✍ पं.खेमेस्वर पुरी गोस्वामी ✍ युवा साहित्यकार-पत्रकार राष्ट्रीय गोस्वामी समाज युवा रत्न से सम्मानित मुंगे...
✍ पं.खेमेस्वर पुरी गोस्वामी ✍
युवा साहित्यकार-पत्रकार
राष्ट्रीय गोस्वामी समाज युवा रत्न से सम्मानित
मुंगेली छत्तीसगढ़
१.- हमला सुन देश के ऊपर,
शस्त्र उठा चले गये जो
न मौत का गम जिनको,
लहू धरती को दे गये जो,
था कफन सिर में छाया हुआ,
दिल में राष्ट्रप्रेम भर लिए जो,
शत्रुओं को अपनी हुंकार से,
राख में ध्वस्त कर गये जो,
लौटे थे गाथा वीरता का लेकर,
कुछ जान देश पर दे गये जो,
भयभीत न होवे देश के लोग,
छाप सरहद को दे गये जो,
कैसे कर्ज चुकाएं उनका अब,
सदा सुरक्षा हमें दे गये जो,
मैं नित नित शीश झुकाऊं
कारगिल में विजय दे गये जो।।
वंदे मातरम्
२.-- ब्रजराज तेरे काज गई लाज हमारी
बंसीकी सुनी आज जो अवाज पियारी।।टेक।।
संगमें है ग्वालबाल नंदलाल सांवरो
जमुना के आस पास रची रास बिहारी।।१।।
सिर मोरमुकुटधार गले हार पहनके
करते हैं नाच रंग सखा संग मुरारी ।।२।।
दे देके मधुर तान करे गान मनोहर
सुनकेचली ब्रजनार सदन कार बिसारी।।३।।
हरिका मुखारविंद देख चन्दनकी छबी
खेमेस्वर मन आनंद भई गोपकुमारी।।४।।
३.--जब मैं एक अरसे बाद मुस्कुराया था ,
जब मैं एक खामोशी के बाद खिलखिलाया था ,
तो वो तुम थी कोई और न था !
तो वो सिर्फ तुम थी कोई और न था !!
कि जब मैं रोया था बहुत ,
फ़िर चैन से सोया था बहुत ,
वहाँ तुम थी कोई और न था !
जब जहाँ बिखरता था मैं सँवार लेती थी तुम,
इस तरह खुद को निखार लेती थी तुम ,
मेरे उलझे सफ़र में हमसफ़र की तरह,
सीधी पगडंडी , सादा डगर की तरह ,
तुम थी कोई और न था !!
वो जो हँसी में झूमा करता था ,
बेफिक्री में घूमा करता था ,
तब साथ तुम थी कोई और न था !!
लेकिन कल रात ,
तुम्हारे बाद…तुम्हारी याद में,
खोया था ज़िंदगी में बहुत,
रखकर कंधे पे सिर मैं रोया था बहुत ,
वहाँ कोई और था तुम न थी !
वहाँ कोई और था !! तुम न थी !!
कितना अजीब सा न …
कि पहले तुम थी कोई और न था !!
४.-कर्म लिखा सोई होवत प्यारे
(भजन-राग जंगला ताल ३)
काहे शोच करे नर मन में
कर्म लिखा सोई होवत प्यारे।।टेक।।
होनहारे मिटे नहीं कबहूं
कोटि जतन कर कर सब हारे।।१।।
हरिश्चंद्र नल राम युधिष्ठिर
राज्य छोड़ बनवास सिधारे ।।२।।
अपनी करणी निश्चय भरणी
दुश्मन मित्र न कोई तुमारे ।।३।।
खेमेस्वर सुमरे जगदीश्वर
सब दु:ख संकट दूर निवारे।।४।।
५.-कर्म लिखा सोई होवत प्यारे
(भजन-राग जंगला ताल ३)
काहे शोच करे नर मन में
कर्म लिखा सोई होवत प्यारे।।टेक।।
होनहारे मिटे नहीं कबहूं
कोटि जतन कर कर सब हारे।।१।।
हरिश्चंद्र नल राम युधिष्ठिर
राज्य छोड़ बनवास सिधारे ।।२।।
अपनी करणी निश्चय भरणी
दुश्मन मित्र न कोई तुमारे ।।३।।
खेमेस्वर सुमरे जगदीश्वर
सब दु:ख संकट दूर निवारे।।४।।
६.-तात्कालिन रायसेन/बरेली म.प्र. घटना पर चार पंक्तियां...--
क्या बिगाड़ा था तेरा,ओ ४ साल की मासूम
क्यों गड़ा दिया उस पर अपने जहरीलेनाखुन।
उसकी तो उम्र तेरी छोटी बहन का था,
ऐसी कोन सी दुश्मनी पिछले जनम का था।
जिस सिद्दत से लुटा है,किसी की इज्जत बचा के दिखाते,
गर बल आजमाना था,बार्डर में वार पे जा के आजमाते।
जरा बतलाओ खुद के बहन बेटी से क्या यही करते हो,
लाज नहीं तुम्हें आती, शर्म में डूब क्यों नहीं मरते हो।
७.-मोक्ष नहीं कोई पाया (भजन )
नाथ तेरी माया जाल बिछाया
जामें सब जग फिरत भुलाया।।नाथ..
