01 माँ बेटी बीवी बहन, सब नारी के रूप। नर पर सब छाया करें, दूर करें सब धूप।। 02 नारी की गहराइयाँ, जान सके नहिं भूप। जग को शीतल नीर दे, जैसे ...
01
माँ बेटी बीवी बहन, सब नारी के रूप।
नर पर सब छाया करें, दूर करें सब धूप।।
02
नारी की गहराइयाँ, जान सके नहिं भूप।
जग को शीतल नीर दे, जैसे होता कूप।।
03
नारी का सम्मान ही, नर का है सम्मान।
नारी बिन होता नहीं, पुरुष कभी महान।।
04
नारी से पैदा हुए, दोनों राम-रहीम।
हिन्दू मुस्लिम सिख सभी, पैदा हुए करीम।।
05
नारी के मन की व्यथा, सुनता है अब कौन।
है बड़ी विडम्बना, संसद भी है मौन।।
06
काम बुरे होते रहे, फिर भी आँखें बंद।
कैसी ये सरकार है, केवल करती द्वंद।।
07
जीवित इस संसार में, लेकर तेरा नाम।
आओ अब सुधार करो, सारे बिगड़े काम।।
08
अद्भुत है संसार में, माँ का प्यार महंत।
होती है शुरुआत पर, होता कभी न अंत।।
09
माँ की ममता से भरा, अद्भुत यह संसार।
खुद भूखी देती रही,बच्चों को आहार।
10
खा जाता इंसान को,मगरमच्छ-सा काल।
जो भी कर ले आदमी, इसे न सकता टाल।।
11
मीत कभी समझो नहीं, जीवन को अभिशाप।
जो ऐसा समझे यहाँ, नीरस होते आप।।
12
आशाओं के दीप को, जला रखो मनमीत।
जिसे निराशा हो यहाँ, मिले उसे कब जीत।।
13
चाहे कछुआ तुम बनो, चाहे हो खरगोश।
जीत उसी की हो सदा, रखे जोश में होश।।
14
साक्षर होकर भी यहाँ, करते ऐसे काम।
होती उनकी भर्त्सना,होते हैं बदनाम
15
हम तो तेरे हो गये, देखा जो अंदाज।
तेरे इस अंदाज में, छुपा हुआ क्या राज।।
16
आई बात गरीब की, हुए सभी खामोश।
बात अमीरों की चली, आया सबको जोश।।
17
जिनके दिल में प्रेम की, जले हमेशा आग।
कुछ भी कर सकता नहीं, द्वेष कपट का नाग।।
18
खुशबू देता ही रहा, जीवन भर इक फूल।
जीवन है उपकार हित, मानव जाता भूल।।
19
सुखी वही संसार में, पास अगर संतोष।
क्यों अपने दुख के लिए, औरों को दें दोष।।
20
मात-पिता संसार में, बच्चे पाले चार।
बच्चों से इक बाप-माँ, पले नही क्यों यार।।
21
अंजाने में भूल हो, कहते नहीं कसूर।
करो नहीं उस व्यक्ति को, अपने दिल से दूर।।
22
कर देना उसको क्षमा, होगा अच्छा काम
तभी तुम्हारा साथ वह, देगा फिर निष्काम।।
23
मरने पर भी चाहिए, कांधे हमको चार।
कहता इसलिए महंत, रख अच्छा व्यवहार।।
24
झूठा झूठे से कहे, अब तो कुछ सच बोल।
अंधे से अंधा कहे, जैसे आँखें खोल।।
25
मरना सबको एक दिन, जीवन की ये रीत।
मानव कब यमराज से, पाया है रे जीत।।
26
चंचलता को त्याग कर, अपने मन को साध।
ईश्वर से मिलने तभी, राह मिले निर्बाध।।
27
तुम नींदा करते रहो, हमको करना काम।
होता केवल काम से, जग में सबका नाम।।
28
मिट्टी में मिलने चला, मिट्टी बनकर आज।
मिट्टी ही है जिंदगी, और नहीं कुछ राज।।
29
सागर में जल है भरा, लेकिन बुझे न प्यास।
इसी तरह धनवान के, धन का करो न आस।।
30
सावन में काली घटा, छाती है जब यार।
तब-तब प्रियतम की मुझे, बहुत सताए प्यार।।
31
गोरी तेरी याद में, भूले लेना सांस।
नष्ट हुई सब हड्डियाँ, बचा हुआ था मांस।।
32
फूलों के रस से भरा, होता जैसे इत्र
वैसे मन आनंद से, भरा हुआ हो मित्र।।
33
फूलों के हर बाग में, भौरें करते शोर।
जाकर के तुम देख लो, कभी सुहानी भोर।।
34
