गुब्बारेजी हरीश कुमार 'अमित ' बाल कविताएँ (अनुक्रम में नहीं) 1. गुब्बारे जी 2 आम 3. बन्दर जी 4 बन्दर जी की कहानी 5. बन्दर जी की सैर ...
गुब्बारेजी
हरीश कुमार 'अमित '
बाल कविताएँ (अनुक्रम में नहीं)
1. गुब्बारे जी
2 आम
3. बन्दर जी
4 बन्दर जी की कहानी
5. बन्दर जी की सैर
6. मच्छर जी
7. मोनू की माफी
8. माली जी
9. बिल्ली की पिकनिक
10. अफसोस
11. फरमाइश
12 हुई सुबह
13. मेरे मामा
14 चिड़िया
15. मेरी गुड़िया
16 खयाल
17. पापा की दाढ़ी
18. आता अखबार
19. बस्ता
20. चींटी रानी
21. मक्खी
22. बूट
23. गेंद
24 पतंग
25. पंखा
26. कूलर
27. गर्मी के दिन
28. बादल
29. बादल राजा
3०. बरसें बादल
31. बारिश
32. आने वाला कल
33. होली का मौसम
34. दीवाली की रात
35. मजा
36 हवा
37. जाड़ा
38. सर्दी की सुबह
39. सर्दी तूफानी
40. हो गई छुट्टियां
41 हाथी जी और चुनाव
42. चुनाव का खर्चा
43. पापा का ऑफिस
44 छोटी मुन्नी
छोटी मुन्नी
छोटी मुन्नी तो बडी शैतान,
काटे है यह सबके कान ।
देख-देख इसकी शरारतें,
हो जाते हम सब हैरान ।
हंसी इसकी लगे बहुत प्यारी,
यह तो हे भोलेपन की खान ।
अच्छी लगती है यह इतनी,
लगता जैसे हो अपनी जान ।
जो भी कह दो, करती झटपट,
लेती है सबका कहना मान ।
चींटी रानी
मेरी सहेली हे चींटी रानी,
इसका तो नहीं कोई सानी ।
हर जगह पर यह मिल जाए,
हो बंगला नया या कोठी पुरानी ।
करती रहती है हरदम काम,
नहीं करे कभी यह आराम ।
जो मिल जाए गुड़-चीनी तो,
कर दे उसका काम तमाम ।
मक्खी
देखो छोटी-सी यह मक्खी,
जिद्दी है कैसी यह मक्खी ।
अभी उड़ाया था इसको पर,
फिर से आ बैठी यह मक्खी ।
सारा दिन तो दिखती रहती,
रात में छुप जाती यह मक्खी ।
डरे न हाथी, भालू शेर से पर,
सूंघ फिनाइल भागती यह मक्खी ।
बूट
देखो मेरे प्यारे बूट,
कितने न्यारे-न्यारे बूट ।
पूरा साहब लगता हूँ जब,
पहना हो साथ में सूट ।
रखता हूं-इनको संभाल के,
न जाए कहीं ये टूट ।
या फिर कोई चोर-लुटेरा,
इनको न ले जाए लूट।
बस्ता
कितना भारी है मेरा बस्ता,
कर दे मेरी हालत खस्ता ।
थक जाऊं जब इसको ढोकर,
मुझ पर तब-तब है यह हँसता ।
सुबह-सवेरे आंख खुले तो,
तकता पाऊं इसे अपना रस्ता ।
वैसे वक्त गुजरता झटपट,
इसके संग आहिस्ता-आहिस्ता ।
आता अखबार
सुबह-सुबह आता अखबार,
संग अपने लाता समाचार ।
लगता नया-नया हर दिन,
बताता नई बातें हर बार ।
है अच्छा लगता मुझे बहुत,
मुझको तो हे इससे प्यार ।
आता है यह तो हर रोज,
चाहे छुट्टी हो या इतवार ।
गेंद
गेंद मेरी हे प्यारी-प्यारी,
घूमे यह तो क्यारी-क्यारी ।
सुन्दर, रंगभरी हे यह,
जैसे एक परी है यह ।
इससे खेलूं मैं हर दिन,
सूना लगता इसके बिन ।
है न सुन्दर यह कितनी,
लगती बिलकुल मेरी अपनी ।
पतंग
आसमान में उड़ती पतंग,
दिल में अपने भरती उमंग ।
कभी उठे ऊंची, कभी खाए गोते,
अलग-अलग यह दिखाती रंग ।
देखना अरे कट न जाए कहीं,
सीख लो उड़ाने का सही ढंग ।
उड़ती देख इस पतंग प्यारी को,
उठे मन में सबके खुशी की तरंग ।
पापा की दाढ़ी
देखो मेरे पापा की दाढ़ी,
कितनी काली, कितनी गाढी ।
बढ़ जाती है जब-जब यह,
तब-तब जैसे लगती झाडी ।
करते नहीं पापा शेव क्यों,
हैं क्या वे निपट अनाड़ी ?