कर निवास नौमास गर्भ में फिर भूतलमें आया
खान पान विषया रसभोगन
मात पिता सिखलाया।।१।।नाथ...
घर में सुंदर नारी मनोहर देख देख ललचाया
सुन सुन मीठी बात सुतनकी
मोहपाश में फंसाया।। २।।नाथ...
गृहकाजन में निशदि नफिरते सकलो जन्म बिताया
आशा प्रबल भई मन भीतर
निर्बल हो गई काया।। ३।।नाथ...
पाप पुण्य संचय कर पुनपुन स्वर्ग नरक भटकाया
शिवानंद कृपा बिन तुमरी
मोक्ष नहीं कोई पाया।।४।।नाथ...
८.-शरण में तुमारी हुं..!!! भजन (ग़ज़ल)
दिला दे भीख दर्शन की,प्रभु तेरा भीखारी हूं।।
चलकर दूर देशन से तेरे दरबार में आया
खड़ा हूं द्वारपे दिलमें तेरी आशा का धारी हूं।।
फिरा संसारचक्करमें भटकता रात दिन बिरथा
बिना दीदार के तेरे हमेशा मैं दुखारी हूं।
तुंही माता पिता बंधु तुंही मेरा सहायक है
तेरेदासों के दासनका चरणनका सेवकारी हूं।
भरा हुं पाप दोषन से झमा कर भूलको मेरी
वो शिव-शंभु सुन विनती शरण में तुमारी हूं।।
पिला दे प्रेम का प्याला प्रभु दर्शन पियासी हूं।।
छोड़कर भोग दुनिया के, योग के पंथ में आई
तेरे दीदार के कारण फिरुं बनबन उदासी हूं।
न जानूं ध्यान का धरना न करना ज्ञान चरचा का
नहीं तपयोग है केवल तेरे चरणों की दासी हूं।।
न देखो दोष को मेरे दया की फेर दृष्टि को
न दूजा आसरा मुझको, तेरे दर की निवासी हूं।।
कोई बैकुंठ बतलावे कोई कैलास पर्वत को
वोशिव-शंभु घट-घट में रुप की मैं बिलासी हूं।।
9.-हंसती,खेलती घर में रहता
पापा के गोदी में झूलता
मां की खाता प्यारी डांट
रोज जोहते सब मेरा बाट
घर में भी दुर्गा कहलाता
जिस घर में जाता लक्ष्मी कहलाता
हमेशा दिल से रिश्ता निभाता
मीठी बातों से सबका मन जीत जाता
मायके में रह मस्ती करता सब संग
संस्कार मेरे ससुराल में करते सब पसंद
मेरे बिदाई में बाबूल सग, अम्मा जमीन पर लेटी होती
मेरी किस्मत होती साहब,
बेटा नहीं गर मैं बेटी होती...
१0-“हर उस बेटे को समर्पित जो घर से दूर है”
बेटे भी घर छोड़ जाते हैं
जो तकिये के बिना कहीं…भी सोने से कतराते थे…
आकर कोई देखे तो वो…कहीं भी अब सो जाते हैं…
खाने में सो नखरे वाले..अब कुछ भी खा लेते हैं…
अपने रूम में किसी को…भी नहीं आने देने वाले…
अब एक बिस्तर पर सबके…साथ एडजस्ट हो जाते हैं…
बेटे भी घर छोड़ जाते हैं.!!
घर को मिस करते हैं लेकिन…कहते हैं ‘बिल्कुल ठीक हूँ’…
सौ-सौ ख्वाहिश रखने वाले…अब कहते हैं ‘कुछ नहीं चाहिए’…
पैसे कमाने की जरूरत में…वो घर से अजनबी बन जाते हैं
लड़के भी घर छोड़ जाते हैं।
बना बनाया खाने वाले अब वो खाना खुद बनाते है,
माँ-बहन-बीवी का बनाया अब वो कहाँ खा पाते है।
कभी थके-हारे भूखे भी सो जाते हैं।
लड़के भी घर छोड़ जाते है।
मोहल्ले की गलियां, जाने-पहचाने रास्ते,
जहाँ दौड़ा करते थे अपनों के वास्ते,,,
माँ बाप यार दोस्त सब पीछे छूट जाते हैं
तन्हाई में करके याद, लड़के भी आँसू बहाते है
लड़के भी घर छोड़ जाते हैं
नई नवेली दुल्हन, जान से प्यारे बहिन- भाई,
छोटे-छोटे बच्चे, चाचा-चाची, ताऊ-ताई ,
सब छुड़ा देती है साहब, ये रोटी और कमाई।
मत पूछो इनका दर्द वो कैसे छुपाते हैं,
बेटियाँ ही नहीं साहब, बेटे भी घर छोड़ जाते हैं...!
रचना:- पं.खेमेस्वर पुरी गोस्वामी
"छत्तीसगढ़िया राजा"
मुंगेली-छत्तीसगढ़
सहृदय आभार 💐💐 आदरणीय 💐💐💐
जवाब देंहटाएं