यूँ तो मंजिल ग्रुप साहित्यिक मंच जिसे मगसम के नाम से जाना जाता है ने मुझे लाल बहादुर शास्त्री साहित्य सम्मान देने की घोषणा अप्रैल में ही कर ...
यूँ तो मंजिल ग्रुप साहित्यिक मंच जिसे मगसम के नाम से जाना जाता है ने मुझे लाल बहादुर शास्त्री साहित्य सम्मान देने की घोषणा अप्रैल में ही कर दी थी या सम्मान रचनाकार को उसकी अनुपस्थिति में मगसम के साहित्यिक समागमों में भारत के विभिन्न राज्यों में ५ हज़ार श्रोताओं द्वारा पसंद के पश्चात दिया जाता है। मगसम के गाडरवारा के संयोजक विजय बेशर्म ने मुझ से कहा "सर अगस्त में हम चेतना साहित्यिक मंच के बैनर तले आपकी पुस्तकों का विमोचन कर रहें हैं तो क्यों न यह सम्मान उसी समारोह में आप प्राप्त करें" ,मुझे क्या आपत्ति हो सकती थी सो मैंने हाँ भर दी। आनन फानन में सुधीर जी को फोन लगाया और सुधीर जी ने बनारस कार्यालय से अनुमति लेकर समारोह में सम्मलित होने की अनुमति प्रदान कर दी। उस समारोह में आदरणीय नरेंद्र श्रीवास्तव जी की सात पुस्तकें एवं श्री कुशलेन्द्र श्रीवास्तव जी की पांच पुस्तकों के साथ मेरी छह पुस्तकों का विमोचन होना तय हुआ। मेरे लिए 6 अगस्त की तारीख तय हुई शाम आठ बजे से पुस्तक विमोचन और दोपहर में 2 से लालबहादुर शास्त्री साहित्य रत्न सम्मान का समारोह निर्धारित किया गया।
3 अगस्त को अचानक चुनावी प्रक्रिया शुरू हो गई और नरसिंहपुर निर्वाचन कार्यालय से मेरा नाम मास्टर ट्रेनर के रूप में मुद्रित होकर आ गया उसी दिन चुनाव की मीटिंग रखी गई मीटिंग में कलेक्टर महोदय ने बताया की 6 तारीख से evm मशीनों की एफ एल सी होना है और इस कार्यक्रम में किसी भी प्रकार की कोताही बर्दाश्त नहीं होगी अब मुझे काटो तो खून नहीं क्योंकि ६ तारीख में ही मेरा पूरा पुस्तक विमोचन और लालबहादुर शास्त्री सम्मान का कार्यक्रम निर्धारित था कार्ड बँट चुके थे मैं निराश होकर घर लौटा तो एक और समस्या धावा करने को तैयार थी माताजी की पाइल्स बहुत क्रिटिकल स्थिति में पहुँच गईं थी और डॉक्टर ने जल्द से जल्द ऑपरेशन की सलाह दी अब मैं किंकर्तव्यविमूढ़ की स्थिति में था फिर सोचा जो होगा देखा जायेगा ऐसी स्थिति में मेरे पूज्य पिताजी ही मेरी पुस्तकों का विमोचन करवाएंगे और वही यह सम्मान प्राप्त करेंगे।
आखिर ईश्वर की कृपा हुई समाचार प्राप्त हुआ कि evm मशीनों की एफ एल सी में मेरा नाम नहीं है एवं माताजी को डॉक्टर ने ९ अगस्त के चेकअप का समय दिया मैंने ईश्वर को मन से धन्यवाद दिया।
