कहानी संग्रह वे बहत्तर घंटे राजेश माहेश्वरी बारबाला जीवन में गरीबी देती है अभाव, चिन्ता और परेशानियां। परन्तु आशा की किरणें, सच्ची लगन और प...
कहानी संग्रह
वे बहत्तर घंटे
राजेश माहेश्वरी
बारबाला
जीवन में गरीबी देती है अभाव, चिन्ता और परेशानियां। परन्तु आशा की किरणें, सच्ची लगन और परिश्रम से जीवन संवर जाता है। वाराणसी की तंग गलियों में एक गरीब परिवार में लड़की ने जन्म लिया जिसका नाम माया रखा गया। माता पिता ने अपनी गरीबी के बावजूद उसे हर संभव सुविधा प्रदान करते हुए बारहवीं कक्षा तक की शिक्षा दिलाई थी।
माया काफी सुन्दर, सभ्य एवं चरित्रवान लड़की थी। वह बचपन से ही अपनी कक्षाओं में अव्वल आती थी। उसमें शास्त्रीय संगीत और नृत्य के प्रति बचपन से ही लगाव था। उसमें जीवन में कुछ करके ख्याति पाने की लालसा थी। वह परिवार के अभावों से भी परिचित थी।
उसकी एक बचपन की सहेली थी प्रेमा। वह मुम्बई में काम करती थी और प्रतिमाह अपने परिवार को काफी रूपये भेजती थी और साथ ही साथ वहां पर अध्ययन भी कर रही थी। वह सावन के महिने में अपने घर आयी हुई थी।
एक दिन माया उसके साथ बैठी थी। तभी प्रेमा ने उससे पूछा- अब आगे तुम क्या करने वाली हो?
मैं पुलिस में जाना चाहती हूँ। उसके लिये ग्रेजुएशन करना है लेकिन घर की हालत तो तुम जानती ही हो। घर वाले तो चाहते हैं कि मेरा विवाह कर दें और अपनी जवाबदारी से मुक्त हो जाएं।
वे ठीक ही तो सोचते हैं। आखिर एक दिन तो विवाह करके घर बसाना ही है।
वो तो ठीक है लेकिन मुझे लगता है कि जिन माता-पिता ने इतनी मुसीबतों से मेरा पालन-पोषण किया और मुझे पढ़ाया लिखाया उनके प्रति मेरा भी तो कुछ कर्तव्य है। फिर यदि आज मेरा कोई भाई होता तो सोचती कि वह उनकी देखरेख करेगा। मेरे अलावा उनका कौन है?
तो क्या जीवन भर कुंवारी रहोगी?
नहीं ऐसी बात नहीं है। मैं सोचती हूँ कि कोई काम करके उनको सहारा दूं और अपने दम पर आगे पढ़ाई करके अपने लक्ष्य को प्राप्त करुं।
तुम क्या करना चाहती हो?
यही तो समझ में नहीं आ रहा है। आखिर तुम भी तो यहां से इतनी दूर मुम्बई जाकर काम कर रही हो।
प्रेमा ने उसे बतलाया कि वह मुम्बई में बारबाला के रुप में काम कर रही है। इस काम में पैसा तो मिलता है पर सम्मान नहीं मिल पाता। ऐसा नहीं है कि सभी बारबालाएं अपने तन का सौदा करती हैं। पर कुछ हैं जो अपने तन का सौदा करने लगती हैं। उनके कारण ही यह काम बदनाम हो गया है।
उनमें और भी बहुत सी बातें होती रहीं लेकिन कोई निष्कर्ष वे नहीं निकाल सकी थीं।
माया इस प्रयास में लगी थी कि उसे कोई ऐसा काम मिल जाए जिससे वह अपनी पढ़ाई भी जारी रख सके और उसके घर पर भी कुछ मदद हो जाए लेकिन उसे अपेक्षित सफलता नहीं मिल सकी। इसी बीच एक दिन अचानक ही उसके पिता को सीने में दर्द हुआ। उसके पिता को हृदयाघात हुआ था। गरीबी के कारण उन्हें समय पर और पूरा उपचार प्राप्त नहीं हो सका और काल के क्रूर हाथों ने माया से उसके पिता को छीन लिया। अब मां अकेली रह गई और परिवार साधन विहीन हो गया।
पिता के निधन के बाद माया पर जैसे मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। उसकी माँ कुछ करने की स्थिति में नहीं थी, यद्यपि वह पास-पड़ौस में छोटे-मोटे काम कर लिये करती थी लेकिन उससे दोनों मां-बेटी का गुजारा संभव नहीं था। माया ने परिस्थितियों से समझौता करते हुए मुम्बई जाने का फैसला कर लिया और प्रेमा के पास पहुँच गई। प्रेमा ने उसे अपने पास ही रखा और उसे गम्भीरता पूर्वक समझाया कि यहां पर हम जैसी लड़कियों को आसानी से बारबाला का काम मिल जाता हे इसमें हमें नृत्य करके आगन्तुकों को रिझाना होता है। उनके जेब से रूपये अपने आप ही बाहर आने लगते हैं। जो कुछ भी प्राप्त होता है उसका आधा बार मालिक को और आधा बारबाला को मिलता है। यहां पर कुछ सभ्य सुसंस्कृत बार मालिक भी हैं जो कि लड़कियों से सिर्फ बारबाला का ही काम लेते हैं, किन्तु कुछ धन लोलुप और गिरे हुए लोग भी होते हैं जो बारबालाओं को वेश्या वृत्ति अपनाने के लिये उकसाते हैं और अपना उल्लू सीधा करते हैं।
प्रेमा जानती थी कि माया एक सभ्य लड़की है और वह भी चाहती थी कि माया केवल बारबाला बनकर ही संतुष्ट रहे तथा अन्य असामाजिक गतिविधियों से दूर रहे और बची रहे। प्रेमा उसे एक बार में नौकरी दिलवा देती है। उस बार का मालिक एक बुजुर्ग और सभ्य व्यक्ति जो साफ-सुथरा काम पसंद करता था। वह इस क्षेत्र में एक प्रतिष्ठित व्यवसायी था। बार के व्यवसाय में होते हुए भी उसका इतना मान व सम्मान था कि उसके बार पर कभी पुलिस आदि विभागों ने किसी भी प्रकार की जांच आदि की आवश्यकता नहीं समझी थी।
