मंजुल भटनागर राखी बचपन की हथेली पर कोई रख जाये बहुतेरे रंग फैल जाये ख़ुशी बेइंतहा अहसास भी हो जाएँ दंग इन्हीं बातों की एक याद है राखी प्...
मंजुल भटनागर
राखी
बचपन की हथेली पर
कोई रख जाये बहुतेरे रंग
फैल जाये ख़ुशी बेइंतहा
अहसास भी हो जाएँ दंग
इन्हीं बातों की एक याद है राखी
प्यार के मनुहार के
बचपन के पल संग बिताने के
रुलाने के , हंसाने के
बीते लम्हों को याद दिलाने की
देती अहसास है ,राखी
किसी भाई को दर्द हो तो
बहन के अश्रु ढुल जाये
किसी को चोट पहुंचे तो
दर्द मिल कर के सह जाये
किसी खोये हुए बचपन की एक मनुहार है राखी .
कच्चे सूत की है , टूटे नहीं टूटती
मैं कहीं भी हूँ ,पर याद नैहर की
मेरे दिल में रही पलती
मेरे बचपन की तस्वीर की
अजब विस्तार है राखी .
बहनों की हथेली ने
अंजुरी भर समेटे हैं
यह भाई बहन के रिश्ते हैं...
यादों की पंखुड़ी ले कर जीते हैं
इन्हीं यादों को संजोने
हर वर्ष लाती है ,सौगात ये राखी .
मंजुल भटनागर
मुंबई .
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देवेन्द्र कुमार पाठक
गीत
सुन जरा ये आहटें
सुन जरा ये आहटें संभावनाओं की.
पथ बहुत दुर्गम तेरा पर सतत् गतिमय पाँव भी,
है प्रखर दुपहर मगर मिलती है शीतल छाँव भी;
राह तेरी देखती आँखें दिशाओं की.
माथ अपना ठोंकता क्यों इस तरह थक-हार कर तू,
है अभी यात्रा अधूरी बैठ मत मन मारकर तू;
थाम कर तू बाँह बढ़ प्रतिकूलताओं की.
रौशनी के बीज मुट्ठी में अँधेरा है छुपाये,
'हार' को भी जीत कर गलहार सीने पर सजाये-
सीढ़ियाँ चढ़ती सफलता विफलताओं की.
है हवा बदली हुई, मौसम हुआ अनुकूल है;
शीर्ष-शिखरों पर सुशोभित रास्तों की धूल है.
ध्वस्त दीवारें पड़ी हैं वर्जनाओं की.
कर रहा स्वागत तेरा आगत, विगत पर सोच मत तू;
शुभ-अशुभ परिणाम की चिंता न कर,हो कर्म रत तू;
अब फल-फूलेगी धरती साधनाओं की.
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1315,साईंपुरम् कॉलोनी,रोशननगर,
पोस्ट साइंस कॉलेज डाकघर-कटनी,कटनी,
483501, (मध्यप्रदेश)
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अजय वर्मा
इतिहास
भूलना चाहता हूं इतिहास को
लिखा है जिसमें संघर्ष आदमी का आदमी से
भरा है नस्ल,लिंग और रंग के भेद से
पढ़ना नहीं चाहता अतीत के पन्नों को
लिखे हो जो घातों प्रतिघातों पर
भूलना चाहता हूं इतिहास को
देखना नहीं चाहता
रक्त में अपनों के
सनी तलवारों को
समझना नहीं चाहता
किसी की लालसा पर
हुई कुर्बानियों को
हिसाब रखना नहीं चाहता
अनदेखी सरहद की लड़ाइयों का
खोजना नहीं चाहता मिटे हुए अवशेषों को
जानना नहीं चाहता तलवार धर्म के सरदारों को
भूलना चाहता हूं इतिहास को
सबक नहीं लिया जिस इतिहास से
छोड़ नहीं सके,जाति वर्ग के भेदभाव को
समझ नहीं सके धर्म राजनीति के खेल को
त्यागा नहीं लोभ दमन की लिप्सा को
क्या मिलेगा याद रख ऐसे इतिहास को
भूलना चाहता हूं इतिहास को
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अजय अज्ञात