पांच अगस्त को सुबह सुधीरजी नई दिल्ली एक्सप्रेस से गाडरवारा पहुंचे स्टेशन के पास नीलकंठ होटल में सभी अतिथियों के रुकने एवं खाने पीने की व्यवस्था की गई उसी दिन तुलसी अकदामी भोपाल के अध्यक्ष श्री मोहन तिवारी जी एवं बटोही संस्था कानपुर के श्री अशोक गुप्त जी भी उस कार्यक्रम में सम्मिलित होने के लिए पधारे थे । पांच अगस्त को श्री नरेंद्र श्रीवास्तव जी की सात पुस्तकों का विमोचन होना था सुबह करीब 9 बजे नरेंद्र जी का फ़ोन आया कि मै नीलकंठ होटल आ जाऊं सुधीर जी इन्तजार कर रहें हैं मैं अपनी दैनिक चर्या से फारिग होकर होटल नीलकंठ पहुंचा कमरा नंबर 205 की बेल बजाई विजय बेशर्म ने दरवाजा खोला साथ ही नरेंद्र जी खड़े थे कमरे में मैं अंदर पहुंचा तो वही चिरपरिचित दुबलीपतली काया खड़ी थी मुस्कुराते हुए सुधीर जी से भेंट की, सफर की थकान उनके चेहरे पर स्पष्ट थी लेकिन गर्मजोशी में कहीं कोई कमी नहीं थी। हम लोग काफी देर तक साहित्य पर चर्चा करते रहे इसी बीच सुधीर जी पुराने कार्यक्रमों पर चर्चा करने लगे आज जिस प्रकार का साहित्य लिखा जा रहा है और प्रकाशक साहित्यकारों को कैसे लूट रहें हैं पर चर्चा हुई। विजय ने कार्यक्रम की विस्तृत रूप रेखा सुधीर जी को बताई। इसी बीच सुधीर जी ने अपने बैग्स खोल कर कार्यक्रम के सभी प्रमाणपत्र विजय को सौंप दिए चूँकि विजय पूरे कार्यक्रम के संयोजक थे उन्हें तैयारी करनी थी सो वो हम लोगों से अनुमति लेकर चले गए।
करीब 12 बजे हम लोग ने सुधीर जी को भोजन का आग्रह करके होटल से प्रस्थान किया चूँकि कानपुर बटोही साहित्यिक संस्था के अध्यक्ष श्री अशोक गुप्त अशोक आने वाले थे हमने स्टेशन पर उनका स्वागत किया और उन्हें भी होटल नील कंठ में पहुंचा रात में होने वाले कार्यक्रम की तैयारी में व्यस्त हो गए रात को भोपाल से तुलसी अकादमी के अध्यक्ष श्री मोहन तिवारी "आनंद "का स्वागत कर हम लोग तीनों मेहमानों को मेरी गाड़ी में लेकर समारोह स्थल पर पहुंचे। इसी बीच में साहित्यिक वार्तालाप देखने को मिला जब तुलसी एकेडमी के श्री मोहन तिवारी जी ने सुधीर जी को परिचय दिया श्री मोहन तिवारी जी बोले
"सुधीर जी क्या मैं आपको अपना परिचय दूँ "
सुधीर जी "अवश्य "
मोहन तिवारी जी "मेरी करीब 80 पुस्तकें प्रकाशित हैं और पुस्तकें पाठ्य पुस्तक के रूप में विभिन्न राज्यों में प्रचलित हैं। "
सुधीर जी ने मुस्कुराते हुए कहा "अब मैं आपको अपना परिचय दूँ "
"मैं एक अंतरराष्ट्रीय साहित्यिक संस्था का राष्ट्रीय संयोजक हूँ सन 1982 से लिख रहा लेकिन अभी तक एक भी पुस्तक प्रकाशित नहीं करायी"
श्री मोहन तिवारी जी बहुत प्रभावित हुए और अब सुधीर जी के अच्छे दोस्त हैं।
