कहानी संग्रह // तर्जनी से अनामिका तक ( प्रेरणादायक कहानियाँ एवं संस्मरण ) - भाग - 3 // राजेश माहेश्वरी

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कहानी संग्रह तर्जनी से अनामिका तक ( प्रेरणादायक कहानियाँ एवं संस्मरण ) राजेश माहेश्वरी एक नई परिकल्पना यह बात उन दिनों की है जब स्वर्गीय रा...

कहानी संग्रह

तर्जनी से अनामिका तक

( प्रेरणादायक कहानियाँ एवं संस्मरण )

राजेश माहेश्वरी

कहानी संग्रह //  तर्जनी से अनामिका तक ( प्रेरणादायक कहानियाँ एवं संस्मरण )  // राजेश माहेश्वरी


एक नई परिकल्पना

यह बात उन दिनों की है जब स्वर्गीय राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री पद पर थे एवं स्वर्गीय अजय नारायण मुशरान जबलपुर से लोकसभा के सांसद थे। उनके नेतृत्व में शहर से युवा कांग्रेस का एक प्रतिनिधि मंडल, राजीव जी से भेंट करने हेतु दिल्ली गया था। उनसे भेंट के दौरान राजीव जी ने अचानक ही एक प्रश्न हम लोगों के सामने रखा कि हम केंद्र से गरीबों के हितार्थ समुचित राशि प्रेषित करते है परंतु उसका अपेक्षित परिणाम नहीं प्राप्त हो पाता है, इसका क्या कारण है ? हमारे प्रतिनिधि मंडल के एक सदस्य ने उनसे निवेदन किया कि ऐसा क्यों होता है इसे मैं आपकों एक छोटे से उदाहरण के माध्यम से समझाने का प्रयास करता हूँ।

उसने एक बर्फ का टुकडा बुलवाया और राजीव जी के हाथ में देकर कहा कि इसे आप क्रमशः एक दूसरे के हाथों में देने का निर्देश दे। यह सुनकर राजीव जी ने अचरज के साथ कहा कि जैसा यह कह रहे है ऐसा करिए। ऐसा कहते हुए उन्होंने अपने हाथ में रखा हुआ बर्फ का टुकडा दूसरे सदस्य के हाथों में दे दिया और उस सदस्य ने किसी दूसरे सदस्य को दे दिया। इस प्रकार क्रमशः 50 सदस्यों के हाथों से गुजरने के बाद जब बर्फ का टुकडा अंतिम सदस्य के पास पहुँचा तो वह टुकडा अत्यंत छोटा हो चुका था।

राजीव जी ने जब यह देखा तो वह गंभीर होकर बोले कि मैं समझ गया कि आप क्या कहना चाहते है। जब केंद्र से धन भेजा जाता है तो वह अनेक माध्यमों से होता हुआ जनता के पास पहुँचता है और इसी कारण जितना धन भेजा जाता है तो उसका आधा भी भ्रष्टाचार के कारण जनता तक नहीं पहुँच पाता है ? इसके बाद राजीव जी ने कहा कि आप लोग ही इसका समाधान भी बताइये।

हमारे सदस्यों ने कहा कि कुछ ऐसा प्रबंधन किया जाए जिससे केंंद्र एवं जनता के बीच के माध्यमों की संख्या सीमित हो एवं केंद्र का जनता के साथ सीधा संवाद हो सके। ऐसी प्रणाली यदि विकसित की जा सके तो भ्रष्टाचार में काफी हद कमी आ जायेगी और जनता इससे ज्यादा लाभान्वित होगी। उस समय तो यह बात सामान्य चर्चा बनकर समाप्त हो गई परंतु उस चर्चा की सार्थकता आज नजर आ रही है।

सृजन

प्रसिद्ध कवि रामसजीवन सिंह कवि सम्मेलन में अपना काव्यपाठ प्रस्तुत करने के उपरांत अपने गृहनगर वापिस जा रहे थे। उनके साथ उनके द्वारा लिखी गई नवीन रचनाओं का पूरा संग्रह भी साथ में था। कवि सम्मेलन से लौटते वक्त वे काफी थक गये थे और ट्रेन में गहरी निद्रा में सो रहे थे।

जब उनकी नींद खुली तो उन्होंने देखा कि सामने की सीट के नीचे रखा हुआ उनका संदूक नदारद था। यह देखकर उनके होश उड़ गये क्योंकि उसमें उनकी नवीन रचनाओं का पूरा संग्रह रखा हुआ था, जो कि उसी सप्ताह प्रकाशन हेतु जाना था। उन्होंने काफी खोजबीन की परंतु उन्हें निराशा ही हाथ लगी। उन्होंने इसकी रिपोर्ट रेल पुलिस में दर्ज करायी। इसके लगभग एक सप्ताह बाद उन्हें पुलिस द्वारा जानकारी मिली कि उनका संदूक रेल्वे ट्रेक के पास अस्तव्यस्त हालत में प्राप्त हुआ है एवं उन्हें जाँच हेतु पुलिस स्टेशन बुलाया गया है।

