नाम-दुर्गा प्रसाद प्रेमी पिता का नाम-श्री मोती राम माता का नाम-श्रीमती रामकली देबी गाँव-मौंजम नगला जागीर डा. रतना नन्दपुर-262407 त.व.थाना-नव...
नाम-दुर्गा प्रसाद प्रेमी
पिता का नाम-श्री मोती राम
माता का नाम-श्रीमती रामकली देबी
गाँव-मौंजम नगला जागीर
डा. रतना नन्दपुर-262407
त.व.थाना-नवाबगंज
जिला- बरेली उत्तर प्रदेश(भारत)
जन्मतिथि- 05/02/1983
(01)
!प्रेमी पंछी प्रेम का सबै नबाऊँ शीश।
जनहित में लडिय़ां लिखूँ ईशवर का आशीश।
ईशवर का आशीश पढो सब लुत्फ उठाओ।
शब्द शब्द आशीष ज्ञान की शिक्षा पाओ।
कह प्रेमी कविराय समझ शब्दों की बानी।
पढ लिख बने महान शब्द जो महिमा जानी।
(02)
निर्बल हूँ लाचार मैं नमन मेरा व्यापार।
दीन हीन से दोस्ती यही मेरा व्योहार।
यही मेरा व्योहार खुशी मन को मिलती है।
दीन हीन की दुआ मेरी किस्ती चलती है।
कह प्रेमी कविराय सहारा कर्म कमाया।
जीवन का सुख मिला हीन को गले लगाया
(03)
धर्म बुरा न होत है होता तुक्ष्य बिचार।
बेद कथा उल्टी कहे करता नहीं बिचार।
करता नहीं बिचार राह बतलाये उल्टी।
कह प्रेमी कविराय भरोसा उठ जाता है।
उल्टा तत्थ न कभी काम जग में आता है
लेखक-दुर्गा प्रसाद प्रेमी
(06)
दुर्दशा देख अब देश की होता है अफसोस।
नित गोली चलती यहाँ मन में होत क्लेश।
मन में होत क्लेश शेष अब आसहै बाकी।
कह प्रेमी कविराय सुनो सब भारत बासी।
कोई न होगी छूट करो दुशमन को फाँसी।
(07)
राज गुरु नेता सभी करते हैं व्यभिचार।
मूर्ख जनता को करें शब्द बोलकर चार।
शब्द बोलकर चार राज संसद में करते।
कह प्रेमी कविराय भरें सब नोट तिजोरी।
जनता करे सबाल माँग कब होगी पूरी।
(08)
माँगे सुरक्षा देश की चौबन्द हो सब काज।
निर्भय जनता जी सके ऐसा हो जाये राज।
ऐसा हो जाये राज काज कोई बन्द न होबे।
कह प्रेमी कविराय क्या यह सब हो पायेगा।
हिन्द देश का राज शान्ति चल पायेगा।
(09)
शान्त रहो और चुप रहो करता हिन्द पुकार।
इसीलिए तो हिन्द पर होते अत्याचार।
होते अत्याचार करे दुशमन मनमानी।
कह प्रेमी कविराय हिन्द अब नहीं डरेगा।
दुशमन का कोई बार हिन्द अब नहीं सहेगा।
(10)
दया धर्म मन में नहीं जपता राधे राम ।
सत्य कर्म को त्याग कर नित्य करे दुस्काम।
नित्य करे दुस्काम राम का नाम लजाबे।
कह प्रेमी कविराय भक्त अपने को कहता।
झूठ बोलकर नित्य ठगे जनता से पैसा।
(11)
जान गई न जात की चला गया इंसान।
जाति झंझट में गई निर्दोषों की जान।
निर्दोषों की जान मान क्यों जग ने खोया।
कह प्रेमी कविराय देखकर कर दिल है रोया।
जाति हुआ शिकार पसारे पैर है सोया।
(12)
यह मरा या वह मरा मरा सिर्फ इंसान।
हिन्दू मुस्लिम न मरा मरा सिर्फ इंसान।
मरा सिर्फ इंसान सभी की रुह एक है।
कह प्रेमी कविराय न कोई तुर्क सेख है।
जाति झंझट छोड सभी की राह एक है।
(13)
लहू और आहार है सबका एक समान ।
लहू लहू से मिल रहा कर देखो पहचान।
कर देखो पहचान लहू का रंग एक है।
कह प्रेमी कविराय लहू न दो रंग होता।
फिर क्यों मानष जाति पाति फँस खाता गोता।
(14)
हीन द्वारे जाति है चतुर द्वारे ज्ञान।
धनी द्वारे आस है निर्धन के सम्मान।
निर्धन के सम्मान मान निर्धन है करता।
कह प्रेमी कविराय धनी धन झोली भरता।
निर्धन जोडे हाथ धनी न किसी से डरता।
(15)
धनी तिजोरी धन भरा निर्धन खाली हाथ।
नित प्रताड़ित हो रहा निर्धन है बिन बात।
निर्धन है बिन बात साथ न कोई देता।
कह प्रेमी कविराय नित्य वो जुल्म है सहता।
निर्धन बना गुलाम समय न मिलता पैसा।
(16)
समय तीर का आसरा समय तीर निसहाय।
समय रहे साधन मिले असमय नहीं विसाय।
असमय नहीं विसाय काज न असमय होता।
कह प्रेमी कविराय समय नित खाता गोता।
समय न आबे हाथ समय जो बिरथा खोता।
(17)
चार ईंट का चबूतरा कर मन्दिर निर्माण।
जनता को देता फिरै भक्ति का प्रमाण।
भक्ति का प्रमाण कहे मैं रामभक्त हूँ।
कह प्रेमी कविराय भक्ति का अर्थ न जाने।
भक्ति कहते किसे नहीं मतलब पहचाने
(18)
भक्ति भरोसा राम का तजि माया अभिमान।
मन मारे जो आपना औरों का सम्मान।
औरों का सम्मान जगत में भक्त कहाबे।
कह प्रेमी कविराय करे जीबों की रक्षा।
भूख प्यास को त्याग सबै दे बेद दीक्षा।
(19)
बेद दीक्षा दे सबै करबाये जलपान।
ऐसे मानव जगत में होते बहुत महान।
होते बहुत महान बसे मन इनके गीता।
कह प्रेमी कविराय भला जन जन का करते।
देते नित्य आशीष दुआओं झोली भरते।
(20)
साधु का मन साधना तजि मन भोग विलास।
नित्य जपे सतनाम को हरि मिलन की आस।
हरि मिलन की आस जपे नित माला फेरे।
कह प्रेमी कविराय जगाये अलख निराला।
हरि बसे मन आस बही है सन्त निराला।
(21)
सन्त समागम हो जहाँ बहाँ राम का बास ।
तजि माया अभिमान को बैठि सन्त के पास।
बैठि सन्त के पास आस मन होगी पूरी।
कह प्रेमी कविराय बात बिगडी बन जाती।
भँवर बीच में फँसी नाँव किनारे लग जाती।
(22)
सन्त समागम सत्य की सत्य सन्त का नाम।
सत्य सन्त ह्मदय बसे सत्य बिना निसकाम।
सत्य बिना निसकाम सत्य का सन्त भरोसा।
कह प्रेमी कविराय सत्य न हाट बिकाता।
सत्य बचन को पाय सन्त जग मान कमाता।
(23)
कर्म करे तो मन भला सत्य भला संसार।
कर्म करे से धन मिले सत्य राम का द्वार।
सत्य राम का द्वार पार भव हो जायेगा।
कह प्रेमी कविराय मिले पापों से मुक्ति।
भव जाना गर पार सत्य बिन नहीं युक्ति।
(24)
सत्य बिना न को तरा सत्य तरैं सब कोय।
सत्य बिना बैकुण्ठ है सत्य जपो सब कोय।
सत्य जपो सब कोय सत्य बिन सार न दूजा।
कह प्रेमी कविराय करो सब सत्य की पूजा.
