कहानी संग्रह हिन्दू पानी - मुस्लिम पानी साम्प्रदायिक सद्भाव की कहानियाँ असग़र वजाहत लेखक डॉ. दुर्गाप्रसाद अग्रवाल सम्पादक भाग 1 || भाग 2 ...
कहानी संग्रह
हिन्दू पानी - मुस्लिम पानी
साम्प्रदायिक सद्भाव की कहानियाँ
असग़र वजाहत
लेखक
डॉ. दुर्गाप्रसाद अग्रवाल
सम्पादक
भाग 1 || भाग 2 || भाग 3 || भाग 4 || भाग 5 || भाग 6 || भाग 7 || भाग 8 || भाग 9 || भाग 10 || भाग 11 || भाग 12 || भाग 13 || भाग 14 || भाग 15 || भाग 16 || भाग 17 || भाग 18 || भाग 19 ||
-- पिछले अंक से जारी
भाग 20
दुश्मन-दोस्त
(1)
- तुम हमारे दुश्मन हो ?
- बिल्कुल नहीं।
- हॉं भी नहीं हो ?
- नहीं जी 1ः भी नहीं हूँ
- कभी थे?
- नहीं जी।
- कभी नहीं होगे ?
- कभी नहीं होंगे।
- किसकी कसम खाकर कह सकते हो?
- जिसकी आप कहें।
- ठीक है तो तुम हमारे साथ हो।
- हाँ मैं आपके साथ हूँ।
- पूरी तरह साथ हो।
- हां पूरी तरह साथ।
- मेरे विचारों से सहमत हो?
- हम आपके विचारों सहमत हैं।
- मेरे सभी विचारों से सहमत हो?
- हाँ आपके सभी विचार से सहमत हूँ।
- हमारे सभी कामों से सहमत हो ?
- हाँ आप के सभी कामों से सहमत हूँ।
- हमने आज तक जो भी किया है उससे सहमत हो?
- हाँ आपने आज तक जो भी किया है उससे सहमत हूँ।
- हम जो भी करेंगे उससे तुम सहमत होगे?
- हाँ आप जो भी करेंगे उस से मैं सहमत हूँगा
- हम जो नहीं करेंगे उससे भी तुम सहमत होगे?
- हां आप जो नहीं करेंगे उससे भी हम सहमत होंगे।
- नहीं तुम हम से सहमत नहीं हो।
- यह आप कैसे कह सकते हैं।
- हम जो चाहें कह सकते हैं... हमसे सहमत नही हो ?
- नहीं नहीं ऐसा कैसे हो सकता है मैं आपसे सहमत हूँ।
- तो तुम हमसे सहमत नहीं हो।
- जी...।
- तुम हमारे विरोधी हो।
- जी...।
- तुम हमारे शत्रु हो।
- जी...।
- तुम हमारे पक्के शत्रु हो।
- जी...।
- तुम्हारे कारण ही देश की सारी समस्याएं हैं।
- जी....
- तुम न रहोगे तो यह सारी समस्याएं दूर हो जाएगी।
- जी...।
- पर तुमको रहना पड़ेगा।
- जी क्या कह रहे हैं... रहना पड़ेगा।
- हाँ रहना पड़ेगा।
- जी, समझा नहीं।
- तुमको रहना पड़ेगा।
- ठीक है जी...पर मैं समझा नहीं।
- नहीं तुम न समझ पाओगे। तुम बस मान लो कि तुम हमारे दुश्मन हो।
- जी।
- सदा थे, हो और रहोगे।
- जी...पर क्यों?
- इसलिए कि तुम हमारे दुश्मन न रहे तो हम न रहेंगे...
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(2)
- सुनो।
- कहो।
- तुम हमारे दुश्मन ही बने रहो।
- दोस्त क्यों न बनूं।
- दुश्मन का रिश्ता आसान है।
- और दोस्त का रिश्ता।
- बहुत मुश्किल है।
- कैसे?
- दुश्मन को मार देना आसान है।
- और दोस्त।
- दोस्त से दोस्ती निभाना मुश्किल है।
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(3)
- सुनो।
- कहो।
- तुम हमारे दुश्मन ही बने रहो।
- क्यों?
- ताकि हम डरते रहें।
- डरने से क्या फायदा होगा।
- डरने के फायदे ही फायदे हैं।
- क्या फायदे हैं।
- सबसे बड़ा फायदा बताऊँ।
- हाँ बताओ।
- सबसे बड़ा फायदा है, हम जब तक डरते नहीं तब तक एक दूसरे का हाथ नहीं पकड़ते।
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(4)
- सुनो।
- कहो।
- तुम हमारे दुश्मन ही बने रहो।
- क्यों।
- उससे हमें गुस्सा आता है।
- गुस्सा आने से क्या फायदा होता है।
- गुस्सा आने के फायदे फायदे हैं।
- क्या फायदे हैं।
- गुस्सा उसने से हमारे हाथ पर चलते रहते हैं, खाना पचता रहता है, रक्तचाप सही रहता है और हम बाकी सब भूले रहते हैं।
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(5)
- हमारे दुश्मन, तुम अपने बारे में जो सोचते हो वह सही है?
- जी सही है।
- ये तुम्हे किसने बताया कि तुम अपने बारे में जो सोचते हो वह सही है?
