डॉ. जयश्री सिंह सहायक प्राध्यापक एवं शोधनिर्देशक, हिन्दी विभाग, जोशी - बेडेकर महाविद्यालय ठाणे - 400601 महाराष्ट्र कहानी - ३ सिक्का बदल गया...
डॉ. जयश्री सिंह
सहायक प्राध्यापक एवं शोधनिर्देशक, हिन्दी विभाग,
जोशी - बेडेकर महाविद्यालय ठाणे - 400601
महाराष्ट्र
कहानी - ३
सिक्का बदल गया - कृष्णा सोबती
लेखक परिचय :- भारतीय साहित्य के परिदृश्य पर कृष्णा सोबती अपने संयमित अभिव्यक्ति और सुथरी रचनात्मकता के लिए मशहूर हैं। कविता में गद्य के क्षेत्र में पदार्पण करने वाली हिंदी की प्रख्यात कथाकार कृष्णा सोबती का लेखन आज भी काव्य की कोमलता एवं माधुर्य से ओतप्रोत है। हिंदी कथा साहित्य को नए रचनात्मक आयाम देती भाषा शैली उनके पास है। नारी के अंतर्मन को पहचानने की कला में निपुण हैं। उनकी कहानियाँ कथ्य और शिल्प दोनों दृष्टियों से उनके रचनात्मक वैविध्य को रेखांकित करती हैं। आज के बदलते परिवेश में भी इनकी कहानियों की प्रासंगिकता बनी हुई है।
कृतियाँ – डार से बिछुड़ी, मित्रों मरजानी, यारों के यार, तीन पहाड़, बादलों के घेरे, सूरजमुखी अँधेरे के, जिंदगीनामा, ए लड़की, दिलोदानिश, हम हशमत (भाग १ – २)। साहित्य अकादेमी की महत्तर सदस्यता समेत कई राष्ट्रीय पुरस्कारों औरलान्क्र्नों सेशोभित कृष्णा सोबती ने पाठकोण को निज के प्रति सचेत और समाज के प्रति चैतन्य किया है। उन्हें हिन्दी अकादमी दिल्ली की ओर से शलाका सम्मान से सम्मानित किया गया है।
देश विभाजन से संबंधित कृष्णा सोबती की कहानियों में सबसे चर्चित एवं प्रसिद्ध कहानी है- “सिक्का बदल गया” है। इसका प्रकाशन ‘प्रतीक’ में 1948 में हुआ था। अज्ञेय जी इस पत्रिका के संपादक थे। इसमें विभाजन से उत्पन्न दारुण परिस्थितियों के मार्मिक चित्रण के साथ मानवीय संबंधों और मूल्यों में आए विघटन का भी काफी वर्णन हुआ है।
कहानी की कथावस्तु :- ‘सिक्का बदल गया’ एक विधवा नारी की पराधीनता तथा विवशता एवं शोषित वर्ग के बदलते सामाजिक मानदंडों का सफल चित्रण है। प्रस्तुत कहानी देश विभाजन की पृष्ठभूमि में लिखी गई है। सत्ता परिवर्तन मानव को नहीं देखता, देखता है तो केवल सिक्के को।
इस कहानी के मुख्य पात्र ‘शाहनी’ है जिसके पति शाहजी का देहांत हो चुका है। शाहनी रोज पौ फटने पर चनाब में नहाने जाया करती थी। एक दिन अचानक उसके मन में एक भय छाने लगा। ‘जम्मीवाला’ कुआं, मीलों फैले उनके खेत सब पर उसकी दृष्टि पड़ती है। मन अस्वस्थ होने के कारण हवेली जाने के पहले वह शेरा के घर जाती है। शेरा जो पहले शाहजी का सेवक था। उसकी मां की मृत्यु के पश्चात शाहनी के यही पलकर बड़ा हुआ था। उस समय शेरा साहनी की ऊंची हवेली की अंधेरी कोठरी में रखी सोने-चांदी की संदूकचीयाँ उठाने की सोच में था। इसलिए स्नेह का पर्दा डालकर वह शाहनी से कुशल पूछता है। शाहनी उसके सम्मुख यह शंका रखती है कि पिछली रात कुल्लूवाल के लोग यहां आए होंगे। यदि शाहजी जीवित रहते तो ऐसा ना होता। तब शेरा के मन में यह विचार आता है कि आज शाहजी नहीं है अतः कोई कुछ नहीं कर सकता। पहले गांव के पीड़ित असामियों से सूद वसूल करके शाहजी ने सोने की बोरियां भरी थी। आज वही लोग इसका बदला ले रहे हैं। शेरा शाहनी को घर तक छोड़ने आता है। शाहनी के साथ चलने पर भी उसका मन इधर उधर भटकता है कि कहीं कोई देख तो नहीं रहा है। शाहनी की बड़ी हवेली को लूटने के लिए बाहर पूरा गांव खड़ा है। बीती रात ही इस बड़ी हवेली को लूट लेने की बात तय हुई थी। शाहनी सबकुछ जानती थी। उसने उन लोगों को बात करते सुना। किन्तु सबकुछ जानकर भी वो अन्ह्जन बनी हुई थी, क्योंकि आज वो बात नहीं रही अब