सत्य बिना सुख नाय जगत मे कोई दूजा।
(25)
भोंदू चले बजार को लेने गुड और तेल।
गुड को चींटा खा गया तेल हुआ न मेल।
तेल हुआ न मेल सेल सब हुआ मसाला।
कह प्रेमी कविराय अक्ल का खेल यह सारा।
नेक चूक के हेत थूकता है जग सारा
(26)
घर आए मेहमान सब होते एक समान।
कोई पैदल आ रहा कोई चढा विमान।
कोई चढा विमान सबै है शान प्यारी।
सबका मान समान यही अर्दास हमारी।
कह प्रेमी कविराय सभी मे राम समाया।
कभी न करना मान देख महमान की माया।
(27)
घर आये महमान को नजर नजर न घूर।
एक पिये रम वाटली एक पिये रम चूर।
एक पिये रम चूर देख दिल दर्द निराला।
मत चढ ऐसे द्वार जहाँ दो रंग प्याला।
कह प्रेमी कविराय द्वार से टूटा नाता।
धन निर्धन का भेद न प्रेमी मन को भाता।
(28)
कभी हुआ न हो सकै पूरव पश्चिम मेल।
धन निर्धन का देश मे अलग अलग है खेल।
अलग अलग है खेल धनी नित धन से खेले।
निर्धन है बेहाल धनी संग कैसे खेले।
कह प्रेमी कविराय धनी से मेल न करना।
धनी है रिस्ता खेल कभी फरियाद न करना।
(29)
धनी निर्धन की दोस्ती काँच जडाई तेग।
बिन मौंसम वरसात मे नजर न आये मेघ।
नजर न आये मेघ पड़े नित सिर पर ओला।
कह प्रेमी कविराय धनी से बचकर रहना।
धनी दोस्ती करो पड़े जीवन नित रोना।
(30)
धनी निर्धन के पास बैठना क्या गुनाह।
धनी निर्धन के साथ क्या खाना बैठ मना है।
कह प्रेमी कविराय धनी क्या मोती चुगता।
आटा चावल खाय सभी का जीवन कटता।
(31)
कोई मक्खन खा रहा लगा चपाती बीच।
कोई ढेला नमक का गया चपाती खींच।
गया चपाती खींच बने मिल दोनों आटा।
कह प्रेमी कविराय चपाती क्यों है बाँटा।
बिन आटा के बने न कोई पुड़ी पराठा।
(32)
मक्खन है धनवान को निर्धन पीता दूध।
धनी विचारा रह गया दूध बिना मकसूद।
दूध बिना मकसूद दूध का रंग न जाने।
कह प्रेमी कविराय दूध पाउडर को मानें।
जीवन जाता वीत दूध का रंग न जाने।
(33)
पशुओं की रक्षा करो कहती है सरकार।
जनता कहती क्या करें पशु पालकर चार।
पशु पालकर चार पशु से घर न चलता।
कह प्रेमी कविराय दामन न ढेला मिलता।
बिन पैसे के नहीं जिंदगी पहिया चलता।
(34)
न चलता इस जगत मे बिन पैसे कोई काम।
बिना चाकरी न मिले ढेला कौड़ी दाम।
ढेला कौड़ी दाम काम नित आवे पैसा।
कह प्रेमी कविराय बिना पैसे रुसवाई।
पैसा खातिर नित्य जमाना करे कमाई।
(35)
योगी युग है नाम का सब है माया जाल।
लोक दिखाबा कर रहे बस्त्र पहनकर लाल।
वस्त्र पहनकर लाल योग को ढाल वनावें।
कह प्रेमी कविराय स्वयं को संत बताते।
निर्धन करे न बात धनी को पास बिठाते।
(36)
योगी योगी जग करे योगी माँगे दाम।
योगी का तप साधना सदा रहे निसकाम।
सदा रहे निसकाम मोह को दूर भगावे।
कह प्रेमी कविराय मोह न उलझे योगी।
मोह वेड़ियाँ डाल कभी न वनता योगी।
(37)
योगी खेती रामधन राजनीति क्या काम।
श्रद्धा भूखी आत्मा माया है बेकाम।
माया है बेकाम चले पग तीर्थ जाये।
कह प्रेमी कविराय बचन नित सत्य सुनाये।
ऐसा सन्त समाज बीच योगी कहलाये।
(38)
गाडी बंगला सस्त्र से योगी को क्या काम।
अलख जगाये तप करे नित्य जपे हरिनाम।
नित्य जपे हरिनाम बार बाणी से करता।
कह प्रेमी कविराय सन्त न किसी से डरता।
जो भी आये पास दुआओं झोली भरता।
(39)
ज्ञान प्रेरणा सत बचन योगी का प्रचार।
क्रोध हीन मन भावना योगी का व्यवहार।
योगी का व्यवहार क्रोध बुद्धि हर लेता।
कह प्रेमी कविराय क्रोध मन होता भारी।
सन्त देत उपदेश क्रोध है बुरी बीमारी।
(40)
युग बदला फैंसन आई घर घर में मोच पनप गया।
सुबह उठा पालिस मारी तो कहता जूता चमक गया।
भिर भी है बदनाम मुसाफिर मोची जग में बेचारा।
आज के युग में पालिस करता देखा हमने जग सारा।
फिर भी कहते देखा हमने मोंची नीची जात।
पास बिठाना गुनाह बताते करें न मोची बात।
करें न मोची बात सभी फटकार लगाते।
कह प्रेमी कविराय कहें अब किसको मोंची।
घर घर पालिस व्रुश है घर घर बैठा मोंची।
(41)
मोंची मोंच सब कहें मोंची है बदनाम।
मोंची करता जगत में सदा दूसरा काम।
सदा दूसरा काम न मोंची सिलता जूता।
कह प्रेमी कविराय काम मोंची का छूटा।
उद्योग पति से जगत काम कोई न छूटा।
(42)
उद्योग लगा उद्यम करो रहे लक्षमी हाथ।
जाति पाँति विधबन्श का कभी न देना साथ।
कभी न देना साथ रार है इससे बढती।
कह प्रेमी कविराय किसी में दोष न कोई।
सब हैं एक समान न ऊँचा नींचा कोई।
(43) सूरज चन्दा एक है एक जमीं आकाश ।
सबै अन्धेरा एक सा सबै एक प्रकाश।
सबै एक प्रकाश सभी का एक है दाता।
कह प्रेमी कविराय गई क्यों बुद्धि मारी।
जगत ढूँढ मन खोज एक हैं सब नर नारी।
(44)
बेटी जिस घर जन्म ले उस घर खुशी अपार।
लेकिन इस संसार में है उल्टा व्यवहार।
है उल्टा व्यवहार देख बेटी को रोते।
कह प्रेमी कविराय सबै कैसे समझायें।
बेटी होत महान प्रेमी लिख बतलाये।
(45)
बेटी घर की लछमी देबी जैसा रुप।
बडे बडे झुकते फिरैं देबी चरणों भूप।
देबी चरणों भूप न बेटी घर में भाये।
कह प्रेमी कविराय है बेटी देबी जैसी ।
बेटों जैसी कभी न होती बेटी बहसी।
(46)
बिटिया चिठिया एक सी दोनों चली बिदेश।
बिटिया आँसू दे चली चिठिया सुख सन्देश।
