कहानी संग्रह - वे बहत्तर घंटे - आत्मकथ्य - राजेश माहेश्वरी

SHARE:

कहानी संग्रह वे बहत्तर घंटे राजेश माहेश्वरी मेरा यह प्रयास समर्पित है श्रृद्धेय श्री वेणुगोपाल जी बांगड़ को जिनकी पितृव्य स्नेह स्निग्ध छाया ...

image

कहानी संग्रह

वे बहत्तर घंटे

राजेश माहेश्वरी


मेरा यह प्रयास समर्पित है

श्रृद्धेय श्री वेणुगोपाल जी बांगड़ को

जिनकी पितृव्य स्नेह स्निग्ध छाया ने

प्रदान किया है

हर पल

संरक्षण और सम्बल

परिचय

राजेश माहेश्वरी का जन्म मध्यप्रदेश के जबलपुर शहर में 31 जुलाई 1954 को हुआ था। उनके द्वारा लिखित क्षितिज, जीवन कैसा हो व मंथन कविता संग्रह, रात के ग्यारह बजे एवं रात ग्यारह बजे के बाद ( उपन्यास ), परिवर्तन, वे बहत्तर घंटे, हम कैसे आगे बढ़ें एवं प्रेरणा पथ कहानी संग्रह तथा पथ उद्योग से संबंधित विषयों पर किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं।

वे परफेक्ट उद्योग समूह, साऊथ एवेन्यु मॉल एवं मल्टीप्लेक्स, सेठ मन्नूलाल जगन्नाथ दास चेरिटिबल हास्पिटल ट्रस्ट में डायरेक्टर हैं। आप जबलपुर चेम्बर ऑफ कामर्स एवं इंडस्ट्रीस् के पूर्व चेयरमेन एवं एलायंस क्लब इंटरनेशनल के अंतर्राष्ट्रीय संयोजक के पद पर भी रहे हैं।

आपने अमेरिका, चीन, जापान, जर्मनी, फ्रांस, इंग्लैंड, सिंगापुर, बेल्जियम, नीदरलैंड, स्विट्जरलैंड, हांगकांग आदि सहित विभिन्न देशों की यात्राएँ की हैं। वर्तमान में आपका पता 106 नयागांव हाऊसिंग सोसायटी, रामपुर, जबलपुर (म.प्र) है।

आत्म-कथ्य

एक उद्योगपति परिवार में जन्म लेने के कारण और एक उद्योगपति के रुप में जीवन व्यतीत करने के कारण मैंने एक उद्योगपति के जीवन में आने वाले उतार-चढ़ाव तथा एक उद्योग के संचालन में रास्ते में आने वाले पर्वतों और खाइयों को देखा और उन्हें पार किया है। जब मैं इक्कीस साल का था तभी मेरे पिता मुझे छोड़कर परलोक चले गये थे। उनकी संपत्ति के अतिरिक्त जीवन के संघर्ष में पिता से मिलने वाले मार्गदर्शन और ज्ञान से मैं वंचित रहा। मैं अनुभव करता हूँ कि यदि वह मुझे मिला होता तो जीवन में उतनी कठिनाइयाँ और उतना संघर्ष नहीं होता जितना मेरे सामने रहा।

मेरे मन में यह विचार निरन्तर आता रहा कि हमारी नयी पीढ़ी जो उद्योग के क्षेत्र में असीमित सपनों के साथ पदार्पण कर रही है अथवा इस दिशा में आगे बढ़ने का विचार रखती है उसे संसार के टेड़े-मेड़े रास्ते का जितना भी हो सके उतना परिचय अवश्य दूं।

