डॉ. जयश्री सिंह सहायक प्राध्यापक एवं शोधनिर्देशक, हिन्दी विभाग, जोशी - बेडेकर महाविद्यालय ठाणे - 400601 महाराष्ट्र कहानी – ८ दलित ब्राह्मण ...
डॉ. जयश्री सिंह
सहायक प्राध्यापक एवं शोधनिर्देशक, हिन्दी विभाग,
जोशी - बेडेकर महाविद्यालय ठाणे - 400601
महाराष्ट्र
कहानी – ८ दलित ब्राह्मण – सत्यप्रकाश
लेखक परिचय :-‘दलित ब्राह्मण’ कथा “सत्यप्रकाश” द्वारा रचित है। ‘दलित ब्राह्मण’ सत्य प्रकाश जी की चर्चित कहानी है। सत्यप्रकाश जी को भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा अंबेडकर फेलोशिप सम्मान से सम्मानित भी किया गया है।
यह कहानी तीन मित्र विजयरंजन कुरील, शिवदत्त और गौरी शंकर माहेश्वरी की है जो भद्रजन सरकार में अधिकारी हैं। यह कहानी जातिवाद की समस्या पर आधारित है। शिवदत्त धर्म के पैमाने से बौद्ध है। विजयरंजन और गौरीशंकर दलित हैं। विजयरंजन का धर्म उन्हें स्वयं ही मालूम नहीं है। वैसे उसे धर्म के नाम से चिढ़ है।
लेकिन उन तीनों की दोस्ती में धर्म बाधा नहीं है। शिवदत्त अपना सामाजिक दायित्व सच्चाई और न्याय से करता है। कुरील केवल समाज और दुनिया के नाम पर अपना गुस्सा दिखाता तो है लेकिन स्वयं अपना दायित्व सही ढंग से नही निभाता। इसी के आधार पर यह पूरी कहानी लिखी गई है।
कहानी की कथावस्तु :- दलित ब्राह्मण कहानी का परिवेश कानपुर शहर से लिया गया है। जहां तीन मित्र विजयरंजन कुरील, गौरीशंकर माहेश्वरी और शिवदत्त तीनों भद्रजन भारत सरकार में उच्चाधिकारी है। पूरा वातावरण समाज, धर्म और जात पात को लेकर दर्शाया गया है। कुरील को ऐसा लगता है कि केवल ब्राह्मण या किसी और सवर्ण जाति के लोग दलितों के साथ अन्याय करते हैं। लेकिन वह स्वयं अपनी जिम्मेदारी पूरे सही तरीके से नहीं निभाता है। कहानी का वातावरण ऐसा दिखाया गया है कि शोषण कोई भी करें लेकिन दोष केवल ब्राह्मणों या दूसरे सवर्णों पर लगाया जाता है।
कहानी प्रारंभ में एक दिन कुरील साहब गुस्सा होते हुए समाज को कोसते कहते हैं कि समाज ने मुझे क्या दिया? मैं समाज की परवाह क्यों करूं? शिवदत्त उन्हें समझाते हुए कहता है कि आज हम, आप जिस पद पर हैं हमें वहां पहुंचाने में समाज ने भी त्याग और अपना योगदान दिया है। समाज ने इसमें अपनी अहम भूमिका निभाई है। तो हमें भी अपने सामाजिक दायित्वों को कभी नहीं भूलना चाहिए। समाज के हितों की रक्षा के प्रति कटिबद्ध होना चाहिए।
गौरीशंकर माहेश्वरी स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि सब मिला कर देखें तो आज जाति-पात, धर्म आदि ये चीजें और बढ़ रहे है। जाति, वर्ग, धर्म, संप्रदाय के नाम पर वैमनस्य बढ़ रहा है। फर्क बस इतना है पहले जातिय घृणा लोगों में बाहर थी अब अंदर है। खाली छुआछूत खत्म होने का मतलब यह थोड़े ही है कि जात पात या जातीय घृणा खत्म हो गई।
तीनों जब दफ्तर से छूटते तो घंटों बैठकर बातें करते और गप्पे-शप्पे मारते फिर घर जाते। एक रोज कुरील को दफ्तर आने को लेट हो जाता है माहेश्वरी और शिवदत्त उसका इंतजार करते हैं। कुरील जब आए तो दोनों ने पूछा कहां रह गए थे इतनी देर कैसे हो गई?बार-बार पूछने पर कुरील कहता है कि “मैं आपकी तरह दब्बू अधिकारी नहीं हूं। मैं आज तक एक भी डी.पी.सी की बैठक में नहीं गया। मैं तो साफ कह देता हूं। फाइल घर लाओ। जिसे जरूरत होती है सारी फाइलें तैयार करके घर लाता है। घंटों बैठता हूं, तब जाकर हस्ताक्षर करता हूं। खुशामद भी करते हैं, चढ़ावा भी चढ़ाते हैं। वह भी खुश, हम भी खुश।“
