नाटक “दबिस्तान-ए-सियासत” राक़िम दिनेश चन्द्र पुरोहित अंक पांच मंज़र एक “यह दाढ़ी वाला आख़िर है, कौन ?” नए किरदार – शेरखान – थर्ड ग्रेड लाइब्रे...
नाटक
“दबिस्तान-ए-सियासत”
राक़िम दिनेश चन्द्र पुरोहित
अंक पांच मंज़र एक “यह दाढ़ी वाला आख़िर है, कौन ?”
नए किरदार –
शेरखान – थर्ड ग्रेड लाइब्रेरियन, चेहरे पर दाढ़ी रखने के कारण इनका व्यक्तित्व रौबीला है।
[मंच रोशन होता है, स्कूल के बड़े होल में आज़ डवलपमेंट कमेटी की मीटिंग चल रही है। इस इजलास के मेम्बरान, अधिकतर मोहल्ले के वासिंदे ही हैं। जिनमें फन्ने खां साहब, हाजी मुस्तफा, साबू भाई व मनु भाई रोज़ इजलास में हाज़र रहते हैं, वे आज़ भी इस इजलास में शरकत करने आये हैं। ये सभी मेंबर इस मोहल्ले में ही रहते हैं। इन सबके अलावा, स्कूल की मेडमें और लाइब्रेरियन शेरखान भी इस इजलास में हाज़र हुए हैं। शेरखान साहब इस स्कूल में, इस एरिये में आयी हुई लड़कों की सेकेंडरी स्कूल से तबादला होकर इस स्कूल में आये हैं। इस स्कूल में इनके पहले इनके स्थान पर जो लाइब्रेरियन थी, उसका तबादला उसी स्कूल में हुआ है...जिस लड़कों की सेकेंडरी स्कूल से, शेरखान साहब यहाँ आये हैं। इस कारण अब फन्ने खां व अन्य मेम्बरान, उस खूबसूरत मेडम के दीदार नहीं हो पाए। इस कारण फन्ने खां साहब अपनी नाराज़गी दर्शाते हुए, शेर खां साहब के सामने ही उनके मुंह पर कह देते हैं।]
फन्ने खां – [नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए, कहते हैं] – हाय अल्लाह, गज़ब हो गया। सरकार ने जीनत बी का तबादला करके, इस लड़कियों की स्कूल में इस रीश [दाढ़ी] वाले मर्द को क्यों भेजा ? इस बेचारी जीनत ने क्या बिगाड़ा, मियां रसूल का..?
[फिर क्या ? मियां फन्ने खां की आँखों के आगे, मोहतरमा जीनत का खूबसूरत चेहरा छा जाता है। वे बरबस, अपने होंठों में ही कह बैठते हैं।]
फन्ने खां – [होठों में ही कहते हैं] - हाय अल्लाह। कैसा खूबसूरत चेहरा था, उसका ? जिसके दीदार पाते ही हम बुजुर्ग मेम्बरान की आँखों में भी चमक आ जाती थी। अजी ऐसा लगता था, मानो ख़ुदा के फ़ज़लो करम से किसी मेहरबान ने हम लोगों को मुफ़्त में ‘झंडू केसरी जीवन’ पिला दिया हो ?
[मगर उनका बड़बड़ाना, पास बैठी मोहतरमाओं को सुनायी दे जाता है। फिर क्या ? अचरच करती हुई, वे एक-दूसरे का मुंह ताकने लगती है। इन मोहतरमाओं को ऐसी आशा भी नहीं थी कि, इन मेम्बरान में भी कोई जीनत मेडम को चाहने वाला हो सकता है ? यहां तो आये दिन जीनत मेडम और बड़ी बी के आपस में झगड़े होते रहे। इन झगड़ों से निज़ात पाने के लिए आख़िर, जीनत मेडम ने पड़ोस की स्कूल के लाइब्रेरियन शेरखांन से पारस्परिक तबादला करवाकर चैन की सांस ली। अब सभी मोहतरमाएं, फन्ने खां साहब का मुंह ताकने लगी है। मगर यहां तो फन्ने खां साहब को, कोई फर्क नहीं पड़ता। वे धीट इंसानों की तरह, अभी भी चहकते हुए कहते जा रहे हैं।]
फन्ने खां – [चहकते हुए, बड़ी बी से कह रहे हैं] – अरे हुज़ूर, क्या कहें अब इस सरकार को..इसे क्या हो गया ? न जाने क्यों इस रीश वाले मर्द को भेज दिया, इस गर्ल्स स्कूल में ? [शेरखान साहब को घूरते हुए] क्यों तकलीफ उठायी हुज़ूर, आपने इस स्कूल में आकर ? आपका क्या काम, इस लड़कियों की स्कूल में ?
शेरखान – [अपनी रीश सहलाते हुए, कहते हैं] – मियां रसूल की मेहरबानी से, यहां तशरीफ लाये हैं....आपके दीदार करने। आपके खूब चर्चे सुन रखे थे, हमने। हुज़ूर को देखकर, हमें तसल्ली हुई है..वाकई ख़ुदा ने अच्छा गढ़ा है नमूना।
[उनका यह व्यंग-भरा जुमला सुनकर, सभी मेम्बरान और मोहतारमाओं की लबों पर हंसी खिल उठती है। सभी ख़िल-खिलाकर, जोर से हंसने लगे। फिर क्या ? शर्म के मारे, फन्ने खां साहब बगले झांकने लगते है। अब झेंप मिटाते हुए, फन्ने खां साहब इजलास के ज़रूरी कोरम के बारे में रूलिंग बताने लगे।]
फन्ने खां – [बड़ी बी से] - प्रेसिडेंट साहिबा, आप पांच-छह मेम्बरान को इकट्ठा करके इजलास के कोरम को पूरा नहीं मान सकती हैं आप।
शेरखान – क्यों बिरादर, यह कैसा आपका मुख़ालफ़त ? बच्चियों को भला होगा जनाब, आज की इजलास के प्रपोजल का सपोर्ट करके...जनाब, आप सवाब लीजिएगा।
फन्ने खां – [तमतमाए हुए, कहते हैं] – नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। इस तरह आपका लिया गया तजवीज़ आख़िर लीगल नहीं है। डवलपमेंट कमेटी के सविधान की रूलिंग के तहत, बच्चियों के तमाम वालेदान हाज़िर होने चाहिए, इस इजलास में।
शेरखान – [हंसते हुए, कहते हैं] – इतनी भीड़ इकट्ठी करके आप, बाबा मस्तान का उर्स भरवाने का इरादा रखते है क्या ?
[शेरखान साहब की बात सुनकर, फन्ने खां को छोड़कर सभी हंसते हैं। बेचारे फन्ने खां साहब, अब क्या करते ? अपनी नादानी पर झेंपते हुए, मुंह नीचे करके बैठ जाते हैं। मगर अपनी झेंप मिटाते हुए, पास बैठे मनु भाई से पूछ बैठते हैं।]
फन्ने खां – [मनु भाई से, धीरे से पूछते हैं] – अरे बिरादर, यह रीश [दाढ़ी] वाला आख़िर है कौन ? यह खंनस आख़िर यहां आया क्यों ? कमबख्त कब से आबे बारां के अबलक मेंढक की तरह, टर्र टर्र करता जा रहा है ?
मनु भाई – [धीरे से, कहते हैं] – सद्दाम साहब, आप दानिशों की तरह चुपचाप बैठना सीखिए। ख़ुद अपनी आबरू रेज़ी करवाते हैं, और अपने साथियों को करते हैं आब-आब। अब जान लीजिये, मेडम जीनत और शेरखान साहब...ये दोनों एक ही ओहदा रखते है, थर्ड ग्रेड लाइब्रेरियन का। इन दोनों ने आपस में मिलकर, अपना तबादला एक-दूसरे के स्थान पर करवाया है। यह तबादला, इलीगल नहीं हैं।
साबू भाई – आज़कल स्कूलों की लाइब्रेरी में, काम रहा ही कहां ? बेचारे अपना वक़्त मज़बूरी में जाया करते हैं, इन इजलासों में आकर। अब तो जनाब, दाऊद मियां और शेरखान की जोड़ी बन गयी है। आख़िर दोनों ठहरे, एक नंबर के निक्कमें इंसान।
फन्ने खां – [अपने लबों पर, मुस्कान लाकर कहते हैं] – वज़ा फरमाया, हुज़ूर। ये निक्कमें आज़कल बेफ़िजूल लोगों के काम, अपने सर पर लादे रखते हैं। यही कारण है, भरी जवानी में शेरखान की खोपड़ी, सफ़ाचट चिकने घड़े की तरह हो गयी है। यानी, गंजे हो गए जनाब।
साबू भाई – यह भी तो हो सकता है, मियां...कि, ख़ुदा की क़रामत से..इनके बाल उड़कर आपकी खोपड़ी पर लग गए हों ? आप व्यर्थ ही अपनी खोपड़ी पर, बालों का जंगल लिए घूम रहे हैं ? वे बालों को खोकर अक्लमंद बन गए, और आप...?
मनु भाई – साबू भाई, आपकी बात में दम है। दुनिया में अक्लमंद इंसानों कि क़द्र होती है। यही कारण है, इनसे अधिक उम्र वाले लोग इनको चच्चा चौधरी भी कहते हैं।
[अब साबू भाई की यह बात कुछ ऐसी ही थी, न चाहते हुए भी इजलास में बैठे लोगों के लबों पर मुस्कान छा जाती है। इस इजलास में बैठे खुराफ़ती और हंसोड़ लोगों के कारण, माहौल बिगड़ चुका है। आख़िर बड़ी बी को मज़बूरन इस इजलास पोस्टपोंड करके, अगली तारीख़ देनी पड़ती है। इस तरह इजलास ख़त्म होने का एलान कर, बड़ी बी उठ जाती है। सभी जाने लगते हैं। जाते-जाते फन्ने खां साहब को, पीछे से हंसी के ठहाके सुनायी देते हैं। इन ठहाकों के साथ, इम्तियाज़ बी की बुलंद आवाज़ सुनायी देती है।]
इमतियाज़ – चलो अच्छा हुआ, अभी तो बड़ी बी की मुसीबत टली। अब फन्ने खां साहब को अच्छा सबक मिल गया, आगे से वे ज़रूर इन इजलासों से किनारा करने लगेंगे। इनके दिल में खौफ़ पैदा हो गया है, कहीं इजलास में शेरखान साहब के दीदार न हो जाय ?
