फ़ोरीवा के मोती // पश्चिमी अफ्रीका की लोककथाएँ // सुषमा गुप्ता

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  देश विदेश की लोक कथाएँ — पश्चिमी अफ्रीका–1 : पश्चिमी अफ्रीका की लोक कथाएँ–1 बिनीन, बुरकीना फासो, केप वरडे, गाम्बिया, गिनी, गिनी बिसाऔ, आइव...

  देश विदेश की लोक कथाएँ — पश्चिमी अफ्रीका–1 :

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पश्चिमी अफ्रीका की लोक कथाएँ–1

बिनीन, बुरकीना फासो, केप वरडे, गाम्बिया, गिनी, गिनी बिसाऔ, आइवरी कोस्ट, लाइबेरिया,


संकलनकर्ता

सुषमा गुप्ता


7 फ़ोरीवा के मोती[1]

बहुत साल पहले की बात है कि एक बार पश्चिमी अफ्रीका के आइवरी कोस्ट देश के दो गाँवों में लड़ाई हुई। उनमें से एक गाँव में एक आदमी अपनी पत्नी और बेटी के साथ रहता था।

उनके क्योंकि वह अकेला ही बच्चा था इसलिये वे उसको बहुत प्यार करते थे और उसकी बहुत अच्छी तरह देखभाल करते थे।

सो जब लड़ाई छिड़ी तो उन्होंने अपनी बेटी के लिये गाँव की एक सुरक्षित जगह पर खूब मोटी मिट्टी की छत की झोंपड़ी बनवायी और उसको उस झोंपड़ी में रख दिया।

वहाँ उन्होंने उसके लिये वे सारी चीज़ें रख दीं जिनकी उसको कभी भी जरूरत पड़ सकती थी। फिर उस लड़की का पिता लड़ाई पर चला गया और उसकी माँ खेतों पर काम करने चली गयी।

उन्होंने उस बच्ची को उस झोंपड़ी में बन्द कर दिया था और उससे कह दिया था कि वह अन्दर से उसका ठीक से ताला लगा कर रखे।

वे नहीं चाहते थे कि उनकी बेटी अपनी छिपी हुई जगह से बाहर आ कर किसी खतरे में पड़े इसलिये उन्होंने उससे कहा कि वह न तो किसी से कुछ कहे और न ही किसी के लिये दरवाजा खोले।

जब उसकी माँ उसके लिये खाना ले कर आती तो वह एक गाना गाती थी –

फ़ोरीवा, मेरी बेटी, मैं तुम्हारी माँ हूँ मुझे अन्दर आने दो अब खाने का समय हो गया है

फ़ोरीवा की माँ रोज अपनी बेटी के लिये खाना ले कर आती और वही गीत गाती। फ़ोरीवा अपनी माँ की आवाज पहचान जाती और उसके लिये दरवाजा खोल देती।

यह लड़ाई काफी दिनों तक चलती रही सो फ़ोरीवा भी अपनी उस खास झोंपड़ी में बहुत दिनों तक अकेली रहती रही। पर अब वह अपने इस अकेले रहने से बहुत तंग आ गयी थी।

जंगली जानवर भी अपने अपने घर छोड़ कर कहीं कहीं चले गये थे। अब वे अपना खाना ढूँढने के लिये बस्तियों में भी जाने लगे थे। वहाँ जा कर वे घरेलू जानवरों को मार डालते और कभी कभी तो आदमियों को भी खा जाते।

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एक दिन एक कछुआ खाने की खोज में निकला तो वह फ़ोरीवा की झोंपड़ी की तरफ आ निकला। जब वह चल रहा था तो उसके चलने से उसके पैरों के नीचे सूखे पत्तों की चरमराने की आवाज हो रही थी।

फ़ोरीवा इस आवाज से डर गयी। पर धीरे धीरे अपने डर पर काबू पाते हुए उसने गाया —

कौन जानवर यहाँ से जा रहा है, फ़ोरीवा के पीछे से

कौन जानवर यहाँ से जा रहा है, फ़ोरीवा के पीछे से

जैसे ही कछुए ने इस गीत को सुना तो उसने उस गीत का जवाब दिया —

मेरे बच्चे, यह मैं हूँ कछुआ, मेरे बच्चे, यह मैं हूँ कछुआ

जब कछुए को यह लगा कि यह बच्ची लड़ाई से बचने की वजह से यहाँ अकेली जगह में रख दी गयी है तो उसने और आगे गाया —

पर चुप रहो मेरे बच्चे, चारों तरफ खतरा है कहीं ऐसा न हो कि तुम मर जाओ

जब फ़ोरीवा ने यह सुना तो वह पहचान गयी कि वह कछुआ है तो वह ज़ोर से हँस पड़ी और बोली —

ओ अपनी तारीफ करने वाले, क्या तेरे छोटे छोटे हाथों से?

