गाय की पूँछ // पश्चिमी अफ्रीका की लोककथाएँ // सुषमा गुप्ता

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   देश विदेश की लोक कथाएँ — पश्चिमी अफ्रीका–1 :

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पश्चिमी अफ्रीका की लोक कथाएँ–1

बिनीन, बुरकीना फासो, केप वरडे, गाम्बिया, गिनी, गिनी बिसाऔ, आइवरी कोस्ट, लाइबेरिया,


संकलनकर्ता

सुषमा गुप्ता

14 गाय की पूँछ[1]

पश्चिमी अफ्रीका के लाइबेरिया[2] देश के बारिश वाले जंगल[3] के किनारे के पास एक पहाड़ी थी जहाँ से कवाली[4] नदी दिखायी देती थी। वहाँ एक गाँव था जिसका नाम था कुंडी[5]


वहाँ चावल और कसावा[6] के खेत चारों तरफ फैले पड़े थे। वहाँ उन गाँव वालों के जानवर नदी के पास वाले घास के मैदानों में चरते रहते थे।

मिट्टी के गोल गोल घरों की आग से निकला हुआ धुँआ उन घरों की पाम के पत्तों की छतों से निकलता रहता था। यह धुँआ छत से निकल कर सारे गाँव पर छा जाता।

आदमी और लड़के नदी में मछली पकड़ते और स्त्र्यिाँ अपने अपने घरों के सामने लकड़ी की ओखलियों में अनाज पीसती रहतीं।

इसी गाँव में ओगालूसा[7] नाम का एक शिकारी अपनी पत्नी और कई बच्चों के साथ रहता था। एक सुबह ओगालूसा ने अपने घर की दीवार से अपने हथियार उतारे और शिकार करने के लिये जंगल चला गया।

उसकी पत्नी और उसके बच्चे खेत की देखभाल करने और जानवरों को चराने चले गये। दिन गुजर गया घर आ कर उन्होंने शाम का खाना खाया – मानियोक[8] और मछली। रात हो गयी पर ओगालूसा नहीं आया। दूसरा दिन भी गुजर गया पर ओगालूसा फिर भी वापस नहीं आया।


उन्होंने आपस में बात की कि ओगालूस के साथ ऐसा क्या हुआ जिसकी वजह से वह घर वापस नहीं आ सका। इस तरह से एक हफ्ता गुजर गया और फिर एक महीना।

कभी कभी ओगालूसा के बेटे बोलते थे कि उनका पिता घर वापस लौट कर नहीं आया था पर वे कर कुछ नहीं पा रहे थे।

परिवार खेत की देखभाल कर रहा था और बेटे शिकार के लिये चले जाते थे और कुछ दिनों के बाद तो फिर किसी ने घर में ओगालूसा का नाम भी नहीं लिया।

कुछ दिन बाद ओगालूसा की पत्नी ने एक बेटे को जन्म दिया। उसका नाम पुली[9] रखा गया। पुली बड़ा हुआ। उसने पहले बैठना सीखा फिर घुटनों चलना सीखा।

और फिर एक समय आया जब पुली बोलने लगा सबसे पहले वह बोला — “मेरे पिता कहाँ हैं?”

इस सवाल के जवाब में ओगलूसा के दूसरे बेटों ने चावल के खेतों के उस पार की तरफ देखा।

फिर एक और बेटा बोला — “अरे हाँ पिता जी कहाँ हैं?”

दूसरा बेटा बोला — “असल में उनको तो बहुत पहले ही आ जाना चाहिये था। ”

तीसरा बेटा बोला — “उनको जरूर ही कुछ हो गया है। हमको उनको ढूँढना चाहिये। ”

एक बेटा बोला — “वह तो जंगल में गये थे हम उनको कहाँ ढूँढेंगे?”