चिठिया सुख सन्देश छोड यादों को जाती।
कह प्रेमी कविराय मिलन को नैंना तरसे।
बिन बिटिया से मिले पिता को हो गये अरसे।
(47)
मात पिता ह्रदय बसा प्यार बडा अनमोल।
बेटा बेटी एक से दोनों हैं अनमोल।
दोनों हैं अनमोल है बेटी जग की जननी।
कह प्रेमी कविराय है बेटी दर्जा ऊँचा।
इक बगिया दोऊ फूल दोऊ जल एक ही सींचा।
(48)
इन्टरनेट को देखिये करता कितनें काम ।
फिर भी इन्टरनेट को करते सब बदनाम।
करते सब बदनाम करें सब नैट बुराई।
कह प्रेमी कविराय करें सब नैट कमाई।
कोई करे दुष्काम करे कोई धर्म कमाई।
(49)
नैट सुरक्षा देश में करता है दिन रात।
सी सी टी बी कैमरा कहता सच्ची बात।
कहता सच्ची बात साथ तस्बीर निकाले।
कह प्रेमी कविराय नहीं पापी बच पाये।
जो भी आता नजर कैमरा सच दिखलाये।
(50)
रात दिना संसार में होते अत्याचार।
न जानें क्यों मर गया मानव दिल का प्यार।
मानव दिल का प्यार यार दुश्मन बन बैठा।
कह प्रेमी कविराय समझ में कुछ न आया।
जिसको अपना कहा उसी नें दुख पहुँचाया।
(51)
अपना सपना सा लगै देख जगत अपराध।
घर घर में होते दिखैं बातों बात बिबाद।
बातों बात बिबाद लडें नित भाई भाई ।
कह प्रेमी कविराय कहें अब किसको अपना।
हुआ पिता लाचार कहे यह खून है अपना।
(52)
खून दुहाई चल बसी अब है खून विसाद।
खून दुहाई मान ले बचा जगत एकाद।
बचा जगत एकाद खून पैकिट में मिलता।
कह प्रेमी कविराय पता न किसका कैसा।
जान गनीमत बची पिता से रिश्ता कैसा।
(53)
क्या लिखूँ कुछ समझ न आये किसको क्या बतलाऊँ।
डिग्री पा बेईमान हुए सब देख देख हरषाऊँ।
किसको क्या समझाऊँ हुआ बेढंग जमाना।
कह प्रेमी कविराय संभलना भी न जानें।
भले बुरे की परख कभी भी ये न जानें।
(54)
सूट बूट ले डायरी कलम जेब के बीच।
खडे चौराहे रोड में सिगरेट जाते खींच।
सिगरेट जाते खींच तनिक मन शर्म न आती।
कह प्रेमी कविराय शर्म इनसे शर्माती।
मदिरा इनको नित्य शाम को राह बताती।
(55)
शिक्षा धारी को सुना हमने बहुत महान।
नजर मिली तो देखकर हो गये हम हैरान।
हो गये हम हैरान देख बुद्धि थरराई।
कह प्रेमी कविराय बँधा रिस्बत में जाये।
इससे अनपढ भला जो मेंहनत रोटी खाये
(56)
मधुशाला मन्दिर बना मन्दिर दिल का चैन।
विन मदिरा काली लगै सुन्दर सी जा रैन।
सुन्दर सी जा रैन चैन न अंखिया पातीं।
कह प्रेमी कविराय बिना मद कुछ न भाये।
पी मदिरा को नित्य गली में चप्पल खाये।
(57)
बेटा बेटी नित कहें मदिरा मौत समान।
नित्य शराबी कर रहा मदिरा का गुणगान।
मदिरा का गुणगान पिये नित राग सुनाये।
कह प्रेमी कविराय लिखें अब हालत कैसे।
किडनी हो गई फेल मरे ज्वानी बिन पैसे।
(58)
मिले शराबी पूँछना घर बच्चों का हाल।
दाना बिन भूखों मरें कहता मालामाल।
कहता मालामाल पिये नित जूते खाये।
कह प्रेमी कविराय धनी अपने को कहता।
विन पैसे परिवार नित्य है जुल्म को सहता।
(59)
माँ से मुन्ना पूछता नित पापा का हाल ।
माँ पापा कित को गये बीत गया है साल।
बीत गया है साल माँ पापा कब आयेंगे।
कह प्रेमी कविराय हुई क्या आनाकानी।
विन पापा माँ मुझे सुनाये कौन कहानी।
(60)
माँ बेट से क्या कहे उजडे दिल का हाल।
पी मदिरा पापा मरे गुजर गया है साल।
गुजर गया है साल सुनाये किस मुख बानी।
कह प्रेमी कविराय नैंन नित आँसू बहते।
बिना पति संसार हाल हम किससे कहते।
(61)
धर्म धनी का बह गया निर्धन का सम्मान।
गली गली में हो रहा नेता का सम्मान।
नेता का सम्मान मान नेता का भारी।
झूँठी खाये कसम बैठ जनता विच सारी।
कह प्रेमी कविराय धनी निर्धन सब आना।
देकर अपना वोट हमें संसद पहुँचाना।
(62)
धर्म विका बाजार में धनी ग्राम के बीच।
सत्य बचन ह्मदय बसा कहें लोग सब नींच।
कहें लोग सब नींच सत्य है कडवी वानीं।
कह प्रेमी कविराय सत्य को न पहचानीं।
गया भटक संसार राह सब चलें उतानीं।
(63)
धर्म गुरु धर्मात्मा बिक रहे कौडी मोंल।
देख नित्य अखबार में खुले गुरु की पोल।
खुले गुरु की पोल कहें हम हैं ब्रजबासी।
जाँच करे सरकार अदालत बोले फाँसी।
कह प्रेमी कविराय धर्म धन्दा बन बैठा।
धर्म गुरु जंजाल गले फन्दा बन बैठा।
(64)
शाम सुबह जपते रहो नित्य पिता का नाम।
दीन हीन को बन्दगी रोगी सेबा दान।
रोगी सेबा दान नाम जप नित्य मुरारी।
कह प्रेमी कविराय दुख सनकट भय हारी।
जगत पिता की प्रेमी जग में महिमा न्यारी।
(65)
राम शयाम गुरु नानका यीशु अल्लाह नाम।
सबकी रहमत एक है एक पिता का नाम।
एक पिता का नाम अलग भाषा है न्यारी।
कह प्रेमी कविराय करो न सोंच बिचारी।
एक जगत का पिता उसी की महिमा सारी।
(66)
भाषा में क्यों बह रह देखो नैंन निहार।
चन्दा के संग चाँदनी चन्दा का परिवार।
चन्दा का परिवार जगत को देत उजाला।
कह प्रेमी कविराय धनी निर्धन न जाने।
दे सबको प्रकाश किसी की आन न माने।
(67)
धीरज धर मन देखिये खोल नैंन की ज्योत।
नैंन झिपे रजनीं हुई खुले उजाला होत।
खुले उजाला होत सोत चित कुछ न साजे।
कह प्रेमी कविराय नींद नें सब सुख त्यागे।
शारीरिक सुख हेतु फिरै सब भागे भागे।
(68)
जिहि मन धीरज आस्था उहि मन प्रभु जोत।
