समीक्षा आध्यात्मिकता से एकता एवं समन्वय / मूल लेखक, डा. निरंजन मोहनलाल व्यास / भाषांतर, हर्षद दवे / प्रकाशक, श्री स्वामीनारायण गुरुकुल विश्व...
समीक्षा
आध्यात्मिकता से एकता एवं समन्वय / मूल लेखक, डा. निरंजन मोहनलाल व्यास / भाषांतर, हर्षद दवे / प्रकाशक, श्री स्वामीनारायण गुरुकुल विश्वविद्या प्रतिष्ठानं (एस जी वी पी), अमदाबाद
आध्यात्मिकता का मार्ग
डॉ. सुरेन्द्र वर्मा
“आध्यात्मिकता से एकता एवं समन्वय” पुस्तक मूलत: डा, निरंजन मोहनलाल द्वारा, अंग्रेज़ी भाषा में लिखी गई पुस्तक है जिसका गुजराती भाषा, और तत्पश्चात हिन्दी में सरस और सटीक अनुवाद ख्यातिप्राप्त अनुवादक श्री हर्षद दवे ने किया है। डा. निरंजन मोहनलाल साउथ केतोलाइना यूनिवर्सिटी, एकन, यू एस ए में मानक प्राध्यापक रहे हैं और वहीं से सेवा निवृत्त हुए हैं। वे उत्तर-अमरीका, यूरोप, और भारत में कई अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन से जुड़े रहे हैं और उन्होंने पाश्चात्य जीवन–पद्धति का निकट से अध्धयन किया है। किन्तु इसके बावजूद उनकी सांस्कृतिक जड़ें हमेशा भारत में ही बनी रहीं। यही कारण है कि सेवा- निवृत्ति के पश्चात उन्होंने भारतीय संस्कृति और श्री स्वामीनारायण के सर्व-जीव हितकारी सन्देश का समूचे विश्व में प्रचार-प्रसार करने का बीड़ा उठाया। उन्होंने बड़े दुःख के साथ इतिहास के इस अनुभव को आत्मसात किया कि विश्व में धर्म के नाम पर सर्वाधिक रक्त रंजित युद्ध हुए हैं और आज भी ये निरंतर जारी हैं। आखिर इस धर्मान्धता और हठ-धर्मी का क्या कारण हो सकता है, जब कि कोई भी धर्म इस तरह की हिंसा की वकालत नहीं करता। डा. निरंजन ने इसका कारण लोगों में आध्यात्मिकता के अभाव को पाया है। उनका मानना है कि यह केवल आध्यात्मिकता ही है जो हमें धर्मान्धता से बचाकर शान्ति और स्वस्थता की ओर ले जा सकती है।
डा. निरंजन मोहनलाल की यह पुस्तक आठ अध्यायों में विभक्त है। अध्यायों के विषय क्रमश: इस प्रकार हैं। आध्यात्मिकता : प्रारम्भिक अन्वेषण; आध्यात्मिकता की परिभाषा और अर्थ; आध्य्यात्मिक्का और धर्म; आध्यात्मिकता, धर्म और विज्ञान; संस्थान, प्रतिष्ठान और नेतृत्व पर आध्यात्मिकता का प्रभाव; आध्यात्मिकता एवं शिक्षण; आध्यात्मिकता, मनुष्य ओर समाज; प्रसिद्ध महापुरुष: कहानी; तथा प्रेरक सूक्तियां।
इसमें कोई संदेह नहीं कि आध्यात्मिकता को परिभाषित करना बहुत मुश्किल है। इसका कारण यह है कि आध्यात्मिकता को धर्म और ईश्वर से प्राय: जोड़ दिया जाता है। जब कि वस्तुत:, जैसा कि लेखक ने अपने अध्ययन में पाया है, किसी भी आध्यात्मिक मनुष्य का धार्मिक होना आवश्यक नहीं है। न ही यह ज़रूरी है कि हर आध्यात्मिक मनुष्य ईश्वर के अस्तित्व पर विश्वास ही करे। इतना ही नहीं अनेक ऐसे लोग भी मिल जावेंगे जो ईश्वर में विश्वास तो करते हैं, किन्तु किसी धर्म से जुड़े हुए नहीं हैं। अधिकतर लोगों का यह भी विश्वास है कि हम धर्म से जुड़े बगैर भी आध्यात्मिक हो सकते हैं और इससे हम लोगों से अधिक सुमधुर, और अधिक अच्छे तथा प्रेम पूर्ण सम्बन्ध बना सकते हैं।