एक बोला — “मैंने उनको जाते देखा था। वह उस तरफ नदी के उस पार गये थे। चलो उसी रास्ते पर चलते हैं और उनको ढूँढते हैं। ”

सो ओगालूस के बेटों ने अपने अपने हथियार लिये और ओगालूसा को ढूँढने चल दिये। जब वे लोग जंगल में काफी पेड़ों और बेलों के बीच में पहुँच गये तो वे रास्ता भूल गये।

वे फिर जंगल में रास्ता ढूँढने लगे तो एक बेटे को रास्ता मिल गया। वे उस पर चल दिये मगर वे फिर रास्ता भूल गये। तब एक दूसरे बेटे को रास्ता मिल गया। अब जंगल में अँधेरा हो गया था। इस अँधेरे में वे कई बार रास्ता भूले और कई बार उनको रास्ता मिला।

आखिर वे एक साफ जगह आ गये। वहाँ उन्होंने देखा कि ओगालूसा की हड्डियाँ बिखरी पड़ी थीं। पास में ही उसके जंग लगे हथियार पड़े थे। इससे उनको पता चल गया कि उनका पिता शिकार करते समय मारा गया।

उनमें से एक बेटा आगे बढ़ा और बोला — “मैं जानता हूँ कि कैसे किसी मरे हुए आदमी की हड्डियों को एक साथ जोड़ा जा सकता है। ”

कह कर उसने ओगालूसा की हड्डियों को समेटा और उनको जो हड्डी जहाँ लगनी थी वहाँ रख कर उन सबको जोड़ दिया।

दूसरा बेटा बोला — “मुझे भी कुछ आता है। मैं जानता हूँ कि किसी हड्डी के ढाँचे को माँस से कैसे ढका जाता है। ” कह कर वह अपने काम में लग गया और उसने ओगालूसा का हड्डियों का ढाँचा माँस आदि से ढक दिया।

अब तीसरा बेटा बोला — “मेरे पास ऐसी ताकत है जिससे मैं इस माँस में खून दौड़ा सकता हूँ। ” सो वह आगे बढ़ा और उसने ओगालूसा की नसों में खून बहा दिया और फिर एक तरफ को खड़ा हो गया।

ओगालूसा का दूसरा बेटा बोला — “मैं इस शरीर में साँस डाल सकता हूँ। ” कह कर उसने अपना काम किया और सब लोगों ने देखा कि ओगालूसा की छाती ऊपर नीचे उठ बैठ रही थी।

ओगालूसा का एक और बेटा बोला — “मैं इस शरीर में हलचल ला सकता हूँ। ”


सो उसने अपने पिता के शरीर में चलने फिरने की ताकत डाली और ओगअलूसा उठ कर बैठा हो गया और उसने अपनी आँखें खोल दीं।

उसके एक और बेटे ने कहा कि वह उसको बोलने की ताकत दे सकता है। सो उसने उसको बोलने की ताकत दी और वह भी थोड़ा पीछे हट कर खड़ा हो गया।

ओगालूसा ने अपने चारों तरफ देखा और खड़ा हो गया। उसने पूछा — “मेरे हथियार कहाँ हैं?”

बच्चों ने घास पर से उसके जंग लगे हथियार उठाये और उसको दे दिये। उसके बाद वे सब उसी रास्ते से अपने गाँव वापस लौट आये जिस रास्ते से गये थे – जंगल में से और चावलों के खेतों में से हो कर।

ओगालूसा अपने घर के अन्दर गया। उसकी पत्नी ने उसके नहाने का इन्तजाम किया। नहाने के बाद उसने खाना खाया। वह घर में चार दिन तक रहा।

पाँचवे दिन वह बाहर निकला तो उसने अपना सिर मुँड़वाया क्योंकि वहाँ लोग यही करते थे जब वे मरे हुओं के देश से वापस आते थे।

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उसके बाद उसने फिर एक बड़ी दावत के लिये एक गाय मारी। उसने उस गाय की पूँछ ली, उसकी चोटी[10] बनायी। फिर उसने उसको मोतियों और कौड़ियों[11] और चमकीली धातु के टुकड़ों से सजाया। यह सब करने के बाद वह पूँछ बहुत सुन्दर लग रही थी।