सिक्का बदल गया है। रसूली के सूचित करने पर कि ट्रकें आ गयी हैं और अब उसे उनकी योजनानुसार इस हवेली को छोड़ कर चले जाना है। शाहनी किसी को बुरा भला न कहकर किसी पर दोषारोपण न करके हवेली से बाहर निकलती है। थानेदार दाऊद खां उसके पास आकर कहता है हवेली छोड़ने से पहले यदि वो अपने साथ कुछ साथ लेना चाहे तो ले सकती है किन्तु शाहनी अपनी ही सम्पत्ति में से सोना-चांदी पैसा कुछ भी ले कर चलने से इंकार कर देती है वहां खड़े सारे लोग जो कभी उसके इशारे पर नाचते थे जिन्हें कभी उसने अपने नातेदारों से कम नहीं समझा, आज उनमे से कोई उसका अपना नहीं है आज उन गाँव वालों के भीड़ के बीच भी वे अकेली हैं बिलकुल अकेली। बेगू पटवारी और मुल्ला इस्माल जैसे लोग शाहनी के पास खड़े हो कर भी उससे नजरे नहीं मिला पा पाते। शेरा आ कर कहता है कि बहुत देर हो रही है। यह सुनकर शाहनी चौक पड़ती उसका मन आहात हो उठता है किसी समय वह इस हवेली की रानी थी, मालकिन थी। आज उसे अपने ही घर में देर हो रही है। आँखों के आँसू पोछ कर वह शान से उस हवेली की ड्योढ़ी पर कर लेती है। भीगी पलकों से हवेली की कुलवधू आज उसके अंतिम दर्शन कर प्रणाम करती है शाहनी ट्रक की ओर चल देती है उसका बडा सा भवन पीछे छूट जाता है। सज पलट जाने पर जो लोग बूढी सहनी को अपने पास रख न सकेउन सभी को जाते समय भर्राये हुए गले से शाहनी आशीर्वाद भिदेती है कि ईश्वर उनका भला करें, उन्हें सलामत रखें। ट्रक में बैठने पर शेरा शाहनी के पांव छूते हुए कहता है कि वह कुछ नहीं कर सकता, क्योंकि राज पलट गया है, सिक्का बदल गया है। शाहनी के लिए सिक्का नहीं बदलेगा क्योंकि वह उसे गांव में ही छोड़कर जा रही है। रात को कैंप में पहुंचकर भी उसके मन में यह प्रश्न उठता रहा कि सिक्का क्या बदलेगा? वो खुद उससबकुछ छोड़ कर आयी है
इसप्रकार पीड़ित वर्ग के साथ-साथ अकेली, असहाय बूढी धनाढ्य नारी की शोचनीय दशा का चित्र कृष्णा सोबती जी ने इस कहानी में खींचा है। प्रस्तुत कहानी में शोषक और शोषित वर्ग के बीच के संघर्ष का चित्रण है। शाहों के घर में नौकरी करने वाले असामी आज शोषक वर्ग के विरुद्ध इकट्ठा हो गए हैं। जमाना बदल गया है, सिक्का बदल गया है। इस प्रकार कृष्णा सोबती जी ने विभाजन के कटु सत्य को उचित तथ्यों के साथ कहानी में प्रस्तुत किया है।
निष्कर्ष :- हम कह सकते हैं- प्रस्तुत कहानी में एक विधवा नारी की पराधीनता का मनोवैज्ञानिक चित्रण हुआ है। मालिक के जीवित रहते उसका सलाम करनेवाले उसकी मृत्यु पर मालकिन को लूटने का मार्ग ही सोचते हैं। स्वार्थी व्यक्ति मन से सच्चा नहीं हो सकता।
शाहनी समझ गयी है कि सिक्का बदल गया है। शाहजी भी नहीं है कोई उसके लिए सोचने वाला नहीं है वह किसी भी बात का विरोध नही करती और चुप चाप हवेली की ड्योढ़ी पर कर ट्रक में बैठ जाती है। घर से निकाले जाने पर भी शाहनी उन सब को खुले दिल आशीर्वाद भी देती है। यहां शाहनी की ऊंची मनोवृत्ति का सबल चित्रण कृष्णा जी ने किया है- शाहनी ने उठती हुई हिचकी को रोककर रुँधे-रुँधे गले से कहा, ‘रब तुम्हें सलामत रखे बच्चा, खुशिया बक्शे….।शाहजी की मृत्यु के बाद शाहनी अकेली रह गई। उस घर के नौकर शेरे पिछले दिनों कई कत्ल कर चुका था। शेरे के साथियों ने शाहनी को मार डालने का सुझाव दिया था ताकि उसके बधावेली का सारा माल बराबर – बराबर बाँट लिया जाए इस स्थिति से अंजन शाहनी आज भी शेरे पर विश्वास करती है, उसकी सलामती की दुआ मांगती है। आज शाहनी क्या, कोई भी कुछ नहीं कर सकता। यह होके रहेगा- क्यों ना हो? हमारे ही भाई-बंधु से सूद लेकर शाहजी सोने की बोरियां तोला करते थे। प्रति हिंसा की आग शेरे की आंखों में उतर आई। शाहों से पीड़ित असामियों का पुन:जागरण ही शोषक-शोषित संघर्ष का आधार है।
