कहानी का प्लॉट // शिवपूजन सहाय // प्राची - जून 2018

SHARE:

धरोहर कहानी कहानी का प्लॉट शिवपूजन सहाय परिचय शिवपूजन सहाय (जन्म- 9 अगस्त 1893, शाहाबाद, बिहार, मृत्यु- 21 जनवरी 1963, पटना)। प्रारम्भिक शिक...

धरोहर कहानी

clip_image002

कहानी का प्लॉट

शिवपूजन सहाय

परिचय

शिवपूजन सहाय (जन्म- 9 अगस्त 1893, शाहाबाद, बिहार, मृत्यु- 21 जनवरी 1963, पटना)। प्रारम्भिक शिक्षा आरा (बिहार) में। फिर 1921 से कलकत्ता में पत्रकारिता। 1924 में लखनऊ में प्रेमचंद के साथ ‘माधुरी’ का सम्पादन। 1926 से 1933 तक काशी में प्रवास और पत्रकारिता तथा लेखन। 1934 से 1939 तक पुस्तक भंडार, लहेरिया सराय में सम्पादन-कार्य। 1939 से 1949 तक राजेंद्र कॉलेज, छपरा में हिंदी के प्राध्यापक। 1950 से 1959 तक पटना में बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् के निदेशक। हिन्दी के प्रसिद्ध उपन्यासकार, कहानीकार, सम्पादक और पत्रकार के रूप में ख्याति। उन्हें साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में सन 1960 में पप्र भूषण से सम्मानित किया गया था। 1962 में भागलपुर विश्वविद्यालय द्वारा डी. लिट्. की मानक उपाधि।

इनके लिखे हुए प्रारम्भिक लेख ‘लक्ष्मी’, ‘मनोरंजन’ तथा ‘पाटलीपुत्र’ आदि पत्रिकाओं में प्रकाशित होते थे। शिवपूजन सहाय ने 1934 ई. में ‘लहेरियासराय’ (दरभंगा) जाकर मासिक पत्र ‘बालक’ का सम्पादन किया। स्वतंत्रता के बाद शिवपूजन सहाय बिहार राष्ट्रभाषा परिषद के संचालक तथा बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन की ओर से प्रकाशित ‘साहित्य’ नामक शोध-समीक्षाप्रधान त्रैमासिक पत्र के सम्पादक थे।

कथा एवं उपन्यास

वे दिन वे लोग-1965, बिम्बः प्रतिबिम्ब-1967, मेरा जीवन-1985, स्मृतिशेष-1994, हिन्दी भाषा और साहित्य-1996 में, ग्राम सुधार-2007, देहाती दुनिया-1926, विभूति-1935, शिवपूजन सहाय साहित्य समग्र (10 खंड)-2011, शिवपूजन रचनावली (4 ऽंड) 1956-59

सम्पादन कार्य : द्विवेदी अभिनन्दन ग्रन्थ-1933, जयन्ती स्मारक ग्रन्थ-1942, अनुग्रह अभिनन्दन ग्रन्थ-1946, राजेन्द्र अभिननदन ग्रन्थ-1950, हिंदी साहित्य और बिहार (खंड 1-2, 1960, 1963), अयोध्या प्रसाद ऽत्री स्मारक ग्रन्थ-960, बिहार की महिलाएं-1962, आत्मकथा ( ले. डॉ. राजेंद्र प्रसाद)-1947, रंगभूमि-1925

संपादित पत्र-पत्रिकाएं : मारवाड़ी सुधार-1921, मतवाला-1923, माधुरी-1924, समन्वय-1925, मौजी-1925, गोलमाल-1925, जागरण-1932, गंगा-1931, बालक-1934, हिमालय-1946-47, साहित्य-1950-62

..ण्

मैं कहानी-लेखक नहीं हूँ। कहानी लिखने-योग्य प्रतिभा भी मुझ में नहीं है। कहानी-लेखक को स्वभावतः कला-मर्मज्ञ होना चाहिये, और मैं साधारण कलाविद् भी नहीं हूँ। किंतु कुशल कहानी-लेखकों के लिए एक ‘प्लॉट’ पा गया हूँ। आशा है इस ‘प्लॉट’ पर वे अपनी भड़कीली इमारत खड़ी कर लेंगे।