मेरे मन में कुछ प्रश्न उठ रहे थे जिनके उत्तर सिर्फ मुझे ही ढूंढ़ने थे। हिंदी के साहित्यिक मंच पर अगर हम हिंदी का विश्लेषण करें तो हम पाते हैं कि हिंदी से तो 'राष्ट्रीयता' की सबसे तीखी गंध आती है। नतीजतन भूमंडलीकरण की विश्व-विजय में सबसे पहले निशाने पर हिंदी ही है। इसका एक कारण तो यह भी है कि यह हिंदुस्तान में संवाद, संचार और व्यापार की सबसे बड़ी भाषा बन चुकी है। दूसरे इसको राजभाषा या राष्ट्रभाषा का पर्याय बना डालने की संवैधानिक भूल गांधी की उस पीढ़ी ने कर दी, जो यह सोचती थी कि कोई भी मुल्क अपनी राष्ट्रभाषा के अभाव में स्वाधीन बना नहीं रह सकता। चूँकि भाषा संप्रेषण का माध्यम भर नहीं, बल्कि चिंतन प्रक्रिया एवं ज्ञान के विकास और विस्तार का भी हिस्सा होती है। उसके नष्ट होने का अर्थ एक समाज, एक संस्कृति और एक राष्ट्र का नष्ट हो जाना है। ये सारा मंथन मैं गाड़ी को चलाते हुए सोच रहा था।
कार्यक्रम स्थल पर पूरी तैयारी थी सभी लोग हमारा ही इंतज़ार कर रहे थे चूँकि रविवार का दिन था इस लिए पर्याप्त मात्रा में लोग उपस्थित थे। अतिथियों के मंचासीन होने के बाद सरस्वती पूजन हुई तत्पश्चात समारोह आधिकारिक रूप से शुरू हुआ।
मैं और सुधीर जी विशिष्ट अतिथियों की कतार में बैठे थे हम लोग बीच बीच में कार्यक्रम संयोजन से सम्बंधित व्यवस्थाओं पर टिप्पणी कर रहे थे अतिथियों के स्वागत सत्कार के बाद पुस्तक विमोचन शुरू हुआ सर्व प्रथम श्री चाणक्य दुबे जी की प्रथम कहानी संग्रह "प्रेरणा "का विमोचन हुआ उसके बाद नरेंद्र जी की एक एक कर सात पुस्तकों "ऐसा तो नहीं " "किसी के हिस्से में " "तिकड़म " "हाले दिल " "ये और बात यही " "शब्द बोलते हैं " "तनक हंस बोल लइयें " का अतिथियों द्वारा विमोचन किया गया.इसी बीच सुधीर जी ने पास बैठे एक बालक से पूछा "बेटा ये क्या हो रहा है "उसका जबाब अपेक्षित था "मुझे नहीं पता "हम लोग उसके बाल सुलभ जवाब पर हंस पड़े।
सब अतिथियों ने साहित्य और रचना धर्मिता पर ही अपना उद्बोधन केंद्रित रखा रात के करीब 10 . 30 बजे थे मैंने सुधीर जी से पुछा "आपको भूख लगी होगी " सुधीर जी मुस्कुराये बोले भूख तो लगी है लेकिन साहित्य का भोजन उस भूख को मिटा रहा हैं सुधीर जी बोले आप चिंता मत करो मैंने होटल वाले से पूछ लिया है वह हमारे आने तक भोजन सुरक्षित रखेगा। विमोचन के पश्चात काव्य पाठ शुरू हुआ सिवनी से आये एक कवि संतोष बरमैया ने मंदसौर बलात्कार के ऊपर रचित कविता को जब पूरे मनोयोग से सुनाया तो श्रोता अपने आंसू नहीं रोक पाए। इसी बीच सुधीर जी ने भी अपनी कविता से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया अशोक गुप्त जी ने एवं श्री मोहन तिवारी जी ने भी अपनी कविताओं से श्रोताओ को आंदोलित किया। करीब 11. 30 पर कार्यक्रम समाप्त हुआ एवं हम सब अतिथियों को छोड़ने होटल नीलकंठ पहुंचे अतिथियों से भोजन आग्रह के पस्चा हमने उनसे सुबह तक के लिए विदा ली।