सत्य बचन जिव्हा चरे राम स्नेही होत।
राम स्नेही होत ज्योत मन हरि विराजे।
कह प्रेमी कविराय भक्त वो प्रभु साजे।
मोंह माया को त्याग हरि हर मन में साजे।
(69)
हरि हरि की रट लगा करता है व्यभिचार।
स्वयं को प्रभु कहे भ्रमाया संसार।
भ्रमाया संसार परख प्रभु की न्यारी।
कह प्रेमी कविराय बचो यह सब जग बैरी।
माँस हरें आहार लगावें मदिरा पहरी।
(70)
मदिरा पी मदहोश है मन्द मन्द मुस्काय।
नाम शहंशाह सूरमा देखो चप्पल खाय।
देखो चप्पल खाय कहें सब नींच निंगोडा।
कह प्रेमी कविराय कहें क्या ऐसे जन को ।
जीना है धिक्कार पाप है ऐसे तन को।
(71)
देख जगत संसार को सीख लेओ कुछ सीख।
रुप बदल माँगत फिरैं गली गली में भीख।
गली में भीख भिखारी चोला पहने।
कुटिया छापा पडा मिले हीरे के गहने।
कह प्रेमी कविराय कहें क्या इनको भाई।
जब तक शासन रहा दबा कर करी कमाई।
(72)
हाथ जोड संसार में होते कितने काम।
हाथ जोड हो बंन्दगीहाथ जोड निशकाम।
हाथ जोड निशकाम कला हाथों की सारी।
कोई करे दुस्काम बने कोई बडा पुजारी।
कह प्रेमी कविराय जोडना मन को जोडो।
लड़ो बिपत्ति साथ कभी साहस न छोडो।
(73)
समय बिपत्ति छिन गया धन सम्पत्ति सब राज।
बुद्धि बिचारी रह गई मन वाँछित रह ताज।
मन वाँछित रह ताज काज बुद्धि से करना।
कह प्रेमी कविराय सदा ईशवर से डरना।
कर बुद्धि उपयोग तिजोरी हीरे भरना।
(74)
मन बुद्धि का जगत में बहुत बडा है खेल।
धनदौलत न हो सका मन बुद्धि का मेल।
मन बुद्धि का मेंल सभी कुछ बुद्धि बिचारे।
कह प्रेमी कविराय बुद्धि से सब जग चलता।
विन बुद्धि नहीं काज जगत में कोई चलता।
(75)
हरि हरि जपते रहो छाँडि मोंह का फन्द।
सच्चा सुख हरि नाम है वाकी सब गलफन्द।
वाकि सब गलफन्द यहीं सब रह जायेगा।
कह प्रेमी कविराय साथ न को जायेगा।
हरि नाम जग सार पार भव हो जायेगा।
(76)
धर्म कर्म करते रहो कर्म धर्म के तीर।
सत्य बचन अनमोल है रोके जग की पीर।
रोके जग की पीर सत्य संसार सहारा।
कह प्रेमी कविराय सत्य बिन जग अंधियारा।
सत्य सुमिर भव पार जगत का सत्य सहारा।
(77)
करना था वह कर चले अब हाथ पसारे जात।
खडी आत्मा रो रही मिट्टी भुईं लजात।
मिट्टी भुईं लजात साथ न कोई देता।
कह प्रेमी कविराय काठ घोडी बैठाया।
तनिक न करी अवार जाय शमशान जलाया।
(78)
मिट्टी मिट्टी में मिली हबा हबा के साथ।
उम्र गमाई मोंह में कछु न आया हाथ।
कछु न आया हाथ रात दिन करी कमाई।
कह प्रेमी कविराय हरि गुन कबहु न गाया।
हीरा मानुष जन्म यों ही व्यर्थ गवाया।
(79)
आग लगी तन जल गया हुआ राख का ढेर।
आँगन त्रिया रो रही कागा बैठ मुँडेर।
कागा बैठ मुँडेर कहे यह जगत कहानी।
कह प्रेमी कविराय गया न बापस आता।
काहे करे मलाल काहे को पीटत माँथा।
(80)
रोना रन्जो गम अलम सब मन माया जाल।
जाना था वो चल वसा बचा न कोई काल।
वचा न कोई काल ढाल कोई काम न आबे।
कह प्रेमी कविराय करो चाहे लाख मनाई।
ऋषि मुनि बलवान काल को बच न पाई।
(81)
काल कला जग बीच है जगत काल का राज।
अमर जगत को न भयो अमर काल का राज।
अमर काल का राज गाल जग काल समाता।
अह प्रेमी कविराय काल सिर सबके डोले।
हे प्रेमी नादान हरि की शरण में होले।
(83)
कौडी कौडी धन बडे पल पल उमर थकाय।
बचपन बीता खेल में बृद्ध हुआ पछताय।
बृद्ध हुआ पछताय जवानी हरि को भूला।
कह प्रेमी कविराय चला नित चाल उतानीं।
मोंह माया फँस वीच हमेंशा की शैतानी।
(84)
कौडी मन की कामना उम्र तकाजा काम।
लालच मन का बोझ है त्याग जपो हरि नाम।
त्याग जपो हरि नाम मिले संकट छुटकारा।
कह प्रेमी कविराय हरि दुख हरने बाला।
मोंहन मदन गोपाल कन्हैया मुरली बाला।
(85)
मन बैरी आराम है बैरी धन घनश्याम।
मन धन दोनों जब मिलें भूल जात हरि नाम ।
भूल जात हरि नाम मोंह मन फँस जाता है।
कह प्रेमी कविराय त्याग मन मोंह का फन्दा।
हरि जपो हर शवाश छूट जाये जम फन्दा।
(86)
माया भूले राम को अहम भूले हरि नाम।
प्रेमी भूले दाम को नित्य जपें हरि नाम।
नित्य जपें हरि नाम शीश हरि चरण झुकाते।
कह प्रेमी कविराय मोंह मन त्याग दिया है।
शवाश शवाश हरि नाम संकल्प ठान लिया है।
(87)
हरि नाम मन शान्ति हरि नाम कल्यान।
प्रेमी कथना न कथी कहते बेद पुरान।
कहते बेद पुरान पुरान हरि की महिमा गाते।
कह प्रेमी कविराय सार सब बेद बखाना।
जिसनें अध्यन किया उसी ने हरि गुन जाना
(88)
न आरक्षण माँगते न माँगे रोजगार ।
मेंहनत कर धन्दा करें पाल रहे परिवार।
पाल रहे परिवार हिन्द में मुस्लिम भाई।
आजादी की जंग बराबर जान गँबाई।
कह प्रेमी कविराय हिन्द के हिन्दू भाई।
जाति वाद तो कभी आरक्षण करें लडाई।
(89)
सोंचो दुश्मन कौन है जरा हिन्द के बीच।
हिन्दू हिन्दू से कहे मैं ऊँचा तू नीच।
मैं ऊँचा तू नींच पास मेरे मत आना।
जाति वाद में फँसा फिरे हिन्दू दीवाना।
कह प्रेमी कविराय धर्म टुकडे हो बैठा।
ऊँच नींच का भेद गले साँकल बन बैठा।
(90)
कोई कहे हम क्षत्री भुजा हुआ अवतार।
कोई कहे ब्रह्मज्ञान से रचा गया संसार।
रचा गया संसार जातियां हरि बनाये।
हरि बिन होय न काज गुरु ब्राह्मण बतलाये।
कह प्रेमी कविराय झूँठ सब लेत सहारा।
