______ जीवन ______ एक साईकिल पर सवार आदमी का सिर आकाश से टकराता है और बारिश होती है उसकी बेटी ऐसा ही सोचती है वह आदमी सोचता है की उ...
______ जीवन ______
एक साईकिल पर सवार आदमी का सिर
आकाश से टकराता है
और बारिश होती है
उसकी बेटी ऐसा ही सोचती है
वह आदमी सोचता है की उसकी बेटी के
नीले रंग की स्कूल - ड्रेस की
परछाई से
आकाश नीला दिखता है
बरतन मांजती औरत सोचती है
मजे हुए बरतन की तरह
साफ हो हर
मनुष्य का हृदय
एक चिड़िया पेड़ को अपना मानकर
सुनाती है दुख
एक सूखा पत्ता हवा में चक्कर लगाता है
इसी तरह चलता है जीवन का व्यापार ।।
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गोली चलाने से पलाश के फूल नहीं खिलते
बस सन्नाटा टूटता है
या कोई मरता है
तुम पतंग क्यों नहीं उड़ाते
आकाश का मन कब से उचटा हुआ-सा है
तुम मेरे लिए ऐसा घर क्यों नहीं ढूंढ़ देते
जिसके आंगन में सांझ घिरती हो
बरामदे पर मार्च में पेड़ का पीला पत्ता गिरता हो
तुम नदियों के नाम याद करो
फिर हम अपनी बेटियों के नाम किसी अनजान नदी के नाम पर रखेंगे
तुम कभी धोती-कुर्ता पहनकर तेज कदमों से चलो
अनायास ही भ्रम होगा दादाजी के लौटने का
तुम बाजार से चने लाना और
ठोंगे पर लिखी कोई कविता सुनाना ।।
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_____ बसें ____
कितनी बसें हैं जो छूटती है
इस देश में
कितने लोग इन बसों में चढ़ कर
अपने स्थान को छोड़ जाते हैं
हवा भी इन बसों के अंदर पसीने में बदल जाती है
इन बसों में चढ़ कर जाते लोग
जेल से रिहा हुए लोगों की तरह भाग्यशाली नहीं होते
ये लोग मनुष्य की तरह नहीं सामान की तरह यात्रा में हैं
ये लोग एक जैसे होते हैं
मामूली से चेहरे / कपड़े / उम्मीद के साथ
जिस शहर में ये लोग जाते हैं
वह शहर इनका नाम नहीं पुकारता
भरी हुई बसों में सफर करता सर्वहारा
नाम के लिए नहीं मामूली सी नौकरी के लिए शहर आता है
ये बसें यंत्रवत चलती है
जिसके अंदर बैठे हुए लोगों के भीतर कुछ भींगता रहता है
कुछ दरकता सा रहता है ।।
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चाँद पर गुरुत्वाकर्षण बल कम है
इस धरती पर देखो
कितना गुरुत्वाकर्षण बल है
इसे तुम विज्ञान की भाषा में
नहीं समझ सकते
कितने लोग हैं जिनकी चप्पलें
इस धरती पर घिसती है
कितने लोग हैं जो पछाड़ खा कर
इसी घरती पर गिरते हैं
कितने लोग हैं जिनके बदन से छीजता
पसीना इस धरती का नमक है
कितने लोग हैं जो थक कर चूर हैं
और इस धरती पर लेटे हुए हैं
कितने लोग हैं जो इस धरती
पर गहरी चिंता में डूबे हैं
वे जो प्रेम में हैं
और वे जो घृणा में हैं
इसी धरती पर हैं
कितने लोग हैं जो
आशाओं से बंधे हैं
कितने लोग हैं जो
किसी की प्रतीक्षा में हैं
इस धरती का जो
गुरुत्वाकर्षण बल है
यह इन सबका ही
सम्मिलित प्रभाव है ।।
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________ धूप में औरत ________
धूप सबकी होती है
धूप में खड़ी औरत
बस यही सोचती है
पर उसे तो जीवन - काल में
संतुलन बनाए रखना है
अपनी इच्छाओं और वृहत्तर संसार के बीच
इस लिये औरत धूप में
बिल्कुल सीधी खड़ी होती है
मार्क्स की व्याख्या में
औरत सर्वहारा होती है
इस युग की धूप औरत के लिये नहीं है
पर धूप में खड़ी औरत यह नहीं जानती है
वह तो सीधी खड़ी होकर
किसी और के हिस्से की
धूप को बचाना चाहती है
किसी और के हिस्से की धूप को बचाती औरत
की परछाई दिवार पर सीधी पड़ती है
दिवार पर औरत की सीधी पड़ती परछाई
दूर से घंटाघर की घड़ी की सुई की तरह लगती है
और पास से सारस की गर्दन की तरह
पर धूप में खड़ी औरत यह नहीं जानती है ।।
