डॉ. जयश्री सिंह सहायक प्राध्यापक एवं शोधनिर्देशक, हिन्दी विभाग, जोशी - बेडेकर महाविद्यालय ठाणे - 400601 महाराष्ट्र कहानी – ७ कब्र का मुनाफा...
डॉ. जयश्री सिंह
सहायक प्राध्यापक एवं शोधनिर्देशक, हिन्दी विभाग,
जोशी - बेडेकर महाविद्यालय ठाणे - 400601
महाराष्ट्र
कहानी – ७ कब्र का मुनाफा - तेजेंद्र शर्मा
लेखक परिचय :- तेजेंद्र शर्मा द्वारा लिखी गई कहानी ‘कब्र का मुनाफा’ दो पाकिस्तानी परिवारों की कथा है। ये इंग्लैंड में अपने अपने परिवार के साथ रहते हैं। खलील और नजम दोनों में गहरी दोस्ती है। खलील को सिगरेट की बुरी लत है तो नजम को शराब की। लेकिन इन दोनों की यह आदतें दोनों के दोस्ती के कभी आड़े नहीं आती। खलील की बीवी नादिरा है जो फिल्मी सितारों और उनके फिल्मों की बहुत शौकीन है लेकिन पाकिस्तानी फिल्मों नहीं बल्कि भारतीय फिल्मों की। क्योंकि वह दिल्ली में पली बढ़ी है। खली की पत्नी नादिरा है जो शादी से पहले हिंदुस्तान में रहती थी। वह लखनऊ विश्वविद्यालय से एम.ए.पास है। वह नौकरी करना चाहती है लेकिन खलील बिल्कुल कट्टर मुस्लिम पंथी पाकिस्तानी मुसलमान है। जिसके कारण वह नादिरा को इस काम की इजाजत नही देता है।
कहानीकार ने यह प्रस्तुत किया है कि दोनों विदेश हैं उनके पास अपना खुद का मकान तथा गाड़ी है उन्हेंखाने पीने की कोई कमी नहीं है लेकिन फिर भी उन्हें खुद का कारोबार करना है। वह अपना सब कुछ पहले से ही व्यवस्थित करके रखना चाहते हैं। यहां तक कि दफन होने के लिए कब्र भी। इसी कथ्य को आधार बनाकर यह कहानी प्रस्तुत है।
कहानी की कथावस्तु :- ‘कब्र का मुनाफा’ इंग्लैंड में रहने वाले दो पाकिस्तानी परिवारों की कहानी है। कहानी का परिवेश बिल्कुल विदेशी है। क्योंकि कहानी के सारे पात्र इंग्लैंड में रहते हैं। सभी पात्र पढ़े लिखे हैं। दोनों पात्र खलील और नजम यूरोप की कंपनियों में काम करते हैं। खलील जब इस कंपनी में आया था तो बिल्कुल युवा अफसर बनकर। खलील और नजम ने अपने-अपने घरों में अपना दबदबा बनाकर रखा है। वे अपनी बीवियों को किसी मामले में बोलने नहीं देते। खलील अपनी पत्नी नादिरा को इतने दबाव में रखता है कि वह बिल्कुल शांत और चुप सी रहती है। खलील और नजम दोनों ने अभी से ही अपनी बीवियों के लिए कब्रें बुक कर रखीं हैं। नादिरा को जब इस बात का पता चलता है तो वाज नाराज हो कर करती है कि “घर को कब्रिस्तान बना रखा है यह कम था क्या जो बाहर भी कब्र बुक कर आये।“ नादिरा और आबिदा दोनों भी उनकी इन हरकतों से परेशान है लेकिन आबिदा को इस खबर से इतना फर्क नहीं पड़ता जबकि नादिरा कब्रों की अडवांस बुकिंग की बात से परेशान हो जाती है।
नजम और खलील दोनों 33 साल से यूरोप की कंपनियों में काम करते हैं। खलील ने अपनी मेहनत और अपने से कंपनी को यूरोप की फाइनेंसियल कंपनियों की श्रेणी में खड़ा कर दिया है।
