हाथ की सफ़ाई आज नीता अपने पति शांतनु के साथ एक शादी की पार्टी में गई। पार्टी में ये लोग अपने परिचितों से मुलाकात कर ही रहे थे, तभी नीता ने द...
हाथ की सफ़ाई
आज नीता अपने पति शांतनु के साथ एक शादी की पार्टी में गई। पार्टी में ये लोग अपने परिचितों से मुलाकात कर ही रहे थे, तभी नीता ने देखा, कि सामने की टेबल में उनकी दुकान के पुराने मैनेजर बैठे हुए हैं। उन्हें देखते ही नीता ने शांतनु से कहा.."अरे ये तिवारी जी को क्या हो गया ..? जब ये हमारी दुकान में काम करते थे, तब तो बहुत अच्छे दिखते थे..!
तो शांतनु ने बेरूखी से कहा -"पहले इनकी पाँचों उँगलियाँ घी में थी ना भई ..! "
"मतलब..! क्या बोले आप... मैं समझी नहीं ..?"
"मतलब ये है, कि इन्होंने हमारी दुकान से काम छोड़ा नहीं था, बल्कि इनकी छुट्टी कर दी गई थी.!
" कैसे..? "
" हमारी दुकान इनके आने के बाद बहुत अच्छी चलने लगी, तो धीरे धीरे मेरा विश्वास भी इन पर बढ़ने लगा, इनकी ईमानदारी देखकर मैं इनकी बहुत इज्जत करता था, और इसी वजह से दुकान मैं इनके भरोसे छोड़ कर अपने ट्रांस्पोर्टिंग के काम में ज़्यादा समय देने लगा..! एक दिन अचानक बैंक के कुछ काम से मैं दुकान गया, तो वहाँ..ये नहीं थे, इसलिए इनके घर चला गया... वहाँ का दृश्य देखकर तो मैं आश्चर्य चकित रह गया...!! इनके घर का पूरा कायाकल्प हो चुका था.. शानदार सोफ़ा, फ्रीज़, ए. सी., घर में सभी तरफ़ टाइल्स लग चुकी थी...! और बरामदे में एक चमचमाती मोटर साइकिल को देखते ही मेरा माथा ठनक गया..! और अब तो तिवारी जी की ईमानदारी पे मुझे शक हो गया..! उसके बाद तो मैं इनसे बिना मिले ही वापस चला आया और फ़िर इनकी अनभिज्ञता में.. मैं दुकान पर नज़र रखने लगा... और एक दो दिन में ही मुझे पता चल गया कि ये मुझे बिक्री कम बताकर रुपया कहाँ ले जा रहे हैं .! और फ़िर.. एक दिन इन्हें रंगे हाथों पकड़ते हुए मैंने इनकी छुट्टी कर दी..!"
ये सुनते ही आश्चर्य मिश्रित स्वर में नीता ने कहा... *"ओह..हो.." तो इसका मतलब है, कि पहले का चमकता* *चेहरा इनके हाथ की सफ़ाई का कमाल था...!*
ये सुन कर शांतनु ने खिसियाकर मुँह बना दिया... और अब ये दोनों तिवारी जी की टेबल से आगे निकल गये..!!
*मधु मिश्रा,ओडिशा...*✍
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वेश भूषा
शहर के एक बड़े स्टेडियम में एक प्रसिद्ध बाबा के सत्संग के लिए बहुत ही आलीशान पंडाल सजाया गया था। चारों तरफ़ लाइटों की जगमगाहट, सुंदर स्टेज, और जगह जगह एल. सी. डी. स्क्रीन की भी व्यवस्था की गई थी, ताकि बाबा जी का सभी भक्त स्पष्ट रूप से दर्शन कर सकें ... I
इस सत्संग के प्रचार के लिए शहर में बाबा जी की सुन्दर वेशभूषा में बड़े बड़े पोस्टर लगाए थे। और अब शुभ संध्या मुहूर्त में असंख्य लोगों की भीड़ के साथ शानदार रथ में बाबा जी को शोभा यात्रा के द्वारा पंडाल के सामने लाया गया...