गोरी तेरी याद में, गुजरे नहिं दिन-रात।
हरपल बस करता रहूँ, बस तेरी ही बात।।
35
सुंदर लगती और भी, जब वह जाती रूठ।
उसके बिन यह जिंदगी,जैसे लगती ठूँठ ।।
36
हार गए तो क्या हुआ, होना नहीं निरास।
एक हार के बाद ही, मिले जीत की आस।।
37
जीवन में आलस्य को, जो देता है त्याग।
खिलते हैं सुख के सुमन, घर बन जाता बाग।।
38
होता है जिसको सदा, ईश्वर पर विश्वास।
दुनिया में अक्सर वही, बन जाता है खास।।
39
आदत से मजबूर हो, करे बुरे जो काम।
दुनिया में अक्सर वही, होते हैं बदनाम।।
40
खुशबू दे सकते नहीं, यों कागज के फूल।
हो जो प्रेम बनावटी, मिटे न हिय को शूल।।
41
सोते-सोते थक गया, फिर भी नींद न आय।
ऐसी तृष्णा प्रीत की, कुछ भी समझ न आय।।
42
होशियार मत मानिए, जो आता है फस्ट।
ऐसे भी होते सफल, हुए अपोजिट जस्ट।।
43
पूजा करने से सदा, रहता है मन शांत।
दुनिया की इस जंग में, होता कभी न क्लांत।।
44
जो भी बाँटे दर्द को, सच्चा है वह मर्द।
देख नहीं सकता कभी, औरों पर वह गर्द।।
45
पड़ती है जब वक्त की, बड़ी भयानक मार।
हो जाता है आदमी, दुनिया में लाचार।।
46
रोक सको तो रोक लो, नारी की रफ्तार।
पहले के जैसी नहीं, वह अबला लाचार।।
47
होता वह मशहूर है, करता काम विशेष।
और नहीं रखता कभी, औरों से जो द्वेष।।
48
कभी जरूरत आ पड़े, धन की हे भगवान।
निर्धन को मजबूर तब, कर देते धनवान।।
49
कान पकड़कर प्रार्थना, करता रहे गरीब।
दुख मेरे जीवन कभी,आए नहीं करीब।।
50
दर्पण में देखो कभी, अंतस की तस्वीर।
अंदर से कितने बुरे, होते हैं तकदीर।।
51
तना जवानी को समझ, और बुढ़ापा मूल।
शाखा या पत्ती कहो, या बचपन को फूल।।
52
मरना सबको एक दिन,कौन यहाँ आबाद।
जीवन अपना हो सुखी, यही करो फरियाद।
53
लड़ना कितना है कठिन, जीवन की ये जंग।
लड़ते-लड़ते एक दिन, शिथिल हुए सब अंग।।
54
कोई भजता कृष्ण को, कोई भजता राम।
ईश्वर रूप अनेक हैं, भज लो भक्तों नाम।।
55
बचपन से ही जब रहे, राष्ट्र भक्ति के भाव।
बाद वही बनते युवा, तब भी रहे लगाव।।
56
बचपन में जो सीखते, औरों से जो सीख
बचपन में जो रुचि रहे, रहे वही फिर दीख।।
57
भौंरा कलियों से कहे, बनती हो जब फूल
मेरे अंतस में उठे, लाख करोड़ों शूल।।
58
बड़ा सुखद अहसास है, रहना प्रियतम संग।
उसके ही स्पर्श से, मन में उठे तरंग।।
59
उसको पागल कह रहे, दुनिया के सब लोग।
अपनी मर्जी से यहाँ, जो करता उद्योग।।
60
दिन को जो भी दिन कहे, रातों को जो रात।
दुनिया ऐसी बावरी, माने कभी न बात।।
61
डरना क्या है मौत से, मिनटों का है खेल।
जीवन है आफत बहुत, लगता कोई जेल।।
62
एक राशि से हैं बने, रावण हो राम।
दुश्मन सारे एक से, कृष्ण कंस सम नाम।।
63
दोहा मैं लिखता रहा, सोच सोचकर रोज।
करता रहता रात-दिन, उन शब्दों की खोज।।
64
करता है जो भी यहाँ, मुक्त हाथ से दान।
उसका इस संसार में, बढ़ जाता है मान।।
65
जिनको लगती ठोकरें, पकड़े अपने कान।
सच कहता हूँ आपसे,मर जाता अभिमान।।
66
इस दुनिया में कौन कब, आ जाएगा काम।
कोई कह सकता नहीं, पहले उसका नाम।।
67
सुंदर काया देखकर, इतराते जो मीत।
पछताते वे बाद में, गई जवानी बीत।।
68
शब्दों के संयोग से, रचता हूँ मैं गीत।
जो तुमको अच्छी लगे, वाह करो फिर मीत।।
69