नसीम बी – [हंसती हुई, कहती है] – जहां जीनत के दीदार पाकर, इनकी बूढ़ी रगों में लहू दौड़ पड़ता था। अब उसके स्थान पर शेरखान साहब का दीदार पाकर, इनका लहू बर्फ़ के माफ़िक जम जाएगा।
ग़ज़ल – बस, आप अब यही समझ लीजिये ‘जो ख़ुदा करता है, वह अच्छा ही करता है।’ अब इजलास में परेशानी का सबब बनने के लिए, फन्ने खां साहब अब कभी इजलास में नहीं आयेंगे।
[सब जाते हैं, उन सब के जाने की पदचाप सुनायी देती है। थोड़ी देर में ही, मंच पर अंधेरा छा जाता है।]
अंक पांच मंज़र दो “सर मुंडाते ही ओले पड़े”
राक़िम दिनेश चन्द्र पुरोहित
[मंच रोशन होता है, स्कूल का बरामदा दिखाई देता है। वहां कुर्सियों पर बैठी मोहतरमाएँ गुफ़्तगू कर रही है। इनकी गुफ़्तगू का ख़ास मुद्दा, डवलपमेंट कमेटी के मेम्बरान की नीयत को लेकर है। जिनका काम स्कूल का डवलपमेंट करना नहीं, बल्कि इजलास में आकर दखलंदाजी करना है। अब चेहरे पर छा रहे बालों को एक ओर करके, ग़ज़ल बी, दूसरी मेडमों से कह रही है।]
ग़ज़ल बी – [चेहरे पर आ रहे बालों को एक ओर करती हुई, कहती है] – बड़ी बी ने आख़िर, इन बाहरी मेम्बरान को इतनी लिफ्ट काहे दे रखी है ? कमबख्त इस डवलपमेंट-फण्ड के कारण, इस स्कूल के चारों ओर कलाग़ की तरह मंडराते रहते हैं।
नसीम बी – क्या, ये लोग ख़ुदा हैं ? इनके चाहने पर, इजलास पोस्टपोंड हो जाती है ?
इमतियाज़ – अरी ओ, नसीम बी। तुम, इतनी तुम नादान मत बनो। जानती नहीं तुम, ये लोग इजलास में हाज़िर होने नहीं आते, बल्कि इजलास में हंगामा मचाने आते हैं या मटरगश्ती करने।
ग़ज़ल बी – वज़ा फरमाया, इमतियाज़। यह तेरी सहेली है ना ‘आयशा’, वह भी कुछ कम नहीं है। स्कूल की सारी हंगी-मूती बातों का मसाला लेकर परोस दिया करती है, इन बाहर वाले मेम्बरान के आगे। वैसे बेचारे मेम्बरानों की, क्या सक़त ? बेचारे हफ्वात के मसालों की गंध पाकर, कुत्तों की तरह सूंघ-सूंघकर पहुँच जाते हैं स्कूल में। फिर, सी.आई.डी. की तरह लग जाते हैं तहक़ीकात करने।
नसीम बी – [मुस्कराती हुई, कहती है] – फिर, हम जैसी खूबसूरत मोहतरमाओं के दीदार भी कर लेते हैं।
इमतियाज़ – अरी नसीम, तू कब की खूबसूरत बन गयी यार ? मुझे तो लगता है, कोई तेरे दीदार कर ले तो तूझे बीबी फातमा का ख़िताब देकर ही जाता होगा। अरी मेरी हमशीरा, हम जानती हैं कि ‘तेरा शौहर जब एक बार तेरा दीदार कर लेता है, तब वह तेरे डर से थर-थरकांपता हुआ कुछ बोल नहीं पाता ?’
ग़ज़ल बी – तेरी सहेली है ना, वह आयशा..कमाल की खूबसूरत है। उसके ही दीदार करने ही, ये मेम्बरान यहां आया करते हैं। और यह कमबख्त, उनको दुकान पर जाकर उनकी गुफ़्तगू का मसाला देना भूलती नहीं। तभी ये नामाकूल यहां आते हैं, हमारे वीक पॉइंट्स हासिल करके। बड़े ख़न्नास मालुम होते हैं, ये बाहरी मेम्बरान।
इमतियाज़ – [ग़ज़ल बी से] – एक बार कह देती हूँ, आपा। आप बेचारी मासूम आयशा पर झूठा इलज़ाम नहीं लगा सकती। वह बेचारी अपने शौहर को फ़ोन करने जाती है, साबू भाई की दुकान पर।
ग़ज़ल बी – फ़ोन एक बार लगा दे या दो बार लगा दे, मगर यह क्या ? यहां तो यह मोहतरमा दस बार जाती हैं, फ़ोन लगाने..क्या कहें, उसे ? कहीं यह मोहतरमा, चिपक तो नहीं जाती है...साबू भाई के फ़ोन से ?
इमतियाज़ – बात यह है, इसका शौहर ठहरा शक्की नंबर एक। उस नामाकूल को, हर छोटे से छोटे सवाल का जवाब देने जाना पड़ता है। ताकि, उसके शौहर को तसल्ली हो जाय।
नसीम – सच्च कह रही हो, इमतियाज़। बड़े शक्की मिजाज़ के हैं, इसके शौहर। बेचारी का जीना हराम कर डाला, क्या कहूं आपको ? आज़ की बात है...आज़ इसके शौहर ने, रास्ते में आयी रेलवे फाटक के पास रोक दिया मुझे।
इमतियाज़ – क्या कहा इसके शौहर ने, तूझे रोककर ?
नसीम बी – अजी इसके मियां तो पुलिसिये की तरह, तहक़ीकात करने लगे। ढेरों सवाल खड़े कर डाले, मेरे सामने। कल छुट्टी कितने बजे हुई, फिर आयशा एक घंटे कहां रही ? मैं बेचारी उनको समझा-समझाकर थक गयी कि, ‘मियां कल डवलपमेंट कमेटी की इजलास थी।’ मगर...? वही ढ़ाक के पत्ते तीन, और क्या ? वे क्यों बदलेंगे, अपना मिजाज़ ?
इमतियाज़ – बेचारी इमतियाज़ इतनी परेशान रहती है, नसीम। तुम कुछ मत पूछो। एक तरफ़ शक्की शौहर, और दूसरी तरफ़ हमारी बड़ी बी।
नसीम बी – यहां बीच में, बड़ी बी कहां से आ गयी ? मुद्दा तो चल रहा था, उसके शौहर का..और तू..?
इमतियाज़ – अरे नसीम। रिश्ते में भले तू बड़ी बी की मामी सास लगती होगी, फिर भी मैं कहूँगी तूझे।
नसीम बी – कह दे, कह दे..बड़ी बी के पास किसे जाना है, मोती पिरोने ? मैं निक्कमी नहीं, जो लोगों को भड़काती फिरूं ?
इमतियाज़ – तब, ले सुन। बार-बार जाकर, उसकी क्लास के बाहर खड़े होना और क्लास में ताक-झांक करना कि ‘वह क्लास में पढ़ा रही है, या हेडमिस्ट्रेस के इमतिहान की तैयारी करने की किताबें पढ़ रही है ?’ फिर, यह क्या है नसीम ?
नसीम बी – चलिए, यह मैं मान लेती हूँ और साथ में आयशा की तारीफ़ भी करूंगी कि “बेचारी एक पीरियड मिस नहीं करती...और दूसरी मेडमों की तरह क्लास में बैठकर, स्वेटर बुना नहीं करती है।
इमतियाज़ – नसीम बी यह भी याद रखिये आप, ये बाहरी मेम्बरान सभी इसकी तारीफ़ करते हैं। कहते हैं, ‘देखो इस बेचारी को, यह कितनी मेहनती है। बेचारी घर से इतनी-भारी-भारी किताबें लाती है, पढ़ने और पढ़ाने के लिए। बहुत इल्म है, छोरी में पढ़ाने का।
ग़ज़ल बी – [तुनककर, कहती है] – काहे का ? अरी इमतियाज़ उसको पढ़ाने का शौक नहीं, लड़ाई-झगड़े कराने का इल्म हासिल है। तू तो ठहरी भोली, तू जानती नहीं तूने आस्तीन का सांप पाल रखा है मर्दूद। इसी ने बहकाया है मेम्बरान को, कि “इमतियाज़ जल्लाद है, जिसने जान-बूझकर तुम्हारी बच्चियों दो-चार नंबर से फ़ैल किया है।”
इमतियाज़ – [नाक-भौं सिकोड़ती हुई, कहती है] – आगे क्या कहा, इस कमबख्त ने ?
ग़ज़ल बी – आगे कहा, “थोड़े ढीले हाथ से नंबर दे देती तो, ये बेचारी बच्चियां सप्लिमेंटरी इमतिहान देकर पास हो जाती।”
इमतियाज़ – हाय अल्लाह, आयशा ने ऐसा कहा ? वसूक नहीं होता, ख़ुदा रहम ख़ुदा रहम...अल्लाह पाक मुझे किसी की निंदा न कराये। अब किसका भरोसा करूँ, मेरे मोला ?
ग़ज़ल बी – अरी इमतियाज़, तू उसे इतनी भोली न समझ। अरी यह खातून तो फातमा आहिर ठहरी, हम टीचरों का स्कूल आने-जाने का पूरा ब्यौरा इन नामाकूल मेम्बरान के कानों में डालती रहती है। अरे तूझे मुझ पर वसूक नहीं है, तो पूछ ले सितारा मेडम से, इनके सामने वह क्या बकवास कर रही थी इन मेम्बरान से ?