सूर्योदय के साथ

प्रारम्भ हुआ मन्थन

जन्म और मृत्यु के

सत्य पर चिन्तन

दुनियां में सब होगा

लेकिन हम न रहेंगे

हमारे लिये तब

कितने आंसू बहेंगे

दस्तूर है जमाने का

रहनुमा होते हैं कम

किसी के बिछुड़ने से

कम को ही होता है गम

किसी की आंख से निकले

दो आंसू

जीवन को देंगे सार्थकता

फिर नया रुप लेगी

आत्मा की अमरता

तन तो है आत्मा का घर

सीमित है उसका सफर।

मेरी यह पुस्तक उसी प्रयास का हिस्सा है। जीवन की अनेक घटनाओं और अनुभवों को मैंने कल्पना से जोड़कर कहानी के रुप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। इसकी रचना में श्री अभय तिवारी, श्री राजीव गौतम, श्री के. कुमार, श्री प्रेम दुबे एवं श्री सतीश अवस्थी का भी मैं आभारी हूँ जिनके विचार-विमर्श से इसको पूरा करने में मुझे बहुत सहायता मिली है। आशा करता हूँ कि हमारे भविष्य को इससे अवश्य लाभ होगा।

जबलपुर राजेश माहेश्वरी

रामनवमी 106,नयागाँव हाउसिंग सोसायटी,

संवत 2071 जबलपुर, म. प्र.


अनुक्रमणिका

वे बहत्तर घण्टे

माँ

मित्रता

कलाकार

बटवारा

खण्डहर की दास्तान

पनघट

बारबाला

जय जवान जय किसान जय विज्ञान

यमराज और चित्रगुप्त

हमारा देश महान

नारद और महन्त

ऐसा भी हुआ

हृदय परिवर्तन

जिद

राम और विभीषण

कुलदीपक

मोक्ष

बुद्धिमान और बुद्धिहीन

आत्म निर्णय

प्रेम

चोर पुलिस

नेता जी और रक्तदान

जीवन दर्शन

नेता और खरबूजा

विदाई


वे बहत्तर घण्टे

गुजरात भीषण अकाल से पीड़ित था। हाहाकार मचा हुआ था। इन्सानों की जो दुर्दशा थी सो तो थी ही पशु-पक्षी और जानवर भी बेमौत मर रहे थे। फसलें सूख चुकी थीं। खेत दरक गये थे। इन्सानों के लिये अनाज की व्यवस्थाएं तो सरकार कर रही थी। सरकार के पास अनाज के भण्डार थे लेकिन जानवर विशेष रुप से गाय-भैंस आदि बेमौत मर रहे थे। कहीं भी चारा-भूसा दाना-पानी नहीं बचा था। इन्सानों को अपनी जान के लाले पड़े थे वे पशुओं के लिये चाहकर भी कुछ कर सकने में असमर्थ थे। केन्द्र सरकार ने गुजरात में चारा और भूसा भेजने के लिये रेल्वे की सुविधा निशुल्क कर दी थी। पूरे देश में लोग गुजरात की दुर्दशा को देख और समझ रहे थे। मदद भी कर रहे थे। लेकिन समस्या थी कि वहां के पशुधन के जीवन की रक्षा किस प्रकार की जाए।

मैंने सोचा- मेरा नगर संस्कारधानी कहलाता है। मेरे पितामह स्वर्गीय सेठ गोविन्ददास जी ने गौ रक्षा के लिये आन्दोलन किये। इस प्रयास में उनके तत्कालीन प्रधानमंत्री पण्डित जवाहरलाल नेहरु से भी कुछ मतभेद हो गए थे। मुझे भी गुजरात में अकाल मृत्यु को प्राप्त हो रही गायों के लिये कुछ करना चाहिए। मैंने निश्चय किया कि मैं एक रैक भरकर भूसा गुजरात भिजवाउंगा और इस प्रकार भिजवाउंगा कि और लोगों की संवेदनाएं इस दिशा में जागृत हों और वे भी इस दिशा में प्रयास करें। सबसे पहले मैं अपने काकाजी सेठ बालकृष्ण दास जी मालपाणी के पास गया और मैंने उन्हें अपना संकल्प बतलाया। वे बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने अपना आशीर्वाद देते हुए कहा कि ईश्वर करे तुम इस प्रयास में पूरी तरह सफल रहो। मेरा जो भी सहयोग तुम्हें चाहिए तुम ले सकते हो।

