लघुकथाएँ मृणाल आशुतोष 1.छब्बीस जनवरी आज वोट का दिन था। मंगरू और चन्दर दोनों तेज़ी से मिडिल स्कूल की ओर जा रहे थे। " अरे ससुरा, तेज़ी से च...
लघुकथाएँ
मृणाल आशुतोष
1.छब्बीस जनवरी
आज वोट का दिन था। मंगरू और चन्दर दोनों तेज़ी से मिडिल स्कूल की ओर जा रहे थे।
" अरे ससुरा, तेज़ी से चलो न! देर हो जाएगा।"
" भाय, वोट के कारण सवेरे से काम में भिड़ गए थे। ठीक से खाना भी नहीं खा पाये।"
स्कूल पर पहुँचते ही देखा कि पोलिंग वाले बाबू सब जाने की तैयारी कर रहे हैं।
"मालिक, पेटी सब काहे समेट रहे हैं?" चन्दर ने हिम्मत दिखाया।
"वोट खत्म हो गया तो अब यहाँ घर बाँध लें क्या?"
"लेकिन अभी तो पाँच नहीं बजा है। रेडियो में सुने थे कि...."
" रेडियो-तेडीओ कम सुना करो और काम पर ध्यान दो। समझे।
" जी मालिक। पर पाँच साल में एक बार तो मौका मिलता है हम गरीब को, अपने मन की बात...
"तुमको ज्यादा नेतागिरी समझ में आने लगा है क्या?" सफेद चकचक धोती पहने गाँव के ही एक बाबू साहेब पीछे से गरजे।"
"चल रे मंगरु। लगता है कि इस बार भी अपना वोट गिर गया है!"
" भाय, एक चीज़ समझ में नहीं आता है कि हम निचला टोले वाले का वोट हमरे आने से पहले कैसे गिर जाता है?"
इससे पहले कि वह कुछ जबाब देता, पुरबा हवा बहने लगी और उसके अंदर से दर्द की गहरी टीस उठी,"आह!"
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2. टंगटुट्टा
घर का माहौल थोड़ा असामान्य सा हो चला था। परसों ही राजेन्द्र ने किसी दुखियारी से शादी करने की बात घर पर छेड़ दी थी। छोटे भाइयों को तो आश्चर्य हुआ पर बहुओं की आवाज़ कुछ ज्यादा ही तेज़ हो गयी। बेचारी बूढ़ी माँ समझाने की कोशिश कर थक कर हार मान चुकी थी।
बहुओं के तीखे बाण से कलेजा छलनी हो रहा था पर कान में रूई डालने के सिवा कोई चारा भी तो नहीं था।
शाम में तमतमाते वीरेंद्र का प्रवेश सीधा माँ की कोठरी में हुआ। बिना देर किये हुये दोनों बहुएं दरवाजे से चिपक गयीं।
,"माँ, यह हो क्या रहा है घर में? भैया पागल तो नहीं हो गए हैं।"
"बेटा,इसमें पागल होने वाली क्या बात है?"
" इस उम्र में शादी? लोग क्या कहेंगे? मुहल्ले वाले थूकेंगे हम पर!" गुस्से में वह लाल-पीला हो रहा था।
"बेटा, उसने कोई निर्णय लिया है तो सोच-समझकर कर ही लिया होगा न! उस दुखियारी के बारे में भी तो सोच।"
" हाँ, कुछ ज्यादा ही सोच कर लिया है। अपना तो दोनों टाँग टूटा हुआ है ही और ऊपर से बुढ़ापे में एक औरत का जिम्मेदारी लेने चले हैं!"
" बीस साल से बिना टाँग के ही चाय बेचकर हमारा-तुम्हारा खर्चा चला रहा है न! थोड़ा कलेजे पर हाथ रखकर सोचना कि असली टंगटुट्टा वह है या...!"
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3. बछड़ू
"क्या हुआ? कल से देख रहा हूँ। बार बार छत पर जाती हो।" विमल अनिता से पूछ बैठे।
"नहीं, ऐसा कुछ कहाँ है?"
"कोई हमसे ज्यादा स्माट आदमी आ गया है क्या, उधर?"