सितारा मेडम – छोडो..छोड़ो। काहे ज़बान खुलवा रही हो, मेरी ? मैं ठहरी, अल्लाह पाक की बंदी...पीर दुल्हेशाह की मुरीद...मुझ बेचारी को, इस मामले से दूर ही रखो। इससे तो अच्छा है, मैं पीर दुल्हे शाह पीर का वज़ीफ़ा पढ़ लूं..तो अल्लाह पाक मेरी ख़ता माफ़ करेगा।
इमतियाज़ – अरी आपा, अब तो आपको बताना ही होगा। ना बताया तो आगे से समझ लेना, हम नहीं खायेगी आपकी चढ़ाई गयी शिरनी..सच्च कहती हूँ, पीर दुल्हेशाह की कसम।
सितारा बी – हम तो ठहरे कोदन, कहां फ़ुजूल की बातों पर ध्यान देने वाले ? हमें कहां मालुम...? यह आयशा, किस मुद्दे पर गुफ़्तगू कर रही है..फन्ने खां साहब से...कुछ दिन पहले ? मगर..
इमतियाज़ – मगर, यह क्या ? आगे जल्दी कहो, आपा। कहीं यह बड़ी बी, यहां आ न जाए ?
सितारा बी -. वह है ना, यानी तेरे जीजा..उन्होंने पूरी बात सुन ली। कल रात उन्होंने पूरी दास्तान मुझे बतायी, वे कह रहे थे...
इमतियाज़ – [उतावली करती हुई, कहती है] – जल्दी कहो, आपा। कहीं यह बड़ी बी, यहां न आ जाय ? आ गयी तो, हमारी गुफ़्तगू को गुड़ गोबर बना देगी।
[थक जाने का अहसास कराती हुई, लम्बी-लम्बी साँसे लेती है। फिर, वह कहती है।]
सितारा बी – आप सभी जानती हैं, छुट्टी होने के कुछ वक़्त पहले मेरे शौहर मनु भाई की दुकान के पास मोटर साईकल खड़ी करके वहां लगी बैंच के पास खड़े होकर मेरे आने इन्तिज़ार करते हैं...ताकि छुट्टी हो जाने के बाद मुझे अपने साथ ले जा सके। परसों छुट्टी की घंटी बजने में, केवल पांच मिनट बाकी थे। तभी वहां आयशा आयी, आते ही बैंच पर बैठे फन्ने खां साहब से कहने लगी कि..
इमतियाज़ – [उतावली करती हुई, कहती है] – क्या कहा, अरे जल्दी कह दो..कहीं यह बड़ी बी यहां आ न जाए ?
[अब सितारा बी, पूरी दास्तान बयान करती नज़र आती है। सभी मेडमें खामोश रहकर, दास्तान सुनती है। पूरी दास्तान सुनने के बाद, इमतियाज़ अचरच करती हुई कहती है।]
इमतियाज़ – [अचरच से, कहती है] – अच्छा। आयशा ने यह कहा, फिर आगे क्या कहा ?
सितारा बी – फिर क्या ? फन्ने खां साहब चहक उठे, और अपने साथियों से कहने लगे “साथियों, अब जम्हूरियत की सियासत का बिगुल बजायेंगे। बस, कल अल-सुबह हम सभी मेम्बरान मोहल्ले वालों को साथ लेकर, स्कूल आयेंगे। स्कूल का इंस्पेक्शन, हमारे हाथों से होगा।”
इमतियाज़ – हाय अल्लाह, यह कैसा इंस्पेक्शन ? हाँ, हां...याद आया। उन्होंने किया था, पहली पारी का इंस्पेक्शन।
सितारा बी - - वे कह रहे थे, “अल-सुबह प्रेयर के वक़्त आकर मेन गेट का ताला लगाकर, वहीं खड़े हो जायेंगे। फिर, देरी से आने वाली मोहतरमाओं को गेट पर रोककर बक़ायदा मेडमों के नाम की फ़ेहरिस्त बनायेंगे...कि, कौन-कौनसी मोहतरमा कितने बजे लेट आ रही है ?” समझ गयी, बहनों ?
इमतियाज़ – आगे कुछ और भी, कहा होगा ?
सितारा बी – पूरी रिपोर्ट तैयार करके, डवलपमेंट कमेटी की इजलास में बड़ी बी के सामने रिपोर्ट रखी जायेगी।
इमतियाज़ – अब तो ये नामाकूल, यहां आकर हमारे ख़िलाफ़ रोज़नमंचा तैयार करने वाले थे ? अच्छा हुआ, इजलास आगे नहीं चली।
सितारा बी – फिर आगे कहा, रिसेस ख़त्म होते ही बाहर आकर खड़े हो जायेंगे। और पूरी तहक़ीकात करेंगे कि, ऐसी कितनी मोहतरमाएँ हैं..जो रिसेस में घर जाकर, वापस देरी से लौटती है।
ग़ज़ल बी – हाय अल्लाह, यह कैसे हो गया ? आज़कल ये अली बाबा और चालीस चोर हमारे पीछे लग गए हैं, डंडा लेकर ? ख़ुदा रहम, हमारा घर नज़दीक है..हमारे सिवाय, घर जाने वाला है कौन ?
इमतियाज़ – आप। कल से आप टी-क्लब के मेंबर बन जाइएगा, फिर घर जाने की इल्लत से दूर, फिर आप चैन की बंशी बजाती रहना।
सितारा बी – सुनो बहनों, आगे फन्ने खां साहब ने क्या कहा ? इस तरह हमारे फन्ने खां साहब ने आगे फ़रमाया कि “इस कार्रवाही से बड़ी बी खुश हो जायेगी कि, स्कूल में उनके नहीं रहने पर हमने स्कूल की मोहतरमाओं के बीच डिसिप्लेन क़ायम रखा है। इस प्रकार, हम जम्हूरियत की सियासत कर पायेंगे।”
[अब चाँद बीबी आती है, और वहां बैठी मोहतरमाओं को चाय से भरे प्याले थमाती है। अब सभी मोहतरमाएं चाय की चुश्कियाँ लेती हुई चाय पीने लगती है। अब सितारा बी चाय पीती हुई, आगे कहती है।]
सितारा बी – [चाय पीती हुई, कहती है] - बाकी बाद में, क्या हुआ ? आप सभी बहने जानती हैं, कहने की कोई ज़रुरत नहीं। छुट्टियों के बाद बड़ी बी के वापस लौटने पर, क्या हुआ ? आप सभी जानती हैं।
इमतियाज़ – आप कुछ तो बयान कीजिये ना, अभी-तक हमारी चाय ख़त्म नहीं हुई है।
सितारा बी – [चाय की चुश्की लेती हुई, आगे कहती है] – लो, कुछ रोज़ बाद मनु भाई की दुकान पर खड़े होकर ये नामाकूल लम्बी-लम्बी डींग हांक रहे थे, तभी मेमूना भाई ने आकर बड़ी बी का ख़त दिया उन्हें। फिर, मनु भाई ने उस ख़त को पढ़ा और बाद में वे कहने लगे...
ग़ज़ल बी – शुक्रिया का ख़त होगा, बड़ी बी ने..?
सितारा बी – अरे नहीं, यह बात नहीं। मनु भाई कह रहे थे कि, “भाई लोगों। आपके किये गए काम की तारीफ़ के कसीदे, पढ़ें गए हैं। सुनिए, बड़ी बी ने ख़त में यह हिदायत दी है आप सबको कि “इस के बाद आप लोग ऐसी इलीगल हरक़त, भविष्य में नहीं करेंगे।”
इमतियाज़ – [खुश होकर, कहती है] - अरे वाह। यह तो ऐसे हुआ, बस..सर मुंडाते ही ओले पड़े हों।
[इमतियाज़ की बात सुनकर, सभी मोहतरमाएँ ज़ोर-ज़ोर से हंसती है। अब चाँद बीबी चाय के सारे बरतन उठाकर उन्हें धोने के लिए नल के नीचे रख देती है। तभी चाँद बीबी कि निग़ाह दीवार पर टंगी घड़ी पर गिरती है। सूंई के काँटों को देखकर, वह घंटी लगाकर वापस आ जाती है। घंटी की आवाज़ सुनकर, सभी मेडमें उठती है, और अपनी-अपनी क्लासों की ओर क़दम बढ़ा देती है। उनके पांवों की आवाज़ दूर-दूर तक सुनायी देती है। मंच पर, अंधेरा छा जाता है।
अंक पांच, मंज़र तीन राक़िम दिनेश चन्द्र पुरोहित तबादलों के बादल...?
[मंच रोशन होता है, बड़ी बी अपने कमरे में बैठी दिखाई दे रही है। बड़ी बी के आस-पास रखी कुर्सियों पर, दूसरी पारी की मेडमें बैठी है। अब इन सबके बीच, गुफ़्तगू शुरू होती है।]
ग़ज़ल बी - बड़ी बी, मुझे यह बरसात का मौसम अच्छा नहीं लगता। अब आपसे क्या कहूं ? हर वक़्त दिल में, डर छाया रहते है ‘कहीं बरसात न हो जाय ?’ क्या, आप तो नहीं जानती, “कोलोनी का पानी ओवर-फ्लो होकर हमारे आंगन में चला आता है ?”
सितारा बी – सावन का महिना है, ना मालुम कब बादल मंडराकर आसमान में छा जाते हैं ? ना मालुम कब बरसात करके, क़हर बरफ़ाकर चले जाते हैं ?
रशीदा बेग़म – इन बादलों की क्या परवाह करती हो, सितारा मेडम ? आने वाले तबादलों के बादलों को देखिये। हाय अल्लाह, कहीं ”इन तबादलों के बादलों पर लगा बेन, खुल न जाय ?” बस, इसी की फ़िक्र, सताती है।
नसीम बी – अल्लाह रहम, कहीं आपका कहना सच्च न हो। कल ही मनु भाई की दुकान पर खड़ा यह मर्दूद फन्ने खां, अपनी मूंछों पर ताव देता हुआ मोहल्ले के लोगों को सुना रहा था कि..
रशीदा बेग़म – क्या कहा ? कहीं तबादलों की फ़ेहरिस्त, निकल तो नहीं रही है ?