दोनों मित्र कुरील की और दोनों आश्चर्य से देखते हैं कि जो व्यक्ति कुछ दिन पहले समाज को कोस रहा था कि समाज ने उसे क्या दिया है? आज वही समाज की व्यवस्था को भ्रष्ट कर रहा है। वैसे अब तक तो यह सारे दोष ब्राह्मणों या दूसरे सवर्णों पर लगाये जाते थे। आमतौर पर अब तक ब्राह्मणों पर यह आरोप लगता रहा है कि उन्होंने दलित समाज के साथ अन्याय किया है।
माहेश्वरी, कुरील को समझाते हुए कहते हैं कि सही- गलत तो विवाद का विषय हो सकता है। शिवदत्त, कुरील साहब को समझाते हुए कहते हैं कि मुझे संतोष है कि मैंने किसी के साथ ना अन्याय किया है और ना होने दिया। एक-दूसरे को कहने-सुनाने और समझाने के बाद तीनों एक दूसरे को परस्पर नमस्कार करते हुए वह अपने-अपने घरों को चल देते हैं।
घटना के 6 महीने बाद एक दिन कुरील साहब समय के अनुसार पर नहीं पहुंचे, तो शिवदत्त और माहेश्वरी साहब चिंतित हुए और बोले चलिए देख आते हैं। तो कुरील साहब रास्ते में ही मिल जाते हैं वे बताते हैं कि उनके साथ बड़ा अन्याय हुआ है।
दरअसल बात ये होती है कि प्रमोशन की लिस्ट में कुरील साहब का नाम नहीं आता, उनसे जूनियर को प्रमोशन मिल जाता है, लेकिन उनको नहीं। कुरील साहब कहते हैं धांधलेबाजी चल रही है। कुरील साहब गुस्सा दिखाते हुए बताते हैं हेडक्वार्टर की डी.पी.सी में भी एस.सी. / एस.टी. का मेंबर भी होता है। जरूर उसी ने फाइल बिना स्टडी किए हस्ताक्षर कर दिया होगा। वह भड़कते हुए बोलते हैं एक बार बस पता लगा लूं फिर गद्दार समाजद्रोही को छोडूंगा नहीं। माहेश्वरी कहते हैं मैं आपको यही बता देता हूं इसमें हेड क्वार्टर से पता करने की क्या बात है? कुरील साहब ने जिज्ञासा प्रकट की और पूछा कौन हो सकता है।
माहेश्वरी साहब के मुंह से यंत्रवत निकल गया, “और कौन होगा कुरील साहब, होगा कोई दलित ब्राह्मण। यह सुनते ही कुरील साहब का चेहरा पीला पड़ जाता है। काटो तो खून नहीं। शिवदत्त जी कुरील साहब के कंधे पर हाथ रखते हुए कहते हैं, “चलो कुरील साहब, घर चलो। निकालना ही होगा कोई ना कोई तरीका इन दलित ब्राह्मणों से निपटने का।”
निष्कर्ष : - ‘दलित ब्राह्मण’ कहानी में लेखक ने जात पात के नाम पर होने वाली लापरवाही व भ्रष्टाचार का चित्रण किया है। कहानी में तीन मित्र शिवदत्त, गौरीशंकर माहेश्वरी और विजय रंजन कुरील है। शिवदत्त धर्म से बौद्ध धर्म और शेष दोनों दलित हैं। माहेश्वरी और शिवदत्त समाज के प्रति अपने दायित्व को पूरी ईमानदारी के साथ निभाते रहे हैं। किन्तु कुरील साहब एक तरफ तो समाज को कोसते हैं कि समाज ने उन्हें क्या दिया। और खुद समाज के प्रति उनके क्या दायित्व है वह भूल जाते हैं। जिसका खामियाजा भी उन्हें भुगतना पड़ता है। उनके जैसे ही काम करने वाला कोई भ्रष्ट पदाधिकारी अपनी लापरवाही से कुरील जी का नुक्सान कर देता है। धन के लालच में किये गये कार्य का खामियाजा हमें खुद ही भुगतना पड़ सकता है। कुरील जी के माध्यम से इस कथा में यही बताने का प्रयास किया गया है।
सन्दर्भ सहित व्याख्या :-
“फर्क तो खैर बहुत पड़ गया माहेश्वरी साहब, हम ब्राह्मणों या सवर्णों की आलोचना और शिकायत कर लेते थे उन्हें कोस लेते थे कि वे हमारे साथ अन्याय कर रहे हैं वे हमारा भला नहीं चाहते इसलिए हमें हर क्षेत्र में प्रातिनिधित्व चाहिए। अब चूंकि कूरिल साहब भी दलित हैं, इन महाशय की शिकायत हम उस रूप में नहीं कर सकते।“