मैंने देखा वहाँ बडे़ बड़े व्यापारी,और शहर के सम्मानित लोग बाबा जी के आगे नतमस्तक हुए जा रहे थे। ये देखकर वहाँ की उपस्थित जनता भी भावुकता में बहती जा रही थी।
इस कार्यक्रम का संचालन करते हुए बाबा जी के अनुयायी बार बार बाबा जी की जय जयकार लगाते हुए इस आयोजन के मुख्य कार्यकर्ता और बड़ी बड़ी हस्तियों के नामों की घोषणा करते हुए उनकी तारीफ़ करते जा रहे थे। जिसके परिणाम स्वरूप बाबा जी को दी जाने वाली दान राशि में भी बढ़ोतरी होती जा रही थी।
कार्यक्रम समाप्त हुआ। हम सब पंडाल से बाहर आने लगे, उसी समय मैंने देखा - फटे चिथड़े कपड़ों में एक औरत अपने बच्चे को गोद में लिए एक बड़े व्यापारी के आगे हाथ फैलाते हुए बोली - बाबूजी मेरा बच्चा भूखा है.. कुछ दे दो ना.... व्यापारी उस औरत की तरफ़ घृणा की दृष्टि से देखते हुए बोले - अरे, हटो.. हटो.. मेहनत करो, भीख माँगते हुए शर्म नहीं आती..! ये शब्द सुनकर अचानक मुझे ओडिशा की एक प्रसिद्ध लोकोक्ति याद आ गई *भेख़ थीले भीख़*(वेश देखकर भीख़) जो यहाँ पर एकदम स्पष्ट रूप में परिभाषित हो रही थी...I
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पछतावा
शाम को ऑफ़िस का काम जल्दी जल्दी निपटाकर सुरेश... शहर के प्रसिद्ध ज्योतिष पंडित मनमोहन शास्त्री के घर पहुँचा। परसों पूर्णिमा है.. पंडित जी से पूजा संबंधी सलाह ले लूँ.. यही सोचता हुआ वो पंडित जी के ड्रॉइंग रूम में उनकी प्रतीक्षा करने लगा.. I
जब बहुत देर तक पंडित जी बाहर नहीं आये, तो सुरेश ने ड्रॉइंग रूम के पर्दे को हटाया... अंदर जाने वाला दरवाज़ा दरअसल काँच का था, इसलिए ... अंदर का दृश्य स्पष्ट दिखाई देने लगा... "पंडित जी कुछ लिख रहे हैं, और उनकी पत्नी सामने बैठी उनसे कुछ बातें कर रही है।
सुरेश को घर जाने की जल्दी थी, इसलिए उसने दरवाज़े को थोड़ा धक्का दिया, ताकि पंडित जी का ध्यान इधर आकर्षित हो जाए.. लेकिन ये तो हुआ नहीं ..! पर अंदर की बातें स्पष्ट सुनाई देने लगी..l
"अरे, पंडित जी.. आज तो आप बहुत जल्दी जल्दी लोगों का भविष्य लिख रहे हैं..!! "
"हाँ.. पेपर वालों को देने का समय हो गया है..!"
"बेचारे पाठकों.. को इंतज़ार रहता है, कि आज के भविष्य फल के अनुसार.. उन्हें किस देवता की पूजा करना है..? क्या चढ़ाना है..? कौन सा शुभ रंग होगा और लाभ हानि के योग जानकर ही वो अपनी दिनचर्या निर्धारित करते हैं..!! और आप हैं कि बिना सोचे समझे बिना किसी गणना के लिखते चले जा रहे हैं..!! "
" आप भी ना.. कभी कभी व्यर्थ की बातें करने लग जाती हैं..!" "अरे.. शुक्र मनाओ हमारी तक़दीर अच्छी थी, कि ये अख़बार वाला दैनिक राशिफल के लिए राजी हो गया..!"
