संपादकीय // जिन्न मरते नहीं // प्राची जून 2018

SHARE:

संपादकीय जिन्न मरते नहीं वि ज्ञान ने हमें भ्रमित कर दिया है। वैज्ञानिकों के अर्थहीन और व्यर्थ प्रयोगों ने सिद्ध करके कह दिया कि भूत, प्रेत,...

image

संपादकीय

जिन्न मरते नहीं

clip_image002[6]

विज्ञान ने हमें भ्रमित कर दिया है। वैज्ञानिकों के अर्थहीन और व्यर्थ प्रयोगों ने सिद्ध करके कह दिया कि भूत, प्रेत, जिन्न और चुड़ैलें नहीं होती। कुछ मूर्ख बुद्धिजीवियों ने इस तथ्य को स्वीकार भी कर लिया। परन्तु वह सदियों पुराने इस तथ्य को भूल गये कि भूत-प्रेत हमारे जीवन में हर समय, हर क्षण वास करते हैं और अपनी क्रियाओं से हमें प्रभावित करते हैं।

बचपन में हमारे मां-बाप, दादा-दादी, नाना-नानी और दूसरे बुजुर्ग जो अपनी समझ में हमारी समझ को बढ़ाने में अपना बहुमूल्य योगदान करते थे, हमें भूत-प्रेत और चुड़ैलों की कहानियां सुनाकर डराते रहे और उनके अस्तित्व की नींव को हमारे कच्चे मन में मजबूत करते रहे। जब तक मन रहस्यमयी कहानियों के जाल में उलझा रहा, तब तक हम भूत-प्रेतों पर विश्वास करते रहे_ परन्तु जैसे ही दिलो-दिमाग की बत्ती जलनी आरंभ हुयी और हम दुनियादारी को थोड़ा- बहुत समझने लगे, तो अक्ल के पट खुल गये। स्कूल के मास्टर के बेतों से निजात मिल गयी थी, क्योंकि हम उच्च कक्षा में पहुंच गये। वहां हमारे प्राध्यापक महोदय हमें मारते तो नहीं थे, परन्तु डराते अवश्य थे। वह भी हमें किसी दैत्य या दानव की तरह लगते थे। कम से कम भूत या जिन्न नहीं लगते थे।

पाठ्यक्रम में विज्ञान भी था। इसके अतिरिक्त मन बाहर की किताबों में भी रमने लगा, यथा- उपन्यास, कहानी और कविता। फलस्वरूप हिन्दी के छोटे-बड़े सभी लेखकों से लेकर देसी-विदेशी साहित्य की किताबें भी चट कर गये। जासूसी उपन्यास भी पढ़ डाले, जिन्होंने तार्किक ढंग से सोचने की शक्ति दी। इन सबका परिणाम ये रहा कि भूत-प्रेतों के ऊपर से विश्वास उठ गया। भगवान को नकारने लगा, तो लोग नास्तिक कहने लगे। कहने वाले कहते रहे, कोई असर नहीं पड़ा। हम अपनी राह चलते रहे।

परन्तु उम्र के अन्तिम पड़ाव पर आकर दिमाग चकरा गया। लगा कि हम भ्रमित हो गये थे। विज्ञान ने हमें बेवकूफ बना दिया था, किताबों ने हमें चकरा दिया था। हम जिनके अस्तित्व को जीवन भर नकारते रहे, वह तो हमारे दिलो-दिमाग ही नहीं, आसपास उसी तरह मौजूद हैं, जैसे दाम्पत्य जीवन में कलह, परिवार में झगड़े और पड़ोसियों से कभी न सुलझने वाले लफड़े।

इतनी सारी बातें कहने का एक ही अर्थ है कि जिस प्रकार आत्मा अजर और अमर है, उसी प्रकार जो वास्तव में मरकर चले जाते हैं, वह वास्तव में कहीं जाते नहीं हैं। जिस प्रकार हमारे मन में माया-मोह, लोभ-लालच और प्रेम-वासना का दरिया हिलोरें मारता रहता है, उसी प्रकार मरकर भी जीव कहीं नहीं जाता, वह अपने आकार को बदलकर निराकार रूप में हमारे आसपास मौजूद रहता है। भूत-प्रेत के रूप में।