संदर्भ :- प्रस्तुत गद्यांश बी.ए.प्रथम वर्ष की पाठ्य पुस्तक से संकलित “दलित ब्राह्मण” नामक कहानी से लिया गया है। इसके लेखक “सत्यप्रकाश जी” हैं। लेखक ने इस कहानी में मनुष्य के सामाजिक दायितत्वों के बारे में बताया है कि सभी को अपने कर्तव्य निभाने चाहिए चाहे वह ब्राह्मण या सवर्ण हो या फिर दलित।
प्रसंग :- प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने व्यक्ति के सामाजिक दायितत्वों के बारे में बताया है, कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने सामाजिक दायित्वों को कभी नहीं भूलना चाहिए। समाज के हितों की रक्षा के प्रति कटिबद्ध होना चाहिए। चाहे वह दलित हो या फिर ब्राह्मण या अन्य कोई सवर्ण।
व्याख्या :- जब शिवदत्त और माहेश्वरी साहब को पता चलता है कि कुरील साहब ने रिश्वत लेकर फाइल बिना पढ़े हस्ताक्षर कर दिये, तो उन्हें बहुत आश्चर्य होता है। माहेश्वरी तब कहते हैं कि कुरील साहब अभी-अभी आप ही व्यवस्था की बातें कर रहे थे। व्यवस्था के तहत ही तो आपको दलितों का प्रतिनिधि बनाया गया है।
माहेश्वरी साहब ने स्पष्ट करते हुए कहा कि आमतौर पर अब तक ब्राह्मणों पर यह आरोप लगता रहा है कि उन्होंने दलित समाज के साथ अन्याय किया है। जब आपने भी यही किया तो क्या फर्क पड़ता है? शोषण भी करें। इसका अर्थ यह हुआ कि आप भी ब्राह्मण है।
शिवदत्त माहेश्वरी साहब से कहता है कि फर्क तो बहुत पड़ा है। क्योंकि तब हम ब्राह्मणों या दूसरे सवर्णों की बुराई और शिकायत करके खुद को संतुष्ट कर लेते थे। उन्हें कोस लेते थे कि वह हमारे साथ अन्याय कर रहे हैं। सवर्ण जाति के लोग हमारा भला नहीं चाहते, इसलिए दलित समाज को हर क्षेत्र में प्रतिनिधित्व चाहिए। शिवदत्त स्पष्ट करते हुए कहते हैं चूँकि अब कुरील साहब भी दलित हैं, इन महाशय की शिकायत हम उस रूप में नहीं कर सकते हैं। कुरील साहब की इन हरकतों से शिवदत्त साहब के हृदय पर बहुत आघात पहुँचता है।
तात्पर्य यह है कि व्यक्ति चाहे कोई भी हो दलित हो या ब्राह्मण या दूसरे सवर्ण समाज की व्यवस्था को बनाये रखने के लिये उन्हें अपने कर्तव्यों और दायित्वों का पालन पूरी ईमानदारी के साथ करना चाहिए न की एक जाति दूसरे जाति पर दोष लगाये। व्यक्ति को ऐसा अवसर ही नहीं देना चाहिए कि जात-पात पर प्रश्न उठे या फिर भेद-भाव की भावना उत्पन्न हो।
विशेष :- समाज में फैली जातिवाद की समस्या के आड़ में होने वाले भ्रष्ट कार्यों पर प्रकाश डाला गया है। भाषा-बोलचाल की सरल और प्रवाहपूर्ण भाषा है। एकाध स्थानों पर अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग हुआ है। कहीं-कहीं पर मुहावरों का प्रयोग हुआ है, जिससे कथन में स्पष्टता आ गई है जैसे-ठगे से रह जाना, चेहरा पीला पड़ जाना।
बोधप्रश्न :-
१) ‘दलित ब्राह्मण’ कहानी के तीनों पात्रों के संवादों को अपने शब्दों में लिखिए।
२) कहानी की मूल समस्या पर प्रकाश डालिए।
एक वाक्य में उत्तर लिखिए : -
१) शिवदत्त, माहेश्वरी और कुरील तीनों कहाँ कार्यरत हैं?
उत्तर :- तीनों भद्रजन भारत सरकार में उच्चाधिकारी हैं।
२) कुरील साहब के साथ क्या अन्याय हुआ?
उत्तर :- कुरील साहब के साथ ये अन्याय हुआ कि उनके जूनियर्स को प्रोमोट कर दिया गया और उनका प्रमोशन नहीं हुआ।
३) रिश्वत लेकर हस्ताक्षर करने की ग़लती कौन से साहब करते थे?
उत्तर :- रिश्वत लेकर हस्ताक्षर करने का काम कुरील साहब करते थे।
४) किसकी बात से कुरील साहब का चेहरा पीला पड गया?
उत्तर : - माहेश्वरी साहब की ‘दलित ब्राह्मण’ वाली बात सुन कर कुरील साहब का चेहरा पीला पड़ गया।
५) ‘दलित ब्राह्मण’ कहानी के लेखक कौन हैं?
उत्तर :- दलित ब्राह्मण कहानी के लेखक सत्यप्रकाश जी हैं।
COMMENTS