आध्यात्मिकता को परिभाषित करने के लिए डा. निरंजन मोहनलाल ने दलाई लामा की परिभाषा को वरीयता दी है जिसके अनुसार आध्यात्मिकता हमें समझदारी, स्वस्थ चिंतन, ओर प्रेम, करुणा और क्षमा जैसी मानवीय भावनाओं से जोड़ती है और मन को एक शांत तथा स्थिर अवस्था में प्रतिष्ठित करती है। डा. निरंजन कवि स्टीवन का भी उल्लेख करते हैं जिन्होंने आध्यात्मिकता को आध्यात्मिक-प्रज्ञा के रूप में स्वीकार किया है, जो हमें सही दिशा की ओर संकेत करती है। आप चाहें तो इसे अंतरात्मा की आवाज़ भी कह सकते हैं। श्री अरविन्द के अनुसार आध्यात्मिकता जीवात्मा का सर्वत्र व्याप्त अपार्थिव अंश है। लेखक ने आध्यात्मिकता को समझाने के लिए रिचर्ड वोल्मेन, डा. वेईन, जूडिथ नील जैसे विद्वानों को भी उद्धृत किया है। वे कुछ कवियों को भी उद्धरित करते हैं और अंत में निष्कर्षत: वे आध्यात्मिकता की प्रकृति के सन्दर्भ में अपनी आधे दर्जन से अधिक कुछ धारणाएं विकसित करते हैं। वे कहते हैं , आध्यात्म और धर्म अलग अलग वृत्तियाँ हैं। आध्यात्मिकता का सम्बन्ध मनुष्य की अपनी जागृति और अपने अस्तित्व की सम्पूर्णता से है। आध्यात्मिकता परम-आत्मा और आत्म-बल से जुडी शक्ति है। यह वह तत्व है जो जीवन को सार्थक बनाता है। आध्यात्मिकता हमें सीखने का अवसर प्रदान करती है और सांकेतिक प्रक्रियाओं द्वारा सत्य की ओर उन्मुख करती है। आध्यात्मिकता ही हमें संगीत, कला आदि की ओर दिशा निर्देश देती है। आध्यात्मिकता हमें काम, क्रोध, भय इत्यादि से मुक्त कर शान्ति और स्थितिप्रज्ञता की ओर ले जाती है। सबके लिए प्रेम, दृढ सत्य- निष्ठा ओर करुणामय ह्रदय – आध्यात्मिकता की तीन प्रमुख विशेषताएं हैं।
धर्म का अर्थ और उससे सम्बंधित धारणाओं पर डा. व्यास ने पूरा एक अध्याय इस पुस्तक में सम्मिलित किया है। इसमे अनेक धर्मों की चर्चा की गई है। भारतीय उपखंड में उत्पन्न धर्म भी इसमें शामिल हैं, जैसे , हिन्दू, बौद्ध, जैन और सिख धर्म। इसके अतिरिक्त ताओ धर्म (चीन) कन्फ्यूशियस, शिंटो धर्म (जापान), के बारे में भी काफी कुछ बताया गया है। यहाँ तक की विभिन्न देशों के आदिवासियों के धर्मों का भी ज़िक्र किया गया है। उन्होंने पूर्व और पश्चिम के धर्मों की एक तुलनात्मक सारणी भी उपस्थित की है। इस पूरे अध्ययन के बाद वे इस निष्कर्ष पर पहुंचाते हैं कि अध्यात्म और धर्म ये दो अलग अलग चीजें हैं। सारे धर्म मानव निर्मित हैं जब की अध्यात्म हर व्यक्ति में स्वाभाविक रूप से पाई जाने वाली संवृत्ति है। यह अंतर्मुखी और अनुभूतिजन्य है। लेखक का मत है कि मानव अस्तित्व के लिए धर्म की अपेक्षा कहीं अधिक आवश्यकता अध्यात्म की है। धर्म के लिए युद्ध (धर्म-युद्ध) होते हैं, किन्तु अध्यात्म में युद्ध के लिए कोई स्थान नहीं है, धर्म व्यक्ति को अशांत और अप्रसन्न कर सकते हैं किन्तु अध्यात्म में शान्ति और प्रसन्नता का अहसास है। सच तो यह है कि अध्यात्म का आधार ही मनुष्य की अपनी आत्मा है।
डा. व्यास का यह भी प्रमाणिक मत है की शेयर बाज़ारों में तथा अन्य आर्थिक अथवा गैर-आर्थिक संस्थानों में जो लालसा और लोभ के कारण घपले होते हैं उसका मूल कारण इन संस्थानों में काम कर रहे लोगों में अध्यात्मिक मूल्यों की कमी है। संस्थानों का सुचार रूप से संचालन हो सके इसके लिए गहरा आत्मसमर्पण, ईमानदारी,और संचालकों के व्यवहार में प्रमाणिकता की आवश्यकता होती है। ऐसे संचालक अपनी आध्यात्मक शक्ति का प्रयोग कर कर्मचारियों में भी मूल्य और समर्पण का भाव उत्पन्न करने में समर्थ होते हैं। किसी भी संस्था में आदर्श नेतृत्व के लिए यह आवश्यक है की संचालक का व्यक्तित्व आध्यात्मिक मूल्यों द्वारा संचालित हो तभी वह अपने अधीन कर्मचारियों को काम के प्रति प्रोत्साहित कर सकेगा। आध्यात्मिकता इस प्रकार केवल व्यक्ति तक ही सीमित न होकर दूसरों के लिए प्रेरक भी सिद्ध होती है। इससे संस्थानों की उल्लेखनीय कार्य-क्षमता, अनुपस्थिति की कमी तथा उत्पादकता की वृद्धि देखने को मिलती है।
