उपन्यास - रात के ग्यारह बजे - भाग 10 - राजेश माहेश्वरी

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उपन्यास

रात के ग्यारह बजे

- राजेश माहेश्वरी

भाग 1  ||  भाग 2 ||  भाग 3 || भाग 4 || भाग 5 || भाग 6 || भाग 7 || भाग 8 || भाग 9 ||


भाग 10

पल्लवी! देख वही हुआ जिसका मुझे अंदेशा था। मैं फिर तेरे कारण झूठी बन गई। तूने ही कहा था कि आनन्द का फोन आये तो मैं उसे कह दूं कि तुम यहां नहीं हो। तुझे उसे बता कर जाने में क्या हर्ज था। वह तुझे चाहता है।

अब मैं अगर कहीं बाहर जाउंगी तो उसे तो क्या तुम्हें भी बताकर नहीं जाउंगी। मेरा भी अपना जीवन है। मैं किसी के दबाव में नहीं रह सकती। यदि वह मेरी देखभाल करता है और मुझे कुछ देता है तो मैं भी तो उसकी इच्छा पूरी करती हूँ। हमारा हिसाब बराबर का है। संसार का यही नियम है। जो जितना देता है उतना पाता है। वह जो दे रहा है उसके बदले मैं उसे उससे अधिक दे रही हूँ। तुम देखो! मैं अब उससे बात नहीं करुंगी। वह खुद मेरे पास आएगा। मैं अब होस्टल जा रही हूँ।

पल्लवी के चले जाने पर मानसी अपने दैनिक कार्यों में व्यस्त हो गई। तभी उसके पास आरती आई। वह बहुत खुश थी। उसने बतलाया कि वह कक्षा में प्रथम श्रेणी में प्रथम आई है। उसने अपनी मार्कशीट मानसी के सामने कर दी। मार्कशीट देखकर मानसी खुशी से फूल उठी। उसने आरती को गले से लगा लिया। फिर पूछा- बोलो तुम्हें क्या चाहिए। आरती कुछ देर चुप रही फिर बोली सोच कर बतलाउंगी।

मानसी ने राकेश को फोन करके यह खुशखबरी दी। राकेश ने अपनी ओर से दोनों को बधाई दी व शाम को डिनर साथ में करने का वादा किया। उस शाम को राकेश ने आनन्द गौरव और पल्लवी को भी आमन्त्रित किया था। उसने पल्लवी को लाने की जवाबदारी आनन्द को दी थी।

आनन्द उस शाम को पल्लवी को लेने होस्टल जाता है। वह तैयार थी। आनन्द के साथ उसकी कार में बैठकर वह कातिल निगाहों से आनन्द को देख रही थी। आनन्द उसकी ओर नहीं देख रहा था। पल्लवी ने उससे कहा- क्या आप अभी तक मुझसे नाराज हैं ? यदि कोई नाराजी है तो गुस्सा थूक दो। मैं तुम्हें एक राज की बात बताना चाहती हूँ।

क्या बात है ?

मानसी मुझसे जलती है। तुम्हारा दिया हुआ सारा सामान मैंने उसे बताया था। मैंने उसे यह भी बताया कि तुमने मेरे नाम से एक एफडी कर दी है और तुम मुझे नया मकान भी दिलवाने वाले हो। यह सब सुनकर वह भौंचक्की रह गई थी। तुम्हारे दिये गहने देखकर तो वह जैसे जल भुन कर राख हो गई थी। उसके मुंह से कोई आवाज तक नहीं निकली। काफी देर बाद वह बोली थी आनन्द तुम्हारे लिये भगवान समान है तुम उसका साथ कभी मत छोड़ना। लेकिन मुझे पक्का भरोसा है यह बात उसने मन से नहीं कही थी।

पल्लवी जानती थी कि अपनी तारीफ सुनना आनन्द की कमजोरी है और उसने उसकी इसी कमजोर नस पर हाथ रख दिया था। अपनी बात कहते-कहते उसने आनन्द के हाथ पर अपना हाथ रख दिया था। आनन्द भी उसके हाथ को थाम लेता है। उस पर पल्लवी का जादू हावी हो चुका था। वह बोला- कभी-कभी तुम्हारा व्यवहार मुझे बहुत दुखी कर देता है। तुम मुझसे बिना बताये कहां चली गईं थीं। तुम्हें पता भी है कि मैं कितना परेशान रहा।