"और वैसे भी एक ही राशि के लाखों लोग होते हैं,और भविष्य वाणी किसी ना किसी पर तो फलीभूत हो ही जाती है।"और फ़िर ज़ोर से खिल खिलाते हुए शास्त्री जी बोले - "मूर्खलोगों को इसका अनुकरण करते हैं.. तो करने दीजिए...!! हमारा प्रचार होते रहना चाहिए.. ब... स..!!"
शास्त्री जी की इन बातों को सुनते ही सुरेश तो एक पल भी वहाँ नहीं ठहरा...! और घर वापस लौटते हुए.. उसे बहुत पछतावा हो रहा था.. "हाँ, मैं मूर्ख ही तो हूँ.. जो व्यर्थ में ही इन महाशय पर अपने हज़ारों रुपये लूटा गया..! "
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बात पते की
आज गुरुवार होने के कारण साईं मंदिर में बहुत भीड़ थी, इसलिए गुप्ता जी मंदिर प्रांगण में बाहर ही लाइन में खड़े अपने नंबर आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। तभी उन्होंने देखा.. लाइन में आगे खड़े हुए एक सज्जन अपनी जगह छोड़ कर बार बार बाहर आते हैं , और इधर उधर देखकर पुनः अंदर चले जाते हैं , पिछले 1 घंटे में यह क्रम लगभग दो-तीन बार हो गया... तब गुप्ता जी ने ग़ौर किया कि वह सज्जन अपनी नई चप्पल को देखने बार-बार बाहर आ रहे हैं।
आख़िरकार लंबी प्रतीक्षा के बाद अब दर्शन के लिए गुप्ता जी का नंबर आ ही गया और वो जब दर्शन करके मंदिर से बाहर आए तो उन्होंने देखा वो चप्पल वाले महानुभाव मुँह उतारे परेशान होकर इधर-उधर कुछ ढूँढ रहे हैं। जिज्ञासा वश गुप्ता जी ने उनसे पूछ ही लिया "क्या बात है भाई..! आप कुछ परेशान लग रहे हैं..! ये पूछते ही उक्त व्यक्ति की आँखें नम हो गई और वो रुंधे गले से कहने लगे -" आज ही मैंने 2000 रुपये में अपनी चप्पल ख़रीदी थी, और ###(गंदी गाली देते हुए) कोई उसे यहाँ से उठा ले गया!" तो गुप्ता जी ने उन्हें दिलासा देते हुए कहा-"आप टेंशन मत लीजिए , कहते हैं... कि चप्पल गुमने से अनिष्ट निकल जाता है, जो होता है अच्छे के लिए ही होता है!" ये सुनते ही आगबबूला होते हुए वो व्यक्ति कहने लगा - "ये सब बातें अपने मन को दिलासा देने की है..और कुछ नहीं..!" और फ़िर से वो गुस्से में इधर उधर झाँकते हुए बड़बड़ाने लगे .. चप्पल की चिंता से मेरा भगवान में भी मन नहीं लगा.. और इधर कोई चोर मेरी चप्पल को भी उठा ले गया..! आज से तो मैंने कसम खा ली है.. नई चप्पल पहन के मन्दिर में आऊँगा ही नहीं..! इस अंतिम टिप्पणी को सुनते ही गुप्ता जी मन ही मन कहने लगे - "हाँ भाई..अब जाके तुमने बात पते की कही...!
