बचत"लघुकथा" भुवनेश्वर चौरसिया "भुनेश" ************** गाहे बगाहे घरों में रिश्तेदार का आना जाना लगा ही रहता है। आज...
बचत"लघुकथा"
भुवनेश्वर चौरसिया "भुनेश"
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गाहे बगाहे घरों में रिश्तेदार का आना जाना लगा ही रहता है। आज फिर बुआ जी आ रही हैं। यह ख़बर बुधनी को काटे जा रही थी। और दिन कैसे बिता पता नहीं चला, बुआ जी आ भी गई थी। अब बच्चे रोज स्कूल लेट हो जाएंगे, पति महोदय काम धंधे पर नहीं जाएंगे? तरह तरह की चिंताएं बुधनी को खाए जा रही थी। ऊपर से जो बचत पिछले एक साल से करती आ रही थी! पति के दिए घर खर्च में से वह भी ख़त्म होते देर नहीं लगेगी। यह पैसे वह अपने पाजेब खरीदने के लिए बचा रही थी। चिंता वाजिब ही थी। यहां प्रदेश में कमा खटा कर दो पैसे बचाना बड़ी मुश्किल काम होता है। ऊपर से जाते समय बुआ जी के लिए "किराया भाड़ा" कपड़े लत्ते सब का इंतजाम भी तो करना था।
यह सब सोचते हुए बुधनी आटा गूंद रही थी। और उसके मन की जलन चुल्हे पर चढ़ाई गई कड़ाही में सब्जी के रूप में उबल रही थी। आटा गूंदने के बाद "उसने बुआ जी को घर से जल्दी रूखसत करने के लिए" बनी हुई सब्जी में थोड़ी नमक मिर्च और मिला दी। आज छुट्टी के दिन पति बच्चे और बुआ सभी घर पर ही थे। वैसे बुआ जी पैसे के मामले में बुधनी से ज्यादा समृद्ध घर में व्याही गई थी। उनके बेटे इंजीनियर बहु मस्टरनी पति डॉक्टर यूं मानिये "सबके सब पैसे की खान" बुआ जी यहां भतीजे के यहां उनसे मिलने बहाना बना कर आ जाती दवाई लानी है। ताकि अपने पुश्तैनी खानदान के एक मात्र चिराग को देख सकें। सभी बैठ कर एक साथ खाना खा रहे थे।
बुआ जी को सब्जी बहुत तीखी लग रही थी। लेकिन वह फिर भी खा रही थी। उधर बुधनी जो पैसे अपने पाजेब के लिए बचाई थी, एक एक रूपया सभी धीरे धीरे खत्म हो रहे थे। खाना खाने के बाद सब आराम फरमाते हुए टेलीविजन पर कर्ज मूवी आ रही थी, वह देखने में व्यस्त थे। समय कब निकल गया पता ही नहीं चला शाम के चार बज गए थे! अचानक ही बुधनी के पति और अपने भतीजे को जिनका नाम प्रकाश था! आवाज लगाते हुए मेरा बैग देना प्रकाश और मुझे अभी रेलवे स्टेशन छोड़ आओ। बुधनी बुआ जी क्या हुआ? अचानक ही अभी तो कोई तैयारी भी नहीं किए, और आप जाने को तैयार हो गयी! ऐसे कैसे जाने दूंगी लोग क्या कहेंगे? पकवान वकवान कपड़े लत्ते कुछ भी इंतजाम नहीं किया। बुआ जी नहीं नहीं मुझे अभी जाना है। और अपने बैग में से कुछ पैसे और एक पैकेट निकाल कर। बुधनी को देते हुए वोली मेरे जाने के बाद पैसे दोनों बच्चों को और पैकेट में जो है, वह तुम रख लेना।
बुआ जी का बैग उठाए प्रकाश बुआ जी के साथ रेलवे स्टेशन के लिए निकल गया।ईधर बुधनी पैसे बटुए में रखते हुए, वह पैकेट खोल कर देखने लगी। पैकेट के अंदर एक खुबसूरत सी पाजेब जो बहुत कीमती थी। वह बुधनी पांच साल तक पैसे बचाकर भी नहीं खरीद पाती देखकर फुदक पड़ी। सहसा उसे बुआ जी के साथ किए गए व्यहार पर शर्मिंदगी महसूस होने लगी। पाजेब और बटुए को एक तरफ पटक कर अपने माथे पर हाथ धरे बुआ जी के पुनः आने की प्रतीक्षा में चौखट पर बैठ गयी। प्रकाश तो बुआ जी को रेलवे स्टेशन जाकर उन्हें रेलगाड़ी में बिठाकर लौट आया।
लेकिन बुआ जी उसके बाद प्रकाश और बुधनी जो उनके भतीजे की बहु उसके पास कभी नहीं लौटी।
(C)भुवनेश्वर चौरसिया "भुनेश"
मकान नंबर २८८/२२ गली नं ६ एच,नियर हनुमान मंदिर, गांधी नगर, गुड़गांव (हरियाणा)