मेरे गाँव के पास एक छोटा-सा गाँव है। गाँव का नाम बड़ा गँवारू है, सुनकर आप घिनाएँगे। वहाँ एक बूढ़े मुन्शीजी रहते थे। अब वह इस संसार में नहीं हैं। उनका नाम भी विचित्र ही था- ‘अनमिल आखर अर्थ न जापू’ इसलिए उसे साहित्यिकों के सामने बताने से हिचकता हूँ। खैर, उनके एक पुत्री थी, जो अब तक मौजूद है। उसका नाम- जाने दीजिये, सुनकर क्या कीजियेगा? मैं बताऊँगा भी नहीं! हाँ, चूँकि उनके संबंध की बातें बताने में कुछ सहूलियत होगी, इसलिए उसका एक कल्पित नाम रख लेना जरूरी है। मान लीजिये, उसका नाम है ‘भगजोगनी’। दिहात की घटना है, इसलिए दिहाती नाम ही अच्छा होगा। खैर, पढ़िये

मुन्शीजी के बड़े भाई पुलिस-दरोगा थे, उस जमाने में, जबकि अंग्रेजी जाननेवालों की संख्या उतनी ही थी, जितनी आज धर्म-शास्त्रों के मर्म जाननेवालों की है। इसलिए उर्दू-दाँ लोग ही ऊँचे ओहदे पाते थे।

दारोगाजी ने आठ-दस पैसे का करीमा-खालिंकबारी पढ़कर जितना रुपया कमाया था, उतना आज कॉलेज और अदालत की लाइब्रेरियाँ चाटकर वकील होने वाले भी नहीं कमाते।

लेकिन दारोगाजी ने जो कुछ कमाया, अपनी जिंदगी में ही फूँकताप डाला। उनके मरने के बाद सिर्फ उनकी एक घोड़ी बची थी, जो थी तो महज सात रुपये की, मगर कान काटती थी तुर्की घोड़ों की- कम्बख्त बारूद की पुड़िया थी। बड़े-बड़े अंग्रेज-अफसर उस पर दाँत गड़ाये रह गये, मगर दारोगाजी ने सब को निबुआ-नोन चटा दिया। इसी घोड़ी की बदौलत उनकी तरक्की रह गई, लेकिन आखिरी दम तक वह अफसरों के घपले में न आये- न आये। हर तरफ से काबिल, मेहनती, ईमानदार, चालाक, दिलेर और मुस्तैद आदमी होते हुए भी वह दारोगा के दारोगा ही रह गये- सिर्फ घोड़ी की मुहब्बत से!

किंतु घोड़ी ने भी उनकी इस मुहब्बत का अच्छा नतीजा दिखाया- उनके मरने के बाद खूब धूम-धाम से उनका श्राद्ध करा दिया। अगर कहीं घोड़ी को भी बेच खाये होते, तो उनके नाम पर एक ब्राह्मण भी न जीमता। एक गोरे अफसर के हाथ खासी रकम पर घोड़ी को ही बेचकर मुन्शीजी अपने बड़े भाई से उऋण हुए।

दारोगाजी के जमाने में मुन्शीजी ने भी खूब घी के दिये जलाये थे। गाँजे में बढ़िया-से-बढ़िया इत्र मलकर पीते थे- चिलम कभी ठंडी नहीं होने पाती थी। एक जून बत्तीस बटेर और चौदह चपातियाँ उड़ा जाते थे। नथुनी उतारने में तो दारोगाजी के भी बड़े भैया थे- हर साल एक नया जल्सा हुआ ही करता था।

किंतु, जब बहिया बह गई तब चारों ओर उजाड़ नजर आने लगा। दारोगाजी के मरते ही सारी अमीरी घुस गई। चिलम के साथ-साथ चूल्हा-चक्की भी ठंडी हो गई। जो जीभ एक दिन बटेरों का शोरबा सुड़कती थी, वह अब सराह-सराह कर मटर का सत्तू सरपोटने लगी। चपातियाँ चाबने वाले दाँत अब चंद चने चाबकर दिन गुजरने लगे। लोग साफ कहने लग गये- थानेदारी की कमाई और फूस का तापना दोनों बराबर है।