वहाँ पहुँचने पर उन्होंने देखा कि उनकी सभी रचनाएँ संदूक में फटी हुई हालत में पडी हुई थी। यह देखकर वे बहुत द्रवित हो गये। उनको देखकर वहाँ के इंस्पेक्टर ने दुख व्यक्त करते हुए कहा कि महोदय आपका इतना परिश्रम एवं समय व्यर्थ नष्ट हो गया। जिस चोर ने यह सामान चुराया था उसे इसकी कीमत का अनुमान नहीं होगा परंतु मैं स्वयं एक काव्यप्रेमी हूँ। मैं किसी साहित्यकार की इस वेदना को महसूस कर सकता हूँ। अब आपको इसके सृजन में बहुत परिश्रम लगेगा।

वे कवि महोदय उनकी बात सुनकर बोले की जीवन में व्यक्ति को परिश्रम करने से कभी भी हतोत्साहित नहीं होना चाहिए और सृजन के प्रति सदैव समर्पित रहना चाहिए। मैं तो यह मानता हूँ कि ईश्वर जो भी करता है, उसमें कोई ना कोई भलाई छुपी होती है। मैं जब पुनः इन काव्य रचनाओं का लेखन करूँगा तो विचारों में और भी अधिक परिपक्वता लाकर पहले से भी अच्छे साहित्य का सृजन कर पाऊँगा। हमें समय और परिस्थितियों के अनुसार समझौता करना चाहिए और अपने कर्म के प्रति समर्पित रहना चाहिए।

योग यात्रा

योगाचार्य श्री अवनीश तिवारी जो कि योग एवं ध्यान के क्षेत्र में अपना विशिष्ट स्थान रखते है। अपने जीवन की प्रेरणादायक घटना बताते हुये कहते है :- उनका जीवन योग के अनुसंधान एवं व्यवहारिक जीवन में प्रयोग हेतु समर्पित रहा है। वे भावुक होकर बताते हैं कि मानव के मस्तिष्क में प्रभु की कृपा से अनेकों विचारों का आगमन और निर्गमन होता रहता है। ये हमें किसी भी दिशा में आगे प्रगति करने हेतु अनेक संभावनाओं को जन्म देता है, जिसे कार्य रूप में परिणित करने हेतु हम अपनी शारीरिक, मानसिक एवं अन्य क्षमताओं का उपयोग करते है।

वे अपने अतीत में खोकर कहते है कि उनका प्रारंभिक जीवन आर्थिक कठिनाईयों में बीता था। उन्होंने शिक्षक की नौकरी एवं उसके उपरांत म.प्र.वि.मं. में अपनी सेवाएँ दी है। इसी दौरान उनकी मुलाकात विश्व प्रसिद्ध योग गुरू स्वामी सत्यानंद जी से एक शिविर के दौरान हुई, जिसमें वे योगाभ्यास सीखने हेतु गये थे। स्वामी सत्यानंद जी के व्यक्तित्व ने उनके जीवन में क्रांति ला दी और उन्होंने योग के प्रचार प्रसार में अपना जीवन समर्पित करने का संकल्प ले लिया। योग से उनके शरीर में गजब का परिवर्तन आ गया और उनके चेहरे से तेज झलकने लगा। अब उन्होंने योग के माध्यम से हृदय रोग, मानसिक तनाव, मधुमेह, गर्दन एवं कमर का दर्द, मोटापा ,रक्तचाप आदि बीमारियों से निजात दिलाने का भरसक प्रयास किया और इसमें उन्हें सफलता भी प्राप्त हुई। इस क्षेत्र में उन्होंने बहुत अनुसंधान किये जिससे उन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त हुई।

वे संस्कारधानी जबलपुर के बहुत ऋणी है। यहाँ के नागरिकों, शिक्षण संस्थाओं, मीडिया आदि का इतना सहयोग एवं सम्मान प्राप्त हुआ कि योग के क्षेत्र में उन्हें प्रगति के सोपान की एक नई दिशा प्राप्त हो गई। उनके इस प्रयास से हजारों लोग विभिन्न बीमारियों से निजात पाने में सफल रहे है। इससे उन्हें जो आत्मसंतुष्टि एवं तृप्ति प्राप्त हुई है, उसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। इस संस्कारधानी के संस्कारों ने उन्हें हमेशा जीवन में आगे बढ़ने के लिये प्रोत्साहित किया। आज भी वे निरंतर सुबह से शाम तक अपनी यौगिक क्रियाओं में तन्मयता के साथ योग कक्षायें संचालित कर रहे हैं एवं लोगों को योग के माध्यम से स्वस्थ्य एवं सुखी बनाना ही उनके जीवन का उद्देश्य है। आज की युवा पीढी को उनका संदेश है :-