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अब ओगालूसा जब भी किसी खास मौके पर कहीं जाता तो उसको अपने साथ ले जाता। कभी कहीं कोई नाच होता या फिर कोई बहुत खास रस्म होती या कुछ और तब भी वह उसको हमेशा अपने साथ रखता।

लोगों का कहना था कि वह सबसे ज़्यादा सुन्दर गाय की पूँछ थी जो उन्होंने अपनी ज़िन्दगी में देखी थी।

जल्दी ही ओगालूसा के मर कर वापस आने की खुशी में गाँव में एक उत्सव मनाया गया। लोगों ने अपने सबसे अच्छे कपड़े पहिने। बाजा बजाने वाले अपने अपने बाजे ले कर आये और नाच शुरू हुआ।

ढोल बजाने वालों ने अपने अपने ढोल बजाने शुरू किये और स्त्रियों ने गाना शुरू किया। लोगों ने उस दिन बहुत सारी पाम की शराब पी। सब बहुत खुश थे।

ओगालूसा आज भी अपनी गाय की पूँछ लिये हुए था और सब उस पूँछ की तारीफ कर रहे थे। कुछ लोग जरा ज़्यादा हिम्मती थे तो वे ओगालूसा से उसकी गाय की पूँछ माँगने के लिये उसके पास भी आये और उन्होंने उसकी वह पूँछ माँगी पर ओगालूसा ने उसको अपने हाथ में ही रखा किसी को उसे दिया नहीं।

कभी कभी कई लोगों ने उसको एक साथ भी माँगा। स्त्र्यिों और बच्चों ने भी उसको देखना चाहा पर ओगालूसा ने सबको उसे दिखाने से भी मना कर दिया।

आखीर में वह बोलने के लिये खड़ा हुआ तो नाच रुक गया और लोग उसको सुनने के लिये उसके पास आ गये। उसने बोलना शुरू किया —

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“यह काफी पहले की बात है कि मैं शिकार करने के लिये जंगल गया। जब मैं शिकार कर रहा था तो एक चीते[12] ने मुझे मार दिया।

तब मेरे बेटे मुझे ढूँढने के लिये आये और वे मुझे मरे हुए लोगों के देश से मेरे गाँव वापस ले कर आये। मैं यह गाय की पूँछ अपने उन्हीं बेटों में से एक बेटे को दूँगा।

मेरे सब बेटों ने मुझको मरे हुए से ज़िन्दा करने के लिये कुछ न कुछ किया है पर मेरे पास तो देने के लिये केवल एक ही गाय की पूँछ है। मैं यह गाय की पूँछ उसी को दूँगा जिसने मुझको घर लाने के लिये सबसे ज़्यादा किया है।

यह सुन कर बच्चों में बहस शुरू हो गयी कि वह गाय की पूँछ किसको मिलनी चाहिये।

एक बेटा बोला — “पिता जी यह पूँछ मुझे देंगे। मैंने ही सबसे ज़्यादा काम किया है क्योंकि जब हम जंगल में रास्ता भूल गये थे तो मैंने ही वहाँ रास्ता ढूँढा था। ”

दूसरा बेटा बोला — “नहीं यह पूँछ मुझे मिलेगी क्योंकि उनके शरीर की हड्डियाँ तो मैंने ही जोड़ी थीं। ”

तीसरा बेटा बोला — “पर उस हड्डियों के ढाँचे को माँस से तो मैंने ही ढका था इसलिये वह पूँछ मुझे मिलेगी। ”


चौथा बेटा बोला — “लेकिन वह मैं था जिसने उस माँस के शान्त शरीर को हिलने डुलने की ताकत दी इसलिये वह पूँछ मुझे ही मिलेगी। ”

पाँचवाँ बेटा बोला — “वह पूँछ तो मुझे मिलनी चाहिये क्योंकि पिता जी के शरीर में खून तो मैंने ही भरा था। ”