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पर्दा
अहमदाबाद रेल्वे स्टेशन प्रतीक्षालय में मैं अपने परिवार के साथ अपनी ट्रेन का इंतजार कर रही थी। कुछ देर बाद मैंने ग़ौर किया,मेरी बगल में बैठी एक वृद्धा कुछ दुखी हैं। और लगातार विकृत सा मुँह बना रही हैं। फिर थोड़ी देर बाद उन्होंने ही पहल करते हुए औपचारिक बात की शुरुआत के साथ मुझसे कहा-मैं अपने दोनों बेटा बहु के साथ द्वारिकाधीश के दर्शन करने आई थी। और फिर मेरा परिचय पूछते ही तत्परता से उन्होंने अपनी बातों को आगे बढ़ाकर सामने इशारा करते हुए कहा - वो जो नाश्ता कर रहे हैं ना,मेरे दोनों बेटा बहु हैं,और फिर तुरंत ही... विकृत सा मुँह बनाकर कहने लगी - मेरी बड़ी बहु ना, बड़े घर से आई है, और नौकरी भी करती है, इसलिए वो तो, बिल्कुल भी पर्दा नहीं करती। इस कारण छोटे बेटे की शादी हम लोग ग़रीब घर में किए, शादी का पूरा खर्च भी हम लोगों ने ही किया। और तुरंत ही मुँह टेढ़ा करके हाथ हिलाते हुए वो कहने लगीं -पर ये तो,आते ही सलवार सूट पहनने लगी,ना जेठ से पर्दा ना ससुर से, तो मैंने झिझकते हुए कहा - फ़िर घर का काम और आपका खाना.. ! तो तुरंत ही उन्होंने कहा-हाँ, वो तो ये लोग करती हैं। तो तत्काल मैंने उनसे कहा- आप बहुत भाग्यशाली हैं, माताजी.. ! ये लोग आपको समय से खाना दे रहे हैं, आपका काम कर रहे हैं। आप चल नहीं पा रही हैं, लेकिन फिर भी आपको ये लोग तीर्थ कराने लाए हैं। आप जानती नहीं हैं, हमारे आसपास कुछ बुज़ुर्ग एैसे भी हैं, जिनके दो - दो, तीन-तीन बच्चे होते हुए भी, उन्हें खाने के लिए नहीं पूछा जाता.. ! और आप पर्दे को लेकर परेशान हैं! आपको तो खुश होना चाहिए,आपकी बहुएँ... जो आपकी इतनी परवाह कर रही हैं ना,बस यही *इज्ज़त ही सबसे बड़ा पर्दा* है। मेरे ऐसा कहते ही, कुछ पल के लिये हम दोनों ही मौन हो गये। लेकिन मैंने अब वृद्धा के चेहरे को पढ़ने का प्रयास किया - वो कभी बेटे और बहू को देख रही थी,तो कभी मेरी तरफ पता नहीं उन्होंने मेरी बात को समझा या नहीं.. लेकिन उनके चेहरे की बदलती हुई सामान्य प्रक्रिया अब मुझे सुकून अवश्य दे रही थी।
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स्वभाव
कुछ दिनों पहले मैं अपने लिये एक चैन लेने सोने चांदी की दुकान पर गई। मैं चैन पसंद कर ही रही थी, तभी मैंने देखा दो तीन संभ्रांत महिलाएँ कार से उतरीं और इसी दुकान में आकर मालिक से कहने लगीं... "भाई साब, हमें शादी में देने के लिये बीस अंगूठियां ऑर्डर करनी है।" ये सुनते ही दुकान के मालिक ने कहा - "हाँ हाँ...भाभी जी..क्यों नहीं..." और अपने लड़के को आवाज़ देते हुए उन्होंने कहा - "अरे शैलेश, आंटी जी को बढ़िया अँगूठी दिखाओ भई... चाय पानी कॉफी, कोल्ड ड्रिंक्स क्या चलेगी, पूछ कर मँगवा लो बेटा..! और मेरी तरफ़ इशारा करते हुए उन्होंने कहा - ये आँटी को भी पानी दो, और इनके लिए भी चाय मँगवा लेना ..!"