हम तो मरते-मरते मर जाते, परन्तु विज्ञान से इतर विश्वास न करते। न अपने महान लेखकों के लेखन पर अविश्वास करते, परन्तु क्या करें, अचानक ही न जाने कहां से इतने सारे भूत-प्रेत और जिन्न पैदा हो गये कि विश्वास करना पड़ा- जिन्न कभी नहीं मरते।

अब देख लो न्, किस प्रकार मरने के बीसियों साल बाद भी हमारे देश के नेताओं के प्रेत अचानक जिन्दा हो गये। जिन्दा ही नहीं हुए, किसी न किसी प्रकार हमारे जीवन को प्रभावित भी कर रहे हैं। नेहरू, गांधी और सरदार पटेल के प्रेत कभी-कभी साकार होकर लोगों को डरा जाते हैं, तो लोग सुगबुगा जाते थे, कुछ दिन उनकी चर्चा होती थी। फिर लोग सो जाते थे, जैसे दुनिया में भूत-प्रेत नाम की कोई चीज नहीं होती।

दरअसल, भूत-प्रेत मनुष्य के जीवन में कोई उथल-पुथल नहीं मचाते। हमीं उनको परेशान करके अपने लिए परेशानी मोल लेते रहते हैं। जैसे नाथूराम गोडसे आराम से स्वर्ग में बैठकर गांधी जी से गपियाता रहता है, परन्तु कांगेसी नेता बीजेपी को गरियाते और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को कोसते हुए नाथूराम के भूत को धरती पर बुला लेते हैं। गोडसे स्वर्ग में सुखी जीवन का आनन्द लेता है, उसका मन धरती पर आने का नहीं करता, परन्तु उसके भूत को जिन्दा करने के लिए काँग्रेसी उसे परेशान करते रहते हैं। गाहे-बगाहे उसे बुलाते रहते हैं। मजबूरन उसे धरती पर अपने भूत को भेजना पड़ता है।

भूत-प्रेत छोड़िये, हम लोग तो जिन्नों को भी जिंदा करने में बहुत होशियार हैं। मोहम्मद अली जिन्ना गुजरात में पैदा हुए, मुम्बई और विदेश में पले-बढ़े, राजनीति में पलटियां मार-मार कर पाकिस्तान बनवा लिया। कायदे आजम बनकर पाकिस्तान पर शासन किया। फिर एक दिन मर गये और वहीं कब्र में दफन हो गये। वैसे तो आदमी जहां मरता है, वहीं भूत बनकर भी रहता है, परन्तु मोहम्मद अली जिन्ना बड़ी शख्सियत थे, भारत से उनका पुराना मोह था। नेहरू न होते तो वही संयुक्त भारत (पाकिस्तान के साथ) के प्रधान मंत्री होते, परन्तु गांधी और नेहरू की कुटिल चाल के चलते उनकी महा कुटिल चाल नहीं चल पाई और उन्हें पाकिस्तान में सिमट कर रह जाना पड़ा। चूंकि वह सिमट कर रह गये थे, इसलिये भारत पर कब्जा करने के लिए उनकी आत्मा छटपटा रही थी। मरने के बाद भी उन्हें चैन न आया। उनकी आत्मा घूम-फिर कर भारत आती रही और अपने जिन्न से सबको डराती रही।

अभी हाल में ही उनके जिन्न ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी पर ही कब्जा कर लिया। जिन्ना के जिन्न को विश्वास था कि आज का युवा भटका हुआ है, इसे बरगलाकर किसी भी अच्छे बुरे रास्ते पर धकेला जा सकता है, अतः कुटिल चाल चलते हुए उन्होंने हो-हल्ला मचाकर छात्र संघ के भवन में अपनी फोटो लगवा दी। भूत हो या प्रेत, जिन्न हो या जिन्ना, जहां रहेंगे, वहां बवाल तो मचेगा ही। खूब हो-हल्ला हुआ, मगर जिन्ना का जिन्न मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्र संघ के भवन में डटा रहा। हटा भी तो बहुत बवाल के बाद हटा।

