संपादकीय जिन्न मरते नहीं वि ज्ञान ने हमें भ्रमित कर दिया है। वैज्ञानिकों के अर्थहीन और व्यर्थ प्रयोगों ने सिद्ध करके कह दिया कि भूत, प्रेत,...
संपादकीय
जिन्न मरते नहीं
विज्ञान ने हमें भ्रमित कर दिया है। वैज्ञानिकों के अर्थहीन और व्यर्थ प्रयोगों ने सिद्ध करके कह दिया कि भूत, प्रेत, जिन्न और चुड़ैलें नहीं होती। कुछ मूर्ख बुद्धिजीवियों ने इस तथ्य को स्वीकार भी कर लिया। परन्तु वह सदियों पुराने इस तथ्य को भूल गये कि भूत-प्रेत हमारे जीवन में हर समय, हर क्षण वास करते हैं और अपनी क्रियाओं से हमें प्रभावित करते हैं।
बचपन में हमारे मां-बाप, दादा-दादी, नाना-नानी और दूसरे बुजुर्ग जो अपनी समझ में हमारी समझ को बढ़ाने में अपना बहुमूल्य योगदान करते थे, हमें भूत-प्रेत और चुड़ैलों की कहानियां सुनाकर डराते रहे और उनके अस्तित्व की नींव को हमारे कच्चे मन में मजबूत करते रहे। जब तक मन रहस्यमयी कहानियों के जाल में उलझा रहा, तब तक हम भूत-प्रेतों पर विश्वास करते रहे_ परन्तु जैसे ही दिलो-दिमाग की बत्ती जलनी आरंभ हुयी और हम दुनियादारी को थोड़ा- बहुत समझने लगे, तो अक्ल के पट खुल गये। स्कूल के मास्टर के बेतों से निजात मिल गयी थी, क्योंकि हम उच्च कक्षा में पहुंच गये। वहां हमारे प्राध्यापक महोदय हमें मारते तो नहीं थे, परन्तु डराते अवश्य थे। वह भी हमें किसी दैत्य या दानव की तरह लगते थे। कम से कम भूत या जिन्न नहीं लगते थे।
पाठ्यक्रम में विज्ञान भी था। इसके अतिरिक्त मन बाहर की किताबों में भी रमने लगा, यथा- उपन्यास, कहानी और कविता। फलस्वरूप हिन्दी के छोटे-बड़े सभी लेखकों से लेकर देसी-विदेशी साहित्य की किताबें भी चट कर गये। जासूसी उपन्यास भी पढ़ डाले, जिन्होंने तार्किक ढंग से सोचने की शक्ति दी। इन सबका परिणाम ये रहा कि भूत-प्रेतों के ऊपर से विश्वास उठ गया। भगवान को नकारने लगा, तो लोग नास्तिक कहने लगे। कहने वाले कहते रहे, कोई असर नहीं पड़ा। हम अपनी राह चलते रहे।
परन्तु उम्र के अन्तिम पड़ाव पर आकर दिमाग चकरा गया। लगा कि हम भ्रमित हो गये थे। विज्ञान ने हमें बेवकूफ बना दिया था, किताबों ने हमें चकरा दिया था। हम जिनके अस्तित्व को जीवन भर नकारते रहे, वह तो हमारे दिलो-दिमाग ही नहीं, आसपास उसी तरह मौजूद हैं, जैसे दाम्पत्य जीवन में कलह, परिवार में झगड़े और पड़ोसियों से कभी न सुलझने वाले लफड़े।
इतनी सारी बातें कहने का एक ही अर्थ है कि जिस प्रकार आत्मा अजर और अमर है, उसी प्रकार जो वास्तव में मरकर चले जाते हैं, वह वास्तव में कहीं जाते नहीं हैं। जिस प्रकार हमारे मन में माया-मोह, लोभ-लालच और प्रेम-वासना का दरिया हिलोरें मारता रहता है, उसी प्रकार मरकर भी जीव कहीं नहीं जाता, वह अपने आकार को बदलकर निराकार रूप में हमारे आसपास मौजूद रहता है। भूत-प्रेत के रूप में।
हम तो मरते-मरते मर जाते, परन्तु विज्ञान से इतर विश्वास न करते। न अपने महान लेखकों के लेखन पर अविश्वास करते, परन्तु क्या करें, अचानक ही न जाने कहां से इतने सारे भूत-प्रेत और जिन्न पैदा हो गये कि विश्वास करना पड़ा- जिन्न कभी नहीं मरते।
अब देख लो न्, किस प्रकार मरने के बीसियों साल बाद भी हमारे देश के नेताओं के प्रेत अचानक जिन्दा हो गये। जिन्दा ही नहीं हुए, किसी न किसी प्रकार हमारे जीवन को प्रभावित भी कर रहे हैं। नेहरू, गांधी और सरदार पटेल के प्रेत कभी-कभी साकार होकर लोगों को डरा जाते हैं, तो लोग सुगबुगा जाते थे, कुछ दिन उनकी चर्चा होती थी। फिर लोग सो जाते थे, जैसे दुनिया में भूत-प्रेत नाम की कोई चीज नहीं होती।
दरअसल, भूत-प्रेत मनुष्य के जीवन में कोई उथल-पुथल नहीं मचाते। हमीं उनको परेशान करके अपने लिए परेशानी मोल लेते रहते हैं। जैसे नाथूराम गोडसे आराम से स्वर्ग में बैठकर गांधी जी से गपियाता रहता है, परन्तु कांगेसी नेता बीजेपी को गरियाते और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को कोसते हुए नाथूराम के भूत को धरती पर बुला लेते हैं। गोडसे स्वर्ग में सुखी जीवन का आनन्द लेता है, उसका मन धरती पर आने का नहीं करता, परन्तु उसके भूत को जिन्दा करने के लिए काँग्रेसी उसे परेशान करते रहते हैं। गाहे-बगाहे उसे बुलाते रहते हैं। मजबूरन उसे धरती पर अपने भूत को भेजना पड़ता है।