नसीब बी – निकली नहीं है, बाद में निकल सकती है। तब-तक यह मर्दूद फन्ने खां आपका नाम आने वाली फ़ेहरिस्त में जुड़वा न दे ? इसने ऐलान किया है, मोहल्ले वालों के सामने। कह रहा था कि, ‘इस बड़ी बी ने सोये हिज़ब [शेर] को ख़त देकर ललकारा है, अब यह हिज़ब इसका तबादला करवाकर कर ही दम लेगा।
[तबादले का नाम सुनकर, एक बार रशीदा बेग़म के दिल कि धड़कन बढ़ जाती। मगर वह अपने चेहरे पर, इन भावों को आने नहीं देती। अब वह नसीम बी से, कहती है।]
रशीदा बेग़म – और क्या सुना, आपने ?
नसीम बी – अरे हुज़ूर, हमने तो यह भी सुना है...”इस मर्दूद के एम.एल.ए. साहब से अच्छे रब्त है। वह उनको भड़काकर...
ग़ज़ल बी – ग़रज़ने वाले बादल, कभी बरसते नहीं। मेडम, आप फ़िक्र न कीजिये। मैं आज़ ही अपने शौहर-ए-नामदार को कह दूंगी, ये ज़रूर ध्यान रखेंगे आपका।
नसीम बी – इनका नहीं, आपका ध्यान रखेंगे आप। आख़िर, आप उनकी खातूने खां हैं।
रशीदा बेग़म – छोडिये, इन मोहमल बातों को। [ग़ज़ल बी की तरफ़, मुंह करते हुए] आप क्या कहेंगी, उन्हें ? वे तो केवल, टीचरों की यूनियन के प्रेसिडेंट हैं। मिनिस्टर नहीं, जो तबादला रुकवा सके ?
ग़ज़ल बी – बड़ी आप इनके बारे में इतना जानती नहीं, वे ख़ाली लीडर ही नहीं..एजुकेशन मिनिस्टर के ख़ास दोस्त भी हैं। जब भी मंत्रीजी इस शहर में आते हैं, इनसे बिना मुलाक़ात किये वापस नहीं जाते।
मुमताज़ बी – बड़ी बीआप काहे की फ़िक्र करती है ? पहली फ़ेहरिस्त निकलेगी, वह पूरी थर्ड ग्रेड के टीचरों की होगी। फिर... [इमतियाज़ बी की ओर, देखती हुई] सेकंड ग्रेड टीचर्स की, मैंने ख़ुद ने इन कानों से सुना है..गांवों में सेकंड ग्रेड टीचर्स की सख्त ज़रूरत है।
[तभी आसमान से बादलों की तेज़ गड़गड़ाहट सुनायी देती है। पूरे आसमान में काले कजरारे बदल छा जाते हैं। तभी तेज़ आंधी चलती है, और कमरे के परदे तेज़ी से हिलते नज़र आते हैं। मेज़ पर रखे कागज़ उड़कर, कमरे में छितरा जाते हैं।अब ऐसा लग रहा है, कहीं भूचाल आ गया हो ? असल में कोई भूचाल तो आया नहीं, मगर ये हमारे अलामों के बादशाह जमाल मियां अन्दर दाख़िल हो जाते हैं..जो ख़ुद किसी भूचाल से कम नहीं। उन्होंने अपने हाथ में, डिमांड लेटर थाम रखा है।]
जमाल मियां – [डिमांड लेटर मेज़ पर रखते हुए, कहते हैं] – देखिये बड़ी बी, आप हमें बीस फाइल-कवर, वाइट पेपर रिम दो, एक ख़ाक-दान, कलम, टेबल-ग्लास, अलमारी और बाकी सभी का जिक्र मैंने डिमांड लेटर में किया है...ये सभी चीजें, मुझे चाहिए। अगर व्यवस्था न हो सकी तो, कल से अपनी ओर से काम बंद।
रशीदा बेग़म – [नाराज़गी के साथ] – मियां तुम्हें यहां डिमांड की लगी है, और इधर हमारा कलेज़ा हलक में आ चुका है। क्या, तुम जानते नहीं..? तबादले के बादलों की गड़गड़ाहट, साफ़-साफ़ सुनायी दे रही है। बेफुज़ूल सर ख़पाने, हमारे कमरे में आया मत करो।
जमाल मियां – [चहकते हुए] – तबादलों के बादल...? गड़गड़ाहट क्या ? हुज़ूर, ये बादल तो बरसने लग गए हैं। कल रात को ही डी.ई.ओ. दफ़्तर वालों ने हमें टाइपिंग करने के लिए बुलाया..
इमतियाज़ – तब तो मियां, तुम्हें तबादलों की पूरी जानकारी होगी..?
जमाल मियां – [इमतियाज़ से] – हुजूरे आलिया, हमने वहां बैठकर रात के दो बजे तक टाइपिंग-वर्क किया है। किन-किन मेडमों का तबादला, हो रहा है..? उनके नाम, हमारे लबों पर है। सुना है...
इमतियाज़ – [घबराकर] – क्या सुना ? किन-किन टीचरों की फेहरिस्त निकल रही है, मियां ?
जमाल मियां – सुना है, सेकंड ग्रेड टीचरों की..जिनका सब्जेक्ट इंग्लिश है।
इमतियाज़ – हाय अल्लाह, मियां तुमने ऐसा क्या कह डाला..हमारी तो अब जान निकल रही है। [बड़ी बी से] बड़ी बी, ज़रा डी.ई.ओ. दफ़्तर फ़ोन लगाकर, इस तबादले की ख़बर को कन्फर्म कर लूं ? मेरे दिल में. तूफ़ान मचा है।
[बड़ी बी से इज़ाज़त लेकर, वह फ़ोन से चोगा उठाकर नंबर मिलाती है। घंटी की आवाज़, सुनाई देती है। और उधर जमाल मियां उसके चेहरे पर उड़ी हवाइयों को पाकर, अपनी हंसी नहीं दबा पा रहे हैं। इसलिए वे झट कमरे से बाहर आकर, ख़िलखिलाकर हंस पड़ते हैं। उनकी हंसी सुनकर, इमतियाज़ जल-भुन जाती है। तभी उसे दफ़्तर के पी.ए. की आवाज़, फ़ोन पर सुनायी देती है।]
पी.ए. – [फ़ोन से, आवाज़ आती है] – हेलो। डी.ई.ओ. दफ़्तर से, पी.ए. बोल रहे हैं। फ़रमाइए, आपका क्या काम है ?
इमतियाज़ – [फ़ोन पर कहती है] – जनाब, हमें अभी हो रहे तबादलों की ख़बर चाहिए। हम लेबर बस्ती में आयी हुई सेकेंडरी स्कूल से, इंग्लिश की सेकंड ग्रेड टीचर बोल रही हैं। कोई तबादलों की...
पी.ए. – [फ़ोन पर] – पहले आप यह बताइये, आप कौन बोल रही हैं मेडम ? अपना नाम बताइये, ज़रा। फिर हम आपको, तबादलों की फ़ेहरिस्त के बारे में बता सकते हैं।
[टेलीफ़ोन पर जो बात नहीं कहनी चाहिए, मगर घबराहट के मारे इमतियाज़ की ज़बान फिसल जाती है और वही बात उसके मुंह से निकल जाती है।]
इमतियाज़ – [घबराकर, फ़ोन पर कहती है] – हुज़ूर, हम इमतियाज़...सेकंड ग्रेड इंग्लिश टीचर। क़रीब दस साल से इसी स्कूल में हैं।
पी.ए. – [फ़ोन से] – ठीक है, मेडम। आगे से आप याद रखना...ऐसी ख़बरें फ़ोन पर बतायी नहीं जाती। आप दफ़्तर में तशरीफ़ रखें, और आते वक़्त आप अपनी एस्टाब्लिशमेंट इनफार्मेशन साथ लेती आयें। यहां आकर सम्बंधित ब्रांच के दफ़्तरे निग़ार को एस्टाब्लिशमेंट इनफार्मेशन देकर, तबादले की ख़बर मालुम कर लें।
[इसके बाद, इमतियाज़ को चोगा रखने की आवाज़ सुनायी देती है। अब इमतियाज़ चोगा क्रेडल पर रखकर, उदास होकर बैठ जाती है। अब दूसरी मेडमें उसे दिलासा देती हुई, उसे समझाती है। मंच पर, अंधेरा फ़ैल जाता है।]
अंक पांच मंज़र चार राक़िम दिनेश चन्द्र पुरोहित “नाकामी स्टाफ़-सेक्रेट्री की”
[मंच रोशन होता है, बड़ी बी फिक्रमंद नज़र आ रही है। उसके दोनों हाथ सर पर रखे है, और साथ में वह बड़बड़ा रही है। कारण यह है, स्टाफ़ के कई लोग लोग इमतियाज़ को बहुत पसंद करते हैं क्योंकि सच्ची बात कहने में, वह किसी के आगे घबराती नहीं, और स्टाफ़ के सपोर्ट में हमेशा आगे रहती है। यही बात बड़ी बी को अखरती है, क्योंकि वह हमेशा बड़ी बी की ग़लत नीतियों का तख़ालुफ़ [विरोध] करती आयी है। उसके आज़ाद ख़यालात, बड़ी बी की फ़िक्र की वाज़ह है। इसलिए बड़ी बी ने मुमताज़ बी को स्टाफ़ सेक्रेट्री बना रखा है, मगर बदक़िस्मती से मुमताज़ कामचोर निकली और वह काम की जगह बड़ी बी की मस्कागिरी करनी ज़्यादा पसंद करती है। अब इस मेडम से काम करवाना, बड़ी बी के लिए सहज नहीं रहा है। इसी फ़िक्र में घुलती जा रही बड़ी बी, इस वक़्त बड़ाबड़ा रही है।]
बड़ी बी – [होंठों में ही] – हाय अल्लाह, यह कोई स्कूल है या नाती का बाड़ा ? इस मुमताज़ पर अहसान करके, इसे सेक्रेटरी बनाया। मगर यह मर्दूद, निकली पूरी कामचोर। स्टाफ़ के चंदे को कहां लगाना, किसे गिफ्ट लाकर देना है ? कोई काम सही तरीक़े से नहीं करती, कमबख्त। इसकी नाकामी के कारण, मुझको मज़बूर होकर स्टाफ़ से चंदा एकत्रित करने का आम करना पड़ा।
[सोचते-सोचते बड़ी बी की आंखों के आगे, बीते वाकये का मंज़र सामने आने लगा। उन्हें कमरे में शमशाद बेग़म, हाथ में झाड़ू लिए कमरे में दाख़िल होती नज़र आ रही है। वह झाड़ू को अपने कंधे पर इस तरह रखे है, मानों वह झाड़ू न होकर एक बन्दूक हो ? तभी मंच पर, अंधेरा छा जाता है। थोड़ी देर बाद मंच रोशन होता है, बड़ी बी अपने कमरे में बैठी है। कमरे में शमशाद बेग़म दाख़िल हो चुकी है, अब वह कंधे पर झाड़ू थामे बड़ी बी से कहती है।]
शमशाद बेग़म – हुज़ूर, हुक्म दीजिये। बंदी ख़िदमत के लिए हाज़िर है।
बड़ी बी – [सर से लेकर पांवों तक, उसे निहारती हुई कहती है] – यह कौनसा सलीका है, झाड़ू पकड़ने का ? जाओ, स्टाफ़-सेक्रेट्री को बुला लाओ। कमबख्त को, कोई काम सलीके से करना नहीं आता।
[शमशाद बेग़म जाती है, कुछ देर बाद दरवाज़े का पर्दा हिलता है। मुमताज़ अन्दर दाख़िल होती नज़र आती है।]
मुमताज़ – [कुर्सी पर बैठती हुई, कहती है] – हाय मदीना के पीर। रहम कर, इस बंदी पर। क्या करूँ, मेरे मोला ? इन सारी मोहतरमाओं के आगे हाथ जोड़े, अर्ज़ करते-करते इन बेहरम मोहतरमाओं ने मेरा गला सूखा डाला..? मगर, एक पैसा नहीं दिया उन्होंने। अब पार्टी ख़ाक होगी, मेरे मोला ?
