पुस्तक समीक्षा रमेश कुमार सोनी / ‘पेड़ बुलाते मेघ’- हाइकु संग्रह / सर्व प्रिय प्रकाशक, दिल्ली / दो हज़ार अठारह / पृष्ठ एक सौ / मूल्य रु. तीन स...
पुस्तक समीक्षा
रमेश कुमार सोनी / ‘पेड़ बुलाते मेघ’- हाइकु संग्रह /
सर्व प्रिय प्रकाशक, दिल्ली / दो हज़ार अठारह /
पृष्ठ एक सौ / मूल्य रु. तीन सौ दस केवल।
साक्षर है दुनिया
डा. सुरेन्द्र वर्मा
हिन्दी में ही नहीं, अब पूरे भारत के साहित्यिक जगत में हाइकु लेखन ने अपनी जगह बना ली है। हिन्दी में तो हाइकु खूब ही रचे जा रहे हैं। हाइकु कविता की ही एक विधा है, और क्योंकि यह एक काव्य विधा है, हर हाइकु रचना में कम से कम एक कविता तो मिलना ही चाहिए। आजकल हिन्दी में जो हाइकु लिखे जा रहे हैं वे शिल्प की दृष्टि से तो लगभग सही ही रहते हैं- जैसे हाइकु की तीन पंक्तियों में पांच – सात – पांच अक्षरों का क्रम और पंक्तियों की स्वायत्तता ताकि वे किसी एक ही वाक्य का हिस्सा न लगें, इत्यादि। शुरू शुरू में हाइकु की इन शर्तों से अधिकतर लोग जो हाइकु लिखना आरम्भ करते थे, अनभिज्ञ थे किन्तु अब तो इस सन्दर्भ में कहा जा सकता है ‘साक्षर है दुनिया”। पर आज भी अधिकतर रचनाओं में काव्यात्मक गुण की कमी रहती है और इसके अभाव में तथाकथित हाइकु रचना एक कविता बन ही नहीं पाती। पारितोष चक्रवर्ती ने “पेड़ बुलाते मेघ” के फ्लैप पर पुस्तक का एक हाइकु उद्धृत किया है और इसके बारे में कहा है कि यह एक हाइकु ही पूरी कविता का आस्वाद दे जाता है –
भूख की भाषा
साक्षर है दुनिया
इसी ने ठगा
कहने में कोई हिचक नहीं होना चाहिए कि ‘पेड़ बुलाते मेघ’ संग्रह का कोई भी हाइकु काव्य-गुण से रिक्त नहीं हैं।
परम्परागत रूप से हाइकु काव्य सामान्यत: प्रकृति के आसपास की मंडराता रहा है। डा. सुधा गुप्ता ने ‘पेड़ बुलाते मेघ’ की भूमिका में इस हाइकु संग्रह को “प्रकृति के सौन्दर्य की चित्रशाला” कहा है और इसमें कोई संदेह नहीं कि इस संकलन में कुछ प्रकृति विषयक हाइकु बहुत ही अच्छे बन पड़े हैं। वट वृक्ष काफी बड़ा और ऊँचा होता है। उसकी जड़ें धरती के अन्दर तो होती हैं, किन्तु वे पेड़ से निकल कर नीचे की ओर हवा में लहराती भी दिखाई देती हैं। क्या कभी आपने सोचा कि ऐसा क्यों होता है ? इसका एक काव्यात्मक उत्तर सोनी जी अपने एक हाइकु में देते हैं। ऐसा इसलिए है कि ऊंचे हवा में लहराते पेड़ और उसकी जड़ों को धरती अपनी तरफ बुलाती है। आप कितना भी ऊंचे क्यों न उठ जाएं, पैर तो आपके धरती पर टिके ही रहना चाहिए।
वट की जड़ें / हवा लटकी रोंती / धरा बुलाती
पतझड़ के मौसम में पेड़ों के पत्ते झड जाते हैं। और पत्र-रहित पेड़ पर चिड़ियाँ भी नहीं आतीं। लेकिन इस तरह अकेले पड़ गए नंगे पेड़ का दुःख बसंत से देखा नहीं जाता। ऋतुओं का राजा है वसंत। वह दिगंबर पौंधों को लिबास देता है –