हर साल नई नथुनी उतारने वाले मुन्शी जी को गाँव-जवार के लोग भी अपनी नजरों से उतारने लगे। जो मुन्शी जी चुल्लू-के-चुल्लू इत्र लेकर अपनी पोशाकों में मला करते थे, उन्हीं को अब अपनी रूखी-भूखी देह में लगाने के लिए चुल्लू भर कड़वा तेल मिलना भी मुहाल हो गया। शायद किस्मत की फटी चादर का कोई रफूगर नहीं है।

लेकिन जरा किस्मत की दोहरी मार तो देखिये। दारोगाजी के जमाने में मुन्शी जी के चार-पाँच लड़के हुए, पर सब-के-सब सुबह के चिराग हो गये। जब बेचारे की पाँचों उँगलियाँ घी में थीं, तब तो कोई खानेवाला न रहा, और जब दोनों टाँगें दरिद्रता के दलदल में आ फँसी, और ऊपर से बुढ़ापा भी कंधे दबाने लगा, तब कोढ़ में खाज की तरह एक लड़की पैदा हो गई! और तारीफ यह कि मुन्शीजी की बदकिस्मती भी दारोगाजी की घोड़ी से कुछ कम स्थावर नहीं थी!

सच पूछिये तो इस तिलक-दहेज के जमाने में लड़की पैदा करना ही बड़ी भारी मूर्खता है। किंतु युग-धर्म की क्या दवा है? इस युग में अबला ही प्रबला हो रही है- पुरुष-दल को स्त्रीत्व खदेड़े जा रहा है। बेचारे मुन्शीजी का क्या दोष? जब घी और गरम मसाले उड़ाते थे, तब तो हमेशा लड़का ही पैदा करते रहे, मगर अब मटर के सत्तू पर बेचारे कहाँ से लड़का निकाल लाएँ! सचमुच अमीरी की कब्र पर पनपी हुई गरीबी बड़ी जहरीली होती है।

2

‘भगजोगनी’ चूँकि मुन्शीजी की गरीबी में पैदा हुई, और जन्मते ही माँ के दूध से वंचित होकर ‘टूअर’ कहलाने लगी, इसलिए अभागिन तो अजाहद थी- इसमें शक नहीं, पर सुंदरता में वह अँधेरे घर का दीपक थी। आज तक वैसी सुघराई लड़की किसी ने कभी कहीं देखी न थी।

अभाग्यवश मैंने उसे देखा था। जिस दिन पहले-पहल उसे देखा, वह करीब 11-12 वर्ष की थी। पर एक ओर उसकी अनोखी सुघराई और दूसरी ओर उसकी दर्दनाक गरीबी देखकर- सच कहता हूँ- कलेजा काँप गया! यदि कोई भावुक कहानी-लेखक या सहृदय कवि उसे देख लेता, तो उसकी लेखनी से अनायास करुणा की धारा फूट-निकलती। किंतु मेरी लेखनी में इतना जोर नहीं है कि उसकी गरीबी के भयावने चित्र को मेरे हृदय-पट से उतारकर ‘सरोज’ के इस कोमल ‘दल’ पर रख सके। और सच्ची घटना होने के कारण, केवल प्रभावशाली बनाने के लिए, मुझसे भड़कीली भाषा में लिखते भी नहीं बनता। भाषा में गरीबी को ठीक-ठीक चित्रित करने की शक्ति नहीं होती, भले ही वह राजमहलों की ऐश्वर्य-लीला और विलास-वैभव के वर्णन करने में समर्थ हो।

