ग़ज़ल कितना अजीब आलम है, साथ मेरे बस तेरा ग़म है। चेहरे पर हँसी लाऊँ कैसे, हर तरफ़ ग़म का मौसम है। देखा नहीं उसे मुद्दत से, अपनी आँख तभी...
ग़ज़ल
कितना अजीब आलम है,
साथ मेरे बस तेरा ग़म है।
चेहरे पर हँसी लाऊँ कैसे,
हर तरफ़ ग़म का मौसम है।
देखा नहीं उसे मुद्दत से,
अपनी आँख तभी तो नम है।
संगदिल है ये सारी दुनिया,
प्यार-मुहब्बत भी कम-कम है।
उम्मीदों को कभी न छोड़,
देख, बात में कितना दम है।
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ग़ज़ल
दिल की मासूमियत खो गई है कहीं,
लगता है अपनी सूरत खो गई है कहीं।
वो जो दिल में सजा के रक्खी थी,
शायद वह मूरत खो गई है कहीं।
सच को भुला दिया है हर किसी ने,
याद रखने की ज़रूरत खो गई है कहीं।
उनका दीदार हुए एक अरसा हुआ,
लगे चीज़ ख़ूबसूरत खो गई है कहीं।
जब-तब लगते हैं हिलाने लोग पूँछ,
ज़रूर इनकी ग़ैरत खो गई है कहीं।
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ग़ज़ल
सब कुछ जैसे है गुमसुम,
कितना बदल गया मौसम।
चाही थीं ख़ुशियाँ लेकिन,
हमने पाए हैं बस ग़म।
भूल कहाँ पाए हम उसको,
याद वही आए हैं हरदम।
उसकी याद में रहती हैं,
अक्सर अपनी आँखें नम।
न जाने ढाएगी हम पर,
ज़िन्दगी और कितने सितम।
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ग़ज़ल
अब यह बात जाने भी दे,
इतने मत उसे ताने भी दे।
बातों में ही मत उलझा,
दो-चार निवाले खाने भी दे।
हर किसी को मत ठुकरा,
कोई चेहरा भाने भी दे।
रोक न उसकी कोशिश को,
चंद ख़ुशियाँ लाने भी दे।
नए ज़माने की बातें नई,
सामने अब तू आने भी दे।
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ग़ज़ल
जीवन अपना तन्हा है,
हर पल जैसे मरना है।
जीने की कोई चाह नहीं,
फिर भी जीना पड़ता है।
अपना कोई नहीं लगता,
बस यह ग़म ही अपना है।
जीवन एक छलावा है,
हमको लगता रहता है।
किसे कहें अपना दुनिया में,
यही बड़ा इक मसला है।
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ग़ज़ल
दिल का दर्द बताऊँ कैसे,
अपने को समझाऊँ कैसे।
करूं इबादत जिसकी हरदम,
उससे ध्यान हटाऊँ कैसे।
भरा हो गर ज़ख़्मों से सीना,
तब फिर मैं मुस्काऊँ कैसे।
ख़ता नहीं है कुछ भी अपनी,
फिर मैं ही झुक जाऊँ कैसे।
जिसने प्यार से दिल सहलाया,
उसका कर्ज़ चुकाऊँ कैसे।
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ग़ज़ल
चाहूँ लेकिन रो न पाऊँ,
रात-रात भर सो न पाऊँ।
इतनी मुश्किल हुई ज़िन्दगी,
मैं इसको तो ढो न पाऊँ।
वैसे दुनिया चलेगी यूँ ही,
तुम्हें अगर मैं जो न पाऊँ।
दुनिया ने जो दिए कलंक,
झूठे हैं, पर धो न पाऊँ।
हिम्मत अपनी टूट गई है,
बीज प्यार के बो न पाऊँ।
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ग़ज़ल
एक दिन मेरी कहानी देखना,
बच्चे-बच्चे की ज़ुबानी देखना।
दुनिया होगी इक दिन ख़ुशहाल,
न होगी कहीं मनमानी देखना।
आज वह मासूम है तो क्या हुआ,
कल करेगा बातें सयानी देखना।
मेरी इस हालत पे हँसने से पहले,
ज़िन्दगी मेरी पुरानी देखना।
देखो जब भी किसी मज़लूम को,
उसकी आँखों का पानी देखना।
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ग़ज़ल
ज़िन्दगी दुश्वार होती जा रही है,
जैसे यह बीमार होती जा रही है।
हमने तो न की किसी से दुश्मनी,
दुश्मनों की पैदावार होती जा रही है।
चाहा था उनको मना लेना मगर,
हर कोशिश बेकार होती जा रही है।
ज़िन्दगी जीना हुआ बेहद मुहाल,
तलवार की धार होती जा रही है।
हम दोनों में बढ़ गए फ़ासले इतने,
फ़ासलों की दीवार होती जा रही है।
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ग़ज़ल