बुद्धि करो बिबेक जन्म माँ एक सहारा।
(91)
बिन माँ के फलता नहीं बीज कोई संसार।
बिन माँ जाये जगत में कौन हुआ अवतार।
कौन हुआ अवतार कहो कुछ मुँह तो खोलो।
बिन माँ जन्मा लाल पाखंडी एक तो लेलो।
कह प्रेमी कविराय बताओ कहाँ मिलेगा।
बिन डाली के फूल बताओ कहाँ खिलेगा।
(92)
बिन माँ गर संसार में हो जाता अवतार।
ब्रह्मा बिष्णु नें किया क्यों नारी से प्यार।
क्यों नारी से प्यार साथ दो दो पटरानी।
सब सैया सुख पाये कहें अपने को ज्ञानी।
कह प्रेमी कविराय सत्य से डर लगता है।
बिन पौधे के कहो कहाँ पर फल लगता है।
(93)
बिन पौधा डाली नहीं बिन डाली फल नाँय।
अम्ब डाल इमली लगी हमनें देखी नाँय।
हमने देखी नाँय गाछ फल न्यारे न्यारे।
भाँति भाँति फल फूल खिले अति प्यारे प्यारे।
कह प्रेमी कविराय जाति मानव न कोई।
मानव से उत्पन सदा मानव ही होई।
(94)
पशु पक्षी और गाछ में विविध नाम प्रजाति।
मानव से मानव उगा जिसकी मानव जाति।
जिसकी मानव जाति न उपजा दूजा कोई।
जातिबाद और छुआछूत फिर किस विध होई।
कह प्रेमी कविराय लडे मानव से मानव।
छुआछूत का जहर करे मानव को दानव।
(95)
छुआछूत के गाछ को कौन रहा है सींच।
शिक्षित भी अपना रहे अपनीं आँखे मींच।
अपनीं आँखें मींच नींच मानव को कहते।
जाति जाति में बँटे गैर के डंडे सहते।
कह प्रेमी कविराय मेंल गर आपस होता।
सरहद खडा जवान मौंत की नींद न सोता।
(96)
दूज चाँद तिनका भरा सबको देत झुकाय।
आस मिलन की पूर्णिमा दूजा देत मिलाय।
दूजा देत मिलाय रुप रंग अजब निराला।
रुप अनेकों लिए माह में करे उजाला।
कह प्रेमी कविराय रुप से क्या होता है।
छोटा हो या बडा रोशनी तो देता है।
(97)
दान पात्र स्थान तो होता रोगी द्वार।
फिर क्यों प्रेमी हो रहा मन्दिर में प्रचार।
मन्दिर में प्रचार समझ में कुछ न आया।
ईशवर शक्ति मान जहाँ ने है बतलाया।
कह प्रेमी कविराय दान क्या ईशवर खाता।
रोगी बेबस पडा जमीं पर धक्के खाता।
(98)
रोगी हित क्यों दान न करता है इंसान।
मन्दिर देकर दान को कहता बहुत महान।
कहता बहुत महान शान को दिखलाता है।
द्वार पडा लाचार अन्न बिन मर जाता है।
कह प्रेमी कविराय दान निर्बल या शाही।
विपत पडी में दास देव को देत गबाही।
(99)
दाता को क्या दान की पडी जरूरत आन।
दाता तो जगराम है जिसकी ऊँची शान।
जिसकी ऊँची शान सुना सबको देता है।
फिर क्यों मन्दिर बैठ दान सबसे लेता है।
कह प्रेमी कविराय क्या खाली हुआ खजाना।
दाता को न भाय इस तरह जगत लजाना।
(100)
दान जरूरत मन्द को दे सीखो सब लोग।
मूर्ख बन क्यों जी रहे जग में शिक्षित लोग।
जग में शिक्षित लोग धर्म हैं हानी करते।
दान पात्र धन पाय तिजोरी अपनी भरते।
कह प्रेमी कविराय राम रुपया न खाता।
क्यों करते बदनाम राम है जग का दाता।
(101)
राम सहारा दे सबै भ्रमाते हैं लोग ।
भेष फकीरी ले लिया माया का है रोग।
माया का है रोग कहें अपने को ज्ञानी।
जीवन दिया बिताय राम की आन न मानी।
कह प्रेमी कविराय करें नित उल्टा धन्दा।
औरन को दे ज्ञान स्वयं का काला धन्दा।
(102)
पान फूल जल भर लिया जाता मन्दिर द्वार।
बीच राह में ताकता खडा पराई नार।
खडा पराई नार सार बेदों का गाता।
माथे लम्बा तिलक स्वयं को भक्त बताता।
कह प्रेमी कविराय भक्त का चोला पहने।
भक्ति का दे नाम चले जनता को हरनें।
(103)
जनता भी समझे नहीं तिलक देख हर्षाये।
आँगन में बैठाय के हँस हँस के बतलाय।
हँस हँस के बतलाय दूध जलपान कराये।
दर्शन दुर्लभ हुए प्रभु क्यों सुधि बिसराय।
कह प्रेमी कविराय बतायें कैसे बच्चा।
भक्त नहीं कोई और ग्राम में तुमसे अच्छा।
(104)
झूँठ दुहाई दे रहा ढोंगी आँगन बीच।
भिक्षा कह माया हनै दोनों आँखें मींच।
दोनों आँखें मींच नींच को दया न आये।
हरि नाम से लूट भरे झोली ले जाये।
कह प्रेमी कविराय दान को देने बाले।
सोंच समझ कर दान दान को लेने बाले।
(105)
तपसी तप कर चल बसे कभी न माँगा दान।
बैठ तपोबन कर रहे ईशवर का गुणगान।
ईशवर का गुणगान जान भक्ति में खोई।
मुख से निकला बचन सत्य तपसी के होई।
कह प्रेमी कविराय नमन बिनती करता हूँ।
तपसी बडे महान दन्डबत नित करता हूँ
(106)
नमन सूर्य चन्द्र को नमन वीर हनुमान।
नमन सरोबर नीर को गंगा की पहचान।
गंगा की पहचान जिसे सब माँ कहते हैं ।
भक्त हजारों नित्य द्वार जय जय करते हैं।
कह प्रेमी कविराय शीश नित चरण झुकाते।
माँ है बहुत महान प्रेमी लिख बतलाते।
(107)
क्या कहें इस जगत में बहुओं का है राज।
बहू बिना नहीं सास है सास बिना नहीं राज।
सास बिना नहीं राज काज बिन सास न होबे।
जिस घर सासू नाँय बहुरिया बैठी रोबे।
कह प्रेमी कविराय सास की मधुरी वानीं।
सुबह देत फटकार शाम को नित्य कहानीं।
(108)
हिन्दी हिन्दुस्तान को लगन लगी है बोझ।
इंलिश मैसेज कर रहे हिन्दुस्तानी लोग।
हिन्दुस्तानी लोग न हिन्दी पढ पाते हैं।
हिन्द देश में रहें बिदेशी गुन गाते हैं।
कह प्रेमी कविराय पढो कुछ हिन्दी भईया।
अध्ययन बेद पुराण पार हो जीवन नईया।
(109)
हिन्दी हिन्दुस्तान की आन बान है शान।
प्रेमी कहते मत करो हिन्दी का अपमान।