या फिर कर रहे बचत वे,
लेने को मम्मी की साडी?
खयाल
कभी-कभी आता यह खयाल,
क्यों नहीं होता चंदा लाल ।
क्यों नहीं चढ़ते मेंढक पेडों पर,
क्यों नहीं मलते हर रोज गुलाल ।
क्यों नहीं होती छुट्टी हर दिन,
क्यों पूछें टीचर जी सवाल ।
क्यों होते हैं हाथ बस दो,
क्यों आता जन्मदिन हर साल ।
पंखा
फर-फर-फर-फर चलता पंखा,
गर्मी दूर भगाता पंखा ।
आया हो कितना भी पसीना,
पलभर में ही सुखाता पंखा ।
ठंडक देता है यह सबको,
सबको चैन दिलाता पंखा ।
चाहे दौड़ा लो कितना भी,
रहता पर मुस्काता पंखा ।
कूलर
देखो कितना प्यारा कूलर,
कितना न्यारा-न्यारा कूलर ।
हर लेता गर्मी सारी यह,
देता ठंड की धारा कूलर ।
मुझको तो भाता है बहुत,
अपना यह दुलारा कूलर ।
लगे जना-सा परिवार का,
मुझको तो हमारा कूलर ।
मेरी गुड़िया
गुडिया मेरी छैल-छबीली,
सुन्दर-प्यारी रंग-रंगीली ।
पहने है यह जूते काले,
और फ्रॉक एक नीली-नीली ।
यह तो मेरी सहेली है,
वाह, कितनी अलबेली है ।
अब तक न जाने कितना,
मेरे साथ यह खेली है ।
इसके बिन न आए चैन,
चाहूं साथ रहे दिन-रैन ।
सोच यही, गुम हो न जाए,
भर आते हैं मेरे नैन ।
चिड़िया
रोज सवेरे आती चिड़िया,
अपना गान सुनाती चिड़िया ।
चीं-चीं चूं-चूं चीं-चीं करके,
हम सबको है जगाती चिड़िया ।
मम्मी, पापा, टिंकू, गुड्डी,
सबके मन को भाती चिड़िया ।
मिल जाए खाने को जब कुछ,
झट से सब चुग जाती चिड़िया ।
तेज धूप जो आ जाए तो,
पंख पसार उड़ जाती चिड़िया ।
गर्मी के दिन
गर्मी के दिन आए रे, हैं गर्मी के दिन,
लू-पसीना लाए रे, हैं गर्मी के दिन,
ठंडा-ठंडा खूब पियो रे, हैं गर्मी के दिन,
आम-खरबूजे खाओ रे, हैं गर्मी के दिन,
धूप में तो न जाओ रे, हैं गर्मी के दिन,
दिन में खूब नहाओ रे, हैं गर्मी के दिन,
