भारतीय संस्कृति का प्रतीक ‘‘तिलक‘‘ मानसश्री डॉ.नरेन्द्रकुमार मेहता ’’मानस शिरोमणि एवं विद्यावाचस्पति’’ हमारे समस्त धार्मिक, त्यौहारों तथा...
भारतीय संस्कृति का प्रतीक ‘‘तिलक‘‘
मानसश्री डॉ.नरेन्द्रकुमार मेहता
’’मानस शिरोमणि एवं विद्यावाचस्पति’’
हमारे समस्त धार्मिक, त्यौहारों तथा पूजापाठ के कार्यों में तिलक लगाने की परम्परा आदिकाल से चली आ रही है। घर या मंदिर में पूजा हो अथवा रक्षाबन्धन, दशहरा, दीपावली, भगवान सत्यनारायण की कथा हो तिलक लगाना मंगल कार्य माना गया है। इस तिलक लगाने का औचित्य वैज्ञानिक है। तिलक लगाना शुभ माना गया है। इसे सात्विकता का प्रतीक माना गया है। हमारे पौराणिक ग्रन्थों में विजयश्री प्राप्त करने के उद्देश्य से रोली, हल्दी, चन्दन अथवा कुंकुम के तिलक लगाने का वर्णन प्राप्त होता है। इतना ही नहीं तीर्थ स्थानों पर स्नान उपरान्त भी तिलक लगाना श्रेष्ठ बताया गया है। आज भी विवाह के अवसर पर बेटी-बहिन आने वाले अतिथियों का तिलक लगाकर स्वागत् एवं अभिनन्दन करती है। सामान्यतः स्नान एवं पूजा के वस्त्र धारण करने के पश्चात शैव त्रिपुण्ड, वैष्णव उर्ध्वपुण्ड, गाणपत्ये रोली या सिन्दूर का तिलक लगाते हैं। जैन धर्मावलम्बी लाल और केसरिया बिन्दु लगाते हैं। जब हम स्वयं अपने हाथों से तिलक लगाते हैं तो ऐसा तिलक धार्मिक तिलक होता है तथा जब कोई हमें तिलक लगाता है तो ऐसा तिलक सांस्कृतिक तिलक माना जाता है। राखी-भाईदूज-विवाह के अवसर पर ऐसा सांस्कृतिक तिलक लगाने की परम्परा है।
तिलक का वैज्ञानिक पक्ष
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से चन्दन का टीका या तिलक मस्तिष्क में शांति, तरावट तथा शीतलता बनाये रखता है। तिलक लगाने से मस्तिष्क में सेराटोनिन एवं बीटाएंडोरफिन नामक रसायनों का सन्तुलन होता है। व्यक्ति की मेधाशक्ति में वृद्धि होती है तथा मानसिक थकावट एवं शिथिलता दूर होती है। वास्तव में मानव शरीर में सात सूक्ष्म ऊर्जा केन्द्र होते हैं, जो अपार शक्ति के भण्डार माने गये हैं। इन्हें ही चक्र कहा जाता है। माथे के बीच में (दोनों भौहों के मध्य) जहाँ तिलक लगाया जाता है, वहाँ आज्ञा चक्र होता है, यहाँ शरीर की प्रमुख तीन नाड़िया-इड़ा, पिंगला एवं सुषुम्ना आकर मिलती है। यह चक्र हमारे शरीर का सबसे महत्वपूर्ण स्थान होता है। इसलिये इसे त्रिवेणी या संगम भी कहा जाता है। यह गुरु स्थान कहलाता है। यहीं से पूरे शरीर का संचालन होता है। यही हमारी चेतना का मुख्य स्थान भी है। इसी को मन का घर भी माना जाता रहा है। इसी कारण यह स्थान शरीर में सबसे अधिक पूजनीय है। योग करने में भी ध्यान के समय इसी स्थान पर मन को एकाग्र किया जाता है।