छठा बेटा बोला — “असल में वह पूँछ तो मुझे मिलनी चाहिये क्योंकि उनके शरीर में साँस तो मैंने भरी थी।

उसका सातवाँ बेटा बोला — “और उनको बोलने की ताकत मैंने दी थी इसलिये गाय की वह पूँछ मुझे मिलनी चाहिये। ”

इस तरह से उसके सब बेटे आपस में बहस कर रहे थे कि गाय की वह पूँछ उसी को क्यों मिलनी चाहिये। जल्दी उसके बेटे ही नहीं बल्कि गाँव के दूसरे लोग भी आपस में इस बारे में बात करने लगे कि गाय की वह पूँछ उसके किस बेटे को मिलनी चाहिये।

कोई किसी बेटे को पूँछ देने को कह रहा तो कोई किसी बेटे को। कुछ कह रहे थे कि उसको उस पूँछ को अपने सभी बेटों को दे देनी चाहिये।

ओेेगालूसा ने जब यह शोर सुना तो उसने सबको चुप रहने के लिये कहा और बोला — “मैं यह गाय की पूँछ अपने उस बेटे को दूँगा जिसका मैं सबसे ज़्यादा कर्जदार हूँ। ”

कह कर वह आगे बढ़ा और बड़ी नम्रता से झुक कर उसने वह गाय की पूँछ अपने सबसे छोटे बेटे को दे दी जो ओगालूसा के जाने के बाद पैदा हुआ था।

तब गाँव के लोगों को याद आया कि उसके पहले शब्द थे — “मेरे पिता जी कहाँ हैं?” वे जान गये कि ओगलूसा गाय की पूँछ को देने के लिये अपने बेटे को चुनने में ठीक था।

क्योंकि वहाँ एक और कहावत भी कही जाती है कि “कोई आदमी तब तक मरा हुआ नहीं समझा जाता जब तक लोग उसे याद करते रहते हैं। ”

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देश विदेश की लोक कथाओं की सीरीज़ में प्रकाशित पुस्तकें —

36 पुस्तकें www.Scribd.com/Sushma_gupta_1 पर उपलब्ध हैं।

नीचे लिखी हुई पुस्तकें हिन्दी ब्रेल में संसार भर में उन सबको निःशुल्क उपलब्ध है जो हिन्दी ब्रेल पढ़ सकते हैं।

Write to :- E-Mail : hindifolktales@gmail.com

1 नाइजीरिया की लोक कथाएँ–1

2 नाइजीरिया की लोक कथाएँ–2

3 इथियोपिया की लोक कथाएँ–1

4 रैवन की लोक कथाएँ–1

नीचे लिखी हुई पुस्तकें ई–मीडियम पर सोसायटी औफ फौकलोर, लन्दन, यू के, के पुस्तकालय में उपलब्ध हैं।

Write to :- E-Mail : thefolkloresociety@gmail.com

1 ज़ंज़ीबार की लोक कथाएँ — 10 लोक कथाएँ — सामान्य छापा, मोटा छापा दोनों में उपलब्ध

2 इथियोपिया की लोक कथाएँ–1 — 45 लोक कथाएँ — सामान्य छापा, मोटा छापा दोनों में उपलब्ध

नीचे लिखी हुई पुस्तकें हार्ड कापी में बाजार में उपलब्ध हैं।

To obtain them write to :- E-Mail drsapnag@yahoo.com

1 रैवन की लोक कथाएँ–1 — इन्द्रा पब्लिशिंग हाउस

2 इथियोपिया की लोक कथाएँ–1 — प्रभात प्रकाशन

3 इथियोपिया की लोक कथाएँ–2 — प्रभात प्रकाशन

नीचे लिखी पुस्तकें रचनाकार डाट आर्ग पर मुफ्त उपलब्ध हैं जो टैक्स्ट टू स्पीच टैकनोलोजी के द्वारा दृष्टिबाधित लोगों द्वारा भी पढ़ी जा सकती हैं।

