चाबी वाला बन्दर' ( बाल कविता संग्रह) ० : हरीश कुमार 'अमित’ प्रकाशक सन्मार्ग प्रकाशन 16-.यू.बी. बगलों रोड, जवाहर नगर दिल्ली-। 110007 ...
चाबी वाला बन्दर'
( बाल कविता संग्रह)
० : हरीश कुमार 'अमित’
प्रकाशक सन्मार्ग प्रकाशन
16-.यू.बी. बगलों रोड, जवाहर नगर
दिल्ली-। 110007
प्रथम संस्करण : 2013
शब्द-संयोजन : शर्मा कम्प्यूटर्स
मुद्रक : पवन ऑफसेट
नवीन शाहदरा, दिल्ली-32
बन्दर जी की चाय
घर पहुंचे जब बन्दर जी शाम को
बोले यूं कि मैडम जी, मुझको,
चाय पिलाओ गरम-गरम तुम,
कांप रहा मारे ठंड के मैं तो ।
मिला जवाब बंदरिया जी से यूं
लाए न हो चीनी, पत्ती क्यूं ?
हो गई है खत्म गैस भी,
ऐसे में अब मैं क्या करूं ?
******
मेरी साइकिल
देखो मेरी साइकिल छोटी-सी,
सुन्दर कितनी साइकिल छोटी-सी
करता हूं इसे रोज साफ मैं,
रहे चमकती साइकिल छोटी-सी ।
चलती है तूफान की तरह,
हे बेशक साइकिल छोटी-सी ।
मुझे कराए जी-भर सैर,
मेरी प्यारी साइकिल छोटी-सी'''।
मोटे बन्दर का बुखार
मोटे बन्दर को चढ़ा बुखार,
दफ्तर से लीं छुट्टियां चार ।
जाकर डॉक्टर से यह बोला,
''कर दो साहब मेरा उपचार ।
पर टीका न लगाना जी,
गोली दे दो बेशक चार ।''
देकर दवा कहा डॉक्टर ने-
जल्दी ठीक हो जाओगे यार!
पर सुनो, कर-करके कसरत,
कर लो कम कुछ अपना भार ।''
ताली और गाली
बन्दरिया ने रात को देखा-
बन्दर जी बजा रहे ताली,
बीच-बीच में देते जा रहे
थे वे गाली-पर-गाली ।
हैरानी से पूछा बन्दरिया ने-
कर रहे हो जी, यह सब क्यों?
दिया जवाब बन्दर जी ने यह-
भगा रहा हूं मच्छर मैं तो ।
सर्दी का डर
मम्मी, न नहलाना मुझको,
आज बड़ी है सर्दी,
धुलाकर बस मुंह-हाथ ही,
पहना देना मुझे वर्दी ।
सदी में अगर में नहाया,
तो हो जाएगा बुखार,
लेनी पडेंगी तब स्कूल से,
छट्टियां तीन-चार ।
शादी की तैयारी
भालू राम थे खुश बहुत,
कल दूल्हा बनेगा मेरा यार,
संग जाऊंगा बाराती बन,
दफ्तर से लूंगा छुट्टियां चार ।
छुट्टी लेकिन मिल न पाई,
काम आ पडा एकदम भारी,
धरी रह गई भालू जी की,
तेयारी सारी-की-सारी ।
कुर्सी-मेज
देखो, मेरी यह कुर्सी-मेज,
नाना जी ने दी है भेज ।
करूंगा इस पर खूब पढ़ाई,
और बन जाऊंगा मैं तेज ।
बहुत ध्यान रखूंगा इसका,
न होने दूंगा इसे खराब ।
नहीं तो फिर क्या दूंगा मैं,
अपने नाना जी को जवाब ।
सबसे बड़ी मुसीबत
मम्मी-पापा तो पीते चाय,
मुझको देते दूध हैं ।
खुद तो खाते चाट-पकौडी,
मेरे लिए लेमनजूस है ।
टी. वी. देखें वे तो रात तक,
मुझको जल्दी सोना पड़ता ।
सबसे बडी मुसीबत यह कि,
स्कूल मुझे ही जाना पड़ता ।
बन्दर जी की दीवाली
बन्दर जी ने जी-भर के,
कर ली दीवाली की तैयारी,
लाए खूब मिठाई-बताशे
पटाखों से भर दी अलमारी ।
पर जब लगे चलाने रात को,
पटाखे बन्दर जी प्यारे,
लगी बरसने बारिश झमाझम
धरे रह गए पटाखे सारे ।
बत्ती गुल
गुल हुई जो रात को बत्ती
भालू जी झल्लाए,
''उधर काटते हैं मच्छर,
और नहीं नींद भी आए ।''
करवट बदल-बदल मियां ने
साढ़े तीन बजाए,.