"बिना सोचे समझे ऊजूल फ़िज़ूल मत बोला करो। नहीं तो अच्छा नहीं होगा। कहे देती हूं।"
"अरे हम तो मज़ाक कर रहे थे। रानी साहिबा तो बुरा मान गयीं। क्या हुआ, बताओ न!"
" नहीं छोड़ो, जाने दो। तुम नहीं समझोगे।"
"अच्छा! ऐसा कौन सा चीज़ है जो तुम समझती हो और हम नहीं समझ सकते।"
"बात मत बढ़ाओ। छोड़ दो कुछ देर के लिए अकेला हमको।"
"अब तुमको मेरी सौगंध है, बताना ही पड़ेगा।"
" तुमने सौगंध क्यों दे दिया?"
" बताओ न। मेरा जी घबरा रहा है अब।"
"गनेशिया ने अपना बछड़ू बेच दिया।"
"लो,इसमें परेशान होने की क्या बात है? बछड़ू को कब तक पाले बेचारा? बैल बना कर रखना तो था नहीं।"
"नहीं दिखा न तुम्हें! गाय का दर्द नहीं दिखा न! जब से बछड़ू खुट्टा पर से गया है, गाय दो मिनट के लिये भी नहीं बैठी है। उसकी आँखों में देखोगे तो हिम्मत जबाब दे देगा।"
"वह तो होता ही है। क्या किया जा सकता है?"
"अपने सौरभ को भी जर्मनी गये हुए पाँच साल हो गए। शादी से पहले प्रत्येक दिन फोन करता था। शादी के बाद हफ्ता, महीना होते होते आज छह महीना हो गया, उसका फोन आये हुए।"
"उसका, इस बात से क्या मतलब है?"
"हमने भी तो बीस लाख और एक गाड़ी में अपने बछड़ू को...."
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4.हेल्मेट
ट्रिंग-ट्रिंग ट्रिंग-ट्रिंग!!!
"लो आ गयी मेरी सौतन! रविवार को भी चैन नहीं है। सवेरे सवेरे दिल जलाने आ गयी।"
"अरे मोबाइल जल्दी दो। देखें तो कौन मर गया।"
" सतीश साइट 2 , है कोई। देखो। ये लो, पकड़ो अपना मोबाइल।"
"हेलो सतीश, बोल बेटा!चाभी! बस,बस दो मिनट में आया।"
"पहले नाश्ता करलो फिर जाना।"
"अरे यूँ गया और यूँ आया। 2 किलोमीटर भी तो नहीं है। स्टोरकीपर कहीं चला गया है तो दूसरी चाभी देना है।"
"लो बाइक की चाभी और ये लो हेल्मेट।"
"अरे दो मिनट में आ रहा हूं और तुम ज्ञान देने लगी। केवल चाभी लेकर आशीष निकल पड़ा।
" अना, जा जा। बेटा,पापा को हेल्मेट दे आ। तुझे तो मना नहीं करेंगे न!"
"पापा हेल्मेट! कहते हुए अना भागी। पर ओह्ह!सॉरी मम्मा! पापा निकल गए।"
"तेरे पापा भी न,एक नम्बर के ढक्कन हैं। मेरी कोई बात नहीं मानते। पराँठा बनाती हूँ। तब तक तो आ ही जायेंगे।"
"मम्मा! किसी का फोन आ रहा है? ये देखो।"
"हेलो, हेलो! कौन?"
"हेलो मैडम, पटेल सर्कल पर किसी बाइक वाले का एक्सीडेंट हो गया है। उसके सर में बहुत चोट लगी है। उसके मोबाइल में सबसे पहला आपका ही नम्बर था।"
"हे भगवान, बस मैं अभी आयी। और स्कूटी लेकर भागी।"
"मम्मा, हेल्मेट!
5. धोखा
रात भर इंतज़ार के बाद संगीता की आँख लगी ही थी कि आते ही दिनेश ने चौंका दिया," मुझे तलाक़ चाहिए!"
....
"सुना नहीं तुमने, मैंने क्या कहा?"
" हाँ, सुन लिया। पेपर तैयार है। दे रही हूँ।"
"क्या? क्या मतलब?"
