मम्मी-पापा की लड़ाई (बाल कविता संग्रह) हरीश कुमार 'अमित काम ही काम सुबह-सुबह ही जागम-जाग, और फिर स्कूल की भागम-भाग । दोपहर तक स्कूल में प...
मम्मी-पापा की लड़ाई
(बाल कविता संग्रह)
हरीश कुमार 'अमित
काम ही काम
सुबह-सुबह ही जागम-जाग,
और फिर स्कूल की भागम-भाग ।
दोपहर तक स्कूल में पढ़ाई,
घर पहुंचते बजते अढ़ाई ।
खाना खा होमवर्क में जुटते,
रात तलक हम इसमें खटते ।
हमको तो जरा न आराम,
सारा दिन बस काम-रही-काम ।
छुट्टियों का काम
हुई छुट्टियां स्कूल की जब
चिंटू जी हर्षाए,
खेले खूब खेल जी-भर
उछले-कूदे-खाए ।
मजे-मजे में पूरी छुट्टियां
इसी तरह बिता दीं,
आया याद काम छुट्टियों का
जब आखिरी छुट्टी आई ।
काम पूरा कर लेने की सोची
चिंटू जी ने रात-भर जागकर,
पर ग्यारह बजते-न-बजते
सोते मिले वे घोड़े बेचकर ।
इम्तहान
पास आ गए फिर इम्तहान,
है मुश्किल में अपनी जान ।
करने दो मुझे बस पढ़ाई,
बाटो न तुम मेरा ध्यान ।
कक्षा में अव्वल आऊंगा,
मैंने पक्का लिया है ठान ।
हो जाएगी जब खत्म परीक्षा,
सोऊंगा तब लम्बी तान ।
खुल गए स्कूल
खेलें अनेक कम्प्यूटर गेम्स,
देखा खूब टी.वी. - शीवी.,
खेला बहुत क्रिकेट-फुटबाल,
जीभर हमने की मस्ती ।
पर अब बदल गया है वक्त,
क्योंकि खुल जो गए हैं स्कूल,
करनी होगी खूब पढ़ाई,
सारी मस्ती जाएंगे भूल ।
कम्प्यूटर भाई
कम्प्यूटर भाई तो बड़ा सयाना,
अक्ल का जैसे हे यह खजाना ।
काम करे बस बजाते चुटकी,
इसके करतब तो हैं नाना ।
इसका लोहा तो भई अब,
सारी दुनिया ने है माना ।
बच्चा-बच्चा इसे जान गया है,
नहीं रहा अब यह अनजाना ।
रोटी
मजेदार होती है रोटी,
मीठी कितनी होती है रोटी ।
बिल्कुल सूरज-चंदा जैसी,
गोलमगोल होती है रोटी ।
सारे जग की भूख मिटाए,
जीवन-ज्योति होती है रोटी।
सागर में अपने स्वाद के,
हम सबको भिगोती है रोटी ।
बन्दर जी का टूर
बन्दर जी का बन गया टूर,
बोले, ''जाना है बडा दूर ।
गाड़ी के बदले जहाज से,
जाना भी हो गया मंजूर ।
मजे करूंगा खूब टूर में,
खाऊंगा खूब, घूमूंगा, दूर-दूर ।
पर ऐन वक्त पड़े बीमार,
हो गया सपना चकनाचूर ।
उनके बदले गए टूर पर,
उनके साथी मिस्टर लंगूर ।
वेतन का दिन
हर माह के अंतिम दिन,
कटते हैं पल-पल गिन-गिन ।
हों पर्स मम्मी-पापा के खाली,
आए काम तब गुल्लक मेरे वाली ।
कर-कर इन्तजार आता वह दिन,
मिलता है जब पापा को वेतन ।
आते जब पापा उस शाम को घर,
छा जाती रौनक सबके चेहरों पर ।
सब अपनी-अपनी मांगे गिनवाते,
सब की सुन, पापा बजट बनाते ।
मम्मी-पापा की लड़ाई
खूब है मम्मी-पापा की लड़ाई,
जरा देर भी चल न पाई ।
अभी-अभी तो रहे थे झगड़,
इक-दूजे पर रहे थे बिगड़ ।
पर अब मान गए हैं वो,
जैसे कुछ भी हुआ न हो ।
वेसे तो हें प्यार से रहते,
बीच-बीच में मगर झगड़ते ।
समझ नहीं यह मुझको आता,
उनके झगड़े कौन निपटाता ?