आह! बेचारी उस उम्र में भी कमर में सिर्फ एक पतला-सा चिथड़ा लपेटे हुए थी, जो मुश्किल से उसकी लाश ढकने में समर्थ था। उसके सिर के बाल तेल बिना बुरी तरह बिखर कर बड़े डरावने हो गये थे। उसकी बड़ी-बड़ी आँखों में एक अजीब ढंग की करुणा-कातर चितवन थी। दरिद्रता-राक्षसी ने सुंदरता-सुकुमारी का गला टीप दिया था। कहते हैं, प्रकृति सुंदरता के लिए कृत्रिम शृंगार की जरूरत नहीं होती, क्योंकि जंगल में पेड़ की छाल और फूल-पत्तियों से सजकर शकुंतला जैसी सुंदरी मालूम होती थी, वैसी दुष्यंत के राजमहल में सोलहों सिंगार करके भी वह कभी न फबी किंतु, शकुंतला तो चिंता और कष्ट के वायुमंडल में नहीं पली थी। उसके कानों में उदर-दैत्य का कर्कश हाहाकार कभी न गूँजा था। वह शांति और संतोष की गोद में पलकर सयानी हुई थी, और तभी उसके लिए महाकवि ‘शैवाल जाल-लिप्तकमलिनी’ वाली उपमा उपयुक्त हो सकी। पर ‘भगजोगनी’ तो गरीबी की चक्की में पिसी हुई थी, भला उसका सौंदर्य कब खिल सकता था! वह तो दाने-दाने को तरसती रहती थी- एक बित्ता कपड़े के लिए भी मुहताज थी। सिर में लगाने के लिए एक चुल्लू असली तेल भी सपना हो रहा था- महीने के एक दिन भी भर-पेट अन्न के लाले पड़े थे। भला ह्यिस्त्रयों के खंडहर में सौंदर्य-देवता कैसे टिके रहते?