इस पर कछुए ने कुछ नहीं कहा। उसने चुपचाप अपना खाना खाया और धीरे धीरे वहाँ से चला गया। कछुए को गये ज़्यादा देर नहीं हुई थी कि वहाँ एक हिरन आ गया। उसके पैरों की आवाज सुन कर फ़ोरीवा ने फिर गाया —

कौन जानवर यहाँ से जा रहा है, फ़ोरीवा के पीछे से

कौन जानवर यहाँ से जा रहा है, फ़ोरीवा के पीछे से

हिरन ने भी कछुए की तरह ही जवाब दिया —

मेरे बच्चे, यह मैं हूँ हिरन, मेरे बच्चे, यह मैं हूँ हिरन

पर चुप रहो मेरे बच्चे, चारों तरफ खतरा है कहीं ऐसा न हो कि तुम मर जाओ

फ़ोरीवा ने हिरन को भी उसी तरीके से जवाब दिया जैसे उसने कछुए को दिया था —

ओ अपनी तारीफ करने वाले, तेरे तो सींग भी नहीं हैं और न तेज दाँत हैं

हिरन ने भी यह सुन कर कोई जवाब नहीं दिया वह भी अपनी घास चर कर वहाँ से चला गया। इसी तरह वहाँ और भी कई जानवर आये – बकरा आया, जिराफ आया, अजगर आया, हाथी आया और फिर आया शेर।

सभी जानवरों ने फ़ोरीवा को खतरे से सावधान किया और सभी अपने अपने रास्ते चले गये। पर शेर नहीं गया। वह बहुत नाराज था। उसने सोचा कि मैं तो इस छोटी लड़की को खतरे से सावधान कर रहा हूँ और यह मुझे क्या दे रही है – चुनौती?

शेर अपने दाँत और पंजे निकालते हुए बहुत ज़ोर से दहाड़ा और अपने पीछे वाले पैरों पर खड़ा हो कर उस झोंपड़ी पर कूद गया। उसने गुस्से में आ कर अपनी पूरी ताकत से उस झोंपड़ी को अपने पंजों से बहुत ज़ोर से मारा।

इससे उस झोंपड़ी की सूखी मिट्टी टूटने लगी। उसने उस सूखी मिट्टी के कुछ टुकड़े उठाये और उनको अपनी पीठ पीछे फेंक दिया।

जल्दी ही वह उस मिट्टी की झोंपड़ी के अन्दर था और बाहर बस केवल उसकी पूँछ ही दिखायी दे रही थी। उसको वहाँ वह लड़की मिल गयी। उसने उसको गले से पकड़ा और मार दिया।

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शेर बहुत भूखा था सो वह बिना समय बरबाद किये उसे खा भी गया। उस बच्ची का कुछ भी नहीं बचा सिवाय उन मोतियों के हार के जो वह अपने गले में पहने थी।

एक चिड़िया एक बहुत ही ऊँचे पेड़ पर बैठी यह सब देख रही थी। जैसे ही वह शेर उस लड़की को खा कर वहाँ से गया वह चिड़िया वहाँ से नीचे आयी और उसके वे मोती उठा कर ले गयी।

वे मोती उसने ले जा कर फ़ोरीवा की माँ को दे दिये जो अपने खेत पर काम कर रही थी।

वह फ़ोरीवा की माँ से बोली — “तुम्हारे जैसे किसी बहरे को यह कहने का क्या फायदा कि लड़ाई चल रही है। वह जो नहीं सुनती वह भी जल्दी ही सुन लेगी। ” यह कह कर उसने वे मोती फ़ोरीवा की माँ की गोद में डाल दिये।

जैसे ही फ़ोरीवा की माँ ने वे मोती देखे तो वह उनको पहचान गयी। उसको लगा कि उसकी बच्ची के साथ कुछ बुरा हो गया है। वह अपनी बेटी की झोंपड़ी की तरफ भागी और उसको टूटी फूटी और खाली देख कर रो पड़ी।

वह इतना रोयी इतना रोयी कि उसकी तो आँखों के आँसू ही खत्म हो गये। वह चिल्लायी — “सच है कि वह जो नहीं सुनती वह भी जल्दी ही सुन लेगी। ”



[1] Foriwa’s Beads – a folktale from Ivory Coast, West Africa. Adapted from the Book

“The Orphan Girl and the Other Stories”, by Offodile Buchi. 2001.

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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का  विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं के संकलन में से सैकड़ों लोककथाओं के पठन-पाठन का आनंद आप यहाँ रचनाकार के  लोककथा खंड में जाकर उठा सकते हैं.

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फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ 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रचनाकार: फ़ोरीवा के मोती // पश्चिमी अफ्रीका की लोककथाएँ // सुषमा गुप्ता
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