मनुष्य के जीवन में और कुछ हो या ना हो ,दो चीजें जरूर होती है। रोना और हँसना , जैसे ही उसका जन्म होता है सबसे पहले वह रोता है , हँसता नहीं ! ...
मनुष्य के जीवन में और कुछ हो या ना हो ,दो चीजें जरूर होती है। रोना और हँसना , जैसे ही उसका जन्म होता है सबसे पहले वह रोता है , हँसता नहीं ! अर्थात जीवन की शुरूआत ही रोने से है बाद में वह अपना मन बहलाने को कुछ चीजों में खुशी ढूंढ कर हँसने का प्रयास करता है। अर्थात हँसी बाद में प्रयास स्वरूप की गई प्राप्ति है। लोग हँसना चाहते हैं, लोग हँसते हैं, कुछ दूसरों की गलती पर हँसते हैं कुछ दूसरों की हानि पर ! परन्तु रोने का मजा ही अलग है।
जब कोई मनुष्य किसी मनवाँछित स्थिति को प्राप्त करता है, विजयी होता है, कोई बहुत बड़ा ईनाम जीतता है, या मौत से बच निकलता है तो वह हँसता नहीं है , उसकी आंखों में आँसू आते हैं ! जब कोई बात या भावना दिल को छू जाती है तो आंसू आते हैं हँसी नहीं ! जब कोई बिछुड़ा हुआ अपना मिलता है तो आँसू आते हैं। अर्थात जीवन का प्रगाढ़तम भाव रोना है , हँसना नहीं। आपसे सच्चा प्रेम करने वाला वो नहीं है जो हँस - हँस के बात करता है बल्कि सच्चा प्रेमी वह है जो आपके लिये रोता है। यदि आपसे कोई कहे कि मैं ऐसा हूँ - वैसा हूँ ... ये बातें झूठ भी हो सकती है ? क्योंकि जबान झूठ बोल सकती है ! परन्तु आँसू झूठ नहीं बोल सकते ! आँसू , दिल की जबान होते हैं।
रोने से मन हल्का हो जाता है हँसने से नहीं ! जीवन का आनन्द रोने में है - जब आदमी गहरी कथा भागवत सुनता है, ईश्वर के प्रेम में डूबता है तो उसके आँसू बहने लगते है , रोने से वह ईश्वर के नजदीक जाता है। मीरा ने भी कृष्ण के प्रेम में आँसू बहाए थे।
असुँवन जल सींची सींची प्रेम बेल बोई
अब तो बेलि फैलि गई आनन्द फल होई
जब सुदामा के यही आँसू कृष्ण ने देखे, तब उनका भक्त वत्सल भाव छलक उठा -
पानी परात को हाथ छुओ नहीं
नैनन के नीरन सों पग धोयो
आँसू दो प्रकार के होते हैं - सुख के आँसू और दुःख के आँसू
हँसी खुशी मिलन और उत्सव के अवसर पर आने वाले आँसू सुख के आँसू हैं, ये भावप्रधान दया ममता प्रेम और मानवीय संवेदनाओं से ओतप्रोत, निश्छल निर्मल करूण हृदय की निशानी है, कठोर हृदय के स्वामी आँसू मुक्त होते हैं। कष्ट विरह वेदना और आत्म-सम्मान को ठेस पहुँचने पर आए आँसू , दुःख के आँसू है। ये विवशता ग्लानि और छटपटाहट को प्रदर्शित करने वाले होते है और बह जाए तो अच्छा है। यदि ये न बहे तो आक्रोश में बदलते हैं और मन बुद्धि को क्रोधित कर द्वेष उत्पन्न करते हैं। यही सामाजिक विद्वेष बदले की भावना और अपराध का जनक है।
किसी के दुःख के आँसू देखकर लोग उसकी हँसी उड़ाते हैं , इसीलिए मैं आँसू से कहता हूँ -
ओ निश्छल से भोले आँसू
क्यों पागलपन दिखलाते हो
कहने को मन की पीड़ा क्यों
पलकों से ढल जाते हो
देख चुके हो जग का हँसना
फिर भी समझ न पाते हो
थोड़ी सी नादानी में तुम
क्यों ? अपमान कराते हो
मत बाहर आओ नैनों के
आँसू तुम छुप जाओ यार
देखो जग उपहास करेगा
मतलब का है सब संसार
मन के भाव छुपे रहने दो
निष्ठुर मेला जग संसार
चोट हृदय की खुद सह लेना
ना बहना यूँ ही बेकार
आँसू तुम अनमोल धरोहर
दिल के छालों का तुम सार
खुशियों में भी पलक भिगोकर
अपनों की करते मनुहार
कृष्ण और सुदामा के आँसू में
भेद कहाँ जाने संसार
उसके आँसू प्रेम समर्पण
कृष्ण के आँसू में मनुहार
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कवि - कमल किशोर वर्मा कन्नौद
कवि परिचय -
कमल किशोर वर्मा , दुर्गा कालोनी कन्नौद जिला देवास म.प्र. शिक्षा - बी. एससी . एम.ए. बी.एड.
