जख़्म दिल के हरीश कुमार 'अमित' 11 ग़ज़लें ग़ज़ल कैसे हैं ये सारे लोग, जैसे ग़म के मारे लोग। ऊपर से दिखते हैं ख़ुश, अन्दर से दुखिया...
जख़्म दिल के
हरीश कुमार 'अमित'
11 ग़ज़लें
ग़ज़ल
कैसे हैं ये सारे लोग,
जैसे ग़म के मारे लोग।
ऊपर से दिखते हैं ख़ुश,
अन्दर से दुखियारे लोग।
दूजों को धकेल पानी में,
ख़ुद बैठे हैं किनारे लोग।
अपने मतलब की ख़ातिर तो,
झट बिक जाएँ हमारे लोग।
आएगा वह दिन कब जाने,
सब ही लगेंगे प्यारे लोग।
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ग़ज़ल
अपना-अपना मुकद्दर है यारों,
कभी रेशम, कभी खद्दर है यारों।
कभी होते हैं पास सभी सुख,
फटी होती कभी चद्दर है यारों।
अपने हिस्से बस उनकी नाराज़गी,
शायद नसीब का चक्कर है यारों।
ज़िन्दगी देती ख़ुशियाँ भी बहुत,
न कहो यह सितमगर है यारों।
लुटा दिया दिल हमने अपना उन पर,
बात यही सबके लब पर है यारों।
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ग़ज़ल
काग़ज़ पे लिखी लकीर है ज़िन्दगी,
कभी ख़ुशी, कभी पीर है ज़िन्दगी।
चन्द लोगों के लिए तो है रेशम,
बाकी के लिए फटा चीर है ज़िन्दगी।
इसी का ही दूजा नाम संघर्ष है,
आसान नहीं, टेढ़ी खीर है ज़िन्दगी।
ले जाएगी न जाने किन रस्तों पर,
नहीं मील-पत्थर, राहगीर है ज़िन्दगी।
बदल सकती मेहनत के पसीने से,
नहीं महज़ इक तक़दीर है ज़िन्दगी।
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ग़ज़ल
हर जगह उलझन मिली है दोस्तों,
ज़िन्दगी में खलबली है दोस्तों।
ऐसा नहीं कि कहने को कुछ है नहीं,
क्या करें पर ज़ुबान सिली है दोस्तों।
दूसरों के वास्ते हैं शीशमहल,
अपने लिए पिछली गली है दोस्तों।
सच कहने की पाई है कैसी सज़ा,
जो ज़ुबान अपनी छिली है दोस्तों।
चाह हमें न है सुख के साज़ों की,
भाती हमें तो मुफलिसी है दोस्तों।
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ग़ज़ल
ज़िन्दगी के मायने बदल गए यारों,
मतलब के वास्ते सब मचल गए यारों।
हम तो चलते रहे उसी रफ़्तार से,
पर दूजे बहुत आगे निकल गए यारों।
झूठ-फ़रेब के चिकने रास्ते पर,
हम चल न सके, फिसल गए यारों।
इस बेरहम वक़्त के अंधे थपेड़े,
अरमान सब अपने कुचल गए यारों।
रिश्तों में प्यार रह ही गया कहाँ,
रिश्ते प्यार के पिघल गए यारों।
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ग़ज़ल
किस पर एतबार करे आदमी,
अब किस से प्यार करे आदमी।
धोखे-छल-कपट की दुनिया में,
कैसे सच का इज़हार करे आदमी।
सच-ईमान की बची हैं बस यादें,
झूठ का अब व्यापार करे आदमी।
दे नहीं सकता ख़ुशियाँ दूजों को,
अब औरों को बीमार करे आदमी।
काश, हो जाए ऐसा इस जहान में,
भूल नफ़रत, बस प्यार करे आदमी।
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ग़ज़ल
देखिए, उनके अंदाज़ बहुत निराले हैं,
दिखते उजले पर अन्दर से काले हैं।
मेरे दिल को टटोलना ज़रा ध्यान से,
इस पर उगे हुए बहुत-से छाले हैं।
सच कहने की मिली सज़ा यह हमको,
दोस्त नहीं, दुश्मन ही हमने पाले हैं।
तुम मुझको तब तक समझ न पाओगे,
भरे दिमाग़ में जब तक तुम्हारे जाले हैं।
कैसे दिल की बात ज़ुबां पर लेकर आएँ,
कितने-कितने तो लगे मुँह पे ताले हैं।
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ग़ज़ल
दुनिया के रंग हमने बड़े निराले देखे,
बाहर से उजले, भीतर से काले देखे।
देखे हमने स्याह अंधेरे फैले ज़िन्दगी पर,
मौत पर लेकिन अनगिनत उजाले देखे।
झूठ की देखी जय-जयकार हर जगह पर,
सच के मुँह पर मन-मन के ताले देखे।
दिखा न कहीं कोई सच का गवाह हमें,
झूठ के लिए मगर दसियों हवाले देखे।
लुटती इज़्ज़त बचानेवाला न मिला कोई,
पर इज़्ज़त के लुटेरों के कई रखवाले देखे।
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ग़ज़ल