तभी दूसरे काउन्टर में आइये आंटी कहते हुए उनके बेटे ने एक मखमली ट्रे में कुछ अंगूठियां फैला दी... मैंने देखा बहुत देर तक वो लोग, ये ठीक रहेगी... या ये वाली..करते रहे..! अंततः एक अँगूठी को पसंद करके उन्होंने ऑर्डर दे दिया, और साथ ही पचास हजार एडवांस देकर वो लोग जाने लगीं .. तभी शैलेश ने अपने पापा से पता नहीं क्या कहा कि तत्काल मालिक ने उन महिलाओं को बाहर जाने से रोकते हुए कहा - "भाभी जी, आपके पास शायद एक अँगूठी रह गई है, थोड़ा देखिए तो...!!"
ये सुनते ही, वो महिला आगबबूला हो गई और बोली - "ये क्या बकवास कर रहे हैं आप..! आपकी हिम्मत कैसे हुई ये बोलने की.. आप तो मुझे चोर कह रहे हैं..! आप जानते हैं कितने सालों से मैं आपके यहाँ आ रही हूँ..?" तो मालिक ने कहा-"इसलिए तो लिहाज कर रहा हूँ भाभी जी वरना... अभी तक तो हम शायद रिपोर्ट कर चुके होते..! आपको मालूम होना चाहिए कि सी सी कैमरा भी गवाही देता है... आपको दिखाऊँ क्या..!" ये कहते ही वो महिला सकपका कर सामने सोफ़े पर बैठ गई.. और अपना पर्स टटोलने लगी.... फ़िर, थोड़ी देर बाद अँगूठी निकालते हुए बड़ी हैरानी से बोली..." अरे! इसमें कैसे आ गई... कहते हुए उसने अँगूठी मालिक को पकड़ाई और सॉरी भैया जी.. सॉरी.. सॉरी, पता नहीं ये कैसे हो गया..??" प्रति उत्तर में दुकान वाले ने कहा - "कोई बात नहीं भाभी जी ऐसा कभी कभी हो जाता है..!" इसके बाद वो महिलाएँ दुकान से चली गईं।
अब शैलेश ने सी. सी. कैमरा ऑन किया.. उक्त महिला बार बार अँगूठी उठाती थी.. रख देती थी और फ़िर हठात उसने अँगूठी अपनी मुट्ठी में दबाते हुए पर्स में डाल दिया.. ये दृश्य देखकर दुकान में उपस्थित सारे लोगों ने एक साथ दीर्घ श्वांस ली... और सारे लोग व्यंग्य से मुस्कुरा दिए.. पर इस घटना से मेरी ग़लत फहमी अवश्य दूर हो गई कि.. "चोरी की नियत अभाव में ही नहीं *स्वभाव* में भी होती है..!
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परिचय :-
पूरा नाम :- मधु मिश्रा,
पूरा पता :- श्री मनोज कुमार मिश्रा
पोस्ट ऑफिस के पास
कोमना, नुआपड़ा, ओडिशा.
शिक्षा :- एम. ए. समाज शास्त्र (प्रावीण्य सूची में प्रथम) एम. फ़िल..
प्रकाशन :- दैनिक समाचार पत्रों में कहानी, लघुकथा,
लेखों का 2001 से सतत् प्रकाशन,. नवभारत,पत्रिका, दैनिक भास्कर, ई पत्रिका सवेरा, वैदिक राष्ट्र, अमृत काव्यम्, अविचल प्रवाह, राजिम टाइम्स,में लघु कथाओं का और कविताओं का प्रकाशन, तथा दृष्टि में लघु कथा प्रकाशित और बिजेंद्र जेमिनी जी के ई लघु कथा संग्रह में लघु कथा प्रकाशित, नारी अस्मिता गुजरात से भी कहानी का प्रकाशन...
साझा काव्य संकलन :- अभ्युदय काव्य माला, भाव स्पंदन..
साझा उपन्यास.. बरनाली,
उपलब्धि :- साहित्य संगम संस्थान द्वारा श्रेष्ठ रचनाकार
सम्मान, भाव भूषण और वीणापाणि सम्मान
ई मेल.... Madhu94377@gmail.com.
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