कहानी // ग्रहण // हरीश कुमार ‘अमित’

SHARE:

ग्रहण हरीश कुमार ‘अमित’ ‘‘सुधीर, तुम पढ़ो.’’ कहते हुए मास्टर जी ने उसकी तरफ़ इशारा किया है. सुनते ही वह एकदम से हड़बड़ा गया है और बैंच से उठने ...

ग्रहण

हरीश कुमार ‘अमित’

image

‘‘सुधीर, तुम पढ़ो.’’ कहते हुए मास्टर जी ने उसकी तरफ़ इशारा किया है.

सुनते ही वह एकदम से हड़बड़ा गया है और बैंच से उठने की कोशिश करने लगा है. मगर हड़बड़ाहट ने उसका संतुलन थोड़ा-सा बिगाड़ दिया है और वह अपने साथ बैठे लड़के पर गिरते-गिरते बचा है. एक हाथ में अंग्रेजी की किताब थामे, दूसरे हाथ से डेस्क का सहारा लेकर वह खड़ा हो गया है.

इस बात पर क्लास के सभी लड़के ख़ामोश बैठे रहे हैं, पर उसके साथ वाली लाइन के तीसरे बैंच पर बैठे संजीव की हँसी छूट गई है. और कोई मौका होता तो वह भी मुस्करा पड़ता, लेकिन इस वक़्त उसका मुँह उतरा हुआ है. अफ़सोस उसे संजीव की हँसी पर नहीं, इस बात पर हो रहा है कि मास्टर जी ने उसे पाठ की हिन्दी करने के लिए कह दिया है. पाठ तो उसे अच्छी तरह से आता है, लेकिन वह पढ़ेगा कैसे? किताब के अक्षर तो आजकल उसे इतने अस्पष्ट-से दिखाई देने लगे हैं कि सबके सामने पढ़ पाना उसके लिए नामुमकिन-सा ही हो गया है. घर में तो आँखों के आगे हाथ रखकर दो उंगलियों के बीच में से देखते हुए वह किसी तरह पढ़ लिया करता है, पर स्कूल में तो ऐसा नहीं किया जा सकता न. शर्म आती है.

नवीं क्लास शुरू हुए चार महीने हो चुके हैं, मगर अंग्रेजी के इन मास्टर जी ने आज पहली बार उसे पाठ की हिन्दी करने के लिए कहा है. छठी क्लास से वे ही उसे अंग्रेजी पढ़ा रहे हैं और यह बात अच्छी तरह से जानते हैं कि वह क्लास का सबसे होशियार लड़का है और जितना पढ़ाया गया हो, उतना उसे अच्छी तरह से आता होता है. क्लास में जब भी किसी लड़के को पाठ नहीं आता, ये मास्टर जी उससे ज़्यादा होशियार लड़के को पढ़ने के लिए कहते हैं. अगर उस लड़के की भी ग़लतियाँ निकलती हैं, तो उससे तेज़ लड़के को पढ़ने के लिए कहा जाता है. इस तरह पढ़ने के लिए उसकी (सुधीर की) बारी कभी आती ही नहीं, क्योंकि उससे पहले किसी-न-किसी लड़के ने सही-सही पाठ सुना दिया होता है और वह किताब सामने रखकर सुनने और कल्पना की आँखों से पढ़ते हुए पाठ को समझने की कोशिश करता है. सिर्फ़ उसी दिन उसकी आँखें पढ़ भी पाती हैं जिस दिन भाग्यवश छत के किसी छेद से धूप का कोई टुकड़ा उसकी किताब पर पड़ रहा हो. किताब धूप में रखी होने पर पढ़ने में उसे कोई तकलीफ़ नहीं हुआ करती. पढ़ तो वह तब भी लिया करता है जब कुछ-कुछ अंधेरे में बैठा हो. मगर इस साल तो उन्हें कमरा ही ऐसा मिला है जिसमें धूप, हवा और रोशनी काफ़ी आती है - उसके हिसाब से तो काफ़ी ज्यादा, वरना इससे पिछली क्लासों में तो उसकी कोशिश ज़रा-ज़रा अंधेरी जगह पर ही सीट लेने की रहती थी. ऐसा नहीं कि कम रोशनी में उसकी नज़र सामान्य हो जाया करती है, मगर फिर भी ऐसे में पढ़ने-लिखने में कोई ज़्यादा तकलीफ़ होनी उसे बंद हो जाती है. आसपास की चीज़ें भी दस-बारह फुट तक उसे काफ़ी हद तक साफ दिखाई देने लगती हैं. वरना धूप में तो आठ-दस फुट दूर खड़े आदमी को पहचान पाना भी उसके लिए मुश्किल काम होता है.