हिन्दी का अपमान पढो और सबै पढाओ।
हिन्दी हिन्द महान इसे यों न ठुकराओ।
कह प्रेमी कविराय सभ्यता बनी रहेगी।
हिन्दी हुई जो लुप्त तो जग में हँसी उडेगी।
(110)
हिन्दू हिन्दी छोडकर भाजें इंलिश ओर।
मुस्लिम ऊर्दू को फिरै ढूँढत चारो ओर।
ढूढत चारो ओर मदरसा घर में खोले।
कर सरियत सम्मान जुबाँ ऊर्दू में बोले।
कह प्रेमी कविराय धन्य हे भारतवासी।
इंलिश भारत लाय लगाई बेदन फाँसी।
(111)
गाँव शहर कूँचे गली इंलिश का है राज।
हिन्दी को बिसराय कर इंलिश हो सब काज।
इंलिश हो सब काज राज इंलिश का भारी।
माता को बिसराय कहें यह माँम हमारी।
कह प्रेमी कविराय पिता को डैड बुलाते।
भूले बेद पुरान जिसे सब शीश झुकाते।
(112)
नत मस्तक है हिन्द को हिन्दी को सम्मान।
शान तिरंगा हिन्द की हिन्दी जिसकी जान।
हिन्दी जिसकी जान मान है जग मे ऊँचा।
वीरों को सम्मान जान दे जिनने सींचा।
कह प्रेमी कविराय तिरंगा मान हमारा।
जय हो भारत वीर अमर गुणगान तुम्हारा।
(113)
क्या मिला इस देश को नोट बन्द दरम्यान।
दिया नहीं सरकार ने जनता को कुछ ज्ञान।
जनता को कुछ ज्ञान भ्रम मे जनता सारी।
कह प्रेमी कविराय समझ मे कुछ न आया।
बिना वजह क्यों नोट बन्द सरकार कराया।
(114)
कागज का कागज रहा दिखा न कोई खोट।
सोना चाँदी न छपा बन्द हुआ जब नोट।
बन्द हुआ जब नोट जान जनता ने खोई।
कह प्रेमी कविराय कहे जनता दुखियारी।
जान बूझकर नोट बन्द जनता थी मारी।
(115)
घर घर मे तो हो रहा काले धन का खेल।
फिर भी लोभी राज मे गया न कोई जेल।
गया न कोई जेल एम पी न एम एल ए।
किसी के धन न पास सभी बिन पैसे खेलें।
कह प्रेमी कविराय भिखारी लगते ऐसे ।
करें सफर दिन रात विश्व मे ये बिन पैसे।
(116)
सोच समझकर कीजिए नेताओं पर गौर।
बिन पैसे कैसे बने पोर और महापौर।
पोर और महापौर ये पैसा कहाँ से आया।
कह प्रेमी कविराय करें यह कहाँ कमाई
नित्य करें अपराध हनें जनता को जाई
(117)
नहीं मिला न मिल सके मन्त्री जी का राज।
नोट बन्द दरम्यान मे रूका न कोई काज।
रूका न कोई काज इलक्शन खूब लड़ाया।
कह प्रेमी कविराय हुई न कोई हानी।
काला किया सफेद पहनकर कुर्ता धानी।
(118)
निर्धन भूखा सो रहा पैर पसारे दंग।
नित प्रताड़ित हो रहा लगा लाईन मे नंग।
लगा लाईन मे नंग खुशी प्रसाशन भारी।
कह प्रेमी कविराय नहीं पैसा मिल पाया।
कहे मन्त्री यही सही अभियान चलाया।
(119)
खाली होगा ए टी एम बैंक रहेगी बन्द।
जनता को दो आसरा रूपये दिखाकर चन्द।
रूपये दिखाकर चन्द बनाओ इक दल ऐसा।
हमें जिताओ यार सभी को मिलेगा पैसा।
कह प्रेमी कविराय तड़प जब ये जायेंगे।
खुशी खुशी फिर नेंताओं के गुण गायेंगे।
(120)
प्रसारण होता रहा सुनो सभी मन बात।
साहस को खोना नहीं कहते मन्त्री बात।
कहते मन्त्री बात साथ सब मिलकर देना।
कह प्रेमी कविराय भ्रम मे तुम न रहना।
मन्दिर मसला सुलझ गया चिंता मत करना।
(121)
नैना खोल निहारिये देख जगत की रीति।
भ्रमित जनता को करें अपनी चाहें जीत।
अपनी चाहें जीत कहें सब साथ चलेंगे।
ऊँच नीच सब दूर सभी मिल साथ चलेंगे।
कह प्रेमी कविराय देत जनता को धोका।
जाति पाति कुल वर्ण जगत मे किसने रोका।
(122)
जाति पाति कुल वर्ण मे उझला हिन्दुस्तान।
दुशमन आगे बढ़ रहा अपना सीना तान।
अपना सीना तान मान सबका खोता है।
आपस होय विवाद दोस्तो दुख होता है।
कह प्रेमी कविराय नींद से जागो प्यारे।
रखो सुरक्षित देश भगा दो दुशमन सारे।
(123)
जन्म मरन सब एक है एक है विधि विधान।
चन्दा सूरज एक है एक हैं सब इन्सान।
एक हैं सब इन्सान सभी मानव के जाये।
फिर क्यों मानव जाति पाति फँस धक्के खाये।
कह प्रेमी कविराय समय को समझो भाई।
जाति पाति फँस नहीं किसी की होत भलाई।
(124)
प्यारा हिन्दुस्तान है प्यारे इसके लोग।
मानव मानव एक है वुद्धि का संजोग।
वुद्धि का संजोग समझ जो कम पाते हैं
जाति पाति मे फँसे भँवर गोता खाते हैं।
कह प्रेमी कविराय हाट न विकती वुद्धि।
पा शिक्षा को करो आत्मा अपनी शुद्धि।
(125)
हरियाली गैंया चरै हन्सा मोती खाय।
चतुर श्वान घर घर फिरै लाठी डन्डे खाए।
लाठी डन्डे खाय चतुरता काम न आवे।
करे न कुल पहचान भौंक अपने पे जावे।
कह प्रेमी कविराय वफा मालिक की करता।
फिर भी साँकल बीच बँधा चौखट पर रहता।
(126)
सीमा को सीमित करो जान समय का हाल।
करें नौकरी सर्वजन सीमा हो दस साल।
सीमा हो दस साल बन्द सुविधाएं सारी।
खुशी करें सब काम देश मे बारी बारी।
कह प्रेमी कविराय समय को समझो भाई।
तीस साल के बादे क्या चच्चा करें कमाई।।
(127)
बाल पके सिर हिल रहा नजर गई धुँधलाय।
ढूढें अक्षर न मिले आँफिस बैठि लजाय।
आँफिस बैठि लजाय काम चपरासी करता।
लेकर डिग्री हाथ रोड मे युवक फिरता।
कह प्रेमी कविराय नियम यह समझ न आये।
चच्चा करे मौज भतीजा धक्के खाये।
(128)
सोना से मिट्टी तलक उगा रहा है हिन्द।
फिर भी हिन्दुस्तान मे नित्य मचे प्रतिद्वन्द।।
नित्य मचे प्रतिद्वन्द भुखमरी पैर पसारे।
लाखों युवक खड़े राह मे झोली डारे।
कह प्रेमी कविराय धन्द हे भारत वासी।
कुर्सी पाने हेतु लगाई जनतय फाँसी।
(129)
