ग़ज़ल दोस्त अपना ही दग़ा दे गया, न जाने ये कैसी सज़ा दे गया। नहीं था दुश्मन कोई भी हमारा, दोस्त ही दुश्मनी का मज़ा दे गया। जिसे चाहते थे, ...
ग़ज़ल
दोस्त अपना ही दग़ा दे गया,
न जाने ये कैसी सज़ा दे गया।
नहीं था दुश्मन कोई भी हमारा,
दोस्त ही दुश्मनी का मज़ा दे गया।
जिसे चाहते थे, जिसे पूजते थे,
धोखा हमें वही बेवफ़ा दे गया।
उनसे मुलाक़ात का देखो क्या असर,
कि पानी ही पूरा नशा दे गया।
तिरछी निगाहों से देखना उसका,
प्यार के शोलों को हवा दे गया।
-0-0-0-0-0-0-
ग़ज़ल
सच-सच बोलो तुम्हें मलाल क्या है,
ज़िन्दगी के बारे में ख़याल क्या है।
लूट-लूट कर ले गए बहुत कुछ दूजे,
ख़ाली जेब हो तुम, यह इन्द्रजाल क्या है।
झूठ और छल-कपट की इस दुनिया में,
जी सके सच उसकी मजाल क्या है।
हो गई इतनी तेज़ रफ़्तार ज़िन्दगी,
जाने न कोई, दूजों का हाल क्या है।
फैली है रंगत हर ओर लहू की अब,
ऐसे में भई यह गुलाल क्या है।
-0-0-0-0-0-0-
ग़ज़ल
तू मुझे अब आज कुछ कहने भी दे,
सारे मश्वरे पास अपने रहने भी दे।
न हो चाह हमें और ज़्यादा दौलत की,
है दुआ, ख़ुशियों के ख़ुदा गहने भी दे।
तेरी ख़ातिर कुछ भी कर सकते हैं हम,
अपना हर ग़म तू हमको सहने भी दे।
भरा है इन आँखों में अश्कों का सैलाब,
थोड़ा-थोड़ा-सा अब इसको बहने भी दे।
हमने की हैं कोशिशें नफ़रत मिटाने की बहुत,
नफ़रत की दीवार को अब ज़रा ढहने भी दे।
-0-0-0-0-0-0-
ग़ज़ल
रिश्ते सभी अजनबी हो गए हैं,
जुदा-जुदा सब आदमी हो गए हैं।
होते थे जो दो जिस्म एक जान,
वे जज़्बात तो कहीं खो गए हैं।
कहाँ रहीं बातें वादे निभाने की,
वादे तो सारे हवा हो गए हैं।
सबने दिया कुछ-न-कुछ हमको,
गर फूल नहीं काँटे तो दिए हैं।
अपने-अपने मतलब की ख़ातिर,
सबने बीज नफ़रत के बो दिए हैं।
-0-0-0-0-0-0-
ग़ज़ल
उनसे मुलाक़ात रही अधूरी,
दिल की हर बात रही अधूरी।
मिटा न सके हमारी ख़ुद्दारी,
उन्हें मलाल, मात रही अधूरी।
मिल न पाए उनसे सपनों में,
यूँ लग रहा रात रही अधूरी।
न जाने किस ख़याल में थे वे,
इश्क़ की बरसात रही अधूरी।
मिल न पाई नज़र भी ठीक से,
प्यार की सौग़ात रही अधूरी।
-0-0-0-0-0-0-
ग़ज़ल
दोस्तों से दोस्ती नहीं रह गई अब,
ज़िन्दगी ज़िन्दगी नहीं रह गई अब।
ख़ुशी को देखा नहीं है मुद्दत से,
ग़म के साथ-साथ वह बह गई अब।
उसने कहा नहीं कुछ भी ज़ुबान से,
नज़र लेकिन उसकी सब कह गई अब।
उससे मिलने की आस न रही बाकी,
अपनी ज़िन्दगी से दूर वह गई अब।
ज़िन्दा रहने का जो आख़िरी सहारा थी,
वही उम्मीद भी अपनी ढह गई अब।
-0-0-0-0-0-0-
ग़ज़ल
घुलता जा रहा है ज़हर ज़िन्दगी में,
तबाही का है आया पहर ज़िन्दगी में।
अभी तो तूने देखा ही क्या है,
अभी देखने हैं बहुत शहर ज़िन्दगी में।
इतनी भागदौड़ भी किसलिए आखि़र,
दो-चार पल तो ठहर ज़िन्दगी में।
शायद संवर पाएगी यह तभी जब तू,
बहाएगा पसीने की नहर ज़िन्दगी में।
इतना निराश मत हो यार ‘अमित’,
