कहानी संग्रह वे बहत्तर घंटे राजेश माहेश्वरी जय जवान - जय किसान - जय विज्ञान मोहनियां गांव का रामसिंह, एक सम्पन्न किसान था। घर में पत्नी, एक...
कहानी संग्रह
वे बहत्तर घंटे
राजेश माहेश्वरी
जय जवान-जय किसान-जय विज्ञान
मोहनियां गांव का रामसिंह, एक सम्पन्न किसान था। घर में पत्नी, एक नौजवान बेटा और एक बेटी थी। बेटे ने इसी साल कालेज जाना प्रारम्भ किया था। अच्छी खासी खेती थी। पूरे इलाके में उनके परिवार की प्रतिष्ठा थी। रामसिंह में देशभक्ति का जज्बा और उसकी कर्मठता ही उसे फौज में ले आई थी। उसमें देश के लिये कुछ कर गुजरने की भावना बड़ी बलवान थी।
हवलदार रामसिंह एक निशाने का पक्का, जाबांज, देशभक्त और ईमानदार सिपाही था। वह कारगिल के मोर्चे पर तैनात था। एक रात उसने देखा कि पाकिस्तानी सैनिक रात के अंधेरे में भारतीय सीमा में छुपकर प्रवेश करने का प्रयास कर रहे हैं। उसने तत्काल ही अपने साथियों को इस स्थिति से अवगत कराया। वहां से फौरन पिछली चौकी को भी सतर्क कर दिया गया। सभी ने पोजीशन संभाल ली और अगले आदेश की प्रतीक्षा करने लगे। जैसे ही रामसिंह की टोली को फायरिंग का आदेश मिला उन्होंने फायर प्रारम्भ कर दिया। इस अप्रत्याशित आक्रमण के लिये दुश्मन तैयार नहीं था। वे हड़बड़ा गए। उनके अनेक सैनिक मारे गये। उन्होंने पीछे की ओर खिसकना प्रारम्भ कर दिया। रामसिंह कुछ अधिक तेजी से आगे को बढ़ता है। उसी समय एक हैण्ड ग्रेनेड उसके समीप ही आकर फटता है और वह घायल हो जाता है। उसके दो साथी उसे उठाकर तत्काल पीछे की ओर भेज देते हैं जहां से उसको हास्पिटल रवाना कर दिया जाता है।
रामसिंह ने हास्पिटल से अपने पुत्र को एक पत्र लिखा। प्यारे बेटे सोहन, मैं यहां अस्पताल में घायल अवस्था में लाया गया हूँ। यहां के डॉक्टर और नर्सें पूरी तरह से मुझे बचाने का प्रयास कर रहे हैं पर मुझे लग रहा है कि अब मेरा अंतिम समय आ गया है। बेटे! तुम शक्ति के प्रतीक युवा हो एवं तुममें असीमित क्षमताएं हैं। अपनी ऊर्जा एवं जीवन के महत्वपूर्ण समय को व्यर्थ नष्ट मत करना। तुम्हीं देश के भविष्य हो और तुम्हें राष्ट्र के उज्ज्वल भविष्य के निर्माण में अपना योगदान देना है। अपने जीवन में तुम्हें अटल एवं दृढ़ बनकर, विवेक को जागृत, जीवन में हमेशा उचित एवं अनुचित के मूल्यांकन की क्षमता रखना और फिर अपने लक्ष्य को निर्धारित करके उसे पूरा करने के लिये तन, मन से परिश्रम करना है। तुम्हें अभी राष्ट्र हित में बहुत सृजन करना है और समाज को नयी दिशा और चेतना देना है। जीवन में जब भी कोई पुनीत और अच्छा कार्य करता है तो संकट और कंकट आते हैं। तुम्हें इनसे जूझते हुए राष्ट्र प्रथम को तन, मन एवं हृदय से जीवन पथ पर आगे बढ़ना है। तुम्हें किसी कर्मयोगी के समान सेवा को ही अपना लक्ष्य मानकर उसी में तुम सुख समृद्धि तथा सार्थकता महसूस करो। देश की सेवा ही तुम्हारा धर्म एवं परम कर्तव्य है। यही लक्ष्य निर्धारित करके आगे बढ़ते जाना है। यही मेरा तुम्हारे लिये अंतिम आशीर्वाद है। जयहिन्द। जय भारत।