पहले जब गांधी-नेहरू के भूत देश में बवाल मचाने आते थे, तब हमें उनके अस्तित्व पर विश्वास नहीं होता था, परन्तु जिन्ना के जिन्न ने जिस प्रकार भारत देश पर कब्जा करने के लिए उसने मुस्लिम युवाओं को भटकाया, वह हैरान कर देने वाली बात थी। जब तक जिन्दा थे, तबतक भारत पर कब्जा करने के लिए कुटिल चालें चलते रहे, कश्मीर के रास्ते वह पूरे भारत पर शासन करने के ख्वाब देखते रहे, परन्तु जीते-जी वह अपनी चालों में सफल नहीं हुए। हां, पाकिस्तानियों के दिमाग में जहर भरने में जरूर कामयाब रहे कि भारत मुसलमानों का है। बस तब से लेकर अबतक, क्या पाकिस्तानी, क्या कश्मीरी, सभी सोचते हैं कि कश्मीर उनका है, वह पाकिस्तान के हैं। यही ख्वाब देखते-देखते कितने ही स्वप्नदर्शी जिहादी 72 हूरों के पास चले गये।

इन्हीं सब बातों से मेरा विश्वास डगमगा गया और अब लगने लगा है कि भूत-प्रेत वास्तव में होते हैं। बचपन में गांव की कुछ औरतें, जो अपने सास-ससुर से परेशान रहती थीं, या उनका पति उन्हें नापसंद होता था, वह मायके जाना चाहती
थीं तो वह गांव के ही किसी मरे हुए आदमी का नाम लेकर बीमार हो जाती थीं कि फलाने का भूत उनके ऊपर चढ़ गया है। उनकी झाड़-फूंक करवाई जाती थी, परन्तु वह ठीक नहीं होती थीं। लेकिन जैसे ही उन्हें मायके भेजा जाता था, वह ठीक हो जाती थीं। हम उनकी खूब खिल्ली उड़ाते थे। परन्तु अब लगता है कि जब वह अनपढ़-गंवार होकर भूतों को गढ़ लेती थीं तो क्या बुरा करती थीं। यहां तो पढ़े-लिखे लोग उनके भी कान काटते हैं।

गांव की औरतों की खूबसूरती को पसन्द करने वाले भूतों और गांधी, नेहरू के भूत तथा जिन्ना के जिन्न में बहुत अंतर होता है। गांववाले भूत केवल सुन्दर औरतों को परेशान करते हैं, परन्तु नेताओं के भूत और जिन्न असली न होते हुए भी आमो-खास सभी को परेशान करते हैं। ये कभी नहीं मरते। मरते होते, तो जीवित लोग उनके नाम के कसीदे न पढ़ते।

काँग्रेस अभी तक अपने मरे हुए नेताओं के नाम पर वोट मांग रही है। दूसरी तरफ कुछ लोग पाकिस्तान की मांग कर रहे हैं। इन्हीं भूतों के कारण काँग्रेस सिमटती जा रही है और पाकिस्तान तीन टुकड़ों में बंटने की ओर अग्रसर हो रहा है। एक टुकड़ा तो पहले ही हो चुका है। तीन और होने हैं।

पाकिस्तान के ये जिन्न जिन्दा रहें। इसी कामना के साथ।

clip_image004[6]

COMMENTS

BLOGGER: 1
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: संपादकीय // जिन्न मरते नहीं // प्राची जून 2018
संपादकीय // जिन्न मरते नहीं // प्राची जून 2018
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg4F77b8q6zbQNwDtlRc67jK7jCaSSfIZyPdasyW4PnsuXaLrY3pa5jGsZZiY2jBQgI_mu8NnEuxGWXH-3NxqxThf5k_uMP-PBN9TjCrXtKc9uVrOQVeZELoOyb5SRt1Z-vzp3i/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg4F77b8q6zbQNwDtlRc67jK7jCaSSfIZyPdasyW4PnsuXaLrY3pa5jGsZZiY2jBQgI_mu8NnEuxGWXH-3NxqxThf5k_uMP-PBN9TjCrXtKc9uVrOQVeZELoOyb5SRt1Z-vzp3i/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2018/07/2018.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2018/07/2018.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content