काकाजी का आशीर्वाद मिलने के बाद मैं सबसे पहले अपने लायन्स इण्डिया के मित्रों के पास गया और उनसे इस विषय पर चर्चा की। वे सभी इस कार्य में सहयोग देने के लिये तैयार हो गये। उसी दिन शाम को इस कार्य के लिये कार्य योजना पर विचार करने सभी एकत्र हुए। पहला विचार यह बना कि भूसा क्रय करके यहां से भिजवाया जाए। पता नहीं कौन सी ईश्वरीय प्रेरणा के कारण मैंने कहा कि भूसा क्रय करके नहीं वरन लोगों से सहयोग के रुप में प्राप्त करके भिजवाया जाए। मेरी बात से सभी लोग सहमत तो हो गए परन्तु इस कार्य का दायित्व भी मुझे ही सौंप दिया गया।

वहां से लौटकर मैं विचार करता रहा कि भूसा किस क्षेत्र से संग्रहित किया जाए। हमारे क्षेत्र में शहपुरा और पाटन क्षेत्र ऐसा क्षेत्र है जहां हमारे परिवार की खेती की जमीनें हैं जिन पर खेती होती है। यह बहुत उपजाऊ क्षेत्र है और यहां से आवश्यक मात्रा में भूसा प्राप्त हो सकता है। वहां के क्षेत्रीय विधायक ठाकुर सोबरन सिंह मेरे मित्र थें। वहां के किसानों से भी हमारे पारिवारिक संबंध थे। यह विचार आने के बाद दूसरे दिन सुबह ही मैं ठाकुर सोबरन सिंह से फोन पर बात करके उनके पास पहुँच गया।

मेरी सारी बातें सुनकर वे बोले कि आपका विचार तो बहुत अच्छा है। गौरक्षा तो हमारा कर्तव्य है। मैं आपको विचार करके जल्दी ही उत्तर दूंगा। मैं उनके पास से चला आया। मुझे लगा कि वे इस कार्य से बच रहे हैं। वहां से आकर मैं अन्य विकल्पों पर विचार करने लगा। इस बीच दो-तीन दिन का समय बिना किसी प्रगति के बीत गया। अचानक तीसरे दिन सोबरन सिंह जी का फोन आया। वे बोले-

आप मेरे पास जिस कार्य के लिये आये थे उसके विषय में आगे आपने क्या किया ? आप केवल बात ही करने आये थे या कुछ करना भी चाहते हैं ?

आपने कहा था कि आप विचार करके बतलाएंगे। मैं आपके उत्तर की प्रतीक्षा कर रहा था।

मैं तो हमेशा आपके साथ हूँ। बतलाइये आगे मुझे क्या करना है और आप क्या कर रहे हैं?

इसकी योजना तो आपके साथ बैठकर ही बनाना है। लायन्स इण्डिया परिवार में इस विषय पर चर्चा हुई थी। वहां सभी लोग सहयोग कर रहे हैं। हमें जनसहयोग से भूसा एकत्र कर उसे भेजना है। भूसे की ढुलाई और लदाई में होने वाला सारा व्यय लायन्स इण्डिया परिवार की ओर से वहन किया जाएगा।

आप समय निकालकर आ जाइये तो हम काम प्रारम्भ कर दें। तब तक मैं यहां के अन्य किसानों आदि से भी इस विषय पर चर्चा कर लेता हूँ।

अगली मुलाकात में यह तय हो गया कि गरमी का मौसम देखते हुए दिन में संपर्क करना संभव नहीं हो पाएगा। इसलिये रात के समय हम किसानों से संपर्क करेंगे। यह काम अगले दस दिन में पूरा करना था। इसलिये उसी दिन शाम से काम प्रारम्भ कर दिया गया। मैंने जब यह बात अपने चचेरे भाई श्रीकृष्ण मालपाणी को बतलाई तो उसने मुझे अपनी जीप देते हुए कहा कि इसके लिये आप इस जीप का प्रयोग कीजिये। गांव में आप अपनी कार से सब जगह संपर्क नहीं कर पाएंगे।