स्थिति ही ऐसी थी कि तुम्हें नहीं बता सकती थी। आगे से ऐसा नहीं करुंगी। उनकी बातें चल ही रही थीं तभी होटल आ गया। वहां सभी ने आरती को बधाई दी, उसे आशीर्वाद दिये और उपहार भी दिये। आरती और मानसी दोनों ही बहुत ही प्रसन्न थे वे इस सफलता का श्रेय राकेश को ही दे रहे थे।

आरती राकेश से उसकी कविताओं की फरमाइश करती है। उसकी फरमाइश पर राकेश सुनाता है-

माँ का स्नेह

देता था स्वर्ग की अनुभूति।

उसका आशीष

भरता था जीवन में स्फूर्ति।

मुझे याद है

जब मैं रोता था

वह परेशान हो जाती थी।

जब मैं हँसता था

वह खुशी से फूल जाती थी।

वह हमेशा

सदाचार, सद्व्यवहार, सद्कर्म,

पीड़ित मानवता की सेवा,

राष्ट्र के प्रति समर्पण,

सेवा और त्याग की

देती थी शिक्षा।

शिक्षा देते-देते ही

आशीष लुटाते-लुटाते ही

ममता बरसाते-बरसाते ही

हमारे देखते-देखते ही

एक दिन वह

हो गई पंच तत्वों में विलीन।

आज भी

जब कभी होता हूँ

होता हूँ परेशान

बंद करता हूँ आंखें

वह सामने आ जाती है।

जब कभी होता हूँ व्यथित

बदल रहा होता हूँ करवटें

वह आती है

लोरी सुनाती है

और सुला जाती है।

समझ नहीं पाता हूँ

यह प्रारम्भ से अन्त है

या अन्त से प्रारम्भ।

कविता पूरी होते ही सभी ताली बजा कर राकेश की भावनाओं के साथ अपनी भी भावनाएं जोड़ देते हैं। खुशी के कारण मानसी की आंखें छलछला जाती हैं।

गौरव और राकेश आन्नद से कहते हैं कि तुम बेकार ही परेशान थे। पुरा शहर सिर पर उठाये हुए थे और हमें भी हलाकान किये हुए थे आखिर तुम्हारी पल्लवी आ गई न तुम्हारे पास। ऐसी ही हल्की-फुल्की बातों के बीच डिनर समाप्त हो जाता है। वहां से चलते-चलते राकेश आनन्द और गौरव को दूसरे दिन अपने घर पर बुलाता है।

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आनन्द बहुत गम्भीर था। उसकी गम्भीरता उसके चेहरे से झलक रही थी। वे राकेश के घर पहुँचे तो औपचारिक बातचीत के बाद आनन्द ने राकेश से पूछा आज किसलिये बुलाया था।

मैं तुमसे पल्लवी के विषय में बात करना चाहता था। मुझे पता चला है कि तुमने किसी प्रायवेट डिटेक्टिव एजेन्सी को पल्लवी के लिये हायर किया है।

हाँ! बीच में जब एक बार मैं पल्लवी के व्यवहार से काफी परेशान था तब मैंने उसके पीछे एक एजेन्सी को लगाया था। उनके द्वारा जो जानकारियां मुझे दी जा रहीं हैं उनसे मैं काफी परेशान और विचलित हूँ। उनके अनुसार पल्लवी के तीन-चार पुरूष मित्र और भी हैं। इनमें रिजवी नाम का एक सीनियर एक्जीक्यूटिव है जो कि एक कम्पनी में उच्च पद पर कार्यरत है। पल्लवी की उससे काफी नजदीकियां हैं और वह पल्लवी को काफी कुछ देता रहता है। पल्लवी भी उससे बहुत मिलती और संपर्क रखती है। उनके काफी नजदीकी संबंध हैं। रिजवी की मदद से ही पल्लवी को अपने पूर्व पति से तलाक मिल चुका है। वह अब दूसरे विवाह के लिये स्वतंत्र हो चुकी है।

पल्लवी मुझसे लगातार मकान दिलवाने की बात करती है। यह बात पता चलने के बाद मैंने उससे कहा है कि मकान तो मैं जो तुम कहो वो मैं खरीद लूंगा लेकिन वह मैं अपने नाम से खरीदूंगा। तुम उसका मन माफिक प्रयोग कर सकती हो। जबकि पल्लवी की जिद है कि मैं मकान उसी के नाम पर लूं।

मैं उसे बहुत चाहता हूँ। पर ऐसा लगता है कि जितना मैं उसे चाहता हूँ उतना वह मुझे नहीं चाहती। इसीलिये मैं तुम लोगों की मदद चाहता हूँ।

क्या मदद चाहते हो ?