यह पत्र लिख कर वह उसे अपने सिरहाने रखकर सो गया। रात के तीसरे पहर उसे अचानक हृदय में पीड़ा हुई और उसकी सांसें समाप्त हो गईं। उसकी मृत्यु पर उसके सभी साथी गमगीन हो गए। उसके पार्थिव शरीर को उसके गांव लाया गया। उसके अंतिम संस्कार में उसके आसपास के गांवों के भी हजारों लोग शामिल हुए और उसे हृदय से श्रृद्धांजलि अर्पित की।
राजकीय सम्मान के साथ उसकी अंत्येष्ठी की गई। उसे मरणोपरान्त वीरचक्र से सम्मानित किया गया। उसका लिखा पत्र उसके कमाण्डेण्ट ने उसके बेटे को दिया। उसे पढ़कर वह भाव विभोर हो गया। उसने अपनी मां से फौज में जाने हेतु अनुमति मांगी। उसकी मां ने उसे सहर्ष स्वीकार किया। उसे स्टेशन पर छोड़ने के लिये सारा गांव उमड़ पड़ा था। आज वह सारे गांव का बेटा था।
सोहन सेना में भर्ती होने के बाद और अपनी ट्रेनिंग पूरी करने के पश्चात आज पहली बार गांव वापिस आया था। उसने सबसे पहले अपनी मां के चरण छूकर उसे प्रणाम किया और आशीर्वाद लिया। गांव वाले उससे बड़े प्रेम से मिले। जिस समय वह गांव में ही था उसी समय स्वतंत्रता दिवस का दिन आ जाता है। उसे गांव के स्कूल में आयोजित कार्यक्रम में उसे विशेष रुप सें आमंत्रित किया जाता है। वह अपने उद्बोधन में अपने विचारों को व्यक्त करते हुए कहता है- स्वतंत्रता की वर्षगांठ पर शहीदों की शहादत को हमारा सलाम। प्रतिवर्ष के समान जगह-जगह ध्वजारोहण औरष्शालाओं में मिष्ठान्न वितरण किया जा रहा है। जगह-जगह लाउड स्पीकर पर फिल्मी गीत बज रहे हैं। स्वतंत्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है। तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा, जय जवान जय किसान और सत्य मेव जयते जैसी देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत देश के लिये समर्पण का उद्घोष लगाने वाले नायक जाने कहां खो गए हैं। मानों वे अब इतिहास का पन्ना बन गए हैं। आज भी भारत के कुछ भाग पर चीन और पाकिस्तान का कब्जा है। भारत का यह अंग आज भी पराधीन है। वह भू भाग स्वतंत्रता की प्रतीक्षा कर रहा है। हमारी सेना तैयार है और उन्हें केवल आदेश का इन्तजार है। ंचीन और पाकिस्तान देश में नक्सलवाद व आतंकवाद फैला रहे हैं। सारा देश इनसे निपटने में ही व्यस्त है। वे यह देखकर हमारी कठिनाइयों पर मदमस्त हैं। नयी पीढ़ी को आज जागना होगा और अपने कन्धों पर देश भक्ति जनसेवा का भार स्वीकार करते हुए अपनी धरती को मुक्त करने का संकल्प लेना होगा।
आज सारी दुनिया बड़ी तेजी से वैज्ञानिक तरक्की कर रही है। रोज नये-नये अविष्कार हो रहे हैं। इसके लिये यह आवश्यक है कि हमारे बच्चे खूब मन लगाकर परिश्रम के साथ पढ़ें और आगे बढ़ें। वैज्ञानिक प्रगति के बिना हम दुनिया की बराबरी भी नहीं कर सकते और अपनी रक्षा भी नहीं कर सकते। इसलिये नयी पीढ़ी को जी भरकर परिश्रम कर स्वयं को दुनियां के बराबर खड़ा करना होगा।
जिस दिन यह सब हो जाएगा उस दिन असली स्वतंत्रता दिवस आएगा और हम गर्व से कह पाएंगे हम एक अखण्ड भारत के स्वतंत्र नागरिक हैं। तब संपूर्ण विश्व में हमारे देश का यश और सम्मान बढ़ेगा।
उसके इस प्रेरक उद्बोधन ने सबका दिल छू लिया। कुछ दिन के बाद उसके वापिस जाने का समय आ गया। सारे गांव ने उसे गांव की सीमा तक पहुँचा कर भारत माता की जय के नारों के साथ उसे विदा किया।
(क्रमशः अगले भाग में जारी...)
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