सदमात हिज़्रे यार के जब जब मचल गए
आँखों से अपने आप ही आँसू निकल गए
मुम्किन नहीं था वक़्त की ज़ुल्फ़ें संवारना
तक़दीर की बिसात के पासे बदल गए
क्या ख़ैर ख़्वाह आप से बेहतर भी है कोई
सब हादसात आप की ठोकर से टल गए
चूमा जो हाथ आप ने शफ़कत से एक दिन
हम भी किसी फ़क़ीर की सूरत बहल गए
पहुंचे नहीं क़दम कभी अपने मक़ाम पर
मंज़िल बदल गयी कभी रस्ते बदल गए
फरीदाबाद
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डॉ. रूपेश जैन 'राहत"
युवा समाज बदलते जा रहे हैं
दिन हो, रात हो अब युवा हिन्द के करते आराम नहीं
समाज बदल रहा है युवा, व्याकुलता का अब काम नहीं
भारत माता की वेदी पर निज प्राणों का उपहार लाये हैं
शक्ति भुजा में, ज्ञान गौरव जगाने भारत के युवा आये हैं
नित नए प्रयासों से समाज को आगे ले जा रहे है
देखो युवा क्या क्या नये उद्यम ला रहे है
बिन्नी के साथ 'फ्लिपकार्ट' आया
देश में नया रोजगार लाया
कुणाल और रोहित की 'स्नैपडील'
कंस्यूमर को हो रहा गुड फील
देश की बेटियाँ कहाँ पीछे रहीं
राधिका की 'शॉप-क्लूज़' आ गयी
हुनर नहीं बर्बाद होता अब तहखानों में
जीवन रागनियाँ मचल रही नव-गानों में
समझ चुके हैं बिना प्रयास पुरुषार्थ क्षय है
आगे बढ़ चले अब, भारत माता की जय है
तप्त मरु को हरित कर देने की आस लगाये हैं
युवा सुख-सुविधाओं की नए परम्परा लाये है
भाविश का 'ओला' समय से घर पहुँचता
शशांक का 'प्रैक्टो' डॉक्टर से मिलवाता
दीपिंदर का 'जोमाटो' खाना खिलवाता
समर का 'जुगनू' ऑटोरिक्शा दिलवाता
विजय का 'पेटीऍम' ट्रांजेक्शन की जान
सौरभ, अलबिंदर का 'ग्रोफर्स' खरीदारों की शान
शिरीष आपटे की जल प्रणाली देश के काम आ रही
बीएस मुकुंद की 'रीन्यूइट' सस्ते कंप्यूटर बना रही
बिनालक्ष्मी नेप्रम 'वुमेन गन सर्वाइवर नेटवर्क' चला रहीं
सची सिंह रेलवे स्टेशन पर लावारिसों को राह दिखा रहीं
प्रीति गाँधी की मोबाइल लाइब्रेरी सबको ज्ञान बाँट रही
डॉ. बोडवाला की 'वन-चाइल्ड-वन-लाइट' जीवन में जान डाल रही
जादव पायेंग “फॉरेस्ट मॅन ऑफ इंडिया” जूझा अकेला
आज १३६० एकड़ में ‘मोलाई’ का जंगल फैला
तरक्की की कलम से भाग्य लिखते जा रहे हैं
नव पथ पर निशाँ बनते जा रहे हैं
नित नए नाम जुड़ते जा रहे हैं
युवा समाज बदलते जा रहे हैं
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इंसाँ झूठे होते हैं
इंसाँ का दर्द झूठा नहीं होता
इन होंठों पर भी हंसी होती
गर अपना कोई रूठा नहीं होता।
मैं जानता हूं कि
आंखों में बसे रुख़ को
मिटाया नहीं जाता,
यादों में समाये अपनों को
भुलाया नहीं जाता।
रह-रहकर याद आती है अपनों की
ये ग़म छुपाया नहीं जाता,
सपनों में डूबी पलकों की कतारों को
यूं उठाया नहीं जाता।
इंसाँ झूठे होते हैं
इंसाँ का दर्द झूठा नहीं होता
इन होंठों पर भी हंसी होती
गर अपना कोई रूठा नहीं होता।
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बूढ़े दरख़्त
बूढ़े दरख़्त पहले से ज़्यादा हवादार हो गये