माया मुम्बई में बारबाला के रुप में काम करने लगी थी। उसकी सुन्दरता पर उसके प्रशंसक दीवाने थे और प्रतिदिन उस पर उसके नाम के अनुरुप ही धन की वर्षा करते थे। वह भी उन्हें खुश करने के लिये मुस्कराते हुए अपने हाथों से जाम बनाकर पेश करती थी किन्तु किसी को भी अपने पास नहीं फटकने देती थी। अपने पहनावे के प्रति इतनी सजग रहती थी कि उसके पहनावे से कभी भी किसी भी प्रकार की अश्लीलता नहीं झलकती थी। वह अपनी टैक्सी में ही आती-जाती थी और रात में नौ बजे से ग्यारह बजे तक ही अपनी सेवाएं देती थी।
बार मालिक भी उसके इन गुणों से प्रभावित था और उसका सम्मान करता था। वह जानता था कि माया अपने और अपने परिवार के लिये यह काम कर रही है किन्तु वह किसी भी प्रकार के अनैतिक कार्य में संलग्न होने के लिये तैयार नहीं थी। वह अक्सर उससे उसके परिवार आदि के विषय में बात करता था और धीरे-धीरे वह उसके और उसके परिवार के विषय में सब कुछ जान गया था। इससे उसके मन में माया के प्रति सम्मान और भी अधिक बढ़ गया था। उसे पता हो गया था कि माया प्रतिदिन सुबह सूर्योदय के पूर्व ही उठ जाती है। सबसे पहले वह सूर्य देव को प्रणाम करती है। इसके बाद अपने माता-पिता के प्रति आदर व्यक्त करते हुए स्नेहाशीष की कामना करती है। इसके पश्चात वह पूजा-पाठ के उपरान्त एक कालेज जाती है जहां वह बी. काम. मे अध्ययन कर रही है। रात में आठ बजे वह बार में आती है जहां वह ग्यारह बजे तक अपनी सेवाएं देती है। वह जो भी धन कमाती है उससे अपनी मां को भी धन भेजती है कुछ दान पुण्य भी करती है और बाकी बचे धन से सादगी पूर्वक अपना जीवन चलाती है और अध्ययन करती है।
यह सब जानने के कुछ दिन बाद ही बार मालिक ने उसे बार बाला के काम से अलग कर बार के मेनेजर के पद पर पदोन्नत कर दिया। इससे उसे और भी अधिक सम्मानजनक स्थान प्राप्त हो गया। उसने अपने काम को बखूबी अंजाम दिया और बार में हो रहे फिजूलखर्च को रोककर और घपलों को पकड़कर बार की आय को बढ़ा दिया। बार मालिक उसकी योग्यता से और भी अधिक प्रभावित हो गया और उसकी दृष्टि में उसका सम्मान और भी अधिक बढ़ गया।
उस बार के मालिक की कोई सन्तान नहीं थी। उन पति-पत्नी ने अपने बड़े भाई के बच्चे को अपनी संतान के रुप में पाला था। उनके बड़े भाई और उनकी पत्नी का देहान्त हो चुका था। सभी लोग उसे ही उनका बेटा समझते थे। वही उनकी सारी संपत्ति का वारिस था। एक दिन बार मालिक ने अपने घर में बात की और पत्नी व बेटे की सहमति के बाद वह इस निश्चय पर पहुँचा कि माया को वह अपनी बहू बनायेगा। उसने इस संबंध में माया से बात की और कहा कि अभी तक तुम मेरी बेटी के समान थीं अब मैं तुम्हें अपने घर की बहू बनाना चाहता हूँ। माया यह सुनकर हतप्रभ रह गई। वह अपने मालिक का बहुत सम्मान करती थी। उसने जब उनकी बात सुनी तो उन्हें बताया कि वह भविष्य में पुलिस अधिकारी बनना चाहती है। इसी के लिये वह पढ़ाई भी कर रही है और इसी की तैयारी भी कर रही है।
बार मालिक उसे समझाता है कि तुम जो करना चाहती हो वह अपने विवाह के बाद भी कर सकती हो। तुम्हारे लक्ष्य पर इससे कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा बल्कि तुम्हें अपने उद्देश्य को पाने के लिये धन की व्यवस्था या चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं रह जाएगी। माया की सहमति के बाद वाराणसी से उसके रिस्तेदारों को मुम्बई बुलाया जाता है और सभी के बीच उसका विवाह सम्पन्न होता है।
माया अपने लक्ष्य की ओर और अधिक परिश्रम के साथ आगे बढ़ती है। बी. काम. करने के बाद वह पुलिस विभाग के लिये प्रयास करती है और यहां भी उसे सफलता मिलती है। उसके पति और ससुराल वाले भी इस कार्य में उसका सहयोग करते हैं। आज माया एक पुलिस अधिकारी है और उसका पति और उसके ससुर आज भी उस बार को चला रहे हैं जहां से माया के जीवन का संघर्ष प्रारम्भ हुआ था। माया की इस प्रगति से सबसे अधिक गर्व यदि किसी को है तो वह है प्रेमा उसके बचपन की सहेली।
(क्रमशः अगले भाग में जारी...)
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