हमारी हिंदी कोई भी व्यक्ति अपनी भाषा को अपने परिवार ,समाज और देश से स्वाभाविक रूप से ग्रहण करता है। अमेरिका और इंग्लैंड में रहने वाला व्यक्...
हमारी हिंदी
कोई भी व्यक्ति अपनी भाषा को अपने परिवार ,समाज और देश से स्वाभाविक रूप से ग्रहण करता है। अमेरिका और इंग्लैंड में रहने वाला व्यक्ति अंग्रेजी को, फ़्रांस में रहने वाला फ्रेंच भाषा को और जापान में रहने वाला जापानी भाषा को अपने आप ही सीखता जाता है। हमारे देश में स्थिति थोड़ी सी भिन्न है। यहाँ अनेकों भाषाओँ को प्रयोग में लाने वाले लोग रहते हैं जो शायद उनके भिन्न भिन्न रीति रिवाज़, जलवायु , भौगोलिक स्थिति, रहन सहन और मान्यताओं से प्रेरित हैं । इन भाषाओं की सूची बड़ी लम्बी है। हिंदी के अलावा तमिल, तेलुगु, गुजराती, बांग्ला, मराठी, कन्नड़, कोंकडी ,डोगरी, कश्मीरी, असमी, बोडो, मलयालम ,उड़िया आदि इनके कुछ नाम है पर हमारे देश के एक तिहाई से अधिक लोग हिंदी भाषा बोलते हैं ।
हिंदी भाषी व्यक्ति भी यह भाषा अपने आप सीखता है पर आधुनिकता की होड़ के खोखले मापदंड और अंगरेजी के वर्चस्व के कारण वह धीरे धीरे इससे जी चुराने लगता है। इस कारण इस भाषा के प्रयोग करने वालों के कम होने का संकट छाया हुआ है। (कमोबेश ऐसी स्थिति अन्य क्षेत्रीय भाषाओं की भी है।)
हिंदी भाषा की परिपक्वता और इसके व्यापक जन आधार के आधार इसमें पूरे राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोने की क्षमता है। हमारे संविधान में हिन्दी को भारत की राजभाषा के रूप में 14 सितम्बर सन् 1949 को स्वीकार किया गया जिसकी स्मृति में वर्ष 1953 से हम 14 सितम्बर को ‘हिन्दी दिवस’ के रूप में मनाते हैं। हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा के रूप में उसका सम्मानजनक स्थान दिलाने और उसके अधिकाधिक प्रयोग के लिए अनेक सरकारी और गैर सरकारी संस्थान प्रयासरत हैं जिसमें यह मंच (हिंदी हैं हम) भी एक है।
इन प्रत्यक्ष प्रयासों के अतिरिक्त कुछ बातें अप्रत्यक्ष रूप से इस लक्ष्य की प्राप्ति में सहायता कर रही हैं। उदहारण के लिए हिंदी भाषियों को हिंदी से जोड़ कर रखने और अहिन्दी भाषियों का परिचय हिंदी से करने में एक बड़ा योगदान हमारे फ़िल्मी गीतों का है। शायद कुछ लोग प्रथम दृष्टि इस बात से सहमत न हों सकें क्योंकि यह योगदान अप्रत्यक्ष है।
फ़िल्मी गीत
फिल्मी गीत अपने मधुर संगीत और सरल भाषा के कारण सबके दिल में आसानी से बैठ जाते हैं। इनकी धुन भाव को जगाती है और भाषा दिलों को छूती है। गीतकारों द्वारा प्रयुक्त सटीक शब्दों का जिक्र अक्सर हमारे अवचेतन में छुपे किसी घटनाक्रम की याद दिलाता है जिससे श्रोता अपने आप को जोड़ लेता है उस भावना या प्रयोजन से जिसमे गीत कहा जा रहा है। कई बार तो इन गीतों के बोल हमारे जीवन को नए अर्थ तक दे जाते हैं।
फिल्मों की आधुनिक परिभाषा