1 इथियोपिया की लोक कथाएँ–1

http://www.rachanakar.org/2017/08/1-27.html

2 इथियोपिया की लोक कथाएँ–2

http://www.rachanakar.org/2017/08/2-1.html

3 रैवन की लोक कथाएँ–1

http://www.rachanakar.org/2017/09/1-1.html

4 रैवन की लोक कथाएँ–2

http://www.rachanakar.org/2017/09/2-1.html

5 रैवन की लोक कथाएँ–3

http://www.rachanakar.org/2017/09/3-1-1.html

6 इटली की लोक कथाएँ–1

http://www.rachanakar.org/2017/09/1-1_30.html

7 इटली की लोक कथाएँ–2

http://www.rachanakar.org/2017/10/2-1.html

8 इटली की लोक कथाएँ–3

http://www.rachanakar.org/2017/10/3-1.html

9 इटली की लोक कथाएँ–4

http://www.rachanakar.org/2017/10/4-1.html

10 इटली की लोक कथाएँ–5

http://www.rachanakar.org/2017/10/5-1-italy-lokkatha-5-seb-wali-ladki.html

11 इटली की लोक कथाएँ–6

http://www.rachanakar.org/2017/11/6-1-italy-ki-lokkatha-billiyan.html

12 इटली की लोक कथाएँ–7

http://www.rachanakar.org/2017/11/7-1-italy-ki-lokkatha-kaitherine.html

12 इटली की लोक कथाएँ–8

http://www.rachanakar.org/2017/12/8-1-italy-ki-lokkatha-patthar-se-roti.html

13 इटली की लोक कथाएँ–9

http://www.rachanakar.org/2017/12/9-1-italy-ki-lok-katha-do-bahine.html

14 इटली की लोक कथाएँ–10

http://www.rachanakar.org/2017/12/10-1-italy-ki-lok-katha-teen-santre.html

15 ज़ंज़ीबार की लोक कथाएँ

http://www.rachanakar.org/2018/05/blog-post_54.html

16 चालाक ईकटोमी

http://www.rachanakar.org/2018/05/blog-post_88.html

नीचे लिखी पुस्तकें जुगरनौट डाट इन पर उपलब्ध हैं

https://www.juggernaut.in/authors/2a174f5d78c04264af63d44ed9735596

1 सोने की लीद करने वाला घोड़ा और अन्य अफ्रीकी लोक कथाएँ

2 असन्तुष्ट लड़की और अन्य अमेरिकी लोक कथाएँ

3 रैवन आग कैसे लेकर आया और अन्य अमेरिकी लोक कथाएँ

4 रैवन ने शादी की और अन्य अमेरिकी लोक कथाएँ

5 कौआ दिन लेकर आया और अन्य अमेरिकी लोक कथाएँ

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Updated on May 27, 2018


लेखिका के बारे में

सुषमा गुप्ता का जन्म उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ शहर में सन् 1943 में हुआ था। इन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से समाज शास्त्र् और अर्थ शास्त्र् में ऐम ए किया और फिर मेरठ विश्वविद्यालय से बी ऐड किया। 1976 में ये नाइजीरिया चली गयीं। वहाँ इन्होंने यूनिवर्सिटी औफ़ इबादान से लाइबे्ररी साइन्स में ऐम ऐल ऐस किया और एक थियोलोजीकल कौलिज में 10 वर्षों तक लाइब्रेरियन का कार्य किया।