नानी के घर जाओ रे, हैं गर्मी के दिन,
मोटे होकर आओ रे, हैं गर्मी के दिन ।
बादल
आसमान में छाएं बादल,
लहर-लहर लहराएं बादल ।
ठडी-ठंडी वर्षा करके,
हम सबको हर्षाएं बादल ।
वैसे तो बरसें हर साल,
कभी-कभी तरसाएं बादल ।
तेज हवा जो आएं सरपट,
संग-संग तब उड़ जाएं बादल ।
मेरे मामा
मटरूमल हैं मेरे मामा,
पहनें वे ढीला-सा पाजामा ।
उनके संग मिलकर हम बच्चे,
खूब करें दिन भर हंगामा ।
सुबह-सवेरे करके कसरत,
समझें वे खुद को तो गामा ।
पर जो गुल हो रात को बत्ती,
डर के चिल्लाए वे-मां! मां! '
हुई सुबह
दिन उगा, हुई सुबह,
सूरज निकला, हुई सुबह ।
चिड़िया चहकी, हुई सुबह,
हवाएं महकीं, हुई सुबह ।
खिले गुलाब, हुई सुबह,
वाह जनाब, हुई सुबह ।
प्यारी-प्यारी हुई सुबह,
न्यारी-न्यारी हुई सुबह ।
बादल राजा
बादल राजा आजा आजा,
आकर सबका मन हर्षा जा ।
हम हैं बहुत गर्मी के सताए,
आके हमारी प्यास बुझा जा ।
बहुत दिन हुए तुझको बरसे,
अब तो थोडा-सा मुस्का जा ।
न बरस चाहे तू झमाझम,
थोड़ी-सी बूंदें तो छलका जा ।
बरसें बादल
छम-छमाछम बरसें बादल,
गड़गड़-गड़गड़ बरसें बादल ।
ठंडी-ठंडी करके वर्षा,
जब जी चाहे बरसें बादल ।
जिस रोज हो स्कूल की छुट्टी,
उस दिन गरजे-बरसे बादल ।
पर जब-जब जाना हो स्कूल,
तब ना कभी ये बरसें बादल ।
फ़रमाइश
की फरमाइश चुहिया रानी ने,
चूहे राजा से दिन एक ।
' अजी फिल्म देखे तो हो गए,
हमको महीने-साल अनेक ।' '
बोले चूहे जी झट-से यह,
' 'जी, इतना मत घबराओ ।
अगली तनखाह मिलने तक तो
यूं ही दिल को बहलाओ ।'
अफसोस
स्कूटर लिया हाथी दादा ने
देकर पूरे तीस हजार ।
सूट पहन लगा के टाई
हुए दादा उस पर सवार ।
मारी पहली बार में टक्कर
स्कूटर चलाया खूब ।
टूटा स्कूटर, बोले दादा जी,
''गए तीस हजार डूब !''