और फिर पहुंच रसोई में
लग गए बनाने चाय ।
पानी
गर्मी का मौसम जब आता,
पानी हमको कितना भाता ।
जी करता हो पूरे दिन का,
अपना इस पानी से नाता ।
मौसम बारिश का जब आए,
संग अपने पानी ले आए ।
करे चाहे लाख जतन कोई,
पर पानी से बच न पाए ।
लेकिन आती जब सर्दी रानी,
पूछो न तब की तो कहानी ।
गर्म पानी तो लगता अच्छा,
देख ठंडा मर जाती नानी ।
चूहे जी की मायूसी
चूहे जी सुबह जब जागे,
उठकर एकदम बाहर भागे ।
देखा, आया था अखबार,
उसका खोला पन्ना चार ।
देखा पन्ना सारे-का-सारा,
'छपा नहीं कुछ भी तो हमारा
चूहे जी ने ऐसा कहकर,
मारा हाथ अपने माथे पर ।
काश, अगर मैं....
काश अगर मैं बिल्ली होती,
मौज मुझे फिर कितनी होती ।
स्कूल न जाना पड़ता मुझको,
न पढ़नी होती किताबें मोटी ।
पड़ती न टीचर जी की डांट,
न चिन्ता होमवर्क की होती ।
डर नहीं होता इम्तहान का,
दिन भर खाती, पीती, सोती ।
खाना जी
मम्मी, मुझको भूख लगी है,
मुझको दे दो खाना जी ।
करूं पेटपूजा पहले फिर,
तुम कुछ बात सुनाना जी ।
तब जो कहोगी तो गा दूंगा,
सुन्दर-सुन्दर गाना जी ।
देखो अच्छा नहीं है यह,
इस भूखे को सताना जी ।
दो बहनें
सोनू-मोनू हैं दो बहनें,
छोटी-छोटी और प्यारी-प्यारी ।
करें खूब प्यार आपस में,
हों जैसे इक-दूजे पर वारी ।
कभी-कभी पर लडतीं ऐसे,
जैसे हों इक-दूजे की दुश्मन ।
पल भर में ही फिर मिल बैठें,
हो जैसे दोनों का एक ही मन ।
नानी जी
नानी जी, ओ नानी जी,
पी लो ठंडा पानी जी ।
फिर मुझको सुनाना तुम,
तोते वाली कहानी जी ।
नाना जी
नाना जी, ओ नाना जी,
पहले खा लें खाना जी ।
फिर लेकर देना टॉफी,
अब न चलेगा बहाना जी ।
दूध
कितना मीठा होता दूध,
जैसे मिश्री का सोता दूध ।
मिलता मक्खन का उपहार,
जब-जब कोई बिलोता दूध ।
बने चाहे दही या खीर
अपना स्वाद न खोता दूध ।
रखें न जब इसे ठंडक में,
मारे गर्मी के रोता दूध ।
चाबी वाला बन्दर
ले दो पापा जी मुझको,
यह चाबी वाला बन्दर,
इससे खेलूंगा में तो बस,
घर के अन्दर-ही-अन्दर ।
रखूंगा इसे संभालकर
होगा बिल्कुल नहीं खुराब,
खेलूंगा इसके संग में ऐसे
जैसे हो यह कोई नवाब ।
दादा जी
दादा जी, ओ दादा जी,
मेरे प्यारे दादा जी ।
कब करोगे पूरा बोलो,
साइकिल वाला वादा जी ।
मम्मी जी
मम्मी जी, ओ मम्मी जी,
प्यारी-प्यारी मम्मी जी ।
केले भाते हैं जब मुझको,
लाई तुम क्यों मुसम्मी जी ।
चिड़ियाघर की सैर
क्यों न आज चिड़ियाघर जाएं,
दिन भर मौज वहां पर मनाएं ।
देखें खरगोश, कबूतर, मोर ।
सुनें तैरती बत्तखों का शोर ।
देखें बन्दरों की शैतानी,
हिरणों को देखें पीते पानी ।
लोमड़ी, सियार और कुत्ते देखें
देखें शेर बब्बर ओर चीते । '
हाथी की भी करें सवारी,
लगती है जो कितनी प्यारी ।
जब थक जाएं करें आराम,
लौटें तब जब हो जाए शाम।
लाल तरबूज
मीठा-मीठा लाल तरबूज
रस से भरा लाल तरबूज ।
बाहर से सख्त है चाहे,
अन्दर से नर्म लाल तरबूज ।
मिलता गर्मी के मौसम में,
प्यास बुझाता लाल तरबूज ।
हो उतना ही ज्यादा मीठा,
जितना होता लाल तरबूज ।
पप्पू जी
पप्पू जी, ओ पप्पू जी,
हो तुम कितने गप्पू जी ।
खाते नहीं दवाई लेकिन,
करो मिठाई हप्पू जी ।
पापा मेरे
पापा मेरे हें कितने प्यारे,
अच्छे कितने, न्यारे-न्यारे ।
लेकर आते टॉफी-बिस्किट,
और खिलौने ढेर सारे ।
जाऊं बाहर जब संग इनके,
कहते मुझको चलो किनारे ।
डरे नहीं सारी दुनिया से,
पर मम्मी से डरते बेचारे ।.