" अरे, तुमको तलाक़ चाहिये न तो पेपर तैयार करके रखा हुआ है। दे रही हूँ।"
"मतलब कि तुमको दीप्ति के बारे में सब कुछ पता लग गया।"
" उसके बारे में तो बहुत पहले से पता था।"
"अच्छा,जब पता लग ही गया है तो ठीक है।"
"ये लो पेपर। मैंने दस्तखत कर दिये हैं।"
"बहुत बढ़िया। तो घर कब खाली कर रही हो?"
"कौन सा घर?"
"यह घर। मेरा घर और कौन सा घर, जिसमें तुम अभी रह रही हो।"
"तुम्हारा घर!यह घर अब मेरे नाम पर है। इसका भी पेपर दे दूँ क्या?"
"क्या बकती हो तुम?"
"आवाज़ नीचे! और हाँ, दुकान पर आने की कोई जरूरत नहीं है। वह भी तुमने मेरे नाम कर दिया है।"
"क्या? धोखा, इतना बड़ा धोखा!"
" हा हा हा हा!धोखा!हाँ, धोखा। तुमने जो किया, वह क्या था?"
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6.हॉकी_स्टिक
कजन के लिये बैडमिंटन लेने जब दुकान पर पहुँचा तो ढेर सारे हॉकी स्टिक को देख आश्चर्यचकित हो दुकानदार से पूछ बैठा," इस शहर में हॉकी खेलने लायक तो एक भी फील्ड नहीं है तो हॉकी स्टिक बिकता है क्या?"
"हाँ, खूब बिकती हैं ये। दूसरे कई फील्ड में खूब डिमांड है इनकी।" दुकानदार ने मुस्कुराते हुये कहा।
7. #कमीना
दोपहर की फ्लाइट से सास-ससुर आने वाले थे। जया बेसब्री से चहलकदमी करते हुये कजरी की प्रतीक्षा कर रही थी।
उसके आते ही जया उस पर बरस पड़ी,"तुमको कल ही बता दिया था न कि सास-ससुर आने वाले हैं। फिर आने में देर क्यों कर दी?"
"सारी मेम साब, वो थोड़ा पैर फिसल गया था तो चोट लग गयी।"
"तेरा पैर फिसल गया था या हमेशा की तरह तेरा मरद फिसल गया था।"
"नहीं मेम साब, ऐसा नहीं है।"
"देखने तो दे। इधर आजा। अच्छा तो आज इसलिये सर पर चुनरी डाल कर आयी है। चुनरी हटाने दे । ओह्ह, ये ज़ालिम कितना कसाई है!"
"क्या करें मेम साब। सब नसीब का खेल है।"
" कुछ नसीब का खेल नहीं है। ऐ कजरी, तू अपने मरद को छोड़ क्यों नहीं देती?"
"मेम साब, क्या बोलूँ? छोटी मुंह बड़ी बात हो जाएगी।"
"न री पगली ,बोल दे।"
"आप क्यों नहीं छोड़ देते? आप तो पढ़ी लिखी हैं। नौकरी भी करती हैं। और साहब तो हमरे मरद से भी गए गुजरे हैं। मेरा मरद तो केवल मारता है, वह भी दारू पीने के बाद। पर साहब तो मारते भी हैं , गाली भी देते हैं और दूसरी औरत...."
" हाँ! सच कहा तूने कजरी। हम औरतें एक दूसरे को केवल दिलासा दे सकते हैं पर खुद कुछ नहीं कर सकते। जानती है क्यों?"
"क्यों? मेम साब!"
" क्योंकि बिना मरद के समाज जीने नहीं देगा और अगर दूसरा मरद इससे भी बड़ा कमीना निकल गया तो?"
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8. पुल
आज तीसरा दिन था जब पत्नी से आखिरी बार बात हुई थी। सिद्धांत की शादी के छह साल हो गए थे किन्तु पहली बार ऐसा हुआ था। दिन में १०-१२ कॉल, बीसियों मैसेज और एक दो वीडियो कॉल आम था। बोलते समय नियंत्रण रखना कितना जरूरी होता है, इसका एहसास शिद्दत से हो रहा था। कोई बड़ी बात थी भी तो नहीं। पर बहस विवाद में बदल गयी और कटु शब्द को वह रोक नहीं पाया। बात करने की व्याकुलता बढ़ती जा रही थी पर अहं अभी भी हार मानने को तैयार न था। पत्नी बिटिया के माध्यम से बात कर अपना कर्त्तव्य निर्वाह पूरा कर रही थी।
आज बिटिया के सवाल का जबाब देना बहुत मुश्किल लग रहा था।
"पापा, पापा! आप मम्मा से बात क्यों नहीं करते हैं?"