संध्याकाल में मैं सोबरन सिंह जी के यहां शहपुरा पहुँच गया। वे पूरा रुट मैप तैयार कर चुके थे। उसमें उन्होंने संपर्क के लिये गांवों का क्रम, किसानों के नाम और मोबाइल नम्बर आदि लिख कर तैयार कर लिये थे। उन्होंने यह भी अनुमान लगा लिया था कि कहां कितना भूसा प्राप्त हो सकेगा। मैं जब पहुँचा तो उनकी यह तैयारी देख कर मेरा उत्साह दुगना हो गया। उनके इस कार्यक्रम में मैंने केवल इतना ही परिवर्तन किया कि कार्य का श्रीगणेश अपने गांव मनकेड़ी से किया।

मनकेड़ी में जब हम लोगों ने वहां के किसानों से बात की तो वे न केवल सहयोग के लिये तैयार थे वरन सहयोग करते हुए उनके मनों में जो प्रसन्नता थी वह उनके चेहरे और उनकी बातचीत में भी झलक रही थी। इसने हमारे उत्साह को और भी अधिक बढ़ा दिया। हम एक के बाद दूसरे गांव जाकर संपर्क करने लगे। गौ माता की रक्षा के लिये सहयोग देने हर आदमी तैयार था और जिसमें जितना सामर्थ्य था वह उससे बढ़कर सहयोग कर रहा था। हम जहां भी गये हमारी बात सुनने के बाद कई गांवों में तो लोगों ने हमारा तिलक किया और मालाएं पहनाकर हमारा सम्मान किया। ऐसा कोई गांव नहीं रहा जहां बिना खाये पिये हमें गांव से जाने दिया गया हो।

कुछ गांव वालों ने हमें सुझाव दिया कि आप वहां से उन गायों को यहां बुला लीजिये हम उनकी पूरी सेवा करेंगे और जब वहां स्थिति ठीक हो जाएगी तो उन गायों को वहां वापिस भिजवा देंगे। लोगों के उत्साह और समर्पण की भावना को देखते हुए यह सुझाव बहुत महत्वपूर्ण था किन्तु यह व्यवहारिक नहीं था। इसीलिये इसे स्वीकार करना संभव नहीं था।

इस कार्य में मेरी जीप में तो मैं और सोबरन सिंह जी व उनका एक साथी ही रहता था किन्तु कुछ और ग्राम वासी भी अपनी गाड़ियों पर हमारे साथ इस कार्य में लग चुके थे। परिणाम यह था कि हमारा तीन-चार गाड़ियों का जत्था लगातार काम में लगा रहता था।

एक दिन आधी रात को जब हमारा यह जत्था एक गांव में बिना किसी पूर्व सूचना के पहुँचा तो दूर से ही गाड़ियों के जत्थे को आते देख कर गांव वाले समझे कि डाकू आ रहे हैं। हम लोग जब तक गांव पहुँचे और हमारी गाड़ियां बखरी के सामने जाकर खड़ी हुईं तब तक वे लोग छतों पर बन्दूकें तान कर पोजीशन ले चुके थे और किसी भी क्षण फायर करने के लिये तैयार थे। मैं तो इस माजरे को समझ ही नहीं सका किन्तु सोबरन सिंह जी समझ चुके थे। उन्होंने गाड़ी में बैठे-बैठे ही जोर की आवाज लगाई और उन्हें कहा कि मैं ठाकुर सोबरन सिंह हूँ। ठाकुर साहब से मिलने आया हूँ। सन्नाटे में उनकी आवाज गूंज उठी। उन्होंने जब यही आवाज दुबारा लगाई तो एक आदमी हमारे पास आया और यह निश्चय हो जाने के बाद कि डाकू नहीं हैं उसने आवाज लगाकर बाकी सब को सूचित किया तब जाकर हम अपनी गाड़ियों से उतर सके।