पीने को पानी नहीं खाने को नहीं नाज।
फिर भी डालर गिन रहे विश्व बीच कई राज।
विश्व बीच कई राज वो ऐसा क्या करते हैं।
हिन्द उगाये अन्न तिजोरी वो भरते हैं।
कह प्रेमी कविराय सीख कुछ सीखो प्यारे।
छोड़ो सारे भेद टेक्निक सीखो सारे।
(130)
संस्कार नित साधना सीखे हिन्द महान।
फिर भी पैदा हो रहे हिन्द बीच शैतान।
हिन्द बीच शैतान जियें न जीने देते।
रूद्राक्ष जप करे शाम नित मदिरा पीते।
कह प्रेमी कविराय हिन्द ऋषियों रजधानी।
मदिरा मुफ्त विकाय मिले पैसे से पानी।
(131)
मघपान अशलीलता रोग कैंसर जान।
दूर हटे सब हिन्द से होगा तभी महान।
होगा तभी महान फलेगा बच्चा बच्चा।
विश्व बीच मे हिन्द रहेगा सबसे अच्छा।
कह प्रेमी कविराय खिले घर घर फुलवारी।
मिट जायेंगे सभी उचक्के चोर जुआरी।
(132)
बिन दर्पण चेहरा लखै लखै गरीबी ज्ञान।
मूर्ख गर धनवान हो कहते लोग महान।
कहते लोग महान दन्डबत सब करते हैं।
वुद्धि को सत्कार लोग कुछ कम करते हैं।
कह प्रेमी कविराय समझ जो कम पाते हैं।
शिक्षा को विसराप लक्ष्मी को ध्याते हैं।
(133)
जन हित में लड़ियाँ लिखूँ ईश्वर का आशीष।
ईश्वर का आशीष पढो सब लुत्फ उठाओ।
शब्द शब्द आशीष ज्ञान की शिक्षा पाओ।
कह प्रेमी कविराय समझ शब्दों की बानी।
पढ लिख बने महान शब्द जो महिमा ज्ञानी।
(134)
शब्द शब्द मे ज्ञान है शब्द शब्द सम्मान।
शब्द बनायें सारथी शब्द बढायें मान।
शब्द बढायें मान जान शब्दों की बानी।
शब्द अध्यन किये बने सब ऋषि मुनि ज्ञानी।
कह प्रेमी कविराय पठन पाठन दोऊ न्यारे।
ज्ञानी को विचार शब्द नित सत्य उचारे।
(135)
बाबा बैठे कुन्ड पर करें मन्त्र उच्चार।
अगल बगल मे स्त्री खड़ी दिखें दो चार।
खड़ी दिखें दो चार आरती थाल सजाये।
भगवा ओढे रंग होंठ लाली चमकाये।
कह प्रेमी कविराय भक्ति का मर्मन जानें।
माया मे सब लीन हरि का नाम न जानें।
(136)
नफ अगारी टाईटल ईर्ष्या का संकेत।
हिन्दू हो हिन्दू रहो वुद्धि करो विवेक।
वुद्धि करो विवेक सभी हम हिन्दुस्तानी।
जाति वर्ण कुल छोड़ वनो सब हिन्दुस्तानी।
कह प्रेमी कविराय न झगड़ो आपस भईया।
हिन्दू हिन्दू एक करो न थुक्कम थईया।
(137)
मानव मानव एक है दूजी पशुआ जाति।
मानव मे जाति नहीं झगड़ रहे वे बात।
झगड़ रहे वे बात हिन्द मे सब नर नारी।
नेता मारें मौज कष्ट मे जनता सारी।
कह प्रेमी कविराय वनो सब मानवता वादी।
मानव से कर प्रेम छोड़ दो जाति वादी।
(138)
यदि एकता न हुई मानव के दरम्यान।
तो जानो संसार का न होगा उत्थान।
न होगा उत्थान वैर बढता जाएगा।
अपना दुशमन आप बना जग पछतायेगा।
कह प्रेमी कविराय समय कि परख को परखो।
छोड़ो आपस फूट चाल दुशमन की परखो।
(139)
न आरक्षण माँगते न माँगे रोजगार।
मेहनत कर धन्धा करें पाल रहे परिवार।
पाल रहे परिवार हिन्द में मुस्लिम भाई।
आजादी की जंग बराबर जान गँबाई।
कह प्रेमी कविराय हिन्द थे हिन्दू भाई।
जाति वादी तो कभी आरक्षण करे लड़ाई।
(140)
सोंचो दुशमन कौन है जरा हिन्द के बीच।
हिन्दू हिन्दू से कहे मैं ऊँचा तू नीच ।
मैं ऊँचा तू नीच पास मेरे मत आना।
जाति पाति में फँसा फिरे हिन्दू दीवाना।
कह प्रेमी कविराय धर्म टुकड़े हो बैठा।
ऊँच नीच का भेद गले साँकल बन बैठा।
(141)
कोई कहे हम क्षत्री भुजा हुआ अवतार।
कोई कहे व्रहम ज्ञान से रचा गया संसार।
रचा गया संसार जातियाँ हरि बनाये।
हरि बिन होय न काज गुरु व्रहाम्ण बतलाये।
कह प्रेमी कविराय झूठ सब लेत सहारा।
वुद्धि करो विवेक जन्म माँ एक सहारा।
(142)
बिन माँ के फलता नहीं बीज कोई संसार।
बिन माँ जाये जगत में कौन हुआ अवतार।
कौन हुआ अवतार कहो कुछ मुँह तो खोलो।
बिन माँ जन्मा लाल पाखंडी एक तो ले लो।
कह प्रेमी कविराय बताओ कहाँ मिलेगा।
बिन डाली का फूल बताओ कहाँ खिलेगा।
(143)
त्रेता में श्रीराम नें मर्यादा अपनाय ।
सबक दिया संसार को यश वैभव को पाय।
यश वैभव को पाय मुशीबत सारी झेली।
सीता सी सुखमार संग बन पति के खेली।
कह प्रेमी कविराय सबक श्रीराम से सीखो।
मर्यादा अपनाय करो कुछ जग में नीको।
(144)
मर्यादा की लाज रख चले गये बनबास।
राज पाठ मन त्याग कर माँ सीता ले साथ।
माँ सीता ले साथ साथ लक्ष्मण सा भाई।
भाई हित त्याग राज्य की सुधि बिसराई।
कह प्रेमी कविराय धन्य दशरथ के लाला।
मर्यादा अपनाय धन्य जीवन कर डाला।
(145)
पंचवटी पंचदेव का कर सुमिरन श्री राम।
माता पिता का नाम ले बैठ गए श्री राम।
बैठ गए श्री राम अधिक मन में हर्षाते।
देखे लक्ष्मण भ्रात बात कुछ समझ न पाते।
कह प्रेमी कविराय बात वो अन्तर मन की।
श्री राम मन करें स्तुति सब देवन की।
(146)
मौन अवस्था छोड़ जब खड़े हुए श्री राम।
दर्शन को श्री राम के आने लगी अवाम।
आने लगी अवाम शेर चीता और भालू।
जामवन्त जय करें प्रभु तुम हो कृपालु।
कह प्रेमी कविराय अजब प्रभु की लीला।
पशु पक्षियो के बीच बनाया कुटुम कवीला।
(147)
अन वन को मन त्याग कर मिल बैठे सब लोग।
कन्द मूल फल खा रहे लगा हरि का भोग।
लगा हरि का भोग खुशी मन लुत्फ उठायें।
दादुर गाये राग मोर नित नृत्य दिखाये।
कह प्रेमी कविराय मग्न तब तीनों प्राणी।