हमारे ऋषिगण इस बात को पूर्णरुपेण जानते थे कि पीनियल ग्रन्थि के उद्दीपन से आज्ञा चक्र का उद्दीपन होगा। यही कारण है कि धार्मिक कर्मकाण्ड, पूजा, उपासना व मांगलिक कार्यों में तिलक लगाने की परम्परा अत्यधिक होने लगी ताकि उसके उद्दीपन से हमारे शरीर में स्थूल सूक्ष्म अवयव जागृत हो सके। इस आसान विधि से सर्वसाधारण की रुचि धार्मिकता एवं आध्यात्मिकता की ओर अग्रसर हुई।
तŸव दर्शन की विचारधारा के अनुसार चन्दन का तिलक या त्रिपुण्ड की प्रकृति प्रायः शीतल होने के कारण से इसे मस्तिष्क पर लगाया जाता है, ताकि हमारे विचार शक्ति एवं भाव शीतला, प्रसन्नता और शांति प्रदान करने वाले हो जावे। भारतीय संस्कृति में किसी भी पूजा-पाठ, यज्ञ, अनुष्ठान आदि का शुभारम्भ श्री गणेशजी की पूजा से प्रारम्भ होता है। उसी प्रकार बिना तिलक लगाये किसी भी प्रकार की पूजा आरम्भ नहीं की जा सकती है। हमारी संस्कृति में ऐसी परम्परा व मान्यताएँ है कि सूने मस्तिष्क को अशुभ, असुरक्षित व अमांगलिक माना गया है। इसी कारण तिलक या टीका लगाने की मान्यता है। यह सदैव चंदन, रोली, कुंकुम, सिंदूर तथा भस्म का लगाया जाता है। तंत्रशास्त्र में तिलक की अनेक क्रिया-विधियाँ उद्देश्यों की सफलता के लिये बताई गई है।
तिलक लगाने में प्रयोग होने वाली अंगुलियाँ
तिलक लगाने में प्रयोग की जाने वाली अंगुली तथा अंगूठे के बारे में ब्रह्माण्ड पुराण एवं अन्य पुराणों में भी उल्लेख है। अंगूठे के प्रयोग से ख्याति,आरोग्य एवं शक्ति, मध्यमा के प्रयोग से दीर्घायु, अनामिका के प्रयोग से समृद्धि तथा तर्जनी से मुक्ति प्राप्त होती है। तिलक विज्ञान के मतानुसार तिलक लगाने में नाखून स्पर्श कर लगे तिलक को पोंछना अनिष्टकारी बताया गया है। युद्ध में विजय हेतु हमेशा दाहिने हाथ के अंगूठे से तिलक लगाया जाता है। अंगूठा शुक्र क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है। शुक्र जीवन शक्तिदायक होता है।
तिलक लगाने से कुण्डली के कई दोष स्वतः समाप्त हो जाते हैं। आज भी उŸार भारत में आरती के साथ तिलक लगाकर आदर, सत्कार, स्वागत करने की प्रथा है। तिलक हमारे हिन्दू अध्यात्म का प्रतीक है। तिलक लगाते समय सिर पर टोपी, पगड़ी, रुमाल और कुछ न हो तो अपना प्रायः दाहिना हाथ सिर पर रखना चाहिये। इससे सिर में सकारात्मक ऊर्जा एकत्रित होती है तथा कार्यों में अपूर्व सफलता प्राप्त होती है। तिलक लगाये बिना किया गया श्राद्ध, स्नान, जप, दान, देवी-देवता की पूजा अपूर्ण होती है तथा इसका कोई फल प्राप्त नहीं होता है।
तिलक लगाने की विधि
पद्मपुराण में तिलक लगाने की विधि का वर्णन महादेवजी द्वारा पार्वतीजी को बताया गया है। शरीर के विभिन्न स्थानों पर लगाये जाने वाले तिलक के स्थान व उनके नाम भी स्पष्ट किये गये हैं यथा-’ललाट में केशव, कण्ठ में श्री पुरुषोत्तम, नाभि में नारायणदेव, हृदय में वैकुण्ठ, बांयी पसली में दामोदर, दाहिनी पसली में त्रिविक्रम, मस्तक पर हृर्षीकेश, पीठ में पद्मनाभ, कानों में गंगा-यमुना तथा भुजाओं में श्रीकृष्ण और हरि का निवास होता है। इन सब वर्णित स्थानों पर तिलक करने से बारह देवता प्रसन्न एवं संतुष्ट होते हैं।