बारिश
बारिश आई, ।-- -
पानी लाई,
पेड़ों की हो गई धुलाई ।
मांगते माफ़ी,
गर्मी भागी,
छातों की तो किस्मत जागी ।
नाचते मोर,
मचाए शोर,
अब तो देखो चारों ओर ।
बादल रानी,
बरसाएं पानी
हो गई ऋतु कितनी सुहानी ।
आनेवाला कल
बच्चे होते फूल से कोमल,
दिल के उजले, निर्मल-निर्मल ।
नहीं जानते ये बेईमानी,
नहीं समझते दुनिया के छल ।
मन कभी न भर पाए,
चाहे साथ रहें कितने पल ।
इनका रखें खूब ध्यान हम,
ये ही तो हैं आनेवाला कल ।
बिल्ली की पिकनिक
पहन के सूट, लगा के टाई,
सुबह-सवेरे बिल्ली आई ।
कहा, ' 'जाना है पिकनिक पर,
करो पैक खाना कुछ भाई ।' '
पूछा दुकानदार ने कि मौसी,
भरवां चूहे दूं या फ्राई ।
बोली मौसी,. हो चेंज' कुछ,
करो पैक बस नान-खताई ।''
माली जी
करते हो तुम माली जी,
बागों की रखवाली जी ।
तुमसे ही तो रह पाती,
बागों में हरियाली जी ।
पाकर प्यार तुम्हारा तो,
झूमे डाली-डाली जी ।
हरे-भरे पेड़ों पर गाती,
काली कोयल मतवाली जी ।
होली का मौसम
फिर से होली का मौसम आया,
अपने संग है खुशियां लाया ।
आओ मिलकर खेलें सब होली,
दीपू गौतम, छाया, माया ।
होती देख बरसात रंगों की,
छोटू तो इतना घबराया ।
छुपा रहा वह घर के अन्दर,
लाख बुलाया, पर न आया ।
रंग दो आज सभी को रंग में,
सब हैं अपने, कोई न पराया ।
दीवाली की रात
दीवाली की रात सजी है,
खुशियों की बारात सजी है ।
लगती दुनिया कितनी सुन्दर,
जैसी बनी यह नई-नई है ।
अनार, पटाखे, फुलझड़ियों की,
चारों ओर ही धूम मची है ।
हर तरफ रोशनी के समुन्दर,
अंधेरा दिखता कहीं नहीं है ।
मोनू की माफ़ी
बोले पापा मोनू से, ''भई,
मुझको दे दो टॉफी एक ।
लाकर दिया था न मैंने,
तुमको कितना सुंदर केक ।''
बोला मोनू यूँ कि पापा,
मुझको दे दो माफी ।
ले लो पप्पी चाहे जितनी,
पर दूंगा नहीं मैं टॉफी ।
मच्छर जी
नींद आ रही है मुझको तो,
सोने दो अब मच्छर जी ।
मीठे-प्यारे-से सपनों में मुझे,
खोने दो अब मच्छर जी ।
तुमको तो है काम न कोई,
मुझको जाना है कल स्कूल ।
देर से जो पहुँचा तो डर है,
पड़ न जाएँ टीचर के रूल ।
मज़ा
आज स्कूल में हमको
मजा बहुत ही आया,
दी मैडम ने टॉफी और
चिंटू ने गीत सुनाया ।
सपना ने पैरोडी गाई
मीनू-नीतू ने कब्बाली,
मैं भी डाक बनकर आया,
पहन के वर्दी काली ।
हवा
सन-सन-सन-सन चले हवा,
फर-फर-फर-फर बहे हवा ।
थककर न जाती बैठ कभी,
हरदम चलती रहे हवा ।
अच्छा लगता है न कितना,
धीमे-धीमे जब बहे हवा ।
सदी हो या लू के थपेड़े,
हँस के सब कुछ सहे हवा ।
चलते रहना ही जीवन है,
कभी न रुकना कहे हवा ।
बन्दर जी की सैर
सुबह-सवेरे बन्दर मामा,
निकले करने सैर ।
बाहर जाते ही कीचड़ से
फिसला उनका पैर ।
हूःहू करके बन्दर बोले,
' 'शामत मेरी आई '
कभी सैर न करने की
अब कसम है मैंने खाई ''
बन्दर जी की कहानी
बन्दर जी ने लिखी कहानी,
और छपने को भिजवाई ।
तीस दिनों तक भी जब उसकी,
खबर नहीं मिल पाई ।
फोन किया सम्पादक जी को,
झट बात सारी बतलाई ।
मिला जवाब, ' 'साथ में क्यों न,
दवा सिरदर्द की भिजवाई ?' '
जाड़ा
सीसी-सी ठिठुरता जाड़ा,
हर एक साल ही आता जाडा ।
सांसे जब धुंआ बन निकलें,
गर्मी की याद दिलाता जाडा ।
हम जब कांपें ठंड के मारे
देख हमें मुस्काता जाड़ा!