इश्क़ में हम पहले से ज़्यादा वफ़ादार हो गये
उनसे दिल की बात कहने का हुनर सीख लिया
लब-ए-इज़हार पहले से ज़्यादा असरदार हो गये
मालूँम चला मिटटी की दीवार से होते हैं रिश्ते
बाख़ुदा हम पहले से ज़्यादा ज़िम्मेदार हो गये
बोझ हल्का हुआ दीदा-ए-नम में ख़ुशी जो आयी
झूठो-फ़रेब से पहले से ज़्यादा ख़बरदार हो गये
जबसे उजालों के भरम में जीना हमने छोड़ दिया
बक़ौल 'राहत' हम पहले से ज़्यादा ख़ुद्दार हो गये
00000000000000
सुशील शर्मा
भारत रत्न अटल
अटल मौन देखो हुआ,सन्नाटा सब ओर।
अंतिम यात्रा पर चले,भारत रत्न किशोर।
भारत का सौभाग्य है,मिला रत्न अनमोल।
अटल अमित अविचल सदा,शब्द शलाका बोल।
राजनीति में संत थे,राष्ट्रवाद सिरमौर।
शुचिता से जीवन जिया,बंद हुआ अब शोर।
धूमकेतु साहित्य के,राजनीति के संत।
अटल अचल अविराम थे, मेधा अमित अनंत।
देशप्रेम पहले रहा,बाकी उसके बाद।
जीवन को आहूत कर,किया देश आबाद।
वर्तमान परिपेक्ष्य में,प्रासंगिक है सोच।
राजनीति के आचरण,रहे न मन में मोच।
अंतर व्यथा को चीरकर,कविता लिखी अनेक।
संघर्षों संग रार कर ,संयम अटल विवेक।
अंतिम यात्रा पर चले, दे भारत को आधार।
भारत तेरा ऋणी है,हे श्रद्धा के अवतार।
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भज गोविन्दम
भज गोविन्दम राधे राधे
जीवन की नैया को साधे
भज गोविन्दम राधे राधे।
भज गोविन्दम राधे राधे।
जीवन रूप विषम अनुरूपा
सुख दुख कष्ट विपत्ति कूपा।।
कुछ पल हंसी आंसू पल दूजे।
प्रभु को जप प्रभु पद को पूजे।।
मोक्ष मिले जो उनको साधे।
भज गोविन्दम राधे राधे।।
भज गोविन्दम राधे राधे।
रिश्ते नाते सब क्षण भरके।
स्वार्थ निहित सब बातें करते।
सुख में सब साथी बन जाते।
दुख में कोई पास न आते।
भज ले प्रभु को मन में साधे।
भज गोविन्दम राधे राधे।
भज गोविन्दम राधे राधे।
बचपन के सुख बीत गए अब।
यौवन सुख में रीत गए सब।
माया मोह में उम्र गुज़ारी।
मृत्यु कहे अब तेरी बारी।
चरण पकड़ अब प्रभु को साधे
भज गोविन्दम राधे राधे।
भज गोविन्दम राधे राधे।
मात पिता से तन ये पाया।
कभी न उनको शीश झुकाया।
गुरु के ज्ञान को व्यर्थ गंवाया।
अंत समय अब मन घबड़ाया।
मन को अब प्रभु चरनन बांधे
भज गोविन्दम राधे राधे।
भज गोविन्दम राधे राधे।
अंत समय जब आया भाई।
संग न रिश्ते न धन न कमाई।
छोड़ छाड़ दुनिया का मेला।
हंसा चला है निपट अकेला।
पुण्य पाप सब गठरी बांधे।
भज गोविन्दम राधे राधे।
भज गोविन्दम राधे राधे
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नमामि शम्भो
शिव लिंगरूप बहिरंग हैं ,नमामि शम्भो।
शिव ध्यानरूप अंतरंग हैं ,नमामि शम्भो।
शिव तत्व ज्ञान स्वरुप हैं ,नमामि शम्भो।
शिव भक्ति के मूर्तरूप हैं ,नमामि शम्भो।
शिव ब्रम्ह्नाद के आधार हैं, नमामि शम्भो।
शिव शुद्ध पूर्ण विचार हैं ,नमामि शम्भो।
शिव अखंड आदि अनामय हैं, नमामि शम्भो।
शिव कल्प भाव कलामय हैं, नमामि शम्भो।
शिव आकाशमय निराकार हैं, नमामि शम्भो।
शिव अभिवर्द्ध व्यापक साकार हैं, नमामि शम्भो।