वे चाहते हैं कि उनकी खुद की कोई कंपनी हो या काम हो जिससे लोग उन्हें मरने के बाद भी याद करें। मरने की बात सुनकर नजम, खलील से कहता है “भाई! आपने कब्र बुक कर ली है या नहीं? देखिए उस कब्रिस्तान की लोकेशन, उसका लुक और माहौल एकदम यूनिक है…. अब जिंदगी भर तो काम, काम और काम से फुर्सत नहीं मिली। कम से कम मरकर तो चैन की जिंदगी जिएंगे।”
इंसान जब तक जिंदा रहता है वह जीवन के हर ऐशो आराम ढूंढता है। वह सोचता है कि ऐसा क्या करूं की आलीशान जिंदगी जीने के लिए मुझे हर चीजें मिले। लेकिन यहां तो खलील और नज़म को मरने के बाद भी कब्रिस्तान का सारा माहौल एकदम यूनिक चाहिए। अब मरने के बाद क्या होगा यह कौन जानता हैं? खलील एकदम कट्टर शिया मुसलमान है। उसके मरने के बाद भी उसके आस-पास में कोई सुन्नी और ना ही कोई टोपी वाला गुजराती चाहिए। बल्कि वह सोचता है कि शिया लोगों के लिए कोई अलग से कब्रिस्तान हो। अचानक नजम खलील को किसी नई स्कीम के बारे में बताता है। कार्पेण्डर्स पार्क जिसमें 10 पाउंड महीने की प्रीमियम पर इंसान को शान से दफनाने की अपनी पूरी जिम्मेदारी ली जाती है। खलील को लगता है जो वह सोचता है वो सही है बाकी सब गलत इसलिए दोनों इस स्कीम का फायदा उठ कर अपनी बीवियों को बिना बताए कब्रें बुक करवा लेते हैं। खलील, नजम से पूछता है “उनकी कोई स्कीम नहीं है जैसे बाई वन गेट वन फ्री।” वह कहता है अगर ऐसा है तो हम अपने बेटों को भी शामिल कर सकते हैं। खलील जो बेटे को बिजनेस के लिए पैसे नहीं देना चाहता वही अपनी कट्टर विचारधारा के चलते बेटे के जीते जी उसके लिए कब्र बुक करवाने की सोचता है।
खलील की बीवी नादिरा भारत से है इसलिय खलील नादिरा से बहुत चिढ़ता है। नजम को भारत को कोई चिढ़ नहीं। वो कहता है कि उसे हिंदुस्तान छोड़े 40 साल हो गये लेकिन लाहौर अब भी उसे अपना नहीं लगता। जबकि खलील के मन में भारत व हिन्दुओं के प्रति इतनी चिढ़ है कि उसका बस चले तो हिंदुओं को एक कतार में खड़ा करके गोली मार दे।
आबिदा और नादिरा सोचती है कि उनके पतियों के पास उनको देने के लिए समय नहीं है। वह उन्हें घर के खर्चे के लिए पैसे देते हैं लेकिन उसका पूरा पूरा हिसाब किताब रखते हैं। आबिदा तो अपने नादिरा आपा के पास अपना सारा रोना रो लेती है लेकिन नादिरा अपना हर दुख दर्द अपने सीने में दबाए रखती है।
खलील के साथ रोज की गाली गलौज और कभी कभार तो मारपीट पर भी। किन्तु नादिरा पर इसका कोई असर नहीं होता। इस तकलीफ को वो एक स्थायी हंसी के पीछे छुपाए रखती है। खलील को नादिरा की इस बात से भी परेशानी होती थी।
