कविता- भारत मानव जैसा है (रतन लाल जाट ) देखो यहाँ पर कुदरत खुद एक पहरेदार जैसा है जो तीन तरफ सि...
कविता- भारत मानव जैसा है
(रतन लाल जाट )
देखो यहाँ पर कुदरत खुद एक पहरेदार जैसा है
जो तीन तरफ सिन्धु बीच खिलता भारत कमल जैसा है
रंग इसके हजार है फिर भी एक है खुशबू
मरुधर हो या हो बर्फीली घाटी सब हवनकुंड जैसा है
कल-कल बहता नदियों का पानी अमृत की धार जैसा है
मानवता की रग-रग में वो बहता खून की फुहार जैसा है
गंगा-जमुना सिंचती है हम सबके दिले-गुलशन को
संत-सूफी पैगम्बर-महात्मा हर एक फूल महकता-सा है
हर हिन्दू-मुस्लिम सिक्ख ईसाई भारत की जान जैसा है
ईद-होली लोहड़ी दीवाली मुस्कुराहट के गान जैसा है
रंग कई मिलकर आपस में बनाते हैं एक रंगोली प्यारी
रूप सारे नाम कई फिर उभरता यह भारत मानव जैसा है
दिन-रात सभी हाथ से अपने करते कर्म वो तप जैसा है
और जो कमाते वो दिन-दुखी को बाँटते एक धर्म जैसा है
नाम नहीं यहाँ कोरे सत्य प्रेम दया दान अहिंसा आदि
सुबह-शाम नहीं पल-पल जपते घर-घर मंदिर जैसा है
कविता- कहीं भगवान रहता है
रतन लाल जाट
मीत पड़ोस है हिन्दू-हिन्दू जहाँ कौन रहता है
भाई-भाई के बीच खड़ा दीवार वहाँ कौन रहता है
माँ-बाप की सेवा से बेटे विमुख हो जहां
इंसान नहीं वहाँ पर सदा शैतान ही रहता है
सुना है कि बच्चों के बीच भगवान् रहता है
फिर क्यों जालिम इन पर अत्याचार करता है
मासूम कपोलों पर छायी मुस्कान तो देखो
गुलशन में भी फूल ऐसा जाने कहाँ रहता है
मन्दिर-मस्जिद जाए क्यों वो राहों में ही बसता है
देखो फुटपाथ पर उन लोगों की खुशी बीच जो रहता है
कोई अपनी झोली से थोड़ी भी उन पर लुटा दे
तो दुख-दर्द क्या उसकी तकदीर में कभी रहता है
कविता- सीता के लिए जनक हो जाये
रतन लाल जाट
आंखों में छुपा मर्म देख कोई द्रवित हो जाये
तो हृदय में उमड़ कर भाव सारे नवरस हो जाये
सुदामा से यारी करना कृष्ण तू सिखा दे
और बिना संकोच शबरी के राम मेहमान हो जाये
त्याग-प्रेम भरत-लक्ष्मण जैसा दिल में हो जाये
दया-दान में हम शिवि-दधीचि सम हो जाये
फिर देखना एकलव्य-अर्जुन धनुर्धर हमारे
घर-घर से उठ अन्याय से लड़ने को खड़ा ना हो जाये
कोई आँख नहीं फिर सीता-द्रौपदी पर उठ जाये
रावण-कंस-कौरव पैदा होने से पहले मर जाये
यह तभी सम्भव है जब राम-कृष्ण गुरुकुल में हो
और सारे पिता फेंकी गयी सीता के लिए जनक हो जाये
कविता- क्या स्वर्ग नहीं होता
रतन लाल जाट
जहाँ निर्मल नीर और शीतल समीर नसीब नहीं होता
वहाँ धन-दौलत का ढेर क्या राख नहीं होता
सोना-चाँदी हीरे-मोती की चाह रखने वालों
शस्यश्यामला भू पर कुटिया में क्या स्वर्ग नहीं होता
पुजारी मौलवी बनकर यदि घर भरा नहीं होता
और चौराहों पर भूखे मरतो को तरसाया नहीं होता
तो आज दिन-दिन मरने को जिन्दा वो
धर्मगुरू से देशद्रोही बन सलाखों में नहीं होता
करते हैं काली कमाई जोड़ने को चैन नहीं होता
मन में जिनके रहम-प्रीत का नाम नहीं होता
वो हाड़-मांस का पुतला मानो कोई मशीन हो
पता नहीं क्या उन्हें स्वार्थ पाला हुआ साँप नहीं होता
कविता- देखो, मेरे देशवासियों!