शिव शून्य का भी शून्य हैं, नमामि शम्भो।
शिव सूक्ष्म से भी न्यून हैं ,नमामि शम्भो।
शिव सरल से भी सरलतम हैं, नमामि शम्भो।
शिव ज्ञान से भी गूढ़तम हैं, नमामि शम्भो।
शिव काल से भी भयंकर हैं, नमामि शम्भो।
शिव शक्ति से अभ्यंकर हैं ,नमामि शम्भो।
शिव मरू की जलधार हैं ,नमामि शम्भो।
शिव सागर से अपार हैं, नमामि शम्भो।
शिव निर्विकल्प निर्भय हैं ,नमामि शम्भो।
शिव पुरुषरूप अभय हैं ,नमामि शम्भो।
शिव मृत्यु को जीते हैं ,नमामि शम्भो।
शिव विषम विष पीते हैं ,नमामि शम्भो।
शिव दिगम्बरा नीलाम्बरा हैं, नमामि शम्भो।
शिव मुक्तिधरा पार्वतीवरा हैं, नमामि शम्भो।
शिव शुक्लांबरा अर्धनारीश्वरा हैं, नमामि शम्भो।
शिव विश्वेश्वरा शशिशेखर धरा हैं, नमामि शम्भो।
शिव गौरीवरा कालांतरा है, नमामि शम्भो।
शिव गंगाधरा आनंदवरा हैं, नमामि शम्भो।
शिव शक्ति के अनवरत पुंज हैं, नमामि शम्भो।
शिव परमानन्द निकुंज हैं ,नमामि शम्भो।
शिव दलित अपंगों के पालक हैं, नमामि शम्भो।
शिव अपमान , दुखों के घालक हैं, नमामि शम्भो।
शिव दींन दुखियों के इष्ट हैं, नमामि शम्भो।
शिव सौम्य सात्विक परिशिष्ट हैं, नमामि शम्भो।
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अभिषेक शुक्ला "सीतापुर"
अटल "अटल जी
अटल मार्ग पर चलने वाले "अटल जी" तुम चल दिये,
भारत रत्न इस धरा को तुम सूना करके चल दिये।
ज्ञानदीप को निज रचनाओं से प्रज्ज्वलित कर तुम चल दिये,
राजनीति के मर्मज्ञ नये आयाम गढ़ तुम चल दिये।
ऊर्जावान,प्रभावशाली तुम स्वाभिमान की ज्वलंत चिन्गारी,
मृत्यु अटल सत्य है इस लोक में आज तेरी कल उसकी बारी ।
रार नहीं ठानूगाँ हार नहीं मानूँगा कहते थे तुम ये व्रतधारी,
सरल मुस्कान बिखेरी तुमने चाहे संकट हुआ चाहे कितना भारी।
आपके अटल इरादों को "अटल जी" काल भी न डिगा सका,
अटल मृत्यु का शाश्वत सत्य भी न आपके नाम को मिटा सका।
आपको इस पावन धरा का जन जन वन्दन करता है।
स्तब्ध निशब्द अभिषेक आपको शत शत प्रणाम करता है।
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डॉ. नन्द लाल भारती
बाबू
सफल होना बस दाल रोटी और
एक घर का इंतजाम भर नहीं
औरों को खुश रखना
बड़ा नपना है बाबू............
औरों के नपने पर खुद टूट जाये
बिखर जाये किसे परवाह
कसूरवार है क्योंकि
औरों के नपने पर खरे
नहीं उतरे बाबू..............
टूटते रहे जुड़ते रहे
आंसुओं को दवा की तरह पीते रहे
रचते रहे स्वर्णिम सपना
सपनों के किरदार जमा सके पांव
टूटने की चटक को नहीं सुना कोई
अपनों ने घोषित कर दिया सौतेला बाबू .....
कलेजे का छेद मुंह तक आ जाता है
साझा किससे करोगे
बीमार घरवाली या खटिया पर पड़े
सांसे गिन रहे बूढे बाप
वनवास दंश झेलता जीवन
जानता हूँ बहुत मुश्किल मे हो बाबू......
कर दिया जीवन खाक
सजा दिया नसीबें
ढोते रहे दर्द अपनों के सपनों के लिए
हुए कामयाब, श्रम की शिनाख्त है
सौतेलेपन का उपहार क्या मिला
हिल गई दिमाग की एक एक नस बाबू.....
