सबसे ठीक नाम // पश्चिमी अफ्रीका की लोककथाएँ // सुषमा गुप्ता

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देश विदेश की लोक कथाएँ — पश्चिमी अफ्रीका–1 : पश्चिमी अफ्रीका की लोक कथाएँ–1 बिनीन, बुरकीना फासो, केप वरडे, गाम्बिया, गिनी, गिनी बिसाऔ, आइवर...

देश विदेश की लोक कथाएँ — पश्चिमी अफ्रीका–1 :

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पश्चिमी अफ्रीका की लोक कथाएँ–1

बिनीन, बुरकीना फासो, केप वरडे, गाम्बिया, गिनी, गिनी बिसाऔ, आइवरी कोस्ट, लाइबेरिया,


संकलनकर्ता

सुषमा गुप्ता


6 सबसे ठीक नाम[1]

यह लोक कथा पश्चिमी अफ्रीका के गिनी बिसाऔ नाम के देश की लोक कथाओं से ली गयी है।

एक बार एक गाँव में तीन आदमी रहते थे जो यह समझते थे कि वे ही सबसे अच्छे हैं। उनको अपने सबसे अच्छा होने के बारे में इतना ज़्यादा यकीन था कि उन्होंने तीनों ने अपने गुणों के मुताबिक ही अपना नाम रखा हुआ था।

उनमें से एक का नाम था कंजूस। वह समझता था कि दुनिया में उससे बड़ा कंजूस कोई और है ही नहीं।

दूसरे का नाम था लालची। वह भी यही समझता था कि वह सबसे ज़्यादा भूखे को भी बीमार बना सकता था।

और तीसरे आदमी का नाम था नाक अड़ाने वाला। वह समझता था कि वह अपनी नाक अपने सिर के पीछे भी लगा सकता था यह देखने के लिये कि उसके पीठ पीछे भी वह किसी के ऊपर हँस सकती थी या नहीं।

अपने इन अजीब से गुणों की वजह से वे तीनों दोस्त बन गये और हमेशा इस बहस में लगे रहते कि कौन किसको हरा सकता है।

एक दिन ऐसी ही एक बहस के बीच कंजूस लालची से बोला — “मुझे वाकई नहीं मालूम कि हम इस बात पर हमेशा बहस क्यों करते रहते हैं। तुम ऐसा कैसे सोचते हो कि तुम मुझसे ज़्यादा लालची हो जितना कि मैं कंजूस हूँ। ”

लालची बोला — “क्योंकि मैं हूँ इसलिये। ”

कंजूस बोला — “तो साबित करके दिखाओ। ”

लालची बोला — “ठीक है। यह गाँव तो बहुत छोटा है। इसके अलावा क्योंकि इस गाँव के लोग तुमको जानते हैं तो तुम मेरे वोट कम कर दोगे इसलिये हमें और तुम्हें यहाँ से कहीं और जाना चाहिये और वहाँ जा कर यह देखना चाहिये कि कौन अपने नाम के अनुसार रह पाता है।

तुमको इससे ज़्यादा अच्छी शर्त और कहीं नहीं मिलेगी। दूसरे लोग सब बिना किसी की तरफदारी के अपना फैसला देंगे और हम लोग एक बार में ही यह जान लेंगे कि कौन अपनी तारीफ अपने आप कर रहा है और किसकी तारीफ दूसरे लोग कर रहे हैं। ”

सो जब वे यह बहस कर रहे थे और उन्होंने अपनी शर्त रखी तो नाक अड़ाने वाला छिप कर उनकी ये बातें सुन रहा था।

जब वे अपनी अपनी यात्र पर जाने के लिये तैयार हुए तो वह नाक अड़ाने वाला अपने घर भाग गया और उनके बिना बुलाये खुद भी उनके मामले में अपनी नाक अड़ाने के लिये तैयार हो गया।

घर जा कर उसने अपनी पत्नी से कहा कि वह उसकी लम्बी यात्र के लिये काफी खाना बाँध दे।

उसकी पत्नी ने पूछा — “लेकिन तुम जा कहाँ रहे हो?”

उसने अपनी पत्नी को बताया कि कंजूस और लालची ने एक शर्त लगायी है और मैं उनकी पहरेदारी करने जा रहा हूँ। उनके ऊपर एक ऐसा आदमी भी तो चाहिये न जो उनके ऊपर बिना किसी तरफदारी के जाँच रख सके।

उसकी पत्नी ने उसको छेड़ा — “अपनी नाक अड़ाना तो तुम्हारा काम है। अगर उस शर्त मे तुम भी शामिल होते तो मुझे पूरा यकीन है कि तुम जीत जाते। कोई भी तुम्हारी तरह दूसरों के कामों में अपनी नाक नहीं अड़ा सकता। ”

सो अगली सुबह बहुत जल्दी ही वह कंजूस और लालची की तय की हुई उस जगह पर पहुँच गया जहाँ से वे अपनी यात्र शुरू करने वाले थे।

कंजूस ने उसको देखा तो उससे पूछा — “तुम यहाँ क्या कर रहे हो?”