रतन लाल जाट
देखो, मेरे देशवासियों!
समझो, विदेशी चाल को।
अपनी ये जमीं कहीं
ऊसर ना हो जाये।
कहीं अपना ये अम्बर भी
फट ना जाये॥
देखो, मेरे देशवासियों!
समझो, विदेशी चाल को।
इस महकती हवा को
गन्दी ना होने देना।
इस मीठे पानी को
मैला ना होने देना॥
देखो, मेरे देशवासियों!
समझो, विदेशी चाल को।
ए मेरे हमवतन भाईयों!
आपस में मिल-जुलकर रहो॥
देखो, मेरे देशवासियों!
समझो, विदेशी चाल को।
तुम अपनी विरासत ना भूल जाना।
फिर कभी दूसरों की दासता ना करना॥
देखो, मेरे देशवासियों!
समझो, विदेशी चाल को।
अपना धर्म अपना कर्म निभाना।
स्वार्थ छोड़ परमार्थ अपनाना॥
देखो, मेरे देशवासियों!
समझो, विदेशी चाल को।
अपने शहीदों की तुम
भूल ना जाओ कुर्बानी।
हमारे महापुरूषों की
याद रखना वो बातें सभी॥
देखो, मेरे देशवासियों!
समझो, विदेशी चाल को।
करें वो काम,
जो अपनी आत्मा को भाये।
मर जायें जब
अपना वतन हमको बुलाये॥
कविता- लड़ेंगे-मरेंगे हम
रतन लाल जाट
लड़ेंगे-मरेंगे हम,
अपनी धरती, अपना मुल्क।
कभी ना छोड़ेंगे हम,
इसके वास्ते हैं सब अर्पण॥
शहादत हमारी चारों तरफ फैली।
रक्षा धरती माँ की करना है जिम्मेदारी॥
अब ना हम कभी डरेंगे,
आज ही दुश्मन से टकरायेंगे।
आपस में मिलजुलकर,
धरती-आसमां तक करेंगे बगावत।
लड़ेंगे-मरेंगे हम,
अपनी धरती, अपना मुल्क।
आओ, मिल जाओ और लड़ो।
बस, क्रान्ति का नाम बोलो॥
दुश्मन को मार भगाओ।
आज नया इतिहास लिखो॥
धरती माँ के वास्ते
खून बहाकर कर्ज अपना चुकाओ।
भारत माँ, तेरी रक्षा।
करता रहूँगा, जब तक हूँ जिन्दा॥
जय भारत, जय भारत, जय भारत
लड़ेंगे-मरेंगे हम,
अपनी धरती, अपना मुल्क।
हाथ से हाथ मिला।
कंधे से कंधा मिला॥
आपस में भेदभाव भूल जा।
हम सबको मिलकर कुछ है करना॥
इसके वास्ते मर जायेंगे हम।
यही पाठ सबको पढ़ायेंगे अब॥
लड़ेंगे-मरेंगे हम,
अपनी धरती, अपना मुल्क।
कभी ना छोड़ेंगे हम,
इसके वास्ते सब अर्पण॥
कविता- माना कि आप बहुत अच्छे हो
रतन लाल जाट
माना कि आप बहुत अच्छे हो
पर अच्छाई का नजराना भी दिखाइये
केवल आपके या मेरे कहने मात्र से
कोई यकीन ना मानेगा सच जानिये
हम जिस दुनिया में रहते हैं
वहाँ की फिक्र भी कीजिए
ये क्या करती है हमको
इस तरफ भी नजर उठाइये
यदि इसमें कोई एतराज है
तो फिर एक काम और कीजिए
जरा इस दिल से ही कसम से
सच-सच सारी बातें पूछिए
यह दूध का दूध और पानी का पानी
बिना किसी यंत्र के कर देगा देखिए
पर इसके लिए भी तो फुर्सत कहाँ है
आजकल के लोगों की तरफ देखिए
दूसरों की हजार बातें करके भी
क्या कुछ पल दे पाते हैं खुद के लिए
जमाना जरूर आधुनिक है
पर बर्बर और असभ्य से कम मत मानिए
कोई दिल की भी सुन लेता है
तो चाहकर भी कह नहीं पाता है
कोई अच्छा करना चाहता है
पर उसमें भी लाख बाधा खड़ी है
सच कहना चाहे किसी को
पर कभी कह नहीं पाए
दिल सब कुछ जाने