भूत-प्रेत छोड़िये, हम लोग तो जिन्नों को भी जिंदा करने में बहुत होशियार हैं। मोहम्मद अली जिन्ना गुजरात में पैदा हुए, मुम्बई और विदेश में पले-बढ़े, राजनीति में पलटियां मार-मार कर पाकिस्तान बनवा लिया। कायदे आजम बनकर पाकिस्तान पर शासन किया। फिर एक दिन मर गये और वहीं कब्र में दफन हो गये। वैसे तो आदमी जहां मरता है, वहीं भूत बनकर भी रहता है, परन्तु मोहम्मद अली जिन्ना बड़ी शख्सियत थे, भारत से उनका पुराना मोह था। नेहरू न होते तो वही संयुक्त भारत (पाकिस्तान के साथ) के प्रधान मंत्री होते, परन्तु गांधी और नेहरू की कुटिल चाल के चलते उनकी महा कुटिल चाल नहीं चल पाई और उन्हें पाकिस्तान में सिमट कर रह जाना पड़ा। चूंकि वह सिमट कर रह गये थे, इसलिये भारत पर कब्जा करने के लिए उनकी आत्मा छटपटा रही थी। मरने के बाद भी उन्हें चैन न आया। उनकी आत्मा घूम-फिर कर भारत आती रही और अपने जिन्न से सबको डराती रही।
अभी हाल में ही उनके जिन्न ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी पर ही कब्जा कर लिया। जिन्ना के जिन्न को विश्वास था कि आज का युवा भटका हुआ है, इसे बरगलाकर किसी भी अच्छे बुरे रास्ते पर धकेला जा सकता है, अतः कुटिल चाल चलते हुए उन्होंने हो-हल्ला मचाकर छात्र संघ के भवन में अपनी फोटो लगवा दी। भूत हो या प्रेत, जिन्न हो या जिन्ना, जहां रहेंगे, वहां बवाल तो मचेगा ही। खूब हो-हल्ला हुआ, मगर जिन्ना का जिन्न मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्र संघ के भवन में डटा रहा। हटा भी तो बहुत बवाल के बाद हटा।
पहले जब गांधी-नेहरू के भूत देश में बवाल मचाने आते थे, तब हमें उनके अस्तित्व पर विश्वास नहीं होता था, परन्तु जिन्ना के जिन्न ने जिस प्रकार भारत देश पर कब्जा करने के लिए उसने मुस्लिम युवाओं को भटकाया, वह हैरान कर देने वाली बात थी। जब तक जिन्दा थे, तबतक भारत पर कब्जा करने के लिए कुटिल चालें चलते रहे, कश्मीर के रास्ते वह पूरे भारत पर शासन करने के ख्वाब देखते रहे, परन्तु जीते-जी वह अपनी चालों में सफल नहीं हुए। हां, पाकिस्तानियों के दिमाग में जहर भरने में जरूर कामयाब रहे कि भारत मुसलमानों का है। बस तब से लेकर अबतक, क्या पाकिस्तानी, क्या कश्मीरी, सभी सोचते हैं कि कश्मीर उनका है, वह पाकिस्तान के हैं। यही ख्वाब देखते-देखते कितने ही स्वप्नदर्शी जिहादी 72 हूरों के पास चले गये।
इन्हीं सब बातों से मेरा विश्वास डगमगा गया और अब लगने लगा है कि भूत-प्रेत वास्तव में होते हैं। बचपन में गांव की कुछ औरतें, जो अपने सास-ससुर से परेशान रहती थीं, या उनका पति उन्हें नापसंद होता था, वह मायके जाना चाहती
थीं तो वह गांव के ही किसी मरे हुए आदमी का नाम लेकर बीमार हो जाती थीं कि फलाने का भूत उनके ऊपर चढ़ गया है। उनकी झाड़-फूंक करवाई जाती थी, परन्तु वह ठीक नहीं होती थीं। लेकिन जैसे ही उन्हें मायके भेजा जाता था, वह ठीक हो जाती थीं। हम उनकी खूब खिल्ली उड़ाते थे। परन्तु अब लगता है कि जब वह अनपढ़-गंवार होकर भूतों को गढ़ लेती थीं तो क्या बुरा करती थीं। यहां तो पढ़े-लिखे लोग उनके भी कान काटते हैं।
गांव की औरतों की खूबसूरती को पसन्द करने वाले भूतों और गांधी, नेहरू के भूत तथा जिन्ना के जिन्न में बहुत अंतर होता है। गांववाले भूत केवल सुन्दर औरतों को परेशान करते हैं, परन्तु नेताओं के भूत और जिन्न असली न होते हुए भी आमो-खास सभी को परेशान करते हैं। ये कभी नहीं मरते। मरते होते, तो जीवित लोग उनके नाम के कसीदे न पढ़ते।
काँग्रेस अभी तक अपने मरे हुए नेताओं के नाम पर वोट मांग रही है। दूसरी तरफ कुछ लोग पाकिस्तान की मांग कर रहे हैं। इन्हीं भूतों के कारण काँग्रेस सिमटती जा रही है और पाकिस्तान तीन टुकड़ों में बंटने की ओर अग्रसर हो रहा है। एक टुकड़ा तो पहले ही हो चुका है। तीन और होने हैं।
पाकिस्तान के ये जिन्न जिन्दा रहें। इसी कामना के साथ।
गंभीर चिंतन को प्रेरित करता संपादकीय.
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