एक घटना का जिक्र करते हुए लेखक लिखते हैं कि नादिरा और खलील एक दिन किसी महफ़िल में गए। वहां डेमोक्रेसी की बात छिड़ी और नादिरा ने भारत के प्रजातंत्र की तारीफ कर दी। खलील उस पर गुस्से से वही फट पड़ा। उसने नादिरा को तलाक तक देने को कह दिया। महफिल में कब्रिस्तान जैसी चुप्पी छा गई। घर पर भी कब्रिस्तान पहुंच चुका था। वैसे नादिरा खलील के पत्र छूती नहीं क्योंकि वह जानती है कि उसे इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। लेकिन पत्र पर श्री एवं श्रीमती लिखा था तो उसे लगा ये निमंत्रण पत्र होगा और पत्र खोला तो दंग रह गई। पहले से ही कब्रिस्तान बुक करने का मतलब वह कुछ समझ नहीं पाई। क्या उसका घर एक जिंदा कब्रिस्तान नहीं।
खलील को इस बात का गर्व रहता है कि उसने अपने परिवार वालों को जमाने भर की सुविधाएं मुहैया करवाई है। वह चाहता है कि नादिरा इसके लिए उसकी कृतज्ञ रहे। नादिरा नें खलील से पूछा आपने अभी से कब्रे क्यों बुक करवा ली है? और वह भी इतनी दूर? “ भई एक बार लाश रॉल्स राइस में रखी गई तो हैम्पस्टैंड क्या और कार्पेण्डर्स पार्क क्या। यह कब्रिस्तान जरा पॉश किस्म का है फाइनेंसियल सेक्टर के हमारे ज्यादातर लोगों ने वहीं दफन होने का फैसला लिया है। खलील कहता है कम से कम मरने के बाद अपने स्टेटस के लोगों के साथ रहेंगे।”
नादिरा का कहना था कि मरने के बाद तो शरीर मिट्टी ही है फिर उस मिट्टी का नाम चाहे अब्दुल (कामवाला) हो नादिरा या फिर खलील। नादिरा का कहना था कि मरने के बाद तो सब को दफन होना ही है तो इसमें अपने जैसे क्या और मोची या पलंबर क्या? सब को तो एक ही मिट्टी में मिलना है।
नादिरा, खलील से कहती है कि वह न उसे किसी फाइव स्टार कब्रिस्तान में दफन होने देगी और ना खुद होगी। आप ऐसी सोच से बाहर आइए। दूसरे दिन नादिरा, आबिदा को फोन करती है और उसका हाल लेती है। इतने में आबिदा फिल्मी हीरो की खबरें उसे सुनाने लगती हैं। नादिरा उसे कहती है- तुम फिल्मी दुनिया से बाहर आओ और हकीकत की दुनिया देखो। क्या तुम्हें कार्पेण्डर्स पार्क के कब्रिस्तान की बुकिंग के बारे में पता है? आपा हमें क्या फर्क पड़ता है वह एक के बदले चार-चार बुक करें और चारों में रहे। जब जीते जी उन्हें साथ-साथ बेडरूम का घर कम पड़ता है तो क्या मरने के बाद 2 गज जमीन काफी होगी इन के लिए।
आबिदा अपने और नजम के रिश्ते के बारे में बताते हुए कहती है वह 4 साल से बुश्रा के साथ वक्त बिता रहे हैं। और हमारा रिश्ता तो भाई-बहन जैसा हो गया है। नादिरा का जी धक्क से कर गया कि पिछले 5 साल से ऐसा ही रिश्ता उसका और खलील का है। वह कहती है कि क्या यह जो कर रहे हैं वह ठीक है।
आबिदा कहती हैं आपा मुझे कुछ फर्क नहीं पड़ता। मरने के बाद कौन कहां दफन होता है लेकिन नजर मुझसे पहले मरे तो उन्हें गरीब कब्रिस्तान में ले जाकर दफन करूंगी। अगर मैं पहले मर गई तो फिर बचा ही क्या?