तुम दोनों जानते हो कि मैं अपने परिवार में बहुत अकेला अनुभव कर रहा था। कभी-कभी तो मेरे मन में आता था कि मैं अपने इस जीवन को समाप्त ही कर दूं। उसी समय तुम लोगों के कारण मैं पल्लवी के संपर्क में आया। इसके संपर्क में आने के कारण मुझे जीवन में एक नयी आशा की किरण दिखी। अब मैं जीवन के इस आनन्द को समाप्त नहीं होने देना चाहता। मुझे लगता है कि पल्लवी के बिना मैं रह नहीं पाउंगा। हां अगर कोई और महिला आकर यदि पल्लवी का स्थान ले ले तो शायद मेरे लिये पल्लवी को छोड़ना संभव हो जाए। मैं चाहता हूँ कि तुम लोग मेरी सहायता करो।

कैसी सहायता ?

मेरा संबंध किसी दूसरी महिला से करा दो।

राकेश और गौरव दोनों ही उससे मना कर देते हैं। तभी उसके पास फोन आता है। फोन उसी डिटेक्टिव ऐजेण्ट का था। वह उसे बताता है कि पल्लवी और रिजवी शाम की गाड़ी से इलाहाबाद जाने के लिये निकल चुके हैं।

सुनकर आनन्द विचलित हो उठता है। वह गौरव और राकेश को उसकी इस बात की जानकारी देकर कहता है कि पल्लवी पैसे तो मुझ से ले रही है और ऐश उसके साथ कर रही है। अभी तक मैं उसके पर लगभग पैंतीस से चालीस लाख रूपये खर्च कर चुका हूँ। अब वह मकान के लिये पीछे पड़ी है। वह मुझे बेवकूफ समझती है।

गौरव कहता है- आनन्द भाई! प्रेम अनुभूति होती है। तुम प्रेम और वासना में अंतर नहीं समझते। तुम अपने धन के बल पर सोचते हो कि पल्लवी तुमसे प्यार करने लगेगी और पूरी तरह तुम्हारे लिये समर्पित हो जाएगी। लेकिन तुमने कभी यह नहीं सोचा कि वह तुमसे प्यार क्यों करेगी। तुम्हारी और उसकी उम्र में कितना अन्तर है। वह तो अभी तीस बरस की भी नहीं है। उसे एक लम्बा जीवन जीना है। वह अपना घर क्यों नहीं बसाएगी?

ठीक है पर मैंने भी तो उसे इतना कुछ दे दिया है और आगे भी दे दूंगा कि मेरे न रहने पर भी उसे कोई तकलीफ नहीं होगी।

एक साथ इतने गहने और रूपये उसे देने की क्या आवश्यकता थी। पिछली बार जब पल्लवी कह रही थी कि तुम कहते हो पर देते नहीं हो तो हम लोग समझे थे कि तुम पक्के नेता हो जो कहता तो है पर करता नहीं है। आज तुम्हारे मुख से यह जानकर कि तुम इतना कुछ दे चुके हो, हम लोग भौंचक्के हैं।

चेरिटी स्टार्टस फ्राम योर ओन होम. मैं पल्लवी को अपने जीवन का अभिन्न अंग मानने लगा था। इसीलिये मैंने यह सब किया। मुझे धन जाने का कोई गम नहीं है। ईश्वर की कृपा से मेरे पास धन की कोई कमी नहीं है।

गौरव खीज कर बोला- इतना धन यदि किसी सद्कार्य में खर्च किया होता तो तुम्हें यश भी मिलता और पुण्य भी।

एक वैश्या को नर्क के जीवन से निकाल कर सुख का जीवन देना क्या सद्कार्य नहीं है। राकेश ने देखा कि बातचीत अब बहस में बदलती जा रही है। उसने हस्तक्षेप करते हुए कहा- इस बहस से क्या फायदा। अब तो यह सोचो कि क्या करना है।

मैंने बताया तो लेकिन उसके लिये तो तुम लोगों ने साफ मना कर दिया। बैठक बिना किसी निष्कर्ष के समाप्त हो जाती है। आनन्द के जाने के बाद राकेश और गौरव आपस में काफी देर बात करते रहे। इस विषय पर उनकी चर्चा काफी गम्भीर रही और वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि वह भावनात्मक ब्लैक मेल का शिकार हो रहा है और वह इस बात को समझ नहीं पा रहा है। जब कोई चोट खाएगा तभी उसकी समझ में आएगा। अपने समझाने का अभी उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। उसका मस्तिष्क उसके नियंत्रण में नहीं है। वह कहता कुछ है, करना कुछ और चाहता है और करता कुछ और है। उसकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं है। उसे तो कुछ समय के लिये अपने परिवार के साथ कहीं बाहर चले जाना चाहिए। उससे कौन कहे कि तुम्हारा व्यवहार सामान्य नहीं है। भला बिल्ली के गले में घण्टी कौन बांधे। अच्छा तो यही है कि हम लोग उससे इस विषय पर चर्चा ही न करें। उन दोनों ने आनन्द से पल्लवी के विषय में चर्चा करना बन्द ही कर दिया। आनन्द और पल्लवी की नोंक-झोंक चलती रहती थी किन्तु राकेश, गौरव और मानसी उनके बीच दखल नहीं देते थे।