कुछ वर्ष पहले तक फिल्म शब्द का अर्थ माना जाता था – ‘ व्यावसायिक दृष्टि से निर्मित एक बड़े परदे पर दिखाई जाने वाला चलचित्र’ । पर कम्पयूटर द्वारा जीवन के हर पहलू में घुसपैठ करते हुए इस शब्द का अर्थ ही बदल डाला है। फिल्म का मतलब अब बड़े परदे वाला व्यावसायिक सिनेमा भर नहीं रह गया बल्कि टीवी /मोबाईल या टेबलेट और लैपटॉप के इलेक्ट्रॉनिक परदे पर देखी जाने वाली फिल्म भी है। इन फिल्मों का दायरा और दर्शकवर्ग बहुत बड़ा है। इनका प्रयोजन सरकार की जन कल्याण योजना हो सकता है या फिर चुनाव के समय किसी राजनीतक दल का प्रचार अथवा किसी सामाजिक कार्यकर्ता /संस्था का जनुपयोगी सन्देश। त्योहारों आदि दिए गए मंगल संदेशों से लेकर अन्य लोकरंजन विषयों पर भी अब इन छोटी छोटी फिल्मों का निर्माण होने लगा है जिसमें अक्सर गीत भी झलकते है।
टीवी या मोबाईल फ़ोन आदि पर देखे जाने वाले विज्ञापन और कार्यक्रमों की दुनिया में भी अब गीतों का समावेश अब खूब होने लगा है। वृहत अर्थ में इन सभी फिल्मों में शामिल गीतों को भी फ़िल्मी गीत ही माना जाना चाहिए।
हिन्दी फ़िल्मी गीत
यूँ तो हमारे देश में अनेकों क्षेत्रीय भाषों में फिल्में बनती हैं और फ़िल्मी गीत लिखे जाते हैं पर लोकप्रियता की दृष्टि से हिंदी फिल्मों के गीतों का स्थान अन्य सभी भाषाओं में लिखे फ़िल्मी गीतों को बौना बना देता है। हिंदी फिल्म और फ़िल्मी गानों का श्रोता वर्ग विशाल है और इसकी लोकप्रियता अपार है। इसके श्रोताओं में एक दीवानापन देख जा सकता है।
आज हिंदी फ़िल्मी गानों का मोबाईल और FM रेडियो पर आसानी से उपलब्ध होने और अन्त्याक्षरी आदि खेलों के कारण घर घर में लोगों की जुबान पर इनका वास रहता है। इस गीतों का जादू हम सबके मन में बसा है। शायद हम में से हर एक ने महफ़िल में न सही पर बाथरूम के अन्दर तो कभी न कभी कोई हिंदी गाना गुनगुनाया ही होगा।
अपने कमाऊ बेटे की कमाई भुनाने के चक्कर में अन्य क्षेत्रीय भाषाओँ के प्रचलित लोकगीत या फ़िल्मी गीत हिंदी फिल्मों में किसी न किसी रूप में आ ही जाते हैं। इस तरह इन गीतों की लोकप्रियता का दायरा अहिन्दी भाषी लोगों को भी समां लेता है। आज हिन्दी फ़िल्मी गीतों के दीवाने भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों तक में फैले हुए है।
साहित्यिक हिंदी तो पुस्तकालयों में सजती है या साहित्यकारों के सीमित वर्ग में इस्तेमाल की जाती है। ये क्लिष्ट भाषा आम लोगों की समझ से परे है। पर हिंदी फ़िल्मी गीतों की भाषा जन मन की आसानी से बोले जाने वाली सरल भाषा है। इस तरह से हिंदी फ़िल्मी गीतों के बहाने से हम अपरोक्ष रूप से हिंदी सीखते भी जाते हैं ।
हिन्दी सिखाने में फ़िल्मी गीतों का अप्रत्यक्ष योगदान
हिन्दी फिल्मी गीत अहिन्दी भाषी लोगों की जबान भी चढ़े दिखाई देते हैं जिन्होंने हिन्दी को कभी औपचारिक रूप से नहीं पढ़ा ।इन गीतों के चाहने वाले अक्सर इसे मन ही मन बार बार गुनगुनाते रहते हैं। इस प्रक्रिया में इन गीतों के बहुत से शब्द उनके अवचेतन मस्तिष्क पर अंकित हो जाते हैं । इस तरह अवचेतन मन में हिंदी शब्दों का भण्डार बढ़ता ही जाता है । उचित समय आने पर ये शब्द जुबान तक का रास्ता भी तय कर लेते है। इस तरह फ़िल्मी गीतों के मध्यम से हिन्दी सीखने का कार्य अप्रत्यक्ष रूप से संपन्न होता है।
हमारे देश और संस्कृति में आदिकाल से भाषा में प्रतीक के रूप में अपने उदगार व्यक्त करने की परंपरा है। इस क्रम में गीत एक सटीक माध्यम है। और फिर फ़िल्मी गीत तो लोकप्रिय होने के कारण से भाषा के प्रसार में भी सहायता कर देता है।
अपार संभावनाएं