सबसे बढ़कर साथी मेरा

करता बहुत कमाल है,

योग सिखाता जीना उनको

जिनका हाल बेहाल है।

जहाँ लक्ष्मी का निवास वहाँ सरस्वती का वास

रामकिशोर नगर के प्रसिद्ध उद्योगपति थे। वे अपनी पत्नी एवं तीन पुत्रों के साथ सुख, समृद्धि एवं वैभव का जीवन व्यतीत कर रहे थे। एक दिन उन्हें सपने में लक्ष्मी जी ने दर्शन देकर कहा कि मैं बहुत समय से तुम्हारे यहाँ विराजमान हूँ, अब मेरा समय यहाँ से पूरा हो चुका है और मैं दो तीन दिन में प्रस्थान करने वाली हूँ। तुम और तुम्हारे परिवार ने मेरी बहुत सेवा सुश्रुषा की है इसलिये मैं चाहती हूँ कि तुम अपनी इच्छानुसार कोई भी एक वरदान मेरे प्रस्थान के पूर्व मुझसे माँग लो तुम्हारी मनोकामना पूरी होगी। रामकिशोर हडबडाकर नींद से उठ गया और वह फिर सो ना सका। लक्ष्मी जी के चले जाने की बात से वह इतना घबरा गया कि दूसरे दिन सुबह होते ही उसने परिवार के सभी सदस्यों को इस बात से अवगत कराया। उसके तीनों बेटे बोले कि यह महज एक सपना था आपने कैसे इस पर विश्वास कर लिया ? हमारा परिवार धर्म पूर्वक कर्म कर रहा है। लक्ष्मी जी को हम बहुत आदर और सम्मान देते है, हमें छेडकर वे क्यों चली जायेंगी ? रामकिशोर की पत्नी बहुत होशियार और समझदार थी वह बोली कि लक्ष्मी जी के जाने का पूर्वाभास होना ये उनकी हमारे ऊपर बहुत बडी कृपा है। उन्होंने एक वर माँगने का विकल्प हमें दिया है। आप उनसे विनम्रतापूर्वक घर में सभी सदस्यों के बीच प्रेम, सद्भाव एवं शांति आजीवन बनी रहे ऐसा आर्शीवाद हमें देती जाए। रामकिशोर ने अपनी पत्नी के द्वारा दिये गये सुझाव पर लक्ष्मी जी से यह वरदान माँग लिया। यह सुनकर लक्ष्मी जी बोली कि तुम्हारी पत्नी बहुत चतुर एवं धार्मिक है उसने ऐसा वरदान माँगने का निवेदन करके मुझे तुम्हारे घर में ही रहने के लिए विवश कर दिया है। यह सर्वमान्य सत्य है कि मेरा निवास वहाँ पर ही रहता है जहाँ पर आपस में प्रेम और सद्भाव होता है। मै अब यही निवास करूँगी । लक्ष्मी जी के निवास के संकल्प के कारण सरस्वती जी को वहाँ पर आना पडा क्योंकि जहाँ लक्ष्मी जी का निवास होता है, वहाँ पर सरस्वती जी का भी वास रहता है।

प्रभु भक्ति

एक उद्योगपति हरिनारायण अपने नाम के अनुरूप ही सच्चे मन व समर्पण से ईश्वर की पूजा करते थे। उनका व्यापार भी ठीक ठाक चल रहा था तभी अचानक ही उन्हें व्यापार में बहुत अच्छा मुनाफा होने लगा और इसे वे प्रभु की कृपा ही मानकर उनके मन में एक पहाडी पर एक मंदिर बनाने की इच्छा जागृत हो गई। वह पहाडी उन्ही के मालिकाना हक में थी। उन्होंने इस पर भव्य मंदिर बनवाना प्रारंभ कर दिया।