ओढी जो कम्बल और रजाई,
झट से भाग जाता है जाड़ा ।
सर्दी की सुबह
फिर सुबह सर्दी की आई,
अपने संग कंपकंपी लाई ।
जी न चाहे बाहर निकलना,
छोड़ के गर्मी भरी रजाई ।
स्कूल पहुंचने के चक्कर ने,
हालत पतली कर दी भाई ।
नजर नहीं कुछ आता अब तो,
चारों ओर घुंध ही छाई ।
सूरज भइया, हिम्मत कैसे,
सुबह निकल पाने की पाई ।
बन्दर जी
बन्दर जी, ओ बन्दर जी,
तुम हो कितने सुन्दर जी ।
अभी-अभी तो छत पर थे,
और अबही घर के अन्दरजी ।
खा लेते हो सब कुछ तुम तो,
केला हो या चुकन्दर जी ।
तुम जैसा देखा न कोई,
हमने मस्त कलन्दर जी ।
आम
पीले-पीले और मीठे आम,
हर कोई इन्हें करे सलाम ।
जी ललचाते हैं ये सबका,
हों इनके चाहे कितने दाम ।
मन करता इन्हें खाते जाएं,
और न हो हमको रे काम ।
पढ़ने में अव्वल आए तो,
काश यही मिलें हमें इनाम ।
सर्दी तूफ़ानी
आ गई है सर्दी तूफानी,
याद दिलाए मुझको नानी ।
होश मेरे गुम हो जाते हैं,
जब भी देखूं ठंडा पानी ।
कौन करेगा इस सर्दी में,
बाहर निकलने की नादानी ।
अच्छा लगता है न कितना,
बैठ रजाई में सुनना कहानी ।
पहन लिए मैंने दो-दो स्वेटर,
अब न सताना सर्दी रानी ।
हो गई छुट्टियाँ
करें खेल अब नए-नए,
पढ़ने के दिन गए-गए ।
अब तो हो गई छुट्टियाँ,
खाली अब हम भए-भए ।
करो मौज और हल्ला-गुल्ला,
खाओ बर्फी या रसगुल्ला ।
अब हम पर नहीं बंदिश कोई,
पास हमारे वक्त है खुल्ला ।
गुब्बारे जी
ओ मेरे गुब्बारे जी,
सुन्दर-सुन्दर प्यारे जी ।
जी करता है लूँ खरीद,
मैं तो सारे-के-सारे जी ।
हो गई दोस्ती अपनी,
खेलेंगे साथ तुम्हारे जी ।
फूट न जाना जल्दी से,
रहना पास हमारे जी ।
हाथी जी और चुनाव
हाथी जी ने लड़ा चुनाव,
चुनाव चिह्न मिला ऊदबिलाव ।
भागदौड़ की बहुत उन्होंने,
था जीतने का .बडा चाव ।
दिए भाषण, बाँटे कम्बल,
कोई भी न छोड़ा दांव ।
पर थे वे गुस्सैल बहुत,
बात-बात पर खाया ताव ।
इसलिए हुई जमानत जब्त,
जाना तब आटे-दाल का भाव ।
चुनाव का खर्चा
हुई घोषणा जब चुनाव की
भालू जी ने भी भर दिया पर्चा ।
सोचा यह कि जीतें या हारें,
होगी अपने नाम की चर्चा ।
इसी झोंक में करते रहे वे,
बद-बढ़कर खर्चे-पर-खर्चा ।
पर जब मांगा गया हिसाब,
छाई चेहरे पे पसीने की वर्षा ।
पापा का ऑफ़िस
पापा क्या ऑफिस में भी
इक टीचर जी होती हैं?
क्या करवाती हैं पढ़ाई
और होमवर्क भी देती हैं?
होमवर्क न करने पर क्या
पकड़ा करती हैं वे कान?
होता क्या आपका भी पापा
फिर ऑफिस में इम्तहान?