नाक अड़ाने वाला बोला — “मुझे लगा कि तुमको शर्त जीतने के लिये कोई तो चाहिये जो तुम्हारा फैसला कर सके। ”

अब तुमको तो मालूम है कि लालची को भीख माँगना बहुत अच्छा लगता है सो उसने कोई खाना अपने साथ अपनी यात्र के लिये नहीं बाँधा था।

उसने सोचा कि कंजूस के पास तो हम दोनों के लिये काफी खाना होगा ही और अगर वह उसे अपना खाना न भी देना चाहे तो भी मुझे यकीन है कि मैैं उससे उसका इतना खाना तो ले ही लूँगा जो मैं अपना पेट भर सकूँ क्योंकि मैं उस कंजूस से ज़्यादा लालची हूँ।

सो तीनों आदमी एक तंग रास्ते से मोड़ खाती हुई सड़क से अपनी साहसी यात्र पर चले। जल्दी ही सूरज निकल आया और फिर दोपहर भी हो गयी।

सबको भूख और प्यास लग आयी। कंजूस को बहुत ज़ोर से भूख लगी थी पर वह लालची के सामने अपना खाना खाने से हिचकिचा रहा था।

कंजूस बोला — “ओह, मुझे तो जरा जाना पड़ेगा। तुम मेरा यहीं इन्तजार करो। मैं अभी एक मिनट में आया। मुझे जरा लघुशंका के लिये जाना है। ”

लालची को कंजूस के ऊपर बिल्कुल भी विश्वास नहीं था। उसको कुछ शक हुआ कि जरूर कुछ गड़बड़ है सो वह कंजूस से बोला — “तुमने मेरे मुँह के शब्द छीन लिये। मुझे भी जाना है। मुझको तो बहुत ज़ोर से आ रहा है। चलो दोनों एक साथ ही चलते हैं। ”

सो वे दोनों वहाँ से जंगल में गायब हो गये। नाक अड़ाने वाला भी यह सोच कर उनके पीछे पीछे चला गया कि देखूँ तो वे दोनों क्या वाकई लघुशंका के लिये गये हैं या कुछ और बात है।

जब तीनों ने लघुशंका कर ली तो वे आराम करने बैठ गये। क्योंकि लालची कंजूस को बराबर देख रहा था इसलिये कंजूस अपना खाना नहीं खा पा रहा था।

सो धीरे से उसने अपनी एक बाजरे की रोटी निकाली और उसको अपने पीछे रख ली। फिर वह लालची की तरफ मुँह करके उससे बातें करने लगा जैसे कि कुछ हुआ ही न हो।

कंजूस ने लालची से पूछा — “यहाँ से अगला गाँव कितनी दूर है?”

जैसे ही लालची ने दूसरे गाँव के लिये एक दिशा में इशारा किया वैसे ही कंजूस ने अपनी रोटी में से एक टुकड़ा ले कर खाने की कोशिश की।

पर जैसे ही उसने ऐसा किया उसके इस काम से एक हिरन चौंक गया। असल में उस हिरन को भी उसकी रोटी की खुशबू आ गयी थी। वह हिरन भी उसकी रोटी खाने की कोशिश कर रहा था।

जैसे ही कंजूस ने अपना मुँह घुमा कर देखा तो हिरन उसकी बची हुई रोटी ले कर भाग गया। कंजूस इस उम्मीद में हिरन के पीछे भागा कि वह उससे अपनी रोटी वापस ले लेगा।

अब तक लालची को यह पता चल गया था कि क्या हुआ था। उसको हिरन के जमीन पर छोड़े हुए रोटी के टुकड़ों को चाटने के लिये काफी देर तक इन्तजार करना पड़ा। वह कंजूस और हिरन के पीछे भागा।

“यम यम। यह बाजरे की रोटी तो बहुत ही स्वाददार है। मुझे तो बहुत ज़ोर की भूख लगी है। इससे पहले कि मैं भूख से मरूँ मुझे तो यह बाजरे की रोटी और चाहिये। ”

नाक अड़ाने वाला जो यह सब देख रहा था वह भी उन लोगों के पीछे यह कहते हुए भागा — “यह देखने में तो बड़ा मजा आयेगा कि कंजूस किस तरह से हिरन से अपनी रोटी वापस लेता है।

मैं जानता हूँ कि वह कंजूस है फिर भी उसके लिये हिरन को पकड़ना मुश्किल काम है। क्योंकि वह इतना तेज़ तो भाग नहीं सकता। ”

चकम, चकम, चकम। हिरन का पीछा करते करते वे सब झाड़ियों में गये, मैदानों में गये। ऐसा काफी देर तक चलता रहा कि कंजूस को लगा कि बस उसने हिरन को अब पकड़ा और अब पकड़ा।

तभी हिरन लड़खड़ाया और उसके मुँह से रोटी का एक छोटा सा टुकड़ा गिर गया जो वह खा नहीं पाया था।

कंजूस ने वह टुकड़ा उठा लिया और इतने में ही नाक अड़ाने वाले ने कंजूस को पकड़ लिया ताकि वह यह देख सके कि अभी कितनी रोटी और रह गयी थी।

उधर लालची ने हिरन को पकड़ लिया और उसके गले में हाथ डाल कर जो कुछ भी उसके मुँह के अन्दर था निकाल लिया।

अब यह बताओ कि इनमें से कौन सा आदमी अपने नाम के अनुसार था – कंजूस, या लालची, या नाक अड़ाने वाला?



[1] The Most Suitable Name – a Fulani folktale from Guinea-Bissau (pronounced as Ginee-Bissaaoo), West Africa. Adapted from the Book “The Orphan Girl and the Other Stories”, by Offodile Buchi. 2001.

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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का  विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं के संकलन में से सैकड़ों लोककथाओं के पठन-पाठन का आनंद आप यहाँ रचनाकार के  लोककथा खंड में जाकर उठा सकते हैं.

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फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: सबसे ठीक नाम // पश्चिमी अफ्रीका की लोककथाएँ // सुषमा गुप्ता
सबसे ठीक नाम // पश्चिमी अफ्रीका की लोककथाएँ // सुषमा गुप्ता
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