तिलक लगाते या करते समय इन बारह नामों का उच्चारण करना चाहिये। जो ऐसा करता है, वह अपने द्वारा किये गये पापों से शुद्ध होकर विष्णु लोक को प्राप्त होता है। भगवान के चरणोदक को पीना चाहिये। इतना ही नहीं परिवार के सभी सदस्यों तथा मित्रों सहित शरीर पर छिड़कना भी चाहिये। भगवान विष्णु के चरणामृत का वर्णन नारदपुराण में बताया गया है-
अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम्।
सर्वपापक्षयकरं विष्णुपादोदकं शुभम्।। ना.पु. पृ 431
अर्थात् भगवान विष्णु का शुभ चरणामृत अकाल मृत्यु का अपहरण (नाश कर), सम्पूर्ण व्याधियों का नाश तथा समस्त पापों का संहार करने वाला है।
तिलक लगाने के पूर्व तिलक मंत्र इस प्रकार है-
1- केशवानन्न्त गोविन्द बाराह पुरुषोत्तम।
पुण्यं यशस्यमायुष्यं तिलकं में प्रसीदतु।।
2- कांतिलक्ष्मीं धृतिं सौख्यं सौभाग्यमतुलं बलम्।
ददातु चन्दनं नित्यं सततंधरयाम्यहम्।।
प्राचीन कला में शिव भक्त त्रिशूल के आकार (आड़ी तीन रेखाओं) का तिलक लगाया करते थे। ब्राह्मण शांति एवं पवित्रता के प्रतीक सफेद चन्दन का तिलक लगाते थे। देवी के उपासक लाल चंदन की एक खड़ी रेखा मस्तक पर बनाते थे। क्षत्रियों का प्रिय लाल रंग शौर्य व शक्ति का प्रतीक होता है। विष्णु एवं श्रीकृष्ण भक्त पीले चन्दन की तीन बड़ी रेखाओं का तिलक लगाते हैं। वैश्य समाज के लोग पीले रंग का तिलक लगाते हैं, जो व्यापार में उन्नति का प्रतीक माना गया है। पीला रंग (हल्दी,चंदन) कृष्ण गोविन्द की भक्ति और प्रसन्नता को दर्शाता है, बृहस्पति की शांति एवं प्रसन्नता हेतु पीला तिलक लगाना श्रेष्ठ होता है। तिलक लगाने के पश्चात उस पर चावल (अक्षत) लगाना अनिवार्य है, क्योंकि ये मांगलिक होता है।
हल्दी से युक्त तिलक लगाने से त्वचा शुद्ध होती है एवं हल्दी में एंटीबेक्टिरियल तत्व विद्यमान होते हैं जो शरीर में प्रतिरोधक शक्ति उत्पन्न करते हैं। तिलक लगाने से सिरदर्द की समस्या समाप्त हो जाती है। स्त्रियों को मस्तर पर कस्तूरी का तिलक या बिन्दी लगाना चाहिये। सिंदूर उष्ण प्रकृति का होता है अतः श्री गणेशजी, हनुमानजी एवं माताजी या अन्य मूर्तियों से सिंदूर निकालकर मस्तक पर नहीं लगाना चाहिये।
ज्योतिष के मतानुसार पूरे सप्ताह लगाये जाने वाले तिलक
ज्योतिष शास्त्र में बताया गया है कि तिलक लगाने से सभी प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं। सनातन धर्म में शैव, शक्ति, वैष्णव और अन्य मतों के अनुसार अलग-अलग तिलक है। तिलक लगाने से लक्ष्मीजी की कृपा बरसती है। तिलक कई प्रकार के होते हैं। मृतिका, चंदन, भस्म, सिंदूर, रोली, गोपीचन्दन आदि। वार को दृष्टिगत रखकर तिलक लगाने से सुख शांति-समृद्धि व मांगलिक बन जाते हैं।