उस पहाडी पर मंदिर के रास्ते में ही एक गरीब परिवार रहता था। जब मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हुआ तो लोगों ने उसके निर्माण के लिए अपनी ओर से भी सहयोग देना शुरू किया। यह देखकर रास्ते में रहने वाले उस गरीब वृद्ध दंपत्ति के मन में भी इस निर्माण कार्य में सहयोग करने की प्रबल इच्छा जागृत हुई और उन्होंने मंदिर के निर्माण कार्य में आने जाने वाले श्रमिकों एवं अन्य व्यक्तियों को अपनी ओर से जल एवं गुड़ खिलाने का सेवा कार्य करने लगे। जब उस भव्य मंदिर का निर्माण पूरा हो गया और मूर्ति स्थापना के विषय में विचार विमर्श प्रारंभ हुआ तभी एक रात हरिनारायण को स्वप्न में मानों प्रभु का निर्देश मिला कि उस दंपत्ति के यहाँ जो मूर्ति है उसी की स्थापना इस मंदिर में की जाये और तदनुसार उन्होंने उस मूर्ति को प्राप्त कर उसे मंदिर में स्थापित कर दिया। मंदिर के उद्घाटन के लिये जोर-शोर से तैयारियाँ प्रारंभ हो गई थी और प्रख्यात राजनीतिज्ञों से उद्घाटन का प्रारूप तैयार हो रहा था।

इसी समय हरिनारायण की पत्नी को स्वप्न में प्रभु के दर्शन हुए और उन्हें निर्देश मिला कि इस मंदिर का उद्घाटन उस गरीब दंपत्ति के द्वारा ही किया जाए जो कि प्रभु के प्रति पूर्ण मन से समर्पित होकर सेवाभाव रखते हुए मंदिर के निर्माण हेतु कार्यरत हर व्यक्ति को पूर्ण श्रद्धाभाव से गुड खिलाकर पानी पिलाता था। इसके बाद प्रभु इच्छा के अनुसार उसी वृद्ध दंपत्ति से उसका उद्घाटन करवाया गया। उस उद्योगपति का परिवार इस घटना को देखकर प्रभु के प्रति असीम श्रद्धाभाव से भर गया। उन्हो़ने उस वृद्ध दंपत्ति से अनुरोध करके भगवान की सेवा हेतु उस मंदिर का व्यवस्थापक बना दिया। वे वृद्ध दंपत्ति ईश्वर की निस्वार्थ सेवा के कारण सुखी और आनंदमय जीवन व्यतीत करने लगे।

स्ांगति का प्रभाव

महेश एक कर्तव्यनिष्ठ व मेहनती व्यक्ति था जो कि एक कारखाने में लिपिक के पद पर कार्यरत था। वह अपनी पत्नी और एक बच्ची के साथ सुखमय जीवन जी रहा था। उसके विभाग में रमेश नामक एक दूसरे लिपिक से उसकी घनिष्ठ मित्रता हो गयी। वह एक बिगडा हुआ, शराब का आदी व्यक्ति था। उसकी इस बुरी आदत ने धीरे धीरे महेश को भी जकड़ लिया और वह भी शराब का आदी हो गया था। वह अपनी मेहनत की कमाई के रूपये शराब में उडा देता था जिससे उसके घर में आर्थिक तंगी के कारण झगडे होने लगे। वह अपनी बेटी पिंकू को बहुत प्यार करता था।

एक दिन जब वह मदिरालय में शराब पी रहा था तभी उसके पास खबर आई की उसकी बेटी अचानक छत से गिर गई है और उसे गंभीर अवस्था में अस्पताल में भर्ती किया गया है। महेश शराब के नशे में इतना डूबा हुआ था कि उसने इसे अनसुना कर दिया और शराब पीने में ही अपना समय गंवाता रहा। जब वह देर रात्रि घर पहुँचा तो उसे पिंकू के निधन का पता हुआ। यह जानकर वह स्तब्ध रह गया कि उसकी प्यारी बच्ची अंतिम समय तक अपने पापा की याद करते हुए मृत्यु को प्राप्त हो गई।

महेश का नशा उतर चुका था और उसका हृदय व्यथित होकर उसे बार-बार धिक्कार रहा था। उसकी आँखों से अश्रुधारा लगातार बह रही थी और वह आत्मग्लानि में आत्महत्या करने के लिए संकल्प कर चुका था। यह जानकर उसकी पत्नी ने उसे रूंधे गले से समझाया कि आत्महत्या करना कायरता की निशानी है अगर आपको कुछ करना ही है तो शराब पीने की आदत को खत्म कीजिए। आपकी इस आदत ने ही हमारे परिवार के बर्बाद कर दिया और हमारी बच्ची की जान ले ली।

महेश को यह बात समझ आ गयी थी और उसने शराब छोड़ने का दृढ़ संकल्प कर लिया था। उस दिन के बाद से उसने शराब को हाथ भी नहीं लगाया। कुछ वर्षों पश्चात उसने अपनी बेटी की स्मृति में एक नशा मुक्ति केंद्र की स्थापना की।