कभी तो आएगी ही लहर ज़िन्दगी में।
-0-0-0-0-0-0-
ग़ज़ल
ख़्वाबों को दफ़नाना सीखा,
जीते-जी मर जाना सीखा।
दिल में मचलें ग़म के तूफां,
फिर भी हमने मुस्काना सीखा।
जिस-जिसने बिसराया हमको,
उसकी याद बनाना सीखा।
दिल पे लगे हर इक ज़ख़्म को,
इस दुनिया से छुपाना सीखा।
दूजों की ख़ुशियों की ख़ातिर,
अपने घर को जलाना सीखा।
-0-0-0-0-0-0-
ग़ज़ल
ग़म से मुलाक़ात पुरानी है,
बड़ी उदास-सी ज़िन्दगानी है।
ज़ख़्म खा-खा के जिए हैं हम,
अपनी बस यही कहानी है।
हमारे शतरंजी खेल में यारों,
न कोई राजा न रानी है।
बहुत दिनों में उनको देखा,
लगा सूरत जानी-पहचानी है।
नींद रूठ गई है उनकी अब,
बेटी जो हो गई सयानी है।
-0-0-0-0-0-0-
परिचय
नाम हरीश कुमार ‘अमित’
जन्म 1 मार्च, 1958 को दिल्ली में
शिक्षा बी.कॉम.; एम.ए.(हिन्दी); पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा
प्रकाशन 700 से अधिक रचनाएँ (कहानियाँ, कविताएँ/ग़ज़लें, व्यंग्य, लघुकथाएँ, बाल कहानियाँ/कविताएँ आदि) विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित. एक कविता संग्रह 'अहसासों की परछाइयाँ', एक कहानी संग्रह 'खौलते पानी का भंवर', एक ग़ज़ल संग्रह 'ज़ख़्म दिल के', एक बाल कथा संग्रह 'ईमानदारी का स्वाद', एक विज्ञान उपन्यास 'दिल्ली से प्लूटो' तथा तीन बाल कविता संग्रह 'गुब्बारे जी', 'चाबी वाला बन्दर' व 'मम्मी-पापा की लड़ाई' प्रकाशित. एक कहानी संकलन, चार बाल कथा व दस बाल कविता संकलनों में रचनाएँ संकलित.
प्रसारण - लगभग 200 रचनाओं का आकाशवाणी से प्रसारण. इनमें स्वयं के लिखे दो नाटक तथा विभिन्न उपन्यासों से रुपान्तरित पाँच नाटक भी शामिल.
पुरस्कार-
(क) चिल्ड्रन्स बुक ट्रस्ट की बाल-साहित्य लेखक प्रतियोगिता 1994, 2001, 2009 व 2016 में कहानियाँ पुरस्कृत
(ख) 'जाह्नवी-टी.टी.' कहानी प्रतियोगिता, 1996 में कहानी पुरस्कृत
(ग) 'किरचें' नाटक पर साहित्य कला परिाद् (दिल्ली) का मोहन राकेश सम्मान 1997 में प्राप्त
(घ) 'केक' कहानी पर किताबघर प्रकाशन का आर्य स्मृति साहित्य सम्मान दिसम्बर 2002 में प्राप्त
(ड.) दिल्ली प्रेस की कहानी प्रतियोगिता 2002 में कहानी पुरस्कृत
(च) 'गुब्बारे जी' बाल कविता संग्रह भारतीय बाल व युवा कल्याण संस्थान, खण्डवा (म.प्र.) द्वारा पुरस्कृत
(छ) 'ईमानदारी का स्वाद' बाल कथा संग्रह की पांडुलिपि पर भारत सरकार का भारतेन्दु हरिश्चन्द्र पुरस्कार, 2006 प्राप्त
(ज) 'कथादेश' लघुकथा प्रतियोगिता, 2015 में लघुकथा पुरस्कृत
(झ) 'राष्ट्रधर्म' की कहानी-व्यंग्य प्रतियोगिता, 2016 में व्यंग्य पुरस्कृत
(ञ) 'राष्ट्रधर्म' की कहानी प्रतियोगिता, 2017 में कहानी पुरस्कृत
सम्प्रति भारत सरकार में निदेशक के पद से सेवानिवृत्त
पता - 304, एम.एस.4, केन्द्रीय विहार, सेक्टर 56, गुरूग्राम-122011 (हरियाणा)
ई-मेल harishkumaramit@yahoo.co.in
COMMENTS