रशीदा बेग़म – परवरदीगार को क्यों सुना रही हो, मेरी अम्मा ? सुनने के लिए, हम बैठें हैं ना। कहिये, उन खातूनों ने क्या कहा ?
मुमताज़ – पहले तो हुज़ूर, उन्होंने पिछले चंदे का हिसाब मांगा...
रशीदा बेग़म – हिसाब देने में, कौनसा उज्र ? आप ईमानदारी से काम करती हैं, तो हिसाब दिखलाने में क्या डर ? दिखला देती, सारा हिसाब।
मुमताज़ – हुज़ूर, दिखाया हमने, मगर ये मोहतरमाएं कहने लगी कि, “गिफ्ट लाने का टेक्सी-भाड़ा क्यों जोड़ा गया ? जबकि, आप अपनी स्कूटी पर बैठकर गिफ्ट लाने गयी थी।” ख़ुदा रहम, इन मोहतरमाओं ने तो मुझ पर गबन का आरोप लगा दिया। अल्लाह कसम, अब आगे से...
रेशमा बेग़म – आख़िर, कहना क्या चाहती हैं आप ? स्कूटी पर बैठकर गयी, तो उन्हें काहे का ऐतराज़..? गधे पर बैठकर तो आप गयी गयी नहीं..फिर, काहे का डर ?
मुमताज़ – [नाराज़गी से] – आप भी हमारा मुज़हाक उड़ा रही हैं, बड़ी बी ? आप तो मेरी बात हंसी में उड़ा देती हैं, इसलिए अब मुझे यहां रुककर करना क्या ? मेहरबानी करके रुख्सत होने की इज़ाज़त दीजिये,और पहले संभाल लीजिये अपने इस केश को। अब आप जाने, और आपका स्टाफ़ जाने। किसके सौ सर है, जो एक-एक मोहतरमा से अपना सर ख़पाये ? [शेष रोकड़ राशि, उनकी टेबल पर रखती है।]
रशीदा बेग़म – अल्लाह पाक पर भरोसा रखो, बेग़म। तैश न खाओ, ख़ुदा कोई रास्ता दिखला देगा। काम से, क्या डरना ? कौनसा अपने घर का काम, कर रही हैं आप ? अब उठाओ, इस केश को..अब मुझको ही यह मामला देखना होगा।
[मुमताज़ टेबल पर रखे केश को उठाती है, रशीदा बेग़म टेबल के नीचे लगी बिजली की बेल के स्वीच को दबाती है। दराज़ से, पेपर निकालती है। बड़ी बी साक़िब मियां व मुमु बाई के तबादले का ब्यौरा देकर, पार्टी [अल्पाहार और चाय] का चन्दा भेजने का हुक्म लिखती है। फिर तैयार तहरीर के नीचे, अपने दस्तख़त करती है। तभी शमशाद बेग़म कमरे में दाख़िल होती है, बड़ी बी उसे पेपर थमाकर कहती है।]
रशीदा बेग़म – [पेपर थमाती हुई, कहती है] – जाओ, इस पेपर पर स्टाफ़ दस्तख़त ले लेना और साथ में, पार्टी का चन्दा भी लेती आना।
[मंच पर अंधेरा छा जाता है। थोड़ी देर बाद, मंच पर रोशनी फैलती है। रशीदा बेग़म अपने कमरे में बैठी है, उसकी आंखें मुंदी हुई है। और साथ में, बड़बड़ाती जा रही है।]
रशीदा बेग़म – [बड़बड़ाती हुई कहती है] – जाओ, इस पेपर पर स्टाफ़ के दस्तख़त ले लेना। और साथ में, पार्टी का चन्दा भी लेती आना।
[तभी फ़ोन की घंटी बजती है, फ़ोन के पास खड़ी शमशाद बेग़म चोगा उठाती है। फ़ोन कौन कर रहा है ? इसकी जानकारी लेकर, वह बड़ी बी को ज़ोर से बोलती हुई कहती है।]
शमशा बेग़म – [चोगा हाथ में थामे हुए, ज़ोर से कहती है] – बड़ी बी, आप “पार्टी का चन्दा लेती आना” बार-बार क्यों कहते जा रही हैं ? हुज़ूर, चंदा भी आ गया और पार्टी भी हो गयी। अब आप इस चोगे को थामिए, और डी.ई.ओ. साहब से बात कीजिएगा..उनका ही फ़ोन, आया है। अब मैं जा रही हूं, मुझे दूध लाना है।
[शमशाद बेग़म की आवाज़ सुनकर, बड़ी बी चौंक जाती है, इस तरह वह वर्त्तमान में लौट आती है। अब वह सामने चोगा थामे शमशाद बेग़म को देखती है। शमशाद बेग़म से चोगा लेकर, वह डी.ई.ओ, साहब से गुफ़्तगू करने में मशगूल हो जाती है। इधर, शमशाद बेग़म रुख्सत हो जाती है।]
रशीदा बेग़म – [फ़ोन पर, गुफ़्तगू करती हुई] – आदाब, हुज़ूर। हुक्म दीजिएगा, कैसे याद किया हमें ?
डी.ई.ओ. – [फ़ोन से] – मेडम, आपको कई बार कहा है हमने कि, “आप जल्द से जल्द, ‘अधिक ठहराव पर रहने वाले मुलाज़िमों की फ़ेहरिस्त’ तैयार करके इस दफ़्तर में भेज दीजिएगा। मगर, अभी-तक आपने नहीं भेजी..?
रशीदा बेग़म – हुज़ूर आज़ ही रवाना करती हूं, इस फ़ेहरिस्त को। मुझे मालुम है, तबादले की फ़ेहरिस्त जारी करने का काम ज़ोरों पर चल रहा है।
डी.ई.ओ. – [नाराज़गी के साथ] – एक और बात आपको याद दिला देता हूं, अपनी स्कूल के मुलाज़िमों को हिदायत दे दीजिये..एक बार। आगे से तबादलों की जानकारी लेने के बहाने, कोई भी मुलाज़िम इस दफ़्तर में बार-बार फ़ोन लगाकर दफ़्तरेनिग़ारों को, परेशान नहीं करें।
[फ़ोन रखने की आवाज़ आती है, रशीदा बेग़म चोगा क्रेडिल पर रख देती है।
रशीदा बेग़म – [चहकती हुई, कहती है] – अब तो इस इमतियाज़ की बच्ची को, पाठ देना बहुत ज़रूरी हो गया है। कमबख्त स्टाफ़ को भड़काकर, दबिस्तान-ए-सियासत में दख़ल देती रहती है। अभी इसने दफ़्तर फ़ोन लगाकर, ख़ुद के पैर पर कुल्हाड़ी मारी है। अब इस वाकये की अब मैं ऐसी ख़बर बनाती हूं कि, यह मोहतरमा..
[मंच पर, अंधेरा छा जाता है।]
अंक पांच मंज़र पांच राक़िम दिनेश चन्द्र पुरोहित “तबादला-ए-परवाज़े-तख्य्युल”
[मंच रोशन होता है, बड़ी बी के कमरे की एक खिड़की टी-क्लब वाले बरामदे में खुलती है। इसी खिड़की के सामने दाऊद मियां की सीट लगी है। इस वक़्त दाऊद मियां कुर्सी पर बैठे-बैठे झपकी ले रहे हैं, इनके पहलू में रखी कुर्सी पर शेरखान साहब भी बैठे-बैठे खर्राटों की दुनिया में खोये हुए हैं। कुछ ही दूर जमाल मियां अपनी सीट पर बैठे बड़े आराम से एक फ़ाइल में छुपी फ़िल्मी मैगजीन को खोलकर, अभिनेत्री हेलन के अध-नंगे पोज़ निहारते जा रहे हैं। उस अभिनेत्री की ख़ूबसूरती पर क़ायल होकर, वे अपने मुंह से सिसकारी की आवाज़ भी निकालते जा रहे हैं।
जमाल मियां – [हेलन का, सेक्सी पोज़ देखते हुए] – आ हा.. क्या हुस्न है, मेरी जान ?