राज्य त्याग मन हर्ष धन्य वन खड़ के प्राणी।
(148)
रामचंद्र से कह रहीं सीता सी सुखमार।
लक्ष्मण सा भाई नहीं त्याग दिया परिवार।
त्याग दिया परिवार राज्य के सब सुख त्यागे।
कन्द मूल फल खाँय महल के भोजन त्यागे।
कह प्रेमी कविराय नमन लक्ष्मण सा भाई।
नमन करुँ श्री राम नमन सीता सी माई।
(149)
समय नजारा देखकर तपसे हुए महान।
दर्शन पा श्री राम के हो गए अन्तर ध्यान।
हो गए अन्तर ध्यान धन्य वो तपसी बनके।
त्याग गए संसार स्वर्ग की सीढी चढ़के।
कह प्रेमी कविराय सत्य का एक सहारा।
नित्य जपो श्री राम पार हो भव का द्वारा।
(150)
चारो तरफ जंगल घना बीच कुटी वनवाय।
पंचवटी सा नाम दे श्री राम मुस्काय।
श्री राम मुस्काय साथ में जनक दुलारी।
सुन्दर सा मुख चन्द्र चमक दतियन की न्यारी।
कह प्रेमी कविराय देव अति मन हर्षाये।
प्रेमी सुन्दर हाल कुटी का कहा न जाए।
(151)
आँगन कुटिया के खिले भाँति भाँति के फूल।
विविध रंग खुशबू लिए लगा फूल में शूल।
लगा फूल में शूल मनोहर जिसकी डाली।
देख देख हर्षाये खड़ा वगिया का माली।
कह प्रेमी कविराय कर्म विधि न्यारी न्यारी।
फूल तोड़ मुस्काय शूल से जगत दुलारी।
(152)
फूल शूल दोऊ एक से लौग एक ही डार।
फूल मनोरथ कामना शूल देत दुतकार।
शूल देत दुतकार विश्व के सब नर नारी।
एक जनक इक साख दोऊ की करनी न्यारी।
कह प्रेमी कविराय दोऊ मानव हितकारी।
फूल चरण भगवान शूल से शूल दुखारी।
(153)
राम सिया तो कह रहे पंचवटी गुणगान।
देवो के मुख हो रहा श्री राम गुणगान।
श्री राम गुणगान स्तुति जनक दुलारी।
सिये न देखो और सिया दुर्गा महतारी।
कह प्रेमी कविराय स्तुति नमन वन्दना।
माँ कृपा जिस द्वार लगे वहाँ कोई फन्दा ना।
(154)
कृष्ण कन्हैया ने लिया जेल बीच अवतार।
पित्र वासु ले गए तुरंत नन्द के द्वार।
तुरंत नन्द के द्वार नन्द अति मन हर्षाये।
धन्य नन्द दरबार प्रभु के दर्शन पाये।
कह प्रेमी कविराय धन्य जशोदा सी माई।
दे नारायण जन्म धर्म की लाज बचाई।
(155)
कन्स खड़ा सन्मुख लिये हाथ तलवार।
पित्र वसुदेव कह रहे विटिया है सरकार।
विटिया है सरकार वख्स दो राम दुहाई।
क्ररुर कन्स मन तनिक जरा भी दया न आई।
कह प्रेमी कविराय झपट विटिया को लाया।
ऊपर दई उछाल अधिक मन में हर्षाये।
(156)
अम्बर से बिटिया कहे सुनो कन्स अधिराज।
मृत्यु को स्वीकार लो हार हो गई आज।
हार हो गई आज नष्ट तू होने बाला।
पहुँचा नन्द द्वार कन्हैया मुरली बाला।
कह प्रेमी कविराय नहीं कुछ कर पायेगा।
देख कन्हैया रुप देख तू मर जायेगा।
(157)
जाती हूँ लेकर तेरा मौंत भरा फरमान।
नन्द द्वारे हो रहा कान्हा का गुणगान।
कान्हा का गुणगान दरस को अँखियाँ तरसें।
नगर मंलाचार पुष्प गलियन में बरसें।
कह प्रेमी कविराय खुशी सब नगर निबासी।
चरण झुकाले शीश कटेगी जम की फाँसी।
(158)
अम्बर से आगाज कर चली गई हर्षाय।
कन्स चेतावनी दे गई कन्स रहा घबराय।
कन्स रहा घबराय मौंत डर थर थर काँपे।
सेना को बुलबाय सभी की शक्ति भाँपे।
कह प्रेमी कविराय कन्स के अंगना जाओ।
किस बिधि बाजे ढोल जरा कुछ पता लगाओ।
(159)
सेना ने दर्शन किये हरि रहे मुस्काय।
हाथ अंगूठा मुँह लगा लार रहे टपकाय।
लार रहे टपकाय हरि का रुप निराला।
कभी रुप अनरुप कभी मुख चमके ज्बाला।
कह प्रेमी कविराय समझ में कुछ न आया।
सेनापति घबराय बहाँ से बापस आया।
(160)
सेनापति नें कन्स को बता दिया बिस्तार।
कन्स भयाभय हो गया करनें लगा बिचार।
करनें लगा बिचार पूतना को बुलबाया।
मारन हेतु गोपाल दूध पे बिष लगबाया।
कह प्रेमी कविराय हरि की महिमा न्यारी।
बिष पीकर गोपाल पूतना जान से मारी।
(161)
कभी किया न कर सका ईशवर का गुणगान।
जनता में करता रहा अपना ही गुणगान।
अपना ही गुणगान धन्य अपने को माना।
अहम किया न दूर हरि का र्मम न जाना।
कह प्रेमी कविराय कर्म सब उल्टे कीनें।
सोये पैर पसार प्राण हरि नें हर लीनें।
(162)
पैदल चल साईकल चले साईकल से अब कार।
कार देख हैरान हैं खत्म हुआ दिल प्यार।
खत्म हुआ दिल प्यार मार निर्धन को जाते।
कार हुए असबार नजर न निर्धन आते।
कह प्रेमी कविराय अहम दिल माहीं सताता।
निर्धन को दुत्कार उन्हें मूरख बतलाता।
(163)
निर्धन तो मूरख बना सहता है हर बात।
साहू जग देता नहीं कभी किसी का साथ।
कभी किसी का साथ हाथ नित जनता जोडे।
चूक करें धनबान बरसते निर्धन कोडे।
कह प्रेमी कविराय जगत की माया उल्टी।
पल भर में खा जये जुबाँ साहू की पल्टी।
(164)
समय और संसार का अजब निराला खेल।
दोनों में दिखता नहीं हो पायेगा मेल।
हो पायेगा मेल समय की लीला न्यारी।
समझ समय के साथ बिगड गई दुनियां सारी।
कह प्रेमी कविराय वेष भूसा धो डाली।
बस्त्र हुये अब शस्त्र देखकर हँसे मवाली।
(165)
नत मस्तक कर हिन्द को मात्र भूमि सम्मान।
शान तिरंगा हिन्द की राष्टगान गुणगान।
राष्टगान गुणगान ध्वजा जग माहीं निराली।
विविध नाम रंग रुप खिली है डाली डाली।
कह प्रेमी कविराय नहीं कोई ऊँचा नींचा।
आजादी की जंग लहू दे सबने सींचा।
(इति समाप्तम)
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