"संस्मरण" "नीरज रज में मिला नहीं" - कविता 'किरण' अब न वो दर्द, न वो दिल, न वो दीवाने हैं अब न वो साज, न वो सोज...
"संस्मरण"
"नीरज रज में मिला नहीं" -
कविता 'किरण'
अब न वो दर्द, न वो दिल, न वो दीवाने हैं
अब न वो साज, न वो सोज, न वो गाने हैं
साकी! अब भी यहां तू किसके लिए बैठा है
अब न वो जाम, न वो मय, न वो पैमाने हैं
-नीरज
क्या कहूँ! निःशब्द हूं। लगभग विचारशून्य-सी। क्या लिखूं। एक नन्ही कलम कैसे लिख पाएगी उस विराट के व्यक्तित्व को..कृतित्व को.. जिसका नाम पद्म भूषण, पद्म श्री, प्रख्यात कवि एवं गीतकार श्री गोपालदास जी नीरज है।(था नहीं कहूँगी। वो अपने गीतों के रूप में जन जन के मन-मानस में सदा जीवित रहेंगे)
जहां तक मुझे याद है नीरज जी से मेरा प्रथम परिचय भीलवाड़ा शहर के काव्य मंच पर हुआ था। जहां मैंने उन्हें और उन्होंने मुझे पहली बार सुना था। ये लगभग 1992 की बात होगी। मुझे सुनने के बाद कार्यक्रम खत्म होने पर उन्होंने मुझसे कहा था कि तुम अच्छा लिखती हो..पढ़ती भी अच्छा हो..स्वर भी अच्छा है..स्वरूप भी..क्या तुम कभी विदेश हो? मैंने कहा नहीं! उन्होंने कहा तुम्हारे पास पासपोर्ट है? मैंने कहा नहीं। उन्होंने कहा बनवा लो। उसके बाद यद्यपि कभी नीरज जी के साथ या उनके किसी कार्यक्रम में मुझे विदेश जाने का अवसर तो नहीं मिला लेकिन नीरज जी के कहने पर कुछ समय बाद ही मैंने अपना पासपोर्ट अवश्य बनवा लिया था। कुछ समय बाद उनसे बोकारो में पुनः मंच साझा करने का अवसर मिला। कवि सम्मेलन के बाद अगले दिन हमारी ट्रेन क्योंकि शाम की थी इसलिए लंबे समय तक पहली बार उनके सानिंध्य का लाभ मिला। स्वर्गीय वेद प्रकाश सुमन जी और ब्रजेन्द्र अवस्थी जी भी हमारे साथ थे। मैं उन दिनों मंचों पर नवोदित थी। उस दिन उन्होंने अपने कई मंचीय अनुभव सुनाए। गीतों पर ढेर सारी चर्चा हुई और उन्होंने अपनी कुछ पसंदीदा रचनाएँ सुनाकर मुझे गीत की गहराई और गंभीरता से परिचित भी कराया। आज भी वह स्मृति मेरे मानस पटल पर ज्यों की त्यों अंकित है। उसके बाद तो ख़ैर ढेर सारे मंच दादा के साथ साझा किए मैंने।
सन 2007 में राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशन हेतु मेरे गीतों की पांडुलिपि "ये तो केवल प्यार है" (चुने गए चार शीर्षकों में से उन्होंने इसी पर अपनी सहमति दी ) का चयन हुआ। उसकी भूमिका के लिए नीरज जी से बेहतर कोई विकल्प हो ही नहीं सकता था अतः आदरणीय पद्म श्री कवि श्री सुरेंद्र शर्मा जी के सुझाव पर मैं नीरज दा से समय लेकर उनके घर अलीगढ़ पहुंच गई।
पूरा दिन उनके स्नेह सानिंध्य में एक परिवार के सदस्य की तरह बिताया। जनवरी का महीना था। रामसिंह जी (उनके केयरटेकर) ने उनके लिए धूप में खाट बिछा दी थी उसी पर लेटे-बैठे उन्होंने बड़े मनोयोग से मुझसे मेरी पांडुलिपि से कुछ गीत सुने। कई बार उनके मुख से वाह निकली और फिर प्रसंगवश बीच बीच में उन्होंने अपने कुछ गीत भी सुनाए। इस तरह उन्होंने मुझे पूरे ढाई पृष्ठ की भूमिका लिखवाई। वे धाराप्रवाह बोलते गए और मैं अनथक अविराम लिखती चली गयी।
जिस सुंदर शब्दावली में उन्होंने लिखवाया मैं सचमुच अभिभूत थी। सोच रही थी युग का महान गीत ऋषि मुझसे ये सब लिखवा रहा है क्या सच में मेरी लेखनी इस योग्य है भी।
"मरुधरा में रातरानी की गंध कविता"किरण".. नीरज जी के श्री मुख से अपने बारे में इतना सुंदर श्रेष्ठ सुन पाना..सचमुच मेरे सृजन को सार्थक कर गया।
समय समय पर उन्होंने मुझे अपने कई कार्यक्रमों में आमंत्रित किया।
पिछली बार दिल्ली के प्रतिष्ठित श्री राम कवि सम्मेलन में उनके साथ मंच साझा करने का अवसर मिला। आदरणीय अशोक चक्रधर जी संचालन कर रहे थे। नीरज जी का स्वास्थ्य ठीक नहीं होने से जिस क्रम पर मुझे पढ़ना था, नीरज जी के कहने पर उस क्रम पर उन्हें पढ़वा दिया गया। हमेशा की तरह श्रोताओं को और मंच को अपनी जादुई आवाज़ और गीतों से मंत्रमुग्ध करने के बाद जब वो मंच से जाने लगे तो अशोक चक्रधर जी ने माइक से आग्रह किया ..दादा कविता "किरण" देश की एक श्रेष्ठ मौलिक कवयित्री हैं आप कृपया उनको सुनकर जाइये।
श्रध्देय नीरज दा न केवल उनके आग्रह को स्वीकार कर अपनी जगह पर पुनः बैठ गए बल्कि मेरे गीतों और शेरों को भरपूर दाद भी दी। विशेष रूप से मेरा यह शेर..