[तभी पानी का लोटा लिए शमशाद बेग़म आती नज़र आती है, ख़ुदा की पनाह..यह क्या ? एक पीरजाल मोहतरमा के कान जहां क़ुरआन की आयते सुनने के आदी है, वहां इन बदनसीब कानों को ऐसे वहशी जुमले और सिसकारी की आवाज़ सुनायी दे जाय..यह स्थति शमशाद बेग़म के लिए, नाक़ाबिले बर्दाश्त हो जाती है। फिर क्या ? ख़ाला का आंखें तरेरकर तल्ख़ आवाज़ में बोलना, उसकी मज़बूरी बन जाती है।
शमशाद बेग़म – [आंखें तरेरती हुई, तल्ख़ आवाज़ में] – क्या...?
जमाल मियां – [शमशाद बेग़म के चेहरे की, झुर्रियों पर नज़र डालकर] – कहां है, ऐसी ख़ूबसूरत हूर इस स्कूल में ? यहां तो ख़ाली सूखी खेती है, बस...!
[अब ऐसे ख़बीस के, क्या मुंह लगना ? बेचारी मुंह बिगाड़कर चली जाती है, आक़िल मियां के कमरे में। उधर क्लास रूम के दरवाज़े की ओट में छुपे तौफ़ीक़ मियां..जमाल मियां के कहे जुमले को सुन लेते हैं। अब बरामदे में शमशाद बेग़म को न पाकर वे दरवाज़े की ओट से बाहर निकल आते हैं। बाहर आकर, जमाल मियां से कहने लगते हैं।]
ऐक्या ? लहराती खेती को आप, सूखी खेती कह रहे हैं ? लाहौल-विला-कूवत, ख़ना [मिथ्या] बातें न कीजिये जनाब। अभी-तक आपने देखी क्या है, हूर...
जमाल मियां – [अचरच से] क्या कहा, हूर...? जो आंखों में दुख्तरेरज लिए, खड़ी हो।
[अब तौफ़ीक़ मियां इधर-उधर देखकर, जांच कर लेते हैं...कि, कोई उन्हें ऐसी बातें करते देख तो नहीं रहा है ? फिर तसल्ली हो जानेके बाद, वे जमाल मियां से आगे कहते हैं।]
तौफ़ीक़ मियां – [तसल्ली होने के बाद, तौफ़ीक़ मियां कह उठते हैं ] – वही...वही..हुस्नआरा गुलशने स्कूल...रोशन आरा, क्लास नाइंथ की स्टूडेंट।
जमाल मियां – [खुश होकर] – अब चुप मत रहो, भाईजान। बताइये...बताइये, वह कहां रहती है ? कैसी दिखाई देती है, वह ? कहीं वह तो नहीं है, जिसने स्कूल की बेस्ट एथेलिट का का ख़िताब जीता है।
[अब तौफ़ीक़ मियां जमाल मियां के कान में फुसफुसाकर कहते हैं, तभी आक़िल मियां के कमरे से बाहर आती शमशाद बेग़म इस मंज़र को देख लेती है। फिर क्या ? वह दाऊद मियां के पास चली आती है, फिर ऊंघ में पड़े दाऊद मियां को झंझोड़कर कहती है।]
शमशाद बेग़म – [दाऊद मियां को झंझोड़कर, कहती है] – उठिए ना, हेड साहब। आप यहां बैठे हैं, और यह ज़ाहिल छोरा क्या-क्या [जबान अटक जाती है] और ये अंसारी तौफ़ीक़ मियां, बहदवास होकर ज़ोलीद:बयानी करते जा रहे हैं...हमने तो इनको...
दाऊद मियां – [आंखें खोलकर, कहते हैं] – रोज़हदीन मोमीन समझा..हां, वे है ही ऐसे। ख़ाला आप हमें आप सोया हुआ ना समझा करें। मैं जगा हुआ हूं, आंखें मूंदकर। आप बेनियाम मत हो, आप जानती नहीं तौफ़ीक़ मियां को ? वे हमारे मुख्बिरे सादिक हैं, आप फ़िक्र न करें।
शमशाद बेग़म – जानती हूं, वे आपके मुख्बिरे सादिक हैं। मगर यह सोचो मियां, आपकी आँखों के सामने ही यह लम्पट छोरा..न जाने, कब क्या करेगा ? स्कूल की छवि बिगाड़ देगा, कमबख्त।
दाऊद मियां – ख़ाला, आप समझा करें। आपकी ऐसी नादानी, इस जमालिये के दिल में संदेह का बीज न बो दे...कि, कहीं ये तौफ़ीक़ मियां हमारे मुख्बिरे सादिक तो नहीं हैं ? ज़रा सोचिये, फिर इस लम्पट के खिलाफ़ वे सबूत कैसे बटोरेंगे, समझ गयी आप तौफ़ीक़ मियां को ?
[उधर काफ़ी देर तक तो जमाल मियां, तौफ़ीक़ मियां से गुफ़्तगू करते हैं। मगर अचानक, वे तौफ़ीक़ मियां को पानी लाने का हुक्म देते हैं।]
जमाल मियां – भाईजान, आप तो छुपे रुस्तम निकले ? अचरच होता है, भाईजान। छोरियों के मामले में, इतनी ढेर सारी जानकारी आपके पास कैसे...? अरे जनाब, आपने तो हमारा दिल जीत लिया...
तौफ़ीक़ मियां – हम कहां तालिफ़े कुबूल रखते हैं ? अल्हम्दालिल्लाह....!
जमाल मियां – खुश कर दिया, जनाब। आपसे रोमांस भरी बातें सुनकर, हमारा गला युसुबत हो गया। अब ज़रा आबेजुलाल लेते आइये, भाईजान।
[तौफ़ीक़ मियां जाते हैं। उनके जाने के बाद जमाल मियां दाऊद मियां की तरफ़ देखते हुए, कहते हैं।]
जमाल मियां – [दाऊद मियां से] – हेड साहब, हमें तो यह स्कूल “स्कूल” नहीं लगता...पूरा बूचड़खाना लगता है, मियां। देखिएगा, बड़ी बी ने हम दोनों को कहां बैठाया..? घसियारा समझकर, बैठा दिया बरामदे में। यह कोई दफ़्तरेनिग़ारों के बैठने की जगह है ?
शमशाद बेग़म – [स्टूल पर बैठती हुई, कहती है] – नहीं हुज़ूर, यह जगह तो हुस्ने नज़ारा पाने की ठौड़ है। क्या कहें, हुज़ूर ? यहां तो हुस्न की मालिकाओं के दीदार, बिना कोशिश किये हो जाते हैं।
जमाल मियां – [झेंपते हुए, कहते हैं] – क्यों आप हमारी आबरू रेज़ी कर रही हैं ? हम नूरिया-जमालिया चवन्नी क्लास नहीं हैं, हम निहाल अली साहब के नेक दुख्तर हैं। ख़ानदानी नवाब हैं, खाला। क्या समझी, आप ?
दाऊद इयान – आपको जानते हैं, पहचानते हैं। जनाब नवाबी शान-शौकत के आदी हैं, कभी तो जनाब को चाहिए अलग कमरा, कभी नवाब साहब को बैठने के लिए चाहिए रिवोल्विंग चेयर...
शमशाद बेग़म – और गुफ़्तगू करने के लिए चाहिए, टेबल पर टेलीफ़ोन। और क्या चाहिए, साहबज़ादे ? जनाब, पहले इस सेलेरी बिल की टोटलें तो जांच कर लीजिएगा। [दाऊद मियां की टेबल से सेलेरी बिल उठाकर, जमाल मियां को थमा देती है] जानते हैं, आप ? बेचारे हेड साहब, कब से..
जमाल मियां – [दाऊद मियां की तरफ़ देखते हुए, उन्हें कहते हैं] – देखिये हेड साहब, सबको सबको अपना-अपना काम करना चाहिए। आक़िल मियां ने बिल बनाया है, तो जनाब आप इस बिल को चैक कर लीजिये। फिर क्या ? मैं उस बिल को डिस्पेच करके, ट्रेज़री भेज दूंगा।
दाऊद मियां – ठीक है, जैसी आपकी मर्जी। आप डिस्पेच करके बिल मुझे दे दीजिये, मैं इसकी टोटलें चैक कर लूंगा। [शमशाद बेग़म से] ख़ाला, ज़रा..जमाल मियां के डिस्पेच करने के बाद, आप बिल को इधर ले आना।
[कुछ देर बाद, सेलेरी बिल दाऊद मियां के पास लौटकर आ जाता है। अब दाऊद मियां हाथ में केलकुलेटर लेकर बिल की क्रोस की जोड़े चैक करते हैं, मगर क्रोस मिलता ही नहीं..न मालुम कहां जोड़ करने में ग़लती हो गयी ? फिर क्या ? आवाज़ देकर, शेरखान साहब को अपने पास बुलाते हैं। थोड़ी देर बाद, शेरखान साहब तशरीफ़ रखते हैं। अब वे पास रखी कुर्सी पर बैठकर, उस बिल की जोड़ें केलकुलेटर द्वारा मिलान करने बैठ जाते हैं।]
शेरखान – [जोड़ें मिलान करते हुए] – हुज़ूर, अगर हमने जोड़ें मिला दी, तो आपको ज़मीन के प्लोटों की जानकारी हमें देनी होगी। आप मुझे वे प्लोट बतायेंगे, जिनकी क़ीमत जल्दी बढ़ने वाली है।
दाऊद मियां – आप काम कीजिये, क़िब्ला, आपसे उज्र कैसा ? आपके एहबाबों से हम...
[अब शेरखान साहब जोड़ें मिलाने की बहुत कोशिश करते हैं, मगर काफ़ी माथा-पच्ची करने के बाद जोड़ों का क्रोस नहीं मिलता है। तब वे हेड साहब की तरफ़ देखते हुए, कहते हैं।]
शेरखान – अरे, जनाब। पहले आप यह बताएं कि, ‘यह बिल आपके सिवाय किन-किन लोगों के हाथों से गुज़रा है ?