.....
" आप नहीं बताइयेगा तो हम भी आपसे बात नहीं करेंगे।" बिटिया की आवाज़ में नमी साफ दिख रही थी।
"नहीं बेटा, ऐसी बात नहीं है।"
.....
"बेटा, क्या हुआ? हेलो, हेलो...."
.....
" हेलो, हेलो!"
"फोन मुझे दे दिया है। शाम से ही रो रही है। पूछ रही है कि तुम पापा से बात क्यों नहीं करती हो?"
पत्नी की आवाज़ सुन जो खुशी हुई उसे छुपाना आसान न था," सही ही तो पूछ रही थी। गलती मेरी हो या तुम्हारी, दर्द तो ज्यादा उसी को हो रहा था। परिवार से दूर रहने पर गुस्सा ज्यादा ही आता है। गलती मेरी थी। माफ कर दो मुझे।आइंदा मैं बोलने समय ध्यान रखूँगा।"
"नहीं, गलती मेरी थी। मैं अगर ज्यादा न बात बढ़ाती तो यह सब न होता। आज अगर बिटिया न होती तो हम दोनों नदी के दो किनारे ही रह जाते न!"
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9. मुखाग्नि
सवेरे सवेरे फोन की आवाज़ ट्रिंग ट्रिंग सुन अनुपम के मुँह से गाली निकलने ही वाली थी कि देखा भईया का फोन है। भईया भी न समय भी नहीं देखते हैं और फोन कर देते हैं, बड़बड़ाते हुये फोन साइलेंट कर दिया। दोबारा फोन आते देख उसने उठा लिया," हेलो भईया।"
......
" क्या हुआ भईया। हेलो। हेलो। कुछ बोल क्यों नहीं रहे हैं?"
" कुछ नहीं। तुम फ्लाइट पकड़ कर जल्दी से घर पहुँचो"
"पर हुआ क्या?क्या हुआ पापा को?
"अंतिम दर्शन के लिये बुला रहे हैं। हम भी ट्रेन पकड़ने जा रहे हैं।"
"नहीं। पापा हमको छोड़ कर नहीं जा सकते। कब हुआ ई सब?"
" एक घण्टा पहले। छोटका चाचा कहे हैं कि वह सब व्यवस्था बात करके रखेंगे।"
दोनों भाई थोड़ी देर के आगे पीछे पहंचे तो चौक पर ही एगो भाय प्रतीक्षा कर रहा था। बैग वहीं पटक रोते कलपते और एक दूसरे को दिलासा देते श्मशान की ओर भागे।"
शमशान में बड़ी बहिन को देख कर दोनो भाई आश्चर्य में पड़ गए। छोटका चाचा कहने लगे," बहुत मना किए पर मानी ही नहीं। ज़िद पर बैठ गयी कि अंतिम समय तक साथ रहेंगे।"
पीछे से लाल कक्का ज़ोर से बोले,"सूर्यास्त होने ही वाला है। जल्दी से मुखाग्नि वला काम शुरू करो।"
एक आदमी ने मुखाग्नि भईया के हाथ में दे दिया और बड़े बुजुर्ग मंत्र पढ़ने लगे।
भईया मुखाग्नि लगाने ही वाले थे कि अनुपम ने कहा,"रुक जाइये भईया!"
"क्यों?सब अचरज से अनुपम की ओर देखने लगे।"
"हम दोनों भाय तो केवल पैसा भेजकर अपना कर्तव्य पूरा करते रहे। असली बेटा तो बहिन है जो अपना घर परिवार छोड़कर दिन रात पापा की सेवा करती रही। इसीको मुखाग्नि देने दीजिये।"
लाल कक्का जिनको बेटा न था, " सही कह रहा है ई अनुपम। इसी को मुखाग्नि देने दो।"
कुछ विरोध की आवाज़ भी उठीं पर वह असली बेटे के कर्तव्य तले दबकर रह गयीं।
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10. #अतिथि
पत्नी ने हफ्ता भर पहले ही ऐलान कर दिया था कि उसके बचपन की सहेली अपनी पति के साथ आज दोपहर के खाने पर आने वाली है। बच्चे घर को व्यवस्थित करने की पूरी कोशिश कर रहे थे। मैं भी उनका हाथ बँटा ही रहा था कि ड्राइंग रूम से आती आवाज़ सुन बच्चे हँसने लगे। मैंने आँख कड़ा किया तो वह पुनः अपने कार्य में मशगूल हो गए। कुछ ही पल बाद श्रीमती जी का किचेन से बुलावा भी आ गया," मैंने कुछ कहा था आपको! याद है भी या भूल गए?"