हम जब भीतर पहुँचे और हमने अपने आने का कारण उन्हें समझाया तो वे बड़े प्रसन्न हुए। ठाकुर साहब वहां के प्रतिष्ठित किसान थे। हमारी बात सुनकर उन्होंने तत्काल कह दिया कि मेरी कोठी में जो भूसा पड़ा है आप जितना चाहें ले लीजिये। जब हमने उन्हें बतलाया कि इसे भेड़ाघाट स्टेशन पर पहुँचाना है तो उन्होंने हमसे कहा कि आप निश्चिन्त रहिए। यह सारा भूसा समय पर वहां पहुँचा दिया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि अब आपको इस गांव में किसी और से संपर्क करने की आवश्यकता नहीं है। मैं सब से बात कर लूंगा और जो जितना सहयोग देना चाहेगा वह वहां उतना भूसा पहुंचा देगा। इस गांव में अब आप अपना समय खर्च मत कीजिये।

उनके आश्वासन के बाद जब हम वहां से चलने लगे तो उन्होंने हमें नहीं जाने दिया। आधी रात को उन्होंने खाना बनवाया हमारे लाख मना करने बाद भी उन्होंने खाना खिलाया, तिलक लगाया, माला पहनाई और विदाई देने के बाद ही हमें वहां से जाने दिया। उस दिन वहां इतना समय हो गया था कि हमें जिन दो गांवों में और उसी रात जाना था वहां नहीं जा सके। हमें वहां अगले दिन जाना पड़ा।

एक दिन तो गजब हो गया। हमारा जत्था एक गांव में पहुँचा तो एक बुजुर्ग जिनके सोबरन सिंह जी से पारिवारिक और आत्मीय संबंध थे उन्होंने सोबरन सिंह जी से कहा- तुम ये किस चक्कर में फंस गये हो। बाबू साहब तुम्हें गौ रक्षा के नाम पर गांव-गांव घुमा रहे हैं और अपने पैर जमा रहे हैं। आगे चलकर वे विधान सभा की टिकिट ले आएंगे और तुम्हारी टिकिट कटवा देंगे। उस समय तुम उनका विरोध भी नहीं कर पाओगे। राजनीति से तुम्हारा पत्ता साफ हो जाएगा। तुम अपने ही हाथों से अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने की बेवकूफी कर रहे हो। तुम्हें इतनी सी बात भी समझ में नहीं आ रही है और तुम अपने को राजनीतिज्ञ समझते हो।

उनकी बात सुनकर सोबरन सिंह एक बारगी तो सोच में पड़ गए फिर संभल कर विनम्रता से उनसे बोले- अगर बाबू साहब को टिकिट पाना होता और राजनीति में आना होता तो उनकी और उनके परिवार की राजनीति में इतनी पैठ है कि वे कब की टिकिट ले कर मैदान में कूद चुके होते। मैं इन्हें जानता हूँ। रही बात पैर जमाने की तो उसके लिये उन्हें मेरे सहारे की जरुरत नहीं है। उनके पैर पहले से ही इतने जमे हुए हैं कि वे टिकिट लेकर इस क्षेत्र में आसानी से फतह पा सकते हैं।

ये जो भूसा इकट्ठा किया जा रहा है इसके भेजने की क्या व्यवस्था है और इस बात की क्या गारण्टी है कि इसका दुरूपयोग नहीं होगा ?