पिन:-१२२००१
भुवनेश्वर चौरसिया "भुनेश"
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गाहे बगाहे घरों में रिश्तेदार का आना जाना लगा ही रहता है। आज फिर बुआ जी आ रही हैं। यह ख़बर बुधनी को काटे जा रही थी। और दिन कैसे बिता पता नहीं चला, बुआ जी आ भी गई थी। अब बच्चे रोज स्कूल लेट हो जाएंगे, पति महोदय काम धंधे पर नहीं जाएंगे? तरह तरह की चिंताएं बुधनी को खाए जा रही थी। ऊपर से जो बचत पिछले एक साल से करती आ रही थी! पति के दिए घर खर्च में से वह भी ख़त्म होते देर नहीं लगेगी। यह पैसे वह अपने पाजेब खरीदने के लिए बचा रही थी। चिंता वाजिब ही थी। यहां प्रदेश में कमा खटा कर दो पैसे बचाना बड़ी मुश्किल काम होता है। ऊपर से जाते समय बुआ जी के लिए "किराया भाड़ा" कपड़े लत्ते सब का इंतजाम भी तो करना था।
यह सब सोचते हुए बुधनी आटा गूंद रही थी। और उसके मन की जलन चुल्हे पर चढ़ाई गई कड़ाही में सब्जी के रूप में उबल रही थी। आटा गूंदने के बाद "उसने बुआ जी को घर से जल्दी रूखसत करने के लिए" बनी हुई सब्जी में थोड़ी नमक मिर्च और मिला दी। आज छुट्टी के दिन पति बच्चे और बुआ सभी घर पर ही थे। वैसे बुआ जी पैसे के मामले में बुधनी से ज्यादा समृद्ध घर में व्याही गई थी। उनके बेटे इंजीनियर बहु मस्टरनी पति डॉक्टर यूं मानिये "सबके सब पैसे की खान" बुआ जी यहां भतीजे के यहां उनसे मिलने बहाना बना कर आ जाती दवाई लानी है। ताकि अपने पुश्तैनी खानदान के एक मात्र चिराग को देख सकें। सभी बैठ कर एक साथ खाना खा रहे थे।
बुआ जी को सब्जी बहुत तीखी लग रही थी। लेकिन वह फिर भी खा रही थी। उधर बुधनी जो पैसे अपने पाजेब के लिए बचाई थी, एक एक रूपया सभी धीरे धीरे खत्म हो रहे थे। खाना खाने के बाद सब आराम फरमाते हुए टेलीविजन पर कर्ज मूवी आ रही थी, वह देखने में व्यस्त थे। समय कब निकल गया पता ही नहीं चला शाम के चार बज गए थे! अचानक ही बुधनी के पति और अपने भतीजे को जिनका नाम प्रकाश था! आवाज लगाते हुए मेरा बैग देना प्रकाश और मुझे अभी रेलवे स्टेशन छोड़ आओ। बुधनी बुआ जी क्या हुआ? अचानक ही अभी तो कोई तैयारी भी नहीं किए, और आप जाने को तैयार हो गयी! ऐसे कैसे जाने दूंगी लोग क्या कहेंगे? पकवान वकवान कपड़े लत्ते कुछ भी इंतजाम नहीं किया। बुआ जी नहीं नहीं मुझे अभी जाना है। और अपने बैग में से कुछ पैसे और एक पैकेट निकाल कर। बुधनी को देते हुए वोली मेरे जाने के बाद पैसे दोनों बच्चों को और पैकेट में जो है, वह तुम रख लेना।
बुआ जी का बैग उठाए प्रकाश बुआ जी के साथ रेलवे स्टेशन के लिए निकल गया।ईधर बुधनी पैसे बटुए में रखते हुए, वह पैकेट खोल कर देखने लगी। पैकेट के अंदर एक खुबसूरत सी पाजेब जो बहुत कीमती थी। वह बुधनी पांच साल तक पैसे बचाकर भी नहीं खरीद पाती देखकर फुदक पड़ी। सहसा उसे बुआ जी के साथ किए गए व्यहार पर शर्मिंदगी महसूस होने लगी। पाजेब और बटुए को एक तरफ पटक कर अपने माथे पर हाथ धरे बुआ जी के पुनः आने की प्रतीक्षा में चौखट पर बैठ गयी। प्रकाश तो बुआ जी को रेलवे स्टेशन जाकर उन्हें रेलगाड़ी में बिठाकर लौट आया।
लेकिन बुआ जी उसके बाद प्रकाश और बुधनी जो उनके भतीजे की बहु उसके पास कभी नहीं लौटी।
(C)भुवनेश्वर चौरसिया "भुनेश"
मकान नंबर २८८/२२ गली नं ६ एच,नियर हनुमान मंदिर, गांधी नगर, गुड़गांव (हरियाणा)
पिन:-१२२००१
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