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सर्वाधिकार : सुरक्षित
प्रकाशक : सन्मार्ग प्रकाशन
16यू.बी., बैग्लो रोड, जवाहर नगर
दिल्ली- 11०००7
संस्करण : 1999
आवरण : जनवाणी ग्राफिक्स, दिल्ली- 11००32
शब्द संयोजक : क्वालिटी प्रिंट, दिल्ली- 11००93
मुद्रक ' : भारती आर्ट प्रिंटर्स, दिल्ली-! 100032n
गुब्बारेजी
हरीश कुमार 'अमित '
सन्मार्ग प्रकाशन, दिल्ली- 11०००7
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परिचय
नाम हरीश कुमार ‘अमित’
जन्म 1 मार्च, 1958 को दिल्ली में
शिक्षा बी.कॉम.; एम.ए.(हिन्दी); पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा
प्रकाशन 700 से अधिक रचनाएँ (कहानियाँ, कविताएँ/ग़ज़लें, व्यंग्य, लघुकथाएँ, बाल कहानियाँ/कविताएँ आदि) विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित. एक कविता संग्रह 'अहसासों की परछाइयाँ', एक कहानी संग्रह 'खौलते पानी का भंवर', एक ग़ज़ल संग्रह 'ज़ख़्म दिल के', एक बाल कथा संग्रह 'ईमानदारी का स्वाद', एक विज्ञान उपन्यास 'दिल्ली से प्लूटो' तथा तीन बाल कविता संग्रह 'गुब्बारे जी', 'चाबी वाला बन्दर' व 'मम्मी-पापा की लड़ाई' प्रकाशित. एक कहानी संकलन, चार बाल कथा व दस बाल कविता संकलनों में रचनाएँ संकलित.
प्रसारण - लगभग 200 रचनाओं का आकाशवाणी से प्रसारण. इनमें स्वयं के लिखे दो नाटक तथा विभिन्न उपन्यासों से रुपान्तरित पाँच नाटक भी शामिल.
पुरस्कार-
(क) चिल्ड्रन्स बुक ट्रस्ट की बाल-साहित्य लेखक प्रतियोगिता 1994, 2001, 2009 व 2016 में कहानियाँ पुरस्कृत
(ख) 'जाह्नवी-टी.टी.' कहानी प्रतियोगिता, 1996 में कहानी पुरस्कृत
(ग) 'किरचें' नाटक पर साहित्य कला परिषद (दिल्ली) का मोहन राकेश सम्मान 1997 में प्राप्त
(घ) 'केक' कहानी पर किताबघर प्रकाशन का आर्य स्मृति साहित्य सम्मान दिसम्बर 2002 में प्राप्त
(ड.) दिल्ली प्रेस की कहानी प्रतियोगिता 2002 में कहानी पुरस्कृत
(च) 'गुब्बारे जी' बाल कविता संग्रह भारतीय बाल व युवा कल्याण संस्थान, खण्डवा (म.प्र.) द्वारा पुरस्कृत
(छ) 'ईमानदारी का स्वाद' बाल कथा संग्रह की पांडुलिपि पर भारत सरकार का भारतेन्दु हरिश्चन्द्र पुरस्कार, 2006 प्राप्त
(ज) 'कथादेश' लघुकथा प्रतियोगिता, 2015 में लघुकथा पुरस्कृत
(झ) 'राष्ट्रधर्म' की कहानी-व्यंग्य प्रतियोगिता, 2016 में व्यंग्य पुरस्कृत
(ञ) 'राष्ट्रधर्म' की कहानी प्रतियोगिता, 2017 में कहानी पुरस्कृत
सम्प्रति भारत सरकार में निदेशक के पद से सेवानिवृत्त
पता - 304ए एम.एस.4, केन्द्रीय विहार, सेक्टर 56, गुरूग्राम-122011 (हरियाणा)
ई-मेल harishkumaramit@yahoo.co.in
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