____________ धुंध _____________
धुंध में तैर रहे हैं चेहरे
धुंध एक समुद्र की तरह है
धुंध में हिल रहे हैं हाथ
धुंध एक समुद्र की तरह है
धुंध में खो रही है रोशनी
धुंध एक समुद्र की तरह है
धुंध में कोई दिवार खड़ी है
धुंध एक समुद्र की तरह है
धुंध में खो गयी है रेलगाड़ी
धुंध एक समुद्र की तरह है
धुंध खेल रही है आँख मिचौली
धुंध एक समुद्र की तरह है
धुंध लौट रही है
धुंध एक समुद्र की तरह है
वह हर कुछ जो लौटता है
समुद्र की तरह नहीं होता
खाली हाथ घर लौटता आदमी
लौट कर भी नहीं लौटता
उसकी आँखों में धुंध लौटती है
धुंध का घर एक खाली होता आदमी है
एक खाली होते आदमी के आँख की चमक
धुंध ही बहा कर ले जाती है
धुंध एक समुद्र की तरह है ।।
_______ इस समय वह शहर उदास है ______
शहर अपने गर्दन तक धुंध में लिपटी है
और उसका मफलर
जिस पर बहुत से फूल काढ़े गये थे
ओस की नदी में बह गयी है
शहर के कोतवाल ने
चिड़ियों को तड़ीपार कर दिया है
आसमान में जैसे कर्फ्यू लगा है
न पड़ोस से कोई आदमी आता-जाता है
न पड़ोस की छत से कोई चिड़िया
आधा शहर खाली है
इस शहर का मरद लोग
फिर मिलेंगे कह कर
किसी दूसरे शहर में मजूरी करने गया है
शहर के घरों की किवाड़
जो अक्सर बंद रहती है
किसी के आने की अटकलें लगाता है
खाली आंगन और खाली घर के बीच
बंद किवाड़ हवा में महसूस करता है
सूली पर चढ़ा होना
घर की दीवार पर
किसी औरत ने बनाया है
एक चिड़िया का चित्र
यह दुख में सुख का आविष्कार है
औरत किसी उदास शहर को
ऐसे ही बचा लेती है ।।
______ आदमी के अंदर बसता है शहर ______
शहर के अंदर बसता है आदमी
आदमी के अंदर बसता है शहर
आदमी घेरता है एक जगह
शहर के अंदर
शहर भी घेरता है एक जगह
आदमी के अंदर
जब शहर भींगता है
भींगता है आदमी
एक शहर से दूसरे - तीसरे
शहर जाता आदमी
कई शहर को एक साथ जोड़ देता है
अपने दिमाग की नसों में
जब एक शहर उखड़ता है
तो उखड़ जाता है आदमी
एक छोटा सा आदमी
बिलकुल मेरे जैसा
अपनी स्मृतियों में
रोज - रोज उस शहर को लौटता है
जहाँ उसने किसी को अपना कहा
उसका कोई अपना जहाँ रहता है
उस शहर में जहाँ लिखी प्रेम कविताऐं
जहाँ किसी को उसकी आँखों की रंग से पहचानता हूं
उस शहर में जहाँ मैं किसी को उसकी आवाज़ से जानता हूँ
उस जैसे कई शहर का रास्ता
मुझसे हो कर जाता है
हर शहर एक खूबसूरत शहर है
जिसकी स्मृतियों का मैंने व्यापार नहीं किया ।।
( आधी रात को लौट कर बनारस से आते हुये । )
______________ बनारस ______________
समय का कुछ हिस्सा
मेरे शहर में रह जायेगा
इस तरफ
नदी के
जब मेरी रेलगाड़ी
लाँघती रहेगी गंगा को
और हम लाँघते रहेंगे
समय की चौखट को
अपनी जीवन यात्रा के दौरान
अपनी जेब में
धूप के टुकड़े को रख कर
शहर - दर - शहर
बनारस
यह शहर ही मेरा खेमा है अगले कुछ दिनों के लिये
इस शहर को जिसे कोई समेट नहीं सका
इस शहर के समानांतर
कोई कविता ही गुजर सकती है
बशर्ते उस कविता को कोई मल्लाह अपनी नाव पर
ढ़ोता रहे घाटों के किनारे
मनुष्य की तरह कविता भी यात्रा में होती है ।।
रोहित ठाकुर
नाम रोहित ठाकुर
जन्म तिथि - 06/12/ 1978
शैक्षणिक योग्यता - परा-स्नातक राजनीति विज्ञान
विभिन्न प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाओं में कविताएँ प्रकाशित
विभिन्न कवि सम्मेलनों में काव्य पाठ
वृत्ति - सिविल सेवा परीक्षा हेतु शिक्षण
रूचि : - हिन्दी-अंग्रेजी साहित्य अध्ययन
पत्राचार :- जयंती- प्रकाश बिल्डिंग, काली मंदिर रोड,
संजय गांधी नगर, कंकड़बाग , पटना-800020, बिहार
ई-मेल पता- rrtpatna1@gmail.com
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