वहाँ से फिर ये इथियोपिया चली गयीं और वहाँ एडिस अबाबा यूनिवर्सिटी के इन्स्टीट्यूट औफ़ इथियोपियन स्टडीज़ की लाइब्रेरी में 3 साल कार्य किया। तत्पश्चात इनको दक्षिणी अफ्रीका के एक देश, लिसोठो के विश्वविद्यालय में इन्स्टीट्यूट औफ़ सदर्न अफ्रीकन स्टडीज़ में 1 साल कार्य करने का अवसर मिला। वहाँ से 1993 में ये यू ऐस ए आ गयीं जहाँ इन्होंने फिर से मास्टर औफ़ लाइब्रेरी एँड इनफौर्मेशन साइन्स किया। फिर 4 साल ओटोमोटिव इन्डस्ट्री एक्शन ग्रुप के पुस्तकालय में कार्य किया।

1998 में इन्होंने सेवा निवृत्ति ले ली और अपनी एक वेब साइट बनायी – www.sushmajee.com। तब से ये उसी वेब साइट पर काम कर रहीं हैं। उस वेब साइट में हिन्दू धर्म के साथ साथ बच्चों के लिये भी काफी सामग्री है।

भिन्न भि्ान्न देशों में रहने से इनको अपने कार्यकाल में वहाँ की बहुत सारी लोक कथाओं को जानने का अवसर मिला – कुछ पढ़ने से, कुछ लोगों से सुनने से और कुछ ऐसे साधनों से जो केवल इन्हीं को उपलब्ध थे। उन सबको देख कर इनको ऐसा लगा कि ये लोक कथाएँ हिन्दी जानने वाले बच्चों और हिन्दी में रिसर्च करने वालों को तो कभी उपलब्ध ही नहीं हो पायेंगी – हिन्दी की तो बात ही अलग है अंग्रेजी में भी नहीं मिल पायेंगीं।

इसलिये इन्होंने न्यूनतम हिन्दी पढ़ने वालों को ध्यान में रखते हुए उन लोक कथाओं को हिन्दी में लिखना पा्ररम्भ किया। इन लोक कथाओं में अफ्रीका, एशिया और दक्षिणी अमेरिका के देशों की लोक कथाओं पर अधिक ध्यान दिया गया है पर उत्तरी अमेरिका और यूरोप के देशों की भी कुछ लोक कथाएँ सम्मिलित कर ली गयी हैं।

अभी तक 1200 से अधिक लोक कथाएँ हिन्दी में लिखी जा चुकी है। इनको “देश विदेश की लोक कथाएँ” क्रम में प्रकाशित करने का प्रयास किया जा रहा है। आशा है कि इस प्रकाशन के माध्यम से हम इन लोक कथाओं को जन जन तक पहुँचा सकेंगे।

विंडसर, कैनेडा

मई 2018


[1] The Cow-Tail Switch – a folktale from Liberia, West Africa. Taken from the Book :

The Cow-Tail Swich and Other West African Stories. By Harold Courlander George Herzog. NY: Henry Holt and Company. 1947. 143 p.

[This story may be read in English at :

http://westafrikanoralliterature.weebly.com/the-cow-tail-switch.html ] also.

[2] Liberia is a country in Western Africa

[3] Translated for the words “Rain Forests”

[4] Cavally is a large river on the boundary of Liberia and Ivory Coast in the East.

[5] Kundi Village

[6] Cassava is a root vegetable like Yam except that it is thinner and longer than it. It is also a staple diet of West African people. See its picture above.

[7] Ogaloussa – the name of the man

[8] Manioc – is the Casssava flour

[9] Puli – the name of the youngest son of Ogaloussa

[10] Translated for the “Braid” – see its picture above.

[11] Translated for the words “Beads and Cowrie Shells” – see pictures of both above – of beads above and of cowrie shells below.

[12] Translated for the word “Leopard” – see its picture above.

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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का  विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं के संकलन में से सैकड़ों लोककथाओं के पठन-पाठन का आनंद आप यहाँ रचनाकार के  लोककथा खंड में जाकर उठा सकते हैं.

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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: गाय की पूँछ // पश्चिमी अफ्रीका की लोककथाएँ // सुषमा गुप्ता
गाय की पूँछ // पश्चिमी अफ्रीका की लोककथाएँ // सुषमा गुप्ता
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