पर दिल की कौन सुने
बड़ी दुविधा है यारों
आत्मा की सुन चलना नेक राहों पे
कविता- मेरे मीत तूने बताया क्यों नहीं
रतन लाल जाट
मैंने बहुत गलतियाँ की है
पर मेरे मीत तूने बताया क्यों नहीं
गलतियों की सजा तो मिलना तय है
चाहे तू अब छिपा दे इनको कहीं भी
आप भूल गये फर्ज अपना
बस हाँ में हाँ मिलाते रहे सभी
कोई दो टूक कहने के लिए
कभी सामने मेरे आज तक आया क्यों नहीं
यदि मैं नहीं भी मानता सलाह तुम्हारी
तब भी तुम्हें कुछ नुकसान तो होता नहीं
आज मैंने बड़े ध्यान से सोचा कि
मेरे मीत तू सच में मेरा मीत है ही नहीं
जिसको अपनी जिम्मेदारी का एहसास नहीं
ना हिम्मत है कुछ भला-बुरा कहने की
वो कैसे अपने है ये मैं जानता नहीं
जो पीठ पीछे बोलते सामने लब खोलते नहीं
मैं चाहता हूँ अब तुम मुझे छोड़ दो अकेला यहीं
इन रिश्ते-नातों में दिखाई देते हैं आस्तीन के साँप कहीं
कविता- तिरंगा लहर-लहर लहराये
रतन लाल जाट
तिरंगा लहर-लहर लहराये,
मेरे वतन का नाम सबसे ऊँचा रहे।
रंग तीन इसके प्यारे,
कहना वो हमको कुछ चाहे॥
आन-बान-शान की पहचान है रंग केसरिया।
देखकर इसको आ जाये रगों में एक तूफान-सा॥
सत्य-अहिंसा का भाव सिखाता।
वो रंग सफेद है बीच जिसके चक्र-सा॥
हरियाली-खुशहाली रहे मेरे देश में।
रंग हरा अपनी जुबानी ये पुकार करे॥
तिरंगा लहर-लहर लहराये……………
इस वतन के खातिर,
जी-जान लगाकर।
नन्हें-मुन्नें बालक,
रूके थे कर्ज चुकाकर॥
माताओं ने माँ की रक्षा में,
अपना लाल, अपना प्यार दिया है।
तिरंगा लहर-लहर लहराये………………
देश पर जब कोई संकट आये।
हर भारतवासी अपना बलिदान करे॥
एक चमन खिलाने को, सिर दस काट दें।
एक बुन्द पानी को, लहू की गंगा बहा दें॥
कभी ना झूके, कभी ना थमे,
मेरा तिरंगा, मेरा वतन आजाद रहे।
तिरंगा लहर-लहर लहराये…………………
कविता- इन तूफानों से टकराकर
रतन लाल जाट
इन तूफानों से टकराकर,
हम आगे बढ़ने वाले।
उन पर्वतों को चीरकर,
नयी डगर बनाने वाले॥
मौत डर जायेगी हमसे,
देखकर हौसला अपना रे।
फिर कौन है ऐसा जो,
मुकाबला करने को आये रे॥
इन तूफानों से टकराकर,
हम आगे बढ़ने वाले……………॥
यदि टक्कर हमसे लेना हो।
तो पहले अपने दिल को पूछ लो॥
क्योंकि बिन दिल की बात सुने।
कभी किसी को जीत ना मिले॥
इन तूफानों से टकराकर,
हम आगे बढ़ने वाले……………॥
सच्चे सपने दिल के अरमान।
अच्छा-बुरा सब मालिक के हाथ॥
उसको जो भी मंजूर होगा।
हमको वो ही स्वीकार करना॥
आखिर श्वाँस तक मंजिल अपनी है।
आँखें खुली सामने संसार फैला है॥
इन तूफानों से टकराकर,
हम आगे बढ़ने वाले……………॥
अंधेरे में हम नयी रोशनी जला देंगे।
आँधियों में भी नैया कगार लगा देंगे॥
सत्य-प्रेम के नाम कुर्बानी करने वाले।
मनुज-मात्र के प्रति भाईचारा रखने वाले॥
इन तूफानों से टकराकर,
हम आगे बढ़ने वाले……………॥
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