उफ्रफ! उस दिन मुन्शीजी जब रो-रोकर अपना दुखड़ा सुनाने लगे, तो कलेजा टूक-टूक हो गया। कहने लगे- ‘क्या कहूँ बाबू साहब, पिछले दिन जब याद आते हैं, तो गश आ जाता है। यह गरीबी की मार इस लड़की की वजह से और भी अखरती है। देखिये, इसके सिर के बाल, कैसे खुश्क और गोरखधंधारी हो रहे हैं। घर में इसकी माँ होती, तो कम से कम इसका सिर तो जूँओं का अ्यस्त्रा न होता। मेरी आँखों की जोत अब ऐसी मंद पड़ गई कि जूँएँ सुझती नहीं। और, तेल तो एक बूँद भी मयस्सर नहीं। अगर अपने घर में तेल होता, तो दूसरे के घर जाकर भी कंघी-चोटी करा लेती- सिर पर चिड़ियों का घोंसला तो न बनता। आप तो जानते हैं, यह छोटा-सा गाँव है, कभी साल छमासे में किसी के घर बच्चा पैदा होता है, तो इसके रूखे-सूखे बालों के नसीब जागते हैं! गाँव के लड़के, अपने-अपने घर, भर-पेट खाकर, जो झोलियों में चबेना लेकर खाते हुए घर से निकलते हैं, तो यह उनकी बाट जोहती रहती है- उनके पीछे-पीछे लगी फिरती है, तो भी मुश्किल से दिन में एक दो मुट्टòी चबेना मिल पाता हैं। खाने-पीने के समय किसी के घर पहुँच जाती है, तो इसकी डीट लग जाने के भय से घरवालियाँ दुरदुराने लगती हैं। कहाँ तक अपनी मुसीबतों का बयान करूँ, भाई साहब, किसी की दी हुई मुट्टòी भीख लेने के लिए इसके तन पर फटा आँचल भी तो नहीं है! इसकी छोटी अंगुलियों में ही जो कुछ अँट जाता है, उसी से किसी तरह पेट की जलन बुझा लेती है! कभी-कभी एक-आध फंका चना-चबेना मेरे लिए भी लेती आती है, उस समय हृदय दो-टूक हो जाता है। किसी दिन, दिन-भर घर-घर घूमकर जब शाम को मेरे पास आकर धीमी आवाज से कहती है, कि बाबू जी, भूख लगी है- कुछ हो तो खाने को दो, उस वक्त, आप से ईमानन कहता हूँ, जी चाहता है कि गले-फाँसी लगाकर मर जाऊँ, या किसी कुएँ-तालाब में डूब मरूँ। मगर फिर सोचता हूँ, कि मेरे सिवा इसकी खोज-खबर लेने वाला इस दुनिया में अब है ही कौन! आज अगर इसकी माँ भी जिंदा होती, तो कूट-पीसकर इसके लिए मुट्टòी-भर चून जुटाती- किसी कदर इसकी परवरिश कर ही ले जाती, और अगर कहीं आज मेरे बड़े भाई साहब बरकरार होते, तो गुलाब के फूल-सी ऐसी लड़की को हथेली का फूल बनाये रहते। जरूर ही किसी ‘रायबहादुर’ के घर में इसकी शादी करते। मैं भी उनकी
अंधाधुंध कमाई पर ऐसी बेफिक्री से दिन गुजारता था कि आगे आने वाले इन बुरे दिनों की मुतलक खबर ही न थी। वह भी ऐसे खर्राच थे कि अपने कफन-काठी के लिए भी एक खरमुहरा न छोड़ गये- अपनी जिंदगी में ही एक-एक चप्पा जमीन बेच खाई- गाँव भर से ऐसी अदावत बढ़ाई कि आज मेरी इस दुर्गति पर भी कोई रहम करने वाला नहीं है, उल्टे सब लोग तानेजानी के तीर बरसाते हैं। एक दिन वह था कि भाई साहब के पेशाब से चिराग जलता था, और एक दिन यह भी है कि मेरी स्त्रियाँ मुफलिसी की आँच में मोमबत्तियों की तरह घुल-घुल कर जल रही हैं। इस लड़की के लिए आस-पास के सभी जवारी भाइयों के यहाँ मैंने पचासों फेरे लगाये, दाँत दिखाये, हाथ जोड़कर विनती की, पैरों पड़ा- यहाँ तक बेहया होकर कह डाला कि बड़े-बड़े वकीलों, डिप्टियों और जमींदारों की चुनी-चुनाई लड़कियों में मेरी लड़की को खड़ी करके देख लीजिये कि सब से सुंदर जँचती है या नहीं, अगर इसके जोड़ की एक भी लड़की कहीं निकल आये, तो इससे अपने लड़के की शादी मत कीजिये। किंतु मेरे लाख गिड़गिड़ाने पर भी किसी भाई का दिल न पिघला। कोई यह कहकर टाल देता कि लड़के की माँ ऐसे घराने में शादी करने से इनकार करती हैं, जिसमें न सास है, न साला और न बारात की खातिरदारी करने की हैसियत। कोई कहता कि गरीब घर की लड़की चटोर और कंजूस होती है, हमारा खानदान बिगड़ जायगा। ज्यादातर लोग यही कहते मिले कि हमारे लड़के को इतना तिलक दहेज मिल रहा है, तो भी हम शादी नहीं कर रहे हैं, फिर बिना तिलक दहेज के तो बात भी करना नहीं चाहते। इसी तरह, जितने मुँह उतनी ही बातें सुनने में आईं। दिनों का फेर ऐसा है कि जिसका मुँह न देखना चाहिये उसका भी पिछाड़ देखना पड़ा। महज मामूली हैसियतवालों को भी पाँच सौ और एक हजार तिलक-दहेज फरमाते देखकर जी कुढ़ जाता है- गुस्सा चढ़ आता है। मगर गरीबी ने तो ऐसा पंख तोड़ दिया है कि तड़फड़ा भी नहीं सकता। साले हिंदू-समाज के कायदे भी अजीब ढंग के हैं। जो लोग मोल-भाव करके लड़के की बिक्री करते हैं, वे भले आदमी समझे जाते हैं, और कोई गरीब बेचारा उसी तरह मोल-भाव करके लड़की को बेचता है, तो वह कमीना कहा जाता है। मैं अगर आज इसे बेचना चाहता, तो इतनी काफी रकम ऐंठ सकता था कि कम-से-कम मेरी जिंदगी तो जरूर ही आराम से कट जाती। लेकिन जीते-जी हरगिज एक मक्खी भी न लूँगा। चाहे यह क्वाँरी रहे, या सयानी होकर मेरा नाम हँसाये। देखिये न, सयानी तो करीब-करीब हो ही गई हैं- सिर्फ पेट की मार से उकसने नहीं पाती, बढ़ती रुकी हुई है। अगर किसी खुशहाल घर में होती, तो अब तक फूटकर सयानी हो जाती- बदन भरने से ही खूबसूरती पर भी रोगन चढ़ता है, और बेटी की बाढ़ बेटे से जल्दी होती है। अब अधिक क्या कहूँ बाबू साहब, अपनी ही करनी का नतीजा भोग रहा हूँ- मोतियाबिंद, गठिया और दमा ने निकम्मा कर दिया है। अब मेरे पछतावे के आँसुओं में भी ईश्वर को पिघलाने का दम नहीं है। अगर सच पूछिये, तो इस वक्त सिर्फ एक ही उम्मीद पर जान अटकी हुई है- एक साहब ने बहुत कहने, सुनने से इसके साथ शादी करने के वादा किया है कि गाँव के खोटे लोग उन्हें भी भड़काते हैं, या मेरी झाँझरी नैया को पार लगाने देते हैं। लड़के की उम्र कुछ कड़ी जरूर है- 41-42 साल की, मगर अब इसके सिवा कोई चारा भी नहीं है। छाती पर पत्थर रख कर अपनी इस राजकोकिला को...