कर्तव्य से संतुष्टि

जबलपुर का लोकसभा में प्रतिनितिधत्व कर चुके श्री श्रवण पटेल का कथन है कि उनके पिता स्वर्गीय राजर्षि परमानंद भाई पटेल बहुआयामी प्रतिभा के धनी थे। वे एक समर्पित समाजसेवी, राजनीतिज्ञ, सफल उद्योगपति, आध्यात्मिक विचारक एवं प्रदेश के रणजी ट्राफी खिलाडी थे। वे सिद्धांतवादी राजनीति में विश्वास रखते थे। उनका यह दृढ़ मत था कि यदि हमें मनुष्य जीवन मिला है तो हमारा यह कर्तव्य बनता है कि हम असहाय, पीड़ित, जरूरतमंद गरीब लोगों की मदद करे।

श्री श्रवण पटेल बताते है कि उनका रूझान मात्र किक्रेट के प्रति था और उन्हें भी कम उम्र में रणजी ट्राफी खेलने का यश प्राप्त हुआ। उनके पूज्य पिताजी ने उनके बडे होने पर यह मन बना लिया था कि उन्हें समाज में सेवा कार्य करने के लिए प्रेरणा देंगें। उनके मन में राजनीति के प्रति कोई रूझान नहीं था। माता पिता की तीव्र इच्छा के चलते सन् 1980 में उन्हें म.प्र. विधानसभा का चुनाव ल़ड़ना पडा और बहोरीबंद विधानसभा के ढीमरखेडा ब्लाक का प्रतिनिधित्व करने का अवसर मिला। वे चुनाव के दौरान जब पहली बार क्षेत्र में गये तो लौटने के पश्चात वहाँ के पिछडेपन एवं लोगों की गरीबी देखकर इतना दुखी होकर घर वापिस आये और सीधे आँखों में आँसू लेकर माँ से उन्होंने कहा कि इतना दुख संसार में होगा यह मैं नहीं जानता था और मैं यह चुनाव नहीं लड़ सकूँगा। माँ ने उन्हें समझाया और कहा कि ईश्वर ने पिछडे क्षेत्र का उत्थान करने का अवसर तुम्हें दे दिया है और मुझे विश्वास है कि तुम इस कसौटी पर खरे उतरोगे।

उन्हें ढीमरखेडा क्षेत्र का भ्रमण करते हुए, खमतरा गांव में जाने का अवसर प्राप्त हुआ। यह पिछडा क्षेत्र था इस कारण वहाँ पर अत्याधिक गरीबी एवं भुखमरी की स्थिति थी। दुर्भाग्यवश सूखा पड जाने के कारण एक चौदह, पंद्रह वर्षीय आदिवासी कन्या ने भूख के कारण जंगली घास खा ली थी। जिससे उसकी मृत्यु हो गयी। उन्होंने यह अनुभव किया कि यदि उनके क्षेत्र में आवागमन का साधन सुलभ होता तो शायद उस कन्या को बचाया जा सकता था।

उस समय का एक और प्रसंग उन्हें आज भी याद है कि वर्षा ऋतु के समय में ढीमरखेडा ब्लाक के ग्राम झिन्ना पिपरिया में कुएँ का जल प्रदूषित हो गया था और पानी पीने के पश्चात कई लोगों की मृत्यु हो गई थी। उन्होंने जब वहाँ पर जाना चाहा तो उन्हें सलाह दी गई कि वहाँ पर हैजा की स्थिति बन गई है और आपके स्वास्थ्य को भी खतरा हो सकता है। उन्होंने सोचा कि विधायक होने के कारण उनका कर्तव्य है कि ऐसे कठिन समय में वे जनता के समीप रहे और जब वे वहाँ पहुँचे तो वहाँ पर लाशों का ढेर देखकर बहुत व्यथित हो गये क्योंकि वहाँ पर भी आवागमन का साधन यदि सहज रूप में उपलब्ध होता तो बहुत से लोगों को बचाया जा सकता था।

उन्होंने उसी समय मन ही मन संकल्प लिया था कि यदि भविष्य में उन्हें कभी अवसर मिलेगा तो वे इस क्षेत्र की सड़कों को बनवाने का प्रयास करेंगें। सन् 1998 में उन्हें पुनः तीसरी बार विधायक चुना गया और उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा देते हुए मध्य प्रदेश का लोक निर्माण मंत्री बनाया गया। केंद्र सरकार की सी.आर.एफ योजना के अंतर्गत पर्याप्त मात्रा में धन उपलब्ध करवाया गया था। जिससे उन्हो़ने जबलपुर एवं कटनी जिले की ग्रामीण सड़कों गुणवत्ता पूर्ण निर्माण करके जीर्णोद्धार कर दिया।