लेखक कहते हैं कैसी सोच लेकर यह जीते हैं। इंसान अभी जिंदा है लेकिन उनके लिए कब्रे पहले से आरक्षित हैं। इस बात को बीते साल भर हो चुके थे। अब दोनों फिर से किसी नए धंधे के बारे में सोचने में जुट गए और इस विषय को भूल गए।
लेकिन कार्पेण्डर्स पार्क को नहीं भूला था। चिट्ठी आई जिसमें लिखा था मुद्रा स्फीति के साथ-साथ मासिक किस्त में भी पैसे बढ़े हैं। इतना देखते ही नादिरा का खून खौल उठता है। खलील और नजम बेडरूम में शराब के घुट और सिगरेट के कश के साथ अपने नए काम के बारे में सोचते विचारते रहते हैं। इतने में नादिरा भुनभुनाते हुए कमरे में जाती है और खलील से फोन करके कैंसिल करने को कहती है, तो वह कहता है कि कैंसिलेशन चार्ज अलग से लगेंगे। क्यों नुकसान करवाती हो? वह कहती है तो ठीक मैं ही फोन करती हूं। उसकी भरपाई मैं खुद कर दूंगी नादिरा गुस्से में नंबर मिलाती है। सिगरेट का धुआं कमरे में एक डरावना माहौल पैदा करता है। फोन लग जाता है और वह अपना रेफरेंस नंबर देकर बात करती है।
खलील और नज़म बेबस और परेशान है। नादिरा थैंक्स कहकर फोन रख देती है। वह खलील से कहती है कि हमने कैंसिलेशन का ऑर्डर दे दिया है। उनका कहना है कि आपने साढ़े तीन सौ पाउंड एक कब्र के लिए जमा कराए हैं और यानी कि दो कब्र के सात सौ पाउंड और अब इन्फ्लेशन की वजह से उन कब्रो की कीमत बढ़कर 1100 पाउंड यानी कि आपको कोई 400 पाउंड का लाभ हो रहा है।
खलील चौंक जाता है – “चार सौ पाउंड का फायदा, बस साल भर में….” कब्र के इस नए धंधे की बात तुरंत उसके दिमाग में कौंध जाती है उसकी उसकी आँखें चमक उठती है क्योंकि अब उन्हें नया धंधा मिल गया है।
निष्कर्ष :- तेजेंद्र शर्मा द्वारा रचित कहानी “कब्र का मुनाफा” कब्र की अडवांस बुकिंग से प्रारंभ होती है और वही समाप्त भी होती है। खलील और नजम गहरे मित्र हैं और दोनों पाकिस्तानी है, लेकिन इंग्लैंड के रहने वाले हैं।
खलील का स्वभाव ऐसा है कि वह शिया मुसलमान के अलावा हर धर्म के इंसान से चिढ़ता है इसीलिए उसने अपने मरने से पहले ही कब्रे अपने स्तर के लोगों के साथ बुक की हैं, ताकि उसके पास मोची प्लंबर की कब्रे न हों। खलील सब कुछ अपने कंट्रोल में रखना चाहता है, चाहे उसके बीवी-बच्चे हो या फिर कंपनी के क्लर्क। उसे अपनी पत्नी से भी चिढ़ है क्योंकि वह हमेशा हिंदुस्तान के पक्ष ने बात करती है। खलील को ऐसा लगता है जो वो करती है वही सही है। अचानक जब नादिरा कब्रे कैंसिल करने को कहती है तो खलील कहता है कैंसिलेशन से नुकसान हो जायेगा। लेकिन यह कहकर कब्रे कैंसिल करती है कि उसकी भरपाई वह खुद कर देगी। जब बाद में कैंसिलेशन के बाद पता चलता है कि अब इन्फ्लेशन की वजह से कब्रो की कीमत सात सौ पाउंड से बढ़कर ग्यारह पाउंड हो गयी है यानि कि कुल चार सौ पाउंड का मुनाफा हो गया है।
सन्दर्भ सहित व्याख्या : -
“देखिए मैं पाकिस्तान में कोइ धंधा नहीं करूँगा. एक तो आबिदा वहाँ जाएगी नहीं, दूसरे अब तो बुश्रा का भी सोचना पड़ता है, और तीसरा यह कि अपना तो सारा मुल्क ही कर्प्तिओं का मारा हुआ है इतनी रिश्वत देनी पड़ती है कि दिल करता है सामने वाले को चार जूते लगा दूँ ऊपर से नीचे तक सब करप्ट अगर हम दोनों को मिल कर कोइ काम शुरू करना है तो यहीं इंग्लैंड में रह कर करना होगा।“