"सब समान तो सवेरे ही ला दिया था। अब क्या छूट गया?" मैंने दिमाग पर ज़ोर देते हुए जबाब दिया।
"अरे, बाबूजी को...!"
"चुप..चुप। भगवान के लिये चुप हो जाओ।" ये आजकल के बिल्डर भी न टु बी एच के इतना छोटा बनाते हैं कि थोड़ा जोर से साँस भी लो तो दूसरे कमरे में खबर पहुँच जाती है। मैं बहुत हिम्मत कर पिताजी के पास पहुँचा। ड्रॉइंग रूम में एक चारपाई ही उनका कमरा बना हुआ था।
"पिताजी!"
"हाँ बेटा, बोलो!"
"वो आप! कुछ देर के लिये...पार्क चले जाते तो...!"
"अरे, तुम्हरा दिमाग ठीक है या नहीं। इतनी धूप में मुझे घर से बाहर भेजना चाह रहा है। क्या बात है?"
"वो दरअसल...कुछ मेहमान आने वाले हैं ...तो..!"
"तो...मैं नौकर जैसा दिखता हूँ क्या? मुझे अपना बाप बताने में आपको शर्म आयेगी न! ठीक है, मैं चला जाता हूँ। लाओ मेरा बेंत दो!" उनके आँखों में आँसु देख मेरी आँखें दरिया बनने को बेकरार हो उठीं।
"नहीं पिताजी" मैंने उनका हाथ अपने हाथों में लेते हुये कहा, "दरअसल, आपको गैस की बीमारी है न! हर पाँच-दस मिनट पर जो आवाज़ निकलती है। वह मेहमानों के सामने अच्छा लगेगा क्या?"
"ओह्ह! तो यह बात है। इस उम्र में दस में से हर तीन-चार को यह बीमारी रहती ही है। अगर आने वाले मेहमान के माँ-बाप को यह बीमारी हो तो उन्हें घर से बाहर कर दिया होगा न! क्यों?" पिताजी ने मेरा हाथ छिटक दिया।
"पिताजी...पिताजी! मेरे कहने का यह आशय नहीं था।"
"मैं तेरा बाप हूँ। तेरा आशय खूब समझता हूँ।" आँसू अब उनके नियंत्रण के बाहर जा चुके थे।
इधर मैं शर्म से गड़ा जा रहा था कि किचन से आयी कड़क आवाज़ ने सबको चौंका दिया,"कहीं नहीं जायेंगे बाबुजी। जिसको आना है आये और जिसको नहीं आना हो, न आये।"
पत्नी को गिरगिट बनते देख एक पल के लिये तो बहुत गुस्सा आया फिर उसकी बुद्धिमानी समझ दोनों हाथ जोड़ मैं अपने भाग्य पर इतराने लगा।
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11. #डीएनए_टेस्ट
"क्या हुआ दामाद जी?"
"नहीं, कुछ नहीं।"
" परसो से देख रहे हैं। आप खुश नहीं है। पांच साल के बाद बच्चा हुआ है। आपको तो बहुत खुश होना चाहिए था लेकिन...."
" हम खुश हैं। बिल्कुल खुश हैं।"
"ओह्ह! अब समझी। बिटिया हुआ है इसलिए उदास हैं। अरे! पहला बच्चा है! जो भगवान दे, खुश हो जाना चाहिए।"
"नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है। बेटा बेटी दोनों बराबर है मेरे लिये।"
"तो क्या हुआ? दहेज़ की चिंता अभी ही लग गयी क्या? सब बच्चा अपने भाग्य कर्म से आता है। बिल्कुल चिंता नहीं कीजिये।"
" हाँ, हाँ। यह बात तो है।"
" तो पाटी साटी का तैयारी करने के बदले मुंह काहे लटकाए हुए हैं। मानसी आपको ऐसे देखेगी तो उसका तबियत और खराब हो जाएगी न। अभी तो वह डिस्चार्ज भी नहीं हुई है।"
.....