उनका प्रश्न सुनकर सोबरन सिंह जी मेरी ओर देखने लगे। मैंने उन्हें बतलाया-

सरकार ने बिना किसी भाड़े के रेल द्वारा इस भूसे को गुजरात भेजने की व्यवस्था की है। वहां गायों को अलग-अलग स्थानों पर एकत्र किया गया है। यह भूसा राजकोट भेजा जाना है। वहां के सांसद डॉ. वल्लभ भाई कठीरिया इसे प्राप्त करेंगे और फिर उनकी देखरेख में यह भूसा गायों तक पहुँचेगा। जिससे गायों को भोजन मिल सके और उनकी जीवन रक्षा हो सकेगी। इसका पूरा प्रबंध किया जा चुका है। रेल्वे ने एक रैक भी एलाट कर दिया है जो आज से दसवें दिन भेड़ाघाट स्टेशन पर लग जाएगा और ग्यारहवें दिन रवाना हो जाएगा। उसे व्ही. आई. पी. ट्रीटमेण्ट दिया जाएगा और वह सीधा राजकोट पहुँचेगा। इसके लिये रेल्वे ने प्लेटफार्म साफ कर दिया है जहाँ यह भूसा एकत्र किया जा रहा है।

बाबू साहब आप चिन्ता मत कीजिये। मैं इस कार्य में आपकी सहायता करुंगा। मैं प्रतिदिन सुबह भेड़ाघाट स्टेशन जाऊंगा और वहां की व्यवस्थाएं संभाल लूंगा। इससे आप का दिन का समय बचेगा जिसका आप दूसरी जगह उपयोग कर सकते हैं। वही बुजुर्ग बोले।

इसके बाद उन्होंने वहीं बैठे-बैठे दस बारह लोगों को फोन लगाकर बात की और ढेर से भूसे की व्यवस्था और कर दी। वे सुबह आठ बजे स्टेशन पर पहुँच जाते थे। भूसे को व्यवस्थित तरीके से रखवाने की व्यवस्था करते थे और उसका हिसाब रखते थे।

इस भूसा संग्रह में एक बात जो विशेष उल्लेखनीय है वह यह कि इस कार्य का हल्ला पूरे क्षेत्र में हो चुका था। इसका परिणाम यह रहा कि जहां कहीं भी हम लोग जाते लोग बड़े आदर और सम्मान के साथ हमारा स्वागत करने लगे। जिन होटलों या ढाबों आदि में हम चाय पीते या जलपान करते कोई भी हमसे पैसे लेने के लिये तैयार नहीं होता था। इस बात की जानकारी नगर के समाचार पत्रों को भी हो गई थी। उनके प्रतिनिधि भेड़ाघाट जाकर कार्य की प्रगति की जानकारी एकत्र करने लगे और उसे समाचार पत्रों के माध्यम से प्रचारित करने लगे। हम लोगों के भी साक्षात्कार लेकर प्रकाशित किये गये। यह भूसा संग्रह एक आन्दोलन का रुप ले चुका था जिसकी नियमित समीक्षा लोगों द्वारा और अखबारों द्वारा की जा रही थी।

भेड़ाघाट स्टेशन का पूरा प्लेटफार्म भूसे से भरा हुआ था। सात दिन बीत चुके थे। हम लोग संतुष्ट थे कि इतना भूसा एकत्र हो गया है कि एक रैक आसानी से भर जाएगा। हमें लग रहा था कि हमारा काम लगभग पूरा हो चुका है और अब केवल भूसे को रैक में भरकर भेजना ही बचा है। रेल्वे ने भी उत्साह पूर्वक सहयोग दिया था और रैक दसवें दिन की जगह नौवें दिन ही स्टेशन पर आकर खड़ा हो गया। उसमें अट्ठाइस बैगन थीं।

भूसा भरा जाने लगा। गांव वाले बड़ी संख्या में आकर इसमें सहयोग कर रहे थे। जब पूरा भूसा रैक में भरा जा चुका तो यह देखकर हमारे हाथ पैर ही फूल गये कि पूरा भूसा भरे जाने के बाद भी एक भी बैगन पूरी नहीं भरी थी। सभी में आधा-अधूरा भूसा भरा था। बैगन के रवाना होने में मात्र बहत्तर घण्टे बाकी थे और पूरा रैक भरने के लिये उससे भी अधिक भूसा और चाहिए था जितना भरा जा चुका था। दस दिनों में हमने जितना भूसा एकत्र किया था उससे अधिक भूसा बहत्तर घण्टों में कैसे पाया जा सकेगा ?

