने इन सारी समस्याओं को ‘घुसपैठिए’ कहानी में दर्शाने का प्रयास किया है।

सन्दर्भ सहित व्याख्या:-

“क्यों बे चमरटे सुनाई नहीं पड़ा हमने क्या कहा था?’ सोनकर ने अपने बाल छुड़ाने की कोशिश की...मैं चमार नहीं हूँ. बालों की पकड़ मजबूत थी. सोनकर करह उठा। प्रणव मिश्र का झन्नाटेदार थप्पड़ सोनकर के गल पर पड़ा...(गाली)....चमार हो या सोनकर ब्राह्मण तो नहीं हो...हो तो सिर्फ कोटेवाले...बस इतना ही काफी है।“

संदर्भ :- प्रस्तुत गद्यांश बी.ए. प्रथम वर्ष की पाठ्यपुस्तक में रचित “घुसपैठिए” कहानी से लिया गया है। इसके रचयिता “ओमप्रकाश वाल्मीकि” जी हैं। लेखक ने इस कथा के माध्यम से दलित समाज के साथ होने वाले अन्याय और दुर्व्यवहारों का वर्णन किया है।

प्रसंग :- इस गद्यावतरण में ओमप्रकाश वाल्मीकि जी ने भारत में दलित समाज के लोगों के साथ होने वाले दलित उत्पीड़न की व्याख्या की है। लेखक बताना चाहते हैं कि कॉलेजों या अन्य संस्थाओं में इन दलितों के साथ कैसे कैसे बर्ताव और ज्यादतियां की जाती है।

व्याख्या :- कहानी घुसपैठिए में दिखाया गया है कि मेडिकल कॉलेज में दलित, ब्राह्मण और अन्य सवर्ण जाति के लोगों ने अध्ययन के लिए प्रवेश लिया है। लेकिन वहां आरक्षण या कोटे से आए हुए दलित छात्रों के साथ बहुत बुरा व्यवहार किया जाता है। अमरदीप, विकास चौधरी, नितिन मेश्रम और सुभाष सोनकर जैसे दलित मेडिकल कॉलेज के छात्र हैं। वे मेडिकल कॉलेज में होने वाली दिन प्रतिदिन की कठिनाइयों से एकदम परेशान हैं। उन्हें किन किन यातनाओं से गुजरना पड़ता है, जिसका दर्द केवल वही जानते हैं। ब्राह्मण या दूसरे सवर्ण छात्रों द्वारा दलित छात्रों को अलग खड़ा करके अपमानित करना तो रोज का किस्सा बन गया है। लेखक कहते हैं यदि उन्हें आरक्षण या फिर कोटे द्वारा मेडिकल कॉलेज में प्रवेश मिला है, तो इसमें उनका क्या दोष है?

दलित छात्रों के प्रवेश परीक्षा के प्रतिशत अंक पूछकर थप्पड़ या घूसों से पीटा जाता है। अगर जरा भी विरोध किया तो लातों से मारा जाता है। इतना ही नहीं शहर से कॉलेज तक जाने वाली बसों में चिल्लाकर ब्राह्मण छात्र कहता है, कि अगर कोई चमार है तो खड़ा हो जाए। फिर उन दलित छात्रों को पीछे की सीट पर लेकर अभद्र शब्द बोल बोल कर मारा पीटा जाता है।

बिल्कुल ऐसा ही सुभाष सोनकर के साथ हुआ। उससे पूछा गया और जब वह बस में चुपचाप बैठा रहा तो उसके बगलवाले ने इशारे से बताया दिया, जिससे प्रणव मिश्रा नाम का छात्र गुस्से से तिलमिला उठा और उसने सुभाष सोनकर को अभद्र शब्दों से पुकारा- ‘क्यों बे चमरटे सुनाई नहीं पड़ा हमने क्या कहा था?’ सोनकर ने अपने बाल छुड़ाने की कोशिश की और उसने कहा- ‘मैं चमार नहीं हूं।’ मिश्रा ने सोनकर के बालों को कसकर पकड़ रखा था। सोनकर दर्द से कराह रहा था। तभी प्रणव मिश्रा ने सोनकर के गाल पर झन्नाटेदार थप्पड़ मारा और गाली देते हुए कहा- चमार हो या सोनकर…..ब्राह्मण तो नहीं…. हो तो सिर्फ कोटवाले….. बस इतना ही काफी है। फिर क्या इतना कहकर प्रणव मिश्रा ने सोनकर को लात घूसों से मार-मारकर लगभग अधमरा कर दिया था। कहने का तात्पर्य यह है कि यदि दलित छात्रों को आरक्षण से प्रवेश मिलता है, तो इसमें उनकी क्या गलती है?

विशेष :- शिक्षा क्षेत्र अन्य संस्थाओं में दलितों पर होने वाले अत्याचार पर बल दिया गया है। समाज में फैली जातिवाद जैसी समस्या को प्रस्तुत किया गया है। कथा की भाषा बोलचाल की खड़ी बोली है, और कहीं-कहीं पर अंग्रेजी शब्दों के प्रयोग हैं।

बोधप्रश्न :-

१) ‘घुसपैठिये’ कहानी की मुख्य समस्या को विस्तार से लिखिए।

२) कहानी के माध्यम दलित छात्रों की चुनौतियों पर प्रकाश डालिए।

एक वाक्य में उत्तर लिखिए : -

१) मेडिकल कॉलेज के किस छात्र ने आत्महत्या कर ली थी?

उत्तर :- मेडिकल सिलेज में सुभाष सोनकर ने आत्महत्या कर ली थी।

२) सुभाष सोनकर को किसने पीटा था?

उत्तर :- सुभाष सोनकर को प्रणव मिश्रा ने पीटा था।

३) रमेश चौधरी कौन है?

उत्तर :- रमेश चौधरी सामाजिक कार्यकर्ता है।

४) रमेश की पत्नी का नाम लिखिए।

उत्तर :- रमेश की पत्नी का नाम इंदु है।

५) सुभाष सोनकर का अंतिम संस्कार कहाँ किया गया?

उत्तर :- सुभाष सोनकर का अंतिम संस्कार मेडिकल कॉलेज के मुख्य गेट पर किया गया।

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तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया 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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: अध्ययन सामग्री - कहानी – घुसपैठिये - ओमप्रकाश वाल्मीकि // डॉ. जयश्री सिंह
अध्ययन सामग्री - कहानी – घुसपैठिये - ओमप्रकाश वाल्मीकि // डॉ. जयश्री सिंह
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