" बोलियेगा। तब तो समझ में कुछ आएगा।"
......
"आपको मानसी की कसम, बताइयेगा क्या बात है?"
"जो भी बच्चा देखने आता है, सब कहता है कि देखो चेहरा बिल्कुल संजू पर गया है।"
"अच्छा तो यह बात है। शक! संजू उसका चचेरा भाई है। फिर भी आपको उस पर शक है। छि:।
.....
" आपका आफिस के काम से हफ़्तों बाहर रहते हैं। दो दो बजे रात तक ऑनलाईन रहते हैं। कई लड़की और औरत आपकी दोस्त है। मेरी बेटी को भी तो शक होना चाहिए था न!"
"मैंने ऐसा कभी कुछ न किया जिससे शक हो।"
"मेरी बेटी ने कभी कुछ ऐसा नहीं किया। जिसने शादी से पहले नहीं किया, वह बाद में क्या करेगी?"
"सब दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। डीएनए टेस्ट करा ले, बस।"
"क्या कहा? डीएनए टेस्ट!"
"जी! वही।"
" तो फिर ठीक है। अगर टेस्ट में आपका बच्चा नहीं निकला तो आप तलाक़ दे दीजियेगा। हाँ एक बात और अगर आपका बच्चा निकला तो मानसी आपको तलाक़ दे देगी। ठीक है न!"
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" जब ये मन्ज़ूर हो जाय तो आ जाइयेगा। अभी नज़र से दूर हो जाइये। जाइये।"
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12.#दुविधा
छठ पूजा को बीते महीना पूरा हो रहा था।पर जब भी सुधीरबा पंजाब जाने की बात करता,कनिया का चेहरा उतर जाता। कल तक जो पैर पकड़ कर निहोरा करती थी, आज उसने कंधा पकड़ कर झिंझोर दिया।मन तो किया कि एक झापड़ दे दें पर, कनिया की आँखों में बादल देख रूक गया।
"का चाहती हो तुम?सबेरे-शाम बाबूजी से बात सुनें!माय गाली देगी तो तुमको अच्छा लगेगा न!"
"नहीं, ऐसा कुच्छो न है। आप यहीं कुछ काम कर लीजिए। हम अपना गहना देने को तैयार हैं।"
"पगला गयी है का। कितना का गहना होगा? 2 लाख का भी नहीं। उसमें कौन सा बिजनिस हो पायगा?"
"हम कुच्छो नहीं जानते हैं, बस आप यहीं रहिये!"
"कल भी वहाँ से नुनुआ का फोन आया था कि अगर जल्दी से नहीं पहुँचे तो सरदारबा नौकरी से निकाल देगा। पर एक बात समझ में नहीं आ रहा है कि तुम यहाँ रहने के लिये इतना ज़िद क्यों कर रही हो?"
" आप तो भोलेनाथ हैं! आप के यहाँ से जाते ही आपके कुछ लक्ष्मण भाय बाली बनने की कोशिश में लग जाते हैं। दू-तीन चच्चा भी इंदर बनने का मौका तलासते रहते हैं। आप ही बताइये का करें हम ?
......
"भीष्म पितामह बन गये कि युधिष्ठिर?"
"अब सीता मैया या द्रौपदी बनने से काम नहीं चलेगा।"
"तो का करें?पद्मावती बन जायें, आप ही समझाइये हमको।"
"नहीं, तुम अब रणचंडी दुर्गा बन जाओ।"
"का,का मतलब है आपका?"
" मतलब साफ है। अब मरद से बचने के लिये औरत को मरद बनना ही पड़ेगा।"
© मृणाल आशुतोष
संपर्क:
मृणाल आशुतोष
पुत्र:श्री तृप्ति नारायण झा
ग्राम+पोस्ट-आरसी नगर एरौत
भाया-रोसड़ा
जिला-समस्तीपुर(बिहार)
848210
ईमेल- mrinalashutosh9@gmail.com
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सभी लघुकथाएं अच्छी है।
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