हमारे देश में फ़िल्मी गीत दशकों से जनता जनार्दन को सन्देश देने का सस्ता और लोकप्रिय माध्यम बने हुए हैं । इनकी इस उपयोगिता का दोहन समय समय पर चतुर व्यक्तियों और संस्थानों ने किया भी है। उदाहरण के लिए स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में अंग्रेजों की आँखों में धूल झोंक कर फ़िल्मी गीतों के माध्यम से स्वतंत्र सेनानियों ने जन जन के मन में देशभक्ति का भाव जगाया। इसी तरह से ‘अच्छे दिन आने वाले हैं .....’ गीत के दम पर 2014 लोकसभा का लड़ा और जीता भी गया। इस तरह जनमानस तक अपनी बात पहुँचाने की अपार संभावनाएं इस लोकप्रिय माध्यम (फ़िल्मी गीतों) में छुपी हुयी हैं।
क्षमता का दोहन
कहते हैं कि उन्नीस्वी शताब्दी के अंत में देवकीनंदन खत्री की ऐय्यारी और तिलिस्मी दुनिया की झांकी दिखती चंद्रकांता आदि पुस्तकों का दौर आया तो लोग इतने दीवाने हो गए कि बहुत से अहिन्दी भाषी लोगों ने इन पुस्तकों को पढ़ने के लिए ही हिंदी भाषा को सीखा था। इसी तरह से शेरो शायरी के कई शौकीन लोगों को उर्दू या फारसी भाषा सीखते देखा जा है। कहने का भाव यह है कि अगर किसी चीज के प्रति लोगों का दीवानापन हो तो उसकी भाषा लोग अपने आप ही सीखते जाते है।
हमारे देश में अहिन्दी भाषी लोगों का एक बड़ा वर्ग हिंदी फ़िल्मी गीतों का दीवाना तो पहले से है ही और इस कारण अप्रत्यक्ष रूप से वे लोग हिंदी सीख भी रहे हैं पर आवश्यकता है इस माध्यम के अधिक दोहन की ।
अहिन्दी भाषी लोग अक्सर लोग प्रचलित हिंदी फ़िल्मी गानों के शब्द का अर्थ दूसरे लोगों से या फिर कम्पुटर के सहारे जानने का प्रयास करते है और इस तरह शनैः- शनैः हिन्दी सीखते जाते हैं।
हिंदी प्रेमी साहित्यकारों से अपेक्षा है कि अभिव्यक्ति की इस अनौपचारिक पर सशक्त विधा (अर्थात फ़िल्मी गीत ) को उचित सम्मान दें और हिन्दी के प्रचार प्रसार में इसकी क्षमता का दोहन करें।
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दीपक दीक्षित
रुड़की विश्विद्यालय (अब आई आई टी रुड़की ) से इंजीयरिंग की और २२ साल तक भारतीय सेना की ई.ऍम.ई. कोर में कार्य करने के बाद ले. कर्नल के रैंक से रिटायरमेंट लिया . चार निजी क्षेत्र की कंपनियों में भी कुछ समय के लिए काम किया।
पढ़ने के शौक ने धीरे धीरे लिखने की आदत लगा दी । कुछ रचनायें ‘पराग’, ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान’, ‘अमर उजाला’, ‘नवनीत’ आदि पत्रिकाओं में छपी हैं।
भाल्व पब्लिशिंग, भोपाल द्वारा 2016 में "योग मत करो, योगी बनो' नामक पुस्तक प्रकाशित हुयी है।
कादम्बिनी शिक्षा एवं समाज कल्याण सेवा समिति , भोपाल तथा नई लक्ष्य सोशल अवं एनवीरोमेन्टल सोसाइटी द्वारा वर्ष २०१६ में 'साहित्य सेवा सम्मान' से सम्मानित किया गया।
वर्ष 2009 से ‘मेरे घर आना जिंदगी’ (http://meregharanajindagi.blogspot.in/ ) ब्लॉग के माध्यम से लेख, कहानी , कविता का प्रकाशन। कई रचनाएँ प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं तथा वेबसाइट में प्रकाशित हुई हैं।
साहित्य के अनेको संस्थान से जुड़े हुए है। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्टार के के कई गोष्ठियों में भाग लिया है। अंग्रेजी में भी कुछ पुस्तक और लेख प्रकाशित हुए हैं।
आजकल सिकंदराबाद (तेलंगाना) मैं निवास करते हैं।
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