"न तुझको ही मुहब्ब्त थी न मुझको ही मुहब्ब्त थी,
तेरी अपनी ज़रूरत थी मेरी अपनी ज़रूरत थी"
को उन्हें मुझसे बार बार सुना। वे स्वभावतः मंच पर उपस्थित हर रचनाकार को बड़े ध्यान से सुनते थे और बाद में टिप्पणी भी किया करते थे।
हाल ही 4 फरवरी 2018 को उन्होंने मुझे अलीगढ़ नुमाइश के कार्यक्रम में आमंत्रित किया जिसमें उनका सम्मान भी होना था।
उस रात उस भव्य मंच पर मेरे लिए लगभग एक अलौकिक-सा अनुभव रहा। नीरज दा के बैठने के लिए मंच पर अलग से एक सोफा लगाया गया था और संयोग से मैं उनके पैरों के ठीक निकट मसनद पर बैठी हुई थी। सम्मान के पश्चात स्वाभाविक रूप से संचालक दिनेश रघुवंशी जी द्वारा नीरज जी से कुछ सुनाने का आग्रह किया गया। नीरज दा सुनाने की मुद्रा में आ गए। पूरा ऑडिटोरियम और मंच पर उपस्थित सारे कवियों ने दादा पर अपनी दृष्टि केंद्रित कर ली। उन्होंने सुनाना शुरू किया और पूरे सदन के साथ मैं भी उनकी हर पंक्ति हर शेर पर वाह वाह करने लगी। कुछ देर बाद मुझे ऐसा प्रतीत हुआ मानो वो सिर्फ़ मुझे ही देखकर सुना रहे हैं। मुझ ही से मुख़ातिब हैं। थोड़ी देर पश्चात पूरे मंच को भी ये आभास हो गया। वो एक के बाद एक रचना सुनाते जा रहे थे।मैं भी सबके साथ दाद पर दाद दिए जा रही थी। सर्वाधिक निकट बैठे होने के कारण सम्भवतया उनकी दृष्टि मुझ पर ही ठहर गयी थी और इसी कारण मेरा ध्यान भी उन्ही पर केंद्रित था। वे लगभग आधे घण्टे तक सुनाते रहे। क्योंकि उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं था इसलिए मंच पर उपस्थित गीतकार विष्णु सक्सेना जी ने मुझे हौले से मुस्कुराकर इशारे से कहा भी कि तुम उनकी तरफ मत देखो..ऑडियन्स की तरफ देखो वरना वो एक घण्टे तक और सुनाएंगे। लेकिन मैं भी भला उस सौभाग्य की तरफ पीठ करके कैसे बैठ सकती थी जिसका लाभ लेने के लिए पूरा पंडाल लालायित था। उस समय नहीं पता था कि यह मेरी उनसे अंतिम भेंट हैं। ये उनके अंतिम दर्शन हैं मेरे लिए।
मन बहुत भावुक हो उठा है। मैं ये सोचकर स्वयम को सांत्वना देने को विवश हूं कि वे अंतिम बार सिर्फ़ मुझे ही अपना काव्य पाठ सुनाकर गए। लेकिन वे गए कहाँ..!? वे तो और गहरे पैठ गए अपने चाहनेवालों के अन्तस् में। हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में उनका योगदान सदैव अविस्मरणीय रहेगा। ईश्वर से प्रार्थना है उनकी आत्मा को शान्ति तथा परिजनों को दुख सहने की शक्ति प्रदान करे।
नीरज दा को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि मेरी इन पंक्तियों के साथ शत शत नमनसहित-
"गीत दिवाकर ढला नहीं
कभी हिमालय हिला नहीं
देह मिली केवल रज में
"नीरज" रज में मिला नहीं"
-कविता"किरण"
( दि 20 जुलाई 2018)
-डॉ कविता"किरण"
नेहरू कॉलोनी
फालना-306116
राजस्थान
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