सन्दर्भ सहित व्याख्या : -
“इसी दिन के लिए छोड़ गये थे शाहजी उसे? बेजान सी सहनी की ओर देख कर बेगू सोच रहा है – “क्या गुजर रही है शाहनी पर. मगर क्या हो सकता है.सिक्का बदल गया।“
सन्दर्भ :- प्रस्तुत अवतरण प्रथम वर्ष हिंदी कला के पाठ्यपुस्तक ‘श्रेष्ठ हिंदी कहानियां’ में निर्धारित कहानी ‘सिक्का बदल गया’ से लिया गया है इस कहानी की लेखिका ‘कृष्णा सोबती’ जी हैं। कहानी में लेखिका ने बदलते वक्त की त्रासदी का चित्रण किया है। वक्त बदलने के साथ-साथ लोगों कि सोच में भी परिवर्तन आ जाता है।
प्रसंग :- प्रस्तुत कहानी में लेखिका ने शाहनी पर होने वाले अत्याचार पर प्रकाश डाला है। वह बताती हैं कि कैसे शाहनी चाहकर भी अपने ही घर में नहीं रह पा रही है। पति के गुजर जाने के बाद उसे उसके ही घर से निकाला जा रहा है। लेखिका यह समझाती है कि वक्त बदलने से लोगों में भी परिवर्तन आ जाता है। शाहनी की उम्र हो जाने पर उसे मारने की भी बात लोग सोचने लगते हैं ताकि उसकी सारी जमीन जायदाद हड़पी जा सके।
व्याख्या :- इस कहानी में लेखिका ने शाहनी के जीवन का वर्णन किया है। शाहजी के गुजर जाने के बाद शाहनी बहुत अकेली हो जाती है। धीरे-धीरे उसकी उम्र भी होती जाती है। उम्र के एसाख्री पड़ाव में भी वह पहले की भांति अपनी दिनचर्या निभाती है। अपने अकेलेपन में वह पहले की बातों को याद करती है और मन ही मन यह सोचती भी है कि आज इस असहाय स्थिति में उसका पति उसके साथ नहीं है उसके पति के गुजर जाने के एक लम्बे समय के बाद शाहनी अपनि ही हवेली छोडनी पड़ती है। वक्त के बदल जानेके साथ लोगों की मानसिकता भी बदल जाती है। शेरा जिसने उसे अपने बच्चे की तरह पाला वो भी शाहनी के पीछे अपना फायदा देखता है।
एस्लाचार स्थिति में शाहनी सोचती है कि क्या इसी दिन के लिए शाहजी उसे छोड़ गए थे। बेगू भी बेजान सी शाहनी की इस विवशता पर तरस खाता है, लेकिन कोइ कुछ नहीं कर सकता क्योंकि अब राज पलट गया है, सिक्का बदल गया है।
विशेष :- इस कहानी के माध्यम से लेखिका समय के बदल जाने पर लोगों में होने वाले परिवर्तन का वर्णन करती है। वक्त के बदल जाने पर लोग भी कैसे बदल जाते हैं, इसका उदाहरण जिवंत उदहारण इन चरित्रों के माध्यम से उकेरती हैं। लोगो की स्वार्थपरक नीति का उल्लेख कर उनकी ह्रदय हीनता को दर्शाने का प्रयास करती हैं।
बोधप्रश्न :-
१) ‘सिक्का बदल गया’ कहानी के सन्देश को अपने शब्दों में लिखिए।
२) ‘सिक्का बदल गया’ कहानी की कथावस्तु को अपने शब्दों में लिखिए।
एक वाक्य में उत्तर लिखिए :-
१) ‘सिक्का बदल गया’ की मुख्य स्त्री पात्र का नाम लिखिए।
उत्तर :- ‘सिक्का बदल गया’ की मुख्य पात्र शाहनी है।
२) शेरा का पालन पोषण किसने किया?
उत्तर :- शेरा का पालन – पोषण शाहनी ने किया।
३) हसैना कौन है?
उत्तर :- हसैना शेरा की पत्नी हैं।
४) शेरा कितने क़त्ल कर चुका था?
उत्तर :- शेरा तीस – चालीस क़त्ल कर चुका था।
५) दाऊद खान कौन था?
उत्तर :- दाऊद खान थानेदार था?
बहुत ही घटिया कथा विवेचेन . कहानी की मूल समस्या विभाजन है , तो विभाजन का मूल आधार मजहब था और यह विद्वेष , घ्रना मजहबी थी । शेरा शाहनी को मारना क्यों चाहता था उसके साथी उसे मारने की सलाह क्यों देते है ? क्या वह मुसलमान होती तो इस स्थिती को भुगतना पड़ता ? आदि की परख न कर यह कहानी शोषक -शोषित का संघर्ष कहना दिमागी दिवालियापन है । शिक्षिका की सोच पर तरस आता है ॥
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