वर्तमान में यद्यपि वे अब राजनीति से अलग है परंतु उन्हें यह जानकर अत्यधिक संतोष होता है कि उनके पंचवर्षीय कार्यकाल 1998 से 2003 में जो सड़कों का जाल जनता के लाभ के लिए उपलब्ध कराया गया था, जिसके कारण आज भी, कोई गर्भवती माता डिलेवरी के समय डॉक्टर या मिड वाइफ के अभाव में अपने जीवन का दाँव नहीं खेलेगी, कोई पीडित या गंभीर रूप से जीवन और मरण के संघर्ष में उलझा हुआ व्यक्ति चिकित्सा सुविधा के अभाव में अपना दम नहीं तोडेगा।

उनका स्पष्ट मत है कि मानव सेवा पूर्ण रूप से व्यक्तिगत अहंकार से मुक्त होना चाहिए इसमें यदि परोपकार या सेवा के पीछे लक्ष्य प्राप्ति की इच्छा माला पहनने की प्रवृत्ति या भाषणों के माध्यम से अपने अहंकार की तृप्ति का आंशिक भाव भी हो तो वह मानव सेवा की सच्ची भक्ति नहीं हो सकती।

आध्यात्मिक ज्ञान की आवश्यकता

स्वामी जी से उनके एक शिष्य ने पूछा कि पशु पक्षी और मानव में क्या अंतर होता है। दोनो ही तो जीव है। उन्होंने इसका उत्तर देते हुए समझाया कि पशु पक्षी अपने बच्चों को सुरक्षित स्थान पर जन्म देकर, उनको भोजन उपलब्ध कराकर उनका पोषण करके सही वक्त पर उन्हें शिकार करने की शिक्षा देते है। यही उनका जीवन है।

आज के वर्तमान युग में माता पिता भी यही सोच रखते है कि बच्चों को जन्म देकर उनका शारीरिक पोषण करके, अच्छी शिक्षा दिलाने के बाद, धनोपार्जन करना सिखाकर, उन्हें अपने पैरों पर खडा कर देना ही उनके कर्तव्य का पूर्ण हो जाना समझते है। इसे ही वे अपने धर्म का पालन करना मान लेते है। यह सोच उचित नहीं है क्योंकि यदि ऐसा हो तो मनुष्य और पशु पक्षियें में क्या अंतर होगा ?

मनुष्य जीवन एक उच्च उद्देश्य के लिए प्राप्त हुआ हैं जो कि आध्यात्मिक जगत के ज्ञान की प्राप्ति है। सभी माता पिता का कर्तव्य है कि वे अपनी संतान को सिर्फ भौतिक जगत से संबंधित शिक्षा देकर ही अपने कर्तव्य की इति श्री नहीं समझना चाहिए बल्कि उन्हें भौतिक जगत से आध्यात्मिक जगत की ओर समर्पित होना भी सिखाना चाहिए। प्रभु की कृपा से हमें मनुष्य योनि की प्राप्ति हुई है। हमें अपने धर्म का पालन करते हुए आध्यात्मिक जगत की समुचित शिक्षा बाल्यकाल से ही अपनी संतानों को देना चाहिए। आज समाज में जो विसंगतियाँ और पारिवारिक विच्छेद हो रहे है उसका प्रमुख कारण आध्यात्मिक शिक्षा की कमी है। यदि बच्चों को भौतिक जगत की बातों के साथ साथ आध्यात्मिक ज्ञान भी बाल्यकाल से ही प्राप्त हो तो वे अपनी सभ्यता, संस्कृति और संस्कारों के प्रति समर्पित रहेंगें।

प्रायश्चित

एक कस्बे में एक गरीब महिला जिसे आँखें से कम दिखता था, भिक्षा माँगकर किसी तरह अपना जीवन यापन कर रही थी। एक दिन वह बीमार हो गई, किसी दयावान व्यक्ति ने उसे इलाज के लिये 500रू का नोट देकर कहा कि माई इससे दवा खरीद कर खा लेना। वह भी उसे आशीर्वाद देती हई अपने घर की ओर बढ़ गई। अंधेरा घिरने लगा था, रास्ते में एक सुनसान स्थान पर दो लड़के शराब पीकर ऊधम मचा रहे थे। वहाँ पहुँचने पर उन लड़कों ने भिक्षापात्र में 500रू का नोट देखकर शरारतवश वह पैसा अपने जेब में डाल लिया, महिला को आभास तो हो गया था पर वह कुछ बोली नहीं और चुपचाप अपने घर की ओर चली गई।