एक दिन राकेश अपने एक मित्र को देखने एक अस्पताल गया हुआ था। अचानक ही उसने वहां एक पलंग पर लेटी हुई पल्लवी को देखा। वह चौंक गया। उसने पूछा- आप यहां कैसे ? आप को क्या हुआ ? आनन्द कहां है ?

अचानक मुझे गाल ब्लैडर में पथरी का दर्द हो गया। डॉक्टर्स ने आपरेशन करना ही उचित समझा। आनन्द को मैंने नहीं बताया क्योंकि उसे जरुरी काम से बम्बई जाना था। फिर वे मेरे कारण परेशान हों यह भी मैं नहीं चाहती थी।

मेरे लायक कोई काम हो या मेरी कोई आवश्यकता हो तो कहो।

नहीं ऐसी कोई आवश्यकता नहीं है। कल सुबह मैं यहां से डिस्चार्ज हो रही हूँ।

राकेश ने घर पहुँचकर आनन्द से फोन पर बात की और पल्लवी के आपरेशन के विषय में बताया। यह सुनकर वह अचरज में पड़ गया।

उसने राकेश से पूछा- वहां तुमने पल्लवी को ही देखा था न।

मेरी दो आंखें हैं। मैंने उसे देखा ही नहीं था वरन् बात भी की थी। इतना कहकर राकेश ने उसे अस्पताल का पता दे दिया और पलंग नम्बर भी बता दिया।

आनन्द ने तत्काल ही अस्पताल प्रबंधन से बात की तो उसे पता चला कि पल्लवी का पथरी का आपरेशन नहीं हुआ था वरन् महिलाओं से संबंधित कोई आंतरिक आपरेशन हुआ था। आनन्द चिन्तित हो जाता है। वह बम्बई से तत्काल वापिस आता है और पल्लवी को देखने जाता है। वहां उसकी पल्लवी से गरमा-गरम बात हो जाती है। वह उससे पूछता है कि किस कारण से आपरेशन हुआ है तो पल्लवी उसे नहीं बताती वरन् गोलमोल उत्तर देती है। इससे आनन्द गु्रस्से में आ जाता है। वह उससे अपना सारा सामान और गहने आदि मांग बैठता है।

पल्लवी भी आवेश में आ जाती है और उसे टका सा जवाब देती है कि उसने उसे कुछ भी दिया ही नहीं है। वह उससे यह भी कहती है कि वह अब उससे मिलने का प्रयास न करे, वह उससे नहीं मिलना चाहती। अब आगे भविष्य में वह उससे कोई संबंध नहीं रखेगी। यह सुनकर आनन्द हत्प्रभ रह जाता है। उसे बहुत सदमा लगता है। उसने कभी पल्लवी से ऐसे व्यवहार की कल्पना भी नहीं की थी।

वह गौरव और राकेश से संपर्क करता है। वे लोग इस विषय में बीच में पड़ने से इन्कार कर देते हैं। आनन्द उनका उत्तर सुनकर और भी अधिक परेशान हो जाता है और राकेश से कहता है कि मैं तो पीड़ा से पीड़ित हूँ। वास्तव में आज मैं अपने आप को बड़ा ही असहाय अनुभव कर रहा हूँ। मुझे लगता था तुम मुझे सहारा दोगे। पर आज तुम भी मुंह मोड़ रहे हो।

राकेश ने उससे कहा कि वास्तव में तुम ही नहीं मैं भी चाह कर भी तुम्हारी मदद करने में असमर्थ हूँ। मैं भी आज तुम्हारे ही समान असहाय हो गया हूँ।

आनन्द बहुत निराश हो जाता है। वह पल्लवी को मनाने के लिये उसके घर जाता है तो वहां उसे ताला लगा मिलता है। इससे वह और भी अधिक विचलित हो जाता है। वह हर ओर से हताश हो चुका था लेकिन फिर भी उसके मन में कहीं कोई आशा थी। वह सोचता था कि उसने पल्लवी के लिये इतना कुछ किया है वह उसका साथ नहीं छोड़ सकती। कभी उसे लगता कि जैसे एक बार वह बिना बताये इलाहाबाद चली गई थी ऐसे ही कहीं बाहर तो नहीं चली गई। वह मानसी और राकेश से मिलकर उसका ंपता पूछता है पर कोई पता नहीं लगता।