मैं सोच रहा था कि हमारा उद्देश्य और कार्य कितना भी सकारात्मक हो पर हमें उसको पूरा करने का संकल्प लेने से पहले अच्छी तरह से इस बात पर विचार कर लेना चाहिए कि यह कार्य कैसे सफल होगा, कितने परिश्रम की आवश्यकता होगी, कितना समय लगेगा और आवश्यक साधन कैसे प्राप्त होंगे आदि....आदि... ।

हम भावनाओं में बहकर त्वरित निर्णय ले लेते हैं और कभी-कभी मुसीबत में भी फंस जाते हैं। हमें प्रतिष्ठा कार्य के सम्पन्न होने पर ही मिलती है। अधूरे कार्य रहने पर कारण चाहे जो भी हों हम हास्य के पात्र बन जाते हैं। हमारे मन में संकल्प था एवं प्रभु के प्रति पूर्ण विश्वास था। प्रसिद्धि की कोई तमन्ना नहीं थी। गौमाता की पीड़ा कम हो सके और उनके जीवन की रक्षा हो सके यही अभिलाषा हमारे मनों में थी। इसलिये भीतर ही भीतर हमें यह भी लग रहा था कि कार्य अवश्य पूर्ण होगा। किन्तु कैसे पूरा होगा यह समझ में नहीं आ रहा था।

रात के लगभग दस बजे का समय था। हम लोग चिन्ता में डूबे हुए प्लेटफार्म पर विचार कर रहे थे। कोई हल नहीं सूझ रहा था। तभी एक चमत्कार हुआ। एक किसान साइकिल पर पीछे एक बोरा भूसा भरकर लाया और उसने वह एक रैक में खाली कर दिया। उसके बाद वह हम लोगों के पास आया और उसने हम लोगों के पैर पड़े। वह इस कार्य के लिये हमें बधाई तो दे ही रहा था साथ ही उसके मन में बहुत थोड़ा सहयोग देने का संकोच भी था। हमने उससे चाय पीने का आग्रह किया किन्तु उसने उसे अस्वीकार कर दिया और वह हमें दुआएं देता हुआ वहां से चला गया। उसके कुछ ही देर बाद एक और बैलगाड़ी भरकर भूसा लेकर आई और फिर उसके बाद तो थोड़े-थोड़े अंतर से कोई बैलगाड़ी में भरकर भूसा लाता और भर जाता और कोई टैक्टर ट्राली में लाकर भूसा भर जाता। यह क्रम जो प्रारम्भ हुआ तो तब तक चलता रहा जब तक कि पूरा रैक भर नहीं गया।

जिस समय रेल्वे के कर्मचारी भूसे से भरी हुई बैगन को लॉक करते तो पहले यह चैक करते थे कि कहीं कोइ्र्र आदमी उस भूसे के भीतर तो दबा हुआ नहीं है। इस प्रक्रिया में एक बैगन के भीतर एक आदमी मिला। जब उससे पूछा गया कि तुम यहां भीतर कैसे हो तो वह बोला कि मैंने सोचा कि इसी गाड़ी में जाकर गुजरात घूम आउंगा।

अगले दिन प्रातः सात बजे यह विशेष रैक गुजरात के लिये रवाना हो गया। रवानगी के समय रेल्वे के सभी वरिष्ठ अधिकारी, लायन्स इण्डिया के पदाधिकारी व सदस्य, प्रतिष्ठित नागरिक, दानदाता, ग्रामवासी और पत्रकार आदि उपस्थित थे। डी. आर. एम. रेल्वे ने स्वयं हरी झण्डी दिखाकर उसे रवाना किया। रवानगी के पूर्व ड्राइवर और गार्ड हम लोगों से मिलने आये और उन्होंने इस बात पर प्रसन्नता जाहिर की कि उन्हें इस पावन कार्य को करने का सौभाग्य एवं दायित्व मिला है। उसी समय फोन पर काकाजी श्री बालकिशन दास जी मालपाणी ने हमें आशीर्वाद दिया और कहा कि आप लोगों ने एक बहुत अच्छा कार्य किया है।