1. सोमवार - सोमवार का दिन भगवान शंकर का दिन माना गया है तथा इस वार का ग्रहस्वामी चन्द्रमा ग्रह है। चन्द्रमा मन का कारक ग्रह माना गया है। मन-मस्तिष्क को शीतल और शांत रखने के लिये इस दिन सफेद चंदन का तिलक (टीका) लगाना चाहिये। इस दिन विभूति या भस्म भी लगा सकते हैं।
2. मंगलवार - मंगलवार हनुमानजी का दिन माना गया है। इस दिन का ग्रहस्वामी मंगलग्रह है। मंगल लाल रंग का प्रतिनिधित्व करता है। इस दिन लाल चंदन या चमेली के तेल मे घुला हुआ सिंदूर का तिलक लगाने से सकारात्मक ऊर्जा और कार्यक्षमता प्राप्त होती है। ऐसा तिलक लगाने से मन में उदासी व निराशा का भाव समाप्त हो जाता है और दिन मंगलमय हो जाता है।
3. बुधवार - बुधवार माँ दुर्गा एवं श्रीगणेशजी का दिन होता है। इस दिन का स्वामी बुध ग्रह है। इस दिन सूखे सिंदूर का तिलक करना चाहिये। बुधवार का दिन बौद्धिक क्षमता में वृद्धि करने का दिन है।
4. गुरुवार - बृहस्पति वार या गुरुवार के दिन ब्रह्मा का दिन माना गया है। बृहस्पति ऋ़षि देवताओं के गुरु है। इस दिन का ग्रहस्वामी बृहस्पति ग्रह है। गुरु को पीला या सफेद मिश्रित रंग प्रिय है। इस दिन सफेद चन्दन में केसल मिलाकर घिसकर तिलक या लेप मस्तक पर लगाना चाहिये। यदि ये उपलब्ध न हो तो हल्दी या गोरोचन का तिलक भी लगा सकते हैं। पीले या सफेद तिलक लगाने से आर्थिक कष्टों का निवारण होकर समृद्धि के द्वार खुल जाते हैं।
5. शुक्रवार - शुक्रवार लक्ष्मीजी का दिन होता है। इस दिन का ग्रहस्वामी शुक्र ग्रह है। इस ग्रह को दैत्यराज भी कहा जाता है। क्योंकि दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य थे। इस दिन लाल चन्दन का तिलक लगाने से तनाव दूर होता है। आर्थिक समस्या समाप्त होने लगती है।
6. शनिवार -शनिवार का दिन भैरव, शनि और यमराज का दिन होता है। इस दिन के ग्रहस्वामी शनिग्रह है। शनिवार के दिन विभूत भस्म या लाल चंदन लगाना चाहिये जिससे भैरव भगवान प्रसन्न हो जावे। भैरव के प्रसन्न होने से क्षति का भय नहीं होता है तथा यह दिन शुभ बन जाता है।
7. रविवार - रविवार का दिन भगवान विष्णु और सूर्य का दिन होता है। इस दिन के ग्रहस्वामी सूर्यग्रह हैं जो सभी ग्रहों के राजा है। इस दिन लाल चंदन या हरिचंदन का टीका लगावे। विष्णु भगवान की कृपा से समाज में उच्च मान-सम्मान-प्रतिष्ठा प्राप्त होती है।
तिलक लगाने के लाभ तो हैं ही तथा इसके लगाने से व्यक्तित्व प्रभावशाली आकर्षक बन जाता है। तिलकधारी व्यक्ति के सौभाग्य में अपार वृद्धि होने लगती है। तिलक लगाने से बुरे ग्रहों की शांति हो जाती है तथा भगवान की कृपा से जाने-अनजाने में किये गये पाप नष्ट हो जाते हैं। तिलक हमारी सभ्यता, संस्कृति की धरोहर एवं प्रतीक हैं।
मानसश्री डॉ.नरेन्द्रकुमार मेहता
’मानस शिरोमणि एवं विद्यावाचस्पति’’ Sr. MIG-103, व्यास नगर, ऋषिनगर विस्तार उज्जैन (म.प्र.)
Email:drnarendrakmehta@gmail.com
(सभी चित्र सौजन्य - डॉ. नरेन्द्र कुमार मेहता)
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