रात
सो जाओ अब हो गई रात,
चुप, अंधेरी, काली रात ।
सो गए हैं और सभी,
अब न करना कोई बात ।
मीठे सपनों में खो जाओ,
होगी अब जिनकी बरसात ।
कल होगी जो नई सुबह,
लाएगी खुशियों की बारात ।
******.
साल नया
आ गया फिर साल नया,
सुन्दर है कितना साल नया ।
पिछले साल की बातें छोड़ो,
जो चला गया सो चला गया ।
नए साल में कर लेने को,
ठाना है तुमने क्या-क्या?
हँसी-खुशी से बीते यह साल,
अपनी तो है यही दुआ ।
धूप
पीली-पीली और प्यारी धूप,
है कितनी उजियारी धूप ।
देखो उतर आई आंगन में,
कितनी-कितनी सारी धूप ।
गर्मी में तो बचते इससे,
भाए जाडे में करारी धूप ।
यह तो है सबकी अपनी,
नहीं मेरी या तुम्हारी धूप ।
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चाबी वाला बन्दर
( बाल कविता संग्रह)
हरीश कुमार ' अमित'
सन्मार्ग प्रकाशन
दिल्ली- 110007
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परिचय
नाम हरीश कुमार ‘अमित’
जन्म 1 मार्च, 1958 को दिल्ली में
शिक्षा बी.कॉम.; एम.ए.(हिन्दी); पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा
प्रकाशन 700 से अधिक रचनाएँ (कहानियाँ, कविताएँ/ग़ज़लें, व्यंग्य, लघुकथाएँ, बाल कहानियाँ/कविताएँ आदि) विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित. एक कविता संग्रह 'अहसासों की परछाइयाँ', एक कहानी संग्रह 'खौलते पानी का भंवर', एक ग़ज़ल संग्रह 'ज़ख़्म दिल के', एक बाल कथा संग्रह 'ईमानदारी का स्वाद', एक विज्ञान उपन्यास 'दिल्ली से प्लूटो' तथा तीन बाल कविता संग्रह 'गुब्बारे जी', 'चाबी वाला बन्दर' व 'मम्मी-पापा की लड़ाई' प्रकाशित. एक कहानी संकलन, चार बाल कथा व दस बाल कविता संकलनों में रचनाएँ संकलित.
प्रसारण - लगभग 200 रचनाओं का आकाशवाणी से प्रसारण. इनमें स्वयं के लिखे दो नाटक तथा विभिन्न उपन्यासों से रुपान्तरित पाँच नाटक भी शामिल.
पुरस्कार-
(क) चिल्ड्रन्स बुक ट्रस्ट की बाल-साहित्य लेखक प्रतियोगिता 1994, 2001, 2009 व 2016 में कहानियाँ पुरस्कृत
(ख) 'जाह्नवी-टी.टी.' कहानी प्रतियोगिता, 1996 में कहानी पुरस्कृत
(ग) 'किरचें' नाटक पर साहित्य कला परिाद् (दिल्ली) का मोहन राकेश सम्मान 1997 में प्राप्त
(घ) 'केक' कहानी पर किताबघर प्रकाशन का आर्य स्मृति साहित्य सम्मान दिसम्बर 2002 में प्राप्त
(ड.) दिल्ली प्रेस की कहानी प्रतियोगिता 2002 में कहानी पुरस्कृत
(च) 'गुब्बारे जी' बाल कविता संग्रह भारतीय बाल व युवा कल्याण संस्थान, खण्डवा (म.प्र.) द्वारा पुरस्कृत
(छ) 'ईमानदारी का स्वाद' बाल कथा संग्रह की पांडुलिपि पर भारत सरकार का भारतेन्दु हरिश्चन्द्र पुरस्कार, 2006 प्राप्त
(ज) 'कथादेश' लघुकथा प्रतियोगिता, 2015 में लघुकथा पुरस्कृत
(झ) 'राष्ट्रधर्म' की कहानी-व्यंग्य प्रतियोगिता, 2016 में व्यंग्य पुरस्कृत
(ञ) 'राष्ट्रधर्म' की कहानी प्रतियोगिता, 2017 में कहानी पुरस्कृत
सम्प्रति भारत सरकार में निदेशक के पद से सेवानिवृत्त
पता - 304ए एम.एस.4ए केन्द्रीय विहार, सेक्टर 56ए गुरूग्राम-122011 (हरियाणा)
ई-मेल harishkumaramit@yahoo.co.in
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