मदहोशी मे अपने का बेगानापन
छिनता रहता है लम्हे लम्हे
नेकी नहीं बेकार जाती चाहे
अपनों के संग हो परायों के
जीवन का शेष हंस कर जी लो बाबू......
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सतीश कुमार यदु
रोज की तरह अल सुबह आज भी निकला सैर में पर आज सैर में साथ थी छतरी रानी, जारी जो थी जल वृष्टि , वितान की दरकार तो थी ही .......
छत्रप हो या छतरी, इनकी नहीं है सानी
सुख दुःख की है, ए सखी छतरी रानी
छतरी रानी
आओ बच्चों तुम्हें सुनाएं ,
बढ़िया एक कहानी !
कान खोल कर सुनलो,
भैया कर लो याद जुबानी !!
छतरी - रानी, छतरी रानी,
वह तो होती बड़ी सयानी !
कभी न करती आना कानी,
रंग - बिरंगी छतरी रानी !!
पीली,हरी,लाल, गुलाबी और कुछ तो होती धानी,
ममता की आँचल फैलाती अपनी जानी-पहचानी !
चल न पाती बरखा रानी की मनमानी,
कभी न होते हम पानी-पानी !!
छतरी - रानी, छतरी रानी
आओ बच्चों तुम्हें सुनाएं ----
सूरज भैया की नादानी ,
देखो-देखो उनकी शैतानी !
जब-जब उसने भृकुटी तानी,
जन जन को पिलाती 'पानी' !!
बारिश या तेज धुप की होती आनी जानी,
दूभर होती जब जब जिंदगानी !!
तब सबको याद आती अपनी नानी !
छतरी - रानी, छतरी रानी !!
जग में नहीं है कोई सानी.
स्नेहिल शीतल छायादानी !
सूरज भैया को कर देती 'पानी-पानी',
छतरी - रानी, छतरी रानी !!
आओ बच्चों तुम्हें सुनाएं ----
हम सबकी है जानी पहचानी,
दूर करती ये सबकी परेशानी !
नहीं तो सबको पड़ती मुंहकी खानी,
कभी न होती है अब हैरानी !!
राज धर्म निभाने की जब-जब ठानी,
छत्र प्रदत्त कर छत्रप बनाती जगजानी !!
जब तक है जीवन में "पानी",
यश गान करेंगे तेरे हम छतरी – रानी !
छतरी - रानी, छतरी रानी
आओ बच्चों तुम्हें सुनाएं ----
सतीश कुमार यदु व्याख्याता
कवर्धा (कबीरधाम)
छत्तीसगढ़ 491-995
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सुनीता असीम
तन से मन का बस ये ....कहना।
फिर फिर जीना फिर फिर मरना।
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उसको देखो दुख मत ...... देना।
जिससे तुमने सीखा ......सहना।
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इन आँखों के आँसू....... पोंछो।
मौत रही है मेरा........ गहना।
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जब जाऊँ जग से मैं सुन लो।
आँखों से कहना मत बहना।
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आज यही सच जीवन का बस।
आता जो है उसको ......जाना।
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आना सिर्फ सफल है ..उसका।
जिसने सीखा सपने...गढ़ना।
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चलता जीवन चक्र... हमेशा।
आज गया तो कल है आना।
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चाह नहीं वापस आऊँ ...मैं।
ढेर लगा हडडी क्या करना।
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आते जाते सुख दुख सहते।
इससे अच्छा है बस तरना।
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धर्मेन्द्र अरोड़ा
⚡️⚡️ सावन⚡️⚡️
(1)
मोहक सावन कर रहा, बरखा की बौछार!
भूलो सारी नफरतें, दिल में भर लो प्यार!!
(2)
सावन का मौसम सदा, होता बड़ा हसीन!
लगती है इस मास में, कुदरत भी रंगीन!!
(3)
सावन में आते यहां, कितने ही त्योहार!
झूमें सब नर नारियां, सजता है संसार!!
(4)
भाईचारा सब रखो, सावन दे संदेश!
कितना फिर सुंदर लगे, मेरा भारत देश!!
(5)
मिलजुल कर सारे रहो, मत करना तकरार!
सावन में होती सदा, खुशियों की भरमार!!
(6)
जीवन जो हमको मिला, ईश्वर की सौगात!
आया सावन मास है, लिए मधुर हर बात!!