रेल्वे स्टेशन से घर लौटते हुए मैं सोच रहा था-

सच्ची सफलता के लिये

आवश्यक है

मन में ईमानदारी

सच्चा मार्ग

क्रोध से बचाव

वाणी में मधुरता

सोच समझ कर निर्णय

ईश्वर पर भरोसा

और उसका निरन्तर स्मरण।

यदि यह हो

तो हर कदम पर सफलता

निश्चित है

और निश्चित है

सुख, समृद्धि, वैभव और आनन्द।

इस ट्रेन को बिना कहीं रोके सीधा राजकोट पहुँचाये जाने की व्यवस्था की गई थी। अपने निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार यह ट्रेन राजकोट पहुँच गई। वहां सांसद डॉ. वल्लभ भाई कठीरिया ने उसका स्वागत किया और वह भूसा गायों तक पहुँचाने की व्यवस्था की। उनकी व्यवस्था इतनी अच्छी थी कि कुछ ही घण्टों में वह चार सौ इक्क्यासी टन भूसा अपने गन्तव्य पर पहुँच गया। वहां के जिलाधीश ने फोन पर हम लोगों को भूसा प्राप्त होने की सूचना दी एवं उसके समुचित उपयोग से हमें अवगत कराया। उन्होंने यह भी कहा कि यदि आप लोग चाहें तो अपने किसी प्रतिनिधि को भेजकर इसकी पुष्टि कर सकते हैं। यह आपके प्रदेश से प्राप्त हुआ पहला और महत्वपूर्ण योगदान है। इसके लिये हमारा राज्य आपका आभारी है।

अगले दिन हमें गुजरात के विधानसभा अध्यक्ष का संदेश प्राप्त हुआ। वे चाहते थे कि हम लोग वहां पहुँचें और हमारा सम्मान किया जाए। हम लोग विगत पन्द्रह दिनों में बहुत थक चुके थे अतः हमने विनम्रता पूर्वक उनके आमन्त्रण को अस्वीकार करते हुए सधन्यवाद क्षमा याचना की। एक दिन बाद नगर के गुजराती मण्डल ने डॉ. राजेश धीरावाणी के नेतृत्व में हम लोगों को एक समारोह में आमन्त्रित कर सम्मानित किया। इस प्रकार के और भी अनेक कार्यक्रम विभिन्न संस्थाओं ने किये किन्तु जो प्रसन्नता, जो आत्म संतोष, जो आनन्द और जो अनुभूति मुझे भूसे का रैक रवाना करते हुए हुई थी वैसी जीवन में फिर कभी नहीं हुई।

--

(क्रमशः अगले भाग में जारी...)

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: कहानी संग्रह - वे बहत्तर घंटे - आत्मकथ्य - राजेश माहेश्वरी
कहानी संग्रह - वे बहत्तर घंटे - आत्मकथ्य - राजेश माहेश्वरी
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjoPBTgP2sEL_J5D7Pwm4bqcNT-SvZYnppFAVyXo5ROXgPPBXSqSOpj36sFRkgQFSB9sgP48dwFFBtVlYn0XMRROWqFGi8_teBpFsU5O1y4hsZpzSf5lsFam7qIhdGmc0GuTIbg/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjoPBTgP2sEL_J5D7Pwm4bqcNT-SvZYnppFAVyXo5ROXgPPBXSqSOpj36sFRkgQFSB9sgP48dwFFBtVlYn0XMRROWqFGi8_teBpFsU5O1y4hsZpzSf5lsFam7qIhdGmc0GuTIbg/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2018/08/blog-post_58.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2018/08/blog-post_58.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content