दूसरे दिन 6 अगस्त को दिन में दो बजे से मेरा सम्मान समारोह होना था साथ ही रात्रि को मेरी छह किताबों का विमोचन था श्रावण सोमवार था सुबह से मस्तिष्क बहुत चिंता में था इसी बीच नरेंद्र जी का फोन आया कि मैं शीघ्र होटल नीलकंठ पहुंचूं. अतिथियों को शिव धाम "डमरू घांटी "घुमाना है में अपनी गाड़ी लेकर होटल नीलकंठ पहुंचा सभी अतिथियों को लेकर मैं और नरेंद्र जी डमरू घाटी पहुंचे। सभी अतिथि उस प्रांगण की भव्यता देख कर मन्त्र मुग्ध थे पूजा अर्चन करने के पश्चात हम सभी होटल नील कंठ पहुंचे। चूँकि दोपहर को सम्मान समारोह था अतः मैं शीघ्रता से घर पहुंचा घर में देखा तो माता जी की तबीयत ज्यादा बिगड़ रही थी उनको कुछ दवाई देकर डॉ को दिखाकर जैसे तैसे कार्यक्रम में पहुंचा पता चला की समारोह स्थल पर बिजली सुधार कार्य चल रहा है और बिजली शाम को छह बजे से पहले नहीं आएगी। मुझे बहुत चिंता हो रही थी क्योंकि कामकाज का दिन था लोग ऑफिस और अपने बिजिनेस में व्यस्त थे और सामान्य लोगों के लिए साहित्य इतना महत्वपूर्ण नहीं था कि वो अपना आफिस और व्यवसाय छोड़ कर सम्मलित हों।
सुधीर जी ने मुझे ढाढस बंधाया बोले सुशील जी आप चिंता मत करो अगर हम पांच लोग होंगे तो भी कार्यक्रम सफल होगा। मैंने विचार किया कि क्यों न लोगों की भीड़ बढ़ने के लिए मैं अपने विद्यालय के छात्रों को बुला लूँ लेकिन मेरी अंतरात्मा ने कहा की तुम्हारे सम्मान से ज्यादा तुम्हारे छात्रों की पढाई महत्वपूर्ण है। आखिर जैसे तैसे पच्चीस तीस लोग उस समय मेरी खातिर आ ही गए। बिजली गोल थी इसी बीच विजय रोटरी क्लब का बैटरी वाला माइक ले आये श्री कुशलेन्द्र श्रीवास्तव की अध्यक्षता में एवं तुलसी अकादमी के अध्यक्ष श्री मोहन तिवारी जी के मुख्य आतिथ्य व मेरे पिता श्री पूज्य अन्नीलाल जी शर्मा व आदरणीय सुधीर जी एवं श्री चाणक्य दुबे जी के विशिष्टय आतिथ्य में कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ सरस्वती पूजन उपरांत राष्ट्रिय गीत वनडे मातरम से कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ ,सुधीर जी ने मगसम एवं सम्मान के बारे में विस्तृत जानकारी दी तत्पचात शतकवीर से सम्मानित डॉ मंजुला शर्मा ,श्री वेणीशंकर बज्र श्री अनंत समय अम्बर ,श्रीमती प्रगति पटेल ,श्री पोषराज अकेला एवं छात्र प्रमोद प्रखर को सम्मानित किया। तत्पचात मुझे मेरे पिता श्री के हाथों से लालबहादुर शास्त्री साहित्यरत्न सम्मान दिया गया। मैं गौरवान्वित महसूस कर रहा था। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री मोहन तिवारी जी ने कहा कि इस मंच से पवित्र कोई दूसरा मंच नहीं हो सकता जहाँ एक पिता के छहों से एक पुत्र सम्मानित हो रहा है। इसी मध्य श्री मोहन तिवारी जी ने तुलसी अकादमी की गाडरवारा शाखा को प्रारम्भ करने की घोषणा की जिसका अध्यक्ष श्री कुशलेन्द्र जी को एवं सचिव का का दायित्व मुझे सौंपा गया गया। मेरे सभी आत्मीय जनों ने एवं मेरे स्टाफ के सदस्यों ने शाल श्रीफल से मेरा स्वागत किया तो मन अभिभूत हो गया। राष्ट्रीय गान से समारोह संपन्न हुआ मेरी आधी चिंता ख़त्म हो गई। शीघ्रता से सभी अतिथियों को होटल में प्रस्थान कराने के बाद हमलोग रात्रि के कार्यक्रम की रूपरेखा में व्यस्त हो गए।