(7)
मनवा जाए डोलता, नाचे हर इंसान!
सावन में कांवर करे, भोले का गुणगान!!
धर्मेन्द्र अरोड़ा
"मुसाफ़िर पानीपती"
*सर्वाधिकार सुरक्षित*©®
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कमल किशोर वर्मा
काश पिया ....
काश पिया तुम पास में होते
इस बरखा के मौसम में
विरही मन को बात कचोटे
इस बरखा के मौसम में
शाख शाख नव पल्लव फूले
इस बरखा के मौसम में
पल्लव पल्लव झूम उठा है
इस बरखा के मौसम में
ठण्डा पवन जला दे तनमन
इस बरखा के मौसम में
कैसी अगन समझ ना पाऊँ
इस बरखा के मौसम में
सूरज को बादल का ढँकना
इस बरखा के मौसम में
मन को कंपित कर कर देता
इस बरखा के मौसम में
घनी अंधेरी काली रातें
इस बरखा के मौसम में
रह रह कर बिजली का कौंधना
इस बरखा के मौसम में
झींगुर मेंढक की आवाजें
इस बरखा के मौसम में
कर देती भयभीत मुझे है
इस बरखा के मौसम में
गड़गड़ शोर बादलों का
इस बरखा के मौसम में
कर देता मदहोश मुझे है
इस बरखा के मौसम में
मन में एक हूक सी उठती
इस बरखा के मौसम में
भय से कांप-कांप मैं जाऊँ
इस बरखा के मौसम में
पिया बने काहे परदेशी
इस बरखा के मौसम में
सखी सहेली हंसी उड़ावे
इस बरखा के मौसम में
क्यों न आए साजन तेरे
इस बरखा के मौसम में
बार बार मै राह निहारूँ
इस बरखा के मौसम में
ना तुम आए ना खत आया
इस बरखा के मौसम में
ऐसी क्या मजबूरी बलमा
इस बरखा के मौसम में
छोड़ नौकरी घर आ जाओ
इस बरखा के मौसम में
कमल किशोर वर्मा कन्नौद जिला देवास
0000000000000
गीता द्विवेदी
मीरा फिर से आयेगी
******************
ये तुम्हें पता है मोहन ,
कि मीरा फिर से आयेगी ,
हो विकल दीन वाणी से ,
तुम्हें दिन रात बुलायेगी ।
अबकी नाम नया होगा ,
जो तुमसे ही जुड़ा होगा ,
तुम्हारे ही वचनों का ,
सार उसमें छिपा होगा ,
उसी नाम से दुनिया उसे ,
इस बार बुलायेगी ।
ये तुम्हें.................।।
जन्म जन्म से तुम उसके ,
आराध्य हो ये सब जानें,
प्रेम की पावन पूजा से ,
दूरी कब उसका मन माने,
सोयी थी वो कंदूक सेज पर ,
तो फिर से सो जायेगी ।
ये तुम्हें..................।।
समय के पहिले पर सृष्टि ,
चलती है चलती रहेगी ,
हर युग में मीरा आती है ,
और सदा आती रहेगी ,
इस युग में भी उसकी भक्ति,
न भुलायी जायेगी ।
ये तुम्हें ..................।
---------------****------------
देखो न जलते दीये
****************
देखो न जलते कितने प्यारे,
और कितने सच्चे लगते है ,
जलते दीये अक्सर ,
कतारों में अच्छे लगते है ।
कोई आगे है कोई पीछे ,
इससे फर्क क्या पड़ता है ,
झिलमिलाते तो है साथ ,
साथ ही तम निगलते है ।
तेल भरते रहो उनमें ,
जब तक सबेरा न हो ,
वैसे ये देवल में ,
दिन में भी खुब निखरते हैं ।
मिट्टी का रंग कौन सा ,
किसने इन्हें आकार दिया ,
है इसकी फिक्र किसको ,
सब " लौ " का जतन करते हैं ।
सदियाँ ,शाल ,दिन बीते,
साथ सदा निभाया ,,
देहरी रोशन करने से ,
कब कहाँ मुकरते हैं ।
------------*****--------
श्रीमती गीता द्विवेदी (शिक्षिका)
प्रा.शा. उधेनुपारा , ग्राम - करजी,
जनपद - राजपुर ,जिला - बलरामपुर
(छतीसगढ़)
Email geetadwivedi1973@gmail.com