हर कोई होता नहीं, जीवन में बेकार।
बंद घड़ी भी तो कहे,सहीं समय दो बार।।
70
टूट गरीबी में गया,था जो रिश्ता खास।
छोड़ अकेले चल दिए, पैसा जिनके पास।।
71
एक बार ही माँगता, जिसने लिया उधार।
देने वाला बाद में, माँगे बारम्बार।।
72
चिल्लाने से जो नहीं, हो सकते हैं काम।
निकले अक्सर मौन से, अच्छा - सा परिणाम।।
73
शिक्षक ऐसा दीप है,करता सदा प्रकाश।
तम रूपी अज्ञान का, कर देता है नाश।।
74
शिक्षक ही तो शिष्य का, निश्चित करे भविष्य।
शिक्षक के अनुसार ही,आगे बढ़ता शिष्य।।
75
अपने हित को देखते, दुनिया के कुछ लोग।
करते अपने स्वार्थ हित, औरों का उपयोग।।
76
लेकर आया द्वार पर, श्रद्धा के दो फूल।
ईश्वर अपने भक्त को, कभी न जाओ भूल।।
77
सबकुछ मेरे पास है, फिर भी बड़ा गरीब।
ईश्वर सारे खोल दो, बिगड़े अगर नसीब।।
77
जो झगड़ा करते रहे, मिले न उसको मान।
इसीलिए छोड़ो सदा,आपस के सब तान।।
78
चौखट छोटा ही भला, झुके जहाँ पर माथ।
सिखलाता विनम्र रहो, चाहे वैभव साथ।।
79
जिनके घर होते अगर, दीवारों के कान।
करते हैं वे लोग सब, अपने को बदनाम।।
80
जीवन दरिया आग का, जलते सब नर-नार।
कोई जलता द्वेष में, कोई करके प्यार।।
81
श्रम करके पैसा कमा, लाते हैं माँ-बाप।
उड़ा रहे बेगार में, कैसे बेटे आप।।
82
मंगल ही मंगल करो, हरो अमंगल ईश।
दंगल - दंगल हो रहा, जीवन में जगदीश।।
83
सास बहू में चल रहा, कैसा दंगल आज।
हिंसक पशुओं से भरा, लगता जंगल राज।।
84
पिता पुत्र में आपसी, छिड़ी हुई है जंग।
वाक बाण से कर रहे, इक दूजे को तंग।।
85
हिन्दी भाषा से सभी, ऐसा करिए प्यार।
हिन्दी में अभिव्यक्त हो, अपने सकल विचार।।
86
एकलव्य सी साधना, है हमको स्वीकार्य।
मगर अँगूठा भी नहीं ,देना हमको आर्य।।
87 अच्छा लगता है मुझे, उन लोगों साथ।
चलते हैं जो राह में, लेकर मेरा हाथ।।
88
जो अपने परिवार में, खींचा करते तंज।
होता सभी सदस्य को, अक्सर उनसे रंज।।
89
पूछेगें तुमसे खुदा, मिल जाओ जिस राह।
जीवन क्षणभंगूर है, फिर भी जीना चाह।।
90
ईश्वर में होते सभी, गुण मेरे मनमीत।
उनसे इस संसार में, सका न कोई जीत।।
91
ईश्वर में होता अगर,किंचित्त कोई दोष।
लोग सभी उनसे सदा,करते रहते रोष।।
92
दोष रहित होता अगर, मानव का संसार।
धरती पर होता सदा, गुण का ही विस्तार।।
93
मिलकर रहते साथ में, प्रेम भाव से मीत
द्वेष कपट छल त्यागकर, करते तब सब प्रीत।।
94
दुनिया चाहे रोक ले, रोक सके जो चाल।
चलता मैं तलवार पर, बनकर खुद ही ढाल।।
95
बातों - बातों में कभी, जब वह जाती रूठ।
ऐसी लगती है मुझे, जैसे पतझड़ ठूठ।।
96
दुनिया के इस भीड़ में, क्या मेरी पहचान।
कोई भी नहिं जानता, लगता सब वीरान।।
97
घर में होगी रोशनी, दिया जलाकर देख।
श्रम करने से हाथ की, मिट जाती है रेख।।
98
परवाना खुद को जला, हो जाता है भस्म।
सचमुच सच्चा प्यार है, परवाने सी रस्म।।
99
चढ़ चढ़कर गिरती रही, मकड़ी कितनी बार।
मिली सफलता भी उसे, हिम्मत हो बस यार।।
100
सुनकर देखो मौन की, होती है आवाज।
चिल्ला जो होते नहीं, हो जाते वे काज।।
101
नाव हमारी हो गई, जिस दिन दरिया पार।
मानव जीवन का हुआ, समझो की उद्धार।।
भाऊराव महंत
बालाघाट मध्यप्रदेश
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