सुबह दोनों शरारती लड़कों का नशा उतर जाने पर वे अपनी इस हरकत के लिये शर्मिंदा महसूस कर रहे थे। वे शाम को उस भिखारिन को रूपये वापस करने के लिये इंतजार कर रहे थे। जब वह नियत समय पर नहीं आयी तो वे पता पूछकर उसके घर पहुँचे जहाँ उन्हें पता चला कि रात्रि में उसकी तबीयत अचानक बिगड़ गयी और दवा न खरीद पाने के कारण वृद्धा की मृत्यु हो गई थी। यह सुनकर वे स्तब्ध रह गये कि उनकी एक शरारत ने किसी की जान ले ली थी। इससे उनके मन में स्वयं के प्रति घृणा और अपराधबोध का आभास होने लगा।

उन्होंने अब कभी भी शराब न पीने की कसम खाई और शरारतपूर्ण गतिविधियों को भी बंद कर दिया। उन लडकों में आये इस अकस्मात और आश्चर्यजनक परिवर्तन से उनके माता पिता भी आश्चर्यचकित थे। जब उन्हें वास्तविकता का पता हुआ तो उन्होंने हृदय से मृतात्मा के प्रति श्रद्धांजलि व्यक्त करते हुये अपने बच्चों को कहा कि तुम जीवन में अच्छे पथ पर चलो और वक्त आने पर दीन दुखियों की सेवा करने से कभी विमुख न होओ, यहीं तुम्हारे लिये सच्चा प्रायश्चित होगा।

नैतिकता

परमानंद जी एक सफल व्यापारी के साथ साथ राजनीति में भी गहरी पैठ रखते थे। वे अपने गृहनगर में भारी मतों से जीतकर एम.एल.ए भी बन गये थे। एक दिन मुख्यमंत्री जी ने अपने कार्यालय में किसी कार्यवश उन्हें बुलाया था। उस दिन दुर्भाग्य से परमानंद जी के निजी सेवक इमरतीलाल, जिसने उन्हें बचपन से पाल पोसकर बडा किया था, वह अचानक हृदयाघात के कारण अस्पताल में गंभीर अवस्था में भर्ती किया गये थे। परमानंद जी स्वयं उसकी देखभाल में व्यस्त थे और उन्होंने मुख्यमंत्री जी को संदेश भिजवा दिया था कि उनके निजी सेवक की तबीयत अधिक खराब होने के कारण वे उनसे नियत समय पर मिल पाने में असमर्थ है।

यह सुनकर मुख्यमंत्री जी काफी नाराज हो गये और सोचने लगे कि यह कैसा व्यक्तित्व है जिसके लिए मुख्यमंत्री से ज्यादा महत्वपूर्ण उसका नौकर है। इस घटना के कुछ समय बाद ही इमरतीलाल की तबीयत स्थिर हो जाने के पश्चात परमानंद जी मुख्यमंत्री जी के पास मिलने के लिये गये। मुख्यमंत्री जी ने मुलाकात के दौरान व्यंग्य करते हुए कहा कि आप बहुत बडे राजनीतिज्ञ हो गये है आपके लिए मुख्यमंत्री से ज्यादा महत्वपूर्ण नौकर है।

यह सुनकर परमानंद जी जो कि एक बहुत स्वाभिमानी और स्पष्ट वक्ता थे। उन्होंने निडर होकर जवाब दिया कि जिस व्यक्ति की गोद में बचपन में खेल कर मैं बडा हुआ और जो आजतक मेरी देखभाल परिवार के सदस्य के समान कर रहा हो, उसकी तबीयत के विषय में समय देना मेरे लिए आप से मिलने से ज्यादा महत्वपूर्ण था। मैं इस पद पर वैसे भी समाज के कल्याण एवं जनता की सेवा के लिए चुना गया हूँ। यदि आपको यह लगता है कि मेरे इस कृत्य से आपका अपमान हुआ है, तो मैं विधान सभा की सदस्यता से इस्तीफा भी दे सकता हूँ।

यह सुनते ही मुख्यमंत्री जी का पारा एक दम से ठंडा हो गया और वे हतप्रभ होकर परमानंद जी के चेहरे की ओर देखने लगे। उन्हें ऐसे स्पष्ट जवाब की अपेक्षा नहीं थी। उन्होंने इस्तीफा ना देने का अनुरोध करते हुए, दूसरे दिन मिलने के लिए कह दिया। दूसरे दिन मुलाकात होने पर उन्होंने परमानंद जी की तारीफ करते हुए कहा कि आप जैसे व्यक्तित्व आज के समय में बिरले ही होते हे। आपका निर्णय समय एवं परिस्थितियों के अनुसार एकदम सही था।