- जी किसी ने नहीं।
- तब तो वह गलत है।
- क्यों?
- क्योंकि तुम अपने बारे में सही नहीं जानते।
- फिर कौन हमारे बारे में सही जानता है।
- हम...इसलिये तुम अपने बारे में जो कहते हो वह सच नहीं है।
- फिर हमारे बारे में सच क्या है?
- जो हम कहते हैं।
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दूसरी मिस्टेक
मंटो बड़े ज़बरदस्त कहानीकार थे। मिस्टेक मंटो की लिखी हुई कहानी है। हिन्दू-मुस्लिम दंगों के दौरान एक आदमी किसी की हत्या कर देता है। हत्या करने के बाद पता चलता है कि जिसकी हत्या की गई उसका धर्म और हत्या करने वाले का धर्म एक ही है। यह जानकारी मिलने पर हत्यारा कहता है ‘मिस्टेक’ हो गई।
‘मिस्टेक’ आजकल भी हो जाती है और इसी ‘मिस्टेक’ को ठीक करने के लिए अलग-अलग धर्मों के ‘सच्चे और ईमानदार’ लोगों का एक डेलीगेशन ऊपर गया।
उन्होंने ऊपर वाले से कहा-तू सब जानता है। तू सब कर सकता है। तू सबका स्वामी है। तू हमारी सहायता कर।
ऊपर वाले ने कहा- क्या चाहते हो?
नीचे वालों ने कहा- आपको तो सबके दिल का हाल मालूम है। क्या आप यह नहीं बता सकते कि हम आपके पास क्यों आए हैं?
ऊपर वाले ने कहा-तुम लागों के दिल का हाल मैं नहीं जानता। वह केवल शैतान जानता है। तो तुम मुझे बताओ कि क्या चाहते हे?
नीचे वालों ने कहा-हम चाहते हैं कि हमें आदमी को मारने से पहले उसका धर्म पता चल जाए। आपसे विनती है कि कुछ ऐसा कर दें।
ऊपर वाले ने कहा-ठीक है जाओ तुम्हारी इच्छा पूरी होगी।
ऊपर वाले का करना कुछ ऐसा हुआ कि अब जो बच्चे पैदा होते हैं उनके माथे पर उनका धर्म लिखा होता है। पैदा हुए बच्चे को अगर किसी दूसरे धर्म का प्रतीक दिखा दिया जाता है तो वह चीखने और चिल्लाने लगता है। अपने धर्म का झंडा देख लेता है तो किलकारी मारने लगता है। बच्चे पहला शब्द ‘माँ’ नहीं बोलते गाली सीखते हैं। उनके हाथ खिलौनों की तरफ नहीं हथियारों की तरफ जाते हैं। उनकी आँखों में घृणा और बदला लेने की भावना के अलावा कोई और भावना नहीं दिखाई पड़ती।
ऐसे ‘धर्मप्रेमी’ लोगों को देखने एक दिन मंटो नरक से धरती पर आ गए। उन्होंने कहा-कहानी तो मैं अब लिखूंगा।’ मंटो कहानी लिख ही रहे थे कि किसी ने चाकू घोंप कर उन्हें मार डाला और बोला-‘मिस्टेक’ नहीं हुई।
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खतरा
एक देश की सीमाओं पर बड़ा खतरा था। चारों तरफ से शत्रुओं ने घेर रखा था। देश की सेना को सीमाओं पर भेजा गया। सेना ने बड़ी बहादुरी से दुश्मनों का सामना किया। उनको हरा दिया और दूर तक खदेड़ दिया। दुश्मन को पराजित करने के बाद सेना जब देश को लौटी तो सेना ने देखा कि देश में कोई नहीं है। सेना को बड़ा आश्चर्य हुआ कि देशवासी कहां चले गए जिनके लिए उन्होंने बड़े बड़े युद्ध लड़े थे। खोजते खोजते सेना को दो देशवासी मिले जो आपस में एक दूसरे से खूनी लड़ाई लड़ रहे थे। सेना ने उनको अलग किया और पूछा-तुम लोग क्यों लड़ रहे हो ?
उन्होंने कहा-हम दोनों एक दूसरे के दुश्मन हैं। उस समय तक लड़ते रहेंगे जब तक जिंदा हैं।
सेना ने कहा-बाकी लोग कहां चले गए?
उन्होंने बताया, बाकी लोग भी एक दूसरे के खून के प्यासे थे। वे आपस में लड़ते रहे, लड़ते रहे, लड़ते रहे और सब लड़ते लड़ते मर गए।
इतना कह कर वे दोनों फिर लड़ने लगे।
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फैसला
वकील-मी लार्ड सारे सबूत इसके खिलाफ जाते हैं। गवाहों के बयान भी इसे अपराधी साबित करते हैं। इसने हत्या जैसा जघन्य अपराध किया है। यह समाज का कलंक है। इंसानियत के ऊपर धब्बा है। इसने पूरे समाज को, पूरी मानवता को कलंकित किया है। यह कातिल है। इसे सजा दी जाए। फैसला सुनाइये मी लार्ड।
जज-पहले यह बताओ कि यह हिंदू है या मुसलमान?
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(समाप्त)
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