000000000000000
संजय कर्णवाल
जागा है अरमान कोई दिल में।
आई हैं मुसकान कोई दिल में।।
यूँ चला सिल सिला ऐतबार का।
बसता है इनसान कोई दिल में।।
देखा है जमाने में लोगों को।
बसती है बस जान कोई दिल में।।
टूटते जुड़ते रिश्तों को बनाके।
फिर से बना दो पहचान कोई दिल में।।
सारे नजारे लगते हैं सच में पयारे।
फिर भी हैं हैरान कोई दिल में।।
00000000000000
सुधा शर्मा
चलो आओ सखि उस पार चले,
सावन की छटा बुलाए।
रिमझिम बरसे मेघा
मन बहका बहका जाए।।
अम्बुआ की डाल पे कोयल
मीठा राग सुनाय,
दादुर,मोर पपीहा
कोई वाद्य यन्त्र बजाए।
मन करता है बगियन में
अब झूला ले डलवाए ।।
पिया परदेश गए है
ये सोच के मैं घबराऊँ,
जाने कब आना होगा
मन ही मन मैं डर जाऊँ।
उनके आने की टोह में
कहीं सावन ना ढल जाए ।।
काले-काले मेघा
अम्बर पर घिर-घिर आए,
घटा ने जूडा खोला
सखि पानी टपका जाए।
पेंग बढा नभ छू लू
सखि जियरा रहा ललचाय ।।
00000000000000
बख्त्यार अहमद खान
वोह
ये ठहरे लम्हों की सरगोशियां
ये तनहाईयां और ये दूरियाँ
याद आ रही हैं वो नज़दीकियाँ
ये शाम गुमसुम उदास सी है
ये कैसी अनबुझ प्यास सी है
क्यों मेरे लबों पे आह सी है
मेरे जिगर के आईने में
ये कौन उभरा है अक्स बनकर
मेरी नज़र की पलक पलक पर
ये कौन ठहरा है अश्क़ बन कर
ये उस के लब की नाजुकी है
या कोई पत्ती गुलाब की है
ये किसके दम से फिज़ाएँ महकीं
कली कली हर तरफ खिली है
ये किसके ख़्वाबों की अंजुमन है
की खुली नज़र जिन्हें देखती है
ये किसके ज़ख्म हैं इतने प्यारे
की हर एक धड़कन सहेजती है
की आह है मेरे लब पे या यह
कोई हसरत निकल रही है
किसी की यादों की आग है जो
मेरे जिगर में सुलग रही है
वहाँ वजूदों की भीड़ में वोह
किस का चेहरा जुदा जुदा है
वोह कौन अब तक हमारी खातिर
रहे गुज़र पर रुका हुआ है.
----
74- रानी बाग ,शम्साबाद रोड,आगरा -282001
Mail-ba5363@gmail.com
0000000000000
बीरेन्द्र सिंह अठवाल
-एक संदेश युवाओं के नाम
कहते हैं कि बददुआ तेजाब बनकर जला देती है,गुनाहों के दरख्त को।
इंसान क्या भगवान भी माफ नहीं करता,दुष्कर्म जैसी हरकत को।
अश्क लहू बनकर बहते हैं,बेटियों की आंखों से दिन रात।
माफी के काबिल नहीं,दुष्कर्म जैसा अपराध।
दुष्कर्म की ये गलती-अ-दोस्तों,बना देती है आंसुओं का तालाब।
हासिल सच्चे दिल से किया जाता है सब कुछ,कुचलने के लिए नहीं होते गुलाब।
ये दुष्कर्म का खौफ एक दिन, मजबूर कर देगा बेटियों को,रहने के लिए चार दीवारी के भीतर।
बुरी सोच हमारी,बदनाम कर देती है बेटियों का चरित्र।
इस आजाद वतन में,बेटियों की इज्ज़त क्यों आजाद नहीं।
बुरी आदत छोड़ दोगे अगर,होगा कोई विवाद नहीं।
बेटी जब घर से निकलती है अकेली।
मां-बाप का दिल धड़कता है,वो बेटी अपनी हो य सौतेली।
आजादी से जीने का,बेटियों को भी हक है।
बिन शिक्षा के जिंदगी ,बेटियों की नरक है।
सलाम हम करते हैं उन बेटियों को,जिसने जमाने में ऊंचा नाम किया।
हजारों मुश्किलों को सहकर,हासिल सच्चा मुकाम किया।
फूलों की बरसात होती है,उनके माता-पिता की राहों में।
जो सच्चे सपने सजाते हैं,बेटियों की निगाहों में।