लेकिन आज का पाठ तो किसी भी दूसरे लड़के को नहीं आया. हिन्दी करने में हरेक कोई-न-कोई ग़लती करता ही रहा और आखि़र मास्टर जी को उसे ही पढ़ने के लिए कहना पड़ा.

हिन्दी या संस्कृत का पीरियड होता तब तो उसे परेशानी होती ही नहीं थी क्योंकि उन दोनों विषयों के मास्टर जी लड़कों को मेज़ के पास बुलाकर पाठ सुनते हैं. उन पीरियडों में जब कभी उसे पढ़ने के लिए कहा जाता है, वह मास्टर जी की मेज के पास किसी ऐसी जगह पर जाकर खड़ा हो जाता है जहां खिड़की से या छत के किसी छेद से धूप का कोई टुकड़ा किताब के पन्ने पर पड़ सकता हो. इस तरीके से सही-सही पाठ सुनाकर मास्टर जी की शाबाशी हासिल करने में वह आसानी से कामयाब हो जाया करता है. संयोगवश मास्टर जी की मेज़ की तरफ़ वाली छत में तीन-चार छेद हैं भी ऐसी-ऐसी मौके वाली जगहों पर कि सूरज का कोण बदलते रहने के बावजूद कोई-न-कोई छेद अपने हिस्से की धूप उसे उधार दे ही दिया करता है. बाकी दूसरे विषयों, गणित, सामाजिक ज्ञान, साधारण विज्ञान और ड्राइंग की क्लासों में पाठ पढ़ने की ज़रूरत पड़ती ही नहीं, इसलिए उन विषयों के पीरियडों में कम-से-कम ऐसी किसी दिक्कत से तो उसका वास्ता नहीं पड़ता.

मगर इस वक़्त का मामला तो बहुत गड़बड़वाला हो गया है. धूप की स्थिति देखने के लिये उसने सारे कमरे पर एक नज़र फेरी है. सर्दियाँ होने की वजह से सूरज डूबने ही वाला है और कमरे की छत से झाँक रहे धूप के टुकड़े दीवारों पर काफी ऊँचे चढ़ चुके हैं. मास्टर जी समेत सारी क्लास खामोशी में डूबी हुई उसके पाठ पढ़ने का इन्तजार कर रही है. अब ज़्यादा-से-ज़्यादा वह यही जता सकता है कि पाठ उसे नहीं आता, पर ऐसा करने के लिए भी तो पाठ पढ़ना ज़रूरी है. अंग्रेजी पढ़कर फिर चाहे उसकी हिन्दी ग़लत क्यों न कर दी जाए, पर पाठ तो पढ़ना ही पडेगा. लेकिन पाठ पढ़ पाना उसके बस में है कहां? उसका दिमाग़ तेज़ी से काम करने लगा है. तबीयत खराब होने का बहाना कर दे? पर अभी, मास्टर जी के उससे पाठ पढ़ने के लिए कहने से पहले तक तो वह जोशोख़रोश से उन मुश्किल शब्दों के अर्थ उन्हें बता रहा था जो पाठ की हिन्दी करते वक़्त दूसरे लड़कों को नहीं आ रहे थे. इसलिए यह बहाना तो अच्छा लगेगा नहीं.

संजीव की हँसी में उसे अपने बचने की राह नज़र आई है. उसने फौरन अपना मुँह रूआँसा बना लिया है और किताब हाथ में लेकर चुपचाप खड़ा यूँ जताने की कोशिश करने लगा है जैसे संजीव के हँसने से उसने अपने आप को बहुत बेइज़्ज़त महसूस किया हो. उसकी ओर शिकायत-भरी नज़रों से एक बार उसने देख भी लिया है.

‘‘क्यों भई, पढ़ क्यों नहीं रहे?’’ मास्टर जी को अपने इस सवाल का जवाब सिर्फ़ उसकी चुप्पी मिला है. उसने सोच लिया है कि पढ़ने के लिए अगर मास्टर जी ने उससे एक बार भी और कहा तो वह बस रोने लगेगा. सिर्फ़ ऐसा करने में ही उसे अपने बचने की सूरत नज़र आ रही है.

‘‘क्यों भई, संजीव के हँसने की वजह से नहीं पढ़ रहे? अच्छा चलो, बैठ जाओ. और सुनो संजीव, आज के बाद मेरी क्लास में ऐसे किसी पर कभी मत हँसना.’ मास्टर जी उसके और संजीव के पढ़ाई में होशियार होने की वजह से दोनों का लिहाज़ करते हैं.

वह चुपचाप बैठ गया है. चलो इस बार तो बच गए. आगे की आगे देखा जाएगी.

आँखें तो उसकी दरअसल जन्म से ही खराब हैं. उसके घर वालों को कहना है कि उसके पैदा होने से कुछ अरसा पहले उसके बीजी काफी बीमार हो गए थे. अंग्रेजी दवाओं से जब कोई फायदा नहीं हुआ तो एक वैद्य का इलाज किया गया था. डॉक्टरों के मुताबिक उन्हीं अंग्रेजी दवाओं और देसी दवाओं का रिएक्शन उसकी आंखों पर हो गया था. बचपन से ही अपनी उम्र के दूसरे बच्चों के मुकाबले उसे कम दिखाई देता था. मगर इसके बावजूद तीसरी क्लास तक उसका काम अच्छा-खासा चलता रहा था. लेकिन चौथी क्लास में पीछे बैठने पर सामने ब्लैकबोर्ड पर लिखे हुए को साफ़-साफ़ पढ़ सकना उसे मुश्किल लगने लगा था. तब उसने कुछ आगे बैठना शुरू किया था. और फिर तो और ज़्यादा आगे बैठने का यह सिलसिला चल ही पड़ा था. छठी क्लास तब आते-आते वह क्लास में सबसे आगे बैठा करता था. और फिर धीरे-धीरे उसे यहाँ से भी साफ-साफ दिखने में दिक्कत होने लगी थी. हां, कापी-किताब में लिखा हुआ वह अब भी किसी तरह पढ़ लिया करता था.

पिताजी उसके सरकारी नौकरी में थे - किसी ठीक-ठाक से ओहदे पर. उसकी आँखों के इलाज के लिए उन्होंने उसे कई डॉक्टरों को दिखाया था. डॉक्टरों का ख़याल था कि लड़का अभी छोटा है. इसे थोड़ा बड़ा होने दीजिए, तभी इसका इलाज किया जा सकेगा. उनके मुताबिक उसकी दोनों आंखों में मोतियाबिन्द था और ऑपरेशन ही उसका इलाज था. ऐनक लगाने से भी उसकी समस्या कोई हल हो जाने वाली नहीं थी. इसलिए वह बगैर ऐनक और इलाज के काम चला रहा था.

वह वही जानता था कि नज़र की कमज़ोरी के कारण उसे कितनी दिक्कत हुआ करती है, लेकिन इस बारे में उसने घर में कभी किसी को बताया नहीं था. वजह इसकी यही थी कि एक तो वह बहुत दब्बू और शर्मीले किस्म का लड़का था और दूसरे, उसके ख़्याल से घरवालों को अपनी तकलीफ़ के बारे में बताने से उनका दिल ही दुखना था, क्योंकि इसका कोई इलाज फिलहाल उनके पास भी था जो नहीं. ऑपरेशन अभी उसका एक-दो साल से पहले होना नहीं था और तब तक उसे किसी तरह गुज़ारा चलाना था. नज़र कमज़ोर होने के कारण जो शर्मिन्दगी उसे दूसरों, ख़ासतौर से स्कूल में अपने साथ पढ़नेवालों, के सामने उठानी पड़ती थी, वह भी वही जानता था. कम दिखने के कारण कई बार उससे ऐसी-ऐसी हरकतें हो जाया करतीं, जिनसे बाद में उसके हिस्से दूसरों की हँसी और व्यंग्य-वाण ही लगा करते.

सातवीं क्लास तक आते-आते ब्लैकबोर्ड पर लिखे हुए को पढ़ पाना उसके लिए बिल्कुल नामुमकिन हो गया था. बस कालेपन पर सफेद-सफेद-सा कुछ लिखा हुआ उसे नज़र आता. कॉपी-किताब में लिखे हुए को पढ़ने में भी उसे मुश्किल होने लगी थी. कॉपी-किताबों और उसकी आँखों के बीच का फासला धीरे-धीरे घटता जा रहा था.

और उस दिन तो हद ही हो गई थी. स्कूल में आधी छुट्टी के वक़्त वह किसी लड़के के पीछे-पीछे भाग रहा था. भागते-भागते अचानक उसके एक पैर से चप्पल निकल गई. वह रूक गया था. आसपास नज़रें गड़ा-गड़ाकर देखने पर भी चप्पल उसे कहीं नज़र नहीं आई थी. उसे पसीना छूटने लगा था - इस डर से नहीं कि कहीं चप्पल न गुम हो गई हो, बल्कि इस असहायता की वजह से कि उसकी आंखें पास ही कहीं गिरी हुई चप्पल को भी ढूँढ नहीं पा रही थी. जो लड़का उसके आगे-आगे भाग रहा था, वह उसे अपने पीछे न आता देख रूक गया था और उसे रूककर कुछ ढूँढता हुआ पा वापिस उसकी तरफ़ आने लगा था. उस लड़के ने उसके पास पहुंचते ही उसके सात-आठ फुट दूर पड़ी चप्पल उठाकर उसके पैरों के पास रख दी थी. उसकी आँखों की कमज़ोरी वाली बात वह जानता था. चप्पल पहनते ही वह ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगा था. उस लड़के के उससे इस तरह हँसने की वजह पूछने पर वह कहने लगा था कि वह तो चप्पल न ढूँढ पाने की एक्टिंग कर रहा था. अपनी झेंप मिटाने का यह बहाना उसके दिमाग में अचानक ही न जाने कैसे आ गया था.

और उस दिन की बात भी उसे अक्सर याद आती रहती है. बड़ी दीदी के लिए कोई दवा लाने वह बाज़ार गया था. अब जिस दुकान पर जाकर उसने दवा माँगी, उसके हिसाब से वह दवाइयों की ही होनी चाहिए थी. मगर चटख धूपवाला वक़्त होने की वजह से उसकी आँखों ने उसका साथ नहीं दिया और उसका अन्दाजा ग़लत बैठा. वह दुकान किसी घड़ीसाज़ की निकली. घड़ीसाज़ ने जिस व्यंग्यभरे लहज़े से साथवाली दुकान की तरफ इशारा किया, वह उसके दिल में बहुत गहरे तक चुभ गया था. घड़ीसाज़ की दुकान पर मौजूद एक-दो सेल्समैनों और दो-तीन ग्राहकों की मिली-जुली हँसी ने इस चुभन को और भी तीखा कर दिया था. बाद में घर आकर अकेले में वह काफ़ी देर तक रोता रहा था.

इम्तहान के दिनों में भी उसे काफी तकलीफ़ हुआ करती है. जिस पेपर में उसके बैठने की जगह ज़रा अंधेरे में आ जाए उसमें तो खै़र उसे मुश्किल नहीं होती. उससे पढ़ा भी ठीक जाता है, लिखे जाने वाले कागज़ की लाइनें भी साफ़ नज़र आती हैं और लिख भी वह ठीक तरह से लेता है. लेकिन बदकिस्मती से अगर उसकी सीट दरवाज़े या खिड़की के पास आ जाए, तब तो मुसीबत ही टूट पड़ती है. प्रश्नपत्र तो वह किसी तरह आँखों पर ज़ोर डालकर पढ़ लिया करता है, पर इस तरह से लगातार तीन घंटे तक लिखा तो नहीं जा सकता न. दस-पंद्रह मिनट बाद ही आंखें दर्द करने लगेंगी और उनसे पानी बहना षुरू हो जाएगा. रोशनी में तो कागज़ पर खिंची लाइनें भी उसे सही-सही पता नहीं चलतीं. ऐसे में वह यूँ किया करता है कि काफी ज़ोर लगाकर लिखी जानेवाली लाइन के शुरू की जगह मालूम कर लिया करता है और फिर वहाँ से लिखना शुरू कर देता है. अपनी तरफ से तो वह सीधी लाइन में ही लिख रहा होता है, लेकिन असल में जो कुछ उससे लिखा जाता है, उसमें शायद ही कोई लाइन आखि़र तक सीधी रह पाती हो. तकरीबन आधी लिखी जा चुकने के बाद कोई लाइन ऊपर की ओर चली गई होती है और कोई नीचे की ओर. मगर इसके बावजूद ज़्यादातर विषयों में सबसे ज्यादा नंबर उसी के आया करते हैं. कुल जोड़ में तो पाँचवी क्लास में हमेशा वही पहले नंबर पर आ रहा है, चाहे वह इम्तहान तिमाही हों, छमाही हों या सालाना.

स्कूल वह हमेशा पाँच-सात मिनट पहले ही पहुँच जाया करता है. उसे डर रहता है कि कहीं स्कूल लग जाने की घंटी न बज गई हो और प्रार्थना के लिए क्लासों की लाइनें न बन गई हों, क्योंकि ऐसे में अपनी क्लास की लाइन ढूँढने में उसे बड़ी दिक्कत हुआ करती है. एक-दो बार तो अपनी क्लास की लाइन पहचान न पाने की वजह से वह किसी दूसरी लाइन में खड़ा हो गया था और बाद में उसे बड़ी शर्मिन्दगी उठानी पड़ी थी. घंटी बजने से पहले क्लास में पहुँच जाने पर तो क्लास में मौजूद लड़कों के साथ आराम से अपनेवाली लाइन में पहुँचा जा सकता है.

क्लास में जब भी कोई मास्टर जी लड़कों से कुछ पूछते हैं, वह हमेशा सिर झुकाए बैठा रहता है, क्योंकि अगर मास्टर जी जवाब में खड़े हाथों में से उसके हाथ की तरफ इशारा कर दें तो वह तो उनका इशारा समझ ही नहीं पाएगा. सिर झुकाकर बैठने पर तो मास्टर जी को उसका नाम पुकारना ही पड़ेगा.

-0-0-0-0-0-

आज उनके स्कूल का इन्स्पेक्शन है. सर्दियाँ होने के कारण सब क्लासें बाहर धूप में लगी हुई हैं. संस्कृत के पीरियड के दौरान इंस्पेक्टर साहब उनकी क्लास में आए हैं. उनके साथ हेडमास्टर साहब भी हैं जिन्होंने आते ही उसकी तारीफ़ के पुल बाँधने शुरू कर दिए हैं कि यह हमारी क्लास का सबसे होशियार लड़का है; हमेशा फर्स्ट आया करता है; जो पूछो झट से बता देता है; वग़ैरह-वग़ैरह.

‘‘ये बात है! तो मिस्टर सुधीर, ऐसा करो कि इंग्लिश और संस्कृत की अपनी किताबें निकालो और उनके सोलहवें पाठ के छठे पैरे की ट्रांस्लेशन कर दो फटाफट!’’ इंस्पेक्टर साहब उसी से कह रहे हैं.

‘‘वाह इंस्पेक्टर साहब, पूछनी ही थी तो कोई मुश्किल बात पूछते. यह भी कोई बात पूछी है. ये दोनों पाठ तो मुझे रटे हुए हैं.’’ सोचते हुए बड़े जोश से अपने बस्ते से वे दोनों किताबें उसने निकाली हैं और फिर उनमें से अंग्रेजी की किताब लेकर खड़ा हो गया है. उसकी उंगलियाँ तेज़ी से सोलहवाँ पाठ ढूँढने लगी हैं. पाठ मिल जाने पर उसके छठे पैरे से दो-तीन शब्द ही अभी उसने पढ़े हैं कि..... अरे यह क्या! उसकी किताब के पन्नों पर चमक रही धूप एकदम से उड़ गई है. उसने सिर उठाकर सूरज की तरफ देखा है. आसमान बादलों में भरता जा रहा है और धूप निकलने के कोई आसार नज़र नहीं आ रहे. उसने मजबूरी से किताब के पन्नों की ओर नज़र फेरी है. अस्पष्ट-से अक्षर उसे अपना मुँह चिढ़ाते लग रहे हैं.

-0-0-0-0-0-

हरीश कुमार ‘अमित’,

304, एम.एस. 4,

केन्द्रीय विहार, सेक्टर 56,

गुड़गाँव-122011 (हरियाणा)

ई-मेल : harishkumaramit@yahoo.co.in

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: कहानी // ग्रहण // हरीश कुमार ‘अमित’
कहानी // ग्रहण // हरीश कुमार ‘अमित’
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhJVbN2gWm4nerI4lem6l7Y9ErpJv2qx9DNiPIEbcG29uIa7SEtJ4opFF48kyxXibHAt96sHV6ME0bXEnGGQiEqFZQdRX1yGBuTViWyI5gpZmQqZuan7ivr6iKVVKkzn1I759Iv/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhJVbN2gWm4nerI4lem6l7Y9ErpJv2qx9DNiPIEbcG29uIa7SEtJ4opFF48kyxXibHAt96sHV6ME0bXEnGGQiEqFZQdRX1yGBuTViWyI5gpZmQqZuan7ivr6iKVVKkzn1I759Iv/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2018/06/blog-post_87.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2018/06/blog-post_87.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content