यह सच है कि मैं कोई गुनहगार नहीं हूँ,
पर आपकी नज़रों का भी तो प्यार नहीं हूँ।
बुझ गया है दिल कुछ इस तरह से अपना,
किसी के वास्ते भी अब बेक़रार नहीं हूँ।
देखता ज़माना मुझे भी अच्छी निगाहों से,
लेकिन दौलत की हवस का बीमार नहीं हूँ।
शेख़ी है आपकी कि पानी हर घाट का पिया,
पर माफ़ कीजिए, मैं हुस्न का ख़रीदार नहीं हूँ।
सह जाए जो ज़ुल्म-ओ-सितम को चुपचाप,
कुछ भी कहिए, मैं इतना जीदार नहीं हूँ।
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ग़ज़ल
ज़िन्दगी मेरी है प्यासे सावन की तरह,
हो गई यह जैसे उजड़े चमन की तरह।
जी अपना कर लिया हमने इतना मजबूत,
विरह भी अब तो लगती है मिलन की तरह।
सीख लिया जब से उसने ग़मों पर हँसना,
तब से उड़ता फिरता है पवन की तरह।
लोग बाज़ नहीं आए झूठे रिश्ते गढ़ने से,
चाहे मानता था वह उसे बहन की तरह।
अश्कों से तरबतर थीं माँ-बाप की आँखें,
देखा अपनी बेटी को जब दुल्हन की तरह।
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ग़ज़ल
बड़े तन्हा-तन्हा-से हो गए हैं हम,
जाने क्या-से-क्या हो गए हैं हम।
दुनिया की मदहोश भूलभुलैया में,
न चाहते हुए भी खो गए हैं हम।
बदल न पाए इस ज़माने का जब,
अपने आप में ही खो गए हैं हम।
उगी नहीं है फसल अभी तक चाहे,
बीज आदर्शों के बो गए हैं हम।
बची है हिम्मत फिर भी बहुत बाकी,
न समझना थक के सो गए हैं हम।
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परिचय
नाम हरीश कुमार ‘अमित’
जन्म 1 मार्च, 1958 को दिल्ली में
शिक्षा बी.कॉम.; एम.ए.(हिन्दी); पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा
प्रकाशन 700 से अधिक रचनाएँ (कहानियाँ, कविताएँ/ग़ज़लें, व्यंग्य, लघुकथाएँ, बाल कहानियाँ/कविताएँ आदि) विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित. एक कविता संग्रह 'अहसासों की परछाइयाँ', एक कहानी संग्रह 'खौलते पानी का भंवर', एक ग़ज़ल संग्रह 'ज़ख़्म दिल के', एक बाल कथा संग्रह 'ईमानदारी का स्वाद', एक विज्ञान उपन्यास 'दिल्ली से प्लूटो' तथा तीन बाल कविता संग्रह 'गुब्बारे जी', 'चाबी वाला बन्दर' व 'मम्मी-पापा की लड़ाई' प्रकाशित. एक कहानी संकलन, चार बाल कथा व दस बाल कविता संकलनों में रचनाएँ संकलित.
प्रसारण - लगभग 200 रचनाओं का आकाशवाणी से प्रसारण. इनमें स्वयं के लिखे दो नाटक तथा विभिन्न उपन्यासों से रुपान्तरित पाँच नाटक भी शामिल.
पुरस्कार-
(क) चिल्ड्रन्स बुक ट्रस्ट की बाल-साहित्य लेखक प्रतियोगिता 1994, 2001, 2009 व 2016 में कहानियाँ पुरस्कृत
(ख) 'जाह्नवी-टी.टी.' कहानी प्रतियोगिता, 1996 में कहानी पुरस्कृत
(ग) 'किरचें' नाटक पर साहित्य कला परिाद् (दिल्ली) का मोहन राकेश सम्मान 1997 में प्राप्त
(घ) 'केक' कहानी पर किताबघर प्रकाशन का आर्य स्मृति साहित्य सम्मान दिसम्बर 2002 में प्राप्त
(ड.) दिल्ली प्रेस की कहानी प्रतियोगिता 2002 में कहानी पुरस्कृत
(च) 'गुब्बारे जी' बाल कविता संग्रह भारतीय बाल व युवा कल्याण संस्थान, खण्डवा (म.प्र.) द्वारा पुरस्कृत
(छ) 'ईमानदारी का स्वाद' बाल कथा संग्रह की पांडुलिपि पर भारत सरकार का भारतेन्दु हरिश्चन्द्र पुरस्कार, 2006 प्राप्त
(ज) 'कथादेश' लघुकथा प्रतियोगिता, 2015 में लघुकथा पुरस्कृत
(झ) 'राष्ट्रधर्म' की कहानी-व्यंग्य प्रतियोगिता, 2016 में व्यंग्य पुरस्कृत
(ञ) 'राष्ट्रधर्म' की कहानी प्रतियोगिता, 2017 में कहानी पुरस्कृत
सम्प्रति भारत सरकार में निदेशक के पद से सेवानिवृत्त
पता - 304, एम.एस.4, केन्द्रीय विहार, सेक्टर 56, गुरूग्राम-122011 (हरियाणा)
ई-मेल harishkumaramit@yahoo.co.in
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