ग़म नहीं रहा अब तेरी रुस्वाई का,
साथ रहता है हरदम तन्हाई का।
ज़िन्दगी लगती है कोई मातमी धुन,
ख़्वाब देखा करते थे शहनाई का।
झुक जाती नज़र माँ-बाप की ख़ुद ही,
देख के आलम बच्चों की बेहयाई का।
हो गया दिल अपना पत्थर-सा सुन्न,
था न अंदेशा उसकी बेवफ़ाई का।
नहीं सोचना ये ग़म मुझको देंगे तोड़,
अंदाज़ा नहीं तुमको मेरी गहराई का।
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ग़ज़ल
हरेक शख़्स यहाँ अपने ही बस ख़याल में है,
अपनी धुन में मस्त, अपने ख़्वाबों के जाल में है।
हम सोचते थे ग़म से सिर्फ़ हम ही घिरे हैं,
यहाँ तो इक-इक जना बस इसी हाल में है।
दूजों का क्या है, दूजे जाएं चाहे भाड़ में,
सोचता हर कोई अपने ही जंजाल में है।
कैसे अपने काम बनाएं देकर औरों को धोखे,
उलझा लगता हर कोई बस इसी सवाल में है।
हुई थी मुलाक़ात उनसे सिर्फ़ चन्द लम्हों की,
पर सुरूर छाया अब तक अपनी चाल में है।
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ग़ज़ल
बीते लम्हों की ख़ुश्बू,
जगाए है अब भी जादू।
बिन कहीं देखे भी तुझको,
तू नज़र है आती हरसू।
अपना नहीं है और कोई,
अपना तो बस तू ही तू।
चेहरा हसीन तेरा इतना,
दिल पर रहे नहीं काबू।
और हमारी चाह न कोई,
हमको बस तेरी जुस्तजू।
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परिचय
नाम हरीश कुमार ‘अमित’
जन्म 1 मार्च, 1958 को दिल्ली में
शिक्षा बी.कॉम.; एम.ए.(हिन्दी); पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा
प्रकाशन 700 से अधिक रचनाएँ (कहानियाँ, कविताएँ/ग़ज़लें, व्यंग्य, लघुकथाएँ, बाल कहानियाँ/कविताएँ आदि) विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित. एक कविता संग्रह 'अहसासों की परछाइयाँ', एक कहानी संग्रह 'खौलते पानी का भंवर', एक ग़ज़ल संग्रह 'ज़ख़्म दिल के', एक बाल कथा संग्रह 'ईमानदारी का स्वाद', एक विज्ञान उपन्यास 'दिल्ली से प्लूटो' तथा तीन बाल कविता संग्रह 'गुब्बारे जी', 'चाबी वाला बन्दर' व 'मम्मी-पापा की लड़ाई' प्रकाशित. एक कहानी संकलन, चार बाल कथा व दस बाल कविता संकलनों में रचनाएँ संकलित.
प्रसारण - लगभग 200 रचनाओं का आकाशवाणी से प्रसारण. इनमें स्वयं के लिखे दो नाटक तथा विभिन्न उपन्यासों से रुपान्तरित पाँच नाटक भी शामिल.
पुरस्कार-
(क) चिल्ड्रन्स बुक ट्रस्ट की बाल-साहित्य लेखक प्रतियोगिता 1994, 2001, 2009 व 2016 में कहानियाँ पुरस्कृत
(ख) 'जाह्नवी-टी.टी.' कहानी प्रतियोगिता, 1996 में कहानी पुरस्कृत
(ग) 'किरचें' नाटक पर साहित्य कला परिाद् (दिल्ली) का मोहन राकेश सम्मान 1997 में प्राप्त
(घ) 'केक' कहानी पर किताबघर प्रकाशन का आर्य स्मृति साहित्य सम्मान दिसम्बर 2002 में प्राप्त
(ड.) दिल्ली प्रेस की कहानी प्रतियोगिता 2002 में कहानी पुरस्कृत
(च) 'गुब्बारे जी' बाल कविता संग्रह भारतीय बाल व युवा कल्याण संस्थान, खण्डवा (म.प्र.) द्वारा पुरस्कृत
(छ) 'ईमानदारी का स्वाद' बाल कथा संग्रह की पांडुलिपि पर भारत सरकार का भारतेन्दु हरिश्चन्द्र पुरस्कार, 2006 प्राप्त
(ज) 'कथादेश' लघुकथा प्रतियोगिता, 2015 में लघुकथा पुरस्कृत
(झ) 'राष्ट्रधर्म' की कहानी-व्यंग्य प्रतियोगिता, 2016 में व्यंग्य पुरस्कृत
(ञ) 'राष्ट्रधर्म' की कहानी प्रतियोगिता, 2017 में कहानी पुरस्कृत
सम्प्रति भारत सरकार में निदेशक के पद से सेवानिवृत्त
पता - 304, एम.एस.4, केन्द्रीय विहार, सेक्टर 56, गुरूग्राम-122011 (हरियाणा)
ई-मेल harishkumaramit@yahoo.co.in
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