रात्रि को हमलोग कार्यक्रम के मुख्य अतिथि विदिशा के साहित्यकार श्री शिव डोयले जी को लेकर कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे। सभी मंचासीन अतिथियों ने सरस्वती पूजन के पश्चात पुस्तक विमोचन कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ। सर्व प्रथम श्री संतोष भावरकर की कविता संग्रह "जीवन सुधा " विमोचित हुई। तत्पश्चात मेरी छह पुस्तकें "सरोकारों के आईने " "विज्ञान अन्वेषिका " "गीत विप्लव " :मन के मोती " "अंतर्नाद " "अंतर्ध्वनि " बारी बारी से सम्माननीय अतिथियों के द्वारा विमोचित की गईं। सम्माननीय अतिथियों ने मेरी पुस्तकों पर अपने बेबाक विचार रखे सुधीर जी ने मेरी प्रायः सभी पुस्तकों पर अपनी संक्षिप्त समीक्षा रखी। सभी सम्माननीय स्वजनों ने एवं अध्यापक संवर्ग ने मेरा स्वागत कर मुझे अभिभूत किया। 10 . 30 बजे से काव्य गोष्ठी प्रारंभ हुई किन्तु कोई भी कवि ज्यादा प्रभाव नहीं छोड़ पाया इस बात कोलेकर विजय से मेरी शिकायत रही कि कोई एक तो अच्छा कवि आज के दिन होना था। सुधीर जी ने इस विषय पर हम लोगों से गंभीर चर्चा की एवं सुझाव दिया कि कार्यक्रम से पहले कवियों की रचनाएँ जरूर सुनी जावें और उन्हें आवश्यक निर्देश दिए जावें ताकि बाहर के साहित्यकार एक अच्छा प्रभाव लेकर जावें। सुधीर जी ने शिव डॉयले जी ने एवं कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री गुरु प्रसाद सक्सेना "सांड नरसिंहपुरी " ने अपने काव्य पाठ से श्रोताओं को प्रभावित किया। आज का कार्यक्रम भी सानंद संपन्न में संपन्न हुआ मेरी सारी चिंताएं दूर हुई उस रात मुझे अच्छी नींद आयी।
तीसरे दिन 7 अगस्त को वरिष्ठ साहित्यकार कुशलेन्द्र श्रीवास्तव जी की पांच पुस्तकों का विमोचन होना था साथ ही ये आनंद का विषय था की उसी दिन कुशलेन्द्र जी का जन्मदिन था आठ सभी लोग उस कार्यक्रम को स्पेशल तरीके से मनाने में जुट गए। शाम को इस समारोह के मुख्य अतिथि दैनिक भास्कर के साहित्य सम्पादक श्री मोहन शशि जी ,व्यंग्यकार श्री विवेक रंजन जी एवं अन्य वरिष्ठ साहित्यकार जबलपुर से पधार चुके थे। इसी समय करीब सात बजे सुधीर जी को नई दिल्ली एक्सप्रेस से वापिस होना था। मैं और नरेंद्र जी उन्हें स्टेशन पर छोड़ने आये हम लोगों की व्यस्तता देखा कर सुधीर जी ने हमें तुरंत वापिस होने को कहा हम लोगों का मन उन्हें छोड़ने को नहीं हो रहा था किन्तु कार्यक्रम की व्यस्तता के चलते हमें स्टेशन से शीघ्र ही वापिस जाना पड़ा।