पेड़ अकेले / पतझड़ का श्राप / पक्षी न पत्ते
लिबास देता / दिगंबर पौधों को / बसंत राजा
प्रकृति की अदना से अदना चीज़ भी विपरीत परिस्थितियों में भी बड़े आत्मविश्वास और ठसके से जीती है। गिलहरी और परिंदों जैसे नन्हे नन्हें जीवों के लिए भी प्रकृति खेल का मैदान बन जाता है। रमेश कुमार जी कहते हैं –
खीरा ककड़ी / धूप को ठेंगा दिखा / रेत में खड़ी
फुगडी खेलें / गिलहरी परिंदे / पेड़ गिनते
प्रात:काल हो या सांझ की वेला, हर प्रहर का अपना सौन्दर्य है। उस सौन्दर्य को आत्मसात करते हुए कवि सूर्य का स्वागत करता है, और गोधूलि वेला का, दीप जलाने का अवसर प्रदान करने के लिए आभार प्रकट कहता है --
‘सूर्य रथ ले / उषा रानी निकली / दिशाएँ जागी’।
‘स्वागत भोर / तृणों ने सजा लिए / मोती के थाल’।
गोधूली वेला / साँझ रँभाने आई / दीप जलाने
संध्या गोधूलि / दीप लिए घूमती / ऋचाएँ गूंजी
कुछ अन्य रचनाओं में सोनी जी ने साँझ और सवेरे के सौन्दर्य का एक अच्छा-खासा तुलनात्मक तथा काव्य-सुलभ विवरण भी दिया है –
भोर चहकी / दिन रात का मेल / सांझ महकी
साँझ सवेरे / मिलना बिछुड़ना / ध्रुव साक्षी है
शर्माती भोर / कुनमुनाती उठी / सांझ उबासी –
वसंत और वर्षा ऋतुएँ कवियों को प्राय: काव्य लिखने के लिए प्रेरित करती रही हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि सोनी जी को बरसात का मौसम विशेष प्रिय है, जब बादल ‘ढोल बजाते’ आते हैं और धरती की प्यास बुझाते हैं ताकि धरती में अन्न के दाने बोए जा सके –
मेघों की धुन / राग पहाडी गाते / ढोल बजाते
वर्षा बिछाती / धरा मन हर्षाती / हरा बागीचा
मेघों के मोती / धरा आँचल छिपे / दानो में दिखे
प्रेम एक शाश्वत भावना है। एक संवेदनशील कवि कभी न कभी प्रेम की भावना से ग्रस्त हुए बिना रह ही नहीं सकता। अपनी हाइकु रचनाओं में रमेश कुमार जी भी इसके अपवाद नहीं हैं। वैसे भी हाइकु जिस तरह मुख्यत: प्रकृति-काव्य है उसी तरह इसमे प्रेम की भावना भी खूब अभिव्यक्त हुई है। “पेड़ बुलाते मेघ” का कवि प्रेम को प्रकृति से जोड़ता है और कहता है, “फूल जो खिले / प्रणय नैवेद्य से / भौंरे गूँजे”।
इतना ही नहीं, प्यार के कुछ और नज़ारे भी देखिए –
पलकें झुकी / धूप से छाँव हुई / जादू नज़रें
पुरानी चिट्ठी / प्यार का शिला लेख / सुगंध ताज़ी
प्यार का मीन। दिल की नदी ढूँढे / भटके फिरे
“पेड़ बुलाते मेघ” एक ऐसा हाइकु संग्रह है जिसमे न केवल हाइकु की बुनावट का पूरा पूरा ध्यान रखा गया है बल्कि इसकी सभी रचनाएं काव्य गुण से भी परिपूर्ण हैं। मैं रमेश कुमार सोनी जी को इस सुन्दर, सार्थक और सम्प्रेषणीय कलाकृति के लिए बधाई देता हूँ। यह सचमुच हिन्दी के श्रेष्ठ हाइकु रचनाओं का एक गुलदस्ता है।
डा. सुरेन्द्र वर्मा –
दस एच आई जी / एक सर्कुअर रोड / इलाहाबाद
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