शमशाद बेग़म – [बीच में बोलती है] – और किसके पास जायें, हुज़ूर ? जमाल मियां ने डिस्पेच करने के लिए इस बिल को लिया था, इस शैतान के ख़ालू ने दस-पंद्रह मिनट ख़राब कर डाले इस बिल को डिस्पेच करने में। उस वक़्त, इस मरदूद के पास कैसे खड़ी रहूं ? यह तो मेरा दिल ही जानता है। मर्दूद बार-बार बहाने गढ़कर किसी काम, मुझे बाहर भेजता रहा। ख़ुदा जाने, मुझे यह अपने पास खड़ा क्यों नहीं होने दे रहा था ?
शेरखान – [मुस्कराते हुए, कहते हैं] – अब तो मैं तसल्ली से, इस बिल को देखूंगा। क़ाबिल एतराज़ है...[बिल के हर खड़ी, सीधी लगी हर जोड़ की ‘कतार में लिखे गए इन्द्राज़ों की लिखावट’ देखते हैं, फिर स्याही का मिलान करते हैं। [अचानक वे ज़ोर से, बोलते हैं] पकड़ लिया..पकड़ लिया।
दाऊद मियां – क्या पकड़ा ? कहीं आपने, अपनी रीश [दाढ़ी] तो नहीं पकड़ डाली ?
[बरामदे में चल रही रशीदा बेग़म ने सुन ली, शेरखान साहेब की आवाज़...बस, बड़ी बी के पांव थम जाते हैं। और वह खुशी से कहती है।]
रशीदा बेग़म – [चहकती हुई] – क्या पकड़ लिया, मियां ? क्या, आख़िर पकड़ा गया शैतान चूहा ? बहुत परेशान कर रखा था, इसने। कमबख्त रोज़ मेरे खाने के टिफिन को खोलकर, खाना बरबाद कर देता है।
[तभी पास के क्लास रूम के दरवाज़े के पास खड़ी इमतियाज़, चिल्लाकर कहती है।]
इमतियाज़ – [ज़ोर से, कहती है] - अरे दाऊद मियां, पकड़े रखना इस शैतान चूहे को। कमबख्त ने मेरा पर्स काट डाला, अभी आकर इसे सज़ा देती हूं।
दाऊद मियां – [हंसी के ठहाके लगाकर, कहते हैं] – चूहा नहीं, मेडम। शरारत पकड़ ली, देखो किसकी ? आइये...आइये। देख लीजिये, यह जमाल मियां की शरारत थी।
[फिर क्या ? गुस्से से काफूर होकर इमतियाज़ वहां आती है। और आते ही, जमाल मियां का गला पकड़कर कहती है।]
इमतियाज़ – [गला पकड़े हुए, कहती है] – कमबख्त, तूने मेरा पर्स काट डाला..अब पैसे कौन भरेगा, तेरा बाप ?
रशीदा बेग़म – [नज़दीक आती हुई, कहती है] - अरे इमतियाज़ बी, इस शैतान के ख़ालू को छोड़ना मत...इसने मेरा खाना बरबाद कर डाला।
दाऊद मियां – [बिल को देखते हुए] – छोड़ना मत, मेडम। इस नामाकूल ने हमारे सेलेरी बिल का सत्यानाश कर डाला।
शेरखान – इस बिल को तैयार करने में, अल्लाह जाने आक़िल मियां ने कितनी मेहनत की होगी ? काली-सुर्ख स्याही काम में लेकर, वाकयी ख़ूबसूरत तहरीर [लिखावट] में बिल तैयार किया। मगर, इस कमज़ात ने डिस्पेच के बहाने बिल लेकर बरबाद कर डाला उसे।
इमतियाज़ बी, जमाल मियां का गला छोड़ देती है। अब चौंकती हुई, बड़ी बी कहती है।]
रशीदा बेग़म – [चौंकती हुई] – ऐसा क्या कर डाला, मियां ?
शेरखान – क्या नहीं किया, मेडम ? इसने ख़ाली इन्द्राज पर अपने हाथ से ब्लू पेन काम लेते हुए पच्चास रुपये इन्द्राज करके बिल का कबाड़ा कर डाला।
दाऊद मियां – फिर क्या ? जोड़ों का क्रोस, आख़िर मिले कैसे ? मेडम, हर जांच के बाद पच्चास रुपये का अंतर आने लगा। आख़िर, शेरखान साहेब ने तहरीर व स्याही का अंतर पाकर इस कुबदी की शरारत पकड़ ली।
[अब किसी का ध्यान जमाल मियां की तरफ़ नहीं है, तब मौक़ा पाकर जमाल मियां चुपचाप बगीचे में चले जाते हैं। तभी आक़िल मियां, कमरे से बाहर निकलकर आते हैं। बाहर आकर, वे बड़ी बी से कहते हैं।]
आक़िल मियां – बड़ी बी। आपने यह आरोप कैसे जड़ दिया, हमारे ऊपर ? आप ख़ुद जानती हैं, दस दिन पहले हमने अधिक ठहराव वाले मुलाज़िमों की फ़ेहरिस्त तैयार की, और फिर बाद में आपसे दस्तख़त लेकर तुरंत उस फ़ेहरिस्त को डी.ई.ओ. दफ़्तर भेजने के लिए जमाल मियां को संभाला दी।
शमशाद बेग़म – ठहरिये, जनाब। अभी-अभी हमें कुछ याद आया, कल ही जमाल मियां के टेबल की सारी दराज़े साफ़ की। सफ़ाई के दौरान, मैंने अधिक ठहराव वाली डाक देखी थी। हुज़ूर, जब यहां डाक पड़ी होगी..तब ख़ाक पहुंचेगी डी.ई.ओ. दफ़्तर ?
रशीदा बेग़म – अच्छा, यह कमबख्त चूहा नहीं था..यह तो कमबख्त छछूंदर निकला। जाओ ख़ाला, इस छछूंदर के टेबल की दराज़ से डाक निकालकर लेती आओ।
[अब शमशाद बेग़म जाती है, और जमाल मियां के टेबल की दराज़ से “मुलाज़िमों के अधिक ठहराव वाली डाक उठा लाती है, जब मेडम उसे देखती है तब वह डाक अब डी.ई.ओ. दफ़्तर भेजने लायक नज़र नहीं आती । उस डाक पर जगह-जगह स्याही और गम [गोंद] गिर जाने से, वह डाक अब बाहर फेंकने लायक बन गयी है।
अब दोनों दस्तावेजों का मुआइना करने के बाद, मेडम खिन्नता से दोनों दस्तावेज़ आक़िल मियां को लौटकर कहती है।]
रशीदा बेग़म – सेलेरी बिल पर अब बीसों कटिंग बन गयी है, और अधिक ठहराव वाली डाक पर गोंद और स्याही डालकर बरबाद कर डाला..इस छछूंदर ने।
आक़िल मियां – [उदासी से] – लाइए मेडम, बिल और डाक।
रशीदा बेग़म – [दोनों दस्तावेज़, आक़िल मियां को थमाती हुई कहती है] – लीजिये, दोनों दस्तावेज़। अब आपको वापस तैयार करने होंगे, मियां। अब सुनो, आक़िल मियां। यह कमबख्त ना तो चूहा है, और ना है छछूंदर। यह तो फ़न फैलाए बैठा, कोबरा नाग निकला। बस, अब इसे छेड़ो मत..नहीं तो यह काट खायेगा। देख लो...
आक़िल मियां – [नाखुशी से] – अब क्या देखूं, हुज़ूर ? आख़िर, इस कोबरा नाग ने सबको छोड़कर मुझे ही डसा है। सच तो यह है...
शमशाद बेग़म – फिर, सच्च क्या है ?
आक़िल मियां – ना तो इसने इमतियाज़ बी का पर्स कुतरा है, और न इसने बड़ी बी का खाना बरबाद किया.. बस अब हमें ही भुगतना है इसके जहर को, सेलेरी बिल और अधिक ठहराव वाली डाक वापस तैयार करके।
रशीदा बेग़म – ऐसे जहरीले नाग को खुला छोड़ना अब खतरे से ख़ाली नहीं, अब जाओ ख़ाला..उस जमाल मियां को लेकर आओ। अब हम कमरे में जाकर, इसके खिलाफ़ स्पस्टीकरण लेटर का ड्राफ्ट तैयार करते हैं।
शमशाद बेग़म – कहां से पकड़कर लायें, उसे ? हुज़ूर, वह तो डी.ई.ओ. दफ़्तर जा चुका है...तबादले की लिस्टें टाइप करने।
[अब आक़िल मियां को, सेलेरी बिल और अधिक ठहराव वाली डाक तैयार जो करनी है। इसलिए, वे अपने कमरे की तरफ़ क़दम बढ़ा देते हैं। उनके जाने के बाद, बीती बातें याद करके दाऊद मियां का दिल जलने लगा। अब वे क्रोधित होकर, कहने लगे।]
दाऊद मियां – [गुस्से से] – गारत कर डाला सेलेरी बिल, इस नालायक ने। कमबख्त जमालिये ने बाइसेरश्क से वाहियात हरक़त करके, हमें गर्दिशज़द बना डाला। ख़ुदा रहम, अब क्या करूं मेरे मोला ? हाय अल्लाह, अब एक बार और इस बिल को चैक करना होगा।
[फिर क्या ? दाऊद मियां का मायूस चेहरा देखकर, रशीदा बेग़म और इमतियाज़ उनके निकट आकर वहां पास रखी कुर्सियों पर बैठ जाती है। फिर क्या ? इधर इमतियाज़ बी जमाल मियां पर क्रोध आ रहा है, वह उसकी शिकायत बड़ी बी से करती हुई कहती है।]
इमतियाज़ – बड़ी बी, इस चमान जमाले में दुनिया ज़हान के एब भरे पड़े हैं। मेड..म। इसकी फ़ितरत ही कुछ ऐसी है कि, यह छोरा कभी सदाकत से बात करता ही नहीं। इस नामाकूल के शुऊर, अब ऐसे ही हो चुके हैं कि....सरे आम इसकी खोपड़ी पर मेरी मख़मली जूत्तियां सवार कर दूं ?
रशीदा बेग़म – आपको क्या हो गया, इमतियाज़ मेडम खैरियत तो है ?