होली के रंग
होली के रंग हैं कितने प्यारे ।
इनमें मिले हैं दिल हमारे ।
बचके कहां जाओगे भइया,
खेलेंगे होली हम संग तुम्हारे ।
रंग देंगे तुमको तो पूरा,
मिलकर अब सारे-के-सारे ।
अच्छा होगा खुद ही आ जाओ
रहो न बैठे अलग किनारे ।
रंग उड़ाएगे हम इतना,
रग जाएंगे बादल ये सारे ।
बारिश का मौसम
बारिश के मौसम में भैया
मोर नाचता ता-ता-थैया ।
छा जाए हरियाली सब ओर,
भर जाते नदी-ताल-तलैया ।
खुश हो जाता है हर कोई,
बच्चे, बूढ़े, हाथी, गैया ।
देखकर बरसात झमाझम,
कहते हैं तब मेरे भैया,
तलो पकौड़े गरम-गरम
देर करो न मेरी मैया ।'' -
मेरे पापा
रोज-रोज क्यों पापा अफिस जाते हैं,
ओर फिर सांझ-ढले ही वापिस आते हैं ।
कहता हूं हर रोज मैं, लेकिन वे फिर भी,
कभी-कभी ही टाफी-बिस्किट लाते हैं ।
समझ नहीं आता कि ऐसा क्यों होता,
लड़े कभी मम्मी से, कभी मुस्काते हैं ।
छुट्टी के दिन खूब खेलते हें मुझसे ।
पर शैतानी करने पर डपट लगाते हैं ।
और जब-जब आती है पहली तारीख,
नोट बहुत से मम्मी को पकड़ाते हैं ।
पापा और अखबार
रखा है क्या इस अखबार में
समझ नहीं मुझे आता,
जोहें बाट सुबह से इसकी
मेरे प्यारे-से पापा ।
जाते हर एक पन्ना चाट
इसका तो मेरे पापा जी,
पढ़े बगैर इसे न उनको
लगता कुछ भी अच्छा जी ।
अगर किसी दिन देर से आए
उनका यह प्यारा अखबार,
दरवाजे तक देखके आते,
कम-से-कम दस-बारह बार ।
लेकिन अगर ऐसा हो जाए
कि अखबार न आए,
उस दिन पापा की हालत
तो बतलाई न जाए ।
छतरी
हरदम रहती होशियार यह छतरी,
धूप-बारिश की पहरेदार यह छतरी ।
सह जाती हे सब कुछ खुद ही,
देखो कितनी दिलदार यह छतरी ।
साथ निभाती हैं सालों-साल,
जब-जब हो दमदार यह छतरी ।
सूना लगता है इसके बिन,
गुम जाए जो इक बार यह छतरी ।
दीवाली
दीपों का त्यौहार दीवाली,
खुशियों का है हार दीवाली ।
कितनी उजली हो जाती है,
दीवाली की रात काली ।
पूजा करते लोग शाम को,
अपनी-अपनी सजाकर थाली ।
सजे हुए बाजारों की तो,
होती इस दिन शान निराली ।
यही प्रार्थना अपनी अब तो,
आए बारम्बार दीवाली ।
पापा का गुस्सा
पापा का गुस्सा भी देखो है कैसा,
है यह बिलकुल बच्चों के गुस्से जैसा ।
जब-जब पापा हो जाते हमसे नाराज,
कहते हम-शैतानी से आएंगे बाज ।
कान पकड़ते, माफी मांगते पापा से,
अच्छे-अच्छे प्यारे-प्यारे से पापा से ।
इक पल में ही तब पापा जाते हैं मान,
खिल उठती फिर सबके होठों पे मुस्कान ।
पापा की डाक
समझ नहीं यह आता मुझको,
चिट्ठी मिलने पर पापा क्यों,
कभी-कभी खुश होते खूब,
कभी चढ़ जाता है पारा क्यों ।
जब न आती चिट्ठी मेरे यार,
कई-कई दिन तक लगातार,
बढ़ जाती तब चिन्ता उनकी,
करते डाक का बहुत इन्तजार ।
क्रिस्मस का त्यौहार
आया क्रिस्मस का त्यौहार,
समेटे खुशियों का अम्बार ।
आज जन्मदिन हे ईसा का,
जाने है सारा संसार ।
करें लोग पूजा गिरजाघरों में,
और बांटे आपस में प्यार ।
सुबह-सवेरे बच्चे पा जाते,
सांताक्लाज़ के प्यारे उपहार ।
आकाश
हे कितना प्यारा आकाश,
नीला-नीला-सा आकाश ।
जब छा जाएं बादल तो,
है टप-टप करता आकाश ।
दिन में उजला-सा दिखता,
रात को हो जाता काला ।
दिन में सूरज दिखलाए,
रात को चंदा मतवाला ।
बटुआ
कभी हो मालामाल यह बटुआ,
होता कभी कंगाल यह बटुआ ।