तीन दिन बाद अचानक राकेश को पल्लवी के विवाह का आमंत्रण पत्र मिलता है। वह रिजवी से विवाह कर रही थी। वह गौरव को फोन लगाता है तो गौरव बतलाता है कि उसे भी उसका आमन्त्रण मिल चुका है। राकेश आनन्द को फोन लगाता है तो घण्टी तो जाती है किन्तु फोन नहीं उठता। वह परेशान हो जाता है। वह गौरव से फोन करने को कहता है पर उसका फोन भी नहीं उठता। वे काफी प्रयास करते हैं पर किसी भी प्रकार से आनन्द से कोई संपर्क नहीं हो पाता। राकेश और गौरव बहुत परेशान हो जाते हैं। आनन्द के घर से जवाब मिलता है कि वह दो दिनों से घर नहीं पहुँचा।

एक दिन और गुजर जाता है। वह घड़ी भी आ जाती है जब पल्लवी के विवाह का आयोजन था। राकेश गौरव से संपर्क करता है। दोनों तय करते हैं कि बिना आनन्द के इस कार्यक्रम में जाना उचित नहीं है। वे दोनों भी पल्लवी के विवाह में नहीं पहुँचते। राकेश फोन पर ही पल्लवी को शुभकामनाएं देकर न आ पाने की असमर्थता व्यक्त करता है।

आनन्द से कोई संपर्क नहीं होता। राकेश और गौरव की वह रात आंखों ही आंखों में कटती है। रात के अंतिम पहर में राकेश की आंख लगती है। वह अभी सोया ही था कि उसका बेटा आकर उसे जगा देता है। वह उससे कहता है कि आनन्द अंकल ने सुसाइड कर लिया। राकेश अचकचा जाता है। वह पूछता है- कब ?

बेटा बताता है- कल रात के ग्यारह बजे। राकेश अवाक रह जाता है। कुछ समय बाद ही गौरव का भी फोन आता है और वह भी उसे यही खबर देता है। वे पता लगाते हैं अंतिम संस्कार कब होगा। पता लगता है कि दिन को ग्यारह बजे अंतिम यात्रा घर से चलेगी। राकेश पल्लवी से संपर्क करता है। वह उसे सारी घटना बताता है। पल्लवी उसे एक रुखा सा उत्तर दे देती है। अभी तो मैं अपने पति के साथ हनीमून पर जा रही हूँ। वहां से लौटकर यदि मेरे ये इजाजत देंगे तो हम लोग उसके यहां जाएंगे। राकेश और भी अधिक सदमे की स्थिति में आ जाता है। वह किसी तरह अपने को संभाल कर आनन्द के अंतिम संस्कार में पहुँचता है।

वहां से लौटते-लौटते दोपहर समाप्त होने लगती है। शाम को राकेश गौरव से संपर्क करने का प्रयास करता है तो पता लगता है वह नर्मदा तट पर गया हुआ है। राकेश उसके पास पहुँचता है। गौरव हाथों में शाम का अखबार लिये गमगीन बैठा था। राकेश उसके कंधे पर हाथ रखकर उसे समझाता है तो गौरव शाम का अखबार उसकी ओर बढ़ा देता है।

राकेश उसे खोलता है तो आनन्द की मृत्यु के समाचार के साथ ही छपा था कि उसके पाकिट से एक कागज निकला है जिस पर लिखा है-

मुझे तुमसे यह शिकायत नहीं है कि तुमने बेवफाई की

लेकिन तुम्हारी बेवफाई ने

जो घाव दिया है

वह गहरा है

बन्दूक की गोली से भी अधिक

गोली का घाव तो

समय के साथ भर ही जाता है

पर बेवफाई का घाव

वह कभी नहीं भरता

लौकता रहता है

जीवन भर

तुम्हारे प्यार में

यह बेवफाई का घाव

और इसकी यह टीस

दोनों मुझे प्यारे हैं

क्योंकि ये

तुमने दिये हैं।

मेरा दिल तो तुम्हारे लिये

हमेशा यही दुआ मांगेगा

तुम सलामत रहो!

तुम सलामत रहो!

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(समाप्त)

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तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया 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जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: उपन्यास - रात के ग्यारह बजे - भाग 10 - राजेश माहेश्वरी
उपन्यास - रात के ग्यारह बजे - भाग 10 - राजेश माहेश्वरी
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