इसके बाद मुन्शीजी का गला रुँध गया- बहुत बिलख कर रो उठे, और भगजोगनी को अपनी गोद में बैठाकर फूट-फूटकर रोने लग गये। अनेक प्रयत्न करके भी मैं किसी प्रकार उनको आश्वासन न दे सका, जिसके पीछे हाथ धोकर वाम-विधाता पड़ जाता है, उसे तसल्ली देना ठट्टòा नहीं है।

मुन्शीजी की दास्तान सुनने के बाद मैंने अपने कई क्वाँरे मित्रों से अनुरोध किया कि उस अलौकिक रूपवती दरिद्र कन्या से विवाह करके एक निर्धन भाई का उद्धार और अपने जीवन को सफल करें। किंतु सब ने मेरी बात अनसुनी कर दी। ऐसे-ऐसे लोगों ने भी आनाकानी की, जो समाज-सुधार-
संबंधी विषयों पर बड़े शान-गुमान से लेखनी चलाते हैं। यहाँ तक कि प्रौढ़ावस्था के रँडुए मित्र भी राजी न हुए। आखिर वही महाशय डोला काढ़कर भगजोगिनी को अपने घर ले गये और वहीं शादी की। कुल रस्में पूरी करके मुन्शीजी को चिंता के दलदल से उबारा। बेचारे की छाती से पत्थर का बोझ तो उतरा, मगर घर में कोई पानी देने वाला भी न रह गया। बुढ़ापे की लकड़ी जाती रही, देह लच गई। साल पूरा होते-होते अचानक टन बोल गये। गाँववालों ने गले में घड़ा बाँधकर नदी में डुबा दिया।

भगजोगनी जीती हैं। आज वह पूर्ण युवती है। उसका शरीर भरा पूरा और फूला-फला है। उसका सौंदर्य उसके वर्तमान नवयुवक पति का स्वर्गीय धन है। उसका पहला पति इस संसार में नहीं है। दूसरा पति है- उसका सौतेला बेटा।

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: कहानी का प्लॉट // शिवपूजन सहाय // प्राची - जून 2018
कहानी का प्लॉट // शिवपूजन सहाय // प्राची - जून 2018
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgEDmpraYQCsjq61aawglA2-w5MroN3pcVgXEuLEdUGTkb5Db_eQpBBiko3wBB5y3dfb8o7KYUAZ4mLE0-F01b_wyG3SrixdmQq5wXexgNrBUn0_g0Y2mboh3dpzr1hF8pbPoRj/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgEDmpraYQCsjq61aawglA2-w5MroN3pcVgXEuLEdUGTkb5Db_eQpBBiko3wBB5y3dfb8o7KYUAZ4mLE0-F01b_wyG3SrixdmQq5wXexgNrBUn0_g0Y2mboh3dpzr1hF8pbPoRj/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2018/07/2018_63.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2018/07/2018_63.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content