इमतियाज़ – [तमतमायी हुई] – खैरियत..? काहे की, खैरियत ? जब-तक यह उल्लू इस स्कूल की हर डाल पर बैठता नज़र आयेगा, तब-तक पूरा स्टाफ़ बेकैफ़ रहेगा।
दाऊद मियां – मैं बताता हूं, बड़ी बी। हुआ यूं, इस लंगूर ने अफ़वाह फैला दी कि “इमतियाज़ बी का तबादला कहीं हो गया है। फिर क्या ? बेचारी मेडम डी.ई.ओ. दफ़्तर के चक्कर लगाकर, परेशान हो गयी।”
शेरखान – इनको परेशान देखकर, दाऊद मियां दफ़्तर के चक्कर काट आये। अजी पत्ता क्या लगाया, पूरा वाकया....यह तो तरन्नुम में आफ़रानी थी, मेडम। अभी तो तबादलों पर बेन लगा है, और दफ़्तर ने ऐसी कोई फ़ेहरिस्त अभी-तक बनायी ही नहीं...
दाऊद मियां – और बड़ी बी...यह बेचारी इमतियाज़ बी..इन नामाकूल दफ़्तरे निग़ारों की नज़रों में आ गयी, कि “इमतियाज़ का लॉन्ग स्टे है, और यह यहां दस साल से यहीं बैठी है...!”
इमतियाज़ – [रुंआसी होकर] – हां मेडम, जो बात इतने सालों से दफ़्तर वालों को मालुम नहीं थी..वह बात, इस ख़बती के रज़ील काम करने से सबके सामने आ गयी। हाय अल्लाह, अब क्या होगा ?
रशीदा बेग़म – अरी इमतियाज़ बी, यह जमालिया तो ज़ाहिल खुराफ़ाती निकला। अब तुम ही बताओ, मेडम। इस नामाकूल को कहां बैठाऊं ? जहां बैठाऊंगी, वहां शरारत करने लग जाता है।
शमशाद बेग़म – यह शैतान, क्या बाज़ आये ? अभी भी मेरी आंखों के आगे हरक़त करता हुआ, नौ दो ग्यारह हो गया। देखिये ज़रा, अब कहां है बरामदे में ?
इमतियाज़ – [जाली से बाहर झांकती हुई] – शायद बगीचे में बैठकर, यहां की बातें छुपकर सुन रहा हो ?
शमशाद बेग़म – [इमतियाज़ बी से] – ज़रा वसूक रखो, हम पर। वह डी.ई.ओ. दफ़्तर चला गया, टाइप करने। फिर वापस आकर कल, तबादलों की अफ़वाह का बाज़ार गर्म करेगा...’अमुख-अमुख मेडमों का तबादला हो रहा है।’
[मगर जमाल मियां ठहरे, एक नंबर के खुराफ़ाती। वे कब, डी.ई.ओ. दफ़्तर जाने वाले ? वे तो बगीचे में ही मौज़ूद। उनकी फ़ितरत कुछ ऐसी, ‘वे कहे कि बरसात हो रही है मगर वहां पानी को छोड़िये..कीचड़ भी नहीं मिलेगा।’ बस उनको तो इन तमतमायी हुई मेडमों के चेहरे देखकर, ख़िलखिलाकर हंसने में मज़ा आता है। तभी इमतियाज़ मेडम की नज़र, बगीचे में लगी ऊंची-ऊंची केलियों के पौधों के झुरमट पर गिरती है। जिसके पीछे छुपकर वे, इन लोगों की गुफ़्तगू सुनते नज़र आते हैं। अब उनकी निग़ाह जैसे ही इमतियाज़ बी पर गिरती है, वे उसे चिढ़ाने के लिए तुक्कड़ नग़मा गा बैठते हैं।]
जमाल मियां – [तुक्कड़ नग़मा गाते हुए] – “दूर दूर रहो आपा, तो काम करोगी। देण करोगी आपा, तो ज़ाल में फंसोगी। बल्ले-बल्ले होय आपा, मज़े करोगी। मुझको छोड़ आपा, देखो अपने काम को। जिधर जाए सींग मेरे, उधर ही जाने दो। पायी ऐसी क़िस्मत मैंने, हम काम नहीं करते हैं। दूर-दूर रहना आप, हम ऐश ही करेंगे। दूर ही रहोगी आपा, तो काम ही करोगी।”
इमतियाज़ – [जाली पकड़कर, गुस्से से कहती है]- इधर आ, चमान। तूझे ऐश करवाती हूं।
जमाल मियां – [चिढ़ाते हुए, आगे गाते हैं] – “काम न बताओ मुझको, जवाब क्या देना है ? पड़े रहते ज़ेब में, चाहे जब काम लो।”
दाऊद मियां – [चिढ़कर कहते हैं] – कमबख्त, अन्दर आ। ये डाकें तैयार कर, आकर। बेवकूफ, सेलेरी बिल ट्रेज़री कौन भेजेगा ?
जमाल मियां – [हंसते हुए, तुक्कड़ नग़मा गाते हुए] – “जब बैठेंगे चेयर पे, सुट्टो सब कुछ चाहिए। ढेर सारी फाइलें, पड़ी रहती मेज़ पे। फाइलों के बीच में, मैग़ज़ीन छुपी रहती प्रेम से। मैग़ज़ीन को पढ़ते-पढ़ते घड़ी को देखें हैं। अब चार कब बजेंगे प्यारे, इसे ध्यान रखो प्यारे। बाकी सब बेकार है।”
शमशाद बेग़म – अरे मियां, चार बजने का नाम लेकर, कहीं चले मत जाना। चाय बना रही हूं, पीकर जाना।
जमाल मियां – [आगे गाते हुए] – “घंटा-भर पहले-पहले, अलमारी को बंद करे। इधर-उधर पहले-पहले, हफ्वात हांकेंगे। साथ-साथ बैठ के, टांगे ऊंची रखे हैं। अब चाय बना दो पहले, बस-स्टैंड जाना है। बीबी को रिसीव करने, जल्दी मुझे जाना है। अब चाय बना दो ख़ाला, खुश-खुश रहोगी। देण करोगी ख़ाला, ज़ाल में फंसोगी।”
इमतियाज़ – अरे, ओ ख़बीस के बच्चे। तबादले की सच्ची ख़बर रखता नहीं, और उल्लू की दम चला अफ़वाह का बाज़ार गर्म करने।
जमाल मियां – [चिढ़ाते हुए, नग़मा गाते हुए] – किन-किन के तबादले, हंड्रेड परसेंट स्योर है। डी.ई.ओ. दफ़्तर जाकर हमने, टंकण काम किया है। कौन जाने कितनी राते, काली हमने की है।
इमतियाज़ – [बेनियाम होकर] – इधर आ, उल्लू। रातें काली की तूने, अब आ इधर तू...
[जहां इमतियाज़ खड़ी है, वहां जाफ़री की जाली के पास एक डब्बा रखा है। जिसमें ब्लैक-बोर्ड पोतने के लिए बोर्ड मसाले का घोल और ब्रश रखा है। अब इमतियाज़ उस डब्बे से ब्रश घोल में डूबाकर, उसे उठाती है। फिर जमाल मियां को, ब्रश दिखलाती हुई उनसे कहती है।]
इमतियाज़ – [ब्रश दिखलाती हुई] - कालिख़ पोतकर, अभी तेरा मुंह काला करती हूं।
[इमतियाज़ को चिढ़ाने के लिए, जमाल मियां ज़बान बाहर निकालकर उसे चिढ़ाते हैं, फिर अंगूठा दिखाकर उसका गुस्सा बढ़ाने की कोशिश करते हैं। इमतियाज़ की खीज़, बढ़ती जा रही है। उसे खीज़ते हुए पाकर, वे उसे तुक्कड़ नग़में का अगला मुखड़ा सुना देते हैं।]
जमाल मियां – [आगे का नग़मा गाकर, सुनाते हैं] – “दफ़्तर में तुम जाओ मत, बदली तुम्हारी स्योर है। बार-बार फ़ोन लगाकर, खर्च मत बढ़ाओ तुम। दूर रहोगी हमसे, चैन से रहोगी। देण करोगी आपा, ज़ाल में फंसोगी।
[अब तो इमतियाज़ बी, बर्दाश्त नहीं कर पाती। फिर क्या ? पांव की जूत्ती हाथ में लेकर, वह मियां को पीटने के लिए तैयार हो जाती है। तभी उसके पीछे कई मेडमें आकर खड़ी हो जाती है। अब दाऊद मियां के कहकहे, गूंज़ उठते हैं। उनके कहकहों में, सभी मेडमें उनका साथ देने लगती है। तभी बड़ी बी की रौबीली आवाज़, सबको सुनायी देती है।]
रशीदा बेग़म – [रौब से] – अरी, ओ इमतियाज़ बी। अब तिफ्लेअश्क गिराना बंद करो। यह तो “तबादला-ए-परवाज़े-तख्य्युल” ठहरा। इस ख़बती ने, तुम्हारे साथ मुज़हाक की है।
[बड़ी बी के समझाने पर, अब इमतियाज़ अपने पांव में जूत्ती वापस पहन लेती है। फिर क्या ? पहले की तरह वह अपने-आपको सुपर समझने की सक़त कर बैठती है, और खिसियानी हंसी से पूरा बरामदा गूंज़ा देती है...जैसे, उसे कुछ हुआ ही नहीं। सभी जाते हैं, उनके पांवों की पदचाप सुनायी देती है। मंच पर, अंधेरा छा जाता है।]
पाठकों,
जवाब देंहटाएंसरकारी मुलाज़िमों के लिए सबसे कष्टदायक दंड है, बदली ! अब आप दबिस्तान-ए-सियासत के अंक ५ में यह देखेंगे कि, शातिर जमाल मियां तबादले की झूठी अफवाहें फैलाकर बेचारी इमतियाज़ को बहुत परेशान करते हैं, उस दौरान इमतियाज़ का सुख-चैन ख़त्म हो जाता है ! इस अंक में हास्य वाकये ऐसे लिए गए हैं, जिन्हें पढ़कर आप इसे पूरा पढ़ें बिना नहीं रहेंगे ! इस अंक को पढ़िए और हंसी के ठहाके लगाइए !
दिनेश चन्द्र पुरोहित dineshchandrapurohit2@gmail.com