आध्यात्म के विषय में आजकल शिक्षण संस्थानों में, विशेषकर मेनेजमेंट-शिक्षा के क्षेत्र में, भी अधिक सहज भाव से विचार विमर्श होने लगा है। पहले तो स्थिति ऐसी थी कि यदि आप क्लास-रूम में आध्यात्मिकता की बात करें तो क्लास में सन्नाटा छाजाता था। विद्यार्थियों को लगता था कि आज शिक्षक अपना विषय पढ़ाने का इच्छुक नहीं है। डा. व्यास का मत है कि हमारी आधुनिक टेक्नोलोजी और बहुत सारी जानकारी विज्ञान की भाषा पर आधारित है परन्तु यह अध्यात्म और प्रेम की भूमिका को समझा पाने में असमर्थता महसूस करती है। वह भूल जाती है कि भौतिक विश्व की तरह ही आध्यात्मिकता भी हमारे चारों ओर विद्यमान है जो विश्व के साथ संपर्क स्थापित करने का एक बड़ा साधन है। पड़ोसियों से प्रेम करना, न्यायपूर्ण जीवन जीने के लिए संघर्ष करना, आवेगों को नियंत्रित करना, सेवा भाव से दूसरों का दिल जीतना, आदि, ऐसे मूल्य हैं जो आध्यात्म द्वारा ही जीवन में उतारे जा सकते हैं। किन्तु इनकी क्लास-रूम में शिक्षा नहीं दी जा सकती। इन गुणों को जबतक शिक्षक स्वयं आत्मसात नही करेगा तब तक वह इन्हें अपने विद्यार्थियों में स्थानांतरित नहीं कर सकता। एकता, सहनशीलता, उत्तरदायित्व, जीवन के प्रति सम्मान, प्रेम आदि, ऐसी भावनाएं हैं जिन्हें केवल भाषण देकर नहीं समझाया जा सकता। शिक्षक का अपना इन मूल्यों के अनुरूप आचरण ही विद्यार्थी को इन्हें स्वयं अपने जीवन में उतारने के लिए प्रेरित कर सकता है। यह एक अच्छी बात है कि आज आध्य्यात्मिक मूल्यों के प्रति शिक्षा के क्षेत्र में अब अधिक जागरूकता आई है।
डा. निरंजन मोहनलाल व्यास ने अपनी पुस्तक के अंतिम तीन अध्यायों में न केवल कुछ विद्वानों के आध्यात्मिकता विषयक अभिप्राय प्रस्तुत किए हैं बल्कि आध्यात्मिकता से सम्बंधित अनेक प्रेरक सूक्तियां भी उद्धृत की हैं। इतना ही नहीं, उन्होंने एक बहुत मार्मिक कथा भी सुनाई है जो आध्यात्म पर अनुकूल टिप्पणी करती है। कुल मिलाकर डा. व्यास ने जीवन के हर क्षेत्र में आध्यात्म के समन्वयकारी प्रभाव और एकता की भावना को प्रेरित करने वाली उसकी शक्ति की विस्तार से व्याख्या की है। इस नितांत भौतिकवादी युग में इस प्रकार की पुस्तक के प्रणयन के लिए लेखक अभिनन्दन का पात्र है। अंत में मैं हर्षद दवे को भी बधाई देना चाहूँगा जिन्होंने इसका सुन्दर अनुवाद कर हिन्दी पाठकों को यह पुस्तक उपलब्ध कराई। अनुवाद इतना सार्थक और सफल है कि पाठक को लगता ही नहीं, वह एक अनुवादित पुस्तक पढ़ रहा है। उसे मूल का आस्वाद मिलता है।
- डा. सुरेन्द्र वर्मा (मो. ९६२१२२२७७८)
१०, एच आई जी / १, सर्कुलर रोड, इलाहाबाद -२११००१
डॉ.सुरेन्द्र वर्माजी ने आध्यात्मिकता के मार्ग की अत्यंत अभ्यासपूर्ण समीक्षा की है जिसके लिए हम आपके कृतज्ञ हैं। यह संपूर्ण पुस्तक का कुछ समय पहले ही रचनाकार में प्रकाशन हुआ है। आप चाहें तो पूरी पुस्तक रचनाकार पर पढ़ सकते हैं क्योंकि प्रत्येक अध्याय अलग से प्रस्तुत किए गए है।
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