जब हम कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे तो कार्यक्रम शुरू हो चुका था। सरस्वती पूजा उपरांत सर्वप्रथम श्रीमती कमला नगरिया की पुस्तक जयघोष का विमोचन हुआ तत्पश्चात कुशलेन्द्र जी की पांच पुस्तकों :सिलबट्टा " "रामेति बहु " "कुछ छूट जाने की वेदना " 'कहो तो कह दूँ " "अत्र कुशलं तत्रास्तु "का विमोचन संपन्न हुआ। इसके पश्चात नवोदित साहित्यकारों को चेतना सम्मान से सम्मानित किया गया।
विमोचन उपरांत काव्य गोष्ठी का आयोजन हुआ सांईखेड़ा की नवोदित रचनाकार श्रीमती ज्योति श्रीवास्तव की रचना "इंसान की इंसान बनाती है किताबें "श्रोताओं के मन को मोह गई। सभी रचनाकारों ने मधुरकंठ से रचना पाठ कर श्रोताओं को अंतिम समय तक बंधे रखा।
कार्यक्रम के अध्यक्ष समाजसेवी श्री मिनेंद्र डागा एवं पूर्व विधायक श्रीमती साधना स्थापक ने साहित्य को समाज का निर्माण करक एवं साहित्यकार को समाज का पथ प्रदर्शक निरूपित किया। करीब १२ बजे कार्यक्रम का समापन हुआ। तीनों दिन कार्यक्रम का सफल सञ्चालन मगसम के संयोजक मेरे प्रिय शिष्य विजय बेशर्म ने किया।
कुछ संस्मरण जिंदगी को दिशा देते हैं ,ये तीन दिवसीय साहित्य समागम भी उन संस्मरणों में से एक है जिसने मेरे साहित्य और मेरे रचना संस्कार को नई पहचान दिलाई है। जब कभी भी साहित्य समागम होता है तो मुझे प्रभु जोशी की वो पंक्तिया याद आती हैं जो उन्होंने नई पीढ़ी की सोच को हिंदी के प्रति उद्धृत की थीं "हिंदी में अतीतजीवी अंधों की बूढ़ी आबादी इतनी अधिक हो चुकी है कि उनकी बौद्धिक-अंत्येष्टि कर देने में ही तुम्हारी बिरादरी का मोक्ष है। दरअसल कारण यह कि वह बिरादरी अपने 'आप्तवाक्यों' में हर समय 'इतिहास' का जाप करती रहती है और इसी के कारण तुम आगे नहीं बढ़ पा रहे हो। इतिहास ठिठककर तुम्हें पीछे मुड़कर देखना सिखाता है, इसलिए वह गति-अवरोधक है। जबकि भविष्यातुर रहनेवाले लोगों के लिए गरदन मोड़कर पीछे देखना तक वर्ज्य है। एकदम निषिद्ध है। ऐसे में बार-बार इतिहास के पन्नों में रामशलाका की तरह आज के प्रश्नों के भविष्यवादी उत्तर बरामद कर सकना असंभव है।
यदि हमें हिंदी को आमतौर पर और तमाम अन्य भारतीय भाषाओं को खासतौर पर बचाना है, तो पहले हमको प्राथमिक-शिक्षा पर एकाग्र करना होगा और विराट-छद्म को नेस्तानबूत करना होगा, जो बार-बार ये बता रहा है कि अगर प्राथमिक शिक्षा में पहली कक्षा से ही अंग्रेजी अनिवार्य कर दी जाए, तो देश फिर से सोने की चिड़िया बन जाएगा। जहाँ तक भाषा में महारत का प्रश्न है, संसार भर में हिंदुतान के ढेरों प्रतिभाशाली वैज्ञानिक उद्योगपति और रचना लेखक रहे हैं, जिन्होंने अपनी आरंभिक शिक्षा अंग्रेजी में पूरी नहीं की। बहरहाल ये साहित्य समागम हिंदी साहित्य के संवर्धन विशेषकर महाकौशल क्षेत्र के लिए एक संजीवनी का काम करेगा।
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