संकल्प

जबलपुर शहर से लगी हुई पहाडियों पर एक पुजारी जी रहते थे। एक दिन उन्हें विचार आया कि पहाड़ी से गिरे हुये पत्थरों को धार्मिक स्थल का रूप दे दिया जाए। इसे कार्यरूप में परिणित करने के लिये उन्होंने एक पत्थर को तराश कर मूर्ति का रूप दे दिया और आसपास के गांवों में मूर्ति के स्वयं प्रकट होने का प्रचार प्रसार करवा दिया।

इससे ग्रामीण श्रद्धालुजन वहाँ पर दर्शन करने आने लगे। इस प्रकार बातों बातों में ही इसकी चर्चा शहर भर में होने लगी कि एक धार्मिक स्थान का उद्गम हुआ हैं। इस प्रकार मंदिर में दर्शन के लिये लोगों की भारी भीड़ आने लगी। वे वहाँ पर मन्नतें माँगने लगे। अब श्रद्धालुजनों द्वारा चढ़ाई गई धनराशि से पुजारी जी की तिजोरी भरने लगी और उनके कठिनाईयों के दिन समाप्त हो गये। मंदिर में लगने वाली भीड़ से आकर्षित होकर नेतागण भी वहाँ पहुँचने लगे और क्षेत्र के विकास का सपना दिखाकर अपनी लोकप्रियता बढ़ाने का प्रयास करने लगे।

कुछ वर्षों बाद पुजारी जी अचानक बीमार पड़ गये। जाँच के उपरांत पता चला कि वे कैंसर जैसे घातक रोग की अंतिम अवस्था में है यह जानकर वे फूट फूट कर रोने और भगवान को उलाहना देने लगे कि हे प्रभु मुझे इतना कठोर दंड क्यों दिया जा रहा है ? मैंने तो जीवनभर आपकी सेवा की है।

उनका जीवन बड़ी पीड़ादायक स्थिति में बीत रहा था। एक रात अचानक ही उन्होंने स्वप्न में देखा की प्रभु उनसे कह रहे हैं कि तुम मुझे किस बात की उलाहना दे रहे हो ? याद करो एक बालक भूखा प्यासा मंदिर की शरण में आया था अपने उदरपूर्ति के लिये विनम्रतापूर्वक दो रोटी माँग रहा था परंतु तुमने उसकी एक ना सुनी और उसे दुत्कार कर भगा दिया। एक दिन एक वृद्ध बरसते हुये पानी में मंदिर में आश्रय पाने के लिये आया था। उसे मंदिर बंद होने का कारण बताते हुये तुमने बाहर कर दिया था। गांव के कुछ विद्यार्थीगण अपनी शाला के निर्माण के लिये दान हेतु निवेदन करने आये थे। उन्हें शासकीय योजनाओं का लाभ लेने का सुझाव देकर तुमने विदा कर दिया था। मंदिर में प्रतिदिन जो दान आता है उसे जनहित में खर्च ना करके, यह जानते हुये भी कि यह जनता का धन है तुम अपनी तिजोरी में रख लेते हो। तुमने एक विधवा महिला के अकेलेपन का फायदा उठाकर उसे अपनी इच्छापूर्ति का साधन बनाकर उसका शोषण किया और बदनामी का भय दिखाकर उसे चुप रहने पर मजबूर किया।

तुम्हारे इतने दुष्कर्मों के बाद तुम्हें मुझें उलाहना देने का क्या अधिकार है। तुम्हारे कर्म कभी धर्म प्रधान नहीं रहे। जीवन में हर व्यक्ति का उसका कर्मफल भोगना ही पड़ता है। इन्हीं गलतियों के कारण तुम्हें इसका दंड भेगना ही पडे़गा। पुजारी जी की आँखें अचानक ही खुल गई और स्वप्न में देखे गये दृश्य मानो यथार्थ में उनकी आँखों के सामने घूमने लगे और पश्चाताप के कारण उनके नेत्रों से अविरल अश्रुधारा बहने लगी।


(क्रमशः अगले अंकों में जारी...)

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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: कहानी संग्रह // तर्जनी से अनामिका तक ( प्रेरणादायक कहानियाँ एवं संस्मरण ) - भाग - 3 // राजेश माहेश्वरी
कहानी संग्रह // तर्जनी से अनामिका तक ( प्रेरणादायक कहानियाँ एवं संस्मरण ) - भाग - 3 // राजेश माहेश्वरी
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