कवि, लेखक, गीतकार, संगीतकार, चि़त्रकार, ज्योतिषी, हस्तरेखा विशेषज्ञ, सामुद्रिकशास्त्र, वास्तुशास्त्र विशेषज्ञ, आयुर्वेद के ज्ञाता, प्राचीन भारतीय संस्कृति के मर्मज्ञ इतिहासकार
लिखी गई पुस्तकें -
काव्यांजलि निहारिका भाग 1 तथा भाग 2 ( काव्य संग्रह )
एक चम्मच सच ( व्यंग्य लेख व कहानी संग्रह )
मुगल काल का काला सच ?
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कैसा महात्मा था गाँधी ?
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पुस्तक परिचय - देव चर्चा
पुस्तक देवचर्चा का कथानक इस प्रकार प्रारम्भ होता है कि भगवान विष्णु ने एक बार नारदजी से कहा कि हे नारद, हमारे प्रिय आर्यावर्त भारतखंड से हमें श्रीकृष्ण रूप से आए लगभग 5000 साल हो गए हैं आप भारत में जाकर 6 माह रहिए और हमें वहाँ का सब बात हाल समाचार विस्तार से बताइये। तब नारदजी भारत आए और यहाँ के हालात का विस्तार से वर्णन किया .. यहाँ के दुःख-दर्द, लाचारी, चोरी, बेइमानी, सत्तालोलुपता, भ्रष्टाचार, अन्याय और अत्याचार की कथा विस्तार से सुनाई। वही कथानक है।
पुस्तक परिचय - सिन्धु का विनाश कारण और विश्लेषण
सिन्धु घाटी की सभ्यता के बारे में आज बहुत सी बातें जानी जा चुकी है। सब जानते हैं कि सिन्धु घाटी की सभ्यता बहुत विकसित थी। परन्तु खुदाई से प्राप्त कुछ बर्तन औजार मकान गली सड़क से उस समय की भौतिक जानकारी ही प्राप्त होती है, मानसिक वैचारिक कर्तव्यनिष्ठा कार्यशैली आपसी तालमेल, विचारधारा, शासन व्यवस्था अधिकारियों कर्मचारियों की कार्य शैली उनके कार्य व्यवहार नियम रीति-रिवाज और भ्रष्टाचार के बारे में खुदाई से पता नहीं चल सकता ! अब सबसे बड़ा प्रश्न है कि इतनी विकसित सभ्यता नष्ट क्यों हो गई ? सिन्धु घाटी की सभ्यता नष्ट होने का कारण मैं जानता हूँ। सिन्धु घाटी में उस समय लगभग 38 विभाग थे जिनमें लगभग 5000 नियम, कानून, योजना, कार्य, कार्यशैली, और कार्यपद्धति मूर्खतापूर्ण और भ्रष्ट थी। ये योजनाएँ सिर्फ इस लिये बनाई गई थी कि राजा और अधिकारियों को कमीशन और रिश्वत मिल सके ! समाज देश मानवता का क्या होगा ? इसका न तो उनको ज्ञान था न इससे उनको मतलब ? वे सिर्फ वही योजना बनाते थे जिसमें उनको धन मिले ! उन सब मूर्खतापूर्ण योजनाओं का वर्णन इस पुस्तक में है। राजा और अधिकारियों की सत्तालोलुपता जिद तानाशाही भ्रष्टता और मूर्खता से कैसे विनाश हो जाता है यही विवेचना है।
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