संदर्भ :- प्रस्तुत गद्यांश बी.ए.भाग प्रथम के पाठ्य पुस्तक “कब्र का मुनाफा” नामक कहानी से लिया गया है। इसके लेखक “तेजेंद्र शर्मा जी” हैं। इस कथा में लेखक ने विदेश में रहने वाले दो मुसलमान परिवारों के बारे में वर्णन किया है। विदेश में होते हुए भी इनके पास वह सब कुछ है जो अच्छा जीवन जीने के लिए चाहिए होता है, लेकिन इन्हें अपना खुद का कारोबार करना है, ताकि मरने के बाद भी इन्हें सब याद करें।
प्रसंग :- लेखक ने यह कहानी भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के बाद भारत से पाकिस्तान जाकर बसने वाले दो मुसलमान परिवारों के बारे में लिखी है, जो अब विदेश (इंग्लैंड) में रहते हैं। खलील और नजम ने अपने जीवन के 33 साल यूरोप की कंपनियों में होम कर दिया। लेकिन अब वे चाहते हैं कि उनका खुद का कोई कारोबार हो। इसी का वर्णन इस कहानी में किया गया है।
व्याख्या :- खलील और नजम दोनों ड्राइंग रूम में बैठकर योजना बनाते हैं कि क्या काम और कहां किया जाए। पूरे लंदन में एक नजम ही है जो खलील के घर शराब पी सकता है और एक खलील ही है जो नजम के घर सिगरेट पी सकता है। लेकिन दोनों अपना-अपना नशा खुद साथ लाते हैं- सिगरेट भी और शराब भी।दोनों अपने बीवी बच्चों को अपना समय देने के अलावा सब कुछ देते हैं।
नजम, खलील से कहता है कि देखिए भाई साहब मैं पाकिस्तान में काम नहीं करुंगा। क्योंकि उसकी पत्नी भारत में पढ़ी-लिखी और वही की रहने वाली है, तो वह पाकिस्तान में बिल्कुल नहीं रहेगी। और दूसरी तरफ वह दूसरी औरत बूश्रा है जिससे उसका (नजम) का संबंध है, वह इंग्लैंड में रहती है। नजम, खलील से यह भी कहता है कि दूसरा हमारा मुल्क भी तो करप्शन से भरा हुआ है। वह गुस्से में यह भी कहता है कि इतनी रिश्वत देनी पड़ती है, दिल तो करता है सामने वाले को चार जूते लगा दूँ। ऊपर से लेकर नीचे तक सब के सब करप्ट।
नजम का स्वभाव खलील से अलग है वह अगर कुछ गलत है तो निष्पक्ष बोलता है चाहे वह उसके ही मुल्क के बारे में क्यों ना हो। लेकिन खलील, नजम से बिल्कुल अलग है। वह रहता जरूर इंग्लैंड में है लेकिन वह बिल्कुल अपने मुल्क के ही पक्ष में रहकर बोलता है।
फिर नजम सब कुछ सोचने, बताने और समझने के बाद कहता है कि अगर हमें कोई काम करना है तो मिलकर यही करना होगा।
विशेष:- कहानी का पूरा वातावरण विदेश का है। पात्रों के बोलचाल की भाषा में उर्दू और अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग हुआ है। कहीं-कहीं पर खलील द्वारा अभद्र शब्दों का भी प्रयोग किया गया है। कहानी प्रारंभ ही होती है कब्र से और अंत भी कब्र पर होता है। धर्म और धंधा दोनों के प्रति खलिल के विचार प्रस्तुत करना कहानी का उद्देश्य है।
बोध प्रश्न :-
१) ‘कब्र का मुनाफा’ कहानी के परिवेश पर प्रकाश डालिए।
२) कहानी के माध्यम से खलील और नजम के संवादों की चर्चा कीजिये।
एक वाक्य में उत्तर लिखिए :-
१) खलील जैदी और नजम जमाल कहाँ रहते हैं?
उत्तर :- खलील जैदी और नजम जमाल इंग्लैंड में रहते हैं।
३) खलील और नजम को कौन सी बुरी लत थी?
उत्तर :- खलील को सिगरेट और नजम को शराब पीने की बुरी लत थी।
४) खलील और नजम ने कब्रें कहाँ बुक करवायीं थीं?
उत्तर :- खलील और नजम ने कब्रें कार्पेंड्स पार्क में बुक करवायीं थीं।
५) कब्रें कैंसिल करवाने पर उन्हें कितने पाउंड का फायदा हुआ?
उत्तर :- कब्रें कैंसिल करने पर उन्हें कुल चार सौ पाउंड का फायदा हुआ।
६) ‘कब्र का मुनाफा’ कहानी के रचनाकार का नाम लिखिए।
उत्तर :- ‘कब्र का मुनाफा’ के रचनाकार तेजेंद्र शर्मा जी हैं।
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