कभी-कभी गुम भी हो जाए,
करता है कमाल यह बटुआ ।
कभी खिलाता खीर-मिठाई,
कभी करे बेहाल यह बटुआ ।
होता जब-जब ठसाठस भरा,
बदल देता है चाल यह बटुआ ।
रूमाल
देखो तो नीले, पीले, लाल,
तरह-तरह के ये रूमाल ।
चाहे पोंछो तुम इनसे हाथ,
या करो साफ फिर अपने गाल ।
जेब में हो रूमाल बढ़िया-सा,
तब-तब कैसी बन जाए चाल ।,
पर जब इसको जाए घर भूल,
हाल उस दिन हो जाए बेहाल ।
बच्चे
बच्चे तो सबको हैं भाते,
जीते हैं ये हँसते-गाते ।
होते हैं कितने शरारती,
ऊधम कैसे-कैसे मचाते ।
कुल्फी-टॉफी जैसी चीजें,
ये तो खूब मजे से खाते ।
भाता है इनके संग रहना,
खुशियां इतनी ये बरसाते ।
फूलों जैसे महका करते,
सब पर अपना प्यार लुटाते ।
० : हरीश कुमार 'अमित
प्रकाशक : सन्मार्ग प्रकाशन
16 यू बी. बैंग्लो रोड, जवाहर नगर
दिल्ली- 11०००7
प्रथम संस्करण २००३
शब्द-संयोजन : शर्मा कंप्यूटर्स
मुद्रक : पवन आफसेट
नवीन शाहदरा, दिल्ली-32
मम्मी-पापा की लड़ाई
(बाल कविता संग्रह)
हरीश कुमार 'अमित
परिचय
नाम हरीश कुमार ‘अमित’
जन्म 1 मार्च, 1958 को दिल्ली में
शिक्षा बी.कॉम.; एम.ए.(हिन्दी); पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा
प्रकाशन 700 से अधिक रचनाएँ (कहानियाँ, कविताएँ/ग़ज़लें, व्यंग्य, लघुकथाएँ, बाल कहानियाँ/कविताएँ आदि) विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित. एक कविता संग्रह 'अहसासों की परछाइयाँ', एक कहानी संग्रह 'खौलते पानी का भंवर', एक ग़ज़ल संग्रह 'ज़ख़्म दिल के', एक बाल कथा संग्रह 'ईमानदारी का स्वाद', एक विज्ञान उपन्यास 'दिल्ली से प्लूटो' तथा तीन बाल कविता संग्रह 'गुब्बारे जी', 'चाबी वाला बन्दर' व 'मम्मी-पापा की लड़ाई' प्रकाशित. एक कहानी संकलन, चार बाल कथा व दस बाल कविता संकलनों में रचनाएँ संकलित.
प्रसारण - लगभग 200 रचनाओं का आकाशवाणी से प्रसारण. इनमें स्वयं के लिखे दो नाटक तथा विभिन्न उपन्यासों से रुपान्तरित पाँच नाटक भी शामिल.
पुरस्कार-
(क) चिल्ड्रन्स बुक ट्रस्ट की बाल-साहित्य लेखक प्रतियोगिता 1994, 2001, 2009 व 2016 में कहानियाँ पुरस्कृत
(ख) 'जाह्नवी-टी.टी.' कहानी प्रतियोगिता, 1996 में कहानी पुरस्कृत
(ग) 'किरचें' नाटक पर साहित्य कला परिाद् (दिल्ली) का मोहन राकेश सम्मान 1997 में प्राप्त
(घ) 'केक' कहानी पर किताबघर प्रकाशन का आर्य स्मृति साहित्य सम्मान दिसम्बर 2002 में प्राप्त
(ड.) दिल्ली प्रेस की कहानी प्रतियोगिता 2002 में कहानी पुरस्कृत
(च) 'गुब्बारे जी' बाल कविता संग्रह भारतीय बाल व युवा कल्याण संस्थान, खण्डवा (म.प्र.) द्वारा पुरस्कृत
(छ) 'ईमानदारी का स्वाद' बाल कथा संग्रह की पांडुलिपि पर भारत सरकार का भारतेन्दु हरिश्चन्द्र पुरस्कार, 2006 प्राप्त
(ज) 'कथादेश' लघुकथा प्रतियोगिता, 2015 में लघुकथा पुरस्कृत
(झ) 'राष्ट्रधर्म' की कहानी-व्यंग्य प्रतियोगिता, 2016 में व्यंग्य पुरस्कृत
(ञ) 'राष्ट्रधर्म' की कहानी प्रतियोगिता, 2017 में कहानी पुरस्कृत
सम्प्रति भारत सरकार में निदेशक के पद से सेवानिवृत्त
पता - 304ए एम.एस.4ए केन्द्रीय विहार, सेक्टर 56ए गुरूग्राम-122011 (हरियाणा)
ई-मेल harishkumaramit@yahoo.co.in
------
COMMENTS