कामयाबी बचकर जाएगी कहां,वो एक दिन बुला लेती है अपनी पनाहों में।
बुरी सोच हर इंसान को बदलनी पढ़ेगी,नफरत के सिवाय कुछ नहीं गुनाहों में।
हमारी छेड़खानी-अ-दोस्तों,बन जाती है तमाशा।
किसी का चरित्र बदनाम,कर देती है अच्छा खासा।
गुनाहों की दलदल में अक्सर,कांटे ही मिलते हैं।
जुर्म के हिस्से किसी संग, बांटे नहीं जाते हैं।
वक़्त हर किसी को मौका देता है,अच्छे कर्म करने का।
कोई प्रयास ना करें यारों,दुष्कर्म करने का।
कुछ करना है तो ,वतन के लिए कर के जाओ।
हर बुराई को कह दो अलविदा,बस वतन के लिए मर के जाओ।
Birendar singh athwal
जिला jind -hriyana
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शिव कुमार
भ्रष्टाचार
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नहीं सुना था पहले कोई भ्रष्टाचार का दोषी,
अपना देश हो या कोई विदेशों का पडो़सी।
धीरे धीरे भ्रष्टाचार ने अपनी बांह पसारी,
अफसर से नेता तक सब बन गये पुजारी।
शुरु हो गया भ्रष्टाचार का जोरों से फिर धन्धा,
नेता लोग लगे लेने फिर उद्योगपतियों से चन्दा।
इतने से भरा न पेट तो करने लगे घोटाला,
अपने देश के पैसे को विदेशी बैंक में डाला।
देश की देख गरीबी की नेता ने ये कर डाला,
लक्ष्मण रेखा की तरह गरीबी रेखा बना डाला।
बस अन्तर केवल इतना था, वो दुष्टों की ये इष्टों की।
वो अन्दर जाने से रोके, ये ऊपर जाने से टोके।
पिछली सरकार ने भ्रटाचार बढाई, नयी ने हटानी है,
काले धन वापस लाने की, आपने मन में ठानी है।
कहती जनता भ्रष्टाचारों से, मुझे इतना न सताओ,
अब चैन से रहने दो मेरे पास न आओ।
शिव कुमार
इलाहाबाद
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सार्थक देवांगन
हिमालय
इतनी ऊंची उसकी चोटी
यह धरती का ताज है ।
नदियों को वह जन्म है देता
इंसानों को सुख देता है
इसकी छाया में जो आता
वह सदैव है मुस्काता ।
गिरिराज हिमालय से
भारत का ऐसा नाता है
अमर हिमालय धरती पर से
भारतवासी अनिवासी
गंगाजल जो पिले मन से
वह दुख में भी मुस्काता है
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प्रिया देवांगन "प्रियू"
किशन कन्हैया
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किशन कन्हैया मुरली बजैया , सब के मन को भाये ।
गोपियों संग घूम घूम के, दही और मक्खन खाये।
रास रचैया किशन कन्हैया, सबको बहुत नचाये ।
सब लोगों के दिलों में बसे , सबको खुश कर जाये ।
मुरली की आवाज सुनाकर, मन को शांत कराये ।
गायों के संग घूम घूम कर , ग्वाला वह कहलाये।
गोपियों को छेड़े कन्हैया , सबको खूब तरसाये।
नटखट कन्हैया बंशी बजैया , माखनचोर कहलाये ।
सब कष्टों को दूर करे वह , संकट हरण कहलाये ।
राधा के संग नाचे कन्हैया , संग में रास रचाये ।
कदम्ब पेड़ पर बैठ कन्हैया , मुरली मधुर बजाये
खेल खेल में किशन कन्हैया , राक्षसों को मार गिराये ।
लोगों के रक्षा खातिर , गोवर्धन को उठाये ।
इन्द्र देव के कोप से, सबका जीवन बचाये ।
प्रिया देवांगन "प्रियू"
गोपीबंद पारा पंडरिया
जिला -- कबीरधाम
छत्तीसगढ़
priyadewangan1997@gmail.com
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