जल्दी आ रही लेखक की बालमनोविज्ञानपरक कृति क्यों बोलते हैं बच्चे झूठ से. स्कूल आने से क्यों डरते हैं बच्चे शशांक मिश्र भारती [ एक बालक जब ...
जल्दी आ रही लेखक की बालमनोविज्ञानपरक कृति क्यों बोलते हैं बच्चे झूठ से.
स्कूल आने से क्यों डरते हैं बच्चे
शशांक मिश्र भारती
[ एक बालक जब गलत संगत में पड़ जाता है तो उसका साथी समूह भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। अन्ततः एक के साथ अनेक बिगड़ जाते हैं। एक भेड़ की भांति अनेक बढ़ते चले जाते हैं। ]
चाहे कहीं भी ले चलो मुझे स्कूल मत ले चलो। सुजाता अपनी मम्मी से हाथ छुड़ाते हुए कह रही थी। जबकि उसकी मम्मी उसे जबर्दस्ती टांगे हुए स्कूल के लिए ढकेलती जा रही थी। एक सुजाता ही नहीं विशाल मोहित श्वेता अवधेश आदि नाम के अनेकानेक बालकों को हमने अभिभावकों द्वारा कभी टांगकर कभी पीटते हुए तो कभी-कभी घसीटते हुए स्कूल लाते देखा है।
उपरोक्त समस्या चार- छः बालकों की ही नहीं असंख्य बालकों के मध्य व्याप्त है। 100 बच्चों के प्रवेश वाली कक्षा की स्थिति पांच तक पहुंचते- पहुंचते पन्द्रह- सोलह ही रह जाती है। क्यों होता है ऐसा कहां जाते हैं बाकी बच्चे क्यों डर जाते हैं स्कूल से अथवा उनके माता-पिता के पास साधनों का अभाव उन्हें स्कूली शिक्षा नहीं ग्रहण करने देता। उनको विद्यालय छोड़ने पर विवश कर देता है।
यदि हम उल्लिखित तथ्यों की विस्तृत विवेचना करना चाहें तो अनेकानेक कारक उभरकर सामने आते हैं। जिनसे एक बालक ही नहीं अभिभावक-शिक्षक व विद्यालय यहां तक की राष्ट्र भी प्रभावित होता है। एक बालक जब गलत संगत में पड़ जाता है तो उसका साथी समूह भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। अन्ततः एक के साथ अनेक बिगड़ जाते हैं। एक भेड़ की भांति अनेक बढ़ते चले जाते हैं। उनकी ये भेड़ चाल बहुत बड़ा अहित कर देती है। इस तरह निराश होने वाले डरने वाले बालकों में निम्न कारणों को देखा जा सकता है:-
----- विद्यालय का वातावरण यदि बालक को आकर्षित करने में समर्थ नहीं है। पर्याप्त प्रकाश हवा खेलकूद के मैदान का अभाव है शिक्षकों का बालक के प्रति व्यवहार सहयोगात्मक प्रेम एवं सद्भावपूर्ण नहीं है तो ऐसी स्थिति में वह विद्यालय नहीं आना चाहेगा। वह अपने माता-पिता से स्कूल न जाने के लिए अनेक बहाने बनायेगा।
------ विद्यालय के बच्चों में बढ़ रही गुटबाजी संघर्ष की स्थिति कुछ बच्चों की प्रत्येक क्षेत्र में श्रेष्ठता तुलना आदि से भी बच्चों पर दुष्प्रभाव पड़ता है। विशेषकर कमजोर एवं पिछड़ेपन के शिकार बच्चे ऐसी स्थिति में स्कूल नहीं आना चाहेंगे।
------ एक बार बालक द्वारा जिद करने पर कि आज स्कूल नहीं जायेंगे माता-पिता द्वारा पुचकारना घर पर ही रहने देना कल चले जाना आदि प्रोत्साहन देना भी भविष्य में उसके जिद्दीपन की भावना को प्रगाढ़ बनाता है और वह यह समझता है कि हमारी जिद के आगे पापा डर जाते हैं। परिणामतः स्कूल नहीं आना चाहेगा। अनेक प्रकार के बहाने बना देगा।
----- अभिभावक गोष्ठी में माता-पिता का उपस्थिति न होना उसकी रुचि के कार्यों को निरन्तर दबाना प्रत्येक समय पढ़ो-पढ़ो की रट लगाये रहना। खेलने-कूदने साथी-समूह के साथ रहने का पर्याप्त समय न मिलने से भी बालक स्कूल जाने में आना- कानी करते हैं और धीरे- धीरे डरने लगते हैं। वह अन्य बच्चों से प्रत्येक क्षेत्र में पिछड़ जाते हैं और विद्यालय में पड़ जाने वाली संभावित डांट से विद्यालय के नाम से भय खाते हैं।
----- बच्चा जब अपनी किसी प्रिय वस्तु से वंचित हो जाता है उसको बार- बार प्रयास करने पर भी नहीं पाता है बगैर पूछे उसकी कोई वस्तु बस्ते में से घर या रास्ते में से निकाल ली जाती है तो वह स्वभाव से आक्रामक हो जाता है और विद्यालय जाने से बचना चाहता है। विविध बहाने पैंतरेबाजी दिखाता है। ऐसी स्थिति में यदि माता- पिता के मध्य तनाव पूर्ण सम्बन्ध हैं और हमेशा झगड़ते रहते हैं आपस में उनका व्यवहार अच्छा नहीं है बच्चे को भी प्रायः डांटते पीटते रहते हैं तो बच्चे में भी माता- पिता जैसी मनोवृत्ति विकसित हो जायेगी। माता- पिता द्वारा किया जाने वाला आक्रामक व्यवहार उसको रोकने के लिए दिया गया दण्ड उसे विनाशकारी व्यवहार का आदर्श बना देगा। परिणामतः बच्चा घर से भाग जाने को प्रेरित होगा।
----- स्कूल आने में डरने में बच्चे के प्रति गणित के शिक्षक की भी भूमिका कम नहीं है। यदि बच्चा कमजोर है और शिक्षक के सामने गणित का महत्व है जो उसके व्यक्तित्व के विकास की अनदेखी कर विषयगत विकास पर ध्यान दिया जा रहा है। तो शिक्षक के इस एक पक्षीय दृष्टिकोण से उसमें कुण्ठा की भावना जाग्रत होगी। जिससे छुटकारा पाने के लिए वह विद्यालय आने से डरेगा।
------ इसके अतिरिक्त विद्यालय पसन्द न होना शिक्षकों का पक्षपात पूर्ण व्यवहार घर का वातावरण अध्ययन के अनुकूल न होना आदि कारकों से भी वह कहने लगता है कि मुझे कहीं भी ले जाइये परन्तु स्कूल मत भेजिए।
उपर्युक्त विवेचना के बाद यह स्पष्ट हो जाता है कि अधिकांश बच्चे विद्यालय आने से क्यों डरते हैं। इन सभी कारकों को दृष्टिगत रखते हुए बालकों की रुचि एवं धनात्मक दृष्टिकोण विकसित करने के लिए प्रेरणादायक प्रयास होने चाहिए उनमें ऐसी दृढ़ इच्छाशक्ति पैदा करनी चाहिए कि वह विषम परिस्थितियों का भी सामना करते हुए विद्यालय व साथी समूह के माध्यम से अपने व्यक्तित्व का समुचित विकास कर सकें। साथ ही बच्चा विद्यालय स्वाभाविक रूप से जाये या कहूं कि वह घर से दौड़ते हुए जाये और विद्यालय से अवकाश में हंसते हुए आराम से बिना किसी जल्दबाजी के आये। हमें ऐसी स्थिति लाने के लिए बहुत प्रयास करने होंगे कई लोगों माध्यमों का सहयोग लेना पड़ेगा। किसी एक को जिम्मेदारी देकर या स्वयं के दायित्व से बचकर कुछ नहीं होने वाला।
इसके लिए हमें अधोलिखित बिन्दुओं पर ध्यान क्रेन्दित करना आवश्यक हैं:-
---- विद्यालयी गतिविधियों व वातावरण बालक के लिए आकर्षण व उत्साह उत्पन्न करने वाला हो। विद्यालय के समस्त घटक केवल कोतवाल का ही अभिनय न कर रहे हो। यह ज्ञान के साथ-साथ मनोरंजन का केन्द्र भी हों।
---- बच्चे की किसी भी स्तर पर उपेक्षा न कीजिए न ही उसको अनावश्यक रूप से भयभीत करने का प्रयास हो। उसके भी स्वाभिमान का ध्यान रखना आवश्यक है जितना कि बड़ों का।
---- बदलती परिस्थितियों एवं समय के अनुसार घर-परिवार विद्यालय के घटकों को अपने व्यवहार व कार्य का मूल्यांकन करते रहना चाहिए जैसाकि बालकों के विकास के लिए महत्वपूर्ण हो।
---- विद्यालय से बचकर नशे की ओर उन्मुख होते बच्चे बड़ी चिन्ता का कारण हैं। अभिभावकों को अपनी नशे की लत को बच्चों से दूर रखकर अथवा छुपाकर पूरा करना चाहिए।
----- बच्चों की अनावश्यक तुलना देर रात तक जागना टी. वी. देखना अनुचित फरमाइशों से बचना चाहिए।
---- समाज के बिगड़े बच्चे दूषित वातावरण से बचाकर उनको सदैव अध्ययन के प्रति प्रोत्साहित करना चाहिए।
---- अभिभावकों को बालकों से निरन्तर सम्पर्क रखते हुए उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति तथा समस्याओं का समाधान करना चाहिए। उनको अधिक अकेला न छोड़कर देर रात तक बाहर भी नहीं रहने देना चाहिए।
---- बालक कितना ही छोटा क्यों न हो माता-पिता को उसकी प्रत्येक गतिविधि पर पैनी नजर रखनी चाहिए जोकि न केवल उसको अनेक समस्याओं से बचायेगी बल्कि उसमें स्नेह सहानुभूति व आत्मविश्वास भी उत्पन्न करेगी।
---- छोटे बच्चों को परिवार में घटने वाली दुःखद असमान्य घटनाओं से बचाना चाहिए। उनमें विद्यालय के प्रति स्वाध्याय संस्कार तथा नैतिक मूल्यों के प्रति लगन उत्पन्न की जानी चाहिए। बालक की लिखावट उसके भविष्य का निर्धारण करती है। इसलिए बचपन से ही उस पर भी ध्यान देना चाहिए। इसके लिए घर-परिवार विद्यालय व साथी-समूह तीनों में सन्तुलन बनाना आवश्यक है।
---- अभिभावकों को विद्यालयी गतिविधियों में सक्रियता से भाग लेते रहना चाहिए। साथ ही घर-परिवार विद्यालय से जुड़ी आवश्यकताओं की पूर्ति करते रहना चाहिए।
----- बालक यदि गलती कर रहा है तो भी उसके साथियों के सामने उसको अपमानित या दण्डित नहीं करना चाहिए।
---- विद्यालय के कमरे स्वच्छ खिड़कियों से युक्त हवादार व वातावरण सर्वांगीण विकास के अनुकूल होना चाहिए। शिक्षक स्नेही सामंजस्य बिठाकर बालकों की मनोदशा के अनुसार कार्य व्यवहार कर शिक्षण करने वाले हों। पर्याप्त पाठ्येत्तर क्रिया-कलाप आयोजित किये जाने चाहिए।
---- विद्यालयों में कार्यक्रमों में सम्पन्न परिवार के बच्चों व साधारण परिवार के बच्चों के मध्य सामंजस्य बिठायें। गुटबाजी अनावश्यक गाली- गलौज मार- पीट अहंकार की भावनाओं का प्रदर्शन कक्षाओं में एक दो बालकों के प्रभाव स्थापन से बचाव किया जाना चाहिए।
---- बालकों के बस्ते से बिना पूछे कोई वस्तु नहीं निकालनी चाहिए और न ही उनकी क्षमता अभिरुचि से हटकर किसी को अपेक्षा करनी चाहिए। माता- पिता में आपस के सम्बन्ध कैसे भी हों लेकिन बच्चे के सामने सदैव स्नेह व प्रेमपूर्ण ही दिखाने चाहिए।
---- विद्यालयों में कठिन विषयों के अध्यापक हों अथवा सरल विषयों के उनको पूरी कक्षा को एक मापदण्ड से नहीं आंकना चाहिए। प्रत्येक बच्चे का मूल्यांकन कार्यों का वितरण उसकी शारीरिक मानसिक क्षमता के विकास के अनुसार करना चाहिए। अनावश्यक भय उत्पन्न करने से सदैव बचें।
---- वर्तमान में प्रत्येक क्षेत्र में हो रहे तीव्र गति से परिवर्तनों के अनुरूप बच्चे को ढालने- पालने का प्रयास होते रहना चाहिए।
उपरोक्त समाधान से यह स्पष्ट होता है कि अधिकांश बच्चे विद्यालय आने में क्यों डरते हैं तथा उनमें किस तरह की धारणाओं दृष्टिकोणों का विकास किया जाये कि वह विषम परिस्थितियों का भी सामना करते हुए विद्यालय व साथी- समूह के माध्यम से अपने व्यक्तित्व का समुचित विकास कर सकें। साथ ही इनके निखरे व्यक्तित्व का लाभ परिवार समाज और देश को मिल सके।
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शशांक मिश्र भारती
शशांक मिश्र भारती सम्पादक देवसुधा हिन